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शांति का मतलब यूक्रेन का आत्मसमर्पण नहीं होना चाहिए', फ्रांसीसी राष्‍ट्रपति ने ट्रंप की बोलती बंद की

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को व्हाइट हाउस में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का स्वागत किया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने रूस-यूक्रेन वॉर में शांति वार्ता को लेकर मुलाकात की है। इसके बाद दोनों देशों के राष्ट्रपति ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, लेकिन इस दौरान दोनों के बीच मतभेद साफ दिखाई दिए। इस दौरान मैक्रों ने कहा, बिना किसी गारंटी के युद्धविराम नहीं होना चाहिए। यह शांति यूक्रेन की संप्रभुता को बनाए रखने वाली होनी चाहिए और उसे अन्य देशों से स्वतंत्र रूप से बातचीत करने की अनुमति देनी चाहिए।

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सोमवार को जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने फ्रांसीसी समकक्ष इमैनुएल मैक्रों से वॉइट हाउस में मुलाकात की, तो इस पर पूरी दुनिया की नजर थी। इस दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति ने ट्रंप की बोलती बंद कर दी। दरअसल, वॉइट हाउस में मुलाकात के बाद जब दोनों नेता प्रेस के सामने थे, उसी दौरान ट्रंप ने एक बार फिर से यूरोपीय देशों के पैसा उधार देने का जिक्र किया तो मैक्रों ने ट्रंप का हाथ पकड़कर उन्हें रोका और जोर देकर खंडन किया। मैक्रों ने कहा, वास्तव में अगर स्पष्ट रूप से कहें तो हमने भुगतान किया है। हमने कुल प्रयास का 60% भुगतान किया है और यह अनुदान के माध्यम से था, कर्ज के रूप में नहीं। हमने असलियत में धन दिया।

मैक्रों ने जोर देकर कहा कि यूरोप ने रूस की लगभग 230 अरब डॉलर की संपत्ति की फ्रीज कर दिया। इसके साथ ही स्पष्ट किया कि इसका उपयोग क्षतिपूर्ति के रूप में नहीं किया जा रहा है क्योंकि ये संपत्ति रूस की है और अभी फ्रीज है। उन्होंने यह भी कहा कि आखिर में यह संपत्तियां रूस के साथ समझौते का हिस्सा हो सकती हैं।

वहीं, राष्ट्रपति ट्रंप ने उम्मीद जताई कि यूक्रेन में रूस का युद्ध खत्म होने के करीब है। लेकिन फ्रांस के नेता ने आगाह किया कि यह महत्वपूर्ण है कि मॉस्को के साथ कोई भी संभावित समझौता यूक्रेन के लिए आत्मसमर्पण करने जैसा न हो। मैक्रों ने कहा, शांति का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि यूक्रेन को बिना सुरक्षा गारंटी के युद्ध विराम के लिए मजबूर किया जाए। शांति का अर्थ यूक्रेन की संप्रभुता को बनाए रखना और उसे अन्य देशों के साथ बातचीत करने का मौका देना होना चाहिए।

मोदी सरकार फासिस्ट नहीं”, सीपीएम के इस बदले तेवर का कांग्रेस-सीपीआई में विरोध तेज

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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को फासिस्ट यानी फासीवादी या नियो फासिस्ट नहीं मानती। दरअसल, सीपीएम) की अप्रैल महीने में तमिलनाडु के मदुरै में 24वीं कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए तैयार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं कहा गया है। इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। अब सीपीएम के इस रुख ने केरल की सियासत में तूफान मचा दिया है। इसको लेकर कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे बीजेपी के प्रति नरम रुख अपनाने की रणनीति बताया है।

इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। सीपीएम ने अपने मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव में कहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक और सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है जो 'नियो फासिस्ट विशेषताओं' को दर्शाता है। लेकिन वह मोदी सरकार को सीधे तौर पर फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं मानती। प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि मोदी सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट क्यों नहीं कहा गया है, क्योंकि इसके कुछ कदम फासिस्ट विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं। सीपीएम के इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह दिखाना था कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से फासिस्ट नहीं हैं, बल्कि उनमें कुछ तत्त्व ऐसे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं।

