50 साल पहले जब इंदिरा गांधी ने देश में लगा दिया था आपातकाल, जानें इमरजेंसी का “काला सच”
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25 जून 1975 की आधी रात जब देश पर आपातकाल थोप दिया गया था। लोकतंत्र के इतिहास में इस दिन को काला दिन माना जाता है। यही वो दिन था जब तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत, इंदिरा गांधी की सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की। देश में आपातकाल लग चुका है इसका ऐलान खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर किया।
25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। 26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर कहा, 'राष्ट्रपति ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है...'। इसके बाद से ही विपक्षी नेताओं में हलचल मच गई और गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया था। पौ फटने के पहले ही विपक्ष के कई बड़े नेता हिरासत में ले लिए गए। यहां तक कि कांग्रेस में अलग सुर अलापने वाले चंद्रशेखर भी हिरासत में लिए गए नेताओं की जमात में शामिल थे।
ये इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक देशभर में लागू रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये 21 महीने काफी विवादास्पद रहे। लोकतांत्रिक देश में भी ऐसा कुछ हो सकता है, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। यह भी कि लोकतांत्रिक देश की संसद में किसी दल की मजबूती का बेजा इस्तेमाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इन 21 महीनों में जो कुछ भी हुआ। सत्ता दल अभी भी कांग्रेस को समय-समय पर कोसते रहते हैं। गांधी परिवार के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने इस इमरजेंसी को गलत बताया और खुले तौर पर माफी भी मांगी थी।
इंदिरा सरकार ने बताई आपातकाल लागू करने के पीछे कई वजहें
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1971 के लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी। तत्कालीन 521 सदस्यीय संसद में कांग्रेस ने 352 सीटें जीती थीं। उन दिनों इंदिरा गांधी की सरकार पर भारत अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। बिहार में जयप्रकाश नारायण (JP) का आंदोलन चल रहा था। 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल चल रही थी। आपातकाल लागू करने के पीछे कई वजहें बताई जाती हैं। इसमें से मुख्य कारण था राजनीतिक अस्थिरता।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद बढ़ा तनाव
इस राजनीतिक अस्थिरता की शुरुआत उस वक्त हुई, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी पाया और उन्हें छह साल के लिए किसी भी चुने हुए पद पर आसीन होने से वंचित कर दिया। इस फैसले के बाद, देश भर में विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक तनाव बढ़ गया।
इन्ही सब को देखते हुए इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी। इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने दावा किया कि देश में गहरी अशांति और आंतरिक अस्थिरता है, जिसके चलते राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। इसी कारण से उन्होंने आपातकाल की घोषणा की, जिससे वे बिना किसी विधायी और न्यायिक हस्तक्षेप के सरकार चला सकें।
असहमति के हर स्वर का मुंह बंद किया
इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं को जेल में डालने का सिलसिला शुरु हो गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई समेत कई बड़े नेताओं का नाम था, जो कई महीनों और सालों तक जेल में पड़े रहे थे। आरएसएस समेत 24 संगठनों पर बैन लगा दिया गया। इसके अलावा, इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में व्यापक सामाजिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें जबरन नसबंदी और स्लम क्लीयरेंस जैसे कठोर उपाय शामिल थे। कई इतिहासकारों का मानना है कि आपातकाल का उपयोग इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को मजबूत करने और विरोधी आवाजों को दबाने के लिए किया। यह घटना भारतीय लोकतंत्र पर एक गहरा आघात थी और इसने देश के राजनीतिक इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी।
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