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भारत पर लगे परमाणु प्रतिबंध हटाएगा अमेरिका, 26 साल बाद क्यों पड़ा ढीला?

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बाइडेन सरकार के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भारत दौरे पर हैं। इस बीच अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते रिश्तों को लेकर एक अच्छी खबर है। भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ऐलान किया कि पोखरण परीक्षण के बाद जो पाबंदियां लगी थीं, उन्हें हटाया जाएगा। इसका उद्देश्य भारत के साथ ऊर्जा संबंधों को मजबूत करना और 20 साल पुराने ऐतिहासिक परमाणु समझौते को नई रफ्तार देना है। सुलिवन ने यह घोषणा विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल के साथ अलग-अलग वार्ता के कुछ घंटों बाद की।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते में आ रही परेशानियों को दूर करने की बात कही है। उन्होंने कहा, क़रीब बीस साल पहले पूर्व राष्ट्रपति बुश और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असैनिक परमाणु समझौते की एक दूरदर्शी सोच की नींव रखी थी, जिसे हमें अब पूरी तरह हक़ीकत बनाना है। उन्होंने कहा, हम प्रदूषण रहित ऊर्जा तकनीक पर काम कर रहे हैं, ताकि हम ऑर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के विकास को सक्षम बना सकें और भारत और अमेरिका की ऊर्जा कंपनियों को उनकी नई तकनीक के विस्तार में मदद कर सकें। सुलिवन ने कहा, मैं आज यह घोषणा कर सकता हूं कि अमेरिका अब लंबे समय से मौजूद उन रुकावटों को हटाने में लगा हुआ है जिसने भारत के बड़े परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठानों और अमेरिकी कंपनियों के बीच परमाणु सहयोग को रोक रखा है।

अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद कई भारतीय संस्थानों पर प्रतिबंध लगाए थे। भारत ने 11 और 13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति के नाम से जाना गया था। हालांकि इसके बाद कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका अमेरिका ने तब 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए।

हालांकि, समय के साथ कई प्रतिबंध हटा लिए गए, 2010 में दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग को लेकर समझौता भी हुआ था। लेकिन अभी भी भारत के कुछ रिएक्टर, परमाणु ऊर्जा संयंत्र और परमाणु ऊर्जा विभाग की इकाइयां इस सूची में हैं।

अब सुलिवन के बयान से संकेत मिलता है कि इन प्रतिबंधों को हटाने पर गंभीरता से काम हो रहा है। सुलिवन की यह यात्रा अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित है। यह सहयोग खासतौर पर रक्षा, अंतरिक्ष और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे क्षेत्रों में बढ़ रहा है।

भारत अपनी ऊर्जा की बड़े पैमाने पर आपूर्ति परमाणु बिजली घरों के जरिए करता है। 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत अमेरिका को भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी बेचने की अनुमति दी गई थी। लेकिन इसकी शर्तें ऐसी थीं कि इसमें अड़चन आती रही, ये लागू नहीं हो सका। जिन नियमों के कारण इस समझौते में अड़चन आ रही थी, अब अमेरिका उन्हें हटाने की बात कर रहा है।

राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भ

यह दौरा बाइडेन प्रशासन के आखिरी बड़े भारत दौरे के रूप में देखा जा रहा है। सुलिवन ने बताया कि भारत-अमेरिका साझेदारी की अमेरिका की क्षेत्रीय और वैश्विक प्राथमिकताओं में केंद्रीय भूमिका है।

परमाणु व्यापार प्रतिबंध हटने से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी प्रगति हो सकती है। 2019 में दोनों देशों ने भारत में छह अमेरिकी परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने पर सहमति जताई थी। यह परियोजना अब तेज हो सकती है। भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों के जरिए परमाणु ऊर्जा का दोहन महत्वपूर्ण है।

भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र अभी तक कड़े कानूनों और बाधाओं से जूझ रहे हैं। उन्हें इस कदम से नई दिशा मिल सकती है। इससे न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ेगा, बल्कि तकनीक, रक्षा और वैश्विक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी रिश्ते मजबूत होंगे।

क्यों नरम पड़ा अमेरिका?

दरअसल परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत लगातार बेहतर कर रहा है। अमेरिका को अच्छी तरह मालूम है कि भारत के साथ मिलकर काम करने पर उसको फायदा होगा। क्योंकि अब ऊर्जा से लेकर अंतरिक्ष तक के कई सेक्टर ऐसे हैं, जहां दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है। अमेरिकी और भारतीय कंपनियों को अगली पीढ़ी की सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकियों के निर्माण के लिए मिलकर काम करते देखेंगे। साथ ही अमेरिकी और भारतीय अंतरिक्ष यात्री मिलकर अत्याधुनिक अनुसंधान और अंतरिक्ष अन्वेषण करेंगे। फिर अमेरिका भारत में बड़ा निवेश कर रहा है। उसी तरह भारत ने अमेरिकी निवेश में भूमिका निभाई है। पिछले दो दशकों में दोनों देश करीब आए हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार अमेरिका में भारतीय निवेश ने 4,00,000 नौकरियां पैदा की हैं।

पाकिस्तान में मिला जर्मन रायजनिक का शव, दो दिन से ऑफिस नहीं आए थे, आखिर किसने ली जान?

