ये कैसा युद्धविराम? सीजफायर के बीच इजरायल ने लेबनान पर दागी मिसाइलें

#israeli_strikes_on_lebanon_killing_11_people 

इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, लेबनान में 27 नवंबर को हुए युद्धविराम के बावजूद दोनों पक्षों से हमले जारी हैं। हिजबुल्लाह के साथ लंबे समय से जारी युद्ध के बीच लागू हुए सीजफायर के बाद इजरायल ने लेबनान में अपना सबसे बड़ा एयर स्ट्राइक किया है। दो दिसंबर (सोमवार) को इजरायली लड़ाकू विमानों ने हिजबुल्लाह के ठिकानों पर कई मिसाइलें दागी। जिससे करीब 11 लोगों की मौत हुई है।इजरायल ने ये हमले लेबनान से हिजबुल्लाह के मोर्टार दागे जाने के बाद किए हैं। पिछले बुधवार को 60 दिनों के युद्ध विराम को प्रभावी होने के बाद हिजबुल्लाह का इजरायल के ऊपर मोर्टार दागे जाने का यह पहला मामला है।

27 नवंबर इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच करीब एक साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से युद्ध विराम हुआ था।हालांकि युद्ध विराम के बावजूद दोनों देश एक दूसरे पर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए युद्धविराम के प्रोटोकॉल को बार-बार तोड़ते नजर आ रह हैं।

एक बयान में इजरायली रक्षा बलों ने कहा कि लड़ाकू विमानों ने लेबनान में हिजबुल्लाह के ऑपरेटिव्स और दर्जनों रॉकेट लांचरों और आतंकी समूह से संबंधित सुविधाओं पर हमला किया। हिजबुल्लाह ने इसके पहले सोमवार को दावा किया था कि उसने पिछले सप्ताह हुए युद्ध विरम समझौते के बार-बार उल्लंघन के जवाब में मोर्टार दागे और इसे संघर्ष विराम के दौरान लेबनान पर आईडीएफ के हमलों के खिलाफ 'प्रारंभिक चेतावनी' बताया था।

आईडीएफ ने कहा कि हमले के दौरान उसने हिजबुल्लाह की सुविधाओं के अलावा माउंट डोव पर दो मोर्टार दागने के लिए इस्तेमाल किए गए लांचर को भी निशाना बनाया। इजरायली सेना के अनुसार, हमले के कुछ समय बाद ही साइट को निशाना बनाया गया। सेना ने कहा, 'इजराइल की मांग है कि लेबनान में संबंधित पक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें और लेबनानी क्षेत्र के भीतर हिज्बुल्लाह की शत्रुतापूर्ण गतिविधि को रोकें। इजराइल लेबनान में युद्ध विराम समझौते की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य है।

27 नवंबर की सुबह हुए युद्धविराम में यह तय किया गया है कि इजरायल लेबनान में नागरिक, सैन्य या अन्य सरकारी लक्ष्यों के खिलाफ आक्रामक सैन्य अभियान नहीं चलाएगा। वहीं लेबनान हिजबुल्ला समेत किसी भी सशस्त्र समूह को इजरायल के खिलाफ अभियान चलाने से रोकेगा। लेबनान और इजरायल ने पहले ही एक-दूसरे पर युद्धविराम के उल्लंघन का आरोप लगा चुके हैं।

इजरायल-लेबनान सीज़फायर पर भारत का बड़ा बयान, जानें क्या कहा?*
#india_welcomes_ceasefire_between_israel_and_lebanon
इजरायल और हिजबुल्लाह में समझौते के बाद लेबनान में युद्ध विराम हो गया है। इजराइल और ईरान समर्थित हथियारबंद समूह हिज़्बुल्लाह के बीच एक युद्धविराम समझौते की घोषणा के बाद पिछले 13 महीनों से चल रही लड़ाई थम जाएगी। इस समझौते के तहत 60 दिनों का युद्ध विराम रहेगा और हिजबुल्ला दक्षिण लेबनान से पीछे हटेगा। दोनों के बीच सालभर से अधिक समय तक संघर्ष चला। इजरायल-हिजबुल्लाह के बीच सीज फायर का ऐलान होने के बाद भारत का बड़ा बयान सामने आया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर शांति समझौते का स्वागत किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि "हम इजरायल और हिजबुल्लाह में हुए शांति समझौते का स्वागत करते हैं। हम हमेशा हमलों में वृद्धि को रखने शांति स्थापित करने और बातचीत के रास्ते पर लौटने की पक्षधर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस फैसले से पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता आएगी। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि इजरायल और लेबनान के हिज्बुल्ला ने अमेरिकी मध्यस्थता वाले शांति समझौते को स्वीकार कर लिया है, जिसे दोनों पक्षों के बीच शत्रुता की ‘‘स्थायी समाप्ति’’ के उद्देश्य से तैयार किया गया है। बाइडेन ने इजरायल और हिज्बुल्ला के बीच हुए युद्धविराम समझौते को ‘‘अच्छी खबर’’ बताया और उम्मीद जताई कि 13 महीने से अधिक समय से जारी लड़ाई में विराम गाजा में युद्ध को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा। इजराइल और लेबनान के बीच युद्ध विराम आधिकारिक तौर पर बुधवार तड़के चार बजे से प्रभावी हो गया। इसी के साथ लेबनान से विस्थापित हजारों लोग स्वदेश लौटने के लिए तैयार हो गए हैं। लेबनान की सेना ने विस्थापित नागरिकों से दक्षिणी लेबनान के कस्बों और गांवों में लौटने से पहले इजराइली सैनिकों के हटने का इंतजार करने का आह्वान किया है। लेबनान में इस समय संयुक्त राष्ट्र अंतरिम शांति सेना के 10 हजार जवान मौजूद हैं। *समझौते में 60 दिनों का युद्धविराम* इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच हुए सीजफायर की शर्तों के अनुसार इस समझौते में 60 दिनों का युद्धविराम किया गया है। सीजफायर के अनुसार इजरायली सैनिक लेबनान से वापस जाएंगे। हिजबुल्लाह के लड़ाके भी दक्षिणी लेबनान में इजरायली सीमा से हटेंगे। वहीं, समझौते में इस बात पर जोर दिया गया है कि हिजबुल्लाह अगर युद्धविराम का उल्लंघन करता है तो इजरायल को हमला करने का अधिकार होगा। हालांकि, लेबनान की ओर से इस प्रावधान का कड़ा विरोध जताया गया।
इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर समझौता,लेबनान में लौटेगी शांति, जानें क्या हैं डील की शर्तें?

#israel_netanyahu_implement_ceasefire_with_lebanon 

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बड़ा ऐलान किया है। नेतन्याहू ने हिजबुल्लाह के साथ युद्धविराम करने की घोषणा की है। लेबनान में सीजफायर की डील पर इजरायली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू और उनकी वॉर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। ये युद्धविराम समझौता मध्य पूर्व में शांति के लिए किए गए एलान के बाद शुरू किया गया है। यह डील बुधवार को इजरायल के समयानुसार सुबह 4 बजे से प्रभावी हो गया है। वहीं गाजा में लड़ाई जारी रहेगी, गाजा में इजरायल ने फलस्तीनी हमास समूह को नष्ट करने की कसम खाई है।

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार शाम तेल अवीव में अपनी वॉर कैबिनेट की बुलाई। इसमें लेबनान के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के साथ 60 दिन के युद्धविराम पर चर्चा की गई। अमेरिकी समाचार वेबसाइट द हिल ने बताया कि इजरायली वॉर कैबिनेट ने लेबनान में हिजबुल्लाह के साथ संघर्षविराम पर सहमति जता दी है, जो बुधवार सुबह से शुरू हो जाएगा।

इजराइल और लेबनान के बीच बीते करीब दो महीने से जारी जंग में हजारों लोगों की जान जाने के बाद आखिरकार दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम पर सहमति बन गई। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने औपचारिक रूप से इसकी आधिकारिक घोषणा की। नेतन्याहू ने इजरायल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम मध्य पूर्व की तस्वीर बदल रहे हैं। एक अच्छा समझौता वो होता है, जिसे लागू किया जा सके।’ 

बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध विराम करने के तीन कारण बताएः-

-उन्होंने कहा कि पहला कारण ईरानी खतरे पर ध्यान केंद्रित करना है, और मैं उस पर विस्तार से नहीं बताऊंगा। 

-दूसरा कारण हमारे बलों को राहत देना और स्टॉक को फिर से भरना है। मैं खुले तौर पर कहता हूं, हथियारों और युद्ध सामग्री की डिलीवरी में बड़ी देरी हुई है। ये देरी जल्द ही हल हो जाएगी। हमें उन्नत हथियारों की आपूर्ति मिलेगी जो हमारे सैनिकों को सुरक्षित रखेगी और हमें अपने मिशन को पूरा करने के लिए अधिक स्ट्राइक फोर्स देगी। इसके अलावा, युद्ध विराम करने का तीसरा कारण मोर्चों को अलग करना और हमास को अलग-थलग करना है। 

-बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि युद्ध के दूसरे दिन से, हमास अपने पक्ष में लड़ने के लिए हिजबुल्ला पर भरोसा कर रहा था। हिजबुल्ला के बाहर होने के बाद अब हमास अकेला रह गया है। हम हमास पर अपना दबाव बढ़ाएंगे और इससे हमें अपने बंधकों को रिहा करने के हमारे मिशन में मदद मिलेगी।

60 दिनों के लिए समझौता

रिपोर्ट के अनुसार, समझौते में 60 दिन के युद्धविराम की बात कही गई है, जिसके तहत इजरायली सेना पीछे हट जाएगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान से हट जाएगा। डील के अनुसार, इजरायली सेनाएं सीमा के अपने हिस्से में वापस लौट जाएंगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान के अधिकांश हिस्सों में अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म कर देगा।

हालांकि, नेतन्याहू ने कहा, यह युद्धविराम कितने समय तक चलेगा, यह कितना लंबा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लेबनान में क्या होगा। अगर हिजबुल्लाह युद्धविराम समझौते का उल्लंघन करता है तो, हम अटैक करेंगे। अगर हिजबुल्लाह बॉर्डर के पास आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देता है तो हम हमला करेंगे। नेतन्याहू ने आगे कहा, अगर हिजबुल्लाह रॉकेट लॉन्च करता है तो हम अटैक करेंगे। उन्होंने कहा, हम समझौते को लागू करेंगे और किसी भी उल्लंघन का जोरदार जवाब देंगे, जब तक हम जीत जाते हम एक साथ काम करते रहेंगे।

लेबनान के लिए समझौते के क्या मायने?

