छठ महापर्व पर रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की गई
नितेश श्रीवास्तव
भदोही। मन में श्रद्धा और भक्ति का उल्लास और छठी मइया से परिवार के सुख-समृद्धि की कामना को लेकर व्रती महिलाओं ने रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। महिलाओं की अगाध श्रद्धा और कठोर तप वाले पर्व पर घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा।
निराजल व्रत रखने वाली महिलाओं ने घुटने भर पानी में खड़े होकर अस्त होते भगवान भास्कर को जल अर्पित किया तो पूरा परिसर छठी मइया के जयकारे से गूंज उठा। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा को लेकर रविवार की दोपहर बाद से ही लोग गाजे-बाजे के साथ नदी और तालाबों पर पहुंचने लगे।
दिव्य प्रकाश और छठी मइया के गीतों ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। छठी मइया के पारंपरिक और नए लोक गीतों को गाती-गुनगुनाती महिलाए हाथों में दीप लिए घाटों पर पहुंची। पीछे-पीछे सिर पर दउरा और कांधे पर ईख लेकर चल रहे पुरुष भी छठी मइया की भक्ति में तल्लीन दिखे।
तेजस्वी पुत्र और परिवार की सुख समृद्धि की कामना को लेकर नगर से लेकर गांव-देहात तक महिलाओं ने निराजल व्रत रखा था।जिले के रामपुर, सीतामढ़ी, धनतुलसी घाट, कलिजरा, भोगांव, पारीपुर, फुलौरी, इटहरा, बेरवा पहाड़पुर, पुरवां, जगन्नाथपुर सहित ज्ञानसरोवर और अन्य ताल तलैया पर चार बजे के बाद से ही व्रती महिलाओं की भीड़ जुटने लगी।
शाम होते-होते घाटों पर पैर रखने की जगह नहीं बची। अपनी-अपनी वेदियों के सामने पूजन सामग्री रख व्रती महिलाएं नदी में पश्चिम मुख किए खड़ी थी, तो साथ के लोग घाट पर थे। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो सभी के हाथ आगे बढ़ते गए। व्रती महिलाओं के साथ परिवार के अन्य सदस्यों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया।
वेदियों पर पूजन-अर्चन के बाद दीप जलाए गए। दीप जलते नदी के घाट जगमगा उठे। विद्युत झालरों से सजे घाट दुधिया रोशनी से नहा उठे। इस दौरान घाटों पर भीड़ पर नजर रखने के लिए पुलिस के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।मान्यता के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है।
व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशयों के किनारे आराधना करते हैं. इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है. वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है. छठ मईया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि ये व्रत संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए रखा जाता है।
Nov 20 2023, 11:43