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मेरी गड्डी तो यह है…”जब मारुति-800 को निहारे हुए कहते थे मनमोहन सिंह, 3 साल बॉडीगार्ड रहे यूपी के मंत्री ने शेयर की यादें

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में 26 दिसंबर 2024 को दिल्ली स्थित एम्स में निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनसे जुड़े तमाम किस्से और कहानियां लोग याद कर रहे हैं। इसी कड़ी में योगी सरकार में मंत्री और पूर्व पुलिस अधिकारी असीम अरुण ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर उनसे जुड़ी यादों को साझा किया है। अरुण असीम एक जमाने में मनमोहन सिंह की एसपीजी टीम में बॉडीगॉर्ड थे। असीम अरुण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सिक्योरिटी चीफ रह चुके हैं। वह 2004 से 2008 के बीच उनकी 22 लोगों की कमांडो टीम का हिस्सा थे। उन्होंने उस दौरान का एक किस्सा बताया है।

योगी सरकार में मंत्री असीम अरुण ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि मैं 2004 से लगभग तीन साल उनका बॉडी गार्ड रहा। उन्होंने बताया कि एसपीजी में प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सबसे अंदरुनी घेरा होता है – क्लोज प्रोटेक्शन टीम जिसका नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला था। एआईजी सीपीटी वो व्यक्ति है जो पीएम से कभी भी दूर नहीं रह सकता। अगर एक ही बॉडी गार्ड रह सकता है तो साथ यह बंदा होगा। ऐसे में उनके साथ उनकी परछाई की तरह साथ रहने की जिम्मेदारी मेरी थी।

उन्होंने आगे लिखा, 'डॉ साहब की अपनी एक ही कार थी - मारुति 800, जो पीएम हाउस में चमचमाती काली बीएमडब्ल्यू के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह जी बार-बार मुझे कहते- असीम, मुझे इस कार में चलना पसंद नहीं, मेरी गड्डी तो यह है (मारुति)। मैं समझाता कि सर यह गाड़ी आपके ऐश्वर्य के लिए नहीं है, इसके सिक्योरिटी फीचर्स ऐसे हैं जिसके लिए एसपीजी ने इसे लिया है। लेकिन जब कारकेड मारुति के सामने से निकलता तो वे हमेशा मन भर उसे देखते। जैसे संकल्प दोहरा रहे हो कि मैं मिडिल क्लास व्यक्ति हूं और आम आदमी की चिंता करना मेरा काम है। करोड़ों की गाड़ी पीएम की है, मेरी तो यह मारुति है।

बता दें कि असीम अरुण एनएसजी से ब्लैक कैट कमांडो ट्रेनिंग पाने वाले पहले आईपीएस अधिकारी 2004 में बने। वे अब योगी सरकार में मंत्री भी हैं।

पीएम मोदी ने मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि दी, सोनिया गांधी भी पहुंची पूर्व पीएम के आवास

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दो बार प्रधानमंत्री रहे और 1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों के निर्माता डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में गुरुवार को निधन हो गया। गंभीर हालत में उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराए जाने के कुछ ही देर बाद अस्पताल ने उनके निधन की खबर दी। कांग्रेस सूत्रो के अनुसार आज देर रात 1 बजे , मनमोहन सिंह की बेटी अमेरिका से लौटेगी। जिसके बाद कल यानी शनिवार को राजघाट के पास जहां प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार होते हैं वहीं डॉ मनमोहन सिंह का भी अंतिम संस्कार किया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉ मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देने उनके आवास पहुंचे। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा दिल्ली में दिवंगत पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह के आवास पर पहुंचे।कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मनमोहन सिंह के आवास पर पहुंचीं और उन्हें श्रद्धांजलि पेश की।

