*मिर्जापुर की साहित्य और संस्कृति इतिहास के परिप्रेक्ष्य में विषय आधारित संगोष्ठी का आयोजन*
मिर्जा़पुर। डा. काशी प्रसाद जायसवाल विद्वत परिषद के तत्वाधान में बाजीराव कटरा स्थित एक सभागार में डा. जायसवाल जी की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर मीरजापुर की साहित्य और संस्कृति इतिहास के परिप्रेक्ष्य में विषय आधारित संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि जिलाधिकारी दिव्या मित्तल, मुख्य वक्ता दिल्ली के इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम समन्वयक सर्वेश दत्त त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से काशी प्रसाद जी के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पार्चन कर श्रद्धांजलि समर्पित की।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि मीरजापुर की जिलाधिकारी दिव्या मित्तल ने कहा कि मीरजापुर अनूठा जनपद है यह सहजता का प्रतीक है सबको अपना बना लेना यह खूबी देश के किसी और जनपद में नहीं है इन एक बरस में एक अधिकारी के रूप में नहीं यहां की बेटी बन कर जो काम करने का अवसर मुझे मिला है व जीवनपर्यंत नहीं भूल पाऊंगी। देवी के आशीर्वाद से संचित यह जनपद जरूर काशी प्रयाग के बीच है लेकिन यह यहां की बेबसी नहीं बल्कि गर्व है।
ऐतिहासिक धरोहरों, प्राकृतिक सौंदर्य, अनोखी और मीठी भाषा की खूबसूरती, साहित्य और संस्कृति का संगम यह मीरजापुर की पहचान है। यहां अनेको साहित्य, इतिहास और संस्कृति की अलख जगाने वाले विद्वान पैदा हुए। जिनमें विश्वपटल पर जिन्हे विशेष नाम और सम्मान मिला वे डा. काशी प्रसाद जायसवाल थे।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता गुरू गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम समन्वयक डा. सर्वेश दत्त त्रिपाठी ने कहा कि महान विचारक-लेखक और अर्थशास्त्री डाक्टर काशी प्रसाद का जन्म 27 नवम्बर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था। डा. काशी प्रसाद जायसवाल मिर्जापुर के प्रसिद्ध रईस साव महादेव प्रसाद जायसवाल के पुत्र थे। उनके जीवन के कई आयाम हैं और कई क्षेत्रों में उनका असर रहा है। उनकी मृत्यु 4 अगस्त 1937 को हुई। अपने छोटे से जीवनकाल में डा0 काशीप्रसाद जायसवाल ने बड़ी ऊंचाई हासिल की। श्री जायसवाल के जीवन दर्शन को लेकर उनके शिष्यों, मित्रों की न केवल अनेक संकलित रचनाएं प्रकाशित हुईं, बल्कि उन पर न जाने कितने शोध-प्रबंध और किताबें और लेख लिखे गए। अनगिनत सभाएं, संगोष्ठी, कार्यक्रम बदस्तूर जारी हैं।
श्री जायसवाल युग-निर्माताओं में से एक थे और अपने कृतित्व के आधार पर आज भी बेजोड़ हैं। तमाम विद्याओ में निपुण डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल सामाजिक रूप से हिन्दू-मुस्लिम-एकता को जरूरी समझते थे। उनका मत था कि ताली एक हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथ से बजती है। क्योंकि अधिकांश हिन्दू साहित्यकार अपने उपन्यासों में मुसलमानों को अत्याचारी और हिन्दुओं को सदाचारी के रूप में चित्रित कर रहे थे, इसलिए काशी प्रसाद इस कृत्य को राष्ट्रीय एकता में बाधक के रूप में देख रहे