प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय ने संविधान को बदलने का दिया सुझाव, विवाद बढ़ा तो ईएसी-पीएम ने किया किनारा, कहा-सरकार और परिषद से संब
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय ने भारतीय संविधान को बदलने का सुझाव दिया हैं। बिबेक देबरॉय ने एक अख़बार में नए संविधान की मांग करते हुए लेख लिखा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसीपीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा नए संविधान पर लिखे गए लेख पर विवाद तय था। विवाद बढ़ा तो प्रधानमंत्री ने सफ़ाई पेश करते हुए ख़ुद को और केंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया।
दरअसल, 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रकाशित देबरॉय ने अपनी लेख में कहा था कि हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देने की जरूरत है। इसपर विपक्ष भड़क उठा। उसने आरोप लगाया कि सरकार ने संविधान को खत्म करने का बिगुल फूंक दिया है, जिसके प्रमुख शिल्पी डॉ. अंबेडकर थे।
बढ़ते विवाद को थामने के लिए अब प्रधानमंत्री की ईएसी ने लेख से खुद को अलग कर लिया है। उसका कहना है कि जो भी लिखा गया, वो बिबेक देबरॉय के व्यक्तिगत विचार थे। इसका परिषद और सरकार से कोई लेना देना नहीं है। गुरुवार को ईएएसी-पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, “डॉ बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वो किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता। बता दें कि ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।
क्या कहा है बिबेक देबरॉय
बिबेक देबरॉय का द मिंट में एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। इस आर्टिकल में लिखा कि मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर बेस्ड है। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन हुआ था, 2022 में इसकी रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं पर काम करने की जरूरत है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हम लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा। उन्होंने आगे लिखा है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?
भारत के वर्तमान संविधान को बताया औपनिवेशिक विरासत
देबरॉय ने लिखा था,अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था। इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर बार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया है कि इसकी 'बुनियादी संरचना' को बदला नहीं जा सकता है। भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र कुछ भी चाहता हो। जहाँ तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, अगर नया संविधान होगा तो ये नियम उस पर लागू नहीं होगा। देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज़ 17 साल होता है। भारत के वर्तमान संविधान को औपनिवेशिक विरासत बताते हुए उन्होंने लिखा, हमारा वर्तमान संविधान काफ़ी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इसका मतलब है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है।
Aug 18 2023, 16:20