अंतरिक्ष में इसरो की एक और बड़ी कामयाबी, अंतरिक्ष में 100वां मिशन सफल, एनवीएस-2 नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च

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भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो बुधवार को अपना 100वां ऐतिहासिक मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया। सुबह 6:23 बजे जीएसएलवी-एफ12 रॉकेट ने नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 को अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से किया गया। यह प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर साबित हुआ।

इसरो ने मिशन को लेकर कहा है कि मिशन सफल सफल हो गया है. भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसरो के मिशन सफल होने पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए इसरो को बधाई। इस रिकॉर्ड उपलब्धि के ऐतिहासिक क्षण में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ना सौभाग्य की बात है। टीम इसरो, आपने एक बार फिर जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 मिशन के सफल प्रक्षेपण से भारत को गौरवान्वित किया है।’

नेविगेशन प्रणाली का विस्तार

एनवीएस-2 उपग्रह भारतीय नेविगेशन प्रणाली 'नाविक' का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप और 1,500 किलोमीटर तक के क्षेत्रों में उपयोगकर्ताओं को सटीक समय, गति और स्थिति की जानकारी देना है। 2,250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में एल-1, एल-5 और एस-बैंड में पेलोड्स लगाए गए हैं, जो कृषि, बेड़े प्रबंधन और लोकेशन-आधारित सेवाओं में उपयोगी साबित होंगे।

वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन

यह इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन है। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभाला था। प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष नारायणन ने तिरुपति मंदिर में पूजा अर्चना की।

महाकुंभ में करोड़ों लीटर मल का समाधान: ISRO और वैज्ञानिकों ने खोजा निपटान का अनोखा रास्ता

हर महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, और इसके साथ ही एक और समस्या उत्पन्न होती है – मल-मूत्र और अपशिष्ट का भारी ढेर। इस अपशिष्ट का निपटारा न केवल स्थानीय स्वच्छता के लिए, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन जाता है। इस समस्या के समाधान में अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित विभिन्न वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीमों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान देना शुरू कर दिया है।

मल-मूत्र का जमा होना

महाकुंभ के दौरान हर दिन करोड़ों लीटर मल-मूत्र और अन्य अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं। प्रयागराज जैसे शहर में, जहां भीड़-भाड़ अत्यधिक होती है, यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही, जल, वायु और भूमि पर इसके असर को नियंत्रित करना एक बड़ा चुनौती है।

ISRO की भूमिका

समस्या के समाधान के लिए ISRO ने अपनी उपग्रह तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। उपग्रहों से एकत्रित डेटा का उपयोग करके, मल-मूत्र के इकट्ठा होने वाले स्थानों की निगरानी की जा रही है। इसके अलावा, जलस्रोतों और भूमि की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए उपग्रह चित्रों की मदद ली जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरीके से पर्यावरणीय नुकसान न हो।

ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक का उद्देश्य अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना है, ताकि उसका असर सीमित किया जा सके और स्वच्छता को बनाए रखा जा सके। "हमारे उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग स्थानीय प्रशासन और स्वच्छता टीमों द्वारा किया जा रहा है ताकि त्वरित उपाय किए जा सकें," एक ISRO अधिकारी ने बताया।

बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक तकनीक का उपयोग

वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने भी बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक मल-मूत्र उपचार तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। इन तकनीकों का उद्देश्य जल, भूमि और हवा में प्रदूषण कम करना है। विशेष रूप से, स्वच्छता उपायों को बढ़ावा देने के लिए ‘बायो-सील’ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मल-मूत्र को जल्दी से निष्क्रिय करने में मदद करती हैं।

स्मार्ट टॉयलेट्स और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली

महाकुंभ आयोजन स्थल पर स्मार्ट टॉयलेट्स और वेस्ट ट्रीटमेंट यूनिट्स का भी उपयोग किया जा रहा है। इन टॉयलेट्स में मल-मूत्र को तुरंत ही संसाधित कर लिया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अपशिष्ट पर्यावरण में न जाए। इसके अलावा, इन टॉयलेट्स के आस-पास मल-मूत्र के एकत्रित होने के स्थानों की निगरानी और सफाई के लिए स्वच्छता दल तैनात किया जाता है।

स्थानीय प्रशासन की पहल

स्थानीय प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करना शुरू किया है। प्रयागराज नगर निगम और अन्य स्वच्छता अधिकारियों ने 24 घंटे का अपशिष्ट प्रबंधन सेवा उपलब्ध करवाई है। इस सेवा के तहत, मल-मूत्र को सही तरीके से निपटाने के लिए ट्रकों और विशेष यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।

महाकुंभ जैसे आयोजनों में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और इसके साथ जुड़ी अपशिष्ट समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी एजेंसियों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम एकजुट हो चुकी है। ISRO जैसी तकनीकी एजेंसियों से लेकर बायो-डिग्रेडेबल टेक्नोलॉजी और स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन उपायों तक, इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल पर्यावरण की सुरक्षा है, बल्कि स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करना है। यह एक बड़ा कदम है, जो देशभर में अन्य आयोजनों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।

भारत ने स्पेस में रचा नया इतिहास, ISRO के SpaDeX ने पूरा किया डॉकिंग प्रोसेस

भारत ने अंतरिक्ष में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. इसरो के स्पैडेक्स मिशन ने ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की. इसरो ने पहली बार पृथ्वी की कक्षा में दो उपग्रह सफलतापूर्वक स्थापित किए. इसके साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला अमेरिका, रूस , चीन के बाद चौथा देश बन गया है. यह वाकई ​​भारत के लिए गर्व का पल है. पीएम मोदी ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो को बधाई दी है.

ISRO ने कहा- यह एक ऐतिहासिक क्षण है

वहीं, इसरो ने भी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए अपनी पूरी टीम को बधाई दी है. एजेंसी ने कहा कि स्पैडेक्स मिशन के डॉकिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हुई. यह एक ऐतिहासिक क्षण है. 15 मीटर से 3 मीटर होल्ड पॉइंट तक लाने का प्रोसेस पूरा हुआ. स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक कैप्चर किया गया. भारत अंतरिक्ष में सफल डॉकिंग हासिल करने वाला चौथा देश बन गया.

12 जनवरी को पूरा हुआ था इसका ट्रायल

दरअसल, रविवार 12 जनवरी को स्पैडेक्स के दोनों उपग्रह चेजर और टारगेट एक दूसरे के बेहद करीब आ गए थे. दोनों सैटेलाइट्स को पहले 15 मीटर और फिर 3 मीटर तक करीब लाया गया था. इससे एक दिन पहले यानी शनिवार को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स) मिशन में शामिल दोनों उपग्रहों के बीच की दूरी 230 मीटर थी. इससे पहले इस मिशन को दो से तीन बार से लिए स्थगित भी किया गया था.

इसरो ने इस मिशन को 30 दिसबंर कोलॉन्चकिया था

स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक को प्रदर्शित करना है, जो भारत के भविष्य के अंतरिक्ष प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है. अब ये मिशन अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रयान-4 की सफलता तय करेगा. इसरो ने इस मिशन को 30 दिसबंर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर सेPSLV-C60 रॉकेट की सहायता से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.