थे। काशी प्रसाद कई भाषाओं के जानकार थे। वह संस्कृत, हिंदी, इंग्लिश, चीनी, फ्रेंच, जर्मन और बांग्ला भाषा पर पूरा कमांड रखते थेे। लेकिन अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार वे हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखते थे। अंग्रेजी बाह्य जगत के पाठकों और प्रोफेशनल इतिहासकारों के लिए तथा हिंदी,स्थानीय पाठक और साहित्यकारों के लिए काशीप्रसाद ने लेखन से लेकर संस्थाओं के निर्माण में कई कीर्तिमान स्थापित किए।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ नागरिक संगठन के अध्यक्ष अरूण कुमार मिश्र ने कहा कि महापुरूषों को किसी जातीय बंधन में नहीं बांधना चाहिए उनकी स्मृतियों को हम सबको ऐसी विद्वत गोष्ठियों में याद करने की जरूरत है। जिससे भविष्य बहुत कुछ सीखे।
उन्होंने कहा कि काशी प्रसाद ने हिंदी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति पर तकरीबन दो सौ मौलिक लेख लिखे जो प्रकाशित हुए। भारतीय दर्शन, इतिहास, भाषा-साहित्य, सभ्यता-संस्कृति व धर्म के गौरवशाली अतीत को काशीप्रसाद ने जिस प्रखरता से उभारा है, उस तरह की प्रखरता अभी तक कोई दूसरा साहित्यकार या इतिहासकार नहीं उजागर कर पाया है। उनके सभी शोध लेखन इतिहास में अमिट हैं।
आयोजक संस्था की अध्यक्ष डा. रीता जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार ने सन् 1981 में कुछ विशिष्ट महापुरूषों के सम्मान में विशेष डाक टिकटों को जारी करने का निर्णय लिया। उन महापुरूषों में एक नाम प्रसिद्ध इतिहासकार डा.काशी प्रसाद जायसवाल का भी था।
मीरजापुर के लिए वे सदैव मान व सम्मान का प्रतीक रहेंगे। हमें गर्व है कि वे इस धरती के लाल थे।
संचालन कर रहे कार्यक्रम संयोजक व महामंत्री शैलेंद्र अग्रहरि ने कहा कि डा.काशी प्रसाद जायसवाल विद्वत परिषद की मांग है कि डा. काशी प्रसाद जी की मूर्ती शहर के किसी चौराहे पर लगायी जाय, सिटी क्लब स्थित नवनिर्मित प्रेक्षागृह का नाम डा. काशी प्रसाद जायसवाल के नाम पर हो साथ ही मीरजापुर में आने वाला विश्वविद्यालय भी उनके नाम से जाना जाय।
साथ ही साथ नवीन संसद के सेंट्रल हाल में उनका चित्र लगाया जाय जिससे देश के भविष्य को उनकी पवित्र स्मृतियों से उनके राष्ट्रवादी विचारों के योगदान के प्रति उच्चतर जानकारी मिलती रहे।
इस दौरान साहित्यिक विचारक बृजदेव पाण्डेय, डा. अम्बुज पाण्डेय, डा. धर्मजीत सिंह, मनोज श्रीवास्तव, अश्फाक अहमद, शरद मेहरोत्रा, गुलाब चंद त्रिपाठी, संजय सिंह गहरवार, ज्ञान चंद्र गुप्ता, डीबीए के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंह, नित्यानंद, ताराचंद अग्रहरि, आयुष सिंह, शंकर चौधरी, नयन जायसवाल, डा. मंजूलता, पूजा केशरी, नीता जायसवाल, साधना जायसवाल, प्रधानाचार्य श्याम शंकर उपाध्याय, अतिन गुप्ता, अमित श्रीनेत, आशीष बुधिया, मनोज खण्डेलवाल, शत्रुघ्न केशरी, आफाक अहमद, डा. जे.के. जायसवाल, समीर रिजवी, डा. रमाशंकर शुक्ला, अमृत लाल मौर्या, उमेश तिवारी, कन्हैया तिवारी, सुभ्रत अग्रहरि, विवेक राजपूत, हरिहर सिंह, मोहन अग्रवाल, पंकज सिंह, अंकित अग्रहरि, हिमांशु आदि उपस्थित रहे।
Aug 06 2023, 19:27