धनबाद: गैंगस्टर अमन सिंह हत्याकांड के आरोपी रितेश यादव को तीन साल की कैद; नीरज सिंह हत्याकांड में संजीव सिंह की ओर से बहस शुरू

धनबाद में दो अलग-अलग हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों में महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आए हैं। यूपी के गैंगस्टर अमन सिंह की धनबाद जेल में गोली मारकर हत्या के आरोपी सुंदर महतो उर्फ रितेश यादव को पहचान छिपाने और पुलिस को गुमराह करने के आरोप में तीन साल कैद और 5,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। वहीं, पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या के मामले में झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की ओर से झारखंड उच्च न्यायालय में बहस शुरू हो गई है।
अमन सिंह हत्याकांड: रितेश यादव को पहचान छिपाने पर मिली सज़ा
प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी नूतन एक्का की अदालत ने यूपी के प्रतापगढ़ निवासी रितेश यादव उर्फ सुंदर महतो को यह सजा सुनाई। उस पर आरोप था कि उसने अपनी वास्तविक पहचान छुपाकर पुलिस को गुमराह किया।
यह मामला तब सामने आया जब 13 दिसंबर, 2023 को पुटकी थाना में रितेश यादव के खिलाफ पहचान छुपाने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 25 नवंबर, 2023 को पुलिस ने उसे डीएवी मैदान मुनीडीह से चोरी की बाइक के साथ पकड़ा था। उस समय उसने अपना नाम सुंदर महतो उर्फ नीतीश महतो और पता तेलो चंद्रपुरा, बोकारो बताया था।
हालांकि, 3 दिसंबर, 2023 को धनबाद जेल में अमन सिंह की हत्या के बाद जब पुलिस ने सुंदर महतो की संलिप्तता इस हत्याकांड में पाई, तो उसे पुलिस रिमांड पर लिया गया। रिमांड के दौरान ही यह खुलासा हुआ कि सुंदर महतो उसका असली नाम नहीं है और उसने जानबूझकर अपनी पहचान छिपाई थी। बोकारो पुलिस की जांच में भी यह पुष्टि हुई कि तेलो चंद्रपुरा में सुंदर महतो नाम का कोई व्यक्ति नहीं है। उसका वास्तविक नाम रितेश यादव है और वह चारंगपुर, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का निवासी है।
नीरज सिंह हत्याकांड: संजीव सिंह के बचाव में शुरू हुई बहस
पूर्व डिप्टी मेयर और कांग्रेस नेता नीरज सिंह सहित चार लोगों की हत्या के मामले में पिछले आठ वर्षों से जेल में बंद झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की ओर से झारखंड उच्च न्यायालय में बहस शुरू हो गई है।
अधिवक्ता मिलन दे ने अदालत में तर्क दिया कि नीरज सिंह की हत्या की सूचना मिलते ही सरायढेला थाना प्रभारी अरविंद कुमार मौके पर पहुंच गए थे और तत्काल जांच शुरू कर दी थी। उन्होंने घटनास्थल से गोली के खोखे, ब्लड सैंपल और अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य जब्त किए थे। साथ ही, मृतकों की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट भी तैयार की गई थी।
अधिवक्ता दे ने यह भी बताया कि धनबाद उपायुक्त ने एसडीएम, एसएसपी और सिविल सर्जन को रात में ही पोस्टमार्टम करने का निर्देश दिया था। उन्होंने सवाल उठाया कि जब तत्काल अनुसंधान शुरू हो गया था और साक्ष्य जमा कर लिए गए थे, तो उसके दो दिन बाद अभिषेक सिंह द्वारा थाने में लिखित आवेदन क्यों दिया गया? अधिवक्ता ने इसे मात्र एक "आवेदन" बताया, "प्राथमिकी" नहीं।
उन्होंने मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट पर अभिषेक सिंह और शिवम सिंह के हस्ताक्षर होने के बावजूद एफआईआर दर्ज न किए जाने पर भी सवाल उठाया और कहा कि 23 तारीख को दर्ज की गई एफआईआर संदेहास्पद है और कानून की दृष्टि में मान्य नहीं है। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एफआईआर तभी दर्ज की जाएगी जब कोई "सबसे अच्छा व्यक्ति" लिखित आवेदन देगा। उन्होंने पूछा कि घटना के तुरंत बाद सरायढेला थाना प्रभारी द्वारा दर्ज की गई सनहा और की गई पोस्टमार्टम को ही एफआईआर क्यों नहीं माना जाना चाहिए।
Jul 30 2025, 13:05