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महाशिवरात्रि पर साउथ एशियन विवि की मेस में परोसा नॉनवेज, जमकर हुआ बवाल

#fight_between_students_in_the_mess_of_south_asian_university

दिल्ली की साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) में छात्रों के दो गुटों के बीच जमकर बवाल हुआ है। ये विवाद हुआ महाशिवरात्रि के मौके पर यूनिवर्सिटी की मेस में नॉन वेज खाना परोसने को लेकर। यूनिवर्सिटी के मेस में नॉनवेज परोसने को लेकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों के बीच हाथापाई हो गई। मारपीट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है। दोनों छात्र संगठनों ने एक-दूसरे पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है।

एसएफआई का कहना है कि एबीवीपी के सदस्यों ने महाशिवरात्रि पर मांसाहार न परोसने की उनकी मांग नहीं मानी। इसके बाद एबीवीपी ने यूनिवर्सिटी के मेस में छात्रों पर हमला किया। एसएफआई का आरोप है कि एबीवीपी के लोगों ने मांसाहार परोसे जाने पर छात्र-छात्राओं और भोजनालय कर्मियों के साथ मारपीट की। एसएफआई ने विश्वविद्यालय प्रशासन से हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

वहीं, एबीवीपी ने घटना पर कहा, महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में बड़ी संख्या में छात्रों ने उपवास रखा। अपनी धार्मिक आस्था का सम्मान करते हुए इन छात्रों ने मेस प्रशासन से पहले ही अनुरोध किया था कि इस खास दिन पर उनके लिए सात्विक भोजन की व्यवस्था की जाए। मेस प्रभारी से इस मामले पर चर्चा करने के बाद करीब 110 छात्रों ने उपवास के भोजन की मांग की। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए विश्वविद्यालय ने दो मेस हॉल में से एक में सात्विक भोजन की व्यवस्था की, ताकि छात्र अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भोजन कर सकें। वामपंथी गुंडों ने जानबूझकर धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास किया। जब मेस में सात्विक भोजन परोसा जा रहा था, तो एसएफआई से जुड़े लोगों ने जबरन नॉनवेज भोजन परोसने का प्रयास किया।

दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कहा कि विश्वविद्यालय में स्थिति शांतिपूर्ण है और उसे कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है। इसमें यह भी कहा गया कि विश्वविद्यालय द्वारा आंतरिक जांच की जा रही है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक साउथ एशियन यूनिवर्सिटी से दोपहर करीब 3.45 बजे मैदानगढ़ी पुलिस स्टेशन में झगड़े की पीसीआर कॉल मिली। जब हम मौके पर पहुंचे तो मेस में दो गुटों के बीच झगड़ा हो रहा था।

खड़गे ने एससी-एसटी-ओबीसी और अल्पसंख्यकों की छात्रवृत्ति में 'गिरावट' का लगाया आरोप, क्या कहते हैं आंकड़े

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया है कि केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के युवाओं की छात्रवृत्तियां छीन ली हैं। साथ ही खड़गे ने दावा किया कि बीजेपी का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ कमजोर वर्गों की आकांक्षाओं का मजाक उड़ाता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में ये दावा का।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए पोस्ट में लिखा कि 'देश के एससी, एसटी और ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं की छात्रवृत्तियों को आपकी सरकार ने हथियाने का काम किया है। सरकारी आंकड़े बातते हैं कि सभी वजीफों में मोदी सरकार ने लाभार्थियों की भारी कटौती तो की है, साथ ही साल-दर-साल फंड में औसतन 25 फीसदी कम खर्च किया है।'

लाभार्थियों की संख्या में चार साल में 94% की गिरावट

खरगे के मुताबिक, अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाले प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या में पिछले चार बरस के दौरान 94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लाभार्थियों की संख्या पिछले चार बरस ही में 83 फीसदी तक घटी है। इसके अलावा, मेरिट कम मीन्स छात्रवृत्ति योजना, जो अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाती है, उसके लाभार्थियों की संख्या में चार बरस के भीतर 51 फीसदी तक की कमी आई है।