पिछले साल 7 अक्तूबर को इजराइल में घातक हमला हुआ था जिसके बाद पश्चिमी एशिया में तनाव फैल गया। यह संघर्ष बाद में कई मोर्चों पर शुरू हो गया जिसमें इजराइल और लेबनान में मौजूद गुट हिजबुल्ला भी आपस में भिड़ गए। इजराइल और हिजबुल्ला की खूनी जंग में लेबनान में 3750 से अधिक लोग मारे गए हैं और 10 लाख से अधिक लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा है।

इजराइल और हिजबुल्ला के बीच युद्ध विराम से क्षेत्रीय तनाव में काफी हद तक कमी आने की उम्मीद है। इजराइल के हमलों के चलते लेबनान में एक चौथाई आबादी विस्थापित हो गई है और देश के कुछ हिस्से, विशेष रूप से दक्षिणी लेबनान और राजधानी बेरूत के दक्षिणी इलाकों में, नष्ट हो गए हैं। ऐसे में युद्धविराम के बाद लेबनान में सामान्य स्थिति लौटने में मदद मिलेगी।

बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी, जानें इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले के पीछे की वजह

#israelipmbenjaminnetanyahuwantedcriminaliccissuearrest_warrant

इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध ने बड़ा रूप धारण कर लिया है। पिछले साल अक्‍टूबर में हमास के लड़ाकों ने इजरायल में घुसकर हजार से ज्‍यादा लोगों की निर्मम तरीके से हत्‍या कर दी थी और 250 से ज्‍यादा इजरयली नागरिकों को अगवा कर लिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने बदला लेने की कसम खाई। जिसके बाद शुरू हुई जंग बढ़ती ही जा रही है। इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान 40 हजार से ज्‍यादा मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। जबकि एक लाख से ज्‍यादा घायल हुए हैं। इस बीच इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने गुरुवार को युद्ध और मानवता के खिलाफ अपराधों को लेकर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योव गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

आईसीसी के जजों ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलंट और हमास के सैन्य कमांडर मोहम्मद डेफ के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया है। आईसीसी ने कहा कि इन नेताओं पर इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों का आरोप है। कोर्ट ने नेतन्याहू के खिलाफ आरोपों को लेकर जांच कराने का भी आदेश दिया है।

रिर्पोट के मुताबिक, आईसीसी ने पीएम नेतन्याहू और इजराइल के रक्षा मंत्री पर इजराइली सेना को फिलिस्तीनी नागरिकों को जानबूझ कर मारने का आदेश देने और गाजा में अंतराष्ट्रीय मानवीय मदद को पहुंचने से रोकने के मामले में दोषी पाया, जिससे वजह से वहां पर भुखमरी के स्तिथी बनी। कोर्ट ने अपने जांच में पाया कि इजराइली पीएम ने जंग के बहाने फिलिस्तीनियों नागरिकों की हत्याएं करवाईं और गाजा को तहस नहस करने का भी आदेश दिया। आईसीसी के जजों ने इन सभी पहलुओं को देखते हुए उनके खिलाफ वारंट जारी करने का फैसला लिया।

इजराइल के राष्ट्रपति ने कहा- आईसीसी का ये फैसला एक मजाक

इस फैसले पर इजराइल के राष्ट्रपति आइजैक हर्जोग ने कहा कि आईसीसी का यह फैसला एक मजाक बन गया है। फैसला आतंकवाद के पक्ष में गया है। वहीं, फिलिस्तीनी नेता मुस्तफा बारघौती ने नेतन्याहू और गैलंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का स्वागत किया और आईसीसी से इस्राइल के खिलाफ नरसंहार के मामले में जल्द फैसला लेने का अनुरोध किया।

अमेरिका ने क्या कहा?

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले पर अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की है। राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि इजरायल को आत्‍मरक्षा का पूरा अधिकार है। पीएम नेतन्‍याहू और अन्‍य के खिलाफ आईसीसी की ओर से जारी अरेस्‍ट वारंट के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्‍हें कौन और कहां की पुलिस गिरफ्तार करेगी? दरअसल, निर्धारित प्रावधानों के तहत आईसीसी के सदस्‍य देशों की पुलिस नेतन्‍याहू को गिरफ्तार कर सकती है। बता दें कि अमेरिका आईसीसी का सदस्‍य देश नहीं है। हालांकि, आईसीसी के फैसले पर अमल काफी मुश्किल है

इजरायल ने हिजबुल्लाह पर किया था पेजर अटैक, नेतन्याहू ने पहली बार सच कबूला

#israel_behind_pager_attack_on_hezbollah_pm_netanyahu_first_time_confirmed

लेबनान में हुए घातक पेजर अटैक को लेकर इजरायल की ओर से बड़ा खुलासा किया गया है। ये हमला इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आदेश पर हुआ था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार स्वीकार किया है कि सितम्बर में लेबनान के अंदर हिजबुल्लाह लड़ाकों के पेजर विस्फोट के पीछे इजरायल का हाथ था। बता दे कि सितम्बर में लेबनान में हिजबुल्लाह लड़ाकों के हजारों पेजर में कुछ ही समय के भीतर ब्लॉस्ट हुए थे। इसके अगले ही दिन वॉकी-टॉकी में भी विस्फोट हुआ था। इस हमले में करीब 40 लोग मारे गए थे, जबकि 3000 से ज्यादा घायल हुए थे। हिजबुल्लाह ने पहले ही उन विस्फोटों के लिए अपने कट्टर-दुश्मन इजराइल को दोषी ठहराया था।

नेतन्याहू ने रविवार को कहा कि उन्होंने सितंबर में लेबनानी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह पर पेजर हमले को मंजूरी दी थी। इजरायली प्रधानमंत्री के प्रवक्ता उमर दोस्तरी ने एएफपी को बताया, ‘नेतन्याहू ने रविवार को पुष्टि की कि उन्होंने लेबनान में पेजर ऑपरेशन को हरी झंडी दे दी।’ नेतन्याहू ने लेबनान पर इजरायली हमलों को लेकर पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। इजरायल ने अब तक इसमें शामिल होने की पुष्टि या खंडन नहीं किया था।

17 सितंबर को, हिज़बुल्लाह के गढ़ों में दो दिन तक लगातार हजारों पेजर फटे थे, जिसके लिए ईरान और हिज़बुल्लाह ने इज़रायल को इसका दोषी ठहराया था। पेजर हिज़बुल्लाह के सदस्यों द्वारा एक लो-टेक कम्युनिकेशन के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे, ताकि इज़रायल उनकी जगहों को ट्रैक ना कर सके। इस पेजर अटैक ने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। यहां तक कि अमेरिका तक को समझ नहीं आया कि यह हुआ कैसे?

हिजबुल्लाह ने इन हमलों के पीछे इजरायल को जिम्मेदार बताया था। विभिन्न रिपोर्टों में भी ऐसी ही जानकारी सामने आई थी। हालांकि, इजरायल ने कभी आधिकारिक तौर इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी नहीं ली थी।

रूस और ईरान की दोस्तीःअमेरिका और इजरायल के लिए क्यों है चिंता का विषय
#russia_iran_vs_america_israel

picture credit: Emirates policy






हाल के वर्षों में, रूस और ईरान के बीच बढ़ती साझेदारी मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक संतुलन के एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरी है, जो वॉशिंगटन और जेरूसलम में चिंता का कारण बन गई है। जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, वे क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ एक प्रभावशाली ताकत के रूप में सामने आ रहे हैं। सीरिया से लेकर मध्य पूर्व तक, यह रणनीतिक गठबंधन लंबे समय से अमेरिका के प्रभाव को बाधित करने और इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को जटिल बनाने की क्षमता रखता है।

*रूस-ईरान संबंधों की जड़ें*

ऐतिहासिक रूप से, रूस और ईरान स्वाभाविक सहयोगी नहीं रहे हैं। उनका सहयोग मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और पश्चिमी प्रभाव के खिलाफ उनके विरोध के कारण विकसित हुआ है। जबकि रूस ने हमेशा मध्य पूर्व में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने की कोशिश की है, ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने और अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने के तरीकों की तलाश की है, विशेष रूप से उन प्रतिबंधों से जो अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान पर लगाए हैं।


उनकी साझेदारी में पहला महत्वपूर्ण मील का पत्थर सीरिया गृह युद्ध के दौरान आया। रूस और ईरान दोनों ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन का समर्थन किया, हालांकि उनके समर्थन के कारण अलग थे, लेकिन उनके पास असद के शासन को बनाए रखने में समान हित थे। रूस के लिए, सीरिया में एक ठोस आधार बनाए रखना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से टार्टस में अपने नौसैनिक अड्डे और हमीमिम में अपने हवाई अड्डे के जरिए।

ईरान के लिए, असद का समर्थन एक महत्वपूर्ण सहयोगी को बनाए रखने में मदद करता है और लेबनान में हिजबुल्लाह सहित शिया मिलिशियाओं के लिए हथियारों और लड़ाकों के परिवहन के लिए एक गलियारा प्रदान करता है, जिससे तेहरान का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ता है।


हाल के वर्षों में, रूस और ईरान का सहयोग सिर्फ सीरिया तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसमें सैन्य सहयोग, ऊर्जा साझेदारी, और संयुक्त राजनयिक प्रयास भी शामिल हो गए हैं, जैसे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर। इस बढ़ते गठबंधन ने वॉशिंगटन और तेल अवीव में चिंता बढ़ा दी है, जहां अधिकारी मानते हैं कि रूस-ईरान गठबंधन अमेरिका की नीतियों और इज़राइल की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है।


*अमेरिका और इज़राइल के हितों के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी*

अमेरिका और इज़राइल दोनों लंबे समय से ईरान को एक बड़ा खतरा मानते हैं, इसके परमाणु महत्वाकांक्षाओं, हिजबुल्लाह और हामस जैसे आतंकवादी समूहों के समर्थन, और क्षेत्र में इसके विघटनकारी प्रभाव के कारण। हालांकि, रूस और ईरान के बढ़ते रिश्ते ने अमेरिका और इज़राइल के लिए ईरान की शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिशों को और जटिल बना दिया है।


