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मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए विहिप की पहल, जनजागरण के लिए चलाएगी देशव्यापी अभियान

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मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार को देशव्यापी जन-जागरण अभियान की घोषणा की है। विहिप अगले महीने से देशव्यापी जन-जागरण अभियान शुरू करेगी। विहिप के संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे ने गुरुवार को प्रेस वार्ता के दौरान इस अभियान की जानकारी दी। मिलिंद परांडे ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कहा कि संतों और हिंदू समाज के श्रेष्ठ लोगों की अगुवाई में आगामी 5 जनवरी से इस संबंध में एक देशव्यापी जन जागरण अभियान शुरू किया जाएगा।

विहिप के संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा, पूज्य संत समाज और हिंदू समाज के प्रमुख लोगों के नेतृत्व में हम 5 जनवरी को देशव्यापी जन जागरण अभियान शुरू करने जा रहे हैं। इस अखिल भारतीय अभियान का आह्वान आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में आयोजित होने वाले ‘हैंदव शंखारावम’ नामक लाखों लोगों की एक विशेष सभा में किया जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद कई मंदिर जिन्हें हिंदू समाज को सौंप दिया जाना चाहिए था, उन्हें राज्य सरकारों के अधीन रखा गया। उन्होंने कहा कि मंदिरों की मुक्ति के लिए यह अखिल भारतीय जागरण अभियान, इन मंदिरों की चल-अचल संपत्तियों की रक्षा करने और उनका हिंदू समाज की सेवा और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समुचित उपयोग करने के लिए हिंदू समाज का जागरण शुरू हो गया है।

मिलिंद परांडे ने कहा, मंदिरों के प्रबंधन और नियंत्रण का काम अब हिंदू समाज के समर्पित और योग्य लोगों को सौंप दिया जाना चाहिए। इसके लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकीलों, उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों, संत समाज के प्रमुख लोगों और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं का एक थिंक टैंक बनाया है, जिसने मंदिरों के प्रबंधन और इससे जुड़े किसी भी तरह के विवाद को सुलझाने के प्रोटोकॉल का अध्ययन करने के बाद एक मसौदा तैयार किया है।

उन्होंने कहा कि इस बात को भी ध्यान में रखा गया है कि सरकारें जब मंदिर समाज को लौटाएंगी, तो उसे स्वीकार करने के लिए क्या प्रोटोकॉल होंगे और किन प्रावधानों के तहत ऐसा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसीलिए संवैधानिक पदों पर बैठे कुछ लोग राज्य स्तर पर धार्मिक परिषद का गठन करेंगे, जिसमें प्रतिष्ठित धर्माचार्य, सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी तथा समाज के अन्य प्रतिष्ठित लोग शामिल होंगे, जो हिंदू धर्मग्रंथों और आगम शास्त्रों और अनुष्ठानों के विशेषज्ञ हैं।

इससे पहले, गत 30 सितंबर को विहिप ने देश के सभी राज्यों के राज्यपालों को ज्ञापन सौंप कर उनकी सरकारों को मंदिरों के प्रबंधन से हट जाने के लिए निवेदन किया था।

