सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह कानून में बताई सुधार की जरुरत, कहा-पर्सनल लॉ के जरिए अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है। इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिसरा की तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही, कुछ अहम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए बनाए गए कानून को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।

अदालत ने बाल विवाह कानून में भी कुछ खामियों की बात कही है। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित करना आखिरी विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा – अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर काम किया जाना चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब अलग-अलग क्षेत्रों के बीच एक समन्वय स्थापित होगा। साथ ही, कानून लागू करने वाले अधिकारियों का सही से प्रशिक्षण और उनकी क्षमता का निर्माण जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक पक्षपात कि की निंदा, संवेदनशीलता का किया आह्वान

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Supreme court of India

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सार्वजनिक कार्यालयों में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, तथा महिला प्रतिनिधियों को कमतर आंकने के बजाय उनका समर्थन करने के लिए प्रशासनिक प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया। सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक आदेशों और विधायी प्रयासों के बावजूद प्रशासनिक संरचनाओं में महिलाओं को प्रणालीगत पक्षपात का सामना करना पड़ता है। 

इसने पूर्वाग्रह के एक परेशान करने वाले पैटर्न को नोट किया, विशेष रूप से महिला नेताओं के खिलाफ, टिप्पणी करते हुए: "एक देश के रूप में, हम सार्वजनिक कार्यालयों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधि हैं।"

अदालत ने कहा कि इस तरह की बाधाएं जड़ जमाए हुए भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाती हैं और अधिक समावेशी राजनीतिक परिदृश्य की ओर प्रगति को बाधित करती हैं। पीठ ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधि, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिला को हटाने को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उन महिलाओं के प्रयासों की अनदेखी करता है जो ऐसे पदों को हासिल करने और बनाए रखने के लिए करती हैं। हम दोहराना चाहेंगे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से संबंधित हो। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं जो ऐसे सार्वजनिक पदों पर कब्जा करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं" ।

अदालत ने कड़े बयान तब दिए जब उसने आदेश दिया कि मनीषा रवींद्र पानपाटिल को उनके कार्यकाल के अंत तक महाराष्ट्र के जलगांव जिले के विचखेड़ा की सरपंच के रूप में बहाल किया जाए। इसके फैसले ने स्थानीय अधिकारियों के फैसले को पलट दिया, जिन्होंने सरकारी जमीन पर रहने के दावे पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था - एक आरोप जिसे अदालत ने निराधार पाया। पानपाटिल फरवरी 2021 में निर्वाचित हुई थीं। 

अपने आदेश में, अदालत ने सरकारी अधिकारियों से शासन में महिलाओं के लिए अधिक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने का आह्वान किया, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसने प्रशासनिक निकायों के लिए “खुद को संवेदनशील बनाने और अधिक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काम करने” की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने पाया कि निजी शिकायतकर्ताओं की कार्रवाई, जिन्होंने पानपाटिल की अयोग्यता की मांग की थी, एक महिला सरपंच द्वारा गांव की ओर से निर्णय लेने और अधिकार का प्रयोग करने के प्रतिरोध से प्रेरित थी। इसने कहा, “यह हमें एक क्लासिक मामला लगता है, जहां गांव के निवासी इस तथ्य से सहमत नहीं हो सके कि अपीलकर्ता, एक महिला होने के बावजूद, उनके गांव के सरपंच के पद पर चुनी गई थी।” लिंग-आधारित बहिष्कार के एक पैटर्न पर प्रकाश डालते हुए, अदालत ने टिप्पणी की कि अस्पष्ट दावों के आधार पर और उचित तथ्य-जांच के बिना पानपाटिल को हटाना, स्थानीय शासन में महिलाओं की भूमिकाओं के प्रति आधिकारिक उदासीनता के एक व्यापक मुद्दे को रेखांकित करता है। 

Dynamic Start for UTSAV Interior & Furniture Expo MMRDA BKC: Over 10k Enthusiastic Visitors Thrilled by Premium Offerings

Mumbai, 10th August 2024: Utsav Exhibition (Consumer, Interior & Furniture Expo) at MMRDA BKC delighted more than 10,000 visitors on its opening day with a grand showcase of premium brands and the presence of prominent content creators. Organized by Expo India Exhibition Pvt Ltd, a stalwart in the exhibition industry for over 25 years, the event has become the epicenter of the International Furniture, Home Decor & Consumer Exhibition, boasting an extensive range of products from kitchenware and appliances to lifestyle, fashion, and health products.

The exhibition, which started on August 9th and will conclude on August 15th, 2024, has already garnered widespread attention and praise. As one of Maharashtra's largest trade fair events, Utsav has attracted participants from diverse industries, creating a dynamic platform for interaction and commerce.

Ace journalist and renowned content creator Rajveer Singh on Instagram) immersed himself in the exhibition, engaging with exhibitors and organizers to gain insights into the showcased brands and the overall event experience.

Utsav Exhibition witnessed visitors and also brands interacting & clicking pictures with several prominent instagram content creators who attended the exhibition on August 9th. These creators included Bollywood actress winning photographer and some very creative & renowned influencers like and exhibition also featured an impressive lineup of exhibitors, showcasing renowned brands such as Shree Guruji Products, Kytes India, Andros India, Ruchira Exports, Ammarzo, Rajasthan Hastakala Bedsheets, Orient Ceramics, Hakim Afghan Dryfruits from Afghanistan, D’Sunnar Jewellery, Being You Cosmetics, Rajasthani Jewellery, Shabreen Designer, Usha International, Dimple Creation, Jutie Pie, Mangalam Organics, Fashion Icon, Humaira Collection, Mojari Master, Punjabi Jutti, Nature’s Bell, Timeless Treasure, Magic Steam Iron, Cristalli Jewellery, Nakshi Art, Jimmy Bags, Swad Foods, Supreme Foods, Borges India, Sunpure Oil, Chitale Bandhu, Gadre Foods, Home Interiors, Comfy Living, INWOFU, PureWoods Furniture, Om Artifacts, SpaceMagic, Carpet Home Décor, Aasif Handicraft, Vintage Art, Chisti Marble, Devis Modular Kitchen, Indian Handicraft, Veer Fitness, and Godrej Security Solutions.

Rajveer's interactions with Utsav's Organisers, Mr Javed (Director), Kruti Galia, Bini Prajapati, and Altaf Shaikh, revealed their gratitude to visitors and exhibitors for making the exhibition a resounding success. With over 10,000 visitors on the opening day, the event witnessed families flocking in for a delightful shopping experience.

As Utsav Exhibition enters its final week, exclusive and exciting offers tempt you to visit the exhibition for purchasing unique products. Attendees are encouraged to experience the excellence showcased by premium brands. With huge discounts on a diverse range of products catering to various lifestyle needs, the exhibition promises an unparalleled shopping experience for all.

One more exciting week awaits you to grab the opportunity to visit Utsav Exhibition at BKC, MMRDA Grounds, near Asian Heart Hospital, from 12 noon to 9 pm.

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ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణపై సుప్రీం కీలక తీర్పు

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది..

