मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी, देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में निभाई अहम भूमिका
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देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वह 92 साल के थे और उन्होंने गुरुवार रात एम्स में अंतिम सांस ली। देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में मनमोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐसा बजट पेश किया था जिसने हमेशा के लिए देश की दिशा और दशा को बदल दिया था।
साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी। इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था। ऐसे समय में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन सिंह ने अपने फैसलों से आर्थिक मोर्चे पर देश को मजबूत किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठिन आर्थिक परिस्थिति में होने के दौरान काफी उम्मीद के साथ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी। इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया था। जिस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्हें कई कठोर फैसले लेने पड़े। उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के लिए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण को शुरू किया और मुश्किल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने में कामयाब हुए।
साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले नरसिंह राव को कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने एक नोट दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 20 जून, 1991 की शाम नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले और उन्हें 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया। इस नोट किन कामों को प्रधानमंत्री को तुरंत तवज्जो देनी चाहिए, उनका जिक्र था। जब राव ने वो नोट पढ़ा तो हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने चंद्र से पूछा-.'क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है ?' चंद्रा का जवाब था, 'नहीं सर, वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।' उस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब थी कि वो अगस्त, 1990 तक यह 3 अरब 11 करोड़ डॉलर ही रह गया था।जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी जिससे महज दो सप्ताह के आयात का खर्चा ही जुटाया जा सकता था। 1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धि हुई थी। कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत को अपने हज़ारों मज़दूरों को वापस भारत लाना पड़ा थ। नतीजा ये हुआ था कि उनकी ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह से रुक गई थी। ऊपर से भारत की राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ उभरा जन आक्रोश अर्थव्यवस्था को कमजोर किए जा रहा था। देश को इस कठिन हालात से बाहर लाने के लिए उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था।
डॉ. सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐतिहासिक बजट को पेश करते हुए फ्रांसीसी विद्वान विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो। उससे पहले भारत की क्लोज इकॉनमी में सरकार ही सब कुछ तय करती थी। किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी, सब सरकार तय करती है। इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज कहा जाता था।
1991 के बजट ने लाइसेंस परमिट राज से देश को मुक्ति दिला दी। देश में खुली अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ हुआ। इसमें प्राइवेट कंपनियों को कई तरह की छूट और प्रोत्साहन दिए गए। सरकारी निवेश कम करने और खुले बाजार को बढ़ावा देने का फैसला किया गया। इस बजट ने देश की तस्वीर बदलकर रख दी। कंपनियां फलने-फूलने लगीं और करोड़ों नई नौकरियां मार्केट में आईं। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनकर उभरा है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देश जहां मंदी की आशंका में जी रहे हैं, वहीं भारत की इकॉनमी तेजी से आगे बढ़ रही है।
Dec 27 2024, 11:55