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वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, आज दे सकती है अंतरिम आदेश

#supremecourtwaqfamendmentact_hearing

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने बुधवार को साफ संकेत दिए कि कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई जा सकती है। खासकर ‘वक्फ बाय यूजर’, गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति और जिलाधिकारियों को वक्फ जमीन की स्थिति तय करने का अधिकार। इन पर कोर्ट गंभीरता से विचार कर रहा है। ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई काफी अहम है।

“नए कानून के तीन प्रावधान चिंताजनक”

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने बुधवार को तीन मुख्य चिंताएं बताईं। पहली, वक्फ की संपत्तियां जो पहले अदालती आदेशों से वैध घोषित की गई थीं, अब शायद अवैध हो जाएंगी। दूसरी, वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को बहुमत मिल सकता है। तीसरी, विवादित वक्फ संपत्ति पर कलेक्टर की जांच लंबित रहने तक, यह घोषणा कि इसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, चिंताजनक है।

“अंतरिम आदेश हिस्सेदारी को संतुलित करेगा”

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, हमारा अंतरिम आदेश हिस्सेदारी को संतुलित करेगा। पहला, हम आदेश में कहेंगे कि न्यायालय की ओर से वक्फ घोषित की गई किसी भी संपत्ति को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा, यानी उसे गैर वक्फ नहीं माना जाएगा, फिर चाहे वह संपत्ति उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ की गई हो या विलेख के जरिए। दूसरा, कलेक्टर किसी संपत्ति से संबंधित अपनी जांच की कार्यवाही जारी रख सकता है, पर कानून का यह प्रावधान प्रभावी नहीं होगा कि कार्यवाही के दौरान संपत्ति गैर वक्फ मानी जाए। तीसरा, बोर्ड व परिषद में पदेन सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं, लेकिन अन्य सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए।

“कुछ प्रावधानों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं”

सीजेआई खन्ना ने कहा कि वक्फ बाय यूजर को गैर-अधिसूचित करने के बहुत गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अधिनियम के कुछ प्रावधानों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए, उन्होंने कहा कि बेंच एक अंतरिम आदेश पर विचार करेगी। सीजेआई ने कहा, एकतरफा रोक के संबंध में, हमारे (अदालत) पास कुछ अधिकार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि आम तौर पर अदालतें विधायिका द्वारा पारित कानून पर प्रवेश स्तर पर रोक लगाने से बचती हैं, लेकिन 'इस मामले में कुछ अपवाद हैं।'

सुनवाई के आखिर में पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर बृहस्पतिवार को भी विचार करने का फैसला किया। जिसमें वह तय करेगा कि सुनवाई खुद करेगा या किसी हाईकोर्ट को सौंपेगा। सुप्रीम कोर्ट में ये सिर्फ कानून की बहस नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ की भी परीक्षा है जिसमें वक्फ की परंपरा सदियों से मौजूद रही है।

क्‍या है 'वक्फ बाय यूजर', जिसपर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, जानें क्या कहा

#waqf_by_user_meaning

नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। इसे लेकर पहले दिन बुधवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से 'वक्फ बाय यूजर' संपत्तियों के प्रावधानों पर सवाल उठाए। सीजेआई संजीव खन्‍ना से लेकर कप‍िल स‍िब्‍बल, अभ‍िषेक मनु सिंघवी और तमाम वकीलों ने इस पर सवाल उठाए। सरकार से पूछा क‍ि आख‍िर इस क्‍लॉज में छेड़छाड़ क्‍यों की गई?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर ये 'वक्फ बाई यूजर' का मतलब क्या है? 'वक्फ बाय यूजर' का मतलब है, ऐसी संपत्ति जो लंबे समय से धार्मिक या सामाजिक कार्यों के लिए इस्तेमाल हो रही है। लंबे समय तक इस्लामिक धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होने के कारण वक्फ मानी जाती है, भले ही उसके पास लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री न हो।