चंद्रयान-4 की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होगा

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किए गए इस मिशन में दो छोटे उपग्रह शामिल हैं. इनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम है. इसरो के लिए ये मिशन एक बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट है. यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और चंद्रयान-4 की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होगा. चंद्रयान-4 मिशन में इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल होगा. नासा की तरह अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने में इसी मिशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए भी ये टेक्नोलॉजी जरूरी है.

SpaDeX मिशन को लेकर ISRO का बड़ा अपडेट, 15 मीटर से 3 मीटर तक पहुंचाने का ट्रायल सफल

डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने रविवार सुबह स्पैडेक्स (SpaDeX ) मिशन को लेकर बड़ा अपडेट दिया। इसरो ने बताया कि दोनों सेटेलाइट्स के बीच की दूरी को 15 मीटर तक और आगे 3 मीटर तक पहुंचाने का ट्रायल अटेम्प्ट सफल रहा है। अब अंतरिक्षयानों को सुरक्षित दूरी पर वापस ले जाया गया है। इस ट्रायल अटेम्प्ट के डेटा का और अधिक विश्लेषण करने के बाद डॉकिंग की प्रक्रिया जाएगी।

ISRO ने बताया कि फिलहाल डॉकिंग की प्रक्रिया रोक दी गई है। अब डेटा विश्लेषण के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा। इसरो के सूत्रों के मुताबिक, इसमें लंबा वक्त लग सकता है।

क्या है SpaDeX मिशन?

SpaDeX मिशन में दो सैटेलाइट हैं। पहला चेसर और दूसरा टारगेट।

चेसर सैटेलाइट टारगेट को पकड़ेगा। उससे डॉकिंग करेगा।

इसके अलावा इसमें एक महत्वपूर्ण टेस्ट और हो सकता है। सैटेलाइट से एक रोबोटिक आर्म निकले हैं, जो हुक के जरिए यानी टेथर्ड तरीके से टारगेट को अपनी ओर खींचेगा।

ये टारगेट अलग क्यूबसैट हो सकता है। इस प्रयोग से फ्यूचर में इसरो को ऑर्बिट छोड़ अलग दिशा में जा रहे सैटेलाइट को वापस कक्षा में लाने की तकनीक मिल जाएगी।

साथ ही ऑर्बिट में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग का ऑप्शन भी खुल जाएगा।

Spadex मिशन में दो अलग-अलग स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़कर दिखाया जाएगा।

क्या है डॉकिंग की प्रक्रिया?

स्पेस डॉकिंग में दो सैटेलाइट्स एक-दूसरे के बहुत करीब आते हैं और एक साथ जुड़ जाते हैं।

यह एक जटिल तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे खासतौर पर अंतरिक्ष अभियानों में इस्तेमाल किया जाता है।

डॉकिंग का मुख्य उद्देश्य 2 उपग्रहों को एक-दूसरे से जोड़कर डेटा शेयर करना, पावर सोर्सेज को जोड़ना या किसी विशेष मिशन को अंजाम देना होता है।

स्पेस डॉकिंग के दौरान एक अंतरिक्ष यान को दूसरे यान के पास लाकर उसे नियंत्रित तरीके से जोड़ना पड़ता है, ताकि कोई नुकसान न हो।

अंतरिक्ष अन्वेषण में नई साझेदारी: इसरो को यूरोप में मिला एक मजबूत सहयोगी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने मानव अंतरिक्ष अन्वेषण को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक नया सहयोग स्थापित किया है। दोनों एजेंसियों ने अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, मिशन कार्यान्वयन और अंतरिक्ष में विभिन्न प्रकार के अनुसंधान प्रयोगों पर सहयोग करने के लिए शनिवार को एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ और ईएसए के महानिदेशक जोसेफ एशबैकर द्वारा हस्ताक्षरित यह समझौता मानव अंतरिक्ष उड़ान पर केंद्रित कई संयुक्त गतिविधियों की नींव रखता है। विशेष रूप से, यह समझौता अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, अंतरिक्ष प्रयोगों के विकास और एकीकरण, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर ईएसए सुविधाओं का उपयोग, मानव और जैव चिकित्सा अनुसंधान, साथ ही संयुक्त शैक्षिक और आउटरीच कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों को कवर करेगा। नए समझौते के तहत पहली प्रमुख परियोजनाओं में से एक एक्सिओम-4 मिशन होगा, जिसे इसरो के गगनयात्री अंतरिक्ष यात्री और ईएसए अंतरिक्ष यात्री दोनों के साथ लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन के हिस्से के रूप में, दोनों एजेंसियाँ ISS पर भारतीय प्रधान अन्वेषकों द्वारा प्रस्तावित प्रयोगों की एक श्रृंखला को लागू करने के लिए मिलकर काम करेंगी। इसके अतिरिक्त, ISRO और ESA, ESA के मानव शारीरिक अध्ययनों, प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों और सार्वजनिक आउटरीच गतिविधियों में आगे के सहयोग की संभावनाएँ तलाशेंगे।

मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए ISRO का रोडमैप

हस्ताक्षर के बाद की टिप्पणियों में, सोमनाथ ने मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए ISRO के रोडमैप पर प्रकाश डाला, जिसमें अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए एजेंसी के दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर जोर दिया गया। उन्होंने भारत के आगामी स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की हाल ही में हुई स्वीकृति की ओर भी इशारा किया, जो विभिन्न मानव अंतरिक्ष उड़ान प्लेटफार्मों के बीच अंतर-संचालन को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।

एशबैकर ने दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच संबंधों को मजबूत करने में हुई प्रगति के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने ESA परिषद को संबोधित करने के लिए सोमनाथ को धन्यवाद दिया और अंतरिक्ष अन्वेषण में भविष्य के सहयोग के लिए एक ठोस रूपरेखा के रूप में समझौते की प्रशंसा की।

इसरो और ईएसए दोनों नेताओं ने एक्सिओम-4 मिशन पर अब तक की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया और मानव अंतरिक्ष उड़ान के क्षेत्र में संयुक्त प्रयासों को जारी रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। दोनों एजेंसियों के बीच साझेदारी से आने वाले वर्षों में वैज्ञानिक अनुसंधान, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उन्नति और वैश्विक सहयोग के लिए नए दरवाजे खुलने की उम्मीद है।

Google Maps ने तो दे दिया धोखा, इस इंडियन नेविगेशन ऐप को करें ट्राई

हाल ही में हुई एक दुखद घटना ने गूगल मैप्स की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. गुरुग्राम से बरेली जा रही एक कार ने गूगल मैप्स के जरिए रास्ता चुना और आधे-अधूरे पुल पर चढ़ गई, जिससे कार रामगंगा नदी में गिर गई और तीन लोगों की जान चली गई. इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या गूगल मैप्स पूरी तरह से सुरक्षित है और सही रास्ता दिखाता है? क्या भारत के लोकल नेविगेशन ऐप्स इस मामले में बेहतर साबित हो सकते हैं?

ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां गूगल मैप्स ने लोगों का गलत रास्ता दिखाया. इससे उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा, और कुछ मामलों में तो लोगों की जान ही चली गई. आजकल कहीं जाने के लिए नेविगेशन ऐप की तो बहुत जरूरत होती है, तो क्या हम गूगल मैप्स पर ही निर्भर रहें या किसी इंडियन नेविगेशन ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं? मार्केट में एक इंडियन ऐप है, जो आपको बेहतर नेविगेशन सर्विस दे सकती है.

Mappls: इंडियन नेविगेशन ऐप

भारत की पॉपुलर नेविगेशन ऐप ‘Mappls Mapmyindia’ ऐप आपको बेहतर नेविगेशन सर्विस दे सकती है. गूगल मैप्स की जगह आप चाहें तो इस ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं. आइए मैपल्स मैपइंडिया ऐप के फीचर्स के बारे में जानते हैं.

भारतीय सड़कों की गहरी समझ: Mappls Mapmyindia, भारत की सड़कों और ट्रैफिक की बेहतर समझ रखता है. भारत में नए-नए हाईवे और एक्सप्रेसवे बन रहे हैं. इसके अलावा लोकल रोड और गलियों का भी डेवलमेंट चलता रहता है. इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए ये ऐप अपने डेटाबेस को अपडेट करता रहता है.

लोकल लैंग्वेज सपोर्ट: यह ऐप कई भारतीय भाषाओं में काम करता है. इससे भारत के अलग-अलग राज्यों और इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए इसका इस्तेमाल करना काफी आसान हो जाता है.

ऑफलाइन मैप्स: इस ऐप में आप ऑफलाइन मैप्स डाउनलोड कर सकते हैं, जिससे इंटरनेट कनेक्शन न होने पर भी आप आसानी से नेविगेट कर सकते हैं.

ज्यादा डिटेल्ड जानकारी: यह ऐप न केवल मेन रोड बल्कि छोटी गलियों और गली-मुहल्लों की भी डिटेल्ड जानकारी देता है.

इंडियन यूजर्स के लिए डिजाइन: Mappls Mapmyindia को भारतीय यूजर्स की जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जैसे कि सड़कों के गड्ढे, रोड कंस्ट्रक्शन का काम, टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप और एटीएम की जानकारी इस ऐप पर मिलती रहती है.

Mappls ऐप इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम ‘नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन’ (NavIC) के जरिए काम करता है. अगर आप गूगल मैप्स के बजाय किसी और ऐप का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो रियल टाइम डेटा अपडेट की खूबी वाले इस नेविगेशन ऐप को ट्राई कर सकते हैं.

CSC India and DevElet’s National Teaching Excellence Awards 2024: Celebrating India’s Distinguished Educators on National Education Day

In a fitting tribute on National Education Day,  the Council for Skills and Competencies (CSC India) and DevElet came together to host the National Teaching Excellence Awards 2024, celebrating outstanding educators who have had a transformative impact on India’s youth. This landmark event, organized in partnership with CSC India and DevElet, brought together luminaries from academia, industry leaders, and policymakers from across the nation, reinforcing the critical role of quality education in nation-building.

The ceremony was graced by Chief Guest Dr. G. Jaya Suma, Registrar and Professor at JNTU-GV, Vizianagaram, whose keynote address highlighted the indelible contributions of educators to society, paying homage to Maulana Abul Kalam Azad’s vision for an educated nation. Guest of Eminence Dr. R. Sujatha, Principal of Entrepreneur Education at the Wadhwani Entrepreneurship Network, offered insights on fostering entrepreneurial skills among students, while Guest of Honor Shri Krishna Chippalkatti, Joint Director and Chief Investigator in the IOT Group at C-DAC Bengaluru and FS Prime, emphasized the significance of integrating technology into education to prepare future-ready students.

The awards spanned multiple categories, recognizing excellence in areas such as Teaching, Leadership, Innovative Pedagogy, Curriculum Innovation, Research, and Professional Development. Recipients from various educational institutions nationwide were celebrated for their dedication to advancing educational standards and pioneering innovative teaching methods in alignment with India’s National Education Policy 2020.

Key Honorees:

Honorary Leadership for Academic Achievement:

  • Dr. VSK Reddy, Vice Chancellor, Malla Reddy University, Hyderabad – for his contributions to transformative education.
  • Dr. PHV Sesha Talpa Sai, Director - R&D, IQAC & Startups, Malla Reddy University, Hyderabad – for his exemplary academic leadership.
  • Dr. Srinivasa Rao, Principal, Malla Reddy College of Engineering & Technology, Hyderabad – for his visionary leadership in education.

Best Researcher Award:

  • Dr. T. Kishore Kumar, Professor & Head, Centre for Training and Learning, National Institute of Technology, Warangal.
  • Dr. A.N. Sathyanarayana, former Group Head of the Antenna Maintenance Group at NRSC-ISRO and Professor at Sreenidhi Institute of Science & Technology, Hyderabad.
  • Dr. N. Balaji, Professor and Director of Legal & Government Affairs, Jawaharlal Nehru Technological University, Kakinada.

Awards were also presented to distinguished faculty from prestigious institutions such as the Indian Institute of Science, Bangalore; Srinivas University, Mangalore; CHRIST University, Bangalore; NIT Warangal; JNTU campuses in Kakinada and Anantapur; Sri Sri University, Cuttack; and numerous other esteemed institutions across the country.

Shared Vision and Commitment: The organizers, CSC India and DevElet, reiterated their shared commitment to bridging academia and industry. Known for pioneering digital learning and AI in education, DevElet has empowered thousands of students and professionals, while CSC India, a non-profit industry body, actively drives skill development and employment opportunities through strategic collaborations and initiatives.

The National Teaching Excellence Awards 2024 underscored CSC India and DevElet’s ongoing mission to support India’s educators, equipping students with the skills they need to thrive in a rapidly evolving world. In closing, Mr. Kishan Tiwari, CEO of DevElet LLP, and Mr. Y. Rammohan Rao, Senior Consultant at CSC India, expressed their heartfelt gratitude to all attendees, underscoring their dedication to recognizing and honoring excellence in education.

CSC India and DevElet’s National Teaching Excellence Awards 2024: Celebrating India’s Distinguished Educators on National Education Day

In a fitting tribute on National Education Day,  the Council for Skills and Competencies (CSC India) and DevElet came together to host the National Teaching Excellence Awards 2024, celebrating outstanding educators who have had a transformative impact on India’s youth. This landmark event, organized in partnership with CSC India and DevElet, brought together luminaries from academia, industry leaders, and policymakers from across the nation, reinforcing the critical role of quality education in nation-building.

The ceremony was graced by Chief Guest Dr. G. Jaya Suma, Registrar and Professor at JNTU-GV, Vizianagaram, whose keynote address highlighted the indelible contributions of educators to society, paying homage to Maulana Abul Kalam Azad’s vision for an educated nation. Guest of Eminence Dr. R. Sujatha, Principal of Entrepreneur Education at the Wadhwani Entrepreneurship Network, offered insights on fostering entrepreneurial skills among students, while Guest of Honor Shri Krishna Chippalkatti, Joint Director and Chief Investigator in the IOT Group at C-DAC Bengaluru and FS Prime, emphasized the significance of integrating technology into education to prepare future-ready students.