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది. 6:1 మెజారిటీతో సీజేఐ జస్టిస్ డి.వై. చంద్రచూడ్ నేతృత్వంలోని రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఈ తీర్పును వెల్లడించింది. గురువారం నాడు వర్గీకరణపై సుదీర్ఘ విచారణ జరిపిన ఏడుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం.. ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణ సమర్థనీయమని స్పష్టం చేసింది. కాగా.. ఈ వర్గీకరణను మెజారిటీ సభ్యులు సమర్థించగా.. జస్టిస్‌ బేలా త్రివేది మాత్రం వ్యతిరేకించారు. ఎస్సీలు చాలా వెనుకబడిన వర్గాలుగా ఉన్నారని.. విద్య, ఉద్యోగాల్లో రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణ అవసరం ఉందని.. వర్గీకరణచేసే వెసులుబాటు రాష్ట్రాలకు ఉండాలని సుప్రీం స్పష్టం చేసింది. ఈ మేరకు 2004లో ఐదుగురు సభ్యులు ఇచ్చిన తీర్పును తాజా తీర్పు తర్వాత ధర్మాసనం పక్కనబెట్టింది. ఈ తీర్పును అనుసరించి తదుపరి మార్గదర్శకాలను అనుసరించాలని ప్రభుత్వాలకు న్యాయస్థానం సూచించింది.

సామాజిక న్యాయం లక్ష్యంగా భారత రాజ్యాంగం దేశంలో విడిపోయి ఉన్న కులాలను చాలా శాస్త్రీయంగా అంటే ఎస్సీ, ఎస్టీ, బీసీ, ఎఫ్.సి.లుగా వర్గీకరించింది. షెడ్యూల్ కులాలకు సంబంధించి అంటరానితనానికి గురవుతున్న కులాలను ఒకే గొడుగు కిందికి తీసుకొచ్చి వారికి రిజర్వేషన్ అవకాశాలు కల్పించింది. అయితే ఇలా కులపరంగా రిజర్వేషన్ పొందుతున్న తరగతుల్లో మాలలే అగ్ర భాగాన ఉన్నారని ఆరోపిస్తూ, ఈ తేడాను సవరించాలని ఎమ్మార్పీఎస్ ఉద్యమం చేస్తూ ఎ, బి, సి, డి కేటగిరీల వారీగా ఎస్సీలను వర్గీకరించాలని కొన్నేళ్లుగా ప్రభుత్వాలు, న్యాయస్థానాలను కోరుతూ వస్తోంది. ఇదిలా ఉంటే.. పంజాబ్‌ ప్రభుత్వం తీసుకువచ్చిన ‘ద పంజాబ్‌ షెడ్యూల్డ్‌ క్యాస్ట్స్‌ అండ్‌ బ్యాక్‌వర్డ్‌ క్లాసెస్‌ (రిజర్వేషన్‌ ఇన్‌ సర్వీసెస్‌) యాక్ట్‌-2006’ను సవాలు చేస్తూ పదుల సంఖ్యలో ధర్మాసనంకు పిటిషన్లు వచ్చాయి. ఇందులో ఎమ్మార్పీఎస్‌ వ్యవస్థాపక అధ్యక్షుడు మందకృష్ణ మాదిగ పిటిషినర్‌గా ఉన్నారు.

ప్రస్తుతం కేంద్ర ప్రభుత్వం ఎస్సీలకు 22.5% రిజర్వేషన్‌ కల్పిస్తుండగా.. పంజాబ్‌లో అది 25శాతంగా ఉంది. పంజాబ్‌ రిజర్వేషన్ల చట్టంలోని సెక్షన్‌ 4(5) ప్రకారం.. ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో వాల్మీకి, మజ్హబీ సిక్కులు పోటీలో ఉంటే.. వారికి ప్రాధాన్యతనిస్తూ 50% కోటాను కేటాయించాలి. ఈ చట్టం వల్ల ఎస్సీల్లోని ఇతర కులస్థులు ఉద్యోగావకాశాలను కోల్పోతున్నారని, ఇది రాజ్యాంగ విరుద్ధమంటూ పంజాబ్‌-హరియాణా హైకోర్టులో పిటిషన్లు దాఖలయ్యాయి. 2010లో పంజాబ్‌ సర్కారుకు వ్యతిరేకంగా హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది. 2011లో పంజాబ్‌ సర్కారు దీనిపై సుప్రీంకోర్టులో అప్పీల్‌కు వెళ్లగా.. ఇతర పిటిషనర్లు సైతం వ్యాజ్యాలను దాఖలు చేశారు. 2020 ఆగస్టు 27న జస్టిస్‌ అరుణ్‌ మిశ్రా(ప్రస్తుతం రిటైర్‌ అయ్యారు) నేతృత్వంలోని త్రిసభ్య ధర్మాసనం ఈ విషయాన్ని పరిశీలించేందుకు విస్తృత రాజ్యాంగ ధర్మాసనం అవసరమని స్పష్టం చేశారు. అసలు.. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల వర్గీకరణ చేయొచ్చా? అనే అంశంపై న్యాయపరమైన ప్రశ్నలను పరిశీలించేందుకు ఏడుగురు సభ్యుల సుప్రీంకోర్టు రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఏర్పాటైంది. ఇందులో చీఫ్‌ జస్టిస్‌ డీవై చంద్రచూడ్‌తోపాటు.. జస్టిస్‌ బీఆర్‌ గవాయి, జస్టిస్‌ విక్రమ్‌నాథ్‌, జస్టిస్‌ బేలా.ఎం.త్రివేది, జస్టిస్‌ పంకజ్‌ మిత్తల్‌, జస్టిస్‌ మనోజ్‌ మిశ్రా, జస్టిస్‌ సతీశ్‌చంద్ర మిశ్రాల ధర్మాసనం ఈ విచారణను ప్రారంభించింది.

ఈ కేసులో పిటిషనర్లు 2004 నాటి ‘ఈవీ చిన్నయ్య వర్సెస్‌ స్టేట్‌ ఆఫ్‌ ఆంధ్రప్రదేశ్‌’ కేసులో సుప్రీంకోర్టు ఐదుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం తీర్పును ఉటంకించారు. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల్లో వర్గీకరణ చేయడం రాజ్యాంగ విరుద్ధమని, అలాంటి నిర్ణయాలు భారత రాజ్యాంగంలోని 14వ అధికరణ(చట్టం ముందు అంతా సమానులే)ను ఉల్లంఘిస్తోందని 2004 నాటి తీర్పు స్పష్టం చేస్తోంది. దీనికి తోడు.. ఎస్సీ కులాల గుర్తింపు బాధ్యత పార్లమెంట్‌కు మాత్రమే ఉంటుందని, ఆయా కులాలను రాజ్యాంగంలోని ఆర్టికల్‌ 341 మేరకు రాష్ట్రపతి మాత్రమే నోటిఫై చేస్తారని పిటిషనర్లు తమ వ్యాజ్యాల్లో పేర్కొనడం జరిగింది. ఇదంతా ఈ ఏడాది ఫిబ్రవరిలో జరిగింది. ఈ క్రమంలోనే.. ఇవాళ 2004 నాటి ఈవీ చిన్నయ్య తీర్పును వ్యతిరేకిస్తూ.. రాష్ట్రాలు ఉపవర్గీకరణ చేసుకునేందుకు అనుమతి కల్పిస్తున్నట్లు సీజేఐ ధర్మాసనం స్పష్టంచేసింది.

ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో క్యాటగిరి చేసుకునే అంశంపై పంజాబ్ ప్రభుత్వం, తెలుగు రాష్ట్రాల నుంచి ఎమ్మార్పీఎస్ సుప్రీంకోర్టు ఆశ్రయించిన విషయం తెలిసిందే. తాజా తీర్పుతో ఆయా వర్గాలు, నేతలు సంతోషం వ్యక్తం చేస్తున్నారు. ఈ తీర్పును కేంద్ర మంత్రి కిషన్ రెడ్డి స్వాగతిస్తున్నట్లు తెలిపారు. పేదలకు న్యాయం జరగాలన్నదే మోదీ సర్కార్ ఉద్దేశమని.. ప్రభుత్వ ఫలాలు అందరికీ అందాలని చెప్పుకొచ్చారు.

