अलगे साल लॉन्च होगा दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट, आकाश से पृथ्वी पर होगी पैनी नजर

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दुनिया का सबसे दमदार राडार, जिसकी पृथ्वी पर होगी पैनी नजर, धरती की हर हलचल से गहरे सागर की गतिविधियों तक, सब उसकी नजरों में होगा। बता हो रही है नासा इसरो सेंथिटिक एपर्चर राडार यानी निसार की। यह सैटेलाइट अगले साल की शुरुआत में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और यह पूरी दुनिया में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, जंगल की आग, चक्रवाती तूफान, हरिकेन, बारिश, ज्वालामुखी, और टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल पर नजर रखेगा। यह किसी भी आपदा के होने से पहले अलर्ट करेगा और इससे लोगों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

नासा और इसरो का ज्वाइंट प्रोजेक्ट

दुनिया की दो सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसी का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है निसार। नासा और इसरो इस प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे है। ये डबल फ्रीक्वैंसी रडार है। जिसे दो हिस्से में तैयार किया जा रहा है। सेटेलाइट का प्रमुख पे-लोड एल-बैंड जो 24 सेंटीमीटर वेबलैंथ का होगा। उसे नासा तैयार कर रहा है। वहीं 12 सेंटीमीटर वेबलेंथ का एस-बैंड इसरो तैयार कर रहा है। इसरो रडार की इमेंजिंग प्रणाली का भी विकास कर रही है। इसके अलावा माइक्रोवब और ऑप्टिकल सेंसर भी इसरो ही तैयार कर रही है।

दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट

ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 120 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 1 बिलिय़न ड़ॉलर लगा रही है। स्पेस में ऑपरेशनल हो जाने के बाद ये उपग्रह अपने उन्नत राडार से इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए पूरी धरती की हाई क्वालिटी इमेंज लेगा। ये धरती पर होने वाली हर तरह की हलचल का पता लगा सकेगा। आर्कटिक और अंटार्कटिंक एरिया में जो बर्फ की चादरें पिघल रही है, अर्थ की सिसनिक प्लेटों में हो रही गतिविधि का पता चल सकेगा, जिससे भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका जा सकेगा। ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्र और सागर की गहराई की हर जानकारी देगा। इसकी मदद से आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम किए जा सकेंगे।

अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

इस खास खोज के लिए, आकाश से धरती की निगरानी के लिए, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुना है। निसार के जरिए भारत और अमेरिका दुनिया को खास देने वाले हैं। शायद वो चीज जो मानवता के विकास में मददगार साबित हो सकती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

भारत की तरक्की देश यूएस भी हुआ हैरान

अमेरिका खुद चलकर आया भारत से मदद मांगने। शायद इधर कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। जिसकी आशा अमेरिका ने कभी नहीं की होगी भारत ने वो कर दिखाया।

हालांकि, बात बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। लेकिन भारत ने दुनियाभर का भरोसा जीता। बात 1992 की है जब अमेरिका में जॉज बुश सीनियर की सरकार थी। तब रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेकनॉलोजी देने वाला था। लेकिन अमेरिका ने इसपर रोक लग दी। क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल रॉकेट में होता है। उस वक्त ये तकनीक सिर्फ अमेरिका और रशिया के पास थी। अमेरिका नहीं चाहता था इस दौड़ में कोई तीसरा खड़ा हो। भारत मिसाइल बनाने में कामयाब हो। लेकिन भारत ने अपने भरोसे के बल पर और 20 साल की मेहनत के बाद वो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफल हुआ। ये वही क्रायोजेनिक इंजन है जो जीएसएलवी में लगता है और इसी क्रायोजेनिक इंजन से निसार को भी लॉन्च किया जाना है।

यूं बढ़ी नासा की इसरो में दिलचस्पी

नासा दुनिया की सबसे विकसित स्पेस एजेंसी है। बावजूद नासा ने इसरो में दिलचस्पी दिखायी। इसकी शुरूआत 2012 में हुई, जब इसरो ने भारत का पहला स्वदेशी राडार इमेंजिंग सेटेलाइट लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात हो या दिन मौसम कैसा भी हो धरती के सतह की तस्वीरें ली जा सकती है। इसके बाद ही नासा ने भारत के साथ हाथ मिलाकर ये प्रोजेक्ट शुरू करने की इच्छा जतायी। इस मामले में करीब 2 साल की तक बातचीत के बाद निसार सेटेलाइट को लेकर सहमति बनी। अब दोनों देश मिलकर विज्ञान और प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल मानव हित में करेंगे।

धरती के बेहद करीब से गुजरेगा ये विशाल एस्टेरॉयड, टकराया तो पूरा एशिया हो जाएगा साफ


डेस्क: आसमान से आ रहे एक अवांछित अतिथि ने धरती की सांसें अटका दी हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं उल्कापिंड यानी एस्टेरॉयड की, जो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है।  'God of Chaos' नाम का एस्टेरॉयड धरती के बेहद करीब से फ्लाई करेगा। इसकी दूरी काफी कम होगी। इसका असर धरती और उस एस्टेरॉयड दोनों पर पड़ेगा। यह वही एपोफिस एस्टेरॉयड है, जिसे लेकर ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने चेतावनी दी थी कि ये खतरनाक है।

एस्टेरॉयड को लेकर नए अध्ययन से पता चलता है कि यह पृथ्वी से टकराने की तरफ बढ़ रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। तबाही के देवता के नाम से मशहूर इस क्षुद्रग्रह के 2029 में पृथ्वी के करीब आने का अनुमान है। साल 2029 में यह एस्टेरॉयड धरती से टकराएगा नहीं लेकिन पास से गुजरेगा। असल में धरती की ग्रैविटी की वजह से एपोफिस की शक्ल छिल जाएगी, उसे काफी चोट पहुंचेगी। भूकंप के झटके महसूस होंगे। उसकी सतह पर भूस्खलन होगा।

एपोफिस नाम मिस्र के देवता Apep के नाम पर रखा गया है। ये देवता वहां पर अराजकता का स्वामी माना जाता है। एस्टेरॉयड एपोफिस 1230 फीट चौड़ा है। धरती से इसकी टक्कर साल 2068 में हो सकती है। लेकिन उससे पहले यह दो बार धरती के पास से निकलेगा। एक तो 13 अप्रैल 2029 में। तब ये धरती से मात्र 32 हजार km दूर से निकलेगा और इसकी दूसरी यात्रा साल 2036 में होगी।

इसरो का अंदाजा है कि 1230 फीट बड़ा एस्टेरॉयड अगर धरती से टकराता है तो वह पूरे एशिया को खत्म कर सकता है। एस्टेरॉयड की टक्कर वाली जगह से चारों तरफ करीब 20 km के इलाके में सामूहिक संहार हो जाएगा। किसी तरह के जीव-जंतुओं की आबादी नहीं बचेगी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके पृथ्वी से टकराने की संभावना दस लाख में एक से भी कम है, लेकिन प्रभाव का जोखिम बना हुआ है। वैज्ञानिक इसके टकराव की संभावना बहुत कम बता रहे हैं, लेकिन यह हाल के इतिहास में पृथ्वी के इतने करीब से गुजरने वाले सबसे बड़े एस्टेरॉयड में से एक बना हुआ है।