The awards spanned multiple categories, recognizing excellence in areas such as Teaching, Leadership, Innovative Pedagogy, Curriculum Innovation, Research, and Professional Development. Recipients from various educational institutions nationwide were celebrated for their dedication to advancing educational standards and pioneering innovative teaching methods in alignment with India’s National Education Policy 2020.

Key Honorees:

Honorary Leadership for Academic Achievement:

  • Dr. VSK Reddy, Vice Chancellor, Malla Reddy University, Hyderabad – for his contributions to transformative education.
  • Dr. PHV Sesha Talpa Sai, Director - R&D, IQAC & Startups, Malla Reddy University, Hyderabad – for his exemplary academic leadership.
  • Dr. Srinivasa Rao, Principal, Malla Reddy College of Engineering & Technology, Hyderabad – for his visionary leadership in education.

Best Researcher Award:

  • Dr. T. Kishore Kumar, Professor & Head, Centre for Training and Learning, National Institute of Technology, Warangal.
  • Dr. A.N. Sathyanarayana, former Group Head of the Antenna Maintenance Group at NRSC-ISRO and Professor at Sreenidhi Institute of Science & Technology, Hyderabad.
  • Dr. N. Balaji, Professor and Director of Legal & Government Affairs, Jawaharlal Nehru Technological University, Kakinada.

Awards were also presented to distinguished faculty from prestigious institutions such as the Indian Institute of Science, Bangalore; Srinivas University, Mangalore; CHRIST University, Bangalore; NIT Warangal; JNTU campuses in Kakinada and Anantapur; Sri Sri University, Cuttack; and numerous other esteemed institutions across the country.

Shared Vision and Commitment: The organizers, CSC India and DevElet, reiterated their shared commitment to bridging academia and industry. Known for pioneering digital learning and AI in education, DevElet has empowered thousands of students and professionals, while CSC India, a non-profit industry body, actively drives skill development and employment opportunities through strategic collaborations and initiatives.

The National Teaching Excellence Awards 2024 underscored CSC India and DevElet’s ongoing mission to support India’s educators, equipping students with the skills they need to thrive in a rapidly evolving world. In closing, Mr. Kishan Tiwari, CEO of DevElet LLP, and Mr. Y. Rammohan Rao, Senior Consultant at CSC India, expressed their heartfelt gratitude to all attendees, underscoring their dedication to recognizing and honoring excellence in education.


अलगे साल लॉन्च होगा दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट, आकाश से पृथ्वी पर होगी पैनी नजर

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दुनिया का सबसे दमदार राडार, जिसकी पृथ्वी पर होगी पैनी नजर, धरती की हर हलचल से गहरे सागर की गतिविधियों तक, सब उसकी नजरों में होगा। बता हो रही है नासा इसरो सेंथिटिक एपर्चर राडार यानी निसार की। यह सैटेलाइट अगले साल की शुरुआत में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और यह पूरी दुनिया में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, जंगल की आग, चक्रवाती तूफान, हरिकेन, बारिश, ज्वालामुखी, और टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल पर नजर रखेगा। यह किसी भी आपदा के होने से पहले अलर्ट करेगा और इससे लोगों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

नासा और इसरो का ज्वाइंट प्रोजेक्ट

दुनिया की दो सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसी का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है निसार। नासा और इसरो इस प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे है। ये डबल फ्रीक्वैंसी रडार है। जिसे दो हिस्से में तैयार किया जा रहा है। सेटेलाइट का प्रमुख पे-लोड एल-बैंड जो 24 सेंटीमीटर वेबलैंथ का होगा। उसे नासा तैयार कर रहा है। वहीं 12 सेंटीमीटर वेबलेंथ का एस-बैंड इसरो तैयार कर रहा है। इसरो रडार की इमेंजिंग प्रणाली का भी विकास कर रही है। इसके अलावा माइक्रोवब और ऑप्टिकल सेंसर भी इसरो ही तैयार कर रही है।

दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट

ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 120 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 1 बिलिय़न ड़ॉलर लगा रही है। स्पेस में ऑपरेशनल हो जाने के बाद ये उपग्रह अपने उन्नत राडार से इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए पूरी धरती की हाई क्वालिटी इमेंज लेगा। ये धरती पर होने वाली हर तरह की हलचल का पता लगा सकेगा। आर्कटिक और अंटार्कटिंक एरिया में जो बर्फ की चादरें पिघल रही है, अर्थ की सिसनिक प्लेटों में हो रही गतिविधि का पता चल सकेगा, जिससे भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका जा सकेगा। ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्र और सागर की गहराई की हर जानकारी देगा। इसकी मदद से आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम किए जा सकेंगे।

अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

इस खास खोज के लिए, आकाश से धरती की निगरानी के लिए, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुना है। निसार के जरिए भारत और अमेरिका दुनिया को खास देने वाले हैं। शायद वो चीज जो मानवता के विकास में मददगार साबित हो सकती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

भारत की तरक्की देश यूएस भी हुआ हैरान

अमेरिका खुद चलकर आया भारत से मदद मांगने। शायद इधर कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। जिसकी आशा अमेरिका ने कभी नहीं की होगी भारत ने वो कर दिखाया।

हालांकि, बात बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। लेकिन भारत ने दुनियाभर का भरोसा जीता। बात 1992 की है जब अमेरिका में जॉज बुश सीनियर की सरकार थी। तब रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेकनॉलोजी देने वाला था। लेकिन अमेरिका ने इसपर रोक लग दी। क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल रॉकेट में होता है। उस वक्त ये तकनीक सिर्फ अमेरिका और रशिया के पास थी। अमेरिका नहीं चाहता था इस दौड़ में कोई तीसरा खड़ा हो। भारत मिसाइल बनाने में कामयाब हो। लेकिन भारत ने अपने भरोसे के बल पर और 20 साल की मेहनत के बाद वो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफल हुआ। ये वही क्रायोजेनिक इंजन है जो जीएसएलवी में लगता है और इसी क्रायोजेनिक इंजन से निसार को भी लॉन्च किया जाना है।

यूं बढ़ी नासा की इसरो में दिलचस्पी

नासा दुनिया की सबसे विकसित स्पेस एजेंसी है। बावजूद नासा ने इसरो में दिलचस्पी दिखायी। इसकी शुरूआत 2012 में हुई, जब इसरो ने भारत का पहला स्वदेशी राडार इमेंजिंग सेटेलाइट लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात हो या दिन मौसम कैसा भी हो धरती के सतह की तस्वीरें ली जा सकती है। इसके बाद ही नासा ने भारत के साथ हाथ मिलाकर ये प्रोजेक्ट शुरू करने की इच्छा जतायी। इस मामले में करीब 2 साल की तक बातचीत के बाद निसार सेटेलाइट को लेकर सहमति बनी। अब दोनों देश मिलकर विज्ञान और प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल मानव हित में करेंगे।

अंतरिक्ष में इसरो की एक और बड़ी कामयाबी, अंतरिक्ष में 100वां मिशन सफल, एनवीएस-2 नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च

