सिंदूर और सुकून: एक दुल्हन की पुकार पर जागा हिंदुस्तान
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यहाँ कविता “**सिंदूर और सुकून** पर आधारित है:
बिहार जहानाबाद कुमारी मानसी, मगध विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग की अनुसंधायिका और बिहार की शब्दाक्षर प्रदेश साहित्य मंत्री, ने अपनी हृदयस्पर्शी कविता *“सिंदूर और सुकून”* के ज़रिए समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। इस कविता में एक ऐसी दुल्हन की व्यथा चित्रित की गई है, जिसने न केवल अपने जीवनसाथी को खोया, बल्कि अपने सपनों और श्रृंगार का रंग भी।
कविता में गूंजती पंक्तियाँ — *“अब आईना भी सुना है अब करती नहीं दीदार, बिन सिंदूर; बिंदी के सजना कैसे करूं श्रृंगार”* — उस अनकहे दर्द को उजागर करती हैं, जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है।
कवयित्री ने यह भी लिखा: *“मेरी व्यथा से व्यथित है धरती आसमान, मेरे संग-संग रो रहा है पूरा हिंदुस्तान।”* यहाँ दुल्हन के दुःख को पूरे देश का दुःख बना दिया गया है, और जनता की सामूहिक चेतना को आवाज़ दी गई है।
देशवासियों ने इस दर्द पर न्याय की गुहार लगाई, और आखिरकार प्रशासन ने कठोर कदम उठाए। कविता की अंतिम पंक्ति — *“सिंदूर से संतोष मिला है, जब लगी है उनकी क्लास”* — यह दर्शाती है कि न्याय मिलने पर ही दुल्हन को और समाज को थोड़ी राहत मिली।
यह कविता न केवल व्यक्तिगत वेदना की कहानी है, बल्कि सामाजिक जागरूकता का संदेश भी है, जिसने जनभावनाओं को एक मंच पर ला खड़ा किया।
जय हिंद!
कुमारी मानसी (अनुसंधायिका, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया; शब्दाक्षर प्रदेश साहित्य मंत्री, बिहार)
May 10 2025, 16:11