**सैन्य सहयोग**: रूस-ईरान साझेदारी के सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक उनका बढ़ता सैन्य सहयोग है। रूस ने ईरान को उन्नत हथियारों की आपूर्ति की है, जिनमें S-300 एयर डिफेंस सिस्टम शामिल है, जिससे ईरान को इज़राइल की हवाई हमलों या अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप से खुद को बचाने की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। ये उन्नत प्रणालियाँ, जो लड़ाकू जेट और मिसाइलों को लक्ष्य बना सकती हैं, इज़राइल के लिए ईरानी परमाणु स्थलों या सीरिया में ईरानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले करने को बहुत कठिन बना देती हैं। यह बढ़ता सैन्य सहयोग इज़राइल के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है, जो हमेशा ईरान की सैन्य वृद्धि को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में देखता है।


**संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान**: पिछले कुछ वर्षों में, रूस और ईरान ने सीरिया में संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जो इस बात का प्रदर्शन है कि वे अमेरिकी और इज़राइली हितों को सीधे चुनौती देने के लिए सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हैं। ये अभ्यास उनके बढ़ते सैन्य एकीकरण का संकेत देते हैं और पश्चिमी शक्तियों के साथ किसी संभावित टकराव की स्थिति में भविष्य के सहयोग के लिए एक रूपरेखा हो सकते हैं। यह समन्वय ईरान को अमेरिकी और इज़राइली सैन्य रणनीतियों को बेहतर तरीके से समझने की अनुमति देता है, जिससे पश्चिमी शक्तियों के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करना अधिक कठिन हो जाता है।


*आर्थिक और ऊर्जा संबंध गठबंधन को मजबूत करते हैं*

सैन्य सहयोग के अलावा, रूस-ईरान गठबंधन आर्थिक क्षेत्र में भी मजबूत हुआ है। दोनों देशों ने व्यापारिक सौदों और संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार करने की कोशिश की है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में। रूस, जो दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में से एक है, ईरान के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक था, जिसके पास विशाल तेल और गैस संसाधन हैं, लेकिन जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहा है।

**ऊर्जा सहयोग**: रूस और ईरान ने हाल के वर्षों में अपने ऊर्जा संबंधों को मजबूत किया है। मॉस्को ने ईरान में परमाणु पावर प्लांट बनाने का समझौता किया है, जबकि तेहरान ने अपने तेल और गैस भंडारों को रूसी कंपनियों के लिए खोल दिया है। इसके बदले में, रूस ने ईरान को अपनी ऊर्जा निर्यात बढ़ाने में मदद की है, जिससे तेहरान को अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सहारा मिल रहा है।

ये आर्थिक संबंध दोनों देशों को पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव से बचने में मदद करते हैं। रूस के लिए, ईरान के ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करना खाड़ी क्षेत्र में एक रणनीतिक पकड़ हासिल करने का एक तरीका है, जो वैश्विक तेल और गैस बाजारों के लिए महत्वपूर्ण है। ईरान के लिए, रूस का आर्थिक समर्थन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़े विनाशकारी प्रभावों को कम करने में मदद करता है, विशेष रूप से 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका की निकासी के बाद।


*संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों में कूटनीतिक दबदबा*

रूस, ईरान का एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक साझेदार बन गया है, जो संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसे समर्थन प्रदान करता है। मॉस्को ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने या उसके मध्य पूर्व में किए गए कार्यों की निंदा करने वाले प्रस्तावों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके अवरुद्ध किया है। इस कूटनीतिक समर्थन ने ईरान को अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए एक प्रकार का सुरक्षा कवच प्रदान किया है, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों से।

इसके अलावा, दोनों देश संयुक्त रूप से वैश्विक कूटनीतिक प्रयासों में सहयोग कर रहे हैं। रूस और ईरान दोनों पश्चिमी देशों द्वारा मध्य पूर्व में किए गए सैन्य हस्तक्षेपों, जैसे इराक, लीबिया और यमन में, का विरोध करते हैं। अपने विदेश नीति के मिलते-जुलते दृष्टिकोणों से, रूस और ईरान पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ एक शक्तिशाली काउंटरबैलेंस बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो भविष्य में शक्ति संतुलन को फिर से बदल सकता है।

*इज़राइल की सुरक्षा पर प्रभाव*

इज़राइल के लिए, रूस-ईरान गठबंधन विशेष रूप से चिंताजनक है। इज़राइल ने हमेशा स्पष्ट किया है कि वह परमाणु-सक्षम ईरान को सहन नहीं करेगा और उसने सीरिया में ईरानी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक करके हिजबुल्लाह और अन्य ईरानी-समर्थित समूहों को उन्नत हथियारों की आपूर्ति को रोकने की कोशिश की है। हालांकि, रूस के सैन्य ठिकानों की सीरिया में मौजूदगी और ईरान के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों के कारण, इज़राइल के लिए सीरिया में हवाई हमले करना और भी जटिल हो गया है। रूस के साथ सीधी टकराव की संभावना इज़राइल के सैन्य रणनीति को और कठिन बना देती है।

इसके अतिरिक्त, इज़राइल ईरान के हिजबुल्लाह और अन्य मिलिशियाओं के समर्थन को लेकर गहरे चिंतित है, जो इज़राइल की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा पैदा करते हैं। ईरान ने सीरिया और इराक में अपनी स्थिति का उपयोग इन प्रॉक्सी समूहों के विस्तार के लिए किया है, जिससे इज़राइल की सीमाओं पर इन सशस्त्र मिलिशियाओं का खतरा बढ़ गया है। रूस-ईरान सहयोग इन समूहों को और अधिक स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है, जिससे इज़राइल के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा बनाए रखना और भी कठिन हो जाता है।



वॉशिंगटन और तेल अवीव के लिए, रूस-ईरान गठबंधन का बढ़ता हुआ प्रभाव एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो क्षेत्र में बदलते गठबंधनों और शक्ति संतुलन को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाए। जैसे-जैसे अमेरिका और इज़राइल इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, रूस-ईरान धारा क्षेत्रीय सुरक्षा की गतिशीलता को बदलने में एक प्रमुख तत्व बने रहेंगे।


रूस-ईरान गठबंधन केवल एक अस्थायी साझेदारी नहीं है; यह मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक आदेश में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। अमेरिका और इज़राइल के लिए, मॉस्को और तेहरान के बढ़ते संबंध एक स्पष्ट और वर्तमान खतरा प्रस्तुत करते हैं, जो क्षेत्र में उनके रणनीतिक उद्देश्यों को जटिल बना रहे हैं। जैसे-जैसे दोनों देश अपनी साझेदारी को मजबूत करते हैं, इसके परिणाम वॉशिंगटन की विदेश नीति और इज़राइल की सुरक्षा पर लंबे समय तक महसूस किए जाएंगे।
जंग के बीच नेतन्याहू ने अपने रक्षा मंत्री गैलेंट को क्यों हटाया, क्या इजराइल में सब ठीक नहीं?

#why_israel_pm_benjamin_netanyahu_sacked_his_defence_minister 

गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह सहित एक साथ कई मोर्चों पर इजराइल युद्ध लड़ रहा है। जंग के इस मुश्किल हालात के बीच इजरायल से चौंकाने वाली खबर आई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने देश के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को बर्खास्त कर दिया है। उनकी जगह पूर्व विदेश मंत्री इजरायल काट्ज को रक्षा मंत्री बनाया गया है। नेतन्याहू ने याव गैलेंट को हटाने के लिए 'विश्वास के संकट' को वजह बताई जो 'धीरे-धीरे गहराता जा रहा था।' इसके पीछे पीएमओ की ओर से तर्क दिया गया है कि युद्ध प्रबंधन को लेकर दोनों नेताओं के बीच लगातार मतभेद बढ़ रहे थे।

बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “इजरायल के प्रधानमंत्री के रूप में मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी इजरायल की सुरक्षा को सुनिश्चित करना और हमें निर्णायक जीत की ओर ले जाना है। युद्ध के समय में, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के बीच पूर्ण विश्वास होना बेहद जरूरी है। दुर्भाग्यवश, जबकि शुरुआती महीनों में हमारे बीच यह विश्वास था और हमने बहुत कुछ हासिल किया, हाल के महीनों में मेरे और रक्षा मंत्री के बीच यह विश्वास कम हो गया है।”

बेंजामिन नेतन्याहू ने आगे कहा, “गैलेंट और मेरे बीच ऑपरेशन के मैनेजमेंट को लेकर गंभीर मतभेद उत्पन्न हो गए। ये मतभेद सरकार और कैबिनेट के फैसलों के विपरीत बयानों और कार्यों के साथ सामने आए। मैंने इन मतभेदों को सुलझाने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन ये और बढ़ते गए। ये मुद्दे सार्वजनिक रूप से सामने आए, जो कहीं से भी मंजूर नहीं था, और इससे भी बुरा यह कि हमारे दुश्मनों को इसका फायदा मिला और उन्होंने इसके मजे लिए।

योआव गैलेंट पूर्व इजरायली जनरल हैं, जिन्हें सुरक्षा के प्रति उनके व्यवहारिक और सीधे नजरिए के लिए जाना जाता है। गैलेंट की इजरायल के 13 महीने के गाजा अभियान के दौरान भूमिका के लिए तारीफ की जाती रही है। उन्होंने अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन समेत अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मजबूत संबंध बनाए। गैलेंट के रक्षा मंत्री रहते इजरायली सेना ने ईरान पर सफल हमला किया, जिसमें उसकी मिसाइल सुविधाओं को निशाना बनाया गया।

गाजा में जारी युद्ध के दौरान नेतन्याहू और गैलेंट के बीच कई बार मतभेद उभरे हैं। हालांकि, बेंजामिन नेतन्याहू ने उन्हें बर्खास्त करने से परहेज किया। लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया। नेतन्याहू ने पिछले साल मार्च में जब गैलेंट को बर्खास्त करने की कोशिश की थी, तो उनके इस कदम के खिलाफ देश में प्रर्दशन हुआ था। इस बार भी नेतन्याहू के इस फैसले का विरोध शुरू हो गया है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं। नारेबाजी कर रहे हैं। इजराइल के पीएम और उनके घर के आसपास सभी सड़कें बंद कर दी गई हैं।

