*राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर विशेष: जवाबदेही के अभाव में न्याय से वंचित उपभोक्ता : वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र वार्ष्णेय*
लखनऊ । भारत में प्रत्येक वर्ष 24 दिसम्बर को "राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस" मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि 24 दिसंबर सन् 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक पारित हुआ था। इसके बाद इस अधिनियम में 1991 तथा 1993 में संशोधन किये गए।जबकि वर्ष 2019 में पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986के स्थान पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लाया गया जोकि 20 जुलाई,2020 से प्रभावी हुआ इसके अतिरिक्त 15 मार्च को प्रत्येक वर्ष विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।
यह दिन भारतीय ग्राहक आन्दोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। भारत में यह दिवस पहली बार वर्ष 2000 में मनाया गया।जबकि वर्ष 2019 मे पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986के स्थान पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लाया गया जोकि 20 जुलाई,2020 से प्रभावी हुआ राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस का उद्देश्य उपभोक्ता की उसके अधिकारों एवं जिम्मेदारियों के प्रति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम किसे कहते है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 व्यापार और उद्योग के शोषण से उन लोगों के अधिकारों और हितों को बचाने के लिए बनाया गया था जो किसी न किसी प्रकार से उपभोक्ता है। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो अपने प्रयोग हेतु वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदता है उपभोक्ता है। क्रेता की अनुमति से इन वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोगकर्ता भी उपभोक्ता है।
उपभोक्ता के अधिकार
प्रत्येक व्यक्ति एक उपभोक्ता है, चाहे उसका व्यवसाय, आयु, लिंग, समुदाय तथा धार्मिक विचार धारा कोई भी हो। उपभोक्ता अधिकार और कल्याण आज प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अविभाज्य हिस्सा बन गया है और हमने अपनी दैनिक जीवन में इस सभी का कहीं न कहीं उपयोग किया है। प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को "विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस" मनाया जाता है। यह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी द्वारा की गई एक ऐतिहासिक घोषणा में बताया गया था, जिसमें चार मूलभूत अधिकार बताए गए हैं।
सुरक्षा का अधिकार
सूचना पाने का अधिकार
चुनने का अधिकार
सुने जाने का अधिकार
इस घोषणा से अंतत: यह तथ्य अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य हुआ कि सभी नागरिक, चाहे उनकी आय या सामाजिक स्थिति कोई भी हो उन्हें उपभोक्ता के रूप में मूलभूत अधिकार हैं। 9 अप्रैल 1985 एक अन्य उल्लेखनीय दिवस है जब संयुक्त राष्ट्र की महा सभा द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के लिए मार्गदर्शी सिद्धांतों का एक सैट अपनाया गया और संयुक्त राष्ट के महा सचिव को नीति में बदलाव या कानून द्वारा इन मार्गदर्शी सिद्धांतों को अपनाने के लिए सदस्य देशों से बातचीत करने का अधिकार दिया गया।
उपभोक्ता अधिकार सरंक्षण के कुछ कानून
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवायें खरीदता है वह उपभोक्ता है। क्रेता की अनुमति से ऐसे सामान/सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। अत: हम में से प्रत्येक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता ही है। उपभोक्ता के साथ ही स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन, केंद्र या राज्य सरकार, एक या एक से अधिक उपभोक्ता कार्यवाही कर सकते हैं।
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम-1885,
पोस्ट आफिस अधिनियम 1898,
उपभोक्ता/सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम 1930,
कृषि एवं विपणन निदेशालय भारत सरकार से संबंधित कृषि उत्पाद
ड्रग्स नियंत्रण प्रशासन एमआरटीपी आयोग-उपभोक्ता सिविल कोर्ट से संबंधित ड्रग एण्ड कास्मोटिक अधिनियम-1940,
मोनापालीज एण्ड रेस्ट्रेक्टिव ट्रेड प्रेक्टिसेज अधिनियम-1969,
प्राइज चिट एण्ड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) अधिनियम-1970
उपभोक्ता/सिविल न्यायालय से संबंधित भारतीय मानक संस्थान (प्रमाण पत्र) अधिनियम-1952,
खाद्य पदार्थ मिलावट रोधी अधिनियम-1954,
जीवन बीमा अधिनियम-1956,
ट्रेड एण्ड मर्केन्डाइज माक्र्स अधिनियम-1958,
हायर परचेज अधिनियम-1972,
चिट फण्ड अधिनियम-1982,
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,
रेलवे अधिनियम"-1982
इंफार्मेषन एंड टेक्नोलोजी अधिनियम-2000,
विद्युत तार केबल्स-उपकरण एवं एसेसरीज (गुणवत्ता नियंत्रण) अधिनियम-1993,
भारतीय विद्युत अधिनियम-2003,
ड्रग निरीक्षक-उपभोक्ता-सिविल अदालत से संबंधित द ड्रग एण्ड मैजिक रेमिडीज अधिनियम-1954,
खाद्य एवं आपूर्ति से संबंधित आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955,
द स्टेंडर्डस ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (पैकेज्ड कमोडिटी रूल्स)-1977,
द स्टैंडर्ड ऑफ वेट एण्ड मेजर्स (इंफोर्समेंट अधिनियम-1985,
द प्रिवेंशन आॅफ ब्लैक मार्केटिंग एण्ड मेंटीनेंस आफॅ सप्लाइज इसेंशियल कमोडिटीज एक्ट-1980,
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/केंद्र सरकार से संबंधित जल (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1976,
वायु (संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम-1981,
भारतीय मानक ब्यूरो-सिविल/उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित घरेलू विद्युत उपकरण (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश-1981,
भारतीय मानक ब्यूरो से संबंधित भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम-1986,
उपभोक्ता न्यायालय से संबंधित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,
उपभोक्ता मामलों के वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र वार्ष्णेय ने बताया कि जवाबदेही के अभाव मे जिला उपभोक्ता आयोगों की स्थिति सोचनीय है निरन्तर तारीख़ पे तारीख़,नियुक्तियों मे देरी, समय पर विधिनुसार आदेश ना होने से उपभोक्ता को वास्तविक लाभ मिल पा रहा है वस्तु पर लागत मूल्य अंकित ना होने से उपभोक्ता ठगा जा रहा रहा है सभी स्तर पर समय से उपभोक्ता को न्याय मिले तभी उपभोक्ता को राहत मिलेगी।
Dec 24 2023, 16:04