नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह संदर्भ : 2023 अलविदा
नये साल का पहला दिन एक वैश्विक पर्व की तरह मनाया जाता है। इसे मनाने की परंपराएं दुनिया की तरह रंगीन हैं। यह सारी दुनिया के लिए नयी उम्मीदों, नयी शुरुआत तथा आने वाले समय के रोमांच को अनुभव करने का उत्सव है।
नये साल का पहला दिन आपके जीवन में प्रियजनों के करीब आने और खोये हुए  दोस्तों के साथ संपर्क को पुनर्जीवित करने का एक शानदार अवसर है। सभी लोग बीत रहे साल को अलविदा कह नये साल का इस उम्मीद के साथ स्वागत करते हैं कि यह सबके जीवन में बहुत सारी खुशियां लेकर आयेगा।
हर साल की तरह इस साल भी अलग-अलग देशों में नये साल के उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।
नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह।
महक उठे बगिया सबकी पाकर इसका प्यार।।
और अंत में नया साल सभी लोगों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आये।
नये साल की शुभकामनाएं।
शिक्षा और जागरूकता ही है हल संदर्भ : जादू - टोना कर आठ साल की बच्ची की हत्या
जादू हाथ की सफाई के साथ-साथ विज्ञान, गणित, कला तथा बातों से प्रभावित करने की क्रिया कही जा सकती है। इसमें कभी-कभी सम्मोहन विद्या का भी प्रयोग किया जाता है।  जो जादू स्टेज पर जादूगर या मैजिशियन दिखाते हैं या जो स्वयंभू बाबा लोग हवा में हाथ हिला कर भभूत या सोना निकाल कर दिखाते हैं या सड़क पर जो मदारी अपना करतब दिखाते हैं, वह सिर्फ और सिर्फ हाथ की सफाई ही होता है।
जादू- टोना एक प्रकार से अंधविश्वास है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। भारत में भी जहां अशिक्षा है और पिछड़े इलाके हैं, वहां डायन आदि के आरोप लगाकर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाती है। डायन प्रथा बिहार के कई इलाकों में आज भी बदस्तूर जारी है। इसमें जादू -टोना के नाम पर महिलाओं की बलि तक दे दी जाती है। अफसोस की बात यह है कि आधुनिक युग में भी हमारा समाज जादू -टोना जैसी मानसिकता से ग्रस्त है।
संपत्ति विवाद है कारण : जादू -टोना और डायन के नाम पर सामाजिक अत्याचारों का शिकार हुई महिलाओं में करीब 90% मामलों की जड़ में संपत्ति या जमीन विवाद ही शामिल होता है। दूसरी ओर जब कोई महिला पुरुष प्रधान समाज में मूल्य एवं सामंती सांस्कृतिक प्रतिमानों को जब अस्वीकार करती है तो उसे डायन करार दे दिया जाता है। इसे अंजाम देने में गांव के प्रमुख लोग, पंचायत और परिजन आदि ही शामिल होते हैं। बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को डायन बताकर उनको प्रताड़ित ( हत्या तक) करने की प्रथा आज भी जारी है।
बिहार में हाल ही में जादू -टोना के नाम पर एक आठ साल की बच्ची की हत्या कर दी गयी । तांत्रिक क्रियाओं से जुड़ी हत्याओं को अंधविश्वास और अशिक्षा से जोड़ना आसान लगता है, लेकिन ऐसे मामलों में शिक्षित, मध्यवर्गीय परिवारों से जुड़े लोग भी शामिल पाये जाते हैं। इसलिए इस तरह की घटनाओं का गहरा विश्लेषण जरूरी हो जाता है ।
और अंत में इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए कानून बनाने से केवल आधी जीत ही हासिल होगी, क्योंकि अभी अंधविश्वास, जादू - टोना या मानव बलि से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है। केवल आईपीसी ( इंडियन पेनल कोड) की कुछ धाराओं के तहत ऐसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है।इसकी पूर्णत: रोकथाम के लिए समुदायों, धार्मिक गुरुओं आदि को शामिल कर लोगों के बीच जागरूकता लानी होगी।