नहीं बचेगा हिजबुल्लाह का नया चीफ! इजराइल ने दी खुलेआम धमकी

#israel_reacts_hezbollah_chief_naim_qassem

इजराइल ने हिजबुल्लाह के नए चीफ नईम कासिम को चेतावनी दी है। इजराइल का कहना है कि हिजबुल्लाह का नया कमांडर ज्यादा दिन नहीं रहने वाला है। अगर कासिम भी अपने पुराने लीडरों के रास्ते पर चला, तो वह हिजबुल्लाह के इतिहास में सबसे कम दिन चीफ रहने वाला व्यक्ति होगा। बता दें कि मंगलवार को ही हिजबुल्लाह ने नईम कासिम को संगठन का नया नेता चुना गया था। उनकी नियुक्ति हसन नसरल्लाह के उत्तराधिकारी के रूप में की गई है।

हसन नसरल्लाह की मौत के करीब एक महीने बाद हिजबुल्लाह ने अपना नया लीडर चुन लिया है।नईम कासिम को हिजबुल्लाह के संगठन का नया नेता चुने जाने के कुछ घंटे के भीतर ही इजराइल ने उनकी उलटी गिनती शुरू कर दी है। इजरायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने मंगलवार को नईम कासिम को चेतावनी दी और कहा कि उनकी नियुक्ति 'लंबे समय तक नहीं है।' कासिम की एक तस्वीर एक्स पर शेयर करते हुए गैलेंट ने लिखा, 'अस्थायी नियुक्ति। लंबे समय तक नहीं।'

इजराइल का कहना है कि लेबनान में शांति केवल तभी ही आएगी जब हिजबुल्लाह की सैन्य शक्ति खत्म कर दी जाए। लेबनान की समस्या का एक ही समाधान है, वो ये कि इस संगठन को पूरी तरह समाप्त किया जाए। इजराइल ने हिजबुल्लाह को खत्म करने के अभियान में सफलता भी मिली है। संगठन की टॉप 8 लीडरों में से इजराइल 5 का खात्मा कर चुका है।

नईम कासिम की दशकों से हिजबुल्लाह में अहम भूमिका रही है। वे 34 वर्षों से चरमपंथी समूह में नंबर 2 के रूप में काम कर रहे थे। कासिम ने हिजबुल्लाह के पूर्व महासचिव अब्बास अल-मौसावी के कार्यकाल में संगठन के उपमहासचिव का पद संभाला था। मौसावी की 1992 में इजरायल ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद नसरल्लाह को महासचिव बनाया गया। इसके बाद भी कासिम उपसचिव के पद पर बने रहे।

ईरान के गैस, तेल भंडार को इजरायल ने क्यों नहीं बनाया निशाना? जानें क्या हो सकता है दुनिया पर असर

#israelnottargetirannuclearandoilfacilityreason

इजरायल ने शनिवार को अपनी जगह से 2000 किलोमीटर दूर ईरान में घुसकर हमला किया। टारगेट ईरान के मिलिट्री ढांचे थे। यानी हथियार डिपो, कम्यूनिकेशन सेंटर, मिलिट्री कमांड और राडार सेंटर्स। इजरायली विमानों ने 2000 किलोमीटर की दूरी तक उड़ान भरकर ईरान की राजधानी तेहरान और उसके सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। इजरायल ने एकसाथ 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स उड़ाए थे। इजरायल ने अपने अलग-अलग बेस से 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स उड़ाए। हमले का मेन फोकस तेहरान और करज शहर था। यहीं के मिलिट्री इंस्टॉलेशन टारगेट पर थे। इजरायल का हमला सीधे तौर पर राडार और एयर डिफेंस सिस्टम को उड़ाना था।

इजराइली हमले में उन जगहों को निशाना बनाया गया, जहां ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें बनाई जाती थीं। इनका इस्तेमाल ईरान ने इजराइल पर 1 अक्टूबर के हमले में किया था। 1980 के दशक में इराक युद्ध के बाद से पहली बार किसी दुश्मन देश ने ईरान पर इस तरह से हवाई हमले किए हैं। हमले के बाद इजरायली सेना ने कहा कि ईरान की न्यूक्लियर या तेल फैसिलिटी पर हमला नहीं कर रहा है। उसका फोकस ईरान के मिलिट्री टार्गेट हैं। सवाल उठता है कि आखिर क्यों इजराइल ने ईरान की न्यूक्लियर या तेल फैसिलिटी को निशाना नहीं बनाया?

दरअसल, इजराइल का अजीज दोस्त अमेरिका लगातार चेताता रहा है कि वह ईरान की तेल या न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमला न करे। क्योंकि अगर तेल साइट को निशाना बनाया गया तो पूरी दुनिया में तेल के दाम बढ़ सकते हैं। अमेरिका के सहयोगियों पर भी इसका असर पड़ता। वहीं, न्यूक्लियर साइट पर हमला एक बड़ा युद्ध शुरू कर सकता है। अगर न्यूक्लियर साइट को निशाना बनाया गया तो ईरान के साथ इजरायल का बड़ा युद्ध शुरू हो सकता है। इसमें अमेरिका को भी इजरायल को बचाने के लिए आना पड़ेगा।

दुनिया के तेल बाज़ार में ईरान की अहमियत

ईरान दुनिया में तेल का सातवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह अपने तेल उत्पादन का क़रीब आधा निर्यात करता है। इसके प्रमुख बाज़ारों में चीन शामिल है। हालांकि चीन में तेल की कम मांग और सऊदी अरब से तेल की पर्याप्त सप्लाई ने इस साल तेल की कीमतों को बढ़ने से काफ़ी हद तक रोके रखा है। दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल भंडार ईरान के पास है। जबकि ईरान में दुनिया का दूसरे सबसे बड़ा गैस भंडार है।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और प्रति दिन लगभग 30 लाख बैरल तेल का उत्पादन करता है। ये कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग तीन फीसदी है। इस बात की आशंका है कि अगर इजराइल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया और उसे नष्ट किया तो इससे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा और दुनिया भर में तेल की क़ीमतों में बड़ा इज़ाफा हो सकता है।

इजराइल के निशाने पर हैं ईरान के न्यूक्लियर साइट

वहीं, अमेरिका ने इजराइल से ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला न करने की अपील की है। हालांकि, इजरायल ने इस सलाह को मानने का आश्वासन नहीं दिया है। ऐसे में आशंका जताई जाती रही है इजराइल की तरफ से ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला किया जा सकता है। हालांकि, शनिवार को किए हमले में भी इजराइल ने न्यूक्लियर साइट को निशाना नहीं बनाया। ऐसे में सवाल उठते रहे हैं कि क्या रान के पास परमाणु हथियार हैं। ईरान के परमाणु हथियार को लेकर कई सालों से कयास लग रहे हैं। उसने कभी खुलकर नहीं माना है कि उसके पास न्यूक्लियर वेपन हैं। पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था का मानना है कि ईरान 2003 से ही परमाणु हथियार कार्यक्रम पर काम कर रहा है। जिसे उसने बीच में कुछ वक्त के लिए रोक दिया था। साल 2015 में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से राहत पाने लिए अपनी परमाणु गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने को राजी हुआ। हालांकि 2018 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। इसके बाद यह समझौता खटाई में पड़ गया। ईरान ने भी प्रतिबंधों को वापस लेना शुरू कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक 2018 के बाद से ईरान अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम का तेजी से विस्तार कर रहा है।

इजरायल की एयर स्ट्राइक फेल रही? ईरान का दावा-बावर-373 और एस-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने हमले को किया नाकाम

#iran_claimed_israel_air_strike_failed

इजरायल ने शनिवार तड़के ईरान की राजधानी तेहरान और पास के शहरों में बमबारी की है। इजरायल की सेना की ओर से इस हमले की पुष्टि भी की गई है। आईडीएफ का कहना है कि यह हवाई हमला ईरान को जवाब देने के लिए किया गया है। हालांकि ईरान के मुताबिक इजरायल की यह एयर स्ट्राइक फेल रही है। आपको बता दें कि हिजबुल्लाह चीफ की मौत के बाद ईरान ने इजरायल पर सैकड़ों मिसाइलें दागी थी। उसके बाद से इस बात की चर्चा थी कि इजरायल कब जवाब देगा। अब 25 दिन के बाद इजराइल ने अना बदला पूरा किया।

इजरायली सेना आईडीएफ ने इन हमलों की पुष्टि की है और कहा है कि ईरान लगातार कई महीनों से इजरायल को निशाना बना रहा है। जिसके जवाब में हमने यह हमला किया है। आईडीएफ ने बताया कि ईरान में शासन और क्षेत्र में उसके प्रतिनिधि 7 अक्टूबर से लगातार सातो मोर्चों पर हमला कर रहे हैं। जिसमें ईरानी धरती से सीधे हमले भी शामिल हैं। दुनिया के हर दूसरे संप्रभु देश की तरह, इजराइल राज्य को भी जवाब देने का अधिकार और कर्तव्य है। हमारी रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताएं पूरी तरह से सक्रिय हैं। हम इजराइल राज्य और इजराइल के लोगों की रक्षा के लिए जो भी आवश्यक होगा उसे करेंगे।

वहीं, ईरान का कहना है कि इजरायल की यह एयर स्ट्राइक फेल रही है। ईरान के मुताबिक उसके बावर-373 और एस-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने हमले को नाकाम कर दिया। ईरान की IRNA न्यूज एजेंसी ने एक वीडियो पोस्ट किया है। कथित तौर पर हवा में ही टार्गेट तबाह हो रहे हैं।

ईरान के सरकारी टेलीविजन की रिपोर्ट के मुताबिक एयर डिफेंस फोर्स ने तेहरान, खुजेस्तान और इलम में कई ठिकानों को निशाना बनाकर किए गए हमले की पुष्टि की है। उसने कहा है कि हमले से सीमित नुकसान हुआ है। एयर डिफेंस फोर्स ने कहा, 'इस्लामिक गणराज्य की ओर से दी गई चेतावनियों के बावजूद जायोनी शासन ने तनाव पैदा करने वाली कार्रवाई में आज सुबह तेहरान, खुजेस्तान और इलम में सैन्य केंद्रों के कुछ हिस्सों पर हमला किया।'

बयान में आगे कहा गया कि देश के एयर डिफेंस सिस्टम ने आक्रामकता की कार्रवाई को सफलतापूर्वक रोका और उसका मुकाबला किया। बयान में कहा गया कि हमलों से कुछ स्थानों पर सीमित क्षति हुई है।