मोदी ने मनमोहन सिंह के निधन पर जारी किया वीडियो संदेश

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो संदेश जारी किया है। उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, “मनमोहन जी के निधन से सभी के ह्रदय को गहरी पीड़ा पहुंचाया है। एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है। विभाजन के उस दौर में बहुत कुछ खोकर भारत आना और यहां जीवन के हर क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त करना सामान्य बात नहीं है। अभावों से ऊपर उठकर कैसे ऊंचाइयों को हासिल किया जा सकता है यह उनका जीवन नयी पीढ़ी को सिखाता रहेगा। एक अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने अलग अलग स्तर पर योगदान दिया। जनता के प्रति देश के विकास के प्रति उनका जो कमिटमेंट था उसे हमेशा बहुत सम्मान से देखा जाएगा। मनमोहन सिंह जी का जीवन उनकी ईमानदारी और साधगी का प्रतिबिम्ब था। उनकी विनम्रता, सौम्यता, बौद्धिकता उनके संसदीय जीवन की पहचान बनी।”

इजराइली हमले में बाल-बाल बचे WHO के चीफ, यमन में विमान में सवार होते समय हुई बमबारी
#who_chief_tedros_ghebreyesus_narrowly_escaped_in_sanaa_airport_attack
* विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) के डायरेक्टर-जनरल टेड्रोस एडनॉम, गुरुवार को यमन के सना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इजरायल की एयरस्ट्राइक में बाल-बाल बच गए। इस हमले में करीब दो लोगों की मौत की खबर सामने आई है। ये हमला ऐसे समय पर हुआ जब वे विमान में सवार हो रहे थे। यमन-सीरिया इस समय जबरदस्‍त बमबारी झेल रहे हैं। यहां के हालात बहुत खराब हैं और यह रहे लोगों के साथ-साथ बंदियों की स्थिति का जायजा लेने डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस यमन गए थे। डब्ल्यूएचओ प्रमुक टेड्रोस ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि हमारी टीम यमन में स्वास्थ्य और मानवीय स्थिति का आकलन करने और बंदियों की रिहाई के लिए बातचीत करने का मिशन पूरा कर चुकी थी। हम सना से उड़ान भरने वाले थे, जब हवाई अड्डे पर बमबारी हुई। उन्होंने कहा कि हमारे विमान के चालक दल के एक सदस्य को चोट लगी। साथ ही हवाई अड्डे पर दो लोगों की मौत हुई है और कई अन्य स्थानों को भी नुकसान हुआ है। हम हवाई अड्डे की मरम्मत का इंतजार कर रहे हैं ताकि हम आगे की यात्रा कर सकें। इसके साथ ही उन्होंने उन परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की जिनके प्रियजनों ने इस हमले में अपनी जान गंवाई। इजराइली वायु सेना यमन पर खूब बम बरसा रही है. इजराइल ने ने पश्चिमी तट और यमन के अंदरूनी हिस्सों में हूती सैन्य ठिकानों पर हमले किए। इजराइल रक्षा बल (आईडीएफ) ने बताया कि ये हमले प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और जनरल स्टाफ के प्रमुख की मंजूरी से किए गए थे ।इन हमलों में प्रमुख तौर पर हूती सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया गया। इसमें सना का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शामिल है, जहां से डब्‍ल्‍यूएचओ चीफ उड़ान भर रहे थे
भारत-चीन के बीच बॉर्डर पर क्या चल रहा है, स्थिति क्यों संवेदनशील?*
#india_china_lac_situation_stable_but_sensitive
भारत और चीन की सरकारों के बीच हाल-फ़िलहाल में कई उच्च स्तरीय मुलाक़ातें हुई हैं। इसके जरिए दोनों देशों के रिश्ते में साल 2020 से आए तनाव को कम करने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। हालांकि, सवाल फिर भी बरकरार है। सवाल है, जहाँ से इस तनाव की शुरुआत हुई थी, यानी दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल- एलएसी), वहाँ अभी क्या हो रहा है? विषम परिस्थितियों में सेना की तैनाती अप्रैल 2020 के बाद से अब भी बदस्तूर बनी हुई है। तनाव कम हुआ लेकिन तैनाती अब भी जारी है।भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भी इस मसले पर कहा कि वहां पर स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है। गुरुवार को चीन के रक्षा मंत्रालय ने कल कहा कि भारत और चीन की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को खत्म करने के लिए हुए समझौते को “व्यापक और प्रभावी ढंग से” लागू कर रही हैं और इस संबंध में “स्थिर प्रगति” हुई है। चीनी रक्षा प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल झांग शियाओगांग ने 18 दिसंबर को विशेष प्रतिनिधियों के साथ हुई वार्ता पर एक सवाल का जवाब देते हुए बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “वर्तमान में, भारत और चीन की सेनाएं दोनों पक्षों के बीच बॉर्डर से संबंधित समाधानों को व्यापक और प्रभावी ढंग से लागू कर रही हैं और इस संबंध में स्थिर प्रगति हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के दिनों में, दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण सहमति के आधार पर, भारत और चीन ने कूटनीतिक तथा सैन्य चैनलों के जरिए बॉर्डर की स्थिति पर करीबी संवाद बनाए रखा और बड़ी प्रगति हासिल की है। कर्नल झांग ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को सही रास्ते पर लाना दोनों देशों और दोनों लोगों के मौलिक हितों की पूर्ति करता है। उन्होंने आगे कहा, “चीनी सेना दोनों नेताओं के बीच बनी अहम सहमति को ईमानदारी से लागू करने, अधिक आदान-प्रदान, बातचीत करने और बॉर्डर क्षेत्र में संयुक्त रूप से स्थायी शांति तथा सद्भाव बनाए रखने के लिए भारत-चीन सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पक्ष के साथ ठोस प्रयास करने के लिए तैयार है।” वहीं भारत रक्षा मंत्रालय ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समग्र स्थिति “स्थिर” लेकिन “संवेदनशील” है, “समान और पारस्परिक सुरक्षा” के सिद्धांतों के आधार पर जमीनी स्थिति को बहाल करने के लिए आपस में व्यापक तौर पर सहमति बनी है। मंत्रालय की ओर से यह बयान पूर्वी लद्दाख में पिछले दो टकराव बिंदुओं से भारतीय और चीनी सेनाओं के पीछे हटने के कुछ हफ्ते बाद दिया गया है। दोनों देशे के बीच अब तक 38 बैठकें हुई 18 दिसंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन की राजधानी बीजिंग में वहाँ के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की थी। साल 2020 में जब से लद्दाख़ में भारत और चीन के बीच रिश्ते बिगड़े, तब से अब जाकर इस स्तर पर पहली बार बातचीत हुई है। इस मुलाक़ात के पहले कई और अहम मुलाक़ातें भी हुई हैं। जैसे, इस साल 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई थी। यह पाँच साल में दोनों के बीच की पहली द्विपक्षीय मुलाकात थी। इसके अलावा दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच कई बैठकें हुई हैं। आँकड़े यह भी बताते हैं कि जून 2020 के बाद से दोनों देशों के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के बीच अब तक 38 बैठकें हुई हैं। *'बफ़र ज़ोन' के इलाक़ों में अब भी स्थिति पहले जैसी* दरअसल विवाद पूर्वी लद्दाख़ के कई सीमावर्ती इलाक़ों से जुड़ा था। जहाँ डेपसांग और डेमचोक पर सहमति इस साल अक्तूबर में बनी, वहीं सितंबर 2022 में हॉट स्प्रिंग्स से दोनों सेनाएँ पीछे हट गई थीं। उसके पहले साल 2021 में गोगरा और पैंगोंग झील पर सहमति बनी थी। साल 2020 के जुलाई महीने में सबसे पहले गलवान घाटी में दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को पीछे हटाया था। अगर डेपसांग और डेमचोक को छोड़ दें तो इस सहमति के तहत बाक़ी कई इलाक़ों में 'बफ़र ज़ोन' का निर्माण किया गया। 'बफ़र ज़ोन' यानी जहाँ दोनों सेनाएँ पहले आमने-सामने थीं और फिर पीछे हटीं। उसी जगह पर ऐसे इलाक़े तय हुए, जहाँ दोनों सेनाओं को घुसने का अधिकार नहीं है। सरकार ने बताया है कि अब डेपसांग और डेमचोक में सेना द्वारा पहले की तरह पेट्रोलिंग और चरवाहों के लिए आने-जाने की अनुमति पर चीन के साथ सहमति बनी है। लेकिन 'बफ़र ज़ोन' के इलाक़ों में अब भी स्थिति पहले जैसी यानी साल 2020 के पहले जैसी नहीं बन पायी है। *कांग्रेस सांसद ने भी सरकार से पूछे सवाल* इस मामले पर कांग्रेस के नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने हाल ही में सरकार से पूछा है कि क्या 'बफ़र ज़ोन' के ज़रिए भारत को अपने ही इलाक़े से पीछे करने का काम हो रहा है? *अमेरिका ने भी सवाल उठाए* वहीं, अमेरिका के रक्षा मंत्रालय की हाल ही में एक रिपोर्ट आई है। इसमें बताया गया है कि साल 2020 के बाद लद्दाख़ के इलाके़ में चीन ने न तो अपने मोर्चे ही कम किए हैं और न ही सैनिकों की तादाद को कम किया है। और तो और चीन ने अपने सैनिकों के लिए इस इलाक़े में मूलभूत सुविधाओं को मज़बूत किया है।
मनमोहन स‍िंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी, देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में निभाई अहम भूमिका