सीपीएम की बीजेपी के वोटों को हासिल करने की कोशिश-कांग्रेस

मोदी सरकार को लेकर सीपीएम के राजनीतिक प्रस्ताव में इस टिप्पणी को लेकर कांग्रेस ने तल्ख टिप्पणी की है। केरल में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने आरोप लगाया कि सीपीएम बीजेपी के प्रति नरम रवैया अपना रही है और इस प्रस्ताव के जरिए वह केरल में बीजेपी समर्थकों के वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में सीपीएम ने बीजेपी के वोटों से जीत हासिल की थी और अब 2026 के चुनावों के लिए वही रणनीति अपनाई जा रही है।

सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे-सीपीआई

वहीं, सीपीएम की गठबंधन सहयोगी सीपीआई ने भी अपने स्टैंड में सुधार की मांग कर दी है। सीपीआई ने कहा है कि सीपीएम की ओर से मोदी सरकार को फासीवादी बचाने से बचने की जल्दबाजी नहीं समझ आ रही है। पार्टी की केरल इकाई के सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा कि सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे है। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार धर्म और आस्था का राजनीतिक उपयोग कर रही है। जो कि फासिस्ट विचारधारा की पहचान होती है। उनका आरोप था कि सीपीएम जानबूझकर मोदी सरकार को फासीवादी कहने से बच रही है।

सीपीएम के बदले रुख की वजह

वहीं, सीपीएम के इस अचानक हुए “हृदय परिवर्तन” से सवाल उठना लाजमी है। जानकार इसे पिनराई विजयन की चुनावी रणनीति मान रहे हैं। केरल में बीजेपी जिस तेजी से पैर पसार रही है, वह एलडीएफ को टेंशन देने के लिए काफी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने केरल में अपना खाता खोल दिया है। अगर बीजेपी के वोटर बढ़े तो सर्वाधिक नुकसान वाम दलों को ही होगा। 10 साल की एंटी इम्कबेंसी से निपटने के लिए जरूरी है कि बीजेपी और कांग्रेस की ओर झुक रहे वोटर लेफ्ट के सपोर्ट में वोटिंग करें। एक्सपर्ट्स का कहना है कि केरल में बीजेपी के प्रति सहानुभूति रखने वाले वोटर्स का एक धड़ा है जो कांग्रेस को नहीं पसंद करता है। सीपीएम की नजर उस पर भी है।

चिढ़ जाएगी कांग्रेसः मतभेद के बीच शशि थरूर ने मोदी के मंत्री पीयूष गोयल के साथ शेयर की सेल्फी

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इन दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर की पार्टी से नाराजगी की खबर हैं। कांग्रेस से बढ़ती नाराजगी के बीच शशि थरूर ने कुछ ऐसा कर दिया है, जिससे पार्टी का “पारा” हाई हो सकता है। दरअसल थरूर ने केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता पीयूष गोयल के साथ एक फोटो पोस्ट की है। ये तस्वीर भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौते पर चर्चा के बाद की है।इस सेल्फी में वह केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटिश व्यापार राज्य सचिव जोनाथन रेनॉल्ड्स के साथ नजर आ रहे हैं।

शशि थरूर ने मंगलवार को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन के व्यापार एवं व्यापार राज्य मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स के साथ एक सेल्फी पोस्ट की और कहा कि लंबे समय से रुकी हुई भारत-ब्रिटेन एफटीए वार्ता का पुनरुद्धार स्वागत योग्य है। सोमवार को एक कार्यक्रम में अपनी मुलाकात के बारे में उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में लिखा- 'ब्रिटेन के व्यापार एवं व्यापार राज्य मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स के साथ उनके भारतीय समकक्ष वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में बातचीत करके अच्छा लगा।' थरूर ने एक्स पर कहा, टलंबे समय से रुकी हुई एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) वार्ता फिर से शुरू हो गई है, जो बहुत स्वागत योग्य है।'

