सुविधाओं की कमी से जूझ रहा कंबल कारखान
भदोही। सत्तर के दशक में सेना और रेलवे को कंबल उपलब्ध कराने वाला गोपीगंज पड़ाव स्थित कंबल कारखाना अपनी पहचान खो दिया है। कर्मचारियों और कच्चेमाल की कमी व बेहतर मार्केटिंग न होने कारण कारखाने की उत्पादन क्षमता घट चुकी है। कारखाने में साल भर में पांच हजार कंबल ही तैयार हो पाते हैं। इससे सलाना 33 लाख की आमदनी होती है।
मनैजर के मुताबिक यहां के कंबल का एकलौता बड़ा खरीदार खादी ग्रामोद्योग ही रह गया है।
कंबल उत्पादन के क्षेत्र में अलग पहचान कायम रखने वाले कंबल कारखाना की स्थापना 1960 में हुई थी। उच्चकोटि के कंबल की आपूर्ति सेना के जवानों और रेलवे को की जाती थी। इसके अलावा स्वास्थ्य महकमा भी यहां के कंबल खरीदता था। धनाभाव के चलते 16 मार्च 2010 को अचानक कंबल कारखाना बंद कर दिया गया।
यहां कार्यरत 23 बुनकरों को भुगतान कर छुट्टी दे दी गई। दोबारा कंबल कारखाना शुरू कराने के लिए जिला खादी ग्राम उद्योग दशकों प्रयासरत रहा। शासन को लगातार प्रस्ताव भेजता रहा। 2017 में सूबे में भाजपा की सरकार बनने पर प्रयास पर रंग चढ़ा। 25 अगस्त 2017 को कारखाने को दोबारा चालू किया गया, हालांकि जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वह आज तक नहीं मिल सकी हैं। कारखाने में कच्चे माल की कमी के कारण 2019 में कई महीने तक काम बंद रहा।
मामला आला अधिकारियों तक पहुंचा तो कारखाने में काम शुरू हुआ। यहां जरूरी सुविधाओं का टोटा है। आठ से 10 कर्मचारियों के पद होने के बाद भी मैनेजर एवं आंकिक के नाम पर मात्र दो कर्मचारी हैं। 10 ठेका कर्मियों के सहारे कारखाने का संचालन किया जा रहा है। कारखाने में सात लूम है। इनमें से चार ही लूम चल रहे हैं। 10 से 12 के बीच कंबल तैयार हो पा रहे हैं।कंबल कारखाने में उम्मीद के मुताबिक उत्पादन नहीं हो रहा है।
खाते से यहां कार्यरत कर्मियों के मानदेय एवं अन्य कर्मचारियों को प्रति माह एक लाख से अधिक वेतन और मानदेय भुगतान किया जाता है। इससे सरकार को हर महीने एक से डेढ़ लाख की हानि होती है।
Nov 09 2023, 14:34