ये कैसा युद्धविराम? सीजफायर के बीच इजरायल ने लेबनान पर दागी मिसाइलें

#israeli_strikes_on_lebanon_killing_11_people 

इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, लेबनान में 27 नवंबर को हुए युद्धविराम के बावजूद दोनों पक्षों से हमले जारी हैं। हिजबुल्लाह के साथ लंबे समय से जारी युद्ध के बीच लागू हुए सीजफायर के बाद इजरायल ने लेबनान में अपना सबसे बड़ा एयर स्ट्राइक किया है। दो दिसंबर (सोमवार) को इजरायली लड़ाकू विमानों ने हिजबुल्लाह के ठिकानों पर कई मिसाइलें दागी। जिससे करीब 11 लोगों की मौत हुई है।इजरायल ने ये हमले लेबनान से हिजबुल्लाह के मोर्टार दागे जाने के बाद किए हैं। पिछले बुधवार को 60 दिनों के युद्ध विराम को प्रभावी होने के बाद हिजबुल्लाह का इजरायल के ऊपर मोर्टार दागे जाने का यह पहला मामला है।

27 नवंबर इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच करीब एक साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से युद्ध विराम हुआ था।हालांकि युद्ध विराम के बावजूद दोनों देश एक दूसरे पर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए युद्धविराम के प्रोटोकॉल को बार-बार तोड़ते नजर आ रह हैं।

एक बयान में इजरायली रक्षा बलों ने कहा कि लड़ाकू विमानों ने लेबनान में हिजबुल्लाह के ऑपरेटिव्स और दर्जनों रॉकेट लांचरों और आतंकी समूह से संबंधित सुविधाओं पर हमला किया। हिजबुल्लाह ने इसके पहले सोमवार को दावा किया था कि उसने पिछले सप्ताह हुए युद्ध विरम समझौते के बार-बार उल्लंघन के जवाब में मोर्टार दागे और इसे संघर्ष विराम के दौरान लेबनान पर आईडीएफ के हमलों के खिलाफ 'प्रारंभिक चेतावनी' बताया था।

आईडीएफ ने कहा कि हमले के दौरान उसने हिजबुल्लाह की सुविधाओं के अलावा माउंट डोव पर दो मोर्टार दागने के लिए इस्तेमाल किए गए लांचर को भी निशाना बनाया। इजरायली सेना के अनुसार, हमले के कुछ समय बाद ही साइट को निशाना बनाया गया। सेना ने कहा, 'इजराइल की मांग है कि लेबनान में संबंधित पक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें और लेबनानी क्षेत्र के भीतर हिज्बुल्लाह की शत्रुतापूर्ण गतिविधि को रोकें। इजराइल लेबनान में युद्ध विराम समझौते की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य है।

27 नवंबर की सुबह हुए युद्धविराम में यह तय किया गया है कि इजरायल लेबनान में नागरिक, सैन्य या अन्य सरकारी लक्ष्यों के खिलाफ आक्रामक सैन्य अभियान नहीं चलाएगा। वहीं लेबनान हिजबुल्ला समेत किसी भी सशस्त्र समूह को इजरायल के खिलाफ अभियान चलाने से रोकेगा। लेबनान और इजरायल ने पहले ही एक-दूसरे पर युद्धविराम के उल्लंघन का आरोप लगा चुके हैं।

इजरायल-लेबनान सीज़फायर पर भारत का बड़ा बयान, जानें क्या कहा?*
#india_welcomes_ceasefire_between_israel_and_lebanon
इजरायल और हिजबुल्लाह में समझौते के बाद लेबनान में युद्ध विराम हो गया है। इजराइल और ईरान समर्थित हथियारबंद समूह हिज़्बुल्लाह के बीच एक युद्धविराम समझौते की घोषणा के बाद पिछले 13 महीनों से चल रही लड़ाई थम जाएगी। इस समझौते के तहत 60 दिनों का युद्ध विराम रहेगा और हिजबुल्ला दक्षिण लेबनान से पीछे हटेगा। दोनों के बीच सालभर से अधिक समय तक संघर्ष चला। इजरायल-हिजबुल्लाह के बीच सीज फायर का ऐलान होने के बाद भारत का बड़ा बयान सामने आया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर शांति समझौते का स्वागत किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि "हम इजरायल और हिजबुल्लाह में हुए शांति समझौते का स्वागत करते हैं। हम हमेशा हमलों में वृद्धि को रखने शांति स्थापित करने और बातचीत के रास्ते पर लौटने की पक्षधर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस फैसले से पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता आएगी। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि इजरायल और लेबनान के हिज्बुल्ला ने अमेरिकी मध्यस्थता वाले शांति समझौते को स्वीकार कर लिया है, जिसे दोनों पक्षों के बीच शत्रुता की ‘‘स्थायी समाप्ति’’ के उद्देश्य से तैयार किया गया है। बाइडेन ने इजरायल और हिज्बुल्ला के बीच हुए युद्धविराम समझौते को ‘‘अच्छी खबर’’ बताया और उम्मीद जताई कि 13 महीने से अधिक समय से जारी लड़ाई में विराम गाजा में युद्ध को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा। इजराइल और लेबनान के बीच युद्ध विराम आधिकारिक तौर पर बुधवार तड़के चार बजे से प्रभावी हो गया। इसी के साथ लेबनान से विस्थापित हजारों लोग स्वदेश लौटने के लिए तैयार हो गए हैं। लेबनान की सेना ने विस्थापित नागरिकों से दक्षिणी लेबनान के कस्बों और गांवों में लौटने से पहले इजराइली सैनिकों के हटने का इंतजार करने का आह्वान किया है। लेबनान में इस समय संयुक्त राष्ट्र अंतरिम शांति सेना के 10 हजार जवान मौजूद हैं। *समझौते में 60 दिनों का युद्धविराम* इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच हुए सीजफायर की शर्तों के अनुसार इस समझौते में 60 दिनों का युद्धविराम किया गया है। सीजफायर के अनुसार इजरायली सैनिक लेबनान से वापस जाएंगे। हिजबुल्लाह के लड़ाके भी दक्षिणी लेबनान में इजरायली सीमा से हटेंगे। वहीं, समझौते में इस बात पर जोर दिया गया है कि हिजबुल्लाह अगर युद्धविराम का उल्लंघन करता है तो इजरायल को हमला करने का अधिकार होगा। हालांकि, लेबनान की ओर से इस प्रावधान का कड़ा विरोध जताया गया।
इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर समझौता,लेबनान में लौटेगी शांति, जानें क्या हैं डील की शर्तें?

#israel_netanyahu_implement_ceasefire_with_lebanon 

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बड़ा ऐलान किया है। नेतन्याहू ने हिजबुल्लाह के साथ युद्धविराम करने की घोषणा की है। लेबनान में सीजफायर की डील पर इजरायली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू और उनकी वॉर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। ये युद्धविराम समझौता मध्य पूर्व में शांति के लिए किए गए एलान के बाद शुरू किया गया है। यह डील बुधवार को इजरायल के समयानुसार सुबह 4 बजे से प्रभावी हो गया है। वहीं गाजा में लड़ाई जारी रहेगी, गाजा में इजरायल ने फलस्तीनी हमास समूह को नष्ट करने की कसम खाई है।

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार शाम तेल अवीव में अपनी वॉर कैबिनेट की बुलाई। इसमें लेबनान के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के साथ 60 दिन के युद्धविराम पर चर्चा की गई। अमेरिकी समाचार वेबसाइट द हिल ने बताया कि इजरायली वॉर कैबिनेट ने लेबनान में हिजबुल्लाह के साथ संघर्षविराम पर सहमति जता दी है, जो बुधवार सुबह से शुरू हो जाएगा।

इजराइल और लेबनान के बीच बीते करीब दो महीने से जारी जंग में हजारों लोगों की जान जाने के बाद आखिरकार दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम पर सहमति बन गई। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने औपचारिक रूप से इसकी आधिकारिक घोषणा की। नेतन्याहू ने इजरायल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम मध्य पूर्व की तस्वीर बदल रहे हैं। एक अच्छा समझौता वो होता है, जिसे लागू किया जा सके।’ 

बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध विराम करने के तीन कारण बताएः-

-उन्होंने कहा कि पहला कारण ईरानी खतरे पर ध्यान केंद्रित करना है, और मैं उस पर विस्तार से नहीं बताऊंगा। 

-दूसरा कारण हमारे बलों को राहत देना और स्टॉक को फिर से भरना है। मैं खुले तौर पर कहता हूं, हथियारों और युद्ध सामग्री की डिलीवरी में बड़ी देरी हुई है। ये देरी जल्द ही हल हो जाएगी। हमें उन्नत हथियारों की आपूर्ति मिलेगी जो हमारे सैनिकों को सुरक्षित रखेगी और हमें अपने मिशन को पूरा करने के लिए अधिक स्ट्राइक फोर्स देगी। इसके अलावा, युद्ध विराम करने का तीसरा कारण मोर्चों को अलग करना और हमास को अलग-थलग करना है। 

-बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि युद्ध के दूसरे दिन से, हमास अपने पक्ष में लड़ने के लिए हिजबुल्ला पर भरोसा कर रहा था। हिजबुल्ला के बाहर होने के बाद अब हमास अकेला रह गया है। हम हमास पर अपना दबाव बढ़ाएंगे और इससे हमें अपने बंधकों को रिहा करने के हमारे मिशन में मदद मिलेगी।

60 दिनों के लिए समझौता

रिपोर्ट के अनुसार, समझौते में 60 दिन के युद्धविराम की बात कही गई है, जिसके तहत इजरायली सेना पीछे हट जाएगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान से हट जाएगा। डील के अनुसार, इजरायली सेनाएं सीमा के अपने हिस्से में वापस लौट जाएंगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान के अधिकांश हिस्सों में अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म कर देगा।

हालांकि, नेतन्याहू ने कहा, यह युद्धविराम कितने समय तक चलेगा, यह कितना लंबा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लेबनान में क्या होगा। अगर हिजबुल्लाह युद्धविराम समझौते का उल्लंघन करता है तो, हम अटैक करेंगे। अगर हिजबुल्लाह बॉर्डर के पास आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देता है तो हम हमला करेंगे। नेतन्याहू ने आगे कहा, अगर हिजबुल्लाह रॉकेट लॉन्च करता है तो हम अटैक करेंगे। उन्होंने कहा, हम समझौते को लागू करेंगे और किसी भी उल्लंघन का जोरदार जवाब देंगे, जब तक हम जीत जाते हम एक साथ काम करते रहेंगे।

लेबनान के लिए समझौते के क्या मायने?