सब डोल रहे गलबहियां डाल संदर्भ : इंडी का पीएम चेहरा कौन
आत्म सम्मान को ताक पर रख कर डोल रहे गलबहियां डाल।
सभी चाहते पीएम बनना मगर नहीं गल रही किसी की दाल।।
अंग्रेजों की राह पर चल कर बांट रहे हैं लोगों को।
घटक दलों की कारस्तानी से सभी नोचते अपने बाल।।
मुफ्त की रेबड़ी बांट रहे सब सोच रहे होगा कल्याण।
इंडी का चेहरा बनने को सभी चल रहे अपनी चाल।।
जदयू में लग रही सेंध और कांग्रेस हो रही बेचैन।
चुनावी समर पार करने को सभी का हो रहा हाल बेहाल।।

रविशंकर शर्मा
2024 की लोकसभा क्या विपक्ष विहीन होगी संदर्भ : राहुल गांधी अब निकालेंगे भारत न्याय यात्रा
कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कितनी सफल रही, यह तो राहुल गांधी या उनकी टीम ही बता सकती है। कांग्रेस इस यात्रा के जरिये महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे उठाकर अपनी खोयी ताकत फिर से हासिल करना चाहती थी साथ ही राहुल गांधी को एक जननेता के रूप में स्थापित करना चाहती थी।
यात्रा की समाप्ति के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव हुए। रिजल्ट तो सभी को मालूम ही है। हां, ये बात दीगर है कि गांधी - नेहरू परिवार ने इस देश को तीन प्रधानमंत्री ( जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ) दिये। जिन्होंने लगभग चालीस सालों तक शासन किया।
एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जिसने अपने 100 साल से ज्यादा के लंबे इतिहास में से ज्यादातर समय भारतीय राजनीति को दिशा दी, वह  2024 के लोक सभा चुनाव से पहले खुद में नयी जान फूंकने के लिए छटपटा रही है। इस समय 543 सदस्यों वाली भारतीय संसद में कांग्रेस सांसदों की संख्या मात्र 48 ही रह गयी है।
दूसरी और कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस से एक दिन पहले राहुल गांधी के नेतृत्व में 14 जनवरी , 2024 से 20 मार्च तक भारत न्याय यात्रा निकाली जायेगी। यह यात्रा मणिपुर से मुंबई तक होगी।
यह बात अलग है कि भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के बाद कांग्रेस की मात्र तीन राज्यों में ही सरकार बची है।
मालूम हो कि भारत न्याय यात्रा के बाद 2024 के  मध्य में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। वहीं तीन राज्यों में सिमटी कांग्रेस क्या I.N.D.I.A गठबंधन के सहारे भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे सकेगी या अपनी बची - खुची सीटें भी खो देगी, जिसकी उम्मीद ज्यादा ही दिखायी पड़ रही है। कारण कि I.N.D.I.A गठबंधन के घटक दलों के नेताओं द्वारा रह - रह कर ऐसे विष वमन किये जाते हैं , जिसका आम जनता पर अच्छा खासा असर पड़ता है।
ओपन एयर थियेटर के जनक थे भिखारी ठाकुर संदर्भ : शागिर्द को मिल चुका है पद्म श्री
भिखारी ठाकुर को भारत में ओपन एयर थियेटर का जनक कहा जा सकता है। इनका जन्म बिहार के गरीब और उपेक्षित हज्जाम परिवार में 18 दिसंबर, 1887 को हुआ था। उस समय ठाकुर परिवार से आने के कारण इनका पढ़ने- लिखने का मौका नहीं मिला।
शुरूआती जीवन में रोजी-रोटी के लिए घर-गांव छोड़कर खड़गपुर चले गये।पर,इस दौरान उन्होंने अपना पुश्तैनी धंधा नहीं छोड़ा। बाद में भिखारी ठाकुर गांव लौट आये और गांव में लोक कलाकारों की एक  नृत्य मंडली बनायी। मंच तो था नहीं, इसलिए पेड़ के नीचे चौकी का मंच बना रामलीला का मंचन करने लगे। इसलिए भिखारी ठाकुर को ओपन एयर थियेटर का जनक माना जा सकता है।