మరోవైపు.. సుప్రీంకోర్టు తీర్పుపై ఎమ్మార్పీఎస్ అధినేత మంద కృష్ణ మాదిగ స్పందిస్తూ భావోద్వేగానికి లోనయ్యారు. మీడియా ఎదుటే ఆయన కంటనీరు పెట్టుకున్నారు. ‘మా 30 ఏళ్ల పోరాటానికి న్యాయం జరిగింది. సుప్రీంకోర్టు తీర్పు న్యాయాన్ని బతికించింది. ఈ ప్రక్రియ వేగవంతానికి ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ చొరవ తీసుకున్నారు. అమిత్‌షా, వెంకయ్యనాయుడు, కిషన్‌రెడ్డికి ధన్యవాదాలు. వర్గీకరణ చేసిన ఆంధ్రప్రదేశ్ ముఖ్యమంత్రి నారా చంద్రబాబుకు ప్రత్యేక ధన్యవాదాలు. ఈ విజయాన్ని అమరులకు అంకితం ఇస్తున్నాం. రిజర్వేషన్ల సిస్టమ్ ఇప్పుడు రెండో అడుగు వేయబోతుంది. తెలుగు రాష్ట్రాల్లో వర్గీకరణ అనివార్యం. వర్గీకరణకు సంబంధించిన జీవోలు వచ్చిన తర్వాతే ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి. ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు సరిచేసుకోవాల్సిన అవసరం ఉంది. రీ-నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి’ అని కేంద్ర, రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలను మందకృష్ణ మాదిగ కోరారు. వర్గీకరణకు జనాభా లెక్కలతో పనిలేదని మరోసారి గుర్తు చేశారు. త్వరలో విజయోత్సవ సభ.. ఇందుకు సహకరించిన వారికి కృతజ్ఞత సభలు ఉంటాయని మందకృష్ణ వెల్లడించారు.

कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब, जानें क्या बताई वजह

#kanwaryatranameplatedisputeupgovtfiledreplyinsupremecourt 

उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर नामपट्टिका लगाने के अपने आदेश का बचाव किया है। सुप्रीम कोर्ट को जवाब देते हुए यूपी सरकार ने कहा, यह आदेश इसीलिए लागू किया गया था जिससे गलती से भी कांवड़िए किसी दुकान से कुछ ऐसा न खा लें जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो।

उत्तर प्रदेश में कांवड़ रूट पर मौजूद दुकानों में मालिक के नाम की नेम प्लेट लगाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। यह मामला मुजफ्फरनगर से शुरू हुआ था जिसके बाद योगी सरकार के आदेश देने के बाद यह पूरे प्रदेश में लागू हो गया था। इस आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 22 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से शुक्रवार (26 जुलाई) तक जवाब मांगा था और राज्यों के जवाब देने तक इस आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई आज 26 जुलाई को होगी।

आदेश का उद्देश्य पारदर्शिता कायम करना

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

+संभावित भ्रम से बचने का उपाय

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने किया याचिकाओं का विरोध

उत्तर प्रदेश सरकार ने नेमप्लेट विवाद में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि, हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाता है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएं।

NEET UG 2024: ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై ఐఐటీ డైరెక్టర్‌కు సుప్రీంకోర్టు కీలక ఆదేశం

నీట్-యూజీ 2024 పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ డైవై చంద్రచూడ్ సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

 నీట్-యూజీ 2024 (NEET-UG 2024) పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ (CJI) డైవై చంద్రచూడ్ (DY Chandachud) సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఈ ప్రశ్నకు సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి జూన్ 23వ తేదీ మధ్యాహ్నం 12 గంటల లోపు దానిపై సమాధానం సమర్పించాలని ఆదేశించింది. మంగళవారంనాడు కూడా విచారణ కొనసాగనుంది.

నీట్ పరీక్షా పత్రం, లీకేజీ అవకతవలపై సుప్రీంకోర్టు సోమవారం తిరిగి విచారణ జరిగింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఫిజిక్స్ ప్రశ్న అంశాన్ని పిటిషనర్లు కోర్టు దృష్టికి తెచ్చారు.

ఒక ప్రశ్నకు రెండు సరైన సమాధానాలు ఇచ్చి, మార్కులు మాత్రం ఒకదానికే వేశారని, దానికి గ్రేస్ మార్కులు ఇచ్చినా, ఇవ్వకపోయినా కూడా మెరిట్ లిస్ట్ మారే అవకాశం ఉందని పిటిషనర్లు వాదించారు.

దీనిపై ధర్మాసనం వెంటనే స్పందిస్తూ, సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి ఆ సమాధానం తమకు సమర్పించాలని ఢిల్లీ-ఐఐటీ డైరెక్టర్‌ను ఆదేశించింది.

ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా? లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ ఆగ్రహం

సుప్రీం కోర్టు(Supreme Court) ప్రధాన న్యాయమూర్తి జస్టిస్ డీవై చంద్రచూడ్ న్యాయవాదిపై తీవ్ర ఆగ్రహం వ్యక్తం చేశారు. కూల్చివేతకు సంబంధించిన కేసు విచారణలో భాగంగా లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ మండిపడ్డారు.

అయితే, కోర్టుకు హాజరయ్యే లాయర్లు తప్పనిసరిగా ధరించాల్సిన నెక్‌బ్యాండ్‌ ఆ న్యాయవాది ధరించలేదు. దీంతో, సీజేఐ న్యాయవాదిని ఉద్దేశించి ఘాటు వ్యాఖ్యలు చేశారు.

మీ మెడ చుట్టూ ఉండే బ్యాండ్ ఎక్కడ ఉంది? ఇక్కడేమైనా ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా?” అని ప్రశ్నించారు.

ఈమెయిల్ పంపాలని ఆదేశించారు. హడావిడిగా వచ్చానని న్యాయవాది చెప్పినప్పుడు మరింత కఠినంగా సీజేఐ సమాధానమిచ్చారు.

క్షమించండి, మీరు సరైన వస్త్రధారణలో లేకుంటే కేసు వినేది లేదు" అని స్పష్టం చేశారు.

బార్ కౌన్సిల్ ఆఫ్ ఇండియా (Bar Council)నిబంధనల ప్రకారం కోర్టుకు హాజరయ్యే న్యాయవాదులకు డ్రెస్ కోడ్‌ తప్పనిసరి. సుప్రీంకోర్టు, హైకోర్టు, కింది కోర్టులు, ట్రైబ్యునల్స్ లేదా అథారిటీలలో హాజరయ్యే న్యాయవాదాలు డ్రెస్ కోడ్ తప్పనిసరిగా పాటించాల్సి ఉంటుంది.

ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत, बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में हाई तोक्ट के फैसले पर लगाई अंतरिम रोक
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पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इसमें शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सीबीआई अपनी जांच जारी रखे, लेकिन कर्मचारी-उम्मीदवारों पर कोई एक्शन न ले। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस साल 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की 25 हजार 753 नियुक्तियों को अवैध करार दे दिया था। साथ ही इन शिक्षकों को 7-8 साल के दौरान मिली सैलरी 12% इंटरेस्ट के साथ लौटाने के निर्देश भी दिए थे। इसके लिए कोर्ट ने 6 हफ्ते का समय दिया था।

बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि जब भर्ती प्रक्रिया पर पहले से सवाल उठ रहे थे तो नई नियुक्तियां क्यों की गईं?