मनमोहन सिंह के निधन पर इंटरनेशनल मीडिया में क्या-क्या कहा गया?
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* भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। वह अचानक घर पर बेहोश हो गए थे जिसके बाद उन्हें गुरुवार रात 8 बजकर 6 मिनट पर एम्स में भर्ती कराया गया था। मेडिकल बुलेटिन के अनुसार, रात 9 बजकर 51 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। भारत में आधुनिक आर्थिक बदलाव के प्रमुख वास्तुकार मनमोहन सिंह के निधन पर शुक्रवार को सुबह-सुबह ही विश्वभर के नेताओं की ओर से शोक संवेदनाएं आने लगीं। वहीं, मनमोहन सिंह के निधन की ख़बर को विदेशी मीडिया में भी अच्छी ख़ासी जगह मिली है। अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट में मनमोहन सिंह के निधन पर खबर लिखा भारत में एक गतिशील परिवर्तन के नायक भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वाशिंगटन पोस्ट ने आगे लिखा कि उनकी आर्थिक नीतियों की वजह से भारत एक आर्थिक शक्ति बनकर उभरा। पर उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों से उनकी विरासत को दाग भी लगाय़ अमेरिकी मीडिया संस्थान द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने मनमोहन सिंह के निधन को कवर करते हुए लिखा है, भारत के बाजार में हुए सुधारों के जनक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में निधन। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा कि मनमोहन सिंह एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री थे। उन्होंने एक साधारण शुरुआत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का सफर तय किया। भारत जैसा देश जहां की राजनीति बहुत ही उग्र है, उसमें भी वो एक गरिमापूर्ण आचरण के साथ खड़े रहे। 3 दशक पहले उन्हीं के प्रयासों से भारत के बाजार को दुनियाभर के लिए खोल दिया था। रॉयटर्स ने हेडलाइन लगाई 'भारत के अनिच्छुक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन'। रॉयटर्स ने आगे लिखा कि मनमोहन सिंह को 'Reluctant King' यानी 'अनिच्छुक राजा' कहा जाता था। वो एक बहुत ही मृदुभाषी व्यक्ति थे। साथ ही उनका नाम भारत के सबसे सफल नेताओं में गिना जाता है। करोड़ों भारतीय लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का क्रेडिट मनमोहन सिंह को ही जाता है। ब्रितानी अख़बार फाइनैंशियल टाइम्स ने लिखा है, "1991 से 1996 तक वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था को दशकों के अलगाव और ठहराव को दूर करने के लिए कई अहम फ़ैसले किए थे। मनमोहन सिंह ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निजी निवेश के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था का दरवाज़ा खोला था। फ़ाइनैंशियल टाइम्स ने आगे लिखा है, ऑक्सफोर्ड ट्रेंड अर्थशास्त्री अपनी सौम्यता, विनम्रता और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। अमेरिकी मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत कहानी लोगों को आत्मविश्वास से भर देती है। 15 साल का सिख शरणार्थी लड़का, जिसके परिवार को 1947 में भारत के विभाजन के बाद अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। बाद में यही लड़का ऑक्सफ़र्ड और कैंब्रिज में पढ़ने जाता है और टॉप का टेक्नोक्रेट बनता है। ब्लूमबर्ग ने लिखा है, मनमोहन सिंह का निधन तब हुआ है, जब भारत में योग्य लोगों की कमी दिख रही है, विकास समावेशी नहीं है, ज़्यादातर उद्योगपतियों को लग रहा है कि आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण हो रहा है, मध्य वर्ग टैक्स से परेशान है और ग़रीब व्यवस्था से बाहर हो रहा है। भारत में धार्मिक बखेड़ा बढ़ रहा है और नीति निर्माता किसी भी तरह सत्ता हासिल करने में लगे हैं।
26/11 अटैक के गुनहगार लश्कर आतंकी अब्दुल रहमान मक्की मौत, हार्ट अटैक से गई जान

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मुंबई हमलों के गुनहगारों में से एक भारत के दुश्मन और वॉन्टेड लश्कर आतंकी हाफिज अब्दुल रहमान मक्की की पाकिस्तान में मौत हो गई है।जानकारी के मुताबिक, उसकी मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई है। जमात-उद-दावा (जेयूडी) के मुताबिक अब्दुल रहमान मक्की पिछले कुछ दिनों से बीमार था और लाहौर के एक प्राइवेट अस्पताल में हाई शुगर के बाद उसका इलाज चल रहा था। जेयूडी के मुताबिक, मक्की को आज सुबह दिल का दौरा पड़ा और उसने अस्पताल में अंतिम सांस ली।

भारत में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया

मक्की, लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद का बहनोई है। हाफिज सईद को 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता है। मक्की लश्कर और जमात-उद-दावा में नेतृत्व पद पर रहा है। ऐसे में भारत में हुए बड़े हमलों के पीछे हाफिज सईद के साथ साथ मक्की का भी हाथ माना जाता रहा है। लश्कर ने भारत में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया। लश्कर ने 26/11 को मुंबई में हमला कराया था। मुंबई में अरब सागर के रास्ते 10 आतंकी दाखिल हुए थे, इन लोगों ने कई जगहों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। इस हमले में 175 लोगों की मौत हो गई थी।

संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल आतंकी घोषित किया था

मक्की को ना सिर्फ भारत बल्कि संयुक्त राष्ट्र समेत कई देशों ने मक्की को आतंकी घोषित किया किया हुआ है। मक्की को साल 2023 में संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल आतंकी घोषित किया था, जिसके तहत उसकी संपत्ति जब्त कर ली गई थी। इसके अलावा मक्की पर यात्रा और हथियार प्रतिबंध लगा दिए गए थे।

इससे पहले अमेरिका ने मक्की को 'विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी' घोषित करने के अलावा उसकी गिरफ्तारी पर इनाम का ऐलान भी किया था। पाकिस्तान में मक्की को 2022 में आतंकी फंडिंग के मामलों में मुजरिम करार दिया गया था और जेल भी भेजा गया था। हालांकि, पाकिस्तान की सरकार और न्यायपालिका पर अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न करने के आरोप लगते रहे हैं।

तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने खुद पर क्यों मारे कोड़े? खाई बड़ी कसम
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* तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने गुरुवार को द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) को सत्ता से हटाने के लिए प्रतिज्ञा कर ली है। उन्होंने डीएमके को सत्ता से उखाड़ फेंकने तक चप्पल नहीं पहनने की कसम खाई है, साथ ही उन्होंने खुद को कोड़ा मारा है।अन्नामलाई ने शुक्रवार को अपने घर के बाहर 6 कोड़े मारे। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इससे पहले अन्नामलाई ने गुरुवार को कहा कि जब तक द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) सरकार हट नहीं जाती तब तक वह सैंडल नहीं पहनेंगे और नंगे पैर चलेंगे। साथ ही उन्होंने कहा था कि 27 दिसंबर को सुबह 10 बजे अपने घर के बाहर खुद को छह बार कोड़े मारेंगे ताकि लोगों का ध्यान अन्ना विश्वविद्यालय की छात्रा के यौन उत्पीड़न की घटना की ओर जाए। चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में 19 वर्षीय छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न को लेकर बीजेपी हमलावर है। इस मामले में न्याय के लिए तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने खुद को कोड़े मारकर विरोध प्रदर्शन किया। इसके साथ ही अन्नामलाई राज्य सरकार पर हमलावर हैं। तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने अपने कोड़े मारने को लेकर कहा कि तमिल संस्कृति को समझने वाला कोई भी व्यक्ति हमेशा यह जानता कि ये सभी इसी भूमि का हिस्सा हैं। खुद को कोड़े मारना, खुद को दंडित करना और खुद को कठिन परिस्थितियों से गुजारना इस संस्कृति का हिस्सा है। यह किसी भी व्यक्ति या किसी के खिलाफ नहीं है। अन्नामलाई ने कहा कि ये प्रदर्शन राज्य में लगातार हो रहे अन्याय के खिलाफ है। अन्ना विश्वविद्यालय में जो कुछ हुआ है, वह केवल एक संकेत है। कल जो मैंने घोषणा की उसी रास्ते पर चलना चुना है। जिस पर मेरे बहुत से पूर्वज चले हैं, खुद को कोड़े मारते रहे हैं और कोड़े मारते रहेंगे। अन्नामलाई चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न मामले से नाराज हैं, उन्होंने डीएमके सरकार की आलोचना की और मामले में एफआईआर लीक करने के लिए पुलिस पर निशाना साधा, जिसमें पीड़िता की पूरी पहचान उजागर हो गई है। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाया कि वह आरोपी को बचा रही है क्योंकि आरोपी डीएमके से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा,हमेशा की तरह, हम चुनाव जीतने के लिए पैसे नहीं देंगे। हम बिना पैसे बांटे चुनाव लड़ेंगे। जब तक डीएमके सरकार नहीं चली जाती, मैं चप्पल नहीं पहनूंगा। बता दें कि अन्ना यूनिवर्सिटी में एक इंजीनियरिंग की छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न किया गया। मामला तब सामने आया, जब छात्रा ने इसकी पुलिस से खुद शिकायत की थी। सोशल मीडिया पर केस उछला तब पुलिस हरकत में आई। मामले में पुलिस ने अब तक एक आरोपी ज्ञानसेकरन को गिरफ्तार किया है। 37 वर्षीय ज्ञानसेकरन यूनिवर्सिटी परिसर के पास में बिरयानी बेचता है। कथित तौर पर आरोपी ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश किया। उसने इंजीनियरिंग छात्रा के दोस्त की पिटाई की। फिर उसका यौन उत्पीड़न किया और बाद में उसे झाड़ी में छोड़ दिया।
मेरी गड्डी तो यह है…”जब मारुति-800 को निहारे हुए कहते थे मनमोहन सिंह, 3 साल बॉडीगार्ड रहे यूपी के मंत्री ने शेयर की यादें