पिछले साल 7 अक्तूबर को इजराइल में घातक हमला हुआ था जिसके बाद पश्चिमी एशिया में तनाव फैल गया। यह संघर्ष बाद में कई मोर्चों पर शुरू हो गया जिसमें इजराइल और लेबनान में मौजूद गुट हिजबुल्ला भी आपस में भिड़ गए। इजराइल और हिजबुल्ला की खूनी जंग में लेबनान में 3750 से अधिक लोग मारे गए हैं और 10 लाख से अधिक लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा है।

इजराइल और हिजबुल्ला के बीच युद्ध विराम से क्षेत्रीय तनाव में काफी हद तक कमी आने की उम्मीद है। इजराइल के हमलों के चलते लेबनान में एक चौथाई आबादी विस्थापित हो गई है और देश के कुछ हिस्से, विशेष रूप से दक्षिणी लेबनान और राजधानी बेरूत के दक्षिणी इलाकों में, नष्ट हो गए हैं। ऐसे में युद्धविराम के बाद लेबनान में सामान्य स्थिति लौटने में मदद मिलेगी।

बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी, जानें इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले के पीछे की वजह

#israelipmbenjaminnetanyahuwantedcriminaliccissuearrest_warrant

इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध ने बड़ा रूप धारण कर लिया है। पिछले साल अक्‍टूबर में हमास के लड़ाकों ने इजरायल में घुसकर हजार से ज्‍यादा लोगों की निर्मम तरीके से हत्‍या कर दी थी और 250 से ज्‍यादा इजरयली नागरिकों को अगवा कर लिया था। इसके बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने बदला लेने की कसम खाई। जिसके बाद शुरू हुई जंग बढ़ती ही जा रही है। इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान 40 हजार से ज्‍यादा मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। जबकि एक लाख से ज्‍यादा घायल हुए हैं। इस बीच इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने गुरुवार को युद्ध और मानवता के खिलाफ अपराधों को लेकर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योव गैलेंट के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

आईसीसी के जजों ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलंट और हमास के सैन्य कमांडर मोहम्मद डेफ के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया है। आईसीसी ने कहा कि इन नेताओं पर इजराइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों का आरोप है। कोर्ट ने नेतन्याहू के खिलाफ आरोपों को लेकर जांच कराने का भी आदेश दिया है।

रिर्पोट के मुताबिक, आईसीसी ने पीएम नेतन्याहू और इजराइल के रक्षा मंत्री पर इजराइली सेना को फिलिस्तीनी नागरिकों को जानबूझ कर मारने का आदेश देने और गाजा में अंतराष्ट्रीय मानवीय मदद को पहुंचने से रोकने के मामले में दोषी पाया, जिससे वजह से वहां पर भुखमरी के स्तिथी बनी। कोर्ट ने अपने जांच में पाया कि इजराइली पीएम ने जंग के बहाने फिलिस्तीनियों नागरिकों की हत्याएं करवाईं और गाजा को तहस नहस करने का भी आदेश दिया। आईसीसी के जजों ने इन सभी पहलुओं को देखते हुए उनके खिलाफ वारंट जारी करने का फैसला लिया।

इजराइल के राष्ट्रपति ने कहा- आईसीसी का ये फैसला एक मजाक

इस फैसले पर इजराइल के राष्ट्रपति आइजैक हर्जोग ने कहा कि आईसीसी का यह फैसला एक मजाक बन गया है। फैसला आतंकवाद के पक्ष में गया है। वहीं, फिलिस्तीनी नेता मुस्तफा बारघौती ने नेतन्याहू और गैलंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट का स्वागत किया और आईसीसी से इस्राइल के खिलाफ नरसंहार के मामले में जल्द फैसला लेने का अनुरोध किया।

अमेरिका ने क्या कहा?

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के इस फैसले पर अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की है। राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि इजरायल को आत्‍मरक्षा का पूरा अधिकार है। पीएम नेतन्‍याहू और अन्‍य के खिलाफ आईसीसी की ओर से जारी अरेस्‍ट वारंट के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्‍हें कौन और कहां की पुलिस गिरफ्तार करेगी? दरअसल, निर्धारित प्रावधानों के तहत आईसीसी के सदस्‍य देशों की पुलिस नेतन्‍याहू को गिरफ्तार कर सकती है। बता दें कि अमेरिका आईसीसी का सदस्‍य देश नहीं है। हालांकि, आईसीसी के फैसले पर अमल काफी मुश्किल है

इजरायल ने हिजबुल्लाह पर किया था पेजर अटैक, नेतन्याहू ने पहली बार सच कबूला

#israel_behind_pager_attack_on_hezbollah_pm_netanyahu_first_time_confirmed

लेबनान में हुए घातक पेजर अटैक को लेकर इजरायल की ओर से बड़ा खुलासा किया गया है। ये हमला इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आदेश पर हुआ था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार स्वीकार किया है कि सितम्बर में लेबनान के अंदर हिजबुल्लाह लड़ाकों के पेजर विस्फोट के पीछे इजरायल का हाथ था। बता दे कि सितम्बर में लेबनान में हिजबुल्लाह लड़ाकों के हजारों पेजर में कुछ ही समय के भीतर ब्लॉस्ट हुए थे। इसके अगले ही दिन वॉकी-टॉकी में भी विस्फोट हुआ था। इस हमले में करीब 40 लोग मारे गए थे, जबकि 3000 से ज्यादा घायल हुए थे। हिजबुल्लाह ने पहले ही उन विस्फोटों के लिए अपने कट्टर-दुश्मन इजराइल को दोषी ठहराया था।

नेतन्याहू ने रविवार को कहा कि उन्होंने सितंबर में लेबनानी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह पर पेजर हमले को मंजूरी दी थी। इजरायली प्रधानमंत्री के प्रवक्ता उमर दोस्तरी ने एएफपी को बताया, ‘नेतन्याहू ने रविवार को पुष्टि की कि उन्होंने लेबनान में पेजर ऑपरेशन को हरी झंडी दे दी।’ नेतन्याहू ने लेबनान पर इजरायली हमलों को लेकर पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। इजरायल ने अब तक इसमें शामिल होने की पुष्टि या खंडन नहीं किया था।

17 सितंबर को, हिज़बुल्लाह के गढ़ों में दो दिन तक लगातार हजारों पेजर फटे थे, जिसके लिए ईरान और हिज़बुल्लाह ने इज़रायल को इसका दोषी ठहराया था। पेजर हिज़बुल्लाह के सदस्यों द्वारा एक लो-टेक कम्युनिकेशन के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे, ताकि इज़रायल उनकी जगहों को ट्रैक ना कर सके। इस पेजर अटैक ने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। यहां तक कि अमेरिका तक को समझ नहीं आया कि यह हुआ कैसे?

हिजबुल्लाह ने इन हमलों के पीछे इजरायल को जिम्मेदार बताया था। विभिन्न रिपोर्टों में भी ऐसी ही जानकारी सामने आई थी। हालांकि, इजरायल ने कभी आधिकारिक तौर इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी नहीं ली थी।

रूस और ईरान की दोस्तीःअमेरिका और इजरायल के लिए क्यों है चिंता का विषय
#russia_iran_vs_america_israel

picture credit: Emirates policy






हाल के वर्षों में, रूस और ईरान के बीच बढ़ती साझेदारी मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक संतुलन के एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरी है, जो वॉशिंगटन और जेरूसलम में चिंता का कारण बन गई है। जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, वे क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ एक प्रभावशाली ताकत के रूप में सामने आ रहे हैं। सीरिया से लेकर मध्य पूर्व तक, यह रणनीतिक गठबंधन लंबे समय से अमेरिका के प्रभाव को बाधित करने और इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को जटिल बनाने की क्षमता रखता है।

*रूस-ईरान संबंधों की जड़ें*

ऐतिहासिक रूप से, रूस और ईरान स्वाभाविक सहयोगी नहीं रहे हैं। उनका सहयोग मुख्य रूप से साझा रणनीतिक हितों और पश्चिमी प्रभाव के खिलाफ उनके विरोध के कारण विकसित हुआ है। जबकि रूस ने हमेशा मध्य पूर्व में अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने की कोशिश की है, ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने और अपनी क्षेत्रीय शक्ति को बढ़ाने के तरीकों की तलाश की है, विशेष रूप से उन प्रतिबंधों से जो अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान पर लगाए हैं।


उनकी साझेदारी में पहला महत्वपूर्ण मील का पत्थर सीरिया गृह युद्ध के दौरान आया। रूस और ईरान दोनों ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन का समर्थन किया, हालांकि उनके समर्थन के कारण अलग थे, लेकिन उनके पास असद के शासन को बनाए रखने में समान हित थे। रूस के लिए, सीरिया में एक ठोस आधार बनाए रखना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से टार्टस में अपने नौसैनिक अड्डे और हमीमिम में अपने हवाई अड्डे के जरिए।

ईरान के लिए, असद का समर्थन एक महत्वपूर्ण सहयोगी को बनाए रखने में मदद करता है और लेबनान में हिजबुल्लाह सहित शिया मिलिशियाओं के लिए हथियारों और लड़ाकों के परिवहन के लिए एक गलियारा प्रदान करता है, जिससे तेहरान का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ता है।


हाल के वर्षों में, रूस और ईरान का सहयोग सिर्फ सीरिया तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसमें सैन्य सहयोग, ऊर्जा साझेदारी, और संयुक्त राजनयिक प्रयास भी शामिल हो गए हैं, जैसे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर। इस बढ़ते गठबंधन ने वॉशिंगटन और तेल अवीव में चिंता बढ़ा दी है, जहां अधिकारी मानते हैं कि रूस-ईरान गठबंधन अमेरिका की नीतियों और इज़राइल की सुरक्षा को कमजोर कर सकता है।


*अमेरिका और इज़राइल के हितों के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी*

अमेरिका और इज़राइल दोनों लंबे समय से ईरान को एक बड़ा खतरा मानते हैं, इसके परमाणु महत्वाकांक्षाओं, हिजबुल्लाह और हामस जैसे आतंकवादी समूहों के समर्थन, और क्षेत्र में इसके विघटनकारी प्रभाव के कारण। हालांकि, रूस और ईरान के बढ़ते रिश्ते ने अमेरिका और इज़राइल के लिए ईरान की शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिशों को और जटिल बना दिया है।