अदालत में वकील नीरज कौशल कौल ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शिक्षकों और छात्रों के अनुपात को देखकर ही भर्तियां की गईं थीं। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने भी 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा है। राज्य सरकार के दूसरे वकील जयदीप गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि यह शीर्ष अदालत के ही फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने का फैसला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि शिक्षक भर्ती से जुड़ी कॉपियां क्यों खत्म की गईं? जिसके जवाब में वकील ने कहा कि कॉपियां अब नहीं मिल सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फिर पूछा का आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग अपना भरोसा खो देंगे।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को व्यवस्थागत धोखाधड़ी बताया। कोर्ट ने कहा कि आज नौकरियों की कमी है। अगर जनता का भरोसा चला गया तो कुछ नहीं बचेगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों ने मेनटेन किया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था। बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।

पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती को रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई है। कहा है कि वैध और अवैध भर्तियों को अलग करने की जरूरत है। तौर-तरीके पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तय किए जाएंगे। सिर्फ उन्हीं अभ्यर्थियों को वेतन लौटाने की जरूरत है, जिनकी भर्ती अवैध है, यह हमारे फैसले पर निर्भर करेगा। 16 जुलाई से मामले में रेगुलर सुनवाई होगी।
केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर नहीं हुआ कोई फैसला, सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई आदेश नहीं
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दिल्ली शराब घोटाले में जेल में बंद दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई, लेकिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना कोई आदेश दिए उठ गई।इस मामले में कोर्ट की ओर से कोई आदेश नहीं जारी किया गया और सुनवाई 9 मई या अगले हफ्ते में पूरी होगी।केजरीवाल ने कोर्ट में अंतरिम जमानत देने की मांग की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए 3 मई को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर विचार किया जा सकता है।

आज सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलें सुनने के बाद 2ः30 बजे सीएम केजरीवाल पर फैसला सुनाने की बात कही थी। मगर आखिरी समय में सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना फैसला सुनाए ही उठ गई। अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत आज खत्म हो गई थी और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके अंतरिम जमानत की अर्जी डाली थी। वहीं सीएम की रिहाई के खिलाफ ईडी के वकील ने भी कई दलीलें पेश की, जिसके बाद कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है।

मामले की सुनवाई के दौरान ईडी ने कोर्ट को बताया कि अरविंद केजरीवाल साल 2022 में गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान 7 स्टार ग्रैंड हयात होटल में ठहरे थे और होटल के बिल का भुगतान चनप्रीत सिंह द्वारा किया गया था। चनप्रीत सिंह पर आरोप है कि गोवा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए उन्हें ही कथित तौर पर फंड मिला था। ईडी के वकील एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने केजरीवाल की अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि 'यह राजनीति से प्रेरित मामला नहीं है। हम इस मामले में हो रही राजनीति को लेकर चिंतित नहीं हैं, लेकिन हमारी चिंता सबूतों को लेकर है। शुरुआत में अरविंद केजरीवाल पर हमारा फोकस नहीं था और न ही ईडी केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई का विचार कर रही थी, लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी तो केजरीवाल की भूमिका साफ हो गई।'

जमानत पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि लोकसभा चुनाव चल रहा है। यह एक असाधारण मामला है। केजरीवाल चुने हुए मुख्यमंत्री हैं। वह किसी अन्य मामले में शामिल नहीं हैं। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कृपया मामले को पूरा सुनें। हम क्या उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। वह एक मुख्यमंत्री हैं और प्रचार करना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैंपेन से कोई नुकसान नहीं है। एसजी ने कहा कि अगर एक किसान को अपने खेत की देखभाल करनी है और एक किराना दुकान के मालिक को अपनी दुकान पर जाना है तो एक मुख्यमंत्री को आम आदमी से अलग कैसे माना जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक लोगों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केस की मेरिट पर नहीं जा रहे हैं, सिर्फ अंतरिम जमानत पर दलील रखिए. ये लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक कार्यकारी को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हमने फैसला सुरक्षित रखा तो उसे सुनाना भी पड़ेगा। यदि हम फिर से याचिका स्वीकार करने का निर्णय लेते हैं तो चुनाव प्रचार का यह दौर चला जाएगा।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अगर अदालत हमें अंतरिम जमानत का जवाब देने के लिए कहती है तो इस अदालत को उनकी भूमिका पर सुनवाई करनी चाहिए। अगर वह प्रचार नहीं करेंगे तो आसमान नहीं गिर जाएगा। सिर्फ इसलिए कि उनके पास समय खत्म हो रहा है। एसजी ने कहा कि हम राजधानी के सीएम के साथ काम कर रहे हैं और वह 6 महीने तक समन से बचते रहे हैं। कृपया कोई अपवाद न बनाएं, क्योंकि यह एक वास्तविक आम आदमी को हतोत्साहित करेगा।

अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीएम को जमानत देने की तरफ इशारा किया था। कोर्ट ने सीएम केजरीवाल के वकील से पूछा कि जमानत मिलने के बाद केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय का कोई काम नहीं करेंगे। इसपर सीएम के वकील ने हलफनामा दायर करके कोर्ट की शर्त पूरी करने की गारंटी दी थी। ऐसे में कोर्ट ने 2ः30 बजे फैसला सुनाने की बात कही। मगर अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना फैसला सुनाए ही उठ गई। सीएम की याचिका पर अगली सुनवाई 9 मई को होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत पर एससी में चल रही सुनवाई




दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी जाए या नहीं, सुप्रीम कोर्ट आज इस बात पर विचार कर रहा है. अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू ने दलीलें रखीं. एएसजी राजू ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मनीष सिसोदिया की जमानत रद्द होने के बाद 1100 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गई है. इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि अपराध की आय 100 करोड़ थी.. यह 2-3 सालों में 1100 करोड़ कैसे हो गई. यह रिटर्न की एक अभूतपूर्व दर होगी.

जस्टिस खन्ना की इस टिप्पणी पर एएसजी राजू ने कहा कि 590 करोड़ थोक व्यापारी का मुनाफा है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतर लगभग 338 करोड़ था और यह पूरी चीज अपराध की आय नहीं हो सकती. इसके बाद ईडी की ओर से एएसजी राजू ने कहा कि जब हमने जांच शुरू की तो हमारी जांच सीधे तौर पर उनके (अरविंद केजरीवाल) खिलाफ नहीं थी. जांच के दौरान उनकी भूमिका सामने आई. इसीलिए शुरुआत में उनके बारे में एक भी सवाल नहीं पूछा गया. जांच उन पर केंद्रित नहीं थी. मामले में दोनों ओर से जिरह और सुनवाई जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह कानून में बताई सुधार की जरुरत, कहा-पर्सनल लॉ के जरिए अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है। इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिसरा की तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही, कुछ अहम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए बनाए गए कानून को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।

अदालत ने बाल विवाह कानून में भी कुछ खामियों की बात कही है। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित करना आखिरी विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा – अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर काम किया जाना चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब अलग-अलग क्षेत्रों के बीच एक समन्वय स्थापित होगा। साथ ही, कानून लागू करने वाले अधिकारियों का सही से प्रशिक्षण और उनकी क्षमता का निर्माण जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक पक्षपात कि की निंदा, संवेदनशीलता का किया आह्वान