#manmohan_singh_mortgage_gold_when_the_treasury_was_empty_after_becoming_finance_minister 

देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वह 92 साल के थे और उन्होंने गुरुवार रात एम्स में अंतिम सांस ली। देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में मनमोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐसा बजट पेश किया था जिसने हमेशा के लिए देश की दिशा और दशा को बदल दिया था।

साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन स‍िंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब मनमोहन स‍िंह ने व‍ित्‍त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थ‍िक संकट से गुजर रहा था। देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की व‍िदेशी मुद्रा रह गई थी। इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था। ऐसे समय में व‍ित्‍त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन स‍िंह ने अपने फैसलों से आर्थ‍िक मोर्चे पर देश को मजबूत क‍िया।

तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठ‍िन आर्थ‍िक पर‍िस्‍थ‍ित‍ि में होने के दौरान काफी उम्‍मीद के साथ मनमोहन सिंह को व‍ित्‍त मंत्रालय की जि‍म्‍मेदारी सौंपी थी। इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन स‍िंह को व‍ित्‍त मंत्री बनाया था। ज‍िस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का व‍िदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्‍हें कई कठोर फैसले लेने पड़े। उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के ल‍िए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण को शुरू क‍िया और मुश्‍क‍िल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर न‍िकालने में कामयाब हुए।

साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले नरसिंह राव को कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने एक नोट दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 20 जून, 1991 की शाम नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले और उन्हें 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया। इस नोट किन कामों को प्रधानमंत्री को तुरंत तवज्जो देनी चाहिए, उनका जिक्र था। जब राव ने वो नोट पढ़ा तो हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने चंद्र से पूछा-.'क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है ?' चंद्रा का जवाब था, 'नहीं सर, वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।' उस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब थी कि वो अगस्त, 1990 तक यह 3 अरब 11 करोड़ डॉलर ही रह गया था।जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी जिससे महज दो सप्ताह के आयात का खर्चा ही जुटाया जा सकता था। 1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धि हुई थी। कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत को अपने हज़ारों मज़दूरों को वापस भारत लाना पड़ा थ। नतीजा ये हुआ था कि उनकी ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह से रुक गई थी। ऊपर से भारत की राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ उभरा जन आक्रोश अर्थव्यवस्था को कमजोर किए जा रहा था। देश को इस कठिन हालात से बाहर लाने के लिए उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था।