अब अगर सरकार के हवाले ही से सामने आए कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि जरूर स्कॉलरशिप के कई स्कीम्स में लाभार्थियों और बजट का आवंटन घटा हैः-

प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप एक साल में 40 फीसदी घटा

संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आवंटित बजट 1,378 करोड़ रुपये थी। जो 2024-25 में घटकर 326 करोड़ रुपये के करीब रह गई। वहीं, इस वित्त वर्ष के लिए सरकार ने महज 198 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए किया है। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस बार का आवंटन 40 फीसदी तक घट गया है। अगर लाभार्थियों की बात की जाए तो 2021-22 में सरकार ने जहां 28 लाख 90 हजार छात्रों को ये स्कॉलरशिप दिया। तो 2023-24 में सरकार महज 4 लाख 91 हजार छात्रों को ही वजीफा दे सकी। लाभार्थियों और फंड में इतनी बड़ी गिरावट की वजह सरकार का क्लास 1 से लेकर 8 तक के छात्रों के लिए इस स्कीम को बंद करना रहा। अब ये स्कीम केवल नौवीं और दसवीं के छात्रों को दी जाती है। सरकार का कहना है कि 1 से लेकर 8 तक के छात्रों को पहले ही सरकार शिक्षा के अधिकार कानून के जरिये मदद कर रही है।

पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप का आवंटन 64 फीसदी घटा

वहीं, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में सरकार ने 2023-24 में इस मद में 1145 करोड़ रुपये का आवंटन किया था मगर सरकार 1065 करोड़ ही खर्च कर पाई। वर्ष 2024-25 में सरकार ने ज्यादा खर्च किया, और यह बढ़कर 1,145 करोड़ रुपये तक पहुंचा। मगर इस 2025-26 के बजट में इस योजना के लिए बजट का आवंटन पिछले साल के मुकाबले 64 फीसदी तक घट चुका है। सरकार ने इस साल के बजट में महज 414 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। ये पिछले साल के मुकाबले कम से कम सात सौ करोड़ रुपये कम है। इस तरह ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि फंड का आवंटन कम होने से लाभार्थियों की संख्या पर भी इसका असर पड़ेगा।

मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप 78 फीसदी तक घटा

ये वजीफा अल्पसंख्यक समुदाय के उन छात्रों को दिया जाता है जो ग्रैजुएशन या फिर पोस्ट ग्रैजुएशन प्रोफेशनल औऱ टेक्निकल कोर्स में करना चाहते हैं। 2020-21 में इस मद में जहां सरकार का बजट आवंटन 400 करोड़ था, वह अगले अकादमिक वर्ष में 325 करोड़ रुपये रह गया। वहीं ये आवंटन 2023-24 में 44 करोड़ जबकि 2024-25 में आवंटन घटकर महज 34 करोड़ रुपये के करीब रह गया। अगर इस बरस के आवंटन की बात की जाए तो यह पिछले बरस के मुकाबले 78 फीसदी तक घट चुका है। इस साल सरकार ने बजट में इस वजीफे के लिए महज 7 करोड़ रुपये के करीब का आवंटन किया है। पोस्ट-मैट्रिक वजीफे ही की तरह मेरिट कम मीन्स स्कॉलरशिप के फंड में आवंटन घटने से इसके लाभार्थियों की संख्या पर भी असर पड़ेगा।

भारत ने पाकिस्तान को बताया “असफल राष्ट्र”, संयुक्त राष्ट्र में पड़ोसी देश को धो डाला

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भारत ने अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की एक बार फिर जमकर क्लास लगाई है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत पर आए दिन आरोप लगाता रहा है। इस पर भारत ने भी वैश्विक मंच से पाकिस्तान को “असफल राष्ट्र” करार दिया। भारत ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की बैठक में पाकिस्तान को जमकर फटकार लगाई है।

