*सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी करेगी निर्वाचन आयुक्त का चुनाव*
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चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई चीफ की तर्ज पर ही मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जानी चाहिए।कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। पहले सिर्फ केंद्र सरकार इनका चयन करती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नेता प्रतिपक्ष मौजूद नहीं हैं तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को समिति में लिया जाएगा। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत फैसले में चुनाव प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा है। संविधान पीठ ने कहा कि लोकतंत्र नाजुक है और कानून के शासन पर बयानबाजी इसके लिए नुकसानदेह हो सकती है।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली बनाने की मांग
कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली बनाए जाने की मांग की गई थी। साल 2018 में चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर कई याचिकाएं दायर हुईं थीं। याचिकाकर्ता अनूप बरांवल ने याचिका दायर कर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसे सिस्टम की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सब याचिकाओं को क्लब करते हुए इसे 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था।बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ति के लिए होता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज होते हैं। कॉलेजियम जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को नाम भेजता है। इस पर केंद्र मुहर लगाती है, जिसके बाद जजों की नियुक्ति होती है।
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए देश में कोई कानून नहीं
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर फिलहाल देश में कोई कानून नहीं है। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंद्र सरकार के हाथ में है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं।
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर विवाद कब से
पिछले साल इस मामले में उस वक्त तूल पकड़ा, जब 19 नवंबर को केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के आईएएस अफसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया था। अरुण गोयल की नियुक्त पर इसलिए विवाद हुआ, क्योंकि वो 31 दिसंबर 2022 को रिटायर होने वाले थे। 18 नवंबर को उन्हें वीआरएस दिया गया और अगले ही दिन चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था। इस नियुक्ति पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक याचिका दायर कर सवाल उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया था। अदालत ने चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित मूल रिकॉर्ड मांगे थे। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गई है। पीठ ने कहा था कि वह सिर्फ तंत्र को समझना चाहती है।
Mar 02 2023, 16:32