सुप्रीम कोर्ट में आज बहस की शुरुआत करते हुए कप‍िल सिब्‍बल ने कहा, ‘वक्फ बाय यूजर’ वक्‍फ की एक शर्त है। मान लीजिए मेरे पास एक प्रॉपर्टी है और मैं चाहता हूं क‍ि वहां एक अनाथालय बनवाया जाए, तो इसमें समस्‍या क्‍या है? मेरी जमीन है, मैं उस पर बनवाना चाहता हूं, ऐसे में सरकार मुझे रज‍िस्‍टर्ड कराने के ल‍िए क्‍यों कहेगी? इस पर सीजेआई ने कहा, अगर आप वक्‍फ का रज‍िस्‍ट्रेशन कराएंगे तो रिकार्ड रखना आसान होगा। लेकिन सरकार ने ‘वक्फ बाय यूजर’ ही खत्‍म कर द‍िया है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को हटाने पर केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र से वक्फ कानून पर तीखे सवाल भी पूछे। सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, वक्‍फ बाई यूजर क्‍यों हटाया गया?

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच बनी ज्यादातर मस्जिदों के पास सेल डीड नहीं होंगे। ऐसे में, उन्हें कैसे रजिस्टर किया जाएगा? कोर्ट ने यह भी कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि 'वक्फ बाय यूजर' में कोई असली संपत्ति नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी मस्जिदों से रजिस्टर्ड डीड मांगना नामुमकिन होगा, क्योंकि ये सभी वक्फ-बाय-यूजर प्रॉपर्टीज हैं।

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इसे रजिस्टर करवाने से किसने रोका? सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर सरकार कहने लगी कि ये जमीनें सरकारी हैं तो क्या होगा? यही समस्‍या है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह बड़ा मुद्दा है और इस पर और सुनवाई क‍िए जाने की जरूरत है। सरकार ने गुरुवार का द‍िन इसी पर सुनवाई के ल‍िए रखा है।

ट्रंप ने चीन पर 100% टैरिफ और बढ़ाया, 245% टैक्स का क्या जवाब देगा ड्रैगन?

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अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ की लड़ाई रुकने का नाम नहीं ले रही है। 2 अप्रैल को जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के ऊपर 34 प्रतिशत का टैरिफ लगाया था तो इसके विरोध में चीन ने भी अमेरिका के ऊपर उतना ही टैरिफ लगा दिया। जिसे बढ़ाकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले 84 प्रतिशत और फिर 125 प्रतिशत किया। अमेरिका के 125 फीसदी टैरिफ का जवाब जब चीन ने दिया तो, राष्ट्रपति ट्रंप ने एक बार फिर चीन के ऊपर टैरिफ को बढ़ाकर 245 प्रतिशत कर दिया।

व्हाइट हाउस ने अपने बयान में कहा है कि लिबरेशन डे पर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन सभी देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया जो अमेरिका पर हाई टैरिफ लगाते हैं। टैरिफ को फिर रोक दिया गया क्योंकि 75 से अधिक देश नए व्यापार डील पर बातचीत करने के लिए अमेरिका के पास पहुंचे। इन चर्चाओं के बीच इंडिविजुअल टैरिफ को फिलहाल रोक दिया गया है, चीन को छोड़कर, जिसने जवाबी कार्रवाई की। चीन को अब अपनी जवाबी कार्रवाई के कारण अमेरिका में आयात पर 245% तक के टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है।

रणनीतिक सामग्रियों के निर्यात पर रोक से भड़का यूएस

चीन ने कुछ जरूरी हाई-टेक सामान जैसे कि भारी दुर्लभ धातुएं और चुंबक का निर्यात रोक दिया है। ये चीजें ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर और डिफेंस जैसी इंडस्ट्री के लिए बहुत जरूरी हैं। इसलिए अमेरिका ने ये कदम उठाया है। बयान में चीन की ओर उठाए गए कदमों का जिक्र किया गया है। चीन ने गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमनी और अन्य रणनीतिक सामग्रियों के निर्यात पर रोक लगा दी है। इनका इस्तेमाल सेना में भी हो सकता है।