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Supreme court of India

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सार्वजनिक कार्यालयों में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, तथा महिला प्रतिनिधियों को कमतर आंकने के बजाय उनका समर्थन करने के लिए प्रशासनिक प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया। सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक आदेशों और विधायी प्रयासों के बावजूद प्रशासनिक संरचनाओं में महिलाओं को प्रणालीगत पक्षपात का सामना करना पड़ता है। 

इसने पूर्वाग्रह के एक परेशान करने वाले पैटर्न को नोट किया, विशेष रूप से महिला नेताओं के खिलाफ, टिप्पणी करते हुए: "एक देश के रूप में, हम सार्वजनिक कार्यालयों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधि हैं।"

अदालत ने कहा कि इस तरह की बाधाएं जड़ जमाए हुए भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाती हैं और अधिक समावेशी राजनीतिक परिदृश्य की ओर प्रगति को बाधित करती हैं। पीठ ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधि, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिला को हटाने को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उन महिलाओं के प्रयासों की अनदेखी करता है जो ऐसे पदों को हासिल करने और बनाए रखने के लिए करती हैं। हम दोहराना चाहेंगे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से संबंधित हो। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं जो ऐसे सार्वजनिक पदों पर कब्जा करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं" ।

अदालत ने कड़े बयान तब दिए जब उसने आदेश दिया कि मनीषा रवींद्र पानपाटिल को उनके कार्यकाल के अंत तक महाराष्ट्र के जलगांव जिले के विचखेड़ा की सरपंच के रूप में बहाल किया जाए। इसके फैसले ने स्थानीय अधिकारियों के फैसले को पलट दिया, जिन्होंने सरकारी जमीन पर रहने के दावे पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था - एक आरोप जिसे अदालत ने निराधार पाया। पानपाटिल फरवरी 2021 में निर्वाचित हुई थीं। 

अपने आदेश में, अदालत ने सरकारी अधिकारियों से शासन में महिलाओं के लिए अधिक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने का आह्वान किया, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसने प्रशासनिक निकायों के लिए “खुद को संवेदनशील बनाने और अधिक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काम करने” की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने पाया कि निजी शिकायतकर्ताओं की कार्रवाई, जिन्होंने पानपाटिल की अयोग्यता की मांग की थी, एक महिला सरपंच द्वारा गांव की ओर से निर्णय लेने और अधिकार का प्रयोग करने के प्रतिरोध से प्रेरित थी। इसने कहा, “यह हमें एक क्लासिक मामला लगता है, जहां गांव के निवासी इस तथ्य से सहमत नहीं हो सके कि अपीलकर्ता, एक महिला होने के बावजूद, उनके गांव के सरपंच के पद पर चुनी गई थी।” लिंग-आधारित बहिष्कार के एक पैटर्न पर प्रकाश डालते हुए, अदालत ने टिप्पणी की कि अस्पष्ट दावों के आधार पर और उचित तथ्य-जांच के बिना पानपाटिल को हटाना, स्थानीय शासन में महिलाओं की भूमिकाओं के प्रति आधिकारिक उदासीनता के एक व्यापक मुद्दे को रेखांकित करता है। 

Dynamic Start for UTSAV Interior & Furniture Expo MMRDA BKC: Over 10k Enthusiastic Visitors Thrilled by Premium Offerings

Mumbai, 10th August 2024: Utsav Exhibition (Consumer, Interior & Furniture Expo) at MMRDA BKC delighted more than 10,000 visitors on its opening day with a grand showcase of premium brands and the presence of prominent content creators. Organized by Expo India Exhibition Pvt Ltd, a stalwart in the exhibition industry for over 25 years, the event has become the epicenter of the International Furniture, Home Decor & Consumer Exhibition, boasting an extensive range of products from kitchenware and appliances to lifestyle, fashion, and health products.

The exhibition, which started on August 9th and will conclude on August 15th, 2024, has already garnered widespread attention and praise. As one of Maharashtra's largest trade fair events, Utsav has attracted participants from diverse industries, creating a dynamic platform for interaction and commerce.

Ace journalist and renowned content creator Rajveer Singh on Instagram) immersed himself in the exhibition, engaging with exhibitors and organizers to gain insights into the showcased brands and the overall event experience.

Utsav Exhibition witnessed visitors and also brands interacting & clicking pictures with several prominent instagram content creators who attended the exhibition on August 9th. These creators included Bollywood actress winning photographer and some very creative & renowned influencers like and exhibition also featured an impressive lineup of exhibitors, showcasing renowned brands such as Shree Guruji Products, Kytes India, Andros India, Ruchira Exports, Ammarzo, Rajasthan Hastakala Bedsheets, Orient Ceramics, Hakim Afghan Dryfruits from Afghanistan, D’Sunnar Jewellery, Being You Cosmetics, Rajasthani Jewellery, Shabreen Designer, Usha International, Dimple Creation, Jutie Pie, Mangalam Organics, Fashion Icon, Humaira Collection, Mojari Master, Punjabi Jutti, Nature’s Bell, Timeless Treasure, Magic Steam Iron, Cristalli Jewellery, Nakshi Art, Jimmy Bags, Swad Foods, Supreme Foods, Borges India, Sunpure Oil, Chitale Bandhu, Gadre Foods, Home Interiors, Comfy Living, INWOFU, PureWoods Furniture, Om Artifacts, SpaceMagic, Carpet Home Décor, Aasif Handicraft, Vintage Art, Chisti Marble, Devis Modular Kitchen, Indian Handicraft, Veer Fitness, and Godrej Security Solutions.

Rajveer's interactions with Utsav's Organisers, Mr Javed (Director), Kruti Galia, Bini Prajapati, and Altaf Shaikh, revealed their gratitude to visitors and exhibitors for making the exhibition a resounding success. With over 10,000 visitors on the opening day, the event witnessed families flocking in for a delightful shopping experience.

As Utsav Exhibition enters its final week, exclusive and exciting offers tempt you to visit the exhibition for purchasing unique products. Attendees are encouraged to experience the excellence showcased by premium brands. With huge discounts on a diverse range of products catering to various lifestyle needs, the exhibition promises an unparalleled shopping experience for all.

One more exciting week awaits you to grab the opportunity to visit Utsav Exhibition at BKC, MMRDA Grounds, near Asian Heart Hospital, from 12 noon to 9 pm.

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ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణపై సుప్రీం కీలక తీర్పు

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది..

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది. 6:1 మెజారిటీతో సీజేఐ జస్టిస్ డి.వై. చంద్రచూడ్ నేతృత్వంలోని రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఈ తీర్పును వెల్లడించింది. గురువారం నాడు వర్గీకరణపై సుదీర్ఘ విచారణ జరిపిన ఏడుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం.. ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణ సమర్థనీయమని స్పష్టం చేసింది. కాగా.. ఈ వర్గీకరణను మెజారిటీ సభ్యులు సమర్థించగా.. జస్టిస్‌ బేలా త్రివేది మాత్రం వ్యతిరేకించారు. ఎస్సీలు చాలా వెనుకబడిన వర్గాలుగా ఉన్నారని.. విద్య, ఉద్యోగాల్లో రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణ అవసరం ఉందని.. వర్గీకరణచేసే వెసులుబాటు రాష్ట్రాలకు ఉండాలని సుప్రీం స్పష్టం చేసింది. ఈ మేరకు 2004లో ఐదుగురు సభ్యులు ఇచ్చిన తీర్పును తాజా తీర్పు తర్వాత ధర్మాసనం పక్కనబెట్టింది. ఈ తీర్పును అనుసరించి తదుపరి మార్గదర్శకాలను అనుసరించాలని ప్రభుత్వాలకు న్యాయస్థానం సూచించింది.