शशि थरूर ने एक्स पर ये पोस्ट केरल सरकार की नीतियों की तारीफ करने के बाद उनके और कांग्रेस पार्टी के संबंधों में आई खटास के बाद लिखी है। इसके बाद एक बार फिर से पार्टी में उनके फ्यूचर को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

बता दें कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर की कांग्रेस पार्टी से नाराजगी देखने को मिल रही है। इसे लेकर वह हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिले थे और नाराजगी भी जताई थी। पार्टी में हाशिए पर धकेले जाने को लेकर वह नाराज हैं। उन्होंने कांग्रेस के सामने ये भी साफ कर दिया था कि पार्टी को ये न लगे कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

बता दें कि शशि थरूर ने इससे पहले केरल की पिनारई विजयन सरकार की तारीफ की थी। इसके बाद थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे की भी तारीफ की थी।

सज्जन कुमार को उम्रकैद, 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में आया कोर्ट का फैसला

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1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में सज्जन कुमार के सजा का ऐलान हो गया है। स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। सज्जन कुमार पहले से ही सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से 2018 में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इससे पहले सज्जन को 12 फरवरी को दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने सज्जन के खिलाफ सजा पर अपना फैसला 25 फरवरी तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।

दिल्ली के राउज ऐवन्यू कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े सरस्वती विहार हिंसा के मामले में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। उनको इससे जुड़े केस में दूसरी बार उम्रकैद की सजा हुई है। इसके पहले वे दिल्ली कैंट मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। दिल्ली पुलिस और पीडितों ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर की कैटेगरी में मानते हुए सज्जन कुमार के खिलाफ फांसी की सजा की मांग की थी।

इंदिरा की हत्या के बाद भड़के थे सिख दंगे

प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे की गई थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या की थी। इसके बाद ही दिल्ली समेत देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे।

दंगों में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत के अनुमान

दरअसल, स्वर्ण मंदिर पर कब्जा करने वाले आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले को भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत मार गिराया था। भिंडरावाले के साथ उसके कई साथी भी मारे गए थे। इस अभियान को मंजूरी देने वाली पीएम इंदिरा गांधी ही थीं। सिखों के सबसे बड़े धर्मस्थल स्वर्ण मंदिर में हमले को लेकर कई लोगों की भावनाएं आहत हुई थीं। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे। माना जाता है कि इन दंगों में तीन हजार से पांच हजार लोगों की मौत हो गई थी। अकेले दिल्ली में करीब दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।

घटना के लगभग 41 साल बाद सजा

अब इस घटना के लगभग 41 साल बीतने के बाद सज्जन कुमार को एक और मामले में सजा हुई है। वहीं कांग्रेस के एक और नेता जगदीश टाइटलर पर भी केस चल रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस नेता एचकेएल भगत और कमलनाथ भी सिख दंगों से जुड़े मामलों में आरोपी रह चुके हैं।

बीजेपी को अगले महीने मिलेगा नया “मुखिया”, रेस में दक्षिण के ये 3 दिग्गज

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भारतीय जनता पार्टी को जल्द ही नया अध्यक्ष मिलने वाला है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। अगले महीने बीजेपी की कमान नए हाथों में जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि होली के बाद बीजेपी को नया अध्यक्ष मिल जाने की पूरी संभावना है। हरियाणा, महाराष्ट्र और फिर दिल्ली में ऐतिहासिक जीत के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर कयासबाजी तेज हो गई है। इसको लेकर कई नामों की चर्चा हो रही है। इस दौड़ में दक्षिण भारत के नेताओं के नाम भी की चर्चा है। आश्चर्यजनक तौर पर दक्षिण भारत से बीजेपी के नए राष्ट्रीय के आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसको लेकर तीन नेताओं के नामों की चर्चा हो रही है।