245% टैरिफ पर चीन का जवाब

अमेरिका ने जैसे ही चीन के ऊपर 245% टैरिफ लगाने की घोषणा की, ठीक वैसे ही चीन की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया आ गई है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन व्यापार युद्ध लड़ने से डरता नहीं है।

चीन को व्यापार युद्ध में झुकाना चाहते हैं ट्रंप

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि बातचीत की मेज पर आना बीजिंग पर निर्भर करता है। प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट द्वारा एक ब्रीफिंग में पढ़े गए एक बयान के अनुसार, मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, गेंद चीन के पाले में है। चीन को हमारे साथ एक समझौता करने की जरूरत है। यह कदम ट्रंप की उस कोशिश का हिस्सा है, जिसके जरिए वे चीन को व्यापार युद्ध में झुकाना चाहते हैं। लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग न तो पीछे हट रहे हैं और न ही खुद को कमजोर दिखा रहे हैं।

वक्‍फ बोर्ड में गैर मुस्‍ल‍िम सदस्‍य, क्या हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम को लेंगे? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल

#waqf_amendment_act_supreme_court_hearing

वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। आज तीन सदस्यीय पीठ ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों के मामले को लेकर सरकार से बड़ा सवाल किया। कोर्ट ने पूछा, क्या वो मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है?

दरअसल, सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा, केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि सभी मेंबर्स मुस्लिम होंगे। यहां 22 में से 10 मुस्लिम हैं। अब कानून लागू होने के बाद से बिना वक्फ डीड के कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकता है।

बोर्ड में गैर मुसलमानों की सदस्यता पर सवाल

सिब्बल की इस टिप्पणी पर सीजेआई जस्टिस खन्ना ने कहा, कानून में आप कहते हैं क‍ि वक्‍फ बोर्ड गैर मुस्‍ल‍िम सदस्‍य होंगे। क्‍या आप बता सकते हैं क‍ि कितने सदस्य गैर-मुस्लिम होंगे? क्‍या आप अदालत को भरोसा देंगे क‍ि 2 पदेन सदस्‍यों के अलावा बाकी सब मुसलमान होंगे। कोर्ट ने यह भी पूछा क‍ि जब आप वक्‍फ बोर्ड में गैर मुस्‍ल‍िम सदस्‍य बना रहे हैं तो क्‍या हिन्‍दुओं के ट्रस्‍ट में भी ऐसा होता है? और ह‍िन्‍दू कैसे अन्‍य धर्म के बारे में फैसला कर सकता है?

अन्य मुस्लिम संप्रदायों के फायदे का तर्क

इस पर केद्र सरकार के वकील ने जवाब द‍िया। एसजी ने अपने जवाब में कहा, अगर आपका तर्क मान ल‍िया जाए तो फ‍िर सुप्रीम कोर्ट के जज भी इस मामले में सुनवाई नहीं कर सकते। इस पर सीजेआई ने कहा, जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं। हम धर्मनिरपेक्ष हैं। हम एक ऐसे बोर्ड की बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का मैनेजमेंट कर रहा है। इस पर एसजी ने कहा, यह एक ऐसा बोर्ड होगा जो सलाहकार की तरह काम करेगा। एसजी ने यह भी दलील दी क‍ि अब तक वक्‍फ कानून से सिर्फ शिया और सुन्‍नी को फायदा मिलता था। अब मुस्लिमों के अन्य संप्रदायों, बोहरा और अन्य को बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा।

वक्फ बाय यूजर के प्रावधान पर भी सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बाय यूजर के प्रावधान पर भी सवाल उठाए। सीजेआई खन्ना ने कहा कि 14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिदें हैं। उनके पास रजिस्ट्रेशन सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संपत्तियों को कैसे पंजीकृत करेंगे। उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? ऐसे वक्फ को खारिज कर देने पर विवाद ज्यादा लंबा चलेगा। हम यह जानते हैं कि पुराने कानून का कुछ गलत इस्तेमाल हुआ, लेकिन कुछ वक्फ ऐसे भी हैं, जिनकी वक्फ संपत्ति के तौर पर पहचान हुई। वक्फ बाय यूजर मान्य किया गया। अगर आप इसे रद्द कर देंगे तो समस्या होगी।

अमेरिका-ईरान के बीच परमाणु समझौते पर क्यों भारत की नजर, जानें क्या होगा फायदा?