बता दें कि इस तरह के एस्टेरॉयड के आकार बेहद खतरनाक होते हैं। एपोफिस जैसे एस्टेरॉयड अगर पृथ्वी से टकराते हैं तो आग, सुनामी, विस्फोट और भी कई प्रकार की तबाही लाने में सक्षम होते हैं।
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आखिर क्यों 23 अगस्त को ही भारत मना रहा है अंतरिक्ष दिवस? डिटेल में जानिए इस दिन का महत्व

भारत 23 अगस्त 2024 को अपना पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाने जा रहा है। यह दिन अंतरिक्ष एवं वैमानिकी के क्षेत्र में मिली एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के सम्मान के रूप में मनाया जाएगा। यह आयोजन देश के अंतरिक्ष अन्वेषण इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा तथा युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में प्रेरित करने का प्रयास करेगा।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग

23 अगस्त 2023 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रमा पर विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के साथ एक बड़ी सफलता हासिल की। इस मिशन ने भारत को चांद पर उतरने वाला चौथा देश बना दिया और दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास उतरने वाला पहला देश भी बना।

विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर

चंद्रयान-3 मिशन को श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। विक्रम लैंडर तथा प्रज्ञान रोवर ने चंद्र सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की, जो भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

चंद्रयान-3 ने भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित किया

चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी ने न सिर्फ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाया, बल्कि अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व को भी उजागर किया।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की एक और ऊंची छलांग, इसरो ने आपदा का अलर्ट देने वाली सैटलाइट की लॉन्च*
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भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और ऊंची छलांग लगाई है। इसरो ने आज सुबह श्रीहरिकोटा से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी-डी3) की तीसरी और अंतिम विकासात्मक उड़ान को सफलता से लॉन्च किया। इस सफल लॉन्च के साथ ही इसरो ने दुनिया के छोटे उपग्रहों को स्पेस में भेजने के बाजार में कदम रख दिया है। सरो ने आपदा का अलर्ट देने वाली यह सैटलाइट लॉन्च की है।इस सैटलाइट को आग और ज्वालामुखी तक की जानकारी जुटाने के लिए खास तरीके से तैयार किया गया है। श्रीहरिकोटा से शुक्रवार सुबह 9.17 बजे एसएसएलवी-डी3-ईओएस 08 मिशन को लॉन्च किया गया। ये एसएसएलवी की तीसरी और आखिरी फ्लाइट है। एसएसएलवी-डी3-ईओएस 08 रॉकेट अपने साथ एक सैटेलाइट लेकर गया जो धरती की निगरानी के लिए बना है।इसरो के मुताबिक, मिशन का मेन मकसद एक माइक्रोसैटेलाइट का डिजाइन और विकास करना था. साथ ही माइक्रोसैटेलाइट बस के साथ कम्पैटिबल पेलोड उपकरणों को बनाना और भविष्य के ऑपरेशनल सैटेलाइट्स के लिए नई तकनीकों को शामिल करना भी मिशन के उद्देश्यों में से है। अर्थ ऑब्जरवेशन सैटलाइट (ईओएस-08) एक ऐसी सैटलाइट है जो पृथ्वी की निगरानी करेगा और साथ ही किसी भी तरह की आपदा की चेतवानी पहले से ही देगा, जिससे किसी भी आपदा का सामना करने में मदद मिलेगी। इसके तहत भूमि की सतह, जीवमंडल, ठोस पृथ्वी, वायुमंडल और महासागरों का निगाह रखी जाएगी। इससे दुनिया में कहीं भी बाढ़, ज्वालामुखी, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पता लगाने में मदद मिलेगी। जानकारी के मुताबिक इस सैटलाइट का वजन लगभग 175.5 किलोग्राम है। इसमें तीन पेलोड हैं। एक इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (ईओआईआर), दूसरा ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (जीएनएसएस-आर) और तीसरा एसआईसी यूवी डोसिमीटर है।
पुण्यतिथि: "मिसाइल मैन" एवम् देश के प्रथम वैज्ञानिक राष्ट्रपति ए पी जे कलाम साहब की आज पुण्य तिथि,जानते है उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें

मिसाइल मैन के नाम से मशहूर रहे देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का आज के ही दिन निधन हुआ था. देश सेवा के मिशन में ही लगे रहे कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलॉन्ग में उस वक्त हुआ था, जब वो आईआईएम में लेक्चर दे रहे थे. शिलांग में जब छात्र-छात्राओं के बीच मंच से भाषण देने पहुंचे तो किसी ने ये अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि ये संबोधन उनका अंतिम होगा.

संबोधन के दौरान उन्होंने न सिर्फ मानवता को लेकर चिंता जाहिर की थी बल्कि धरती पर फैले प्रदूषण को लेकर भी चिंता जताई थी. पूर्व राष्ट्रपति कलाम एक परमाणु वैज्ञानिक, शानदार लेखक, कवि और शिक्षाविद थे. 27 जुलाई 2015 को 83 साल की उम्र में निधन होने तक देश की सेवा की थी.

पुण्यतिथि पर कलाम जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

 – पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर में हुआ था. वो मछुआरों के परिवार में जन्मे थे.

– साल 1992 से 1999 तक एपीजे अब्दुल कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे हैं.

– एपीजे अब्दुल कलाम के “हिंदी गुरु” मुलायम सिंह यादव थे. उन्हें जो कुछ भी थोड़ी बहुत हिंदी आती थी वो मुलायम सिंह यादव ने ही सिखाई थी. इस बात को खुद उन्होंने ने सैफई में एक रैली के दौरान स्वीकार भी किया था.

– भारत अमेरिका न्यूक्लियर डील को लेकर के जो समाजवादी पार्टी का हृदय परिवर्तन हुआ, उसके पीछे भी एपीजे अब्दुल कलाम और मुलायम की मित्रता थी. एपीजे अब्दुल कलाम ने मुलायम सिंह को मनाया था कि ये या डील भारत के हित में है.

– एपीजे अब्दुल कलाम अपने पूरी प्रोफेशनल जिंदगी में केवल 2 छुट्टियां ली. एक अपने पिता की मौत के समय और दूसरी अपनी मां की मौत के समय.

– एपीजे अब्दुल कलाम धर्म से मुस्लिम थे, लेकिन दिल से वो किसी भी धर्म को नहीं मानते थे. वो कुरान और भगवत गीता दोनों ही पढ़ा करते थे.

– 27 जुलाई 2015 को आईआईएम शिलांग में एक कार्यक्रम में अचानक कार्डियेक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई थी. उनके एक सहयोगी ने बताया कि उनके आखिरी शब्द थे ‘फनी गाएज, आर यू डूइंग वैल?’

– एपीजे अब्दुल कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जो राष्ट्रपति पद मिलने से पहले ही भारत रत्न से सम्मानित हो चुके थे. एपीजे अब्दुल कलाम को साल 1997 में भारत रत्न मिला. साल 2002 में वो राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए. इससे पहले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन राष्ट्रपति पद पर आने से पहले भारत रत्न से सम्मानित हो चुके थे.