बीजेपी अध्यक्ष पद की दौड़ में दक्षिण से जिन 3 नामों की प्रमुखता से चर्चा चल रही है, कोयला एवं पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्‌डी, लोकसभा सदस्य और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी का नाम लिया जा रहा है। इनमें रेड्‌डी और बंडी संजय कुमार दोनों तेलंगाना से आते हैं जबकि जोशी कर्नाटक से ताल्लकु रखते हैं।

जी किशन रेड्डी

वर्तमान में केंद्रीय कोयला मंत्री जी किशन रेड्डी, तेलंगाना के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। वह पहले तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष भी रह चुके हैं और संगठन के कामकाज में उनकी सक्रियता रही है। रेड्डी का ओबीसी समुदाय से आना और संगठन पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें इस दौड़ में एक मजबूत उम्मीदवार बनाता है। तेलंगाना में हाल ही में हुए चुनावों में बीजेपी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिसमें रेड्डी की रणनीतिक भूमिका रही। वह 2019 से लगातार केंद्र में मंत्री हैं। रेड्डी पीएम मोदी के पुराने विश्वस्त हैं। मोदी 1994 में अमरीका गए थे तो रेड्डी भी साथ थे।

बंडी संजय कुमार

बंडी संजय कुमार इस समय केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं। तेलंगाना की करीमनगर सीट से 2019 से लगातार सांसद हैं, हालांकि वह बीच में विधायकी का चुनाव हार गए थे। वह केंद्रीय मंत्री के साथ राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। बंडी तेलंगाना अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने बतौर प्रदेश अध्यक्ष कई आक्रामक आंदोलन किए। जिससे बीजेपी को तेलंगाना में नई पहचान मिली। उनका जमीनी संगठन कौशल और कार्यकर्ताओं में लोकप्रियता उन्हें इस रेस में आगे रखती है। बंडी एबीवीपी के जरिये राजनीति में आए हैं। तमिलनाडु में भी पकड़ रखते हैं। हिंदुत्व और ओबीसी दोनों समीकरण साधते हैं।

प्रह्लाद जोशी

तीसरे बड़े दावेदार प्रह्लाद जोशी हैं जो इस समय केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री हैं। कर्नाटक से आने वाले जोशी ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और पार्टी में सीनियर नेता माने जाते हैं। वह बीजेपी के ऐसे चेहरे हैं, जो सरकार, संगठन और संसदीय मामले, तीनों के माहिर माने जाते हैं। कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद अब पार्टी राज्य में दोबारा वापसी की रणनीति बना रही है। जोशी का अनुभव और सरकार के साथ उनकी अच्छी तालमेल उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बनाता है।

पहले भी दक्षिण से बने हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष

बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए दक्षिण बारत के नेताओँ के नाम सामने आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बीजेपी पहली बार पार्टी की कमान के लिए दक्षिण का रूख कर रही है। पहले भी दक्षिण भारत से बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। अभी तक की लिस्ट को देखें तो बीजेपी ने कुल 11 राष्ट्रीय अध्यक्षों में तीन दक्षिण भारत से आने नेताओं को इस कुर्सी पर बैठाया है। इनमें जे कृष्णमूर्ति, बंगारू लक्ष्मण और वेंकैया नायडू का नाम शामिल है।

क्यों दक्षिण से अध्यक्ष की चर्चा?