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अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर बातचीत जारी है। अमेरिका और ईरान के बीच हाल ही में पहले दौर की बातचीत ओमान में हुई है। अब अगले दौर की बातचीत 19 अप्रैल को होगी। समाचार एजेंसी मेहर ने ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बाघेई के हवाले से कहा कि शनिवार को होने वाली दूसरे दौर की वार्ता की मेजबानी मस्कट करेगा।

न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम रोकने के बदले मिलेगी राहत

अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने साफ-साफ कहा है कि अगर तेहरान को वाशिंगटन के साथ कोई डील करनी है तो अपने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम यानी न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम को रोकना और समाप्त करना होगा। ईरान को अपनी यूरेनियम को एनरिच करने से जुड़ीं गतिविधियों पर रोक लगानी होगी और बदले में उसे अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत मिलेगी। इस तरह ईरान के अधिकारियों के साथ वार्ता के एक और दौर से पहले अमेरिका ने अपने मांगों का स्तर बढ़ा दिया है।

अपनी मर्जी का डील चाहते हैं ट्रंप

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने अगले कदम को फूंक-फूंककर रख रहे हैं। ट्रंप अपनी मर्जी का डील करना चाहते हैं, चाहे उसके लिए कोई भी रणनीति अपनानी पड़े।वार्ता विफल होने की स्थिति में, ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने सैन्य योजनाओं को बैकअप के रूप में रखा है। अमेरिका-ईरान वार्ता के अगले दौर से पहले ही वाशिंगटन ने इस क्षेत्र में दूसरा विमानवाहक पोत भेज दिया है। यूएसएस कार्ल विंसन और उसका स्ट्राइक ग्रुप अरब सागर से फारस की खाड़ी की ओर बढ़ गया है। एक दूसरा अमेरिकी विमानवाहक पोत - यूएसएस हैरी एस. ट्रूमैन ने भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रखी है। एक दूसरे स्ट्राइक ग्रुप को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली होसैनी खामेनेई के सामने अपने इरादे स्पष्ट करने के लिए ट्रंप द्वारा हमलों को तेज करने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है।

अमेरिका ने 2018 में न्यूक्लियर डील से खुद को बाहर किया था

अमेरिका ने बराक ओबामा के कार्यकाल में ईरान ने साथ न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर एक डील पर साइन किया था, जिसे ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव एक्शन प्लान के रूप में जाना जाता है। ईरान ने जुलाई 2015 में छह प्रमुख देशों - ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत ईरान प्रतिबंधों में छूट के बदले अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर सहमत हुआ था। हालांकि, मई 2018 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने एकतरफा तरीके से अपने देश को इस समझौते से बाहर निकाल लिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए थे, जिससे तेहरान को समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करना पड़ा।

इस डील से भारत को क्या होगा फायदा?

इधर, भारत ने अमेरिका और ईरान के बीच होने वाली डील पर नजर बनाए रखी है। दोनों देशों के बीच हो रही इस वार्ता का असर भारत पर भी पड़ सकता है। भारत के लिए ये वार्ता इसलिए अहम है क्योंकि अमेरिका और ईरान दोनों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध हैं। अमेरिका और ईरान के बीच बात बन जाए, ये भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि भारत कभी ईरान के तेल का बड़ा खरीदार था। कच्चे तेल के लिए भारत ईरान पर काफ़ी निर्भर था। 2019 से पहले ईरान से भारत का तेल आयात 11 फ़ीसदी था। लेकिन ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान जब ईरान पर प्रतिबंध वापस लगा दिया गया, तो भारत को ईरान से अपना तेल आयात रोकना पड़ा ताकि उस पर किसी तरह का सेकेंड्री प्रतिबंध न लगे।

