बुद्ध पूर्णिमा पर सत्याग्रह रिसर्ट फाउंडेशन ने दिया विश्व शांति मानवता पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक एकता का संदेश
बेतिया : आज दिनांक 5 मई 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर विश्व शांति मानवता पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक सद्भावना का संदेश देते हुए अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड डॉ शाहनवाज अली डॉ अमित कुमार लोहिया, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन मदर ताहिरा चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट की निदेशक एस सबा डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख माह की पूर्णिमा को गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था एवं इसी दिन उन्हें ज्ञान भी प्राप्त हुआ था। विश्वूभर में बुद्ध पूर्णिमा मनाने के अलग अलग तरीके है।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि इस पूर्णिमा के दिन घर घर में खीर बनाई जाती हैं।गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त के बाद खीर खाकर ही अपना व्रत खोला था। सूर्योदय होने से पहले पूजा स्थल पर इकट्ठा होकर प्रार्थना किया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद मंदिर और धार्मिक स्थलों पर बौद्ध झंडा फहराया जाता है। यह झंडा नीले, लाल, सफ़ेद, पीले और नारंगी रंग का होता है। लाल रंग आशीर्वाद, सफेद रंग धर्म की शुद्धता का, नारंगी रंग को बुद्धिमत्ता का, और पीले रंग को कठिन स्थितियों से बचने का प्रतीक माना जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर दान देने का भी विशेष महत्व है। कई बौद्ध मंदिर इस उत्सव का आयोजन लोगों को मुफ्त सुविधा प्रदान करके मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन कुछ लोग पिंजरे में कैद पक्षियों और अन्य जानवरों को आजाद करके भी मनाते हैं। श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।
दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है। गया के बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे। इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। अत: लोग अपने अपने तरीके से कोई भी एक पुण्य कार्य करते हैं। गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं। दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें।
इस अवसर पर वक्ताओं ने बेतिया पश्चिम चंपारण से विश्व शांति मानवता पर्यावरण संरक्षण एवं आपसी प्रेम का संदेश देते हुए कहा कि बेतिया पश्चिम चंपारण के रमपुरवा नामक ऐतिहासिक स्थान पर महात्मा गौतम बुद्ध ने राजसी वस्त्र त्याग कर बौद्ध भिक्षु का वस्त्र धारण किया था। इस अवसर पर वक्ताओं ने भारत सरकार एवं यूनेस्को से बेतिया पश्चिम चंपारण के ऐतिहासिक रमपुरवा विश्व धरोहर घोषित करने की मांग की।
May 05 2023, 20:19