डॉ. सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐतिहासिक बजट को पेश करते हुए फ्रांसीसी विद्वान विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो। उससे पहले भारत की क्लोज इकॉनमी में सरकार ही सब कुछ तय करती थी। किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी, सब सरकार तय करती है। इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज कहा जाता था।

1991 के बजट ने लाइसेंस परमिट राज से देश को मुक्ति दिला दी। देश में खुली अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ हुआ। इसमें प्राइवेट कंपनियों को कई तरह की छूट और प्रोत्साहन दिए गए। सरकारी निवेश कम करने और खुले बाजार को बढ़ावा देने का फैसला किया गया। इस बजट ने देश की तस्वीर बदलकर रख दी। कंपनियां फलने-फूलने लगीं और करोड़ों नई नौकरियां मार्केट में आईं। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनकर उभरा है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देश जहां मंदी की आशंका में जी रहे हैं, वहीं भारत की इकॉनमी तेजी से आगे बढ़ रही है।

मनमोहन स‍िंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी, देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में निभाई अहम भूमिका*
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देश में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। वह 92 साल के थे और उन्होंने गुरुवार रात एम्स में अंतिम सांस ली। देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने में मनमोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐसा बजट पेश किया था जिसने हमेशा के लिए देश की दिशा और दशा को बदल दिया था। साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन स‍िंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब मनमोहन स‍िंह ने व‍ित्‍त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थ‍िक संकट से गुजर रहा था। देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की व‍िदेशी मुद्रा रह गई थी। इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था। ऐसे समय में व‍ित्‍त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन स‍िंह ने अपने फैसलों से आर्थ‍िक मोर्चे पर देश को मजबूत क‍िया। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठ‍िन आर्थ‍िक पर‍िस्‍थ‍ित‍ि में होने के दौरान काफी उम्‍मीद के साथ मनमोहन सिंह को व‍ित्‍त मंत्रालय की जि‍म्‍मेदारी सौंपी थी। इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन स‍िंह को व‍ित्‍त मंत्री बनाया था। ज‍िस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का व‍िदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्‍हें कई कठोर फैसले लेने पड़े। उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के ल‍िए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण को शुरू क‍िया और मुश्‍क‍िल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर न‍िकालने में कामयाब हुए। साल 1991 में प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले नरसिंह राव को कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने एक नोट दिया था जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। 20 जून, 1991 की शाम नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले और उन्हें 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट दिया। इस नोट किन कामों को प्रधानमंत्री को तुरंत तवज्जो देनी चाहिए, उनका जिक्र था। जब राव ने वो नोट पढ़ा तो हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने चंद्र से पूछा-.'क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है ?' चंद्रा का जवाब था, 'नहीं सर, वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।' उस समय भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब थी कि वो अगस्त, 1990 तक यह 3 अरब 11 करोड़ डॉलर ही रह गया था।जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी जिससे महज दो सप्ताह के आयात का खर्चा ही जुटाया जा सकता था। 1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धि हुई थी। कुवैत पर इराक के हमले की वजह से भारत को अपने हज़ारों मज़दूरों को वापस भारत लाना पड़ा थ। नतीजा ये हुआ था कि उनकी ओर से भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह से रुक गई थी। ऊपर से भारत की राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ उभरा जन आक्रोश अर्थव्यवस्था को कमजोर किए जा रहा था। देश को इस कठिन हालात से बाहर लाने के लिए उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था। डॉ. सिंह ने 24 जुलाई 1991 को ऐतिहासिक बजट को पेश करते हुए फ्रांसीसी विद्वान विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था कि दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो। उससे पहले भारत की क्लोज इकॉनमी में सरकार ही सब कुछ तय करती थी। किस सामान का उत्पादन कितना होगा, उसे बनाने में कितने लोग काम करेंगे और उसकी कीमत क्या होगी, सब सरकार तय करती है। इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज कहा जाता था। 1991 के बजट ने लाइसेंस परमिट राज से देश को मुक्ति दिला दी। देश में खुली अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ हुआ। इसमें प्राइवेट कंपनियों को कई तरह की छूट और प्रोत्साहन दिए गए। सरकारी निवेश कम करने और खुले बाजार को बढ़ावा देने का फैसला किया गया। इस बजट ने देश की तस्वीर बदलकर रख दी। कंपनियां फलने-फूलने लगीं और करोड़ों नई नौकरियां मार्केट में आईं। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनकर उभरा है। अमेरिका समेत दुनिया के कई देश जहां मंदी की आशंका में जी रहे हैं, वहीं भारत की इकॉनमी तेजी से आगे बढ़ रही है।
बांग्लादेश सचिवालय में लगी आग, तमाम दस्तावेज हुए खाक, साजिश की आशंका