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भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो बुधवार को अपना 100वां ऐतिहासिक मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया। सुबह 6:23 बजे जीएसएलवी-एफ12 रॉकेट ने नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 को अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से किया गया। यह प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर साबित हुआ।

इसरो ने मिशन को लेकर कहा है कि मिशन सफल सफल हो गया है. भारत अंतरिक्ष नेविगेशन में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। इसरो के मिशन सफल होने पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने के लिए इसरो को बधाई। इस रिकॉर्ड उपलब्धि के ऐतिहासिक क्षण में अंतरिक्ष विभाग से जुड़ना सौभाग्य की बात है। टीम इसरो, आपने एक बार फिर जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 मिशन के सफल प्रक्षेपण से भारत को गौरवान्वित किया है।’

नेविगेशन प्रणाली का विस्तार

एनवीएस-2 उपग्रह भारतीय नेविगेशन प्रणाली 'नाविक' का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप और 1,500 किलोमीटर तक के क्षेत्रों में उपयोगकर्ताओं को सटीक समय, गति और स्थिति की जानकारी देना है। 2,250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में एल-1, एल-5 और एस-बैंड में पेलोड्स लगाए गए हैं, जो कृषि, बेड़े प्रबंधन और लोकेशन-आधारित सेवाओं में उपयोगी साबित होंगे।

वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन

यह इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन के नेतृत्व में पहला मिशन है। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभाला था। प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष नारायणन ने तिरुपति मंदिर में पूजा अर्चना की।

महाकुंभ में करोड़ों लीटर मल का समाधान: ISRO और वैज्ञानिकों ने खोजा निपटान का अनोखा रास्ता

हर महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, और इसके साथ ही एक और समस्या उत्पन्न होती है – मल-मूत्र और अपशिष्ट का भारी ढेर। इस अपशिष्ट का निपटारा न केवल स्थानीय स्वच्छता के लिए, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन जाता है। इस समस्या के समाधान में अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित विभिन्न वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीमों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान देना शुरू कर दिया है।

मल-मूत्र का जमा होना

महाकुंभ के दौरान हर दिन करोड़ों लीटर मल-मूत्र और अन्य अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं। प्रयागराज जैसे शहर में, जहां भीड़-भाड़ अत्यधिक होती है, यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही, जल, वायु और भूमि पर इसके असर को नियंत्रित करना एक बड़ा चुनौती है।

ISRO की भूमिका

समस्या के समाधान के लिए ISRO ने अपनी उपग्रह तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। उपग्रहों से एकत्रित डेटा का उपयोग करके, मल-मूत्र के इकट्ठा होने वाले स्थानों की निगरानी की जा रही है। इसके अलावा, जलस्रोतों और भूमि की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए उपग्रह चित्रों की मदद ली जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरीके से पर्यावरणीय नुकसान न हो।

ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तकनीक का उद्देश्य अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना है, ताकि उसका असर सीमित किया जा सके और स्वच्छता को बनाए रखा जा सके। "हमारे उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग स्थानीय प्रशासन और स्वच्छता टीमों द्वारा किया जा रहा है ताकि त्वरित उपाय किए जा सकें," एक ISRO अधिकारी ने बताया।

बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक तकनीक का उपयोग

वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने भी बायो-डिग्रेडेबल और ऑर्गेनिक मल-मूत्र उपचार तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। इन तकनीकों का उद्देश्य जल, भूमि और हवा में प्रदूषण कम करना है। विशेष रूप से, स्वच्छता उपायों को बढ़ावा देने के लिए ‘बायो-सील’ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मल-मूत्र को जल्दी से निष्क्रिय करने में मदद करती हैं।

स्मार्ट टॉयलेट्स और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली

महाकुंभ आयोजन स्थल पर स्मार्ट टॉयलेट्स और वेस्ट ट्रीटमेंट यूनिट्स का भी उपयोग किया जा रहा है। इन टॉयलेट्स में मल-मूत्र को तुरंत ही संसाधित कर लिया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अपशिष्ट पर्यावरण में न जाए। इसके अलावा, इन टॉयलेट्स के आस-पास मल-मूत्र के एकत्रित होने के स्थानों की निगरानी और सफाई के लिए स्वच्छता दल तैनात किया जाता है।

स्थानीय प्रशासन की पहल

स्थानीय प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करना शुरू किया है। प्रयागराज नगर निगम और अन्य स्वच्छता अधिकारियों ने 24 घंटे का अपशिष्ट प्रबंधन सेवा उपलब्ध करवाई है। इस सेवा के तहत, मल-मूत्र को सही तरीके से निपटाने के लिए ट्रकों और विशेष यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है।

महाकुंभ जैसे आयोजनों में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और इसके साथ जुड़ी अपशिष्ट समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी एजेंसियों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की टीम एकजुट हो चुकी है। ISRO जैसी तकनीकी एजेंसियों से लेकर बायो-डिग्रेडेबल टेक्नोलॉजी और स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन उपायों तक, इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल पर्यावरण की सुरक्षा है, बल्कि स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करना है। यह एक बड़ा कदम है, जो देशभर में अन्य आयोजनों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।

भारत ने स्पेस में रचा नया इतिहास, ISRO के SpaDeX ने पूरा किया डॉकिंग प्रोसेस

भारत ने अंतरिक्ष में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. इसरो के स्पैडेक्स मिशन ने ऐतिहासिक डॉकिंग सफलता हासिल की. इसरो ने पहली बार पृथ्वी की कक्षा में दो उपग्रह सफलतापूर्वक स्थापित किए. इसके साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला अमेरिका, रूस , चीन के बाद चौथा देश बन गया है. यह वाकई ​​भारत के लिए गर्व का पल है. पीएम मोदी ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो को बधाई दी है.

ISRO ने कहा- यह एक ऐतिहासिक क्षण है

वहीं, इसरो ने भी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए अपनी पूरी टीम को बधाई दी है. एजेंसी ने कहा कि स्पैडेक्स मिशन के डॉकिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हुई. यह एक ऐतिहासिक क्षण है. 15 मीटर से 3 मीटर होल्ड पॉइंट तक लाने का प्रोसेस पूरा हुआ. स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक कैप्चर किया गया. भारत अंतरिक्ष में सफल डॉकिंग हासिल करने वाला चौथा देश बन गया.

12 जनवरी को पूरा हुआ था इसका ट्रायल

दरअसल, रविवार 12 जनवरी को स्पैडेक्स के दोनों उपग्रह चेजर और टारगेट एक दूसरे के बेहद करीब आ गए थे. दोनों सैटेलाइट्स को पहले 15 मीटर और फिर 3 मीटर तक करीब लाया गया था. इससे एक दिन पहले यानी शनिवार को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स) मिशन में शामिल दोनों उपग्रहों के बीच की दूरी 230 मीटर थी. इससे पहले इस मिशन को दो से तीन बार से लिए स्थगित भी किया गया था.

इसरो ने इस मिशन को 30 दिसबंर कोलॉन्चकिया था

स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक को प्रदर्शित करना है, जो भारत के भविष्य के अंतरिक्ष प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है. अब ये मिशन अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रयान-4 की सफलता तय करेगा. इसरो ने इस मिशन को 30 दिसबंर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर सेPSLV-C60 रॉकेट की सहायता से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.

