भारतीय दंड संहिता 1862 पारित होने की 161 वीं वर्षगांठ पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया
आज दिनांक 6 अक्टूबर 2023 को भारतीय दंड संहिता 1862 पारित होने की 161 वीं वर्षगांठ पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया
,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड डॉ शाहनवाज अली , डॉ अमित कुमार लोहिया, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक डॉ अमानुल हक, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि भारतीय दंड संहिता भारत गणराज्य का आधिकारिक आपराधिक कोड है। यह आपराधिक कानून के सभी पहलुओं को कवर करने के उद्देश्य से एक पूर्ण कोड है।
यह 1862 में सभी ब्रिटिश प्रेसीडेंसी में लागू हुआ, हालांकि यह उन देशी रियासतों पर लागू नहीं हुआ, जिनकी अपनी अदालतें और कानूनी प्रणालियाँ थीं। आज ही के दिन 6 अक्टूबर 1862को इसे कानून के तोर पर पारित किया गया था।
भारतीय दंड संहिता का पहला मसौदा थॉमस बबिंगटन मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया था। मसौदा इंग्लैंड के कानून के सरल संहिताकरण पर आधारित था, जबकि एक ही समय में नेपोलियन संहिता और 1825 के लुइसियाना नागरिक संहिता से तत्व लिए गए थे।संहिता का पहला मसौदा वर्ष 1837 में गवर्नर-जनरल के समक्ष परिषद में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन बाद के संशोधनों में दो दशक लग गए। संहिता का पूर्ण प्रारूपण 1850 में तैयार किया गया था ।
इस के बाद 1856 में विधान परिषद को प्रस्तुत किया गया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के कारण इसे ब्रिटिश भारत की क़ानून की किताब में रखने में देरी हुई।
कोड 1 जनवरी, 1860 को बार्न्स पीकॉक द्वारा कई संशोधनों के बाद लागू हुआ, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम करने के लिए था।
अंग्रेजों के आगमन से पहले, भारत में प्रचलित दंड कानून, अधिकांश भाग के लिए, मध्य कालीन भारती कानून थे। अपने प्रशासन के पहले कुछ वर्षों के लिए, ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश के आपराधिक कानून में हस्तक्षेप नहीं किया ।1772 में, लार्ड वॉरेन हेस्टिंग्स के प्रशासन के दौरान, ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार हस्तक्षेप किया था, इस के बाद 1861 तक, समय-समय पर, ब्रिटिश सरकार द्वारा मध्यकालीन भारतीय कानून में बदलाव किया था, फिर भी 1862 तक, जब भारतीय दंड संहिता लागू हुई, तो मध्य कालीन कानून निस्संदेह प्रेसीडेंसी शहरों को छोड़कर आपराधिक कानून का आधार था
। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ मुकेश कुमार अधिवक्ता मिनहाज उल हक अधिवक्ता ने संयुक्त रूप से कहा कि भारतीय दंड संहिता विगत 161 वर्षों से भारत में न्याय का आधार साबित हो रहा है।
Oct 07 2023, 16:29