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ढाका में बांग्लादेश सचिवालय की एक प्रमुख इमारत में बुधवार को भीषण आग लग गई। बताया जा रहा है कि आग से सरकारी दस्तावेज जलकर राख हो गए। ऐसी आशंका है कि सरकारी दस्तावेजों को नुकसान पहुंचाने की मंशा से ही घटना को अंजाम दिया गया है। लिहाजा इस संबंध में एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की गई है।

बांग्लादेश के सचिवालय की इमारत संख्या सात में आग गुरुवार की सुबह लगी थी। अग्निशमन सेवा के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल जाहिद कमाल ने बताया कि बिल्डिंग में तीन स्थानों पर एक साथ आग लगी। इससे अन्य मंत्रालयों को भी काम रोकना पड़ा। आग के कारण सुरक्षा एजेंसियों ने परिसर में प्रवेश पर रोक लगा दी। बिल्डिंग-सात की छठवीं, सातवीं और आठवीं मंजिल के अधिकांश कमरे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। फर्नीचर और कई दस्तावेज भी जल गए। करीब 6 घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया।

अधिकारियों के अनुसार, 9 मंजिला इमारत में 7 मंत्रालय मौजूद हैं।बिल्डिंग 7 की छठी, सातवीं और आठवीं मंजिल के अधिकांश कमरे गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गए। फर्नीचर के साथ-साथ कई दस्तावेज भी जल गए। इसके अलावा आग बुझाने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी से भी कई दस्तावेज नष्ट हो गए।

संदेह है कि इमारत में जानबूझ कर आग लगाई गई है। इसलिए मामले की जांच के लिए सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया है।स्थानीय सरकार के सलाहकार आसिफ महमूद सजीब भुइयां ने कहा, "साजिशकर्ताओं ने अपनी गतिविधि बंद नहीं की है।" उन्होंने बताया कि जो दस्तावेज क्षतिग्रस्त हुए हैं उनमें अवामी लीग शासन के दौरान लाखों डॉलर के भ्रष्टाचार के कागजात और अन्य सबूत शामिल थे। आसिफ महमूद सजीब भुइयां ने आगे कहा, "इस अपराध में शामिल लोगों को नहीं छोड़ा जाएगा।" इस घटना की जांच के लिए अधिकारियों ने सात सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति की अध्यक्षता अतिरिक्त सचिव (जिला एवं क्षेत्र प्रशासन) मोहम्मद खालिद रहीम करेंगे। जांच समिति को आग लगने के कारणों का पता लगाना होगा।

*क्या अज़रबैजान प्लेन क्रैश के पीछे रूस का हाथ? जानें क्यों उठ रही उंगलियां

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कजाकिस्तान में अकताऊ शहर के निकट अजरबैजान एयरलाइन्स का एक विमान बुधवार को क्रैश हो गया। इस हादसे में 38 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे से जुड़े वीडियो सामने आए हैं। कई तरह की अटकलें भी लग रही हैं। कई रिपोर्टों में यह दावा किया जा रहा है कि अजरबैजान एयरलाइंस का विमान, जो क्रिसमस के दिन कजाकिस्तान के अक्ताउ के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। वह बाकू से रूस के ग्रोज़्नी जाते समय रूसी मिसाइल या विमान भेदी हमले का शिकार हुआ है। कई रिपोर्ट्स में मिलिट्री एक्सपर्ट्स ने शंका जाहिर की है कि हो सकता है इस विमान को रूस ने 'गलती' से मिसाइल से उड़ा दिया हो।