अब भारत जो तेल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से खरीद रहा है, वो ज़्यादा महंगा पड़ रहा है। ऐसे में ईरान पर प्रतिबंध जारी रहने से यही स्थिति बरकरार रहेगी। अगर भारत ईरान से तेल खरीदता है, तो वो सस्ता होगा। इससे भारत का जो व्यापार घाटा है, उसमें थोड़ी राहत मिल सकती है। घरेलू ईंधन के मूल्य भी स्थिर हो सकते हैं।

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई,सिब्बल और सिंघवी ने दी क्या बड़ी दलीलें

#waqflawpilsupremecourt_hearing

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ इस मुद्दे पर दायर 73 याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक वक्फ कानून पर रोक लगे। वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि यह कानून धार्मिक मामलों में दखल देता है। साथ ही यह बुनियादी जरूरतों का अतिक्रमण करता है। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने नए वक्फ कानून का बचाव किया। उन्होंने कहा, यह सिर्फ एक कानून नहीं है, यह जेपीसी द्वारा विचार-विमर्श के बाद आया है। उन्होंने 98 लाख से ज़्यादा ज्ञापनों पर विस्तृत चर्चा की।

सिब्बल ने कहा अनुच्छेद 26 का उल्लंघन

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश कीं। सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने सवाल उठाया, कानून के मुताबिक, मुझे अपने धर्म की आवश्यक प्रथाओं का पालन करने का अधिकार है। सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ केवल वही लोग बना सकते हैं, जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं? सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद मिलता है, लेकिन यह कानून उससे पहले ही हस्तक्षेप करता है। उन्होंने अधिनियम की धारा 3(सी) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सरकारी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी, जो पहले से वक्फ घोषित थी।

यह पूरी तरह से सरकारी टेकओवर- सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि यह पूरी तरह से सरकारी टेकओवर है। सिब्बल ने राम जन्मभूमि के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि धारा 36, आप उपयोगकर्ता द्वारा बना सकते हैं, संपत्ति की कोई आवश्यकता नहीं है। मान लीजिए कि यह मेरी अपनी संपत्ति है और मैं इसका उपयोग करना चाहता हूं, मैं पंजीकरण नहीं करना चाहता।

सीजेआई ने कहा कि पंजीकरण में क्या समस्या है? सिब्बल ने कहा कि मैं कह रहा हूं कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को समाप्त कर दिया गया है, यह मेरे धर्म का अभिन्न अंग है, इसे राम जन्मभूमि फैसले में मान्यता दी गई है। सिब्बल ने कहा कि समस्या यह है कि वे कहेंगे कि यदि वक्फ 3000 साल पहले बनाया गया है तो वे डीड मांगेंगे।

अभिषेक मनु सिंघवी ने क्या कहा?

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी दलीलें दीं और कहा, हमने सुना है कि संसद की जमीन भी वक्फ की है। वहीं, सीजेआई खन्ना ने जवाब दिया, हम यह नहीं कह रहे कि सभी वक्फ गलत तरीके से पंजीकृत हैं, लेकिन कुछ चिंताएं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट को सौंपी जा सकती है। इस पर अभिषेक मनुसिंघवी ने कहा कि वक्फ संसोधित अधिनियम के रूल 3( 3)(डीए) में कलेक्टर को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है। लोगों को अधिकारी के पास जाने के लिए बनाया गया है। सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 को पढ़ने से ज्यादा अनुच्छेद 32 क्या है, यह ऐसा मामला नहीं है जहां मीलॉर्ड्स को हमें हाई कोर्ट भेजना चाहिए

जस्टिस बीआर गवई होंगे अगले चीफ जस्टिस, 14 मई को संभालेंगे कार्यभार

#supreme_court_next_cji_br_gavai

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने आज बुधवार को केंद्र सरकार से अगले सीजेआई के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के नाम की सिफारिश कर दी है। सीजेआई खन्ना के बाद जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं। सीजेआई खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं और उनके बाद गवई देश के 52वें सीजेआई बनेंगे। वो देश के अगले सीजेआई के तौर पर 14 मई को शपथ लेंगे।