సామాజిక న్యాయం లక్ష్యంగా భారత రాజ్యాంగం దేశంలో విడిపోయి ఉన్న కులాలను చాలా శాస్త్రీయంగా అంటే ఎస్సీ, ఎస్టీ, బీసీ, ఎఫ్.సి.లుగా వర్గీకరించింది. షెడ్యూల్ కులాలకు సంబంధించి అంటరానితనానికి గురవుతున్న కులాలను ఒకే గొడుగు కిందికి తీసుకొచ్చి వారికి రిజర్వేషన్ అవకాశాలు కల్పించింది. అయితే ఇలా కులపరంగా రిజర్వేషన్ పొందుతున్న తరగతుల్లో మాలలే అగ్ర భాగాన ఉన్నారని ఆరోపిస్తూ, ఈ తేడాను సవరించాలని ఎమ్మార్పీఎస్ ఉద్యమం చేస్తూ ఎ, బి, సి, డి కేటగిరీల వారీగా ఎస్సీలను వర్గీకరించాలని కొన్నేళ్లుగా ప్రభుత్వాలు, న్యాయస్థానాలను కోరుతూ వస్తోంది. ఇదిలా ఉంటే.. పంజాబ్‌ ప్రభుత్వం తీసుకువచ్చిన ‘ద పంజాబ్‌ షెడ్యూల్డ్‌ క్యాస్ట్స్‌ అండ్‌ బ్యాక్‌వర్డ్‌ క్లాసెస్‌ (రిజర్వేషన్‌ ఇన్‌ సర్వీసెస్‌) యాక్ట్‌-2006’ను సవాలు చేస్తూ పదుల సంఖ్యలో ధర్మాసనంకు పిటిషన్లు వచ్చాయి. ఇందులో ఎమ్మార్పీఎస్‌ వ్యవస్థాపక అధ్యక్షుడు మందకృష్ణ మాదిగ పిటిషినర్‌గా ఉన్నారు.

ప్రస్తుతం కేంద్ర ప్రభుత్వం ఎస్సీలకు 22.5% రిజర్వేషన్‌ కల్పిస్తుండగా.. పంజాబ్‌లో అది 25శాతంగా ఉంది. పంజాబ్‌ రిజర్వేషన్ల చట్టంలోని సెక్షన్‌ 4(5) ప్రకారం.. ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో వాల్మీకి, మజ్హబీ సిక్కులు పోటీలో ఉంటే.. వారికి ప్రాధాన్యతనిస్తూ 50% కోటాను కేటాయించాలి. ఈ చట్టం వల్ల ఎస్సీల్లోని ఇతర కులస్థులు ఉద్యోగావకాశాలను కోల్పోతున్నారని, ఇది రాజ్యాంగ విరుద్ధమంటూ పంజాబ్‌-హరియాణా హైకోర్టులో పిటిషన్లు దాఖలయ్యాయి. 2010లో పంజాబ్‌ సర్కారుకు వ్యతిరేకంగా హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది. 2011లో పంజాబ్‌ సర్కారు దీనిపై సుప్రీంకోర్టులో అప్పీల్‌కు వెళ్లగా.. ఇతర పిటిషనర్లు సైతం వ్యాజ్యాలను దాఖలు చేశారు. 2020 ఆగస్టు 27న జస్టిస్‌ అరుణ్‌ మిశ్రా(ప్రస్తుతం రిటైర్‌ అయ్యారు) నేతృత్వంలోని త్రిసభ్య ధర్మాసనం ఈ విషయాన్ని పరిశీలించేందుకు విస్తృత రాజ్యాంగ ధర్మాసనం అవసరమని స్పష్టం చేశారు. అసలు.. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల వర్గీకరణ చేయొచ్చా? అనే అంశంపై న్యాయపరమైన ప్రశ్నలను పరిశీలించేందుకు ఏడుగురు సభ్యుల సుప్రీంకోర్టు రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఏర్పాటైంది. ఇందులో చీఫ్‌ జస్టిస్‌ డీవై చంద్రచూడ్‌తోపాటు.. జస్టిస్‌ బీఆర్‌ గవాయి, జస్టిస్‌ విక్రమ్‌నాథ్‌, జస్టిస్‌ బేలా.ఎం.త్రివేది, జస్టిస్‌ పంకజ్‌ మిత్తల్‌, జస్టిస్‌ మనోజ్‌ మిశ్రా, జస్టిస్‌ సతీశ్‌చంద్ర మిశ్రాల ధర్మాసనం ఈ విచారణను ప్రారంభించింది.

ఈ కేసులో పిటిషనర్లు 2004 నాటి ‘ఈవీ చిన్నయ్య వర్సెస్‌ స్టేట్‌ ఆఫ్‌ ఆంధ్రప్రదేశ్‌’ కేసులో సుప్రీంకోర్టు ఐదుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం తీర్పును ఉటంకించారు. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల్లో వర్గీకరణ చేయడం రాజ్యాంగ విరుద్ధమని, అలాంటి నిర్ణయాలు భారత రాజ్యాంగంలోని 14వ అధికరణ(చట్టం ముందు అంతా సమానులే)ను ఉల్లంఘిస్తోందని 2004 నాటి తీర్పు స్పష్టం చేస్తోంది. దీనికి తోడు.. ఎస్సీ కులాల గుర్తింపు బాధ్యత పార్లమెంట్‌కు మాత్రమే ఉంటుందని, ఆయా కులాలను రాజ్యాంగంలోని ఆర్టికల్‌ 341 మేరకు రాష్ట్రపతి మాత్రమే నోటిఫై చేస్తారని పిటిషనర్లు తమ వ్యాజ్యాల్లో పేర్కొనడం జరిగింది. ఇదంతా ఈ ఏడాది ఫిబ్రవరిలో జరిగింది. ఈ క్రమంలోనే.. ఇవాళ 2004 నాటి ఈవీ చిన్నయ్య తీర్పును వ్యతిరేకిస్తూ.. రాష్ట్రాలు ఉపవర్గీకరణ చేసుకునేందుకు అనుమతి కల్పిస్తున్నట్లు సీజేఐ ధర్మాసనం స్పష్టంచేసింది.

ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో క్యాటగిరి చేసుకునే అంశంపై పంజాబ్ ప్రభుత్వం, తెలుగు రాష్ట్రాల నుంచి ఎమ్మార్పీఎస్ సుప్రీంకోర్టు ఆశ్రయించిన విషయం తెలిసిందే. తాజా తీర్పుతో ఆయా వర్గాలు, నేతలు సంతోషం వ్యక్తం చేస్తున్నారు. ఈ తీర్పును కేంద్ర మంత్రి కిషన్ రెడ్డి స్వాగతిస్తున్నట్లు తెలిపారు. పేదలకు న్యాయం జరగాలన్నదే మోదీ సర్కార్ ఉద్దేశమని.. ప్రభుత్వ ఫలాలు అందరికీ అందాలని చెప్పుకొచ్చారు.