**सैन्य सहयोग**: रूस-ईरान साझेदारी के सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक उनका बढ़ता सैन्य सहयोग है। रूस ने ईरान को उन्नत हथियारों की आपूर्ति की है, जिनमें S-300 एयर डिफेंस सिस्टम शामिल है, जिससे ईरान को इज़राइल की हवाई हमलों या अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप से खुद को बचाने की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। ये उन्नत प्रणालियाँ, जो लड़ाकू जेट और मिसाइलों को लक्ष्य बना सकती हैं, इज़राइल के लिए ईरानी परमाणु स्थलों या सीरिया में ईरानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले करने को बहुत कठिन बना देती हैं। यह बढ़ता सैन्य सहयोग इज़राइल के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है, जो हमेशा ईरान की सैन्य वृद्धि को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में देखता है।


**संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान**: पिछले कुछ वर्षों में, रूस और ईरान ने सीरिया में संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जो इस बात का प्रदर्शन है कि वे अमेरिकी और इज़राइली हितों को सीधे चुनौती देने के लिए सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हैं। ये अभ्यास उनके बढ़ते सैन्य एकीकरण का संकेत देते हैं और पश्चिमी शक्तियों के साथ किसी संभावित टकराव की स्थिति में भविष्य के सहयोग के लिए एक रूपरेखा हो सकते हैं। यह समन्वय ईरान को अमेरिकी और इज़राइली सैन्य रणनीतियों को बेहतर तरीके से समझने की अनुमति देता है, जिससे पश्चिमी शक्तियों के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करना अधिक कठिन हो जाता है।


*आर्थिक और ऊर्जा संबंध गठबंधन को मजबूत करते हैं*

सैन्य सहयोग के अलावा, रूस-ईरान गठबंधन आर्थिक क्षेत्र में भी मजबूत हुआ है। दोनों देशों ने व्यापारिक सौदों और संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार करने की कोशिश की है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में। रूस, जो दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में से एक है, ईरान के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक था, जिसके पास विशाल तेल और गैस संसाधन हैं, लेकिन जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहा है।

**ऊर्जा सहयोग**: रूस और ईरान ने हाल के वर्षों में अपने ऊर्जा संबंधों को मजबूत किया है। मॉस्को ने ईरान में परमाणु पावर प्लांट बनाने का समझौता किया है, जबकि तेहरान ने अपने तेल और गैस भंडारों को रूसी कंपनियों के लिए खोल दिया है। इसके बदले में, रूस ने ईरान को अपनी ऊर्जा निर्यात बढ़ाने में मदद की है, जिससे तेहरान को अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सहारा मिल रहा है।

ये आर्थिक संबंध दोनों देशों को पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव से बचने में मदद करते हैं। रूस के लिए, ईरान के ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करना खाड़ी क्षेत्र में एक रणनीतिक पकड़ हासिल करने का एक तरीका है, जो वैश्विक तेल और गैस बाजारों के लिए महत्वपूर्ण है। ईरान के लिए, रूस का आर्थिक समर्थन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़े विनाशकारी प्रभावों को कम करने में मदद करता है, विशेष रूप से 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका की निकासी के बाद।


*संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों में कूटनीतिक दबदबा*

रूस, ईरान का एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक साझेदार बन गया है, जो संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसे समर्थन प्रदान करता है। मॉस्को ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने या उसके मध्य पूर्व में किए गए कार्यों की निंदा करने वाले प्रस्तावों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके अवरुद्ध किया है। इस कूटनीतिक समर्थन ने ईरान को अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए एक प्रकार का सुरक्षा कवच प्रदान किया है, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों से।

इसके अलावा, दोनों देश संयुक्त रूप से वैश्विक कूटनीतिक प्रयासों में सहयोग कर रहे हैं। रूस और ईरान दोनों पश्चिमी देशों द्वारा मध्य पूर्व में किए गए सैन्य हस्तक्षेपों, जैसे इराक, लीबिया और यमन में, का विरोध करते हैं। अपने विदेश नीति के मिलते-जुलते दृष्टिकोणों से, रूस और ईरान पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ एक शक्तिशाली काउंटरबैलेंस बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो भविष्य में शक्ति संतुलन को फिर से बदल सकता है।

*इज़राइल की सुरक्षा पर प्रभाव*

इज़राइल के लिए, रूस-ईरान गठबंधन विशेष रूप से चिंताजनक है। इज़राइल ने हमेशा स्पष्ट किया है कि वह परमाणु-सक्षम ईरान को सहन नहीं करेगा और उसने सीरिया में ईरानी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक करके हिजबुल्लाह और अन्य ईरानी-समर्थित समूहों को उन्नत हथियारों की आपूर्ति को रोकने की कोशिश की है। हालांकि, रूस के सैन्य ठिकानों की सीरिया में मौजूदगी और ईरान के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों के कारण, इज़राइल के लिए सीरिया में हवाई हमले करना और भी जटिल हो गया है। रूस के साथ सीधी टकराव की संभावना इज़राइल के सैन्य रणनीति को और कठिन बना देती है।

इसके अतिरिक्त, इज़राइल ईरान के हिजबुल्लाह और अन्य मिलिशियाओं के समर्थन को लेकर गहरे चिंतित है, जो इज़राइल की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा पैदा करते हैं। ईरान ने सीरिया और इराक में अपनी स्थिति का उपयोग इन प्रॉक्सी समूहों के विस्तार के लिए किया है, जिससे इज़राइल की सीमाओं पर इन सशस्त्र मिलिशियाओं का खतरा बढ़ गया है। रूस-ईरान सहयोग इन समूहों को और अधिक स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है, जिससे इज़राइल के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा बनाए रखना और भी कठिन हो जाता है।



वॉशिंगटन और तेल अवीव के लिए, रूस-ईरान गठबंधन का बढ़ता हुआ प्रभाव एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो क्षेत्र में बदलते गठबंधनों और शक्ति संतुलन को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाए। जैसे-जैसे अमेरिका और इज़राइल इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, रूस-ईरान धारा क्षेत्रीय सुरक्षा की गतिशीलता को बदलने में एक प्रमुख तत्व बने रहेंगे।


रूस-ईरान गठबंधन केवल एक अस्थायी साझेदारी नहीं है; यह मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक आदेश में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। अमेरिका और इज़राइल के लिए, मॉस्को और तेहरान के बढ़ते संबंध एक स्पष्ट और वर्तमान खतरा प्रस्तुत करते हैं, जो क्षेत्र में उनके रणनीतिक उद्देश्यों को जटिल बना रहे हैं। जैसे-जैसे दोनों देश अपनी साझेदारी को मजबूत करते हैं, इसके परिणाम वॉशिंगटन की विदेश नीति और इज़राइल की सुरक्षा पर लंबे समय तक महसूस किए जाएंगे।
जंग के बीच नेतन्याहू ने अपने रक्षा मंत्री गैलेंट को क्यों हटाया, क्या इजराइल में सब ठीक नहीं?

#why_israel_pm_benjamin_netanyahu_sacked_his_defence_minister 

गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह सहित एक साथ कई मोर्चों पर इजराइल युद्ध लड़ रहा है। जंग के इस मुश्किल हालात के बीच इजरायल से चौंकाने वाली खबर आई है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने देश के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को बर्खास्त कर दिया है। उनकी जगह पूर्व विदेश मंत्री इजरायल काट्ज को रक्षा मंत्री बनाया गया है। नेतन्याहू ने याव गैलेंट को हटाने के लिए 'विश्वास के संकट' को वजह बताई जो 'धीरे-धीरे गहराता जा रहा था।' इसके पीछे पीएमओ की ओर से तर्क दिया गया है कि युद्ध प्रबंधन को लेकर दोनों नेताओं के बीच लगातार मतभेद बढ़ रहे थे।

बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “इजरायल के प्रधानमंत्री के रूप में मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी इजरायल की सुरक्षा को सुनिश्चित करना और हमें निर्णायक जीत की ओर ले जाना है। युद्ध के समय में, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के बीच पूर्ण विश्वास होना बेहद जरूरी है। दुर्भाग्यवश, जबकि शुरुआती महीनों में हमारे बीच यह विश्वास था और हमने बहुत कुछ हासिल किया, हाल के महीनों में मेरे और रक्षा मंत्री के बीच यह विश्वास कम हो गया है।”

बेंजामिन नेतन्याहू ने आगे कहा, “गैलेंट और मेरे बीच ऑपरेशन के मैनेजमेंट को लेकर गंभीर मतभेद उत्पन्न हो गए। ये मतभेद सरकार और कैबिनेट के फैसलों के विपरीत बयानों और कार्यों के साथ सामने आए। मैंने इन मतभेदों को सुलझाने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन ये और बढ़ते गए। ये मुद्दे सार्वजनिक रूप से सामने आए, जो कहीं से भी मंजूर नहीं था, और इससे भी बुरा यह कि हमारे दुश्मनों को इसका फायदा मिला और उन्होंने इसके मजे लिए।

योआव गैलेंट पूर्व इजरायली जनरल हैं, जिन्हें सुरक्षा के प्रति उनके व्यवहारिक और सीधे नजरिए के लिए जाना जाता है। गैलेंट की इजरायल के 13 महीने के गाजा अभियान के दौरान भूमिका के लिए तारीफ की जाती रही है। उन्होंने अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन समेत अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मजबूत संबंध बनाए। गैलेंट के रक्षा मंत्री रहते इजरायली सेना ने ईरान पर सफल हमला किया, जिसमें उसकी मिसाइल सुविधाओं को निशाना बनाया गया।

गाजा में जारी युद्ध के दौरान नेतन्याहू और गैलेंट के बीच कई बार मतभेद उभरे हैं। हालांकि, बेंजामिन नेतन्याहू ने उन्हें बर्खास्त करने से परहेज किया। लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया। नेतन्याहू ने पिछले साल मार्च में जब गैलेंट को बर्खास्त करने की कोशिश की थी, तो उनके इस कदम के खिलाफ देश में प्रर्दशन हुआ था। इस बार भी नेतन्याहू के इस फैसले का विरोध शुरू हो गया है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं। नारेबाजी कर रहे हैं। इजराइल के पीएम और उनके घर के आसपास सभी सड़कें बंद कर दी गई हैं।