चंद्रयान-4 की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होगा

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किए गए इस मिशन में दो छोटे उपग्रह शामिल हैं. इनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम है. इसरो के लिए ये मिशन एक बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट है. यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और चंद्रयान-4 की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होगा. चंद्रयान-4 मिशन में इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल होगा. नासा की तरह अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने में इसी मिशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए भी ये टेक्नोलॉजी जरूरी है.

SpaDeX मिशन को लेकर ISRO का बड़ा अपडेट, 15 मीटर से 3 मीटर तक पहुंचाने का ट्रायल सफल

डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने रविवार सुबह स्पैडेक्स (SpaDeX ) मिशन को लेकर बड़ा अपडेट दिया। इसरो ने बताया कि दोनों सेटेलाइट्स के बीच की दूरी को 15 मीटर तक और आगे 3 मीटर तक पहुंचाने का ट्रायल अटेम्प्ट सफल रहा है। अब अंतरिक्षयानों को सुरक्षित दूरी पर वापस ले जाया गया है। इस ट्रायल अटेम्प्ट के डेटा का और अधिक विश्लेषण करने के बाद डॉकिंग की प्रक्रिया जाएगी।

ISRO ने बताया कि फिलहाल डॉकिंग की प्रक्रिया रोक दी गई है। अब डेटा विश्लेषण के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा। इसरो के सूत्रों के मुताबिक, इसमें लंबा वक्त लग सकता है।

क्या है SpaDeX मिशन?

SpaDeX मिशन में दो सैटेलाइट हैं। पहला चेसर और दूसरा टारगेट।

चेसर सैटेलाइट टारगेट को पकड़ेगा। उससे डॉकिंग करेगा।

इसके अलावा इसमें एक महत्वपूर्ण टेस्ट और हो सकता है। सैटेलाइट से एक रोबोटिक आर्म निकले हैं, जो हुक के जरिए यानी टेथर्ड तरीके से टारगेट को अपनी ओर खींचेगा।

ये टारगेट अलग क्यूबसैट हो सकता है। इस प्रयोग से फ्यूचर में इसरो को ऑर्बिट छोड़ अलग दिशा में जा रहे सैटेलाइट को वापस कक्षा में लाने की तकनीक मिल जाएगी।

साथ ही ऑर्बिट में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग का ऑप्शन भी खुल जाएगा।

Spadex मिशन में दो अलग-अलग स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़कर दिखाया जाएगा।

क्या है डॉकिंग की प्रक्रिया?

स्पेस डॉकिंग में दो सैटेलाइट्स एक-दूसरे के बहुत करीब आते हैं और एक साथ जुड़ जाते हैं।

यह एक जटिल तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे खासतौर पर अंतरिक्ष अभियानों में इस्तेमाल किया जाता है।

डॉकिंग का मुख्य उद्देश्य 2 उपग्रहों को एक-दूसरे से जोड़कर डेटा शेयर करना, पावर सोर्सेज को जोड़ना या किसी विशेष मिशन को अंजाम देना होता है।

स्पेस डॉकिंग के दौरान एक अंतरिक्ष यान को दूसरे यान के पास लाकर उसे नियंत्रित तरीके से जोड़ना पड़ता है, ताकि कोई नुकसान न हो।

अंतरिक्ष अन्वेषण में नई साझेदारी: इसरो को यूरोप में मिला एक मजबूत सहयोगी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने मानव अंतरिक्ष अन्वेषण को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक नया सहयोग स्थापित किया है। दोनों एजेंसियों ने अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, मिशन कार्यान्वयन और अंतरिक्ष में विभिन्न प्रकार के अनुसंधान प्रयोगों पर सहयोग करने के लिए शनिवार को एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ और ईएसए के महानिदेशक जोसेफ एशबैकर द्वारा हस्ताक्षरित यह समझौता मानव अंतरिक्ष उड़ान पर केंद्रित कई संयुक्त गतिविधियों की नींव रखता है। विशेष रूप से, यह समझौता अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, अंतरिक्ष प्रयोगों के विकास और एकीकरण, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर ईएसए सुविधाओं का उपयोग, मानव और जैव चिकित्सा अनुसंधान, साथ ही संयुक्त शैक्षिक और आउटरीच कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों को कवर करेगा। नए समझौते के तहत पहली प्रमुख परियोजनाओं में से एक एक्सिओम-4 मिशन होगा, जिसे इसरो के गगनयात्री अंतरिक्ष यात्री और ईएसए अंतरिक्ष यात्री दोनों के साथ लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन के हिस्से के रूप में, दोनों एजेंसियाँ ISS पर भारतीय प्रधान अन्वेषकों द्वारा प्रस्तावित प्रयोगों की एक श्रृंखला को लागू करने के लिए मिलकर काम करेंगी। इसके अतिरिक्त, ISRO और ESA, ESA के मानव शारीरिक अध्ययनों, प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों और सार्वजनिक आउटरीच गतिविधियों में आगे के सहयोग की संभावनाएँ तलाशेंगे।

मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए ISRO का रोडमैप

हस्ताक्षर के बाद की टिप्पणियों में, सोमनाथ ने मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए ISRO के रोडमैप पर प्रकाश डाला, जिसमें अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए एजेंसी के दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर जोर दिया गया। उन्होंने भारत के आगामी स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की हाल ही में हुई स्वीकृति की ओर भी इशारा किया, जो विभिन्न मानव अंतरिक्ष उड़ान प्लेटफार्मों के बीच अंतर-संचालन को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।

एशबैकर ने दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच संबंधों को मजबूत करने में हुई प्रगति के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने ESA परिषद को संबोधित करने के लिए सोमनाथ को धन्यवाद दिया और अंतरिक्ष अन्वेषण में भविष्य के सहयोग के लिए एक ठोस रूपरेखा के रूप में समझौते की प्रशंसा की।

इसरो और ईएसए दोनों नेताओं ने एक्सिओम-4 मिशन पर अब तक की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया और मानव अंतरिक्ष उड़ान के क्षेत्र में संयुक्त प्रयासों को जारी रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। दोनों एजेंसियों के बीच साझेदारी से आने वाले वर्षों में वैज्ञानिक अनुसंधान, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उन्नति और वैश्विक सहयोग के लिए नए दरवाजे खुलने की उम्मीद है।

Google Maps ने तो दे दिया धोखा, इस इंडियन नेविगेशन ऐप को करें ट्राई

हाल ही में हुई एक दुखद घटना ने गूगल मैप्स की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. गुरुग्राम से बरेली जा रही एक कार ने गूगल मैप्स के जरिए रास्ता चुना और आधे-अधूरे पुल पर चढ़ गई, जिससे कार रामगंगा नदी में गिर गई और तीन लोगों की जान चली गई. इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या गूगल मैप्स पूरी तरह से सुरक्षित है और सही रास्ता दिखाता है? क्या भारत के लोकल नेविगेशन ऐप्स इस मामले में बेहतर साबित हो सकते हैं?

ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां गूगल मैप्स ने लोगों का गलत रास्ता दिखाया. इससे उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा, और कुछ मामलों में तो लोगों की जान ही चली गई. आजकल कहीं जाने के लिए नेविगेशन ऐप की तो बहुत जरूरत होती है, तो क्या हम गूगल मैप्स पर ही निर्भर रहें या किसी इंडियन नेविगेशन ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं? मार्केट में एक इंडियन ऐप है, जो आपको बेहतर नेविगेशन सर्विस दे सकती है.

Mappls: इंडियन नेविगेशन ऐप

भारत की पॉपुलर नेविगेशन ऐप ‘Mappls Mapmyindia’ ऐप आपको बेहतर नेविगेशन सर्विस दे सकती है. गूगल मैप्स की जगह आप चाहें तो इस ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं. आइए मैपल्स मैपइंडिया ऐप के फीचर्स के बारे में जानते हैं.

भारतीय सड़कों की गहरी समझ: Mappls Mapmyindia, भारत की सड़कों और ट्रैफिक की बेहतर समझ रखता है. भारत में नए-नए हाईवे और एक्सप्रेसवे बन रहे हैं. इसके अलावा लोकल रोड और गलियों का भी डेवलमेंट चलता रहता है. इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए ये ऐप अपने डेटाबेस को अपडेट करता रहता है.

लोकल लैंग्वेज सपोर्ट: यह ऐप कई भारतीय भाषाओं में काम करता है. इससे भारत के अलग-अलग राज्यों और इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए इसका इस्तेमाल करना काफी आसान हो जाता है.

ऑफलाइन मैप्स: इस ऐप में आप ऑफलाइन मैप्स डाउनलोड कर सकते हैं, जिससे इंटरनेट कनेक्शन न होने पर भी आप आसानी से नेविगेट कर सकते हैं.

ज्यादा डिटेल्ड जानकारी: यह ऐप न केवल मेन रोड बल्कि छोटी गलियों और गली-मुहल्लों की भी डिटेल्ड जानकारी देता है.

इंडियन यूजर्स के लिए डिजाइन: Mappls Mapmyindia को भारतीय यूजर्स की जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है, जैसे कि सड़कों के गड्ढे, रोड कंस्ट्रक्शन का काम, टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप और एटीएम की जानकारी इस ऐप पर मिलती रहती है.

Mappls ऐप इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम ‘नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन’ (NavIC) के जरिए काम करता है. अगर आप गूगल मैप्स के बजाय किसी और ऐप का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो रियल टाइम डेटा अपडेट की खूबी वाले इस नेविगेशन ऐप को ट्राई कर सकते हैं.

CSC India and DevElet’s National Teaching Excellence Awards 2024: Celebrating India’s Distinguished Educators on National Education Day

In a fitting tribute on National Education Day,  the Council for Skills and Competencies (CSC India) and DevElet came together to host the National Teaching Excellence Awards 2024, celebrating outstanding educators who have had a transformative impact on India’s youth. This landmark event, organized in partnership with CSC India and DevElet, brought together luminaries from academia, industry leaders, and policymakers from across the nation, reinforcing the critical role of quality education in nation-building.

The ceremony was graced by Chief Guest Dr. G. Jaya Suma, Registrar and Professor at JNTU-GV, Vizianagaram, whose keynote address highlighted the indelible contributions of educators to society, paying homage to Maulana Abul Kalam Azad’s vision for an educated nation. Guest of Eminence Dr. R. Sujatha, Principal of Entrepreneur Education at the Wadhwani Entrepreneurship Network, offered insights on fostering entrepreneurial skills among students, while Guest of Honor Shri Krishna Chippalkatti, Joint Director and Chief Investigator in the IOT Group at C-DAC Bengaluru and FS Prime, emphasized the significance of integrating technology into education to prepare future-ready students.

The awards spanned multiple categories, recognizing excellence in areas such as Teaching, Leadership, Innovative Pedagogy, Curriculum Innovation, Research, and Professional Development. Recipients from various educational institutions nationwide were celebrated for their dedication to advancing educational standards and pioneering innovative teaching methods in alignment with India’s National Education Policy 2020.

Key Honorees:

Honorary Leadership for Academic Achievement:

  • Dr. VSK Reddy, Vice Chancellor, Malla Reddy University, Hyderabad – for his contributions to transformative education.
  • Dr. PHV Sesha Talpa Sai, Director - R&D, IQAC & Startups, Malla Reddy University, Hyderabad – for his exemplary academic leadership.
  • Dr. Srinivasa Rao, Principal, Malla Reddy College of Engineering & Technology, Hyderabad – for his visionary leadership in education.

Best Researcher Award:

  • Dr. T. Kishore Kumar, Professor & Head, Centre for Training and Learning, National Institute of Technology, Warangal.
  • Dr. A.N. Sathyanarayana, former Group Head of the Antenna Maintenance Group at NRSC-ISRO and Professor at Sreenidhi Institute of Science & Technology, Hyderabad.
  • Dr. N. Balaji, Professor and Director of Legal & Government Affairs, Jawaharlal Nehru Technological University, Kakinada.

Awards were also presented to distinguished faculty from prestigious institutions such as the Indian Institute of Science, Bangalore; Srinivas University, Mangalore; CHRIST University, Bangalore; NIT Warangal; JNTU campuses in Kakinada and Anantapur; Sri Sri University, Cuttack; and numerous other esteemed institutions across the country.

Shared Vision and Commitment: The organizers, CSC India and DevElet, reiterated their shared commitment to bridging academia and industry. Known for pioneering digital learning and AI in education, DevElet has empowered thousands of students and professionals, while CSC India, a non-profit industry body, actively drives skill development and employment opportunities through strategic collaborations and initiatives.

The National Teaching Excellence Awards 2024 underscored CSC India and DevElet’s ongoing mission to support India’s educators, equipping students with the skills they need to thrive in a rapidly evolving world. In closing, Mr. Kishan Tiwari, CEO of DevElet LLP, and Mr. Y. Rammohan Rao, Senior Consultant at CSC India, expressed their heartfelt gratitude to all attendees, underscoring their dedication to recognizing and honoring excellence in education.

CSC India and DevElet’s National Teaching Excellence Awards 2024: Celebrating India’s Distinguished Educators on National Education Day

In a fitting tribute on National Education Day,  the Council for Skills and Competencies (CSC India) and DevElet came together to host the National Teaching Excellence Awards 2024, celebrating outstanding educators who have had a transformative impact on India’s youth. This landmark event, organized in partnership with CSC India and DevElet, brought together luminaries from academia, industry leaders, and policymakers from across the nation, reinforcing the critical role of quality education in nation-building.

The ceremony was graced by Chief Guest Dr. G. Jaya Suma, Registrar and Professor at JNTU-GV, Vizianagaram, whose keynote address highlighted the indelible contributions of educators to society, paying homage to Maulana Abul Kalam Azad’s vision for an educated nation. Guest of Eminence Dr. R. Sujatha, Principal of Entrepreneur Education at the Wadhwani Entrepreneurship Network, offered insights on fostering entrepreneurial skills among students, while Guest of Honor Shri Krishna Chippalkatti, Joint Director and Chief Investigator in the IOT Group at C-DAC Bengaluru and FS Prime, emphasized the significance of integrating technology into education to prepare future-ready students.