– वो भारत के इकलौते राष्ट्रपति थे, जो कुंवारे थे और साथ ही शाकाहारी थे।

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जिन्हें "मिसाइल मैन" के रूप में भी जाना जाता है, देश के 11वें राष्ट्रपति थे और उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ बहुत महान हैं। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:

मिसाइल प्रौद्योगिकी में योगदान:

 कलाम ने भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में प्रमुख योगदान दिया।

पोखरण-II परमाणु परीक्षण:

1998 में हुए पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने भारत को एक पूर्ण परमाणु शक्ति बनाने में मदद की।

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन 

(ISRO): कलाम ने ISRO के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम किया, जिसमें भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) का विकास शामिल है।

राष्ट्रपति के रूप में सेवा:

 2002 से 2007 तक उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के रूप में सेवा की, और वे अपने सरलता, विनम्रता और बच्चों के प्रति प्रेम के लिए बहुत लोकप्रिय हुए।

लेखन और प्रेरणा:

 उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें "विंग्स ऑफ फायर", "इंडिया 2020" और "इग्नाइटेड माइंड्स" शामिल हैं। उनके लेखन ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया।

डॉ. कलाम का जीवन और योगदान

 आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके महान कार्यों और विचारों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

बड़ी खबर : गया में एसडीएम को मिली जान से मारने की धमकी, जेल में बंद कुख्यात ने कॉल कर कहा-फोन नहीं उठाते हैं जान मार देंगे

गया : जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है। जहां एसडीएम को जान मारने की धमकी मिली है। मिली जानकारी के अनुसार दोहरे हत्याकांड मामले में जेल में बंद कुख्यात ने मोबाइल पर कॉल कर एसडीएम को जान से मारने की धमकी दी है। एसडीएम को जान मारने की धमकी का मामला सामने आता ही हङकंप मच गया। फिलहाल इसकी प्राथमिकी गया के कोंच थाने में दर्ज कराई गई है। पुलिस कार्रवाई करने में जुट गई है।

जेल में बंद कुख्यात ने एसडीएम को जान करने की दी धमकी 

गया सेंट्रल जेल में बंद कुख्यात ने एसडीएम को जान से मारने की धमकी दी है। मोबाइल पर कॉल कर इस तरह की धान की दी गई है। इस तरह की धमकी मिलने के बाद एसडीएम सकते में आ गए। मामले की प्राथमिकी कोच थाने में दर्ज कराई गई है। कोच थाने की पुलिस कार्रवाई कर रही है।

ISRO जासूसी मामले में साजिश के तहत फंसाए गए थे अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन, अब जिम्मेदार अफसरों पर सीबीआई फाइल करेगी चार्जशीट

 केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दो पूर्व DGP, केरल के सिबी मैथ्यूज और गुजरात के आरबी श्रीकुमार के साथ-साथ तीन अन्य सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है। यह कार्रवाई 1994 के ISRO जासूसी मामले में अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने में उनकी कथित संलिप्तता से संबंधित है।

बता दें कि, यह विवाद अक्टूबर 1994 में शुरू हुआ था, जब केरल पुलिस ने मालदीव की नागरिक रशीदा को तिरुवनंतपुरम में गिरफ़्तार किया और उस पर पाकिस्तान को ISRO रॉकेट इंजन के गोपनीय चित्र बेचने की कोशिश करने का आरोप लगाया। जांच जल्द ही फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप ISRO के क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के तत्कालीन निदेशक नंबी नारायणन, ISRO के उप निदेशक डी शशिकुमारन और रशीदा की मालदीव की दोस्त फ़ौसिया हसन को गिरफ़्तार कर लिया गया। नंबी नारायणन को हिरासत में केरल पुलिस और IB अधिकारियों द्वारा पूछताछ के दौरान उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। यह यातना 50 दिनों तक चली, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और करियर को काफी नुकसान पहुंचा। हालांकि, बाद में CBI जांच हुई और नंबी नारायणन पर लगे इन तमाम आरोपों को निराधार पाया गया।

सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने नंबी नारायणन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई को "मनोवैज्ञानिक उपचार" करार दिया, जिसमें कहा गया कि उनकी "स्वतंत्रता और गरिमा", जो उनके मानवाधिकारों के लिए बुनियादी है, उन्हें हिरासत में लिए जाने के कारण खतरे में डाल दिया गया और अतीत के सभी गौरव के बावजूद, अंततः उन्हें "निंदनीय घृणा" का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 15 अप्रैल, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि ISRO वैज्ञानिक नंबी नारायणन से जुड़े 1994 के जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद 2021 में मामला दर्ज करने के बाद, CBI ने तत्कालीन पुलिस उप महानिरीक्षक मैथ्यूज, जिन्होंने मामले की जांच करने वाले विशेष जांच दल (SIT) का नेतृत्व किया था, श्रीकुमार, जो खुफिया ब्यूरो में उप निदेशक थे, पीएस जयप्रकाश, जो उस समय SIB-केरल में तैनात थे, तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक केके जोशुआ और निरीक्षक एस विजयन के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है। अधिकारियों ने बताया कि CBI ने उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 120बी (आपराधिक साजिश), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 330 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 167 (झूठे दस्तावेज तैयार करना), 193 (मनगढ़ंत साक्ष्य तैयार करना), 354 (महिलाओं पर आपराधिक हमला) के तहत आरोप लगाए हैं।

बता दें कि, 1994 में जब डॉ नंबी नारायणन एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन पर काम कर रहे थे और देश को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए मेहनत कर रहे थे, उस समय उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया जब उन्हें एक मनगढ़ंत जासूसी मामले में फंसा दिया गया। उन पर फर्जी आरोप लगाया गया था कि, उन्होंने गोपनीय भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विदेशी एजेंसियों को लीक कर दिया था, ये सब अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए किया गया था। घटनाओं की एक श्रृंखला के कारण इस वैज्ञानिक की गिरफ्तारी हुई और बाद में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उन्हें कई तरह से यातनाएं दी गई, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया, जिसने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया।

सत्य और न्याय की जीत होने से पहले डॉ नंबी नारायणन का मामला दो दशकों से अधिक समय तक चला। उनकी कानूनी टीम, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के अथक प्रयासों के कारण अंततः 2018 में, यानि 24 साल प्रताड़ना झेलने के बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। न्यायालय ने न केवल उन्हें निर्दोष घोषित किया, बल्कि उनकी गलत गिरफ्तारी में राज्य सरकार की भूमिका की भी आलोचना की। इस ऐतिहासिक फैसले ने न केवल डॉ. नारायणन को सही साबित किया, बल्कि प्रणालीगत विफलताओं और निहित हितों के बावजूद भी न्याय, निष्पक्षता और अखंडता के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया।

बता दें कि, डॉ नारायणन के खिलाफ साजिश के समय, भारत में केंद्रीय स्तर और केरल राज्य दोनों में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार थी, लेकिन सरकार भी अपने देश के वैज्ञानिक के साथ खड़ी नहीं दिखी थी। डॉ नंबी नारायणन की कहानी उल्लेखनीय संघर्ष और देशभक्ति की कहानी है, जहां एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक ने अकल्पनीय प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया और विजयी हुआ। सत्य, विज्ञान और न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता सभी के लिए प्रेरणा का काम करती है। नंबी नारायणन के मामले ने न्याय में गड़बड़ी को रोकने के लिए कानूनी सुधारों और तंत्र की तत्काल आवश्यकता के बारे में भी चर्चा को प्रेरित किया है। आखिर कैसे, देश को चाँद पर पहुंचाने के लिए अथक मेहनत कर रहे एक वैज्ञानिक को एक फर्जी मामले में खुद को बेकसूर साबित करने में 24 साल लग गए ? तब तक वो न जाने देश के लिए कितना काम कर चुके होते ?