మరోవైపు.. సుప్రీంకోర్టు తీర్పుపై ఎమ్మార్పీఎస్ అధినేత మంద కృష్ణ మాదిగ స్పందిస్తూ భావోద్వేగానికి లోనయ్యారు. మీడియా ఎదుటే ఆయన కంటనీరు పెట్టుకున్నారు. ‘మా 30 ఏళ్ల పోరాటానికి న్యాయం జరిగింది. సుప్రీంకోర్టు తీర్పు న్యాయాన్ని బతికించింది. ఈ ప్రక్రియ వేగవంతానికి ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ చొరవ తీసుకున్నారు. అమిత్‌షా, వెంకయ్యనాయుడు, కిషన్‌రెడ్డికి ధన్యవాదాలు. వర్గీకరణ చేసిన ఆంధ్రప్రదేశ్ ముఖ్యమంత్రి నారా చంద్రబాబుకు ప్రత్యేక ధన్యవాదాలు. ఈ విజయాన్ని అమరులకు అంకితం ఇస్తున్నాం. రిజర్వేషన్ల సిస్టమ్ ఇప్పుడు రెండో అడుగు వేయబోతుంది. తెలుగు రాష్ట్రాల్లో వర్గీకరణ అనివార్యం. వర్గీకరణకు సంబంధించిన జీవోలు వచ్చిన తర్వాతే ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి. ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు సరిచేసుకోవాల్సిన అవసరం ఉంది. రీ-నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి’ అని కేంద్ర, రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలను మందకృష్ణ మాదిగ కోరారు. వర్గీకరణకు జనాభా లెక్కలతో పనిలేదని మరోసారి గుర్తు చేశారు. త్వరలో విజయోత్సవ సభ.. ఇందుకు సహకరించిన వారికి కృతజ్ఞత సభలు ఉంటాయని మందకృష్ణ వెల్లడించారు.

कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब, जानें क्या बताई वजह

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उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों पर नामपट्टिका लगाने के अपने आदेश का बचाव किया है। सुप्रीम कोर्ट को जवाब देते हुए यूपी सरकार ने कहा, यह आदेश इसीलिए लागू किया गया था जिससे गलती से भी कांवड़िए किसी दुकान से कुछ ऐसा न खा लें जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो।

उत्तर प्रदेश में कांवड़ रूट पर मौजूद दुकानों में मालिक के नाम की नेम प्लेट लगाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। यह मामला मुजफ्फरनगर से शुरू हुआ था जिसके बाद योगी सरकार के आदेश देने के बाद यह पूरे प्रदेश में लागू हो गया था। इस आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 22 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से शुक्रवार (26 जुलाई) तक जवाब मांगा था और राज्यों के जवाब देने तक इस आदेश पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई आज 26 जुलाई को होगी।

आदेश का उद्देश्य पारदर्शिता कायम करना

इससे पहले यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके दिशा-निर्देश कांवड़ यात्रा के शांतिपूर्ण समापन और पारदर्शिता कायम करने के लिए उद्देश्य से दिए गए थे। निर्देश के पीछे का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान पारदर्शिता कायम करना और यात्रा के दौरान उपभोक्ताओं/कांवड़ियों को उनके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में जानकारी देना था। ये निर्देश कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर दिए गए ताकि वे गलती से कुछ ऐसा न खाएं, जो उनकी आस्थाओं के खिलाफ हो। 

+संभावित भ्रम से बचने का उपाय

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया है, मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने किया याचिकाओं का विरोध

उत्तर प्रदेश सरकार ने नेमप्लेट विवाद में दाखिल याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि, हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाता है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए जाएं।

NEET UG 2024: ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై ఐఐటీ డైరెక్టర్‌కు సుప్రీంకోర్టు కీలక ఆదేశం

నీట్-యూజీ 2024 పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ డైవై చంద్రచూడ్ సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

 నీట్-యూజీ 2024 (NEET-UG 2024) పరీక్షా పత్రంలో చర్చనీయాంశమైన ఫిజిక్స్ ప్రశ్నపై సరైన సమాధానం కోసం ఐఐటీ-ఢిల్లీ డైరెక్టర్‌కు సీజేఐ (CJI) డైవై చంద్రచూడ్ (DY Chandachud) సారథ్యంలోని సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) ధర్మాసనం సోమవారంనాడు కీలక ఆదేశాలు జారీ చేసింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఈ ప్రశ్నకు సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి జూన్ 23వ తేదీ మధ్యాహ్నం 12 గంటల లోపు దానిపై సమాధానం సమర్పించాలని ఆదేశించింది. మంగళవారంనాడు కూడా విచారణ కొనసాగనుంది.

నీట్ పరీక్షా పత్రం, లీకేజీ అవకతవలపై సుప్రీంకోర్టు సోమవారం తిరిగి విచారణ జరిగింది.

గ్రేస్ మార్కులకు దారితీసిన ఫిజిక్స్ ప్రశ్న అంశాన్ని పిటిషనర్లు కోర్టు దృష్టికి తెచ్చారు.

ఒక ప్రశ్నకు రెండు సరైన సమాధానాలు ఇచ్చి, మార్కులు మాత్రం ఒకదానికే వేశారని, దానికి గ్రేస్ మార్కులు ఇచ్చినా, ఇవ్వకపోయినా కూడా మెరిట్ లిస్ట్ మారే అవకాశం ఉందని పిటిషనర్లు వాదించారు.

దీనిపై ధర్మాసనం వెంటనే స్పందిస్తూ, సరైన సమాధానం కోసం ముగ్గురు నిపుణులను ఏర్పాటు చేసి ఆ సమాధానం తమకు సమర్పించాలని ఢిల్లీ-ఐఐటీ డైరెక్టర్‌ను ఆదేశించింది.

ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా? లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ ఆగ్రహం

సుప్రీం కోర్టు(Supreme Court) ప్రధాన న్యాయమూర్తి జస్టిస్ డీవై చంద్రచూడ్ న్యాయవాదిపై తీవ్ర ఆగ్రహం వ్యక్తం చేశారు. కూల్చివేతకు సంబంధించిన కేసు విచారణలో భాగంగా లాయర్ వస్త్రధారణపై సీజేఐ మండిపడ్డారు.

అయితే, కోర్టుకు హాజరయ్యే లాయర్లు తప్పనిసరిగా ధరించాల్సిన నెక్‌బ్యాండ్‌ ఆ న్యాయవాది ధరించలేదు. దీంతో, సీజేఐ న్యాయవాదిని ఉద్దేశించి ఘాటు వ్యాఖ్యలు చేశారు.

మీ మెడ చుట్టూ ఉండే బ్యాండ్ ఎక్కడ ఉంది? ఇక్కడేమైనా ఫ్యాషన్ షో జరుగుతోందా?” అని ప్రశ్నించారు.

ఈమెయిల్ పంపాలని ఆదేశించారు. హడావిడిగా వచ్చానని న్యాయవాది చెప్పినప్పుడు మరింత కఠినంగా సీజేఐ సమాధానమిచ్చారు.

క్షమించండి, మీరు సరైన వస్త్రధారణలో లేకుంటే కేసు వినేది లేదు" అని స్పష్టం చేశారు.

బార్ కౌన్సిల్ ఆఫ్ ఇండియా (Bar Council)నిబంధనల ప్రకారం కోర్టుకు హాజరయ్యే న్యాయవాదులకు డ్రెస్ కోడ్‌ తప్పనిసరి. సుప్రీంకోర్టు, హైకోర్టు, కింది కోర్టులు, ట్రైబ్యునల్స్ లేదా అథారిటీలలో హాజరయ్యే న్యాయవాదాలు డ్రెస్ కోడ్ తప్పనిసరిగా పాటించాల్సి ఉంటుంది.

ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत, बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में हाई तोक्ट के फैसले पर लगाई अंतरिम रोक
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पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इसमें शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सीबीआई अपनी जांच जारी रखे, लेकिन कर्मचारी-उम्मीदवारों पर कोई एक्शन न ले। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस साल 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की 25 हजार 753 नियुक्तियों को अवैध करार दे दिया था। साथ ही इन शिक्षकों को 7-8 साल के दौरान मिली सैलरी 12% इंटरेस्ट के साथ लौटाने के निर्देश भी दिए थे। इसके लिए कोर्ट ने 6 हफ्ते का समय दिया था।

बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि जब भर्ती प्रक्रिया पर पहले से सवाल उठ रहे थे तो नई नियुक्तियां क्यों की गईं?

अदालत में वकील नीरज कौशल कौल ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शिक्षकों और छात्रों के अनुपात को देखकर ही भर्तियां की गईं थीं। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने भी 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा है। राज्य सरकार के दूसरे वकील जयदीप गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि यह शीर्ष अदालत के ही फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने का फैसला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि शिक्षक भर्ती से जुड़ी कॉपियां क्यों खत्म की गईं? जिसके जवाब में वकील ने कहा कि कॉपियां अब नहीं मिल सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फिर पूछा का आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग अपना भरोसा खो देंगे।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को व्यवस्थागत धोखाधड़ी बताया। कोर्ट ने कहा कि आज नौकरियों की कमी है। अगर जनता का भरोसा चला गया तो कुछ नहीं बचेगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों ने मेनटेन किया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था। बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।

पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती को रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई है। कहा है कि वैध और अवैध भर्तियों को अलग करने की जरूरत है। तौर-तरीके पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तय किए जाएंगे। सिर्फ उन्हीं अभ्यर्थियों को वेतन लौटाने की जरूरत है, जिनकी भर्ती अवैध है, यह हमारे फैसले पर निर्भर करेगा। 16 जुलाई से मामले में रेगुलर सुनवाई होगी।
केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर नहीं हुआ कोई फैसला, सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई आदेश नहीं
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दिल्ली शराब घोटाले में जेल में बंद दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई, लेकिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना कोई आदेश दिए उठ गई।इस मामले में कोर्ट की ओर से कोई आदेश नहीं जारी किया गया और सुनवाई 9 मई या अगले हफ्ते में पूरी होगी।केजरीवाल ने कोर्ट में अंतरिम जमानत देने की मांग की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए 3 मई को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर विचार किया जा सकता है।

आज सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलें सुनने के बाद 2ः30 बजे सीएम केजरीवाल पर फैसला सुनाने की बात कही थी। मगर आखिरी समय में सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना फैसला सुनाए ही उठ गई। अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत आज खत्म हो गई थी और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके अंतरिम जमानत की अर्जी डाली थी। वहीं सीएम की रिहाई के खिलाफ ईडी के वकील ने भी कई दलीलें पेश की, जिसके बाद कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है।

मामले की सुनवाई के दौरान ईडी ने कोर्ट को बताया कि अरविंद केजरीवाल साल 2022 में गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान 7 स्टार ग्रैंड हयात होटल में ठहरे थे और होटल के बिल का भुगतान चनप्रीत सिंह द्वारा किया गया था। चनप्रीत सिंह पर आरोप है कि गोवा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए उन्हें ही कथित तौर पर फंड मिला था। ईडी के वकील एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने केजरीवाल की अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि 'यह राजनीति से प्रेरित मामला नहीं है। हम इस मामले में हो रही राजनीति को लेकर चिंतित नहीं हैं, लेकिन हमारी चिंता सबूतों को लेकर है। शुरुआत में अरविंद केजरीवाल पर हमारा फोकस नहीं था और न ही ईडी केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई का विचार कर रही थी, लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी तो केजरीवाल की भूमिका साफ हो गई।'

जमानत पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि लोकसभा चुनाव चल रहा है। यह एक असाधारण मामला है। केजरीवाल चुने हुए मुख्यमंत्री हैं। वह किसी अन्य मामले में शामिल नहीं हैं। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कृपया मामले को पूरा सुनें। हम क्या उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। वह एक मुख्यमंत्री हैं और प्रचार करना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैंपेन से कोई नुकसान नहीं है। एसजी ने कहा कि अगर एक किसान को अपने खेत की देखभाल करनी है और एक किराना दुकान के मालिक को अपनी दुकान पर जाना है तो एक मुख्यमंत्री को आम आदमी से अलग कैसे माना जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक लोगों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केस की मेरिट पर नहीं जा रहे हैं, सिर्फ अंतरिम जमानत पर दलील रखिए. ये लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक कार्यकारी को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हमने फैसला सुरक्षित रखा तो उसे सुनाना भी पड़ेगा। यदि हम फिर से याचिका स्वीकार करने का निर्णय लेते हैं तो चुनाव प्रचार का यह दौर चला जाएगा।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अगर अदालत हमें अंतरिम जमानत का जवाब देने के लिए कहती है तो इस अदालत को उनकी भूमिका पर सुनवाई करनी चाहिए। अगर वह प्रचार नहीं करेंगे तो आसमान नहीं गिर जाएगा। सिर्फ इसलिए कि उनके पास समय खत्म हो रहा है। एसजी ने कहा कि हम राजधानी के सीएम के साथ काम कर रहे हैं और वह 6 महीने तक समन से बचते रहे हैं। कृपया कोई अपवाद न बनाएं, क्योंकि यह एक वास्तविक आम आदमी को हतोत्साहित करेगा।

अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीएम को जमानत देने की तरफ इशारा किया था। कोर्ट ने सीएम केजरीवाल के वकील से पूछा कि जमानत मिलने के बाद केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय का कोई काम नहीं करेंगे। इसपर सीएम के वकील ने हलफनामा दायर करके कोर्ट की शर्त पूरी करने की गारंटी दी थी। ऐसे में कोर्ट ने 2ः30 बजे फैसला सुनाने की बात कही। मगर अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना फैसला सुनाए ही उठ गई। सीएम की याचिका पर अगली सुनवाई 9 मई को होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत पर एससी में चल रही सुनवाई




दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी जाए या नहीं, सुप्रीम कोर्ट आज इस बात पर विचार कर रहा है. अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू ने दलीलें रखीं. एएसजी राजू ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मनीष सिसोदिया की जमानत रद्द होने के बाद 1100 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गई है. इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि अपराध की आय 100 करोड़ थी.. यह 2-3 सालों में 1100 करोड़ कैसे हो गई. यह रिटर्न की एक अभूतपूर्व दर होगी.

जस्टिस खन्ना की इस टिप्पणी पर एएसजी राजू ने कहा कि 590 करोड़ थोक व्यापारी का मुनाफा है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतर लगभग 338 करोड़ था और यह पूरी चीज अपराध की आय नहीं हो सकती. इसके बाद ईडी की ओर से एएसजी राजू ने कहा कि जब हमने जांच शुरू की तो हमारी जांच सीधे तौर पर उनके (अरविंद केजरीवाल) खिलाफ नहीं थी. जांच के दौरान उनकी भूमिका सामने आई. इसीलिए शुरुआत में उनके बारे में एक भी सवाल नहीं पूछा गया. जांच उन पर केंद्रित नहीं थी. मामले में दोनों ओर से जिरह और सुनवाई जारी है।