बता दें कि बीजेपी ने उत्तर और पश्चिम भारत में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है लेकिन दक्षिण भारत अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में पार्टी को और विस्तार की जरूरत है। दक्षिण भारतीय राज्यों में बीजेपी का वोट शेयर अब भी कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों से पीछे है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व किसी दक्षिण भारतीय नेता को कमान सौंपकर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहता है। बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि 2026 में तमिलनाडु और केरल में चुनाव है। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति में भविष्य में संभावित विस्तार को ध्यान में रखकर फैसला ले सकती है। इसमें तमिलनाडु राज्य पर बीजेपी विशेष फोकस कर सकती है। ऐसे में दक्षिण के नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद मिल सकता है।

दिल्ली विधानसभा में CAG रिपोर्ट पेश, आबकारी नीति के कारण 2,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

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दिल्ली में नई सरकार का गठन होने के बाद पहला विधानसभा सत्र जारी है।दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कैग रिपोर्ट पेश की है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार तो आबकारी नीति पर आधारित CAG रिपोर्ट पेश की। विधानसभा में रिपोर्ट पेश करते हुए, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि यह रिपोर्ट पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुए वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करती है। इस रिपोर्ट में शराब घोटाले से जुड़ी कई अहम जानकारियां दी गई हैं।

सीएजी रिपोर्ट को लेकर स्पीकर विजेंद्र गुप्ता का निशाना

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यह जानकर आश्चर्य होता है कि CAG की रिपोर्ट 2017-18 के बाद विधानसभा में पेश नहीं की गई है। इस संबंध में तत्कालीन विपक्ष के नेता यानी मैंने और विपक्ष के पांच अन्य नेताओं ने राष्ट्रपति जी, विधानसभा अध्यक्ष जी से अनुरोध किया था कि इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया जाए। आप की सरकार कैग की रिपोर्ट को दबाया। कैग की रिपोर्ट एलजी के पास नहीं भेजी गई।

सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली की आबकारी नीति के तहत हुई कथित अनियमितताओं का विवरण दिया गया है और यह आरोप लगाया गया है कि शराब बिक्री से जुड़े कई मामलों में नियमों का उल्लंघन किया गया था। सीएम रेखा गुप्ता ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए इसे विधानसभा में पेश किया और सरकार की ओर से आगे की कार्रवाई करने का संकेत दिया।

लाइसेंस जारी करने में कई अनियमितताएं

कैग रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में शराब के लाइसेंस जारी करने में कई अनियमितताएं सामने आई हैं। रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि शराब के लाइसेंस केवल कुछ चुनिंदा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए दिए गए थे। इसके साथ ही, नई शराब नीति को एकाधिकार बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया था, जिसमें नियमों की अनदेखी की गई। फैसले और नीतियां तय करते समय कई जगहों पर नियमों का पालन नहीं किया गया और इसका फायदा केवल कुछ विशेष समूहों को हुआ।

आबकारी नीति के कारण 2,000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

कैग रिपोर्ट के अनुसार, 2021-2022 की आबकारी नीति के कारण दिल्ली सरकार को कुल मिलाकर 2,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है. इसकी वजह कमजोर नीति फ्रेमवर्क से लेकर अपर्याप्त क्रियान्वयन तक कई कारण हैं। इस रिपोर्ट में लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में उल्लंघनों को भी चिन्हित किया गया है. इसमें बताया गया है कि शराब नीति के गठन के लिए बदलाव सुझाने के लिए गठित एक विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने नजरअंदाज कर दिया था

एलजी के अभिभाषण के दौरान आप विधायकों का हंगामा, आतिशी समेत पूरा विपक्ष पूरे दिन के लिए निलंबित

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दिल्ली विधानसभा में दूसरे दिन की कार्यवाही जारी है। आज एलजी वीके सक्सेना का सदन में अभिभाषण जारी है। इस बीच विपक्ष के विधायक हंगामा कर रहे हैं। विपक्ष के हंगामे के बीच स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ऐक्शन मोड में नजर आए। उन्होंने एक-एक कर आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों को दिन भर के लिए निष्काषित कर दिया। इसमें विपक्ष की नेता आतिशी भी शामिल हैं।