आपको बता दें कि संजीव खन्ना ने भारत के 51वें सीजेआई के तौर पर पिछले साल 11 नवंबर को शपथ ली थी। उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई थी। उन्होंने पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की जगह ली थी। डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हुए थे। नए सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल 6 महीने का है। वो 13 मई 2025 तक सीजेआई के पद पर रहेंगे।

जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनके पिता आरएस गवई एक प्रसिद्ध राजनेता थे, जो रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) से सांसद और बाद में राज्यपाल रहे। उनके भाई राजेंद्र गवई भी एक राजनेता हैं। जस्टिस गवई ने अपनी कानून की पढ़ाई नागपुर विश्वविद्यालय से पूरी की और 1985 में वकालत शुरू की। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में उन्‍होंने वकालत से की। 2000 में उन्‍हें बॉम्बे हाई कोर्ट में स्थायी जज बनाया गया। 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।

जस्‍ट‍िस गवई के अहम फैसले

जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने यूपी में बुल्‍डोजर एक्‍शन पर रोक लगाने वाला फैसला सुनाया था। जस्टिस गवई उन 5 जजों की संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था। एक अन्य पांच जजों की संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस गवई भी शामिल थे, ने राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था।

इसके अलावा वे 5 जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोट बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को अपनी मंजूरी दी थी। जस्टिस गवई 7 जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 6:1 के बहुमत से स्वीकार किया था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है।

ममता ने बंगाल में हिंसा के लिए बीजेपी को ठहराया जिम्मेदार, मौलवियों संग बैठक में बोलीं- हम हिंदू-मुसलमान नहीं होने देंगे

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को इमामों से मुलाकात की। बीते दिनों मुर्शिदाबाद समेत बंगाल के कई हिस्सों में हुई हिंसा के बाद सीएम ममता बनर्जी ने राज्य के इमामों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पीएम मोदी हिंदुस्तान को बदल नहीं सकते हैं। हम हिंदू-मुसलमान नहीं होने देंगे। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि भाजपा कुछ मीडिया संस्थानों को पैसे देकर बंगाल को बदनाम करने के लिए अन्य राज्यों में हुई हिंसा के वीडियो प्रसारित करवा रही है।

हिंसा में टीएमसी के शामिल होने से किया इनकार

कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम में मौलवी और मौलाना की सभा में ममता ने कहा, विपक्ष का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस वक्फ हिंसा में शामिल है। अगर हमारे नेता हिंसा में शामिल होते तो उनके घरों पर हमला नहीं होता। ममता ने मौलवियों से कहा, संसद में वक्फ कानून के खिलाफ लड़ाई में तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे है। मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि बीजेपी के बयानबाजी से उत्तेजित होकर बंगाल में अशांति पैदा नहीं करें।

दंगे के लिए बीजेपी जिम्मेदार-ममता

हिंसा के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि बाहर से आए लोगों ने गड़बड़ की। बीजेपी कहती है हम हिंदू का है, हम हिंदू का है और कोई धर्म का नहीं है। उन्होंने कहा कि बीते दिनों जिस तरह का दंगा हुआ वो एक योजना के तहत की गई घटना है। दंगे की सुनियोजित साजिश हुई है। आज इस देश में संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। बीजेपी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि ये बीजेपी की नहीं भारत का संविधान।

बंगाल को बदनाम करने की कोशिश-ममता

बंगाल की सीएम ने आगे कहा कि केंद्र सरकार से कितने युवाओं को नौकरी मिली है? दवाओं, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि की गई है, लेकिन कुछ 'मीडिया' केवल बंगाल के खिलाफ बोलते हैं। अगर आपको कुछ कहना है, तो मेरे सामने आकर कहें, मेरे पीछे नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी की फंडिंग से चलने वाले कुछ मीडिया चैनल बंगाल के फर्जी वीडियो दिखाते हैं। उन्होंने कर्नाटक, यूपी, बिहार और राजस्थान के 8 वीडियो दिखाए और बंगाल को बदनाम करने की कोशिश की।

वक्फ संपत्तियों पर हिंदू परिवार रहते हैं-ममता

ममता बनर्जी ने वक्फ को लेकर भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि वक्फ की संपत्तियों में हिंदुओं का तो सोशल वेलफेयर के लिए वक्फ ने दान दी है। आज कई जगहों पर वक्फ संपत्तियों पर हिंदू परिवार रहते हैं। उन्होंने बीजेपी पर स्टेट वक्फ बोर्ड तोड़ने और उसका नियंत्रण आपने हाथों में लेने का आरोप लगाया। उन्होंने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि देश में आपकी सिंगल मैजोरिटी नहीं है, फिर यह कैसे कर रहे हैं?

