मन मंथन से ही परमानंद की प्राप्ति- राघव ऋषि
खजनी गोरखपुर।मंगलाचरण की कथा में व्यास पीठ से राघव ऋषि ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि कथा के माध्यम से सच्चिदानंद प्रभु की प्राप्ति होती है। जो आनंद हमारे भीतर है,उसे जीवन में किस प्रकार प्रकट करें यही श्रीमद्भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है,पर वह दिखाई नहीं देता किंतु मंथन करने पर मिल जाता है।उसी प्रकार मानव मन का मंथन करके आनंद प्रकट करना ही मानव जीवन का लक्ष्य है।
परमात्मा से मिलना उनकी कृपा अनुकंपा प्राप्त करने में ही जीवन की सफलता है। जिसने प्रभु को प्राप्त किया उसी का जीवन सफल है।
उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत आदर्श दिव्य ग्रन्थ है। गृहस्थ में रहकर के भगवान को कैसे प्राप्त करें इस शास्त्र में सिखाया गया है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा घर गृहस्थी का काम करते हुए भी भगवान को प्राप्त किया।
एक योगी को जो आनंद समाधी में मिलती है वही आनंद आप घर में रहकर भी प्राप्त कर सकते हैं।
कथाक्रम को आगे बढ़ते हुए पूज्य राघव ऋषि ने कहा कि भागवत की रचना व्यासजी ने की है,किंतु इसका लेखन श्रीगणेश जी ने किया उन्होंने कथा का माहात्म्य बताते हुए कहा की जिस समय शुकदेव जी परीक्षित जी को कथा सुना रहे थे।
उसी समय स्वर्ग से देवता अमृत भरा कलश लेकर प्रकट हुए और उन्होंने कहा की स्वर्ग का अमृत हम राजा को देते हैं, जिसे पीकर वो अमर हो जायेंगे। बदले में कथामृत आप हमको प्रदान करें शुकदेव जी ने राजन से पूछा तुम्हें कौन सा अमृत पीना है। उत्तर में राजा ने कहा की स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्यों का क्षय होता है। परन्तु कथामृत पीने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश होता है, और जीव पवित्र हो जाता है अतः मैं इस कथामृत का ही पान करूंगा मनुष्य के भीतर ज्ञान और वैराग्य जो सोये हुए हैं।
उन्हें जागृत करने के लिए ही यह कथा है इस हृदयरूपी वृन्दावन में कभी-कभी वैराग्य जागृत होता है परन्तु स्थाई नहीं रहता उसे स्थायित्व इस कथा से मिलता है।
पहले दिन की कथा बताया कि तुंगभद्रा नदी के किनारे आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहते थे, उनकी पत्नी धुन्धुली क्रूर स्वाभाव की थी। पुत्रहीन होने कारण एक दिन आत्महत्या करने के लिए जाते हैं।
मनुष्य शरीर ही तुंगभद्रा है,इसमें जीवात्मा रुपी आत्मदेव निवास करता है। तर्क कुतर्क करने वाली बुद्धि ही धुन्धुली है। किसी संत की कृपा से विवेकरूपी पुत्र का जन्म होता है, जो जीव का कल्याण करता है। धुन्धुली का पुत्र धुंधकारी अनाचारी था जो व्यक्ति अनाचारी होता है वह क्रमशः रूप,रास,गंध, शब्द एवं स्पर्श रुपी पांच वेश्याओं से फँस जाता है,जो इस जीवात्मा की हत्या कर देती हैं जिससे वह प्रेत योनि में चला जाता है।
उसे श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से मुक्ति मिलती है।कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।इससे पूर्व बांसगांव ऋषि सेवा समिति माल्हनपार के तत्वावधान में क्षेत्र के धोबौली गहरवार गांव में चल रही भागवत कथा के पहले दिन कथा के भव्य शुभारंभ में अनेक श्रद्धालु,गणमान्य और मुख्य यजमान नरेंद्र सिंह नूर सिंह ने भागवत सहित व्यासपीठ आसीन पूज्य श्री राघव ऋषिजी का सविधि पूजन किया।
Nov 23 2023, 13:25