एक राष्ट्र के रूप में, भारत को इस दर्दनाक अध्याय से सीखना जारी रखना चाहिए और एक ऐसे समाज के निर्माण की दिशा में काम करना चाहिए, जहां ज्ञान और सत्य की खोज का जश्न मनाया जाए और उसकी रक्षा की जाए। डॉ। नारायणन की दोषमुक्ति न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत है, बल्कि उन सभी लोगों की सामूहिक जीत भी है, जो न्याय और अखंडता की वकालत करते हुए उनके पीछे खड़े थे।

एनटीए परीक्षाओं की निगरानी के लिए इसरो के पूर्व अध्यक्ष की अध्यक्षता में बनी समिति, जानें कौन हैं डॉ के राधाकृष्णन?

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नीट पेपर लीक और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है। इस बीच केन्द्र सरकार ने परीक्षा सुधारों पर सुझाव देने और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के कामकाज की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का उच्च स्तरीय पैनल आज यानी सोमवार को बैठक करेगा। समिति को दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। जिन सुधारों की सिफारिश की गई है उन्हें अगले परीक्षा चक्र तक लागू किया जाएगा।

शिक्षा मंत्रालय ने शनिवार को राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के माध्यम से परीक्षाओं का पारदर्शी, सुचारू और निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करने के लिए पूर्व इसरो अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। इस समिति में डॉ. राधाकृष्णन सहित सात सदस्य शामिल हैं। समिति के कार्यक्षेत्र में परीक्षा प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करना, डेटा सुरक्षा प्रोटोकॉल को बढ़ाना तथा एनटीए की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार करना शामिल है।

ऐसे का करेगी समिति

एनटीए की संरचना एवं कार्यप्रणाली के लिए उच्चस्तरीय समिति को सबसे पहले प्रत्येक स्तर पर पदाधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना होगा। इसके बाद एनटीए की वर्तमान शिकायत निवारण प्रणाली का आकलन कर और सुधार के क्षेत्रों की पहचान कर इसकी कार्यकुशलता बढ़ाने की भी सिफारिशें देनी होंगी। समिति किसी भी विषय विशेषज्ञ की मदद ले सकती है।

समिति में शामिल हैं ये लोगः-

1. डॉ. के. राधाकृष्णन (पूर्व अध्यक्ष, इसरो)

2. डॉ. रणदीप गुलेरिया (पूर्व एम्स निदेशक)

3. प्रो. बी.जे. राव (कुलपति, हैदराबाद विश्वविद्यालय)

4. प्रो. राममूर्ति के. (आईआईटी मद्रास)

5. पंकज बंसल (सह-संस्थापक, पीपलस्ट्रॉन्ग, और बोर्ड सदस्य, कर्मयोगी भारत)

6. आदित्य मित्तल (डीन, छात्र मामले, आईआईटी दिल्ली)

7. गोविंद जायसवाल (संयुक्त सचिव, शिक्षा मंत्रालय)

कौन हैं डॉ. राधाकृष्णन ?

डॉ. राधाकृष्णन अकादमिक सुधारों के लिए मौजूदा सरकार के पसंदीदा शख्स रहे हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित कई समितियों का नेतृत्व किया है। डॉ. राधाकृष्णन एक मशहूर वैज्ञानिक हैं। जो भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1971 में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से डॉ. राधाकृष्णन ने अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) प्रोजेक्ट में अहम जिम्मेदारी निभाई। डॉ. राधाकृष्णन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में बतौर डायरेक्टर भी रह चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में इसरो ने मंगलयान मिशन को पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचाया था। डॉ. राधाकृष्णन ने डॉ. जी माधवन नायर के रिटायरमेंट के बाद इसरो का अध्यक्ष पद संभाला। जहां उनकी पहली प्राथमिकता जीएसएलवी के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को तैयार करना था।

2009 से 2014 तक डॉ. राधाकृष्णन इसरो के अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में भारत ने चंद्रयान-1 मिशन, मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) और जीसैट श्रृंखला के उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विभिन्न क्षेत्रों में अहम योगदान दिया, जिसमें सैटेलाइट संचार, रिमोट सेंसिंग और अंतरिक्ष विज्ञान शामिल हैं। अपने कार्यों के लिए डॉ. राधाकृष्णन को साल 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके नेतृत्व और वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

इससे पहेल शुक्रवार को केंद्र सरकार ने प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी और अनियमितताओं पर लगाम लगाने के उद्देश्य से एक सख्त कानून लागू किया। यह नया कानून परीक्षाओं की ईमानदारी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है, जो शैक्षणिक और व्यावसायिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें धोखाधड़ी और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों को रोकने के लिए कठोर दंड शामिल हैं। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले अपराधियों को अधिकतम 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। इसके अलावा, कानून में भारी जुर्माना भी लगाया गया है, जिसकी अधिकतम सजा 1 करोड़ रुपये तक है।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 को मंजूरी दिए जाने के लगभग चार महीने बाद, कार्मिक मंत्रालय ने शुक्रवार रात एक अधिसूचना जारी की, जिसमें घोषणा की गई कि कानून के प्रावधान 21 जून से लागू होंगे।

इसरो जल्द भेजेगा अंतरिक्ष में सेटेलाइट, इससे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी होंगी मज़बूत


दिल्ली डेस्क 

नई दिल्ली ISRO जल्द ही ऐसा सैटेलाइट भेजने वाला है, जिससे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी और मजबूत हो जाएगी। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की ये दूसरी डिमांड-ड्रिवेन सैटेलाइट मिशन है। इस सैटेलाइट का नाम है जीसैट-एन2..यह Ka-Band का कम्यूनिकेशन सैटेलाइट है। 

इसके जरिए देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ज्यादा ताकतवर होगा। साथ ही भारतीय प्रायद्वीप और उसके थोड़ा आसपास तक विमानों की कनेक्टिविटी बेहतर होगी।

यानी उड़ान के समय पायलट ज्यादा बेहतर संचार स्थापित कर पाएंगे। NSIL इसरो का कॉमर्शियल विंग है, जो उसके लिए प्राइवेट और सरकारी सैटेलाइट लॉन्च डील करता है ।

अलगे साल लॉन्च होगा दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट, आकाश से पृथ्वी पर होगी पैनी नजर