हादसे के बाद बताया गया कि पक्षी के टकराने से विमान का ऑक्सीजन टैंक फट गया। मगर, अब सामने आए वीडियो में विमान के पिछले हिस्से पर छर्रे के निशान मिलने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एम्ब्रेयर 190 फ्लाइट के पिछले हिस्से पर जो निशानों दिखाए दे रहे हैं, उन्हें सोशल मीडिया पर शक की नजर से देखा जा रहा है। पहली नजर में ये निशान पक्षियों की टक्कर के नहीं लग रहे और किसी प्रकार के हमले के लग रहे हैं। बीएनओ न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, जब रूसी वायु रक्षा यूक्रेनी ड्रोन हमले का जवाब दे रही थी उसी समय विमान के पायलटों ने एमरजेंसी कॉल भेजा था।

बता दें कि 25 दिसंबर को क्रिसमस के दिन बाकू से रूस जा रहा अजरबैजान एयरलाइंस का विमान कजाखस्तान के अक्ताउ के पास क्रैश हो गया था। विमान की अकताऊ से तीन किलोमीटर दूर आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी, तभी यह लैंडिंग के वक्त जमीन से टकरा गया और उसमें आग लग गई। घटना के कई वीडियो फुटेज भी सामने आए हैं, जिसमें विमान बेहद तेजी से नीचे आते देखा जा सकता है, जो समुद्री किनारे से टकराते ही आग का गोला बन जाता है और इसके बाद आसमान में काले धुएं का गुबार दिखाई देने लगता है। घायल और खून से लथपथ यात्रियों को दुर्घटना में सही बचे विमान के पिछले हिस्से से निकलते देखा जा सकता है। इस भयानक हादसे में विमान में सवार 67 लोगों में से 38 यात्रियों की जान चली गई।

महाराष्ट्र में कांग्रेस को अपनों का झटका, ईवीएम के मुद्दे पर शरद पवार ने छोड़ा “हाथ”

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विपक्षी दलों के गठबंधन “इंडिया” बिखरता दिख रहा है। सबकी डफली अलग-अलग राग निकाल रही है। लोकसभा और महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विपक्षी दलों ने ईवीएम पर सवालों की छड़ी लगा दी। विपक्षी दल लगभग हर दिन ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाकर बीजेपी को घेरते रहे। हालांकि, इन सबके बीच शरद पवार की एनसीपी (एसपी) ने ईवीएम के मुद्दे पर अपने सहयोगियों से अलग रुख अपनाया है। एनसीपी (एसपी) का विरोधाभास इंडिया गठबंधन में खटास पैदा करने का संकेत देता है।

वरिष्ठ नेता शरद पवार की बेटी व बारामती से सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि बिना किसी पुख्ता सबूत के हार के लिए ईवीएम को दोष देना सही नहीं है। एनसीपी (एसपी) नेता सुले ने बुधवार को पुणे में मीडिया से बात करते हुए कहा, जब तक ईवीएम में छेड़छाड़ के ठोस सबूत नहीं मिलते, तब तक ईवीएम को दोष देना गलत है। ईवीएम के खिलाफ कोई भी आरोप तभी उचित हो सकते हैं जब उसके बारे में ठोस और विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध हों। मैं खुद ईवीएम से चार बार चुनाव जीत चुकी हूं।