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में 26 दिसंबर 2024 को दिल्ली स्थित एम्स में निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनसे जुड़े तमाम किस्से और कहानियां लोग याद कर रहे हैं। इसी कड़ी में योगी सरकार में मंत्री और पूर्व पुलिस अधिकारी असीम अरुण ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर उनसे जुड़ी यादों को साझा किया है। अरुण असीम एक जमाने में मनमोहन सिंह की एसपीजी टीम में बॉडीगॉर्ड थे। असीम अरुण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सिक्योरिटी चीफ रह चुके हैं। वह 2004 से 2008 के बीच उनकी 22 लोगों की कमांडो टीम का हिस्सा थे। उन्होंने उस दौरान का एक किस्सा बताया है।

योगी सरकार में मंत्री असीम अरुण ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि मैं 2004 से लगभग तीन साल उनका बॉडी गार्ड रहा। उन्होंने बताया कि एसपीजी में प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सबसे अंदरुनी घेरा होता है – क्लोज प्रोटेक्शन टीम जिसका नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला था। एआईजी सीपीटी वो व्यक्ति है जो पीएम से कभी भी दूर नहीं रह सकता। अगर एक ही बॉडी गार्ड रह सकता है तो साथ यह बंदा होगा। ऐसे में उनके साथ उनकी परछाई की तरह साथ रहने की जिम्मेदारी मेरी थी।

उन्होंने आगे लिखा, 'डॉ साहब की अपनी एक ही कार थी - मारुति 800, जो पीएम हाउस में चमचमाती काली बीएमडब्ल्यू के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह जी बार-बार मुझे कहते- असीम, मुझे इस कार में चलना पसंद नहीं, मेरी गड्डी तो यह है (मारुति)। मैं समझाता कि सर यह गाड़ी आपके ऐश्वर्य के लिए नहीं है, इसके सिक्योरिटी फीचर्स ऐसे हैं जिसके लिए एसपीजी ने इसे लिया है। लेकिन जब कारकेड मारुति के सामने से निकलता तो वे हमेशा मन भर उसे देखते। जैसे संकल्प दोहरा रहे हो कि मैं मिडिल क्लास व्यक्ति हूं और आम आदमी की चिंता करना मेरा काम है। करोड़ों की गाड़ी पीएम की है, मेरी तो यह मारुति है।

बता दें कि असीम अरुण एनएसजी से ब्लैक कैट कमांडो ट्रेनिंग पाने वाले पहले आईपीएस अधिकारी 2004 में बने। वे अब योगी सरकार में मंत्री भी हैं।

पीएम मोदी ने मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि दी, सोनिया गांधी भी पहुंची पूर्व पीएम के आवास

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दो बार प्रधानमंत्री रहे और 1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों के निर्माता डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में गुरुवार को निधन हो गया। गंभीर हालत में उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराए जाने के कुछ ही देर बाद अस्पताल ने उनके निधन की खबर दी। कांग्रेस सूत्रो के अनुसार आज देर रात 1 बजे , मनमोहन सिंह की बेटी अमेरिका से लौटेगी। जिसके बाद कल यानी शनिवार को राजघाट के पास जहां प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार होते हैं वहीं डॉ मनमोहन सिंह का भी अंतिम संस्कार किया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉ मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देने उनके आवास पहुंचे। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा दिल्ली में दिवंगत पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह के आवास पर पहुंचे।कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मनमोहन सिंह के आवास पर पहुंचीं और उन्हें श्रद्धांजलि पेश की।