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पाकिस्तान में एक जर्मन डिप्लोमैट का शव मिला है। जर्मन दूतावास में दूसरे सचिव के तौर पर काम करने वाले जर्मन राजनयिक सोमवार को इस्लामाबाद स्थित अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए। जर्मन डिप्लोमैट का नाम थॉमस फील्डर था। वह इस्लामाबाद के डिप्लोमेटिक एन्क्लेव स्थित काराकोरम हाइट्स के फ्लैट में रहते थे। उनकी मौत कैसे हुई या फिर उनकी हत्या हुई है, इसकी डिटेल पाकिस्तान ने दुनिया को नहीं दी है।

जर्मन दूतावास के दूसरे सचिव थॉमस जुर्गेन बिएलेफेल्ड के 2 दिनों तक काम से गायब रहने के दौरान सोमवार को उनकी खोज शुरू की गई, तब वो अपने अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए। पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक जुर्गेन की आँखों, नाक और मुँह से खून निकल रहा था। पुलिस के अनुसार, जुर्गेन दो दिनों से काम पर नहीं आ रहे थे और फोन कॉल्स का भी जवाब नहीं दे रहे थे। इसके बाद दूतावास के कुछ अधिकारी उनके अपार्टमेंट का ताला तोड़कर घर में घुसे, जहाँ उन्हें मृत पाया गया।

जर्मन डिप्लोमैट की पाकिस्तान में मौत कैसे हुई, वजह फौरन पता नहीं चल पाई है। हालांकि, थाने के ड्यूटी अफसर इरशाद के मुताबिक, राजनयिक पहले से दिल के मरीज थे और उनका इलाज इस्लामाबाद के कुलसुम अस्पताल में चल रहा था. उनका इशारा हार्ट अटैक को लेकर है। मगर जांच के बाद ही यह सामने आएगा कि आखिर उनकी मौत संयोग है या उनकी हत्या की गई?

दिल्ली में कब होगा विधानसभा चुनाव, आज दो बजे चुनाव आयोग करेगा तारीखों का एलान

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दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी, 2025 तक का है। इससे पहले दिल्ली विधानसभा का गठन करने के लिए चुनाव होने हैं। इसके लिए दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय की ओर से तैयारियां की जा रही हैं। चुनाव आयोग आज (मंगलवार) 2 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा, जिसमें वो दिल्ली में चुनाव की तारीख का ऐलान करेगा।चुनाव आयोग की ओर से विज्ञान भवन में केंद्रशासित प्रदेश में चुनाव के शेड्यूल की घोषणा को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई है।

एक ही चरण में चुनाव होने की उम्मीद

दिल्ली चुनाव एक ही चरण में होने की उम्मीद है। संभवतः फरवरी के दूसरे हफ्ते के आसपास चुनाव हो। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की देखरेख में यह अंतिम चुनाव हो सकता है. वह 18 फरवरी को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

दिल्ली में कुल एक करोड़ 55 लाख 24 हजार 858 वोटर

इस बार भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा सकता है। सोमवार को ही चुनाव आयोग ने अंतिम मतदाता सूची जारी कर दी है। इस चुनाव में दो लाख के करीब मतदाता 18 से 19 वर्ष के हैं। वह पहली बार विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इस सूची में कुल एक करोड़ 55,24,858 मतदाता हैं।

1,67,329 नए मतदाता जुड़े

चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली में एक महीने में 29 अक्तूबर से 28 नवंबर तक 1,35,089 मतदाताओं ने फार्म- 6 और 83,825 ने फार्म 8 के तहत मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने, पता बदलने, नाम को सूची से हटाने और आपत्तियां और सुझाव के लिए आवेदन किया। चुनाव आयोग के संबंधित अधिकारियों ने सभी आवेदनों को 24 दिसंबर तक सुलझा दिया। इस तरह से अंतिम मतदाता सूची जारी होने तक 3,08,942 नए नाम मतदाता सूचियों में जुड़े। 1,41,613 नाम हटाए गए। इस दौरान कुल 1,67,329 मतदाता नए जुड़े।