उन्होंने अपने आरंभिक जीवन में स्वस्थ और समता मूलक समाज के निर्माण पर केंद्रित नाटक और गीतों की रचना की,जो आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं, जो उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाता है।
उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कई नाटक और गीत लिखे, जिसने लोगों की मानसिकता बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट की। उन्होंने सामंतवादी संस्कृति और लोगों पर चढ़े जाति व समुदाय के रंग के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से खूब प्रहार किया।
उनके नाटकों में जीवन संघर्ष, सामंती ठसक, गांव की गरीबी, जातिवाद, पलायन की पीड़ा और विरह की वेदना साफ-साफ झलकती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर धिचोर, कलजुग प्रेम,भाई बिरोध, राधेश्याम बहार आदि प्रमुख हैं।
बिहारी ठाकुर जनमानस के कलाकार थे। उनके कार्यों से प्रभावित होकर राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा था।
और अंत में भोजपुरी लोक साहित्य की धरोहर भिखारी ठाकुर को आज तक कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला। उनके परिजनों को राजकीय या राष्ट्रीय स्तर पर कोई सामान नहीं मिलने पर मलाल तो है। हां , ये बात दीगर है कि उनके शागिर्द पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
कोई धंधा गंदा नहीं होता, सोच गंदी होती है संदर्भ : I.N.D.I.A. गठबंधन के सहयोगी डीएमके सांसद ने कहा, टायलेट साफ करते हैं बिहार - यूपी वाले
कोई धंधा गन्दा नहीं होता, सोच गन्दी होती है। I.N.D.I.A  गठबंधन के तीसरे बड़े दल डीएमके के सांसद दया निधि मारन के हालिया बयान से इंडी गठबंधन में भूचाल आ गया है। यह दक्षिण भारत और हिंदी भाषी राज्यों को बांटने वाला बयान है।
दक्षिण भारत में हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया जाता है। डीएमके सांसद का बयान देश के लोगों को जाति, भाषा और धर्म के नाम पर विभाजित करने वाला है। वहीं कुछ दिनों पहले डीएमके के अन्य सांसद डीएवी सैंथिल कुमार ने हिंदी भाषी राज्यों को गो मूत्र वाले राज्य कहा था।
अंग्रेजी बोलने वाले क्या टायलेट साफ नहीं करते। भारत से अंग्रेज तो चले गये, लेकिन उनकी जैसी मानसिकता वाले द‌क्षिण के राजनीतिक दल के नेताओं की सोच डिवाइड एंड रूल वाली होती जा रही है।
गठबंधन के दक्षिण के दलों के नेता कभी सनातन धर्म को कैंसर बताते हैं तो कभी भगवान राम को काल्पनिक बताते हैं। और हालिया बयान ने तो इंडी गठबंधन में तनाव पैदा कर दिया है।
इंडी गठबंधन के सहयोगी दल के नेताओं के बयान कभी सनातन धर्म को लेकर और कभी बिहार और उत्तर भारत के लोगों को लेकर आते रहते हैं और विरोध होने पर माफी मांग लेते हैं। यह उनकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों ने बयान की निंदा की है।
और अंत में दक्षिण के नेताओं के हालिया बयानों से तो भारतीय जनता पार्टी का रास्ता ही दक्षिण में सुगम होता जा रहा है । हाल में हुए चार राज्यों के चुनाव के नतीजे पर सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी का असर दिखायी दिया था , जहां चार में से तीन राज्यों में बीजेपी की जीत हुई थी। आखिर दक्षिण भारत के नेता इस तरह के बयान देकर क्या साबित करना चाहते हैं। वे 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह को आसान बना रहे हैं।