मोदी ने मनमोहन सिंह के निधन पर जारी किया वीडियो संदेश

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो संदेश जारी किया है। उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, “मनमोहन जी के निधन से सभी के ह्रदय को गहरी पीड़ा पहुंचाया है। एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है। विभाजन के उस दौर में बहुत कुछ खोकर भारत आना और यहां जीवन के हर क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त करना सामान्य बात नहीं है। अभावों से ऊपर उठकर कैसे ऊंचाइयों को हासिल किया जा सकता है यह उनका जीवन नयी पीढ़ी को सिखाता रहेगा। एक अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने अलग अलग स्तर पर योगदान दिया। जनता के प्रति देश के विकास के प्रति उनका जो कमिटमेंट था उसे हमेशा बहुत सम्मान से देखा जाएगा। मनमोहन सिंह जी का जीवन उनकी ईमानदारी और साधगी का प्रतिबिम्ब था। उनकी विनम्रता, सौम्यता, बौद्धिकता उनके संसदीय जीवन की पहचान बनी।”

इजराइली हमले में बाल-बाल बचे WHO के चीफ, यमन में विमान में सवार होते समय हुई बमबारी
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* विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) के डायरेक्टर-जनरल टेड्रोस एडनॉम, गुरुवार को यमन के सना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इजरायल की एयरस्ट्राइक में बाल-बाल बच गए। इस हमले में करीब दो लोगों की मौत की खबर सामने आई है। ये हमला ऐसे समय पर हुआ जब वे विमान में सवार हो रहे थे। यमन-सीरिया इस समय जबरदस्‍त बमबारी झेल रहे हैं। यहां के हालात बहुत खराब हैं और यह रहे लोगों के साथ-साथ बंदियों की स्थिति का जायजा लेने डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस यमन गए थे। डब्ल्यूएचओ प्रमुक टेड्रोस ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि हमारी टीम यमन में स्वास्थ्य और मानवीय स्थिति का आकलन करने और बंदियों की रिहाई के लिए बातचीत करने का मिशन पूरा कर चुकी थी। हम सना से उड़ान भरने वाले थे, जब हवाई अड्डे पर बमबारी हुई। उन्होंने कहा कि हमारे विमान के चालक दल के एक सदस्य को चोट लगी। साथ ही हवाई अड्डे पर दो लोगों की मौत हुई है और कई अन्य स्थानों को भी नुकसान हुआ है। हम हवाई अड्डे की मरम्मत का इंतजार कर रहे हैं ताकि हम आगे की यात्रा कर सकें। इसके साथ ही उन्होंने उन परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की जिनके प्रियजनों ने इस हमले में अपनी जान गंवाई। इजराइली वायु सेना यमन पर खूब बम बरसा रही है. इजराइल ने ने पश्चिमी तट और यमन के अंदरूनी हिस्सों में हूती सैन्य ठिकानों पर हमले किए। इजराइल रक्षा बल (आईडीएफ) ने बताया कि ये हमले प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और जनरल स्टाफ के प्रमुख की मंजूरी से किए गए थे ।इन हमलों में प्रमुख तौर पर हूती सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया गया। इसमें सना का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शामिल है, जहां से डब्‍ल्‍यूएचओ चीफ उड़ान भर रहे थे
भारत-चीन के बीच बॉर्डर पर क्या चल रहा है, स्थिति क्यों संवेदनशील?*
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भारत और चीन की सरकारों के बीच हाल-फ़िलहाल में कई उच्च स्तरीय मुलाक़ातें हुई हैं। इसके जरिए दोनों देशों के रिश्ते में साल 2020 से आए तनाव को कम करने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। हालांकि, सवाल फिर भी बरकरार है। सवाल है, जहाँ से इस तनाव की शुरुआत हुई थी, यानी दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल- एलएसी), वहाँ अभी क्या हो रहा है? विषम परिस्थितियों में सेना की तैनाती अप्रैल 2020 के बाद से अब भी बदस्तूर बनी हुई है। तनाव कम हुआ लेकिन तैनाती अब भी जारी है।भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भी इस मसले पर कहा कि वहां पर स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है। गुरुवार को चीन के रक्षा मंत्रालय ने कल कहा कि भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को खत्म करने के लिए हुए समझौते को “व्यापक और प्रभावी ढंग से” लागू कर रही हैं और इस संबंध में “स्थिर प्रगति” हुई है। चीनी रक्षा प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल झांग शियाओगांग ने 18 दिसंबर को विशेष प्रतिनिधियों के साथ हुई वार्ता पर एक सवाल का जवाब देते हुए बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “वर्तमान में, भारत और चीन की सेनाएं दोनों पक्षों के बीच बॉर्डर से संबंधित समाधानों को व्यापक और प्रभावी ढंग से लागू कर रही हैं और इस संबंध में स्थिर प्रगति हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के दिनों में, दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सहमति के आधार पर, भारत और चीन ने कूटनीतिक तथा सैन्य चैनलों के जरिए बॉर्डर की स्थिति पर करीबी संवाद बनाए रखा और बड़ी प्रगति हासिल की है। कर्नल झांग ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को सही रास्ते पर लाना दोनों देशों और दोनों लोगों के मौलिक हितों की पूर्ति करता है। उन्होंने आगे कहा, “चीनी सेना दोनों नेताओं के बीच बनी अहम सहमति को ईमानदारी से लागू करने, अधिक आदान-प्रदान, बातचीत करने और बॉर्डर क्षेत्र में संयुक्त रूप से स्थायी शांति तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए भारत-चीन सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पक्ष के साथ ठोस प्रयास करने के लिए तैयार है।” वहीं भारत रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समग्र स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है, “समान और पारस्परिक सुरक्षा” के सिद्धांतों के आधार पर जमीनी स्थिति को बहाल करने के लिए आपस में व्यापक तौर पर सहमति बनी है। मंत्रालय की ओर से यह बयान पूर्वी लद्दाख में पिछले दो टकराव बिंदुओं से भारतीय और चीनी सेनाओं के पीछे हटने के कुछ हफ्ते बाद दिया गया है। दोनों देशे के बीच अब तक 38 बैठकें हुई 18 दिसंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन की राजधानी बीजिंग में वहाँ के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की थी। साल 2020 में जब से लद्दाख़ में भारत और चीन के बीच रिश्ते बिगड़े, तब से अब जाकर इस स्तर पर पहली बार बातचीत हुई है। इस मुलाक़ात के पहले कई और अहम मुलाक़ातें भी हुई हैं। जैसे, इस साल 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई थी। यह पाँच साल में दोनों के बीच की पहली द्विपक्षीय मुलाकात थी। इसके अलावा दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच कई बैठकें हुई हैं। आँकड़े यह भी बताते हैं कि जून 2020 के बाद से दोनों देशों के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के बीच अब तक 38 बैठकें हुई हैं। *'बफ़र ज़ोन' के इलाक़ों में अब भी स्थिति पहले जैसी* दरअसल विवाद पूर्वी लद्दाख़ के कई सीमावर्ती इलाक़ों से जुड़ा था। जहाँ डेपसांग और डेमचोक पर सहमति इस साल अक्तूबर में बनी, वहीं सितंबर 2022 में हॉट स्प्रिंग्स से दोनों सेनाएँ पीछे हट गई थीं। उसके पहले साल 2021 में गोगरा और पैंगोंग झील पर सहमति बनी थी। साल 2020 के जुलाई महीने में सबसे पहले गलवान घाटी में दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को पीछे हटाया था। अगर डेपसांग और डेमचोक को छोड़ दें तो इस सहमति के तहत बाक़ी कई इलाक़ों में 'बफ़र ज़ोन' का निर्माण किया गया। 'बफ़र ज़ोन' यानी जहाँ दोनों सेनाएँ पहले आमने-सामने थीं और फिर पीछे हटीं। उसी जगह पर ऐसे इलाक़े तय हुए, जहाँ दोनों सेनाओं को घुसने का अधिकार नहीं है। सरकार ने बताया है कि अब डेपसांग और डेमचोक में सेना द्वारा पहले की तरह पेट्रोलिंग और चरवाहों के लिए आने-जाने की अनुमति पर चीन के साथ सहमति बनी है। लेकिन 'बफ़र ज़ोन' के इलाक़ों में अब भी स्थिति पहले जैसी यानी साल 2020 के पहले जैसी नहीं बन पायी है। *कांग्रेस सांसद ने भी सरकार से पूछे सवाल* इस मामले पर कांग्रेस के नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने हाल ही में सरकार से पूछा है कि क्या 'बफ़र ज़ोन' के ज़रिए भारत को अपने ही इलाक़े से पीछे करने का काम हो रहा है? *अमेरिका ने भी सवाल उठाए* वहीं, अमेरिका के रक्षा मंत्रालय की हाल ही में एक रिपोर्ट आई है। इसमें बताया गया है कि साल 2020 के बाद लद्दाख़ के इलाके़ में चीन ने न तो अपने मोर्चे ही कम किए हैं और न ही सैनिकों की तादाद को कम किया है। और तो और चीन ने अपने सैनिकों के लिए इस इलाक़े में मूलभूत सुविधाओं को मज़बूत किया है।
मनमोहन स‍िंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी, देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में निभाई अहम भूमिका