पाकिस्तान पर झूठ फैलाने का आरोप

यूएन में भारत के स्थायी मिशन के अधिकारी क्षितिज त्यागी ने जेनेवा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के 58वें सत्र की सातवीं बैठक में अपनी बात रखी। भारत ने पाकिस्तान पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया और उसे एक असफल राष्ट्र बताया जो केवल अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है। क्षितिज त्यागी ने कहा कि पाकिस्तान हमेशा कश्मीर और भारत के बारे में झूठ फैलाता आ रहा है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पाकिस्तान के नेता अपने सैन्य-आतंकवादी परिसर से झूठ फैलाना जारी रखते हैं।

पाकिस्तान को अपने हालात देखने की सलाह

पाकिस्तान ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) को अपना मुखपत्र बताकर संगठन का मजाक उड़ा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस संगठन का समय एक असफल राज्य द्वारा बर्बाद किया जा रहा है। पाकिस्तान पहले अपने यहां के हालात देखे क्षितिज त्यागी ने जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की तरफ से लगाए गए आरोपों पर कहा- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश हमेशा भारत का अभिन्न हिस्सा थे, हैं और रहेंगे। पाकिस्तान को भारत के बजाय अपने देश के हालात बदलना चाहिए।

पाखंड की बू आती है-भारत

त्यागी ने ये भी कहा, इनकी (पाकिस्तान) बयानबाजी में पाखंड की बू आती है। इसकी हरकतें अमानवीय हैं और ये शासन व्यवस्था चलाने में अक्षमता हैं। भारत लोकतंत्र, प्रगति और अपने लोगों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग

भारत के रुख की पुष्टि करते हुए त्यागी ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख के साथ हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहे हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उन्होंने इन क्षेत्रों में हुए कामों की ओर ध्यान भी दिया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर में अभूतपूर्व राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति हुई है। ये सफलताएं दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जख्मी क्षेत्र में सरकार की ओर से सामान्य स्थिति लाने की प्रतिबद्धता पर लोगों के भरोसे का प्रमाण हैं। पाकिस्तान को भारत के प्रति अपनी नफरत से आगे बढ़ना चाहिए और उन मुद्दों का समाधान करना चाहिए। भारत अपने लोगों के लिए लोकतंत्र, प्रगति और सम्मान सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। ये ऐसे मूल्य हैं, जिनसे पाकिस्तान को सीखना चाहिए।

भारत में मानवाधिकारों के हनन का आरोप

इससे पहले यूएनएचआरसी को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के कानून, न्याय और मानवाधिकार मंत्री आजम नजीर तरार ने दावा किया कि कश्मीर में लोगों के अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है।

भाषा विवाद के बाद स्टालिन परिसीमन को लेकर परेशान, लोकसभा में सीटें घटने के दावे पर अमित शाह का जवाब
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के इस दावे को खारिज कर दिया कि अगर जनसंख्या जनगणना के आधार पर परिसीमन किया गया तो राज्य में आठ लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी।केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कोयंबतूर समेत तीन जिलों में भाजपा कार्यालयों का उद्घाटन करते हुए यह भरोसा दिया। बता दें कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 2026 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में हिंदी विरोध के साथ-साथ परिसीमन में सीटें कम होने की आशंका को बड़ा मुद्दा बनाने का संकेत दिया है। इसके लिए डीएमके ने पांच मार्च को सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्र की ओर से तमिलनाडु के साथ किसी भी तरह के अन्याय से इनकार किया और इस प्रकार के आरोपों को ध्यान भटकाने का प्रयास करार दिया। इसके साथ ही शाह ने मुख्यमंत्री स्टालिन पर परिसीमन को लेकर गलत सूचना अभियान फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि जब परिसीमन यथानुपात आधार पर किया जाएगा तो तमिलनाडु सहित किसी भी दक्षिणी राज्य में संसदीय प्रतिनिधित्व में कमी नहीं होगी।

शाह ने इस मुद्दे पर तमिलनाडु सरकार द्वारा बुलाई गई 5 मार्च की सर्वदलीय बैठक के बारे में कहा कि वे परिसीमन पर एक बैठक करने जा रहे हैं और कह रहे हैं कि हम दक्षिण के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगे। अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन के बाद कोई भी दक्षिणी राज्य एक सीट भी नहीं गंवाएगा। बीजेपी ने स्टालिन के इस कदम को नकली डर बताया है।

