1966 में मिज़ोरम में ऐसा क्या हुआ था की अपने ही देश में सरकार को करनी पड़ी बमबारी, जानें पूरी कहानी
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हाल ही में संपन्न हुए संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष ने केन्द्र सररकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए इंदिरा गांधी के दौर में हुई मिज़ोरम पर भारतीय वायु सेना की बमबारी का जिक्र किया। जिसके बाद बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने हैं। दोनों पक्ष की ओर से वार-पलटवार का दौर जारी है।ऐसा दावा किया जाता है कि बम बरसाने वाले फाइटर जेट के पायलट राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी थे। इस बीच बुधवार को कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने उनके पिता राजेश पायलट को लेकर किए किए गए भारतीय जनता पार्टी के दावे का करारा जवाब दिया है।सचिन पायलट ने बीजेपी के दावे को तथ्यहीन बताया है।
ऐसा माना जाता है कि मिज़ोरम में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई देश के भीतर किसी नागरिक इलाके में एयर फोर्स का पहला हवाई हमला था। हालांकि भारत सरकार ने उस वक़्त इन हमलों से इनकार किया था। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मिज़ोरम में 1966 में वास्तव में हुआ क्या? 1966 में मिजोरम में वायु सेना से बमबारी कराने का फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को क्यों लेना पड़ा?
मिजोरम में 28 फरवरी 1966 को भारतीय सुरक्षाबलों को बाहर निकालने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया गया था। इसका नाम था ‘ऑपरेशन जेरिको’। यह ऑपरेशन शुरू किया था मिजो नेशनल फ्रंट ने। यह वो दौर था जब ताशकंद में तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो चुका था। इसके ठीक 13 दिन बाद इंदिरा गांधी ने देश की कमान संभाली थी, लेकिन पीएम की कुर्सी संभालते ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मिजो नेशनल फ्रंट से निपटने की थी। 19 जनवरी, 1966 को इंदिरा गांधी देश की पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं और 5 मार्च को इंडियन एयरफोर्स के लड़ाकू विमान मिजोरम के सबसे प्रमुख शहर ऐजवाल (आइजॉल) पर मंडरा रहे थे। अचानक से उन विमानों से मशीनगन की गोलियां बरसने लगीं, पूरे शहर में अफरा-तफरी मच गई। अगले दिन वे विमान फिर आकाश में दिखे, लोगों में दहशत फैल गई। वे कुछ करते, उससे पहले ही एयरफोर्स के विमानों से बम बरसने लगे, कइयों की मौत हो गई। शहर के चार प्रमुख इलाके रिपब्लिक वेंग, हमेच्चे वेंग, डवपुई वेंग और छिंगा वेंग पूरी तरह इस बमबारी के चलते तबाह हो गए। आजादी के बाद का यह पहला और आखिरी मामला है, जब अपने ही देश की वायुसेना ने अपने ही देश के नागरिकों पर बमबारी की हो और यह इंदिरा गांधी के आदेश से हुआ।
विद्रोह कैसे शुरू हुआ
मिजो विद्रोह की जड़ असम राज्य से जुड़ी थी। मिजोरम के लोग असम प्रशासन के खिलाफ थे और एक अलग राज्य की मांग कर रहे थे। इंदिरा गांधी के पीएम बनने से ठीक तीन दिन पहले मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा ने इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो को पत्र लिखकर असम से जुड़े मिजोरम को अलग देश बनाने की इच्छा जाहिर की थी। लालडेंगा ने 28 फरवरी, 1966 को एक बड़े विद्रोह का ऐलान किया और 1 मार्च को मिजोरम को एक अलग देश घोषित कर दिया और उसके साथ ही 'ऑपरेशन' शुरू करके असम के सरकारी दफ्तरों कब्जा और सुरक्षा बलों पर हमला करना शुरू कर दिया।मिज़ो हिल्स के इलाके में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां 28 फरवरी, 1966 को शुरू हुईं। मिज़ो नेशनल फ्रंट के सशस्त्र बलों ने आइज़ोल, लुंगलेई, वैरेंग्टे, चॉन्ग्टे, छिमुलांग और अन्य जगहों पर सरकारी प्रतिष्ठानों पर एक साथ धावा बोला। लुंगलेई के तहसील कार्यालय में पहला हमला हुआ।एमएनएफ के लगभग एक हज़ार सशस्त्र लड़ाकों ने लुंगलेई में असम राइफल्स की चौकी पर हमला किया। 28 फरवरी और 1 मार्च, 1966 की दरमियानी रात को आइज़ोल के ट्रेज़री ऑफ़िस पर हमला किया गया। एमएनएफ के लड़ाकों ने वहां मौजूद नकदी, हथियार, गोला-बारूद ज़ब्त कर लिए।
उग्रवाद को दबाने के लिए भारतीय वायुसेना ने अपने ही देश में बम बरसाए
मिजो नेशनल फ्रंट का हमला रणनीतिक तौर पर इतना मजबूत था कि उसका मुकाबला ही नहीं किया जा सका।चंफाई में सैनिकों से हथियार लूट लिए गए। जवानों को बंधक बना लिया गया और आईजोल की मुख्य टेलीफोन एक्सचेंज को निशाना बनाया गया, ताकि दिल्ली तक जानकारी न पहुंचे।किसी तरह सूचना दिल्ली तक पहुंची, दो शहर मिजो नेशनल फ्रंट के कब्जे में थे, पहले हेलीकॉप्टर भेजे गए, ताकि सैनिक और हथियार पहुंचाए जा सकें, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। हालत ये हो गई थी असम राइफल्स के हेडक्वार्टर से तिरंगे को उतारकर मिजो नेशनल फ्रंट का झंडा फहरा रहा था। इसके बाद वायुसेना को जिम्मेदारी दी गई। ईस्ट मोजो की एक रिपोर्ट के मुताबिक 5 मार्च 1966 को भारतीय वायुसेना के चार विमानों ने आईजोल को घेरकर बमबारी शुरू की।वायुसेना की जवाबी कार्रवाई से उग्रवादियों का मनोबल टूटा और भारतीय सेना ने फिर से मिजोरम पर कब्जा जमाया।
आजादी से पहले ही शुरू हो चुका था ये विवाद
दरअसल, यह विवाद तो आजादी से पहले का है, जब 1895 में मिजो आदिवासियों के साथ कई दौर की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने 1895 में इस इलाके पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद वहां ईसाई मिशनरियां पहुंचीं और लगभग सारी जनता का धर्मांतरण कर दिया गया। अंग्रेजी फौज के आगे उनकी क्या बिसात थी, वैसे भी कई सुविधाएं उन्हें ईसाई बनने के बाद ही मिलनी थीं। वहां 87 फीसदी से ज्यादा जनता अब भी ईसाई है। आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गए, लेकिन मिशनरियां छोड़ गए। मिजोरम का ज्यादातर हिस्सा असम में था। मिजो यूनियन के बैनर तले मिजो नेता असम के नेताओं पर मिजोरम क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार करने के आरोप लगाने लगे और अलग से मिजोरम राज्य की मांग करने लगे।
Aug 18 2023, 14:16