#manmohan_singh_mortgage_gold_when_the_treasury_was_empty_after_becoming_finance_minister 

देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वह 92 साल के थे और उन्होंने गुरुवार रात एम्स में अंतिम सांस ली। देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में मनमोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐसा बजट पेश किया था जिसने हमेशा के लिए देश की दिशा और दशा को बदल दिया था।

साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन स‍िंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब मनमोहन स‍िंह ने व‍ित्‍त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थ‍िक संकट से गुजर रहा था। देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की व‍िदेशी मुद्रा रह गई थी। इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था। ऐसे समय में व‍ित्‍त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन स‍िंह ने अपने फैसलों से आर्थ‍िक मोर्चे पर देश को मजबूत क‍िया।

तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठ‍िन आर्थ‍िक पर‍िस्‍थ‍ित‍ि में होने के दौरान काफी उम्‍मीद के साथ मनमोहन सिंह को व‍ित्‍त मंत्रालय की जि‍म्‍मेदारी सौंपी थी। इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन स‍िंह को व‍ित्‍त मंत्री बनाया था। ज‍िस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का व‍िदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्‍हें कई कठोर फैसले लेने पड़े। उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के ल‍िए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण को शुरू क‍िया और मुश्‍क‍िल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर न‍िकालने में कामयाब हुए।

साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले नरसिंह राव को कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने एक नोट दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 20 जून, 1991 की शाम नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले और उन्हें 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया। इस नोट किन कामों को प्रधानमंत्री को तुरंत तवज्जो देनी चाहिए, उनका जिक्र था। जब राव ने वो नोट पढ़ा तो हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने चंद्र से पूछा-.'क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है ?' चंद्रा का जवाब था, 'नहीं सर, वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।' उस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब थी कि वो अगस्त, 1990 तक यह 3 अरब 11 करोड़ डॉलर ही रह गया था।जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी जिससे महज दो सप्ताह के आयात का खर्चा ही जुटाया जा सकता था। 1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धि हुई थी। कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत को अपने हज़ारों मज़दूरों को वापस भारत लाना पड़ा थ। नतीजा ये हुआ था कि उनकी ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह से रुक गई थी। ऊपर से भारत की राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ उभरा जन आक्रोश अर्थव्यवस्था को कमजोर किए जा रहा था। देश को इस कठिन हालात से बाहर लाने के लिए उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था।

डॉ. सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐतिहासिक बजट को पेश करते हुए फ्रांसीसी विद्वान विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो। उससे पहले भारत की क्लोज इकॉनमी में सरकार ही सब कुछ तय करती थी। किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी, सब सरकार तय करती है। इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज कहा जाता था।