स्टालिन ने आशंका जताई थी कि यह परिसीमन दक्षिणी राज्यों के हित में नहीं होगा, जिन्होंने जनसंख्या को नियंत्रित किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, परिसीमन के बाद तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 हो सकती हैं। स्टालिन ने परिसीमन को दक्षिणी राज्यों के सिर पर लटकती तलवार बताया है और अन्य दक्षिणी राज्यों से भी केंद्र के इस निर्णय के खिलाफ विरोध करने की अपील की है। एमके स्टालिन ने कहा है कि तमिलनाडु की सीटों की संख्या कम करना तमिलनाडु के अधिकारों के हनन के समान है और यह न केवल राज्य बल्कि पूरे दक्षिण भारत को प्रभावित करता है। उन्होंने दक्षिण के विभिन्न राजनीतिक दलों को इस कदम का विरोध करने के लिए पत्र भी लिखा है। दक्षिण के बीआरएस और कांग्रेस ने भी इस कदम का विरोध किया है।

लोकसभा में फिलहाल 543 सीटें हैं। माना जा रहा है कि यदि सीटों का परिसीमन हुआ तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और राजस्थान में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। वहीं दक्षिण भारत के कुछ राज्य केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक को कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती है। जनसंख्या के अनुपात में सीटें बंटी तो केरल में लोकसभा सीटें 20 से घटकर 19 हो जाएगी। यूपी में 14 सीटों का इजाफा हो सकता है। बिहार और एमपी में भी सीटें बढ़ेंगी। कुल कितनी सीटें बढ़ेंगी या घटेंगी यह परिसीमन के बाद ही तय होगा। वहीं सवालों के बीच सरकार की ओर से कहा गया है कि सीटें कम नहीं होंगी
क्या रेत पर हो सकता है अगला महाकुंभ? सोनम वांगचुक ने पीएम मोदी को क्यों ऐसा लिखा
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जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने हिमालय के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिंता जताई है।


उन्होंने अपने पत्र में इन ग्लेशियरों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि ये भारत की जीवनदायिनी गंगा और यमुना जैसी नदियों का स्रोत हैं। यही नहीं, वांगचुक ने चेताया है कि कहीं 144 साल के बाद अगला महाकुंभ रेत पर आयोजित करना ना पड़ेगा। वांगचुक, अमेरिका की अपनी यात्रा से लौटे हैं।


वे हिमालय के ग्लेशियरों के संरक्षण पर काम कर रहे हैं, खारदुंग ला के एक ग्लेशियर से बर्फ का एक टुकड़ा लेकर लद्दाख से दिल्ली और फिर अमेरिका पहुंचे। बर्फ को इन्सुलेशन के लिए लद्दाख के प्रतिष्ठित पश्मीना ऊन में लपेटकर एक कंटेनर में रखा गया था।


बर्फ को दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ले जाया गया, उसके बाद वह अमेरिका के लिए रवाना हुए, जहां से यह बर्फ जलवायु कार्यकर्ता के साथ बोस्टन में हार्वर्ड कैनेडी स्कूल, एमआईटी और न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय तक गई, और फिर 21 फरवरी को न्यूयॉर्क में हडसन नदी और ईस्ट नदी के संगम पर इसे विसर्जित कर दिया गया।


अमेरिका की अपनी यात्रा से लौटे वांगचुक ने अपने लेटर में देश की नदियों की मौजूदा सूरत-ए-हाल का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि अगर वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले सालों में नदियां पूरी तरह सूख सकती हैं। वांगचुक ने प्रधानमंत्री मोदी से हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए आयोग गठित करने का भी आग्रह किया है।