तिब्‍बत में भूकंप ने मचाई तबाही, 53 की मौत-62 घायल, भारत में भी असर

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मंगलवार की सुबह नेपाल और तिब्बत की सीमा के पास भयंकर भूकंप के कारण धरती कांप उठी है। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.1 मापी गई है। भूकंप की तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके झटके भारत के बिहार, यूपी, दिल्ली एनसीआर, बंगाल समेत कई राज्यों में महसूस किए गए हैं। चीन के बयान में बताया गया कि नेपाल सीमा के पास तिब्बत क्षेत्र में आए शक्तिशाली भूकंप में अब तक 53 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 62 लोग घायल हैं। भूकंप के चलते मरने वालों की संख्‍या में लगातार इजाफा होता जा रहा है।

तिब्बत में भूकंप शिगाजे शहर में आया. शिगाजे शहर के डिंगरी काउंटी में भूकंप के झटके महसूस किए गए। हालांकि, चीन ने भूकंप की तीव्रता 6.8 दर्ज की। भूकंप 10 किलोमीटर की गहराई पर आया। यूएसजीएस रिपोर्ट के अनुसार, सुबह सात बजे के आसपास एक घंटे के भीतर कम से कम छह बार चार से पांच तीव्रता वाले भूकंप के झटके दर्ज किए गए।

भूकंप सुबह करीब 6:52 बजे आया। नेपाल के काठमांडू, धाडिंग, सिंधुपालचौक, कावरे, मकवानपुर और कई अन्य जिलों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। वहीं उत्तर भारत के भी कई शहरों में भूकंप के झटके महसूस किए गए, हालांकि भारत से अभी किसी हताहत की खबर नहीं है।

नेपाल में किसी तरह के नुकसान खबर नहीं

नेपाल की भूकंप निगरानी एजेंसी ने बताया है सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। नेपाल के मुताबिक, भूकंप का केंद्र चीन का डिंगी था। नेपाल की राजधानी काठमांडू में भूकंप के झटकों के कारण लोग बुरी तरह से घबरा गए और अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। हालांकि, अब तक भूकंप के कारण देश से किसी तरह के नुकसान की कोई खबर सामने नहीं आई है।

भारत में भी महसूस किए गए झटके

भूकंप के झटके भारत के कई राज्यों में भी महसूस किए गए। इसकी जद में सबसे ज्यादा बिहार आया। इसके अलावा असम, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस दौरान डरे सहमे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। यूएसजीएस भूकंप के मुताबिक, भूकंप का केंद्र लोबुचे से 93 किमी उत्तर पूर्व में था।

बच्चों को चपेट में ले रहा HMPV वायरस, देश के 5 राज्यों में आए केस, जारी हुई ये एडवाइजरी

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कोविड 19 वायरस के बाद अब चीन के नए वायरस ने लोगों में दहशत फैला दी है। इसे हूयमन मेटान्‍यूमोवायरस (HMPV) कहा जाता है। इसके लक्षण कोरोना वायरस के समान हैं और ये कमजोर इम्‍यूनिटी वाले लोगों को अपना शिकार बनाता है। भारत में इसके मामले सामने आने लगे हैं। अब तक 5 राज्यों में केस मिले हैं। कुल 8 मामले सामने आ चुके हैं। सोमवार को एचमपीवी वायरस के कर्नाटक में दो, गुजरात में एक और तमिलनाडु में 2 मरीज मिले। आज मंगलवार को नागपुर में भी दो नए केस मिले हैं।

वायरस बच्चों को ले रहा चपेट में

भारत में अब तक HMP वायरस के जितने भी केस मिले हैं उसमें छोटे बच्चे ही संक्रमित हुए हैं। बेंगलुरु में 8 महीने के एक बच्चे को बुखार की वजह से एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और जांच के दौरान बच्चे में HMP वायरस पाया गया। दूसरा मामला भी बेंगलुरू के ही अस्पताल में मिला। इस बार 3 महीने के एक बच्चे में HMP वायरस मिला। इस बच्चे को ब्रोंकोन्यूमोनिया के चलते हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

तीसरा मामला गुजरात में मिला और मरीज 2 महीने का एक बच्चा है। ये बच्चा पिछले 15 दिन से बीमार था और उसे राजस्थान के डूंगरपुर से अहमदाबाद के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, इसलिए राजस्थान में भी HMP वायरस के केस मिलने की आशंका बढ़ गई है। HMP वायरस का चौथा मामला पश्चिम बंगाल से है, जहां कोलकाता में 5 महीने का एक बच्चा HMPV पॉजिटिव पाया गया है। ये बच्चा बुखार, डायरिया, और उल्टी जैसे लक्षणों के साथ डॉक्टर के पास लाया गया था और वायरस PCR टेस्ट के बाद बच्चे में HMP वायरस होने की पुष्टि हो गई। इस बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने की वजह से रेस्परेटरी सपोर्ट पर रखा गया।

पांचवां और छठा मामला चेन्नई से सामने आया है। दो बच्चों को HMP वायरस की पुष्टि हुई है।

केंद्र सरकार अलर्ट

देश और दुनिया भर में स्थिति को बिगड़ता देख अब केंद्र सरकार पूरी तरह से अलर्ट हो गई है। अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से HMPV को लेकर लोगों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। इस एडवाइजरी में बताया गया है कि लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। भारत में HMPV के दस्तक के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इसे लेकर पैनिक होने की जरुरत नहीं है। ये वायरस भारत में पहले से ही मौजूद है। फिलहाल हेल्थ मिनिस्ट्री पूरे मामले को मॉनिटर कर रही है और लोगों को भी सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।

एडवाइजरी में क्या कहा गया है?