1991 के बजट ने लाइसेंस परमिट राज से देश को मुक्ति दिला दी। देश में खुली अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ हुआ। इसमें प्राइवेट कंपनियों को कई तरह की छूट और प्रोत्साहन दिए गए। सरकारी निवेश कम करने और खुले बाजार को बढ़ावा देने का फैसला किया गया। इस बजट ने देश की तस्वीर बदलकर रख दी। कंपनियां फलने-फूलने लगीं और करोड़ों नई नौकरियां मार्केट में आईं। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनकर उभरा है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देश जहां मंदी की आशंका में जी रहे हैं, वहीं भारत की इकॉनमी तेजी से आगे बढ़ रही है।

मनमोहन स‍िंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी, देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में निभाई अहम भूमिका*
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देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वह 92 साल के थे और उन्होंने गुरुवार रात एम्स में अंतिम सांस ली। देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में मनमोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐसा बजट पेश किया था जिसने हमेशा के लिए देश की दिशा और दशा को बदल दिया था। साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन स‍िंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब मनमोहन स‍िंह ने व‍ित्‍त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थ‍िक संकट से गुजर रहा था। देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की व‍िदेशी मुद्रा रह गई थी। इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था। ऐसे समय में व‍ित्‍त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन स‍िंह ने अपने फैसलों से आर्थ‍िक मोर्चे पर देश को मजबूत क‍िया। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठ‍िन आर्थ‍िक पर‍िस्‍थ‍ित‍ि में होने के दौरान काफी उम्‍मीद के साथ मनमोहन सिंह को व‍ित्‍त मंत्रालय की जि‍म्‍मेदारी सौंपी थी। इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन स‍िंह को व‍ित्‍त मंत्री बनाया था। ज‍िस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का व‍िदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्‍हें कई कठोर फैसले लेने पड़े। उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के ल‍िए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण को शुरू क‍िया और मुश्‍क‍िल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर न‍िकालने में कामयाब हुए। साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले नरसिंह राव को कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने एक नोट दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 20 जून, 1991 की शाम नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले और उन्हें 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया। इस नोट किन कामों को प्रधानमंत्री को तुरंत तवज्जो देनी चाहिए, उनका जिक्र था। जब राव ने वो नोट पढ़ा तो हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने चंद्र से पूछा-.'क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है ?' चंद्रा का जवाब था, 'नहीं सर, वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।' उस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब थी कि वो अगस्त, 1990 तक यह 3 अरब 11 करोड़ डॉलर ही रह गया था।जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी जिससे महज दो सप्ताह के आयात का खर्चा ही जुटाया जा सकता था। 1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धि हुई थी। कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत को अपने हज़ारों मज़दूरों को वापस भारत लाना पड़ा थ। नतीजा ये हुआ था कि उनकी ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह से रुक गई थी। ऊपर से भारत की राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ उभरा जन आक्रोश अर्थव्यवस्था को कमजोर किए जा रहा था। देश को इस कठिन हालात से बाहर लाने के लिए उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था। डॉ. सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐतिहासिक बजट को पेश करते हुए फ्रांसीसी विद्वान विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो। उससे पहले भारत की क्लोज इकॉनमी में सरकार ही सब कुछ तय करती थी। किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी, सब सरकार तय करती है। इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज कहा जाता था। 1991 के बजट ने लाइसेंस परमिट राज से देश को मुक्ति दिला दी। देश में खुली अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ हुआ। इसमें प्राइवेट कंपनियों को कई तरह की छूट और प्रोत्साहन दिए गए। सरकारी निवेश कम करने और खुले बाजार को बढ़ावा देने का फैसला किया गया। इस बजट ने देश की तस्वीर बदलकर रख दी। कंपनियां फलने-फूलने लगीं और करोड़ों नई नौकरियां मार्केट में आईं। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनकर उभरा है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देश जहां मंदी की आशंका में जी रहे हैं, वहीं भारत की इकॉनमी तेजी से आगे बढ़ रही है।