बता दें कि 2025 को ग्लेशियरों के प्रोटेक्टशन का इंटरनेशनल ईयर घोषित किया गया है। ऐसे में पत्र में वांगचुक ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को ग्लेशियर ईयर में अहम भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाद हिमालय में पृथ्वी पर बर्फ और हिम का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, जिसके कारण इसे ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने कहा, भारत को ग्लेशियर प्रोटेक्शन में अहम भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि हमारे पास हिमालय है और गंगा एवं यमुना जैसी हमारी पवित्र नदियां यहीं से निकलती हैं।



उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियां मौसमी हो सकती हैं। उन्होंने कहा, जैसा कि हम सभी जानते हैं, हिमालय के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं, और अगर यह और वनों की कटाई वर्तमान दर से जारी रही, तो हमारी पवित्र नदियां मौसमी हो सकती हैं। इसका यह भी मतलब हो सकता है कि अगला महाकुंभ पवित्र नदी के रेतीले अवशेषों पर ही संभव हो।


उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि आम लोगों में जमीनी स्तर पर बहुत कम जागरूकता है। वांगचुक ने कहा, इसलिए मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि आपके नेतृत्व में भारत हिमालय में सबसे अधिक ग्लेशियर वाले देश के रूप में अग्रणी बने।
केन्द्र सरकार ने दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
#no_lifetime_ban_on_contesting_elections_central_govt_affidavit_in_sc


सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए बैन लगना चाहिए। इस मामले पर अब केंद्र सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया है। केन्द्र सरकार ने दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग का विरोध किया है। केंद्र ने कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा।

*अयोग्यता तय करना संसद के अधिकार क्षेत्र में- केंद्र*
केंद्र सरकार ने दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सजा को कठोर कहा है। साथ ही अनुरोध करने वाली एक याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह की अयोग्यता तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी उच्चतम न्यायालय की शक्तियों से पूरी तरह से परे है।

*6 साल की अयोग्यता ही काफी-केंद्र*
केंद्र ने कहा,वर्तमान में 6 वर्षों की अयोग्यता अवधि से बढ़कर आजीवन प्रतिबंध लगाना अनुचित कठोरता होगी और यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। केंद्र ने कहा कि न्यायपालिका संसद को किसी कानून में संशोधन करने या उसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। केंद्र ने मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि कोर्ट संसद को कानून बनाने या संशोधन का निर्देश नहीं दे सकती।

*क्या है मामला?*
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं को 6 साल के लिए अयोग्यता को अपर्याप्त बताते हुए राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए दोषी विधायकों और सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनिम, 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
मौजूदा कानून के तहत आपराधिक मामलों में 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजा की अवधि पूरी होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने पर ही रोक है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और अलग-अलग अदालतों में उनके खिलाफ लंबित मुकदमों को तेजी से निपटाने की मांग की है।
तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
#tamil_nadu_hindi_controversy



राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
तमिलनाडु नई शिक्षा नीति के खिलाफ क्यों? सीएम स्टालिन याद कर रहे 6 दशक पुराना है विवाद
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर तमिलनाडु सरकार के साथ केंद्र का राजनीतिक गतिरोध बढ़ता जा रहा है।केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि वह स्कूल स्तर पर तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सीएम स्टालिन का आरोप है कि हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।तमिलनाडु तीन भाषा नीति का विरोध कर रहा है और अब भी दो भाषा नीति पर अड़ा है। लेकिन वह मातृभाषा तमिल की रक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे। उनका राज्य एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार है।

सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेक बलिदान दिए हैं। पार्टी का हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र यूनिट ने हिंदी विरोधी सम्मेलन में कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा कि मातृभाषा की रक्षा करना पार्टी के सदस्यों के खून में है। यह भावना उनके जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।

*स्टालिन ने 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को किया याद*
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन जिस ने तमिल की रक्षा के लिए किस बलिदान की बात कर रहे हैं। स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार’ सहित अलग-अलग नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था पर द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था।तब विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया था और इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी।