The awards spanned multiple categories, recognizing excellence in areas such as Teaching, Leadership, Innovative Pedagogy, Curriculum Innovation, Research, and Professional Development. Recipients from various educational institutions nationwide were celebrated for their dedication to advancing educational standards and pioneering innovative teaching methods in alignment with India’s National Education Policy 2020.

Key Honorees:

Honorary Leadership for Academic Achievement:

  • Dr. VSK Reddy, Vice Chancellor, Malla Reddy University, Hyderabad – for his contributions to transformative education.
  • Dr. PHV Sesha Talpa Sai, Director - R&D, IQAC & Startups, Malla Reddy University, Hyderabad – for his exemplary academic leadership.
  • Dr. Srinivasa Rao, Principal, Malla Reddy College of Engineering & Technology, Hyderabad – for his visionary leadership in education.

Best Researcher Award:

  • Dr. T. Kishore Kumar, Professor & Head, Centre for Training and Learning, National Institute of Technology, Warangal.
  • Dr. A.N. Sathyanarayana, former Group Head of the Antenna Maintenance Group at NRSC-ISRO and Professor at Sreenidhi Institute of Science & Technology, Hyderabad.
  • Dr. N. Balaji, Professor and Director of Legal & Government Affairs, Jawaharlal Nehru Technological University, Kakinada.

Awards were also presented to distinguished faculty from prestigious institutions such as the Indian Institute of Science, Bangalore; Srinivas University, Mangalore; CHRIST University, Bangalore; NIT Warangal; JNTU campuses in Kakinada and Anantapur; Sri Sri University, Cuttack; and numerous other esteemed institutions across the country.

Shared Vision and Commitment: The organizers, CSC India and DevElet, reiterated their shared commitment to bridging academia and industry. Known for pioneering digital learning and AI in education, DevElet has empowered thousands of students and professionals, while CSC India, a non-profit industry body, actively drives skill development and employment opportunities through strategic collaborations and initiatives.

The National Teaching Excellence Awards 2024 underscored CSC India and DevElet’s ongoing mission to support India’s educators, equipping students with the skills they need to thrive in a rapidly evolving world. In closing, Mr. Kishan Tiwari, CEO of DevElet LLP, and Mr. Y. Rammohan Rao, Senior Consultant at CSC India, expressed their heartfelt gratitude to all attendees, underscoring their dedication to recognizing and honoring excellence in education.


अलगे साल लॉन्च होगा दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट, आकाश से पृथ्वी पर होगी पैनी नजर

#isrowilllaunchtheworldsmostpowerfulprotectorsatellitenisar

दुनिया का सबसे दमदार राडार, जिसकी पृथ्वी पर होगी पैनी नजर, धरती की हर हलचल से गहरे सागर की गतिविधियों तक, सब उसकी नजरों में होगा। बता हो रही है नासा इसरो सेंथिटिक एपर्चर राडार यानी निसार की। यह सैटेलाइट अगले साल की शुरुआत में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और यह पूरी दुनिया में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, जंगल की आग, चक्रवाती तूफान, हरिकेन, बारिश, ज्वालामुखी, और टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल पर नजर रखेगा। यह किसी भी आपदा के होने से पहले अलर्ट करेगा और इससे लोगों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

नासा और इसरो का ज्वाइंट प्रोजेक्ट

दुनिया की दो सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसी का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है निसार। नासा और इसरो इस प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे है। ये डबल फ्रीक्वैंसी रडार है। जिसे दो हिस्से में तैयार किया जा रहा है। सेटेलाइट का प्रमुख पे-लोड एल-बैंड जो 24 सेंटीमीटर वेबलैंथ का होगा। उसे नासा तैयार कर रहा है। वहीं 12 सेंटीमीटर वेबलेंथ का एस-बैंड इसरो तैयार कर रहा है। इसरो रडार की इमेंजिंग प्रणाली का भी विकास कर रही है। इसके अलावा माइक्रोवब और ऑप्टिकल सेंसर भी इसरो ही तैयार कर रही है।

दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट

ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 120 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 1 बिलिय़न ड़ॉलर लगा रही है। स्पेस में ऑपरेशनल हो जाने के बाद ये उपग्रह अपने उन्नत राडार से इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए पूरी धरती की हाई क्वालिटी इमेंज लेगा। ये धरती पर होने वाली हर तरह की हलचल का पता लगा सकेगा। आर्कटिक और अंटार्कटिंक एरिया में जो बर्फ की चादरें पिघल रही है, अर्थ की सिसनिक प्लेटों में हो रही गतिविधि का पता चल सकेगा, जिससे भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका जा सकेगा। ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्र और सागर की गहराई की हर जानकारी देगा। इसकी मदद से आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम किए जा सकेंगे।

अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

इस खास खोज के लिए, आकाश से धरती की निगरानी के लिए, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुना है। निसार के जरिए भारत और अमेरिका दुनिया को खास देने वाले हैं। शायद वो चीज जो मानवता के विकास में मददगार साबित हो सकती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

भारत की तरक्की देश यूएस भी हुआ हैरान

अमेरिका खुद चलकर आया भारत से मदद मांगने। शायद इधर कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। जिसकी आशा अमेरिका ने कभी नहीं की होगी भारत ने वो कर दिखाया।

हालांकि, बात बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। लेकिन भारत ने दुनियाभर का भरोसा जीता। बात 1992 की है जब अमेरिका में जॉज बुश सीनियर की सरकार थी। तब रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेकनॉलोजी देने वाला था। लेकिन अमेरिका ने इसपर रोक लग दी। क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल रॉकेट में होता है। उस वक्त ये तकनीक सिर्फ अमेरिका और रशिया के पास थी। अमेरिका नहीं चाहता था इस दौड़ में कोई तीसरा खड़ा हो। भारत मिसाइल बनाने में कामयाब हो। लेकिन भारत ने अपने भरोसे के बल पर और 20 साल की मेहनत के बाद वो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफल हुआ। ये वही क्रायोजेनिक इंजन है जो जीएसएलवी में लगता है और इसी क्रायोजेनिक इंजन से निसार को भी लॉन्च किया जाना है।

यूं बढ़ी नासा की इसरो में दिलचस्पी

नासा दुनिया की सबसे विकसित स्पेस एजेंसी है। बावजूद नासा ने इसरो में दिलचस्पी दिखायी। इसकी शुरूआत 2012 में हुई, जब इसरो ने भारत का पहला स्वदेशी राडार इमेंजिंग सेटेलाइट लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात हो या दिन मौसम कैसा भी हो धरती के सतह की तस्वीरें ली जा सकती है। इसके बाद ही नासा ने भारत के साथ हाथ मिलाकर ये प्रोजेक्ट शुरू करने की इच्छा जतायी। इस मामले में करीब 2 साल की तक बातचीत के बाद निसार सेटेलाइट को लेकर सहमति बनी। अब दोनों देश मिलकर विज्ञान और प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल मानव हित में करेंगे।