चाय के बहाने खो चुकी मानवता को तलाशने की कोशिश संदर्भ : टी कार्नर बन रहे मिलने और गपशप करने के केंद्र
वर्तमान समय में मेहमान बाजी में सबसे पहले चाय परोसने का रिवाज है । वहीं जुमले बाजी में भी मेहमान को चाय-पानी देने की बात कही जाती है। भाग-दौड़ की जिंदगी में इंसान को सुबह उठते ही चाय की तलब लगती है। वहीं दिन भर भाग -दौड़कर शाम को घर पहुंचने पर भी सबसे पहले चाय पीने की इच्छा होती है।
पानी के बाद चाय पृथ्वी पर दूसरा सबसे अधिक पिया जाने वाला पेय पदार्थ है। इसका सेवन चाय पार्टी या सामाजिक कार्यक्रमों में भी किया जाता है। यह पेय देश का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ है। लगभग सभी घरों में इसका प्रतिदिन सेवन किया जाता है। चाय पूरी दुनिया में उपयोग किया जाने वाला लोकप्रिय पेय है। वहीं दूसरी ओर भारत दुनिया में सबसे ज्यादा चाय पीने वाला देश है।
भारत में चाय का प्रचलन अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ। बताते हैं कि डच व्यापारी चाय चीन से यूरोप ले गये थे। वहीं किंवदंती है कि चाय की उत्पत्ति पांच हजार वर्ष से भी पुरानी है। सदियों से इसके प्रसंस्करण के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों से चाय के अलग-अलग टेस्ट विकसित किये गये।
कहा जाता है कि 1657 में लंदन के एक काफी हाउस में चाय बेची जाती थी।
चाय की उत्पत्ति की बात करें तो यह चीन में उत्पादित होती थी। चाय पर से चीनी एकाधिकार को खत्म करने के लिए अंग्रेजों द्वारा 1836 में छोटी पत्ती वाली चीनी चाय को भारत लाया गया। दार्जिलिंग में इसके बीज का रोपण किया गया। 1856 में दार्जिलिंग में चाय का उत्पादन शुरू हुआ। इसके बाद तो भारतीय चाय पूरी दुनिया में निर्यात की जाने लगी। मालूम हो कि चाय के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है।
चाय की शुरुआत भले ही चीन में हुई हो मगर अब ये हर जगह आसानी से मिल जाती है। हर उम्र के लोग अपने - अपने स्वाद के मुताबिक पीना पसंद करते हैं। यूं तो पीने के लिए दुनिया भर में बहुत सारे पेय पदार्थ उपलब्ध हैं पर चाय की बात ही निराली है। चाय के प्रति जो दीवानगी होती है, उसे चाय के शौकीन ही समझ सकते हैं। 1840 में दोपहर के वक्त चाय पीना अंग्रेजी परंपरा मानी जाती थी। आधुनिक युग में व्यस्त और संघर्षपूर्ण लाइफ स्टाइल से लोग अब उब चुके हैं। पश्चिमी देशों में मिल-बैठकर चाय पीने और पिलाने का दौर अब लौट रहा है।
और अंत में आज सारी दुनिया में होटलों, रेस्तरां और दुकानों में नये- नये फ्लेवर और कलेवर में चाय परोसी जाती है। यह युवा पीढ़ी के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।


ज्ञान का अद्भुत भंडार है संदर्भ : पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर करती है श्रीमद्भागवत गीता
श्रीमद्भागवत गीता एक प्रमुख हिंदू ग्रंथ है। इसमें 18 अध्याय और करीब 700 श्लोक हैं। गीता जयंती मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है। यह तिथि उस दिन की याद दिलाती है, जब कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था और अर्जुन का मोह दूर हुआ था।
महाभारत शुरू होने से पहले ( यानी भगवान कृष्ण के युद्ध रोकने के सारे प्रयास जब असफल हो गये, और युद्ध अवश्य संभावित हो गया था)  दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। तभी अर्जुन को मोह पैदा हो गया कि मैं कैसे अपने परिजनों को मारूं । महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ के  सारथी बने भगवान कृष्ण ने यह देखकर अर्जुन को ज्ञान, कर्म और भक्ति का उपदेश दिया। भगवान कृष्ण ने उस वक्त अर्जुन को जो सलाह, संदेश और उपदेश दिया वही भागवत गीता के रूप में जाना जाता है। श्रीमद् भागवत गीता को भगवान श्री कृष्ण की वाणी भी कहा जाता है।
