त्याग से तपस्या की ओर जाने का मार्ग:-राघव ऋषि जी
खजनी गोरखपुर।जीव यदि प्रेम से प्रभु को वंदन करता है तो वे उसके बंधन में आते है। परीक्षित को श्राप हुआ अत: उसे भयमुक्त करने के लिए शुकदेव जी आते है। प्रभु से मिलन की आतुरता के कारण ही सन्त मिलन होता है। जीव जब परमात्मा से मिलने के लिए आतुर होता है तब प्रभु की कृपा से सन्त मिलते हैं।
संसार में रहते हुए हमें संत अर्थात सज्जनता की वृत्ति जागृत करनी चाहिए।
क्षेत्र के गांव धोबौली गहरवार (माल्हनपार) में ऋषि सेवा समिति द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से पूज्य राघव ऋषि ने कहा कि जन्म मृत्यु-जरा,व्याधि के दुःखों का विचार करेंगे तो वैराग्य उत्पन्न होगा और पाप छूटेंगे। निद्रा और विलास में रात्रि गुजर जाती है और धन प्राप्ति तथा कुटुम्ब पालन में दिन गुजर जाते हैं।
कपिल भगवान ने अपनी माता देवहुति को उपदेश देते हुए कहा था कि जो समय बीत गया उसका विचार मत करो वर्तमान को सुधारो ताकि भविष्य सँवर सके। जो सोया रहता है वह लक्ष्य से भटक जाता है। जागे हुए को ही कन्हैया मिलते हैं। ध्रुव-चरित्र की चर्चा करते हुए बताया की यह जीव ही उत्तानपाद है इसकी दो पत्नियां हैं 'सुरुचि और सुनीति। मनुष्य को भी सुरुचि अच्छी लगती है। रूचि का मतलब है मनपसन्द इच्छानुसार सुनीति से ध्रुव मिलते हैं ध्रुव अर्थात अविनाशी।
जब तक नारद रूपी संत हमें नहीं मिलते तब तक प्रभु की प्राप्ति नहीं होती। संत ही कंत अर्थात प्रभु से मिलाते हैं। भगवान ने ध्रुव को दर्शन दिया तो उत्तानपाद भी स्वागत के लिए दौड़ता है। यदि हम परमात्मा के पीछे लगेंगे तो संसार हमारे पीछे लग जायेगा। उन्होंने कहा कि बाल्यावस्था से जो भगवान की भक्ति करता है उसे प्रभु कृपा अवश्य मिलती है।
जप से पाप जलते है
जप के बिना जीवन नहीं सुधरता
''जकारो जन्मविच्छेद: पकारो पापनाशक:'' जप में दो अक्षर है ज और प पूर्व जन्म के संचित पापों को जलाता है। मनुष्य को प्रतिदिन अपने इष्टदेवता और इष्टदेवी महालक्ष्मी का जप करना चाहिए। साथ ही जो भी कर्म या व्यापार करे वह प्रभु को अर्पण करे इससे कर्म करने का अभिमान नष्ट होता है। और भगवान उसका अनन्त गुना वापस कर जीव को सुखी करते हैं।
जड़भरत के प्रसंग बताते हुए कहा कि भगवान ने 6 वस्तुओं में माया रखी है जिनमें मन फँसता रहता है। ऐ भोजन,धन,वस्त्र,स्त्री,घर और पुस्तक हैं। भरत जी के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है,वे राज्य छोड़कर वन में तपस्या करने आए परन्तु एक मृगबाल से स्नेह हो गया जिसके कारण हरिचिंतन घटता गया और उनका हरिण चिंतन बढ़ता गया |
संसार समुद्र है जिसमें विषय और वासना रूपी जल है,जीव शरीर रूपी नौका पर सवार होकर यात्रा में लगा हुआ है। जल पर रहने से नौका तैरती रहेगी,यदि नौका में पानी आ जाये तो वह डूब जाएगी। इसी प्रकार संसार में रहो किन्तु उसे अपने भीतर मत रहने दो।
विषयों का चिंतन करने से आत्मशक्ति नष्ट होती है,भरत जी बहुत कम बोलते थे सृष्टि में ईश्वर ने हर एक काम के लिए दो इन्द्रियाँ दी हैं। एक आँख से भी देखा जा सकता है फिर भी दो आँखें दी हैं। किन्तु जीभ एक ही है और उसे दो के काम करने पड़ते हैं बोलने और स्वाद खाने का अत: जीभ पर अधिक अंकुश की आवश्यकता होती है।
व्यासपीठ का पूजन कथा के मुख्य यजमान नरेन्द्र सिंह ने सपरिवार किया। संगीतमय कथा में सौरभ ऋषि ने''तुम ढूंढो मुझे गोपाल'' भजन गाते हुए उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध आनन्द विभोर कर दिया। इस दौरान बहुत से लोग आत्ममुग्ध हो कर नृत्य करने लगे।
Nov 23 2023, 20:17