#isrowilllaunchtheworldsmostpowerfulprotectorsatellitenisar

दुनिया का सबसे दमदार राडार, जिसकी पृथ्वी पर होगी पैनी नजर, धरती की हर हलचल से गहरे सागर की गतिविधियों तक, सब उसकी नजरों में होगा। बता हो रही है नासा इसरो सेंथिटिक एपर्चर राडार यानी निसार की। यह सैटेलाइट अगले साल की शुरुआत में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और यह पूरी दुनिया में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, जंगल की आग, चक्रवाती तूफान, हरिकेन, बारिश, ज्वालामुखी, और टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल पर नजर रखेगा। यह किसी भी आपदा के होने से पहले अलर्ट करेगा और इससे लोगों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

नासा और इसरो का ज्वाइंट प्रोजेक्ट

दुनिया की दो सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसी का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है निसार। नासा और इसरो इस प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे है। ये डबल फ्रीक्वैंसी रडार है। जिसे दो हिस्से में तैयार किया जा रहा है। सेटेलाइट का प्रमुख पे-लोड एल-बैंड जो 24 सेंटीमीटर वेबलैंथ का होगा। उसे नासा तैयार कर रहा है। वहीं 12 सेंटीमीटर वेबलेंथ का एस-बैंड इसरो तैयार कर रहा है। इसरो रडार की इमेंजिंग प्रणाली का भी विकास कर रही है। इसके अलावा माइक्रोवब और ऑप्टिकल सेंसर भी इसरो ही तैयार कर रही है।

दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट

ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 120 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 1 बिलिय़न ड़ॉलर लगा रही है। स्पेस में ऑपरेशनल हो जाने के बाद ये उपग्रह अपने उन्नत राडार से इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए पूरी धरती की हाई क्वालिटी इमेंज लेगा। ये धरती पर होने वाली हर तरह की हलचल का पता लगा सकेगा। आर्कटिक और अंटार्कटिंक एरिया में जो बर्फ की चादरें पिघल रही है, अर्थ की सिसनिक प्लेटों में हो रही गतिविधि का पता चल सकेगा, जिससे भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका जा सकेगा। ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्र और सागर की गहराई की हर जानकारी देगा। इसकी मदद से आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम किए जा सकेंगे।

अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

इस खास खोज के लिए, आकाश से धरती की निगरानी के लिए, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुना है। निसार के जरिए भारत और अमेरिका दुनिया को खास देने वाले हैं। शायद वो चीज जो मानवता के विकास में मददगार साबित हो सकती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

भारत की तरक्की देश यूएस भी हुआ हैरान

अमेरिका खुद चलकर आया भारत से मदद मांगने। शायद इधर कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। जिसकी आशा अमेरिका ने कभी नहीं की होगी भारत ने वो कर दिखाया।

हालांकि, बात बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। लेकिन भारत ने दुनियाभर का भरोसा जीता। बात 1992 की है जब अमेरिका में जॉज बुश सीनियर की सरकार थी। तब रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेकनॉलोजी देने वाला था। लेकिन अमेरिका ने इसपर रोक लग दी। क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल रॉकेट में होता है। उस वक्त ये तकनीक सिर्फ अमेरिका और रशिया के पास थी। अमेरिका नहीं चाहता था इस दौड़ में कोई तीसरा खड़ा हो। भारत मिसाइल बनाने में कामयाब हो। लेकिन भारत ने अपने भरोसे के बल पर और 20 साल की मेहनत के बाद वो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफल हुआ। ये वही क्रायोजेनिक इंजन है जो जीएसएलवी में लगता है और इसी क्रायोजेनिक इंजन से निसार को भी लॉन्च किया जाना है।

यूं बढ़ी नासा की इसरो में दिलचस्पी

नासा दुनिया की सबसे विकसित स्पेस एजेंसी है। बावजूद नासा ने इसरो में दिलचस्पी दिखायी। इसकी शुरूआत 2012 में हुई, जब इसरो ने भारत का पहला स्वदेशी राडार इमेंजिंग सेटेलाइट लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात हो या दिन मौसम कैसा भी हो धरती के सतह की तस्वीरें ली जा सकती है। इसके बाद ही नासा ने भारत के साथ हाथ मिलाकर ये प्रोजेक्ट शुरू करने की इच्छा जतायी। इस मामले में करीब 2 साल की तक बातचीत के बाद निसार सेटेलाइट को लेकर सहमति बनी। अब दोनों देश मिलकर विज्ञान और प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल मानव हित में करेंगे।

धरती के बेहद करीब से गुजरेगा ये विशाल एस्टेरॉयड, टकराया तो पूरा एशिया हो जाएगा साफ


डेस्क: आसमान से आ रहे एक अवांछित अतिथि ने धरती की सांसें अटका दी हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं उल्कापिंड यानी एस्टेरॉयड की, जो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है।  'God of Chaos' नाम का एस्टेरॉयड धरती के बेहद करीब से फ्लाई करेगा। इसकी दूरी काफी कम होगी। इसका असर धरती और उस एस्टेरॉयड दोनों पर पड़ेगा। यह वही एपोफिस एस्टेरॉयड है, जिसे लेकर ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने चेतावनी दी थी कि ये खतरनाक है।

एस्टेरॉयड को लेकर नए अध्ययन से पता चलता है कि यह पृथ्वी से टकराने की तरफ बढ़ रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। तबाही के देवता के नाम से मशहूर इस क्षुद्रग्रह के 2029 में पृथ्वी के करीब आने का अनुमान है। साल 2029 में यह एस्टेरॉयड धरती से टकराएगा नहीं लेकिन पास से गुजरेगा। असल में धरती की ग्रैविटी की वजह से एपोफिस की शक्ल छिल जाएगी, उसे काफी चोट पहुंचेगी। भूकंप के झटके महसूस होंगे। उसकी सतह पर भूस्खलन होगा।

एपोफिस नाम मिस्र के देवता Apep के नाम पर रखा गया है। ये देवता वहां पर अराजकता का स्वामी माना जाता है। एस्टेरॉयड एपोफिस 1230 फीट चौड़ा है। धरती से इसकी टक्कर साल 2068 में हो सकती है। लेकिन उससे पहले यह दो बार धरती के पास से निकलेगा। एक तो 13 अप्रैल 2029 में। तब ये धरती से मात्र 32 हजार km दूर से निकलेगा और इसकी दूसरी यात्रा साल 2036 में होगी।

इसरो का अंदाजा है कि 1230 फीट बड़ा एस्टेरॉयड अगर धरती से टकराता है तो वह पूरे एशिया को खत्म कर सकता है। एस्टेरॉयड की टक्कर वाली जगह से चारों तरफ करीब 20 km के इलाके में सामूहिक संहार हो जाएगा। किसी तरह के जीव-जंतुओं की आबादी नहीं बचेगी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके पृथ्वी से टकराने की संभावना दस लाख में एक से भी कम है, लेकिन प्रभाव का जोखिम बना हुआ है। वैज्ञानिक इसके टकराव की संभावना बहुत कम बता रहे हैं, लेकिन यह हाल के इतिहास में पृथ्वी के इतने करीब से गुजरने वाले सबसे बड़े एस्टेरॉयड में से एक बना हुआ है।