ईवीएम पर सवाल उठाने वालों से असहमती जताते हुए सुप्रिया सुले कहा कि ओडिशा के बीजू जनता दल (बीजेडी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों को साबित करने के लिए डेटा होने का दावा किया है। सुले ने दावा किया कि बीजेडी के नेता अमर पटनायक ने मंगलवार को उन्हें एक पत्र लिखा था, जिसमें ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ कुछ डेटा साझा किया गया था। हालांकि इस डेटा के बारे में पत्र में विस्तार से जानकारी नहीं दी गई थी।

बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर बीजद के अमर पटनायक तक ने एनसीपी शरद गुट से समर्थन मांगा है। हालांकि, सुप्रिया सुले ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी इन मुद्दों पर ध्यान दे रही है लेकिन बिना सबूत किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगी। फिलहाल यह राहुल के लिए एक झटका तो जरूर ही माना जा रहा है।

दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस और शिवसेना उद्धव गुट ने ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया था। कांग्रेस ने इसे लेकर चुनाव आयोग का दरवाजा भी खटखटाया। इसी बीच, सोलापुर जिले के मालसिराज विधानसभा क्षेत्र में एनसीपी शरद गुट के नेता उत्तमराव जांकर ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की थी। हालांकि प्रशासन ने इसे खारिज कर दिया।

इस बीच एनसीपी शरद गुट की अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने कहा दिया है कि उनके हिसाब से ईवीएम को ब्लैम करना गलत है। बारामती से सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया के इस बयान से महाराष्ट्र में विपक्ष की आवाज कमजोर पड़ गई है।

शांति ड्रैगन की फितरत नहीं! अब ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान, भारत के लिए हो सकता है खतरनाक

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चीन दुनिया का सबसे विशालकाय बांध बनाने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि वह तिब्‍बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्‍सांगपो पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। तिब्बत से निकलते ही यारलुंग जांग्बो नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिण में भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य से होती हुई बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन पहले ही इस नदी के ऊपरी तल में हाइड्रोपावर जेनरेशन की शुरुआत कर चुका है, जो कि तिब्बत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट चीन के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के कार्बन पीकिंग और कार्बन न्यूट्रैलिटी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ साथ इंजीनियरिंग जैसी इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने और तिब्बत में नौकरियों के अवसर पैदा करने में यह प्रोजेक्ट मदद करेगा। यारलुंग जांग्बो का एक भाग 50 किमी (31 मील) की छोटी सी दूरी में 2,000 मीटर (6,561 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशाल हाइड्रोपावर क्षमता के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए कठिन चुनौतियां भी पेश करता है।

भारत के लिए कैसे खतरनाक

चीन तिब्बत की जिस लंबी नदी को यारलुंग त्सांगपो नदी कहता है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस विशालकाय बांध को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कभी भी बाढ़ ला सकता है। लगभग 2900 किमी लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। जो कि तिब्बत में धरती की सबसे गहरी खाई बनाती है। जिसे तिब्बती बौद्ध भिक्षु बहुत पवित्र मानते हैं।

धरती की स्‍पीड को प्रभावित कर रहा चीन का बांध

वहीं अभी बिजली पैदा करने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बांध कहे जाने वाला चीन थ्री जॉर्ज हर साल 88.2 अरब किलोवाट घंटे बिजली पैदा करता है। चीन के हुबई प्रांत में स्थित थ्री जॉर्ज बांध यांगजी नदी पर बनाया गया है।थ्री जॉर्ज बांध में 40 अरब क्‍यूबिक मीटर पानी है और यह धरती की घूमने की रफ्तार को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ रहा है। इससे दुनियाभर के वैज्ञानिक काफी चिंत‍ित हैं। इस बांध को सबसे पहले साल 1919 में चीन के पहले राष्‍ट्रपति सुन यात सेन ने बनाने का प्रस्‍ताव दिया था। उन्‍होंने कहा था कि इससे जहां बाढ़ में कमी आएगी, वहीं दुनिया के सामने यह चीन के ताकत का प्रतीक बनेगा। चीन अब तिब्‍बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर नया विशालकाय बांध बनाने जा रहा है।