1. एडवाइजरी में अस्पतालों से सभी तरह के सांसों से संबंधी संक्रामक बीमारियों के लिए रियल टाइम रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहा गया है। साथ ही सीवर एक्यूट रिस्पाइरेटरी इंफेक्शन से संबंधित इन मामलों को तत्काल इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम वाले पोर्टल में एंट्री करने के लिए कहा गया है।

2. एडवाइजरी में कहा गया कि सीवर एक्यूट रिस्पाइरेटरी इंफेक्शन के सबी मामले और इंफ्लूएंजा के सभी मामलों को आईएचआईपी पोर्टल में सूचीबद्ध करें।

3. एडवाइजरी के मुताबिक अस्पतालों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि जब भी कोई इस तरह के संदेहास्पद मरीज आए तो उनके आइसोलेशन की व्यवस्था हो और तत्काल प्रभाव से उनका इलाज प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि संक्रामक बीमारी का प्रसार अन्य में न हो।

4. अस्पतालों से कहा गया है कि वह निजी अस्पतालों के साथ समन्वय स्थापित कर संक्रामक बीमारियों की सही रिपोर्टिंग और उपचार सुनिश्चित करें।

5. हर हाल में मरीज की सुरक्षा सुनिश्चित हो और अस्पतालों में इलाज के लिए कोई असुविधा न हो।

6. एडवाइजरी के मुताबिक सभी अस्पतालों के सीएमओ से कहा गया है कि हल्के-फुल्के लक्षणों के लिए वे अस्पतालों में पैरासिटामोल, एंटीहिस्टामिन, ब्रोंकोडायलेटर, कफ सीरफ का स्टोरेज कर लें ताकि इन सबकी कोई कमी न रहे।

भारत सरकार ने एचएमपीवी वायरस पर क्या कहा?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने भारत में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के मामले सामने आने के बाद सोमवार को कहा कि सरकार स्थिति पर बारीकी से नजर रख रही है और चिंता की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि एचएमपीवी कोई नया वायरस नहीं है और देश में किसी भी सामान्य श्वसन वायरस रोगजनक में कोई वृद्धि नहीं देखी गई है। जेपी नड्डा ने एक वीडियो संदेश में कहा कि चीन में एचएमपीवी की हालिया खबरों के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय, आईसीएमआर, देश की शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान संस्था और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) चीन और अन्य पड़ोसी देशों में स्थिति पर कड़ी नजर रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने स्थिति का संज्ञान लिया है और शीघ्र ही रिपोर्ट हमारे साथ साझा करेगा।

कनाडा के पीएम ट्रूडो को आखिरकार देना पड़ा इस्तीफा, अब आगे क्या?

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कनाडा के प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो ने लंबे चले विरोध के बाद सोमवार को इस्तीफा दे दिया। ट्रूडो के इस्तीफे के बाद उनके 10 साल पुरानी सत्ता का अंत हो गया। यह फैसला उन्होंने अपनी ही पार्टी में विद्रोह और जनता में बढ़ती अलोकप्रियता के बीच लिया है। इस साल होने वाले आम चुनावों में पियरे पोइलिवरे की कंजरवेटिव पार्टी के सत्ता में आने की भविष्यवाणी की जा रही है। जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे से पहले एक अधिकारी ने बताया कि सरकार के प्रति बढ़ते असंतोष के कारण उन्होंने पद छोड़ने का फैसला लिया।

कनाडाई सरकार के एक अधिकारी ने कहा, सत्ताधारी लिबरल पार्टी में अगले नेता का चुनाव होने तक ट्रूडो कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि देश की संसद का सत्र 27 जनवरी से प्रस्तावित था। अब इस्तीफे के कारण संसद की कार्यवाही 24 मार्च तक स्थगित रहेगी।अधिकारी ने बताया कि 24 मार्च तक लिबरल पार्टी अपने नए नेता का चुनाव कर लेगी। सियासी उथल-पुथल के बीच यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि कनाडा में आम चुनाव कब कराए जाएंगे।

इस्तीफा देते हुए ट्रूडो ने क्या कहा?