बता दें कि इस तरह के एस्टेरॉयड के आकार बेहद खतरनाक होते हैं। एपोफिस जैसे एस्टेरॉयड अगर पृथ्वी से टकराते हैं तो आग, सुनामी, विस्फोट और भी कई प्रकार की तबाही लाने में सक्षम होते हैं।
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आखिर क्यों 23 अगस्त को ही भारत मना रहा है अंतरिक्ष दिवस? डिटेल में जानिए इस दिन का महत्व

भारत 23 अगस्त 2024 को अपना पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाने जा रहा है। यह दिन अंतरिक्ष एवं वैमानिकी के क्षेत्र में मिली एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के सम्मान के रूप में मनाया जाएगा। यह आयोजन देश के अंतरिक्ष अन्वेषण इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा तथा युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में प्रेरित करने का प्रयास करेगा।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग

23 अगस्त 2023 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रमा पर विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के साथ एक बड़ी सफलता हासिल की। इस मिशन ने भारत को चांद पर उतरने वाला चौथा देश बना दिया और दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास उतरने वाला पहला देश भी बना।

विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर

चंद्रयान-3 मिशन को श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। विक्रम लैंडर तथा प्रज्ञान रोवर ने चंद्र सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की, जो भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

चंद्रयान-3 ने भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित किया

चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी ने न सिर्फ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाया, बल्कि अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व को भी उजागर किया।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की एक और ऊंची छलांग, इसरो ने आपदा का अलर्ट देने वाली सैटलाइट की लॉन्च*
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भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और ऊंची छलांग लगाई है। इसरो ने आज सुबह श्रीहरिकोटा से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी-डी3) की तीसरी और अंतिम विकासात्मक उड़ान को सफलता से लॉन्च किया। इस सफल लॉन्च के साथ ही इसरो ने दुनिया के छोटे उपग्रहों को स्पेस में भेजने के बाजार में कदम रख दिया है। सरो ने आपदा का अलर्ट देने वाली यह सैटलाइट लॉन्च की है।इस सैटलाइट को आग और ज्वालामुखी तक की जानकारी जुटाने के लिए खास तरीके से तैयार किया गया है। श्रीहरिकोटा से शुक्रवार सुबह 9.17 बजे एसएसएलवी-डी3-ईओएस 08 मिशन को लॉन्च किया गया। ये एसएसएलवी की तीसरी और आखिरी फ्लाइट है। एसएसएलवी-डी3-ईओएस 08 रॉकेट अपने साथ एक सैटेलाइट लेकर गया जो धरती की निगरानी के लिए बना है।इसरो के मुताबिक, मिशन का मेन मकसद एक माइक्रोसैटेलाइट का डिजाइन और विकास करना था. साथ ही माइक्रोसैटेलाइट बस के साथ कम्पैटिबल पेलोड उपकरणों को बनाना और भविष्य के ऑपरेशनल सैटेलाइट्स के लिए नई तकनीकों को शामिल करना भी मिशन के उद्देश्यों में से है। अर्थ ऑब्जरवेशन सैटलाइट (ईओएस-08) एक ऐसी सैटलाइट है जो पृथ्वी की निगरानी करेगा और साथ ही किसी भी तरह की आपदा की चेतवानी पहले से ही देगा, जिससे किसी भी आपदा का सामना करने में मदद मिलेगी। इसके तहत भूमि की सतह, जीवमंडल, ठोस पृथ्वी, वायुमंडल और महासागरों का निगाह रखी जाएगी। इससे दुनिया में कहीं भी बाढ़, ज्वालामुखी, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पता लगाने में मदद मिलेगी। जानकारी के मुताबिक इस सैटलाइट का वजन लगभग 175.5 किलोग्राम है। इसमें तीन पेलोड हैं। एक इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (ईओआईआर), दूसरा ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (जीएनएसएस-आर) और तीसरा एसआईसी यूवी डोसिमीटर है।
पुण्यतिथि: "मिसाइल मैन" एवम् देश के प्रथम वैज्ञानिक राष्ट्रपति ए पी जे कलाम साहब की आज पुण्य तिथि,जानते है उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें

मिसाइल मैन के नाम से मशहूर रहे देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का आज के ही दिन निधन हुआ था. देश सेवा के मिशन में ही लगे रहे कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलॉन्ग में उस वक्त हुआ था, जब वो आईआईएम में लेक्चर दे रहे थे. शिलांग में जब छात्र-छात्राओं के बीच मंच से भाषण देने पहुंचे तो किसी ने ये अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि ये संबोधन उनका अंतिम होगा.

संबोधन के दौरान उन्होंने न सिर्फ मानवता को लेकर चिंता जाहिर की थी बल्कि धरती पर फैले प्रदूषण को लेकर भी चिंता जताई थी. पूर्व राष्ट्रपति कलाम एक परमाणु वैज्ञानिक, शानदार लेखक, कवि और शिक्षाविद थे. 27 जुलाई 2015 को 83 साल की उम्र में निधन होने तक देश की सेवा की थी.

पुण्यतिथि पर कलाम जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

 – पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर में हुआ था. वो मछुआरों के परिवार में जन्मे थे.

– साल 1992 से 1999 तक एपीजे अब्दुल कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे हैं.

– एपीजे अब्दुल कलाम के “हिंदी गुरु” मुलायम सिंह यादव थे. उन्हें जो कुछ भी थोड़ी बहुत हिंदी आती थी वो मुलायम सिंह यादव ने ही सिखाई थी. इस बात को खुद उन्होंने ने सैफई में एक रैली के दौरान स्वीकार भी किया था.

– भारत अमेरिका न्यूक्लियर डील को लेकर के जो समाजवादी पार्टी का हृदय परिवर्तन हुआ, उसके पीछे भी एपीजे अब्दुल कलाम और मुलायम की मित्रता थी. एपीजे अब्दुल कलाम ने मुलायम सिंह को मनाया था कि ये या डील भारत के हित में है.

– एपीजे अब्दुल कलाम अपने पूरी प्रोफेशनल जिंदगी में केवल 2 छुट्टियां ली. एक अपने पिता की मौत के समय और दूसरी अपनी मां की मौत के समय.

– एपीजे अब्दुल कलाम धर्म से मुस्लिम थे, लेकिन दिल से वो किसी भी धर्म को नहीं मानते थे. वो कुरान और भगवत गीता दोनों ही पढ़ा करते थे.

– 27 जुलाई 2015 को आईआईएम शिलांग में एक कार्यक्रम में अचानक कार्डियेक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई थी. उनके एक सहयोगी ने बताया कि उनके आखिरी शब्द थे ‘फनी गाएज, आर यू डूइंग वैल?’

– एपीजे अब्दुल कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जो राष्ट्रपति पद मिलने से पहले ही भारत रत्न से सम्मानित हो चुके थे. एपीजे अब्दुल कलाम को साल 1997 में भारत रत्न मिला. साल 2002 में वो राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए. इससे पहले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन राष्ट्रपति पद पर आने से पहले भारत रत्न से सम्मानित हो चुके थे.