सनातन धर्म में गीता जयंती का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान कृष्ण ने मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था यह ग्रंथ मनुष्य के उत्थान का प्रमुख स्रोत है। इस तिथि को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।
गीता में आत्मा, परमात्मा, भक्ति , कर्म और जीवन आदि का बृहद रूप से वर्णन किया गया है । गीता से हमें यह ज्ञान मिलता है कि व्यक्ति को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए । हमें कोई भी कर्म फल की चिंता किये बिना ही करना चाहिए।  गीता के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। गीता मनुष्य को जीवन जीने की राह दिखाती है । गीता के अनुसार मनुष्य को कभी भी अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और कार्य पर संदेह नहीं करना चाहिए । हमेशा सत्य और धर्म की राह पर चलना चाहिए।
गीता पढ़ने से सच और झूठ तथा ईश्वर और जीव का ज्ञान हो जाता है। मनुष्य को अच्छे और बुरे की समझ आ जाती है । गीता पढ़ने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है।
और अंत में गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता पलायन से पुरुषार्थ की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है । गीता हमें धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हुए कर्म करने की प्रेरणा देती है। गीता में मनुष्य को अपनी हर समस्या का हल मिलता है।
योगी मॉडल से ही लगेगी लगाम संदर्भ : बेगूसराय में वाहन जांच के दौरान दारोगा व सिपाही को शराब माफियाओं ने कार से उड़ाया
बालू , शराब और जमीन माफियाओं की कारगुजारियां अब हद से ज्यादा बढ़ती जा रही हैं। ऐसा जदयू के राजद के सहयोग से सरकार चलाने के बाद से ज्यादा दिखायी दे रहा है । कहते भी हैं कि सैयां भये कोतवाल , अब डर काहे का।
बिहार में 1990 वाली स्थिति दिखायी दे रही है । अपराधियों में प्रशासन का कोई खौफ नहीं है। अपराधी बेखौफ होकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। शराब तस्करों  और बालू माफियाओं का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह छापामारी करने गयी पुलिस टीम पर हमला करने का दुस्साहस कर बैठते हैं। वहीं सड़क पर वाहन जांच का दौरान माफिया दारोगा को ही कार से कुचलते हुए भाग निकलते हैं।
इसका मतलब यही निकलता है कि इन लोगों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। बिहार में प्रशासनिक अराजकता और अपराध चरम पर हैं । हत्या , लूट, अपहरण , दुष्कर्म आदि की लगातार घट रही घटनाओं से बिहार में 1990 के दशक के जंगल राज की याद ताजा हो रही है। आम जनता इससे भयभीत हो रही है।
वहीं सरकार के मुखिया अपनी कुर्सी बचाने के लिए आंख मूंद कर बैठे हैं। किशनगंज, सारण , जहानाबाद, सहरसा, मुंगेर, पटना ,नवादा आदि जिलों में 20 से ज्यादा ऐसी घटनाएं अब तक घट चुकी हैं , जिसमें अपराधियों और बालू - दारू व भू माफियाओं द्वारा पुलिस बल पर हमले किये गये बल्कि उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया । छह माह पहले बेगूसराय में ही एक अन्य  दारोगा की हत्या शराब माफिया ने कर दी थी।