*क्या है पूरा विवाद*
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बीच बीते कई दिनों से जुबानी जंग चल रही है। बीते दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से स्टालिन के इनकार पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने नाराजगी जाहिर की थी। वहीं स्टालिन, केंद्र सरकार पर जबरन राज्य में इसे लागू करने का आरोप लगा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा था कि जब तक तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन भाषा फार्मूले को स्वीकार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से उसे फंड नहीं दिया जाएगा।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक लचीले त्रि-भाषा फार्मूले की वकालत करता है। इसमें बहुभाषी शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जबकि राज्यों को ढांचे के भीतर अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने लगातार इस नीति का विरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि यह राज्य के लंबे समय से चले आ रहे दो-भाषा फार्मूले को कमजोर करता है। साथ ही भाषाई पहचान के लिए संभावित खतरा पैदा करता है।

राज्य की आपत्तियों के बावजूद, केंद्र सरकार पूरे देश में नई शिक्षा नीति को लागू करने पर अड़ी हुई है। केंद्र का कहना है कि नीति को शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और क्षेत्रीय भाषाई प्राथमिकताओं का उल्लंघन किए बिना बहुभाषी दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
मई में रूस जा सकते हैं पीएम मोदी, विक्ट्री डे परेड के बन सकते हैं मुख्य अतिथि
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर रूस की यात्रा पर जाने वाले हैं। रूसी मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के अनुसार, पीएम मोदी मॉस्को के रेड स्कवायर पर आयोजित होने वाली 80वीं ग्रेट पैट्रियोटिक वॉर (महान देशभक्ति युद्ध) परेड में बतौर अतिथि शामिल होंगे। पीएम मोदी को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 9 मई को विक्ट्री डे परेड पर आमंत्रित किया है। इस परेड में भारतीय सेना का एक दल भी शामिल हो सकता है।

पीएम मोदी के अलावा कई अन्य देशों के राष्ट्र प्रमुख भी ग्रेट पैट्रियोटिक वॉर परेड में बतौर अतिथि शामिल हो सकते हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावारोव ने कहा है कि कई आमंत्रित देशों ने 9 मई को होने वाली परेड में आने की पुष्टि कर दी है। 9 मई का दिन रूस के लिए ऐतिहासिक दिन है। यही वह दिन है, जब द्वितीय विश्व में उसकी जीत हुई थी। यह सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जीत की वर्षगांठ है। 1945 में दूसरे विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी पर दर्ज जीत के उपलक्ष्य में रूस हर साल 09 मई को अपना वार्षिक विजय दिवस यानी विक्‍ट्री डेट मनाता है।

*एक साल के भीतर तीसरा रूस दौरा*
अगर पीएम मोदी रूस जाते हैं तो यह 2025 की उनकी पहली आधिकारिक रूस यात्रा होगी। हालांकि, एक साल के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये तीसरी यात्रा होगी। इससे पहले 2024 में दो बार रूस की यात्रा पर गए थे। जुलाई में पीएम मोदी का द्विपक्षीय दौरा था, जबकि अक्टूबर में ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी रूस गए थे। वहीं, पर कजान शहर में उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई थी।

*ट्रंप से मिलने के बाद पुतिन से मिलेंगे मोदी*
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 फरवरी को अपने अमेरिकी दौरे के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी और भारत-अमेरिकी संबंधों के अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने पर भी दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई थी. ट्रंप और पुतिन की संभावित मुलाकात को लेकर भी तैयारियां चल रही है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के विक्ट्री डे परेड में शामिल होने की खबर से वैश्विक राजनीति में काफी हलचल देखने को मिल रही है. दिलचस्प बात यह है कि पहले राष्ट्रपति ट्रंप के भी 9 मई के परेड में शामिल होने की चर्चा थी लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने इन अटकलों को खारिज कर दिया

यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और रूस के बीच बातचीत चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी पहले भी रूस और यूक्रेन दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मिलकर शांति की अपील कर चुके हैं। यह देखना होगा कि इस यात्रा के दौरान यूक्रेन युद्ध पर क्या चर्चा होती है।
ट्रंप बेच रहे “नागरिकता”, अमेरिका में बसने का दिया शानदार ऑफर, 50 लाख डॉलर में मिलेगी 'गोल्ड कार्ड'
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अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले ही आदेश के तहत देश में अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। ट्रंप ने इस काम के लिए अमेरिकी सेना को लगाया और सैन्य विमानों का इस्तेमाल किया गया। पड़ोसी मेक्सिको से लेकर, अर्जेंटीना, भारत समेत कई देशों के प्रवासियों को जहाजों में भरकर भेजा गया। ये वो लोग हैं, जिन्होंने अमेरिका में रहने का सपना देखा। वहीं दूसरी तरफ ट्रंप ने अमेरिका मे बसने का सपना देखने वालों के लिए बड़ा ऑफर पेश किया है। ये ऑफर अमीरों के लिए है। जी हां, अपर आपके पास पैसे हैं तो आप आसानी से अमेरिका की नागरिकता खरीद सकते हैं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को अमीर आप्रवासियों के लिए गोल्ड कार्ड पेश किया है, जिसे 50 लाख डॉलर में खरीदा जा सकता है। भारतीय करेंसी में करीब 44 करोड़ रुपए अमेरिका में निवेश करवाएंगे। ट्रंप ने इसे अमेरिकी नागरिकता का रास्ता बताया। ट्रंप ने इसमें शामिल होने वाले लोगों के बारे में बताते हुए कहा, वे अमीर होंगे और सफल होंगे। वे बहुत सारा पैसा खर्च करेंगे और बहुत सारे टैक्स का भुगतान करेंगे और बहुत से लोगों को रोजगार देंगे। हमें लगता है कि यह बहुत सफल होने वाला है।

*वीजा कार्ड ईबी-5 की जगह लेगा 'ट्रंप गोल्ड कार्ड'*
ट्रंप ने गोल्ड कार्ड को मौजूदा आप्रवासी निवेशक वीजा कार्यक्रम ईबी-5 के विकल्प के लिए रूप में प्रस्तावित किया है और कहा कि भविष्य में 10 लाख गोल्ड कार्ड बेचे जाएंगे।ट्रंप ने कहा कि वे ईबी-5 आप्रवासी निवेशक वीजा कार्यक्रम को गोल्ड कार्ड के साथ बदल देंगे जो बड़ी रकम वाले विदेशी निवेशकों को अमेरिकी नौकरियों का सृजन या संरक्षण करने के लिए स्थायी निवासी बनने की अनुमति देता है। उन्होंने दावा किया कि इस पहल से राष्ट्रीय कर्ज का भुगतान जल्द हो सकता है।

*ईबी-5 वीजा क्या है?*
• अमेरिकी नागरिकता पाने के लिए फिलहाल EB-5 वीजा आसान विकल्प है
• इसके लिए 1 मिलियन डॉलर यानी कि 8.75 करोड़ रुपए चुकाने होते हैं
• इस वीजा को लेकर अमेरिका का स्थायी नागरिक बना जा सकता है
• इससे अमेरिकी बिजनेस में निवेश करने वाले विदेशियों को "ग्रीन कार्ड" मिलता है है
• EB-5 वीजा की शुरुआत अमेरिका ने साल 1990 में की थी
• इस वीजा प्रोग्राम का मकसद विदेशी निवेशकों को प्रोत्साहित करना था

*ईबी-5 को क्यों बदल रहे ट्रंप?*
ईबी-5 वीजा कार्यक्रम, विदेशियों को ग्रीन कार्ड प्राप्त करने के लिए अमेरिकी प्रोजेक्ट में कम से कम 10.5 लाख डॉलर या आर्थिक रूप से संकटग्रस्त क्षेत्रों में 800,000 डॉलर निवेश करने अनुमति देता है। हालांकि, इस कार्यक्रम को दुरुपयोग के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रम्प ने न्यूनतम निवेश को बढ़ाकर 18 लाख डॉलर करने का प्रयास किया, लेकिन 2021 में एक न्यायाधीश ने इस कदम को पलट दिया। बाइडन प्रशासन ने बाद में 2022 में कार्यक्रम को नवीनीकृत करते समय वर्तमान निवेश स्तर 10,50,000/800,000 डॉलर निर्धारित किया।