– वो भारत के इकलौते राष्ट्रपति थे, जो कुंवारे थे और साथ ही शाकाहारी थे।

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जिन्हें "मिसाइल मैन" के रूप में भी जाना जाता है, देश के 11वें राष्ट्रपति थे और उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ बहुत महान हैं। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:

मिसाइल प्रौद्योगिकी में योगदान:

 कलाम ने भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में प्रमुख योगदान दिया।

पोखरण-II परमाणु परीक्षण:

1998 में हुए पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने भारत को एक पूर्ण परमाणु शक्ति बनाने में मदद की।

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन 

(ISRO): कलाम ने ISRO के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम किया, जिसमें भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) का विकास शामिल है।

राष्ट्रपति के रूप में सेवा:

 2002 से 2007 तक उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के रूप में सेवा की, और वे अपने सरलता, विनम्रता और बच्चों के प्रति प्रेम के लिए बहुत लोकप्रिय हुए।

लेखन और प्रेरणा:

 उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें "विंग्स ऑफ फायर", "इंडिया 2020" और "इग्नाइटेड माइंड्स" शामिल हैं। उनके लेखन ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया।

डॉ. कलाम का जीवन और योगदान

 आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके महान कार्यों और विचारों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

बड़ी खबर : गया में एसडीएम को मिली जान से मारने की धमकी, जेल में बंद कुख्यात ने कॉल कर कहा-फोन नहीं उठाते हैं जान मार देंगे

गया : जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है। जहां एसडीएम को जान मारने की धमकी मिली है। मिली जानकारी के अनुसार दोहरे हत्याकांड मामले में जेल में बंद कुख्यात ने मोबाइल पर कॉल कर एसडीएम को जान से मारने की धमकी दी है। एसडीएम को जान मारने की धमकी का मामला सामने आता ही हङकंप मच गया। फिलहाल इसकी प्राथमिकी गया के कोंच थाने में दर्ज कराई गई है। पुलिस कार्रवाई करने में जुट गई है।

जेल में बंद कुख्यात ने एसडीएम को जान करने की दी धमकी 

गया सेंट्रल जेल में बंद कुख्यात ने एसडीएम को जान से मारने की धमकी दी है। मोबाइल पर कॉल कर इस तरह की धान की दी गई है। इस तरह की धमकी मिलने के बाद एसडीएम सकते में आ गए। मामले की प्राथमिकी कोच थाने में दर्ज कराई गई है। कोच थाने की पुलिस कार्रवाई कर रही है।

ISRO जासूसी मामले में साजिश के तहत फंसाए गए थे अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन, अब जिम्मेदार अफसरों पर सीबीआई फाइल करेगी चार्जशीट

 केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दो पूर्व DGP, केरल के सिबी मैथ्यूज और गुजरात के आरबी श्रीकुमार के साथ-साथ तीन अन्य सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है। यह कार्रवाई 1994 के ISRO जासूसी मामले में अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने में उनकी कथित संलिप्तता से संबंधित है।

बता दें कि, यह विवाद अक्टूबर 1994 में शुरू हुआ था, जब केरल पुलिस ने मालदीव की नागरिक रशीदा को तिरुवनंतपुरम में गिरफ़्तार किया और उस पर पाकिस्तान को ISRO रॉकेट इंजन के गोपनीय चित्र बेचने की कोशिश करने का आरोप लगाया। जांच जल्द ही फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप ISRO के क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के तत्कालीन निदेशक नंबी नारायणन, ISRO के उप निदेशक डी शशिकुमारन और रशीदा की मालदीव की दोस्त फ़ौसिया हसन को गिरफ़्तार कर लिया गया। नंबी नारायणन को हिरासत में केरल पुलिस और IB अधिकारियों द्वारा पूछताछ के दौरान उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। यह यातना 50 दिनों तक चली, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और करियर को काफी नुकसान पहुंचा। हालांकि, बाद में CBI जांच हुई और नंबी नारायणन पर लगे इन तमाम आरोपों को निराधार पाया गया।

सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने नंबी नारायणन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई को "मनोवैज्ञानिक उपचार" करार दिया, जिसमें कहा गया कि उनकी "स्वतंत्रता और गरिमा", जो उनके मानवाधिकारों के लिए बुनियादी है, उन्हें हिरासत में लिए जाने के कारण खतरे में डाल दिया गया और अतीत के सभी गौरव के बावजूद, अंततः उन्हें "निंदनीय घृणा" का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 15 अप्रैल, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि ISRO वैज्ञानिक नंबी नारायणन से जुड़े 1994 के जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद 2021 में मामला दर्ज करने के बाद, CBI ने तत्कालीन पुलिस उप महानिरीक्षक मैथ्यूज, जिन्होंने मामले की जांच करने वाले विशेष जांच दल (SIT) का नेतृत्व किया था, श्रीकुमार, जो खुफिया ब्यूरो में उप निदेशक थे, पीएस जयप्रकाश, जो उस समय SIB-केरल में तैनात थे, तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक केके जोशुआ और निरीक्षक एस विजयन के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है। अधिकारियों ने बताया कि CBI ने उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 120बी (आपराधिक साजिश), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 330 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 167 (झूठे दस्तावेज तैयार करना), 193 (मनगढ़ंत साक्ष्य तैयार करना), 354 (महिलाओं पर आपराधिक हमला) के तहत आरोप लगाए हैं।

बता दें कि, 1994 में जब डॉ नंबी नारायणन एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन पर काम कर रहे थे और देश को दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए मेहनत कर रहे थे, उस समय उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया जब उन्हें एक मनगढ़ंत जासूसी मामले में फंसा दिया गया। उन पर फर्जी आरोप लगाया गया था कि, उन्होंने गोपनीय भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विदेशी एजेंसियों को लीक कर दिया था, ये सब अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए किया गया था। घटनाओं की एक श्रृंखला के कारण इस वैज्ञानिक की गिरफ्तारी हुई और बाद में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उन्हें कई तरह से यातनाएं दी गई, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिक के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया, जिसने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया।

सत्य और न्याय की जीत होने से पहले डॉ नंबी नारायणन का मामला दो दशकों से अधिक समय तक चला। उनकी कानूनी टीम, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के अथक प्रयासों के कारण अंततः 2018 में, यानि 24 साल प्रताड़ना झेलने के बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। न्यायालय ने न केवल उन्हें निर्दोष घोषित किया, बल्कि उनकी गलत गिरफ्तारी में राज्य सरकार की भूमिका की भी आलोचना की। इस ऐतिहासिक फैसले ने न केवल डॉ. नारायणन को सही साबित किया, बल्कि प्रणालीगत विफलताओं और निहित हितों के बावजूद भी न्याय, निष्पक्षता और अखंडता के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया।

बता दें कि, डॉ नारायणन के खिलाफ साजिश के समय, भारत में केंद्रीय स्तर और केरल राज्य दोनों में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार थी, लेकिन सरकार भी अपने देश के वैज्ञानिक के साथ खड़ी नहीं दिखी थी। डॉ नंबी नारायणन की कहानी उल्लेखनीय संघर्ष और देशभक्ति की कहानी है, जहां एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक ने अकल्पनीय प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया और विजयी हुआ। सत्य, विज्ञान और न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता सभी के लिए प्रेरणा का काम करती है। नंबी नारायणन के मामले ने न्याय में गड़बड़ी को रोकने के लिए कानूनी सुधारों और तंत्र की तत्काल आवश्यकता के बारे में भी चर्चा को प्रेरित किया है। आखिर कैसे, देश को चाँद पर पहुंचाने के लिए अथक मेहनत कर रहे एक वैज्ञानिक को एक फर्जी मामले में खुद को बेकसूर साबित करने में 24 साल लग गए ? तब तक वो न जाने देश के लिए कितना काम कर चुके होते ?