जिस राज्य में पुलिस ही सुरक्षित नहीं वहां आम जनता का क्या हाल होगा यह तो भगवान ही जानता है।
बिहार में शराबबंदी को 100 फीसदी सफल नहीं मान सकते। जहां चाहिए वहां शराब उपलब्ध है । वहीं बिहार में बड़ी मात्रा में शराब जप्त की जाती है। वहीं विपक्ष का आरोप है कि पुलिस संरक्षण में शराब का अवैध कारोबार किया जा रहा है।
राजस्व का होता है नुकसान : शराबबंदी से सूबे को तकरीबन छह हजार करोड रुपये के राजस्व का नुकसान का दावा किया जाता है । मगर मजे की बात यह है कि इसका एक बड़ा हिस्सा शराब का अवैध कारोबार करने वालों के पास जाने के आरोप भी लगते रहे हैं। दूसरी ओर बेरोजगार युवा शॉर्टकट से पैसा कमाने के लिए इस धंधे की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
शराब बंदी नहीं थी तो लोग दुकानों में जाकर शराब खरीदते थे मगर शराबबंदी के बाद अवैध रूप से शराब मोहल्ले - मोहल्ले में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। होम डिलीवरी तक की जा रही है। छोटे छोटे बच्चे इस धंधे में लिप्त हैं। उन पर कोई शक भी नहीं कर पाता।
और अंत में शराबबंदी सौ फीसदी सफल नहीं हो सकती, यह बात सभी जानते हैं। पूरे भारतवर्ष में सिर्फ चार राज्यों में शराबबंदी लागू है। वहीं 30- 40 प्रतिशत लोग इसके आदी हैं। वे चोरी छिपे इसका सेवन करते हैं। इसके लिए ज्यादा ताकतवर एंटी लीटर सेल बनाना होगा और उससे बिहार पुलिस को अलग रखना होगा। तभी कुछ हद तक इस पर लगाम लग सकती है।
अपने को बदलें, अकेले नहीं रहेंगे संदर्भ : वृद्ध आपसी सामंजस्य स्थापित करें
पटना में स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी की हत्या की घटना सोचने पर विवश करती है कि समाज में वृद्ध दंपति सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें खतरा रिश्तेदारों, केयर टेकर, और घर में काम करने वाले नौकर या नौकरानी से भी बना रहता है। अब सवाल उठता है कि वृद्ध अकेले क्यों रह रहे हैं। जवाब है बच्चे परिवार सहित बाहर रहते हैं।
इंसान भौतिकता की ओर भाग रहा है। हर माता-पिता अपने बच्चों को अन्य बच्चों की तुलना में अधिक सफल और ऊंचाई पर देखना चाहते हैं। औरों की देखा-देखी अपने बच्चे को दूसरे शहर या विदेश भेज कर कैरियर बनाने छोड़ देते हैं। समाज में यह आज स्टेटस सिंबल बन गया है।
अब पौधा जहां लगेगा वहीं बड़ा होकर पल्लवित और पुष्पित होगा। इसलिए माता-पिता अकेले पड़ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर उपभोक्तावादी संस्कृति के तहत बदलते सामाजिक मूल्यों, नयी पीढ़ी की सोच में बदलाव, महंगाई का काबू से बाहर होना और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वृद्ध दंपति के अकेले रहने का कारण युवा पीढ़ी का अपनी जिंदगी में व्यस्त रहना है।
इसके बावजूद युवा पीढ़ी को भी समझना चाहिए कि वृद्ध व्यक्ति समाज की संपत्ति हैं ,बोझ नहीं। इसका लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका है , उन्हें अपने साथ रखें और परिवार के निर्णयों में उन्हें सम्मिलित करें। वहीं बुजुर्गों को भी अपनी परंपरागत हठधर्मिता को छोड़कर नयी पीढ़ी व युवाओं के साथ तालमेल बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए।
और अंत में पूरे विश्व में फैल रही इस महामारी रूपी सामाजिक समस्या को आपसी सामंजस्य के जरिए ही जड़ से खत्म किया जा सकता है। बुजुर्गों का अनुभव और नयी पीढ़ी की जानकारी और स्फूर्ति का मेल समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।