53 वर्षीय नेता ने ओटावा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों से कहा, मैं पार्टी के नए नेता के चयन के बाद पार्टी नेता और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का इरादा रखता हूं। इसका मतलब है कि ट्रूडो तब तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में बने रहेंगे जब तक कि नए नेता का चुनाव नहीं हो जाता। बतौर रेगुलर पीएम अपने आखिरी भाषण में उन्होंने खुद को फाइटर करार दिया। ट्रूडो ने कहा, यह देश अगले चुनाव में एक असल विकल्प का हकदार है और यह मेरे लिए साफ हो गया है कि अगर मुझे आंतरिक लड़ाई लड़नी पड़ रही है, तो मैं उस चुनाव में सबसे अच्छा विकल्प नहीं हो सकता।

ट्रूडो दो बार से कनाडा के पीएम चुने जा रहे हैं, हाल ही में 2021 में वे सत्ता में रहने में तो कामयाब रहे शुरुआत में उनकी नीतियों को सराहा गया था। लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ती खाद्य और आवास की कीमतों और बढ़ते आप्रवासन के कारण उनका समर्थन घट गया है। यह राजनीतिक उथल-पुथल ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर कनाडा अपने यहां अमेरिका में आने वाले अप्रवासी और नशीली दवाओं को रोकने में विफल रहा तो, कनाडा के सभी सामानों पर 25 फीसदी शुल्क लगा दिया जाएगा।  

क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी दिया था वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा

कनाडा की पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने 16 दिसंबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अर्थव्यवस्था से जुड़े ट्रुडो के फैसलों की आलोचना की थी। फ्रीलैंड और ट्रूडो के बीच नीतियों पर मतभेद थे। फ्रीलैंड का कहना था कि इस समय कनाडा को आर्थिक रूप से मजबूत रहना चाहिए और खर्चों को नियंत्रण में रखना चाहिए, ताकि अगर अमेरिका से किसी प्रकार के आर्थिक दबाव या शुल्क का सामना करना पड़े, तो कनाडा के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन हों। उनका मानना था कि ब्रिकी कर पर अस्थायी छूट और नागरिकों को 250 डॉलर भेजने जैसी योजनाएं राजनीतिक दिखावा हैं और इनसे आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ सकता है। 

कौन होगा लिबरल का नया लीडर?

संभावित नेताओं में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ कनाडा के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी, विदेश मंत्री मेलानी जोली और पूर्व उप प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड शामिल हैं। उम्मीद है कि 20 अक्टूबर को या उससे पहले होने वाले आम चुनाव से पहले एक नया पार्टी नेता लिबरल्स को उनकी निराशा से बाहर निकाल सकता है।

हाल के सर्वों में ट्रूडो की लिबरल पार्टी विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से पीछे है, जिसका नेतृत्व तेजतर्रार पियरे पोलीवर कर रहे हैं। पार्टी से जुड़े लोग मानते हैं कि एक नया नेता ही पिछड़ती पार्टी को आगे ला सकता है।

जॉर्ज सोरोस को मिला अमेरिका का सर्वोच्च सम्मान प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम, मच गया हंगामा
#george_soros_awarded_americas_highest_civilian_honor
जॉर्ज सोरोस की हाल के दिनों में भारत में भी खूब चर्चा होती रही है। उन पर भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के आरोप लगे हैं। अब अमेरिका ने इस विवादित अमेरिकी बिजनैसमेन जॉर्ज सोरोस को सर्वोच्च अमेरिकी नागरिक सम्मान (प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम) से सम्मानित किया है। इसे लेकर पूरी दुनिया में चर्चा है। खुद अमेरिका में ही सोरोस को यह सम्मान दिए जाने के पक्ष-विपक्ष में कई आवाजें बुलंद हैं। दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क ने भी जॉर्ज सोरोस को यह सम्मान दिए जाने के फैसले को हास्यास्पद करार दिया है।

अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन ने जॉर्ज सोरोस और पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन समेत 19 लोगों को शनिवार को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा है। हालांकि, इनमें से किसी को भी मेडल ऑफ फ्रीडम दिए जाने को लेकर इतना हंगामा नहीं हुआ है, जितना जॉर्ज सोरोस के नाम को लेकर बातें चल रही हैं। व्हाइट हाउस के बयान के मुताबिक, सोरोस की उनकी दानकर्ता संस्था ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने दुनियाभर में लोकतंत्र को मजबूत करने के अलावा मानवाधिकार, शिक्षा और सामाजिक न्याय के लिए काम किया है।