अमेरिकी टैरिफ ने “रूलाया” तो चीन को आई भारत की याद, सिर्फ तीन महीने में 85,000 भारतीयों को वीजा

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कभी भारत को लेकर भौंहे तानने वाले चीन के तेवर नर्म पड़ते दिख रहे हैं। अमेरिकी टैरिफ की “चोट” से छटपटा रहे चीन को अब भारत करीब नजर आ रहा है। अमेरिका से ट्रेड वॉर के बीच चीन ने भारतीय नागरिकों को बड़ी संख्या में वीजा जारी किए हैं। चीनी दूतावास ने 1 जनवरी से 9 अप्रैल, 2025 के बीच 85,000 से ज्यादा वीजा भारतीयों को दिए हैं। माना जा रहा है कि अमेरिका से बढ़ते तनाव के बीच चीन, भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने की कोशिश कर रहा है।

पिछले कुछ सालों में भारत-चीन के बीच तनाव देखा गया। लेकिन अब इसमें सुधार होते दिख रहे हैं। रिश्तों को बेहतर करने की दिशा में एक और कदम बढ़ते हुए चीन ने भारत के लिए बड़ा कदम उठाया है। इस साल 9 अप्रैल तक सिर्फ तीन महीनों में 85,000 से ज्यादा वीजा भारतीय नागरिकों को जारी किए हैं। भारत स्थित चीनी दूतावास और कॉन्सुलेट्स शू फेइहोंग ने ज्यादा से ज्यादा भारतीयों से चीन आने और देश घूमने की अपील की।

शू फेइहोंग ने एक्स पर लिखा- 9 अप्रैल, 2025 तक भारत में चीनी दूतावास और कॉन्सुलेट्स ने चीन विजिट करने वाले भारतीय नागरिकों को 85,000 से ज्यादा वीजा जारी किए हैं। चीन आने वाले ज्यादा से ज्यादा भारतीय दोस्तों का स्वागत है, ताकि वे सुरक्षित और दोस्ताना चीन को जान सकें।

यही नहीं, चीन ने अपनी यात्रा नीतियों को आसान बनाकर भारतीयों को अपने देश में आमंत्रित करने का प्रयास किया है। चीन सरकार ने भारत और चीन के बीच यात्रा को आसान बनाने के लिए कुछ बदलाव किए हैं। अब भारतीय लोग बिना ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लिए सीधे वीजा सेंटर पर जाकर वीजा के लिए अप्लाई कर सकते हैं। पहले ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेना जरूरी था।

भारतीयों के लिए वीजा नियमों में बदलाव

बायोमेट्रिक छूट: अगर भारतीय नागरिक शॉर्ट टाइम के लिए चीन की यात्रा करना चाहते हैं तो उन्हें अब अपना बायोमेट्रिक डेटा पेश करने की जरूरत नहीं है, जिससे वीजा प्रोसेस का समय कम हो जाता है।

तेज और आसान प्रोसेस: चीन ने वीजा अप्रूवल सिस्टम तेज करने के लिए अप्रूवल समय-सीमा को भी आसान कर दिया है, जिससे प्रोसेस तेज हो गई है।

वीजा शुल्क में कटौती: चीन में अधिक भारतीय पर्यटकों को अपने देश बुलाने के लिए वीजा शुल्क में भी कटौती की है।

टूरिज्म का प्रमोशन: भारत में चीनी दूतावास ज्यादा से ज्यादा भारतीय यात्रियों को आकर्षित करने के लिए चीनी टूरिज्म को बढ़ावा दे रहा है।