दिल्ली विधानसभा की मंगलवार को हुई कार्यवाही हंगामे के साथ शुरू हुई। उपराज्यपाल के अभिभाषण के दौरान आम आदमी पार्टी के विधायकों ने विरोध जताते हुए हंगामा किया। इससे विधानसभा की कार्यवाही में रुकावट आई। इस दौरान आप के विधायक उपराज्यपाल के अभिभाषण के विरोध में अपनी आवाज उठा रहे थे। स्पीकर ने सभी हंगामा करने वाले विधायकों को पूरे दिन के लिए निलंबित कर दिया और उन्हें विधानसभा से बाहर कर दिया है। हंगामा इतना बढ़ गया कि विधानसभा में शांति बहाल रखने के लिए स्पीकर को सख्त कार्रवाई करनी पड़ी।

दिल्ली विधानसभा में उपराज्यपाल वीके सक्सेना अभिभाषण शुरू होते ही आम आदमी पार्टी के विधायकों ने मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कार्यालय से भीमराव आंबेडकर की फोटो हटाने का विरोध करना शुरू कर दिया। उपराज्यपाल ने अभिभाषण में भाजपा सरकार की भावी योजना का उल्लेख किया साथ ही आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार की नाकामियों की भी चर्चा की।

उपराज्यपाल ने अपने अभिभाषण में पांच प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की बात की, जिनमें यमुना सफाई, प्रदूषण नियंत्रण, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, अनधिकृत कॉलोनियों का नियमितकरण शामिल थे। इसके बाद बीजेपी विधायकों ने 'मोदी-मोदी' के नारे लगाए। वहीं, विधानसभा से बाहर आप के विधायकों ने विरोध प्रदर्शन किया। इन विधायकों ने हाथ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लेकर प्रदर्शन किया।

विधानसभा की कार्यवाही से निलंबित किए जाने पर नेता विपक्ष आतिशी ने कहा, बीजेपी ने बाबा साहेब आंबेडकर की फोटो की जगह नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगा दी है। मुख्यमंत्री कार्यालय, विधानसभा कार्यालय और दिल्ली सरकार के मंत्रियों के कार्यालयों में आंबेडकर की जगह मोदी तस्वीर लगाई गई है। मैं पूछना चाहती हूं की नरेंद्र मोदी आंबेडकर से बड़े हैं। आपको इतना अहंकार हो गया है। इसी के खिलााफ आप ने प्रदर्शन किया। हम सदन से लेकर सड़क तक प्रदर्शन करते रहेंगे। जब तक बाबा साहब की तस्वीर उसी जगह पर नहीं लग जाती।

तेलंगाना सुरंग हादसाःचौथे दिन भी जारी है 8 जिंदगियों को बचाने की जंग, हर घंटे बचाव कार्य होता जा रहा मुश्किल

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तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में श्रीसैलम लेफ्ट बैंक कैनाल एसएलबीसी सुरंग में फंसे आठ मजदूरों को बचाने की कोशिशें चौथे दिन भी जारी हैं, लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है। शनिवार सुबह जब खुदाई का काम चल रहा था तब अचानक सुरंग का एक हिस्सा गिर गया। इससे मजदूर उसमें फंस गए। सुरंग के अंदर फंसे आठ कर्मचारियों को बचाने का अभियान जारी है। इधर पानी का बढ़ता स्तर और बहती मिट्टी, बचाव कार्य को हर घंटे और खतरनाक बना रही है। अंधेरे, कीचड़ और भारी मलबे की वजह से बचाव कार्य बेहद मुश्किल हो गया है।

लगातार बढ़ रहे जलस्तर और कीचड़ के चलते बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है। भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ समेत कई एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हैं। लेकिन अभी तक मजदूरों तक पहुंचा नहीं जा सका है। खराब परिस्थितियों और जोखिम भरे माहौल के कारण चिंता और बढ़ गई है। ऐसे में आगे का रास्ता सुझाने के लिए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के विशेषज्ञों की मदद ली है।

एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि आठ लोग चौथे दिन भी फंसे हुए हैं, इसलिए जीएसआई और एनजीआरआई के विशेषज्ञों को बचाव प्रयासों में शामिल किया गया है। नागरकुरनूल के जिलाधिकारी बी. संतोष ने मंगलवार को कहा कि आगे कोई भी कदम उठाने से पहले सुरंग की स्थिरता को ध्यान में रखा गया है और पानी निकालने का काम जारी है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और राष्ट्रीय भौगोलिक अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों के अलावा एलएंडटी की ऑस्ट्रेलियाई इकाई को भी शामिल किया है। जिन्हें सुरंगों के बारे में व्यापक अनुभव है।

जिलाधिकारी ने बताया, अब तक हम उनसे (फंसे हुए लोगों से) संपर्क नहीं कर पाए हैं। हम भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और कुछ अन्य लोगों की सलाह ले रहे हैं। अभी हम पानी निकाल रहे हैं और आगे की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन आखिरी 40 या 50 मीटर तक हम नहीं पहुंच पाए हैं। अब तक हम जीएसआई और एनजीआरआई की सलाह ले रहे हैं। एलएंडटी के विशेषज्ञ भी यहां आ चुके हैं। जीएसआई और एनजीआरआई के अलावा, एलएंडटी से जुड़े एक आस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ को भी दुर्घटना स्थल पर एसएलबीसी सुरंग की स्थिरता का आकलन करने के लिए बुलाया गया है, जिसे सुरंग संबंधी कार्यों का व्यापक अनुभव है।

राज्य सरकार ने पहले सुरंग के ऊपर से, लगभग 400 मीटर ऊपर से, सीधी खुदाई करने का सोचा था। लेकिन अब इस योजना को छोड़ दिया गया है। अब प्रशासन ने सुरंग के अंदर से ही बचाव का काम जारी रखने का फैसला किया है। इससे बचाव दल के लोगों को कम खतरा होगा। पानी के बढ़ते स्तर और अचानक मिट्टी के जमा होने से सुरंग की मजबूती पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसलिए अधिकारियों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। सोमवार सुबह बचाव दल ने हालात का जायजा लेने के लिए सुरंग में प्रवेश किया। उन्होंने देखा कि मिट्टी का स्तर लगभग एक मीटर बढ़कर सात मीटर से ज़्यादा हो गया है। पानी का बहाव भी लगातार जारी है, जिससे पानी निकालने का काम मुश्किल हो रहा है

22 फरवरी को सुरंग की छत गिरने से आठ लोग सुरंग के अंदर फंस गए थे। 52 लोग सुरक्षित बाहर की ओर भागने में कामयाब रहे और उनकी जान बच गई। जो लोग सुरंग में फंसे हैं, उनकी में दो इंजीनियर और छह वर्कर्स हैं। पीड़ित परिवार तेलंगाना पहुंच चुके हैं।

तेलंगाना का यह हादसा कुछ मायनों में उत्तराखंड के सिल्क्यारा सुरंग हादसे से मिलता-जुलता है. 12 नवंबर 2023 को उत्तरकाशी में चारधाम प्रोजेक्ट के तहत बन रही सिल्क्यारा-बरकोट सुरंग का 60 मीटर का हिस्सा ढह गया था, जिसमें 41 मजदूर फंस गए थे. उस घटना में भी मलबा हटाना और मजदूरों तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन 17 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद सभी मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया था. उस बचाव अभियान में ऑगर मशीन, वर्टिकल ड्रिलिंग और रैट माइनिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल हुआ था

अमेरिका ने चार भारतीय कंपनियों पर लगाई पाबंदी, ईरान से “यारी” यूएस को गुजर रही नागवार

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अमेरिका ने पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उद्योग से जुड़ी कई कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। जिन कंपनियों पर अमेरिका की ओर से यह प्रतिबंध लगाए गए हैं, उन सभी का जुड़ाव ईरान के तेल उद्योग से है। प्रतिबंधित की गई इन कंपनियों में कुछ भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं। दरअसल, अमेरिका ईरान को कमजोर करने के लिए अपने प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा रहा है और ईरान के साथ कम करने वाली विदेश कंपनियों को भी निशाना बना रहा है।