एक राष्ट्र के रूप में, भारत को इस दर्दनाक अध्याय से सीखना जारी रखना चाहिए और एक ऐसे समाज के निर्माण की दिशा में काम करना चाहिए, जहां ज्ञान और सत्य की खोज का जश्न मनाया जाए और उसकी रक्षा की जाए। डॉ। नारायणन की दोषमुक्ति न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत है, बल्कि उन सभी लोगों की सामूहिक जीत भी है, जो न्याय और अखंडता की वकालत करते हुए उनके पीछे खड़े थे।

एनटीए परीक्षाओं की निगरानी के लिए इसरो के पूर्व अध्यक्ष की अध्यक्षता में बनी समिति, जानें कौन हैं डॉ के राधाकृष्णन?

#committeetooverseentaexaminationsledbyformerisro_chairman

नीट पेपर लीक और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है। इस बीच केन्द्र सरकार ने परीक्षा सुधारों पर सुझाव देने और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के कामकाज की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का उच्च स्तरीय पैनल आज यानी सोमवार को बैठक करेगा। समिति को दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। जिन सुधारों की सिफारिश की गई है उन्हें अगले परीक्षा चक्र तक लागू किया जाएगा।

शिक्षा मंत्रालय ने शनिवार को राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के माध्यम से परीक्षाओं का पारदर्शी, सुचारू और निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करने के लिए पूर्व इसरो अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। इस समिति में डॉ. राधाकृष्णन सहित सात सदस्य शामिल हैं। समिति के कार्यक्षेत्र में परीक्षा प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करना, डेटा सुरक्षा प्रोटोकॉल को बढ़ाना तथा एनटीए की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार करना शामिल है।

ऐसे का करेगी समिति

एनटीए की संरचना एवं कार्यप्रणाली के लिए उच्चस्तरीय समिति को सबसे पहले प्रत्येक स्तर पर पदाधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना होगा। इसके बाद एनटीए की वर्तमान शिकायत निवारण प्रणाली का आकलन कर और सुधार के क्षेत्रों की पहचान कर इसकी कार्यकुशलता बढ़ाने की भी सिफारिशें देनी होंगी। समिति किसी भी विषय विशेषज्ञ की मदद ले सकती है।

समिति में शामिल हैं ये लोगः-

1. डॉ. के. राधाकृष्णन (पूर्व अध्यक्ष, इसरो)

2. डॉ. रणदीप गुलेरिया (पूर्व एम्स निदेशक)

3. प्रो. बी.जे. राव (कुलपति, हैदराबाद विश्वविद्यालय)

4. प्रो. राममूर्ति के. (आईआईटी मद्रास)

5. पंकज बंसल (सह-संस्थापक, पीपलस्ट्रॉन्ग, और बोर्ड सदस्य, कर्मयोगी भारत)

6. आदित्य मित्तल (डीन, छात्र मामले, आईआईटी दिल्ली)

7. गोविंद जायसवाल (संयुक्त सचिव, शिक्षा मंत्रालय)

कौन हैं डॉ. राधाकृष्णन ?

डॉ. राधाकृष्णन अकादमिक सुधारों के लिए मौजूदा सरकार के पसंदीदा शख्स रहे हैं। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित कई समितियों का नेतृत्व किया है। डॉ. राधाकृष्णन एक मशहूर वैज्ञानिक हैं। जो भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1971 में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से डॉ. राधाकृष्णन ने अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) प्रोजेक्ट में अहम जिम्मेदारी निभाई। डॉ. राधाकृष्णन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में बतौर डायरेक्टर भी रह चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में इसरो ने मंगलयान मिशन को पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचाया था। डॉ. राधाकृष्णन ने डॉ. जी माधवन नायर के रिटायरमेंट के बाद इसरो का अध्यक्ष पद संभाला। जहां उनकी पहली प्राथमिकता जीएसएलवी के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को तैयार करना था।

2009 से 2014 तक डॉ. राधाकृष्णन इसरो के अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में भारत ने चंद्रयान-1 मिशन, मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) और जीसैट श्रृंखला के उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विभिन्न क्षेत्रों में अहम योगदान दिया, जिसमें सैटेलाइट संचार, रिमोट सेंसिंग और अंतरिक्ष विज्ञान शामिल हैं। अपने कार्यों के लिए डॉ. राधाकृष्णन को साल 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके नेतृत्व और वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

इससे पहेल शुक्रवार को केंद्र सरकार ने प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी और अनियमितताओं पर लगाम लगाने के उद्देश्य से एक सख्त कानून लागू किया। यह नया कानून परीक्षाओं की ईमानदारी और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है, जो शैक्षणिक और व्यावसायिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें धोखाधड़ी और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों को रोकने के लिए कठोर दंड शामिल हैं। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले अपराधियों को अधिकतम 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। इसके अलावा, कानून में भारी जुर्माना भी लगाया गया है, जिसकी अधिकतम सजा 1 करोड़ रुपये तक है।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 को मंजूरी दिए जाने के लगभग चार महीने बाद, कार्मिक मंत्रालय ने शुक्रवार रात एक अधिसूचना जारी की, जिसमें घोषणा की गई कि कानून के प्रावधान 21 जून से लागू होंगे।

इसरो जल्द भेजेगा अंतरिक्ष में सेटेलाइट, इससे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी होंगी मज़बूत


दिल्ली डेस्क 

नई दिल्ली ISRO जल्द ही ऐसा सैटेलाइट भेजने वाला है, जिससे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी और मजबूत हो जाएगी। न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की ये दूसरी डिमांड-ड्रिवेन सैटेलाइट मिशन है। इस सैटेलाइट का नाम है जीसैट-एन2..यह Ka-Band का कम्यूनिकेशन सैटेलाइट है। 

इसके जरिए देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ज्यादा ताकतवर होगा। साथ ही भारतीय प्रायद्वीप और उसके थोड़ा आसपास तक विमानों की कनेक्टिविटी बेहतर होगी।

यानी उड़ान के समय पायलट ज्यादा बेहतर संचार स्थापित कर पाएंगे। NSIL इसरो का कॉमर्शियल विंग है, जो उसके लिए प्राइवेट और सरकारी सैटेलाइट लॉन्च डील करता है ।