अंग्रेजों के अत्याचार एवं नील के खेती के अभिशाप से चंपारण के किसानों मजदूरों एवं आम जनमानस के 106 वर्ष पूरे ।
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नील खेती के अभिशाप से मुक्ति को ले महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी एवं स्वतंत्रता सेनानियों ने किया आंदोलनों का संचालन।
नील के अभिशाप एवं मुक्ति के विषय पर आम जनता को विभिन्न ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध कराई गई।
सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में गांधीवादी चिंतकों एवं विचारकों के साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की गई। डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल, कला मंच की जिला संयोजक शाहीन परवीन ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं नील की खेती से चंपारण की किसानों के मुक्ति के 106 वर्ष पर प्रकाश डाला।
सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डा. एजाज अहमद ने कहा कि पहली मई 1918 को लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने कानूनी तौर पर नील की खेती को प्रतिबंधित कर दिया। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा पूरे चंपारण एवं राज्य के विभिन्न हिस्सों में एक वर्ष तक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं नील की अभिशाप एवं मुक्ति के विषय पर जन जागरण द्वारा आम जनता को विभिन्न ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। वहीं सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के डॉ अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली ने कहा कि नील के अभिशाप से मुक्ति के लगभग 30 वर्ष बाद ही भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया।
नील की खेती के अभिशाप से मुक्ति के प्रेरित होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च एवं भारत छोड़ो जैसे विभिन्न आंदोलनों का संचालन किया। इस दौरान स्कूली बच्चों के बीच सामाजिक कुरीतियों, भेदभाव कुपोषण, संप्रदायिकता, महामारी, गरीबी, अशिक्षा, गंदगी जैसे दानव से समाज को मुक्त करने का संकल्प लिया गया। साथ ही पॉलिथीन एवं प्लास्टिक का पूर्ण बहिष्कार किया गया।
May 01 2023, 20:21