*सोरोस को सम्मान दिए जाने को मस्क ने कहा शर्मनाक*
सोरोस को फ्रीडम मेडल मिलने पर टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने भी प्रतिक्रिया दी है। जो बाइडन के विरोधी और रिपब्ल्कन नेता डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक एलन मस्क ने एक पॉडकास्ट में इस सोरोस को इस सम्मान को दिए जाने को शर्मनाक बताते हुए कहा कि सोरोस मानवता से घृणा करते हैं। मस्क ने ट्विटर पर एक पोस्ट में सोरोस की तुलना स्टार वार्स के खलनायक डार्थ सिडियस से भी की है। उन्होंने लिखा, 'जॉर्ज सोरोस तो यहां काफी अच्छे लग रहे हैं। जरूर लाइटिंग अच्छी रही होगी।'

*रिपब्लिकन नेता भी फैसले से खुश नहीं*
सोरोस को सम्मान दिए जाने की रिपब्लिकन नेताओं ने भी निंदा की है। निक्की हेली ने इसे अमेरिका के मुंह पर एक तमाचा कहा है। उन्होंने बाइडन के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए उन पर राष्ट्रीय मूल्यों के बजाय राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया। डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें एक पिज्जा डिलीवरी करने वाले व्यक्ति ने पांच बच्चों को जलते हुए घर से बचाया था। उन्होंने लिखा, यह व्यक्ति प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम का हकदार है, सोरोस नहीं।

*प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी रहे हैं जॉर्ज सोरोस*
जॉर्ज सोरोस पर दुनिया के कई देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित करने का एजेंडा चलाने का आरोप है। सोरोस की संस्था ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ ने 1999 में पहली बार भारत में एंट्री की।
2014 में इसने भारत में दवा, न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने और विकलांग लोगों को मदद करने वाली संस्थाओं को फंड देना शुरू किया। 2016 में भारत सरकार ने देश में इस संस्था के जरिए होने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी।
अगस्त 2023 में जॉर्ज का म्यूनिख सिक्योरिटी काउंसिल में दिया बयान बेहद चर्चा में रहा। जब उन्होंने कहा था कि भारत लोकतांत्रिक देश है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं।

*सोरोस ने सीएए, 370 पर भी विवादित बयान दिए*
सोरोस ने भारत में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने पर भी पीएम मोदी पर निशाना साधा था। सोरोस ने दोनों मौकों पर कहा था कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने की तरफ बढ़ रहा है। दोनों ही मौकों पर उनके बयान बेहद तल्ख थे।
बाबा सिद्दीकी केस में 4590 पन्नों की चार्जशीट दाखिल, हत्या के 3 कारण बताए गए
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बाबा सिद्दीकी केस में मुंबई पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है। मुंबई क्राइम ब्रांच ने महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज क्राइम एक्ट (मकोका) कोर्ट के सामने 4,590 पन्नों की चार्जशीट दायर की है। इस चार्जशीट में बाबा सिद्दीकी के मर्डर केस मामले में 26 आरोपियों को नामजद किया गया है। साथ ही और 3 फरार आरोपियों के नाम शामिल हैं जिसमें शुभम लोनकर, जिशान अख्तर और अनमोल बिश्नोई शामिल है। चार्जशीट में मुंबई पुलिस ने हत्या की वजह का भी जिक्र किया है। पुलिस की जांच के मुताबिक हत्या की तीन प्रमुख वजह हो सकती हैं।

*चार्जशीट में हत्या की 3 वजहें बताई गई हैं*
चार्जशीट में मुंबई पुलिस ने हत्या की तीन प्रमुख वजहों का जिक्र किया है। जिनमें सलमान खान से करीबी, अनुज थप्पन की आत्महत्या का बदला और बिश्नोई गैंग की सुप्रीमेसी स्थापित करने और अपना खौफ मुंबई में बढ़ाना शामिल हैं। हत्याओं की इन तीन वजहों को स्थापित करने के लिए पुलिस ने शुभम लोनकर के फेसबुक पोस्ट को भी आधार बनाया है।
दरअसल, बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने हत्या की जिम्मेदारी ली थी। इस दावे को करने वाला एक फेसबुक पोस्ट काफी वायरल हुआ था। यह पोस्ट सबसे पहले फेसबुक शुभम लोनकर महाराष्ट्र पर अपलोड किया गया था। जिसके बाद पुलिस लोनकर की तलाश में जुट गई थी। हालांकि, यह बताया गया है कि उनके भाई ने जून 2024 से उनके साथ गांव छोड़ दिया, अकोट के पुलिस अधिकारी अनमोल मित्तल ने बताया कि 16 जनवरी, 2024 को अकोट सिटी पुलिस स्टेशन में आर्म एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत शुभम रामेश्वर लोनकर और प्रवीण रामेश्वर लोनकर सहित अकोट और अंजनगाव सुर्जी तालुका के 10 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

