रबी की फसलों में कीट व रोग से बचाव के लिए कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी
अमेठी। जिला कृषि अधिकारी अखिलेश पांडे ने बताया कि वर्तमान समय में दलहनी एवं तिलहनी फसलों राई, सरसों, मटर एवं चना में सामयिक कीट/रोग के प्रकोप होने की संभावना रहती है। ऐसी स्थिति में राई/सरसों में आरा मक्खी, बालदार सूड़ी, माहू, पत्ती धब्बा, सफेद गिरोई एवं तुलासिता रोग एवं चना व मटर की फसल में फली बेधक, सेमीलूपर कीट, पत्ती धब्बा, तुलासिता एवं बुकनी रोग/कीट के प्रकोप होने की संभावना रहती है ।
रबी मौसम की प्रमुख फसल में कीट/रोग के लक्षण परिलक्षित होने पर किसान बंधु अपनी फसल के बचाव हेतु राई एवं सरसों की फसल में ऊपरी पत्तियों एवं पुष्पक्रम पर सफेद पाउडर जैसी फफूंद उग जाती है तथा फूल एवं फलियां मोटी होकर लटक जाती हैं यह बीमारी दो-तीन दिनों के अंदर पूरे खेत में फैल जाती है यह बीमारी माहू के साथ भी दिखाई पड़ती है इसके नियंत्रण के लिए मेटालेक्सिल 8%, मैनकोज़ेब 64%, डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
आरा मक्खी एवं बालदार सूड़ी के नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50% ईसी, 1.5 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्ल्यूएस की 700 ग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। माहू कीट एवं फाइलोडी बीमारी के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.5% एसएल 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति 2.5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त मटर व चना की फसलों में फली बेधक, सेमीलूपर कीट के नियंत्रण हेतु 50-60 बर्ड पर्चर लगाना चाहिए तथा बीटी 1.0 किलोग्राम अथवा एनवीपी 2% की 3.0 किलोग्राम मात्रा को 250-300 लीटर अथवा एजाडिरेक्टिन 0.03% डब्ल्यूएसपी 2.5-3.0 किग्रा मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
मटर में तुलासिता एवं बुकनी रोग में पत्तियां फलियों एवं तने पर पीले तथा हल्के भूरे रंग के फफोला बन जाता है जिसके कारण पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं इसके नियंत्रण हेतु घुलनशील कार्बेंडाजिम 12%, मैनकोज़ेब 64%, डब्ल्यूपी 2.5 किग्रा अथवा ट्राइडेमेफान 25% डब्लूपी 250 ग्राम 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
Feb 22 2023, 19:04