नहीं बचेगा हिजबुल्लाह का नया चीफ! इजराइल ने दी खुलेआम धमकी

#israel_reacts_hezbollah_chief_naim_qassem

इजराइल ने हिजबुल्लाह के नए चीफ नईम कासिम को चेतावनी दी है। इजराइल का कहना है कि हिजबुल्लाह का नया कमांडर ज्यादा दिन नहीं रहने वाला है। अगर कासिम भी अपने पुराने लीडरों के रास्ते पर चला, तो वह हिजबुल्लाह के इतिहास में सबसे कम दिन चीफ रहने वाला व्यक्ति होगा। बता दें कि मंगलवार को ही हिजबुल्लाह ने नईम कासिम को संगठन का नया नेता चुना गया था। उनकी नियुक्ति हसन नसरल्लाह के उत्तराधिकारी के रूप में की गई है।

हसन नसरल्लाह की मौत के करीब एक महीने बाद हिजबुल्लाह ने अपना नया लीडर चुन लिया है।नईम कासिम को हिजबुल्लाह के संगठन का नया नेता चुने जाने के कुछ घंटे के भीतर ही इजराइल ने उनकी उलटी गिनती शुरू कर दी है। इजरायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने मंगलवार को नईम कासिम को चेतावनी दी और कहा कि उनकी नियुक्ति 'लंबे समय तक नहीं है।' कासिम की एक तस्वीर एक्स पर शेयर करते हुए गैलेंट ने लिखा, 'अस्थायी नियुक्ति। लंबे समय तक नहीं।'

इजराइल का कहना है कि लेबनान में शांति केवल तभी ही आएगी जब हिजबुल्लाह की सैन्य शक्ति खत्म कर दी जाए। लेबनान की समस्या का एक ही समाधान है, वो ये कि इस संगठन को पूरी तरह समाप्त किया जाए। इजराइल ने हिजबुल्लाह को खत्म करने के अभियान में सफलता भी मिली है। संगठन की टॉप 8 लीडरों में से इजराइल 5 का खात्मा कर चुका है।

नईम कासिम की दशकों से हिजबुल्लाह में अहम भूमिका रही है। वे 34 वर्षों से चरमपंथी समूह में नंबर 2 के रूप में काम कर रहे थे। कासिम ने हिजबुल्लाह के पूर्व महासचिव अब्बास अल-मौसावी के कार्यकाल में संगठन के उपमहासचिव का पद संभाला था। मौसावी की 1992 में इजरायल ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद नसरल्लाह को महासचिव बनाया गया। इसके बाद भी कासिम उपसचिव के पद पर बने रहे।

ईरान के गैस, तेल भंडार को इजरायल ने क्यों नहीं बनाया निशाना? जानें क्या हो सकता है दुनिया पर असर

#israelnottargetirannuclearandoilfacilityreason

इजरायल ने शनिवार को अपनी जगह से 2000 किलोमीटर दूर ईरान में घुसकर हमला किया। टारगेट ईरान के मिलिट्री ढांचे थे। यानी हथियार डिपो, कम्यूनिकेशन सेंटर, मिलिट्री कमांड और राडार सेंटर्स। इजरायली विमानों ने 2000 किलोमीटर की दूरी तक उड़ान भरकर ईरान की राजधानी तेहरान और उसके सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। इजरायल ने एकसाथ 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स उड़ाए थे। इजरायल ने अपने अलग-अलग बेस से 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स उड़ाए। हमले का मेन फोकस तेहरान और करज शहर था। यहीं के मिलिट्री इंस्टॉलेशन टारगेट पर थे। इजरायल का हमला सीधे तौर पर राडार और एयर डिफेंस सिस्टम को उड़ाना था।

इजराइली हमले में उन जगहों को निशाना बनाया गया, जहां ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलें बनाई जाती थीं। इनका इस्तेमाल ईरान ने इजराइल पर 1 अक्टूबर के हमले में किया था। 1980 के दशक में इराक युद्ध के बाद से पहली बार किसी दुश्मन देश ने ईरान पर इस तरह से हवाई हमले किए हैं। हमले के बाद इजरायली सेना ने कहा कि ईरान की न्यूक्लियर या तेल फैसिलिटी पर हमला नहीं कर रहा है। उसका फोकस ईरान के मिलिट्री टार्गेट हैं। सवाल उठता है कि आखिर क्यों इजराइल ने ईरान की न्यूक्लियर या तेल फैसिलिटी को निशाना नहीं बनाया?

दरअसल, इजराइल का अजीज दोस्त अमेरिका लगातार चेताता रहा है कि वह ईरान की तेल या न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमला न करे। क्योंकि अगर तेल साइट को निशाना बनाया गया तो पूरी दुनिया में तेल के दाम बढ़ सकते हैं। अमेरिका के सहयोगियों पर भी इसका असर पड़ता। वहीं, न्यूक्लियर साइट पर हमला एक बड़ा युद्ध शुरू कर सकता है। अगर न्यूक्लियर साइट को निशाना बनाया गया तो ईरान के साथ इजरायल का बड़ा युद्ध शुरू हो सकता है। इसमें अमेरिका को भी इजरायल को बचाने के लिए आना पड़ेगा।

दुनिया के तेल बाज़ार में ईरान की अहमियत

ईरान दुनिया में तेल का सातवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह अपने तेल उत्पादन का क़रीब आधा निर्यात करता है। इसके प्रमुख बाज़ारों में चीन शामिल है। हालांकि चीन में तेल की कम मांग और सऊदी अरब से तेल की पर्याप्त सप्लाई ने इस साल तेल की कीमतों को बढ़ने से काफ़ी हद तक रोके रखा है। दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल भंडार ईरान के पास है। जबकि ईरान में दुनिया का दूसरे सबसे बड़ा गैस भंडार है।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और प्रति दिन लगभग 30 लाख बैरल तेल का उत्पादन करता है। ये कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग तीन फीसदी है। इस बात की आशंका है कि अगर इजराइल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया और उसे नष्ट किया तो इससे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा और दुनिया भर में तेल की क़ीमतों में बड़ा इज़ाफा हो सकता है।

इजराइल के निशाने पर हैं ईरान के न्यूक्लियर साइट

वहीं, अमेरिका ने इजराइल से ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला न करने की अपील की है। हालांकि, इजरायल ने इस सलाह को मानने का आश्वासन नहीं दिया है। ऐसे में आशंका जताई जाती रही है इजराइल की तरफ से ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला किया जा सकता है। हालांकि, शनिवार को किए हमले में भी इजराइल ने न्यूक्लियर साइट को निशाना नहीं बनाया। ऐसे में सवाल उठते रहे हैं कि क्या रान के पास परमाणु हथियार हैं। ईरान के परमाणु हथियार को लेकर कई सालों से कयास लग रहे हैं। उसने कभी खुलकर नहीं माना है कि उसके पास न्यूक्लियर वेपन हैं। पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था का मानना है कि ईरान 2003 से ही परमाणु हथियार कार्यक्रम पर काम कर रहा है। जिसे उसने बीच में कुछ वक्त के लिए रोक दिया था। साल 2015 में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से राहत पाने लिए अपनी परमाणु गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने को राजी हुआ। हालांकि 2018 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। इसके बाद यह समझौता खटाई में पड़ गया। ईरान ने भी प्रतिबंधों को वापस लेना शुरू कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक 2018 के बाद से ईरान अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम का तेजी से विस्तार कर रहा है।

इजरायल की एयर स्ट्राइक फेल रही? ईरान का दावा-बावर-373 और एस-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने हमले को किया नाकाम

#iran_claimed_israel_air_strike_failed

इजरायल ने शनिवार तड़के ईरान की राजधानी तेहरान और पास के शहरों में बमबारी की है। इजरायल की सेना की ओर से इस हमले की पुष्टि भी की गई है। आईडीएफ का कहना है कि यह हवाई हमला ईरान को जवाब देने के लिए किया गया है। हालांकि ईरान के मुताबिक इजरायल की यह एयर स्ट्राइक फेल रही है। आपको बता दें कि हिजबुल्लाह चीफ की मौत के बाद ईरान ने इजरायल पर सैकड़ों मिसाइलें दागी थी। उसके बाद से इस बात की चर्चा थी कि इजरायल कब जवाब देगा। अब 25 दिन के बाद इजराइल ने अना बदला पूरा किया।

इजरायली सेना आईडीएफ ने इन हमलों की पुष्टि की है और कहा है कि ईरान लगातार कई महीनों से इजरायल को निशाना बना रहा है। जिसके जवाब में हमने यह हमला किया है। आईडीएफ ने बताया कि ईरान में शासन और क्षेत्र में उसके प्रतिनिधि 7 अक्टूबर से लगातार सातो मोर्चों पर हमला कर रहे हैं। जिसमें ईरानी धरती से सीधे हमले भी शामिल हैं। दुनिया के हर दूसरे संप्रभु देश की तरह, इजराइल राज्य को भी जवाब देने का अधिकार और कर्तव्य है। हमारी रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताएं पूरी तरह से सक्रिय हैं। हम इजराइल राज्य और इजराइल के लोगों की रक्षा के लिए जो भी आवश्यक होगा उसे करेंगे।

वहीं, ईरान का कहना है कि इजरायल की यह एयर स्ट्राइक फेल रही है। ईरान के मुताबिक उसके बावर-373 और एस-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने हमले को नाकाम कर दिया। ईरान की IRNA न्यूज एजेंसी ने एक वीडियो पोस्ट किया है। कथित तौर पर हवा में ही टार्गेट तबाह हो रहे हैं।

ईरान के सरकारी टेलीविजन की रिपोर्ट के मुताबिक एयर डिफेंस फोर्स ने तेहरान, खुजेस्तान और इलम में कई ठिकानों को निशाना बनाकर किए गए हमले की पुष्टि की है। उसने कहा है कि हमले से सीमित नुकसान हुआ है। एयर डिफेंस फोर्स ने कहा, 'इस्लामिक गणराज्य की ओर से दी गई चेतावनियों के बावजूद जायोनी शासन ने तनाव पैदा करने वाली कार्रवाई में आज सुबह तेहरान, खुजेस्तान और इलम में सैन्य केंद्रों के कुछ हिस्सों पर हमला किया।'

बयान में आगे कहा गया कि देश के एयर डिफेंस सिस्टम ने आक्रामकता की कार्रवाई को सफलतापूर्वक रोका और उसका मुकाबला किया। बयान में कहा गया कि हमलों से कुछ स्थानों पर सीमित क्षति हुई है।