*लॉरेंस बिश्नोई का नाम सीधे तौर पर चार्जशीट में नहीं*
बता दें कि इस मामले के मुख्य आरोपी कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के भाई अनमोल बिश्नोई और दो अन्य व्यक्ति शुभम लोनकर और जीशान अख्तर हैं। अनमोल और अख्तर के साथ-साथ लोनकर को भी हत्या के मामले में वॉन्टेड क्रिमिनमल घोषित किया गया है। पुलिस का मानना है कि उन्होंने अपराध की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, लॉरेंस बिश्नोई का नाम सीधे तौर पर इस चार्जशीट में नहीं है और उन्हें वॉन्टेड सस्पेक्ट के रूप में नहीं रखा गया है। वहीं कहा ये भी जा रहा है कि उनका इस मामले से इनडायरेक्ट कनेक्शन था।

*12 अक्टूबर को की गई थी बाबा सिद्दीकी की हत्या*
12 अक्टूबर 2024 को बाबा सिद्दीकी की उनके बेटे के ऑफिस से निकलते वक्त हत्या कर दी गई थी। उनके सीने पर दो गोलियां लगी थी। उन्हें लीलावती अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई थी।
दिल्ली में 27 साल का सूखा खत्म कर पाएगी बीजेपी? आप का किला भेदने के लिए बनाई खास रणनीति
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* दिल्ली विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन स्टार्ट हो गया है कुछ ही दिनों में बहुत जल्द केंद्रीय निर्वाचन आयोग दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है लेकिन उससे पहले सभी राजनीतिक दल दिल्ली में अपनी-अपनी सरकार बनाने के लिए हर जोर-आजमाइश में जुटे हुए हैं। एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी दिल्ली की जनता को लोक लुभावन योजनाओं के जरिए साधने में लगी है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव की कमान अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाल ली है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भाजपा दिल्ली में 27 साल से चला आ रहा सूखा खत्म कर पाएगी? *क़रीब तीन दशक से सत्ता से गायब बीजेपी* दिल्ली में बीजेपी क़रीब तीन दशक से सत्ता से गायब है। दिल्ली में बीजेपी ने पिछली बार साल 1993 में जीत हासिल की थी। उस वक़्त मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। 1993 में 49 सीटों पर मिली बड़ी जीत के बाद भी उस दौरान पांच साल में बीजेपी को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे। बीजेपी ने पहले मदनलाल खुराना, फिर साहिब सिंह वर्मा और अंत में सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया। कहा जाता है कि उस वक़्त प्याज़ की बढ़ी कीमतों के आंसू बीजेपी को लंबे वक़्त तक रुलाते रहे। बीजेपी के लिए तीन मुख्यमंत्रियों का प्रयोग ऐसा रहा कि बीते क़रीब तीन दशक से उसे दिल्ली की सत्ता नहीं मिल पाई है। *लोकसभा में सफल लेकिन विधानसभा में फेल* उसके बाद जनता ने लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलाई और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद दिल्ली में जनता ने आम आदमी पार्टी को पसंद कर लिया, लेकिन बीजेपी जैसी पुरानी पार्टी पर भरोसा नहीं जताया। दिल्ली में लगातार छह बार चुनाव हारने के बाद सातवीं बार उसे जीतने के इरादे से बीजेपी मैदान में उतर रही है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी को बीते तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सीटों पर जीत मिली है। लेकिन इस दौरान विधानसभा चुनावों में पार्टी सफल नहीं हो पाई है। 70 सीटों की दिल्ली विधानसभा में बीजेपी को साल 2013 में 31 सीटों पर जीत मिली। उसके बाद साल 2015 के विधानसभा चुनावों में उसे महज 3 सीटें और साल 2020 में 8 सीटों से संतोष करना पड़ा। जबकि बीते तीनों लोकसभा चुनावों यानी साल 2014, 2019 और 2024 में बीजेपी को दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत मिली ऐसे में बीजेपी ने इस बार अपनी विरोधी आम आदमी पार्टी “साफ” करने के ले खास रणनीति अपनाई है। *पीएम मोदी ने खुद संभाली कमान* इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीख़ों के ऐलान से पहले ही पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के तमाम नेता चुनावी मैदान में दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आम आदमी पार्टी पर 'आप-दा' कहकर हमला किया है। उन्होंने कहा है, दिल्ली में एक ही आवाज़ गूंज रही है, आप-दा नहीं सहेंगे, बदलकर रहेंगे। अब दिल्ली विकास की धारा चाहती है। जबकि गृहमंत्री अमित शाह ने भी अरविंद केजरीवाल पर उनके मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास को 'शीशमहल' बनाने का आरोप लगाया है। *आप के दिग्गजों को कड़ी चुनौती देने की कोशिश* यही नहीं, बीजेपी ने इस बार अपनी विरोधी आम आदमी पार्टी के दिग्गजों को कड़ी चुनौती देने के इरादे से अपने दो पूर्व सांसदों को दांव पर लगाया है। इसके अलावा पार्टी ने अपने मौजूदा विधायकों में से भी चार पर फिर से भरोसा जताया है। पार्टी ने इस बार आप के दिग्गज नेताओं को घेरने पर अधिक फोकस रखा है। यही वजह है कि पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अपने पूर्व सांसद और जाट नेता प्रवेश वर्मा को टिकट दिया है। पार्टी को लग रहा है कि कांग्रेस के संदीप दीक्षित भी तगड़े दावेदार हैं। ऐसे में बीजेपी विरोधी वोट कांग्रेस व आप में बंट गए तो नई दिल्ली का किला बीजेपी जीत सकती है। इसी तरह से पार्टी ने वोटरों का प्रोफाइल देखकर जंगपुरा से तरविंदर सिंह मारवाह को टिकट दिया है। पार्टी को लग रहा है कि यहां मनीष सिसोदिया को मारवाह ही टक्कर दे सकते हैं। *स्थानीय मुद्दों पर आप का घेराव* वहीं, सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी को आम आदमी पार्टी (आप) के एक दशक लंबे शासन के खिलाफ “सत्ता विरोधी भावना” का एहसास है। इस बार भाजपा का अभियान भी बहुत स्थानीय है, जिसमें प्रधानमंत्री सीवर और जल-जमाव वाली सड़कों और डीटीसी बेड़े के बारे में बोल रहे हैं। भाजपा दिल्ली में आप के शासन मॉडल को घेरने के लिए यमुना नदी की स्थिति और राष्ट्रीय राजधानी में लगातार वायु प्रदूषण के मुद्दे पर भी जोर दे रही है। भाजपा लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि आप सीवेज सिस्टम और पानी की कमी जैसे मुख्य शासन मुद्दों पर विफल रही है और हमेशा केंद्र के साथ टकराव की मुद्रा में रहती है, जिससे दिल्ली का विकास बाधित होता है। उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों का उदाहरण देकर बीजेपी दिल्ली की जनता के सामने ये पेश करने के प्रयास में लगी है कि,दिल्ली में भी अब भाजपा के नेतृत्व वाली डबल इंजन सरकार की जरुरत है। भाजपा ने आप की दो बड़ी मुफ्त बिजली योजना और पानी का बिल फ्री कराने का तोड़ निकाल लिया है। भाजपा ने दिल्ली में झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों पीएम आवास की चाबी देकर इसकी शुरुआत भी कर दी है।
कैग रिपोर्ट में केजरीवाल के ‘काले कारनामों’, 'शीश महल' बनाने में उड़ाई नियमों की धज्जियां, खर्ज किए करोड़ों
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* दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का घर फिर चर्चा में है। दिल्‍ली चुनाव से ठीक पहले सीएजी यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने सरकारी आवास के रिनोवेशन पर 33.66 करोड़ रुपये खर्च किए। दावा किया गया कि सीएम हाउस पर तय लागत से 342 प्रतिशत ज्‍यादा रकम खर्च की गई। पहले ही अरविंद केजरीवाल के घर को 'शीशमहल' बता चुकी बीजेपी दिल्‍ली चुनाव के बीचे इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करने में लगी है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना इजाज़त लिए इमरजेंसी क्‍लॉज का इस्तेमाल करके बंगला बनाया है। साथ ही दावा किया कि एमसीडी की इजाजत लिये बिना बंगला बनाया गया। साल 2022 तक इस बंगले पर क़रीब 33 करोड़ रुपये खर्च किया गया। कैग रिपोर्ट में अरविंद केजरीवाल के बंगले को लेकर 139 सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी ने निजी संस्था के तौर पर काम किया, बिना इजाज़त करोड़ रुपये बंगला बनाने के लिए खर्च किए। पहले 7 करोड़ 91 लाख का बजट इमरजेंसी के तौर पर पास किया गया था। साल 2020 में पहला वर्क स्टीमेट बना जब दिल्ली कोविड की मार झेल रहा था। भाजपा नेता वीरेंद्र सचदेवा ने कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बंगले पर 75 से 80 करोड़ रुपये खर्च किए थे। वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, कैग रिपोर्ट में 2023 और 2024 का खुलासा होना बाकी है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि 2020 में जब दिल्ली की जनता अपने लोगों को खो रही थी। उस समय अरविंद केजरीवाल अपना शीश महल बनवा रहे थे। किसी भी सरकारी विभाग से कोई अनुमति नहीं ली गई। इसके निर्माण में अनियमितताएं बरती गईं। पीडब्ल्यूडी विभाग ने 2024 में जो इन्वेंटरी घोषित की है और जो समान दिखाया है कि यह पीडब्ल्यूडी ने नहीं लगाया है, वह समान कहां से आया। वह किसका पैसा है? इसका जवाब अरविंद केजरीवाल को देना होगा।