अमेरिकी प्रहार के बीच भारतच से सहयोग की अपील

बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रम्प अन्य देशों पर भारी टैरिफ लगा रहे हैं। खासकर चीन पर, जो इसका शीर्ष आर्थिक विरोधी है। ऐसे में चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने भारत-चीन आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि "चीन-भारत आर्थिक और व्यापारिक संबंध म्यूच्यूअल लाभ पर आधारित हैं। अमेरिका टैरिफ का सामना करते हुए, दोनों सबसे बड़े विकासशील देशों को कठिनाइयों को दूर करने के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए।"

यू जिंग ने आगे कहा कि "व्यापार और टैरिफ युद्धों में कोई विजेता नहीं है। सभी देशों को व्यापक परामर्श के सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए, सच्चे बहुपक्षवाद का अभ्यास करना चाहिए, सभी प्रकार के एकतरफावाद और संरक्षणवाद का संयुक्त रूप से विरोध करना चाहिए।"

क्या है नेशनल हेराल्ड केस? सुब्रमण्यम स्वामी की एक शिकायत और बढ़ गई गांधी परिवार की मुश्किलें

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प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड केस में कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। ईडी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी और ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया है। इस मामले में 25 अप्रैल को सुनवाई होगी। ईडी के इस एक्शन सवाल उठ रहे हैं कि क्या सोनिया और राहुल गांधी की गिरफ्तारी होगी? इससे पहले आइए जान लेते हैं कि ये मामला कैसे प्रकाश में आया किसकी शिकायत पर मामला आगे बढ़ा और आरोप क्या हैं?

क्या है नेशनल हेराल्ड केस?

बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के ही मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे पर घाटे में चल रहे नेशनल हेराल्ड अखबार को धोखाधड़ी और पैसों की हेराफेरी के जरिए हड़पने का आरोप लगाया था।

आरोप के मुताबिक, कांग्रेसी नेताओं ने नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर कब्जे के लिए यंग इंडियन लिमिटेड ऑर्गेनाइजेशन बनाया और उसके जरिए नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन करने वाली एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) का अवैध अधिग्रहण कर लिया। स्वामी का आरोप था कि ऐसा दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपए की बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए किया गया था।

जानें क्या है आरोप

साल 2010 में यंग इंडियन नाम से एक और कंपनी बनाई गई। जिसका 76 फीसदी शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी (38-38 फीसदी) के पास और बाकी का शेयर मोतीलाल बोरा और आस्कर फर्नांडिस के पास था। कांग्रेस पार्टी ने अपना 90 करोड़ का लोन नई कंपनी यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिया। लोन चुकाने में पूरी तरह असमर्थ द एसोसिएट जर्नल ने सारा शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिया। इसके बदले में यंग इंडियन ने महज 50 लाख रुपये द एसोसिएट जर्नल को दिए। इसी को लेकर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि यंग इंडियन प्राइवेट ने केवल 50 लाख रुपये में 90 करोड़ वसूलने का उपाय निकाला जो नियमों के खिलाफ है। स्वामी ने 2000 करोड़ रुपए की कंपनी को केवल 50 लाख रुपए में खरीदे जाने को लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत केस से जुड़े कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की थी।

2014 में ईडी ने दर्ज किया केस

जून 2014 ने कोर्ट ने सोनिया, राहुल समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया। अगस्त 2014 में ईडी ने इस मामले में एक्शन लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। केस दर्ज होने के बाद अगले साल 19 दिसंबर 2015 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत अन्य आरोपियों को दिल्ली की पटियाला कोर्ट ने नियमित जमानत दी। इसके अगले साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई रद्द करने से इनकार कर दिया। राहत की बात यह रही कि कोर्ट ने सभी आरोपियों को व्यक्तिगत पेशी से छूट प्रदान कर दी। इस फैसले के दो साल बाद 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी की आयकर विभाग के नोटिस के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी।

ईडी के चार्जशीट ने बढ़ाई गांधी परिवार की मुश्किल

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि आयकर की जांच चलती रहेगी। अब इसी नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दिया है।