अमेरिका ने ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उद्योग के साथ कम करने के लिए सोमवार को 16 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जिनमें से चार भारतीय कंपनियां भी हैं।अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने सोमवार को यह घोषणा की। बयान में कहा गया कि अमेरिकी विदेश विभाग ने ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उद्योग से जुड़ाव के लिए 16 कंपनियों को चिह्नित किया है और उनके खिलाफ प्रतिबंध लगाया जा रहा है। विदेश विभाग ने, वित्त विभाग के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफएसी) के साथ मिलकर, 22 व्यक्तियों पर भी प्रतिबंध लगाए तथा ईरान के तेल उद्योग से उनके जुड़ाव के कारण विभिन्न क्षेत्रों में उनके 13 जहाजों को प्रतिबंधित संपत्ति के रूप में चिह्नित किया है।

ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल ने एक बयान में कहा कि अमेरिका ने ऑस्टिनशिप मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड, बीएसएम मरीन एलएलपी, कॉसमॉस लाइन्स इंक और फ्लक्स मैरीटाइम एलएलपी पर प्रतिबंध लगाए हैं। इन कंपनियों पर ईरान के पेट्रोलियम उत्पादों के ट्रांसपोर्ट में मदद करने का आरोप है। इससे वे अमेरिकी कानून के तहत गंभीर प्रतिबंधों के दायरे में आ गई हैं।

अमेरिका की ओर से यह फैसला अवैध शिपिंग नेटवर्क को बाधित करने क लिए उठाया गया है। जो एशिया में खरीदारों को ईरानी तेल बेचने के लिए काम करता है। यह नेटवर्क सैकड़ों मिलियन डॉलर के कच्चे तेल के कई बैरल को अवैध शिपिंग के जरिए बेचने की कोशिश कर रहा था। अमेरिका का मानना है कि, तेल राजस्व के जरिए ईरान के आतंकवाद को आर्थिक रूप से मदद दे रहा है। उसके इस कदम से ईरान की आर्थिक गतिविधियों पर नकेल कसेगा और आतंकवाद वित्तपोषण को रोक पाएगा।

ट्रंप ने एक बार फिर पूरी दुनिया को चौंकायाःUN में रूस का दिया साथ, यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी मानने से इनकार

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद वैश्विक राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की बात कही जा रही थी। ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद इसकी झलकी देखी भी जा रही है। इस बार तो ट्रंप ने ऐसा कुछ किया है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र में रूस का साथ दिया है।

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रूस और यूक्रेन युद्ध को तीन साल हो गए हैं। यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वोट दिया। यानी, अब तक यूक्रेन का साथ निभा रहा अमेरिका अब रूस के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं अमेरिका ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया है।

दरअसल, तीन साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में तीन प्रस्ताव लाए गए थे। इन प्रस्तावों के खिलाफ में अमेरिका ने वोटिंग की है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर रूस के जैसे ही वोटिंग की है, जिसमें क्रेमलिन को आक्रामक नहीं बताया गया, और न ही यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार किया। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद की झलक

यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ कोई कदम उठाया है। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। यह डोनाल्ड ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है।

अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव किया पेश

इसके बाद, अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्त करने की अपील की गई थी, लेकिन रूस की आक्रामकता का जिक्र नहीं था। जब फ्रांस और यूरोपीय देशों ने इसमें संशोधन जोड़कर रूस को आक्रमणकारी घोषित कर दिया, तो अमेरिका ने मतदान से बचने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने अपने मूल प्रस्ताव पर मतदान कराया, लेकिन 15 सदस्यीय परिषद में 10 देशों ने समर्थन किया, जबकि 5 यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया। इससे यह साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप के बीच गहरा मतभेद उभर रहा है। अमेरिका अब रूस को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

भारत का मतदान से परहेज

93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया।