भगवान परशुराम की भृगुटी टेढ़ी होने पर भयभीत हुए स्वयंवर के राजा : प्रहलाद जी महराज
अमेठी। भगवान परशुराम की भृगुटी टेढ़ी हो चली। जब शिव धनुष टूटने की खबर मिली। स्वयंवर आये राजा भयभीत हो गए ।उक्त बाते कथा व्यास आचार्य प्रहलाद जी महराज ने कही। छठवें दिन की कथा में ग्राम मदुआपुर( दरपीपुर )गौरीगंज में कथा व्यास प्रह्लाद जी महाराज ने बताया कि जब धनुष टूट गया पूरा भूमंडल हिल गया महेंद्र पर्वत पर आसन जमाये बैठे परशुराम जी भी हिल गये। महेंद्रपर्वत से जनकपुर के लिए परशुराम जी तुरन्त प्रस्थान कर दिये।
जनकपुर में आते ही क्रोध से भरे तपस्वी परशुराम को देख सभा में बैठे दस हजार राजा भय से कांपने लगे। उन्हें देख सब खड़े हों कर प्रणाम करते हुए सबने अपने साथ पिता के नाम को उच्चारित किया। तब परशुराम जी ने क्रोध में पूछा शिव जी के धनुष को किसने तोड़ा जिसने भी इसे तोड़ा वह सबसे बड़ा सत्रू है मेरा मैं उसको कदापि जिंदा नहीं छोड़ूंगा मैंने 21 बार धरा से क्षत्रियों का विनाश किया है तुरंत ये बताए धनुष को किसने तोड़ा है अन्यथा में सबको मार डालूंगा ।सारे राजा भय से कांपने लगे। परन्तु लक्ष्मण जी मुस्कराए इतने में परशुराम जी ने पूंछा यह धृष्ट बालक कौन है इस पर लक्ष्मण जी ने कहा मेरा नाम लक्ष्मण है महाराज यह तो धनुष बहुत जीर्ण अवस्था में था भैया के छूते ही टूट गया इसमें भैया का कोई दोष नहीं है फिर आप बिना कारण ही रोष किए जा रहे हैं आपको यह शोभा नहीं देता।
कृपया अपने क्रोध को शांत करें और अपना आसन ग्रहण करें। परशुराम जी की शरीर की ज्वाला और भड़क उठती है फिर राम जी परशुराम को समझाते हैं। नाथ शिव जी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ही होगा। आप आज्ञा दीजिए की आप किस प्रयोजन से यहांं आए हैं। क्रोधी मुनि यह सुनकर और अधिक क्रोधित होते हुए बोले यहां मेरा कोई सेवक हो ही नहीं सकता। सेवक वही होता है जो सेवा का कार्य करता है। शत्रुता के कार्य करने वाले के साथ तो लड़ाई ही करनी चाहिए। राम जी कहते हैं मैं तो छोटा सा नाम वाला हूं आप तो बडे़ नाम वाले है आपका परशु सहित राम हैं। हम जैसे छोटों को माफ कर देना ही आपका बड़प्पन होगा। तब लक्ष्मण जी पुनः चिढ़ाते हैं तब परशुराम जी राम जी से कहते हैं तुम्हारा संकोच कर रहा हूँ इसे समझा दे तब भगवान राम जी कहते हैं परशुराम जी की ज्वाला शांत नहीं होती राम जी अपना शीष झूकाते हुये यह कहते हैं अगर तुम्हें इतनी ही गुस्सा है तो अपने फरसे से मेरे गले पर वार कर अपना क्रोध शान्त कर ले।
परशुराम जी का फरसा राम जी पर नहीं चलता तब परशुराम समझ जाते हैं और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं राम जी धनुष पर बाण रख कर चलाने की बात करते हैं परशुराम सब जान जाते हैं कि यह नारायण अवतार है तब क्षमा की याचना करते हैं इस पर प्रभु राम जी कहते हैं चढ़ाई प्रत्यंचा उतारी नहीं जा सकती अब आप यह तो कहें आपकी शक्ति को छीण कर दे या तो आप के पुण्य को समाप्त कर दे । तब परशुराम जी ने कहा मेरे पुण्य को समाप्त कर डालिए इसलिए कि मैं प्रत्येक शाम को अपने शक्ति के बल से महेंद्र पर्वत पर जाता हूं। इसलिए तो वह मुझे क्षमा करे मेरी शक्ति को कायम रखें रामचंद्र जी प्रसन्नतापूर्वक पुण्य समाप्त कर देते हैं। राम जी को प्रणाम करते हैं यह देखकर सभी आश्चर्यचकित ही जाते हैं तब जनक जी द्वारा दशरथ को नेवता भेजा जाता है कि वह बारात लेकर जनकपुर आएं और प्रभु श्री राम जी को सीता जी को जीते उपहार को सम्मान के साथ अपने घर अयोध्या ले जायें।
Feb 10 2023, 17:03