*महालक्ष्मी आराधना से सर्वांगीण सुख- राघव ऋषि*
खजनी गोरखपुर।सम्पूर्ण भगवत में राधा शब्द का उल्लेख नहीं है क्योंकि वे शुकदेव जी की गुरु है। शुकदेव जी पूर्वजन्म में तोता थे भागवत में '' श्रीशुक उवाच ''लिखा है।
श्री का अर्थ है राधा। श्रीशुक में गुरु,शिष्य दोनों का नाम छिपा है केवल कृष्ण और शुकदेव का नाम के आगे ''श्री'' प्रयुक्त हुआ है जीव को सर्वांगीण सुख की प्राप्ति महालक्ष्मी आराधना से होती है।
ऋषि सेवा समिति,माल्हनपार के तत्वावधान में धोबौली गहरवार गांव में चल रही संगीतमयी भागवत कथा के छठवें दिन व्यास पीठ से राघव ऋषि ने कहा कि यह आराधना भगवान शिव द्वारा प्रणीत है। महालक्ष्मी के कुल आठ स्वरूप हैं। जिसमें एक स्वरूप इस मृत्युलोक के लिए निर्धारित है चार ग्रहों-बुध,बृहस्पति,शुक्र,व शनि का संचालन महालक्ष्मी करती हैं।
इसी आराधना को भगवान श्रीराम व कृष्ण ने किया। कथा प्रसंग बढ़ाते हुए ऋषि ने कहा कि रासलीला कामविजय लीला है। कथा आती है कि वेद की एक लाख ऋचाओं ने ब्रह्मा जी के पास जाकर मुक्त होने के लिए प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल निकालकर उनपर छिड़का तो सभी गोपी रूप में परिणित हो गईं। उन्हीं एक लाख ऋचा रूपी गोपियों ने भगवान से नृत्य सानिध्य प्राप्त किया। साधना से भगवान उनके वश में हैं अत: भगवान बीच से ही अन्तर्ध्यान हो गए।
प्रभु के विरह में गोपियों ने जो गीत गाया वह 'गोपीगीत' के रूप में है। जीव के विरह गीत ही गोपीगीत हैं। धर्मानुसार श्रमपूर्वक नीतिपूर्वक से प्राप्त धन महालक्ष्मी हैं। ऐसा धन हमेशा शुभ कार्यों में खर्च होगा। अलक्ष्मी-पापाचरण,अनीति से प्राप्त धन अलक्ष्मी हैं, और ऐसा धन विलासिता में ही बह जाएगा, और जीव को अशान्ति दे जाएगा।
हिरण्यकश्यपु,रावण,कंस,दुर्योधन, सिकन्दर,नौपोलियन,एडोल्फ हिटलर आदि इसके उदाहरण हैं। रुक्मिणी महालक्ष्मी ही हैं जो कि शिशुपाल को नहीं नारायण का वरण करती हैं। कथा के दौरान रुक्मिणी-विवाह में बड़ी धूमधाम से बारात आई और कन्यदान की परम्परा मुख्य यजमान नूरा देवी- नरेन्द् सिंह,धर्मेंद्र यादव,त्रिपुरारी सिंह,कन्हैया सिंह,सूर्यमणि तिवारी, दशरथ जायसवाल,उपेंद्र तिवारी,
सुरेंद्र जायसवाल, छांगुर गुप्ता, रामजीत सोनकर,घनश्याम सिंह सहित क्षेत्र के अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
Nov 27 2023, 20:57