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महाराष्ट्र में बीजेपी की 'अप्रत्याशित' जीत, राष्ट्रीय राजनीति पर क्या होगा असर?

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“मोदी का मौजिक खत्म हो गया है”, “बीजेपी के बूरे दिन शुरू हो गए है।” इस साल जून में जब लोकसभा तुनाव के परिणाम आए तो इसी तरह की बातें शुरू हो गई थी। लोकसभा चुनावों में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा यूपी और महाराष्ट्र ने ही निराश किया था। लेकिन, मई में हुए लोकसभा तुनाव के बाद हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बातें पूरी तरह से बकवास साबित हुई। उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को हासिल हुई सीटों ने तो सारे भ्रम को तोड़ कर रख दिया है। बीजेपी पीएम मोदी की राजनीति पर महाराष्ट्र के वोटरों ने एक बार फिर से जो मुहर लगाई है, उसका असर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।

लोकसभा चुनाव परिणाम भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए एक झटके की तरह देखा गया था क्योंकि इससे एनडीए के घटक दलों का महत्व बढ़ गया था। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 240 सीटों पर जीत हासिल की थी और उसके नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी। हालांकि, एनडीए ने सर्वसम्मति से नरेन्द्र मोदी को अपना नेता चुना था, लेकिन एक बात साफ थी कि पीएम मोदी पहले अपने दो कार्यकाल की तरह फैसले लेने से परहेज करेंगे।

सहयोगी दलों की स्थिति भी होगी कमजोर

यही नहीं, महाराष्ट्र में भाजपा की इस जीत से एनडीए के भीतर पार्टी का दबदबा और मजबूत होगा और सहयोगी पार्टियां का दखल अब कमजोर होता दिखाई देगा। क्योंकि अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव है और भाजपा यहां भी नीतीश कुमार के साथ सीटों की साझेदारी में मन मुताबिक़ डील कर सकती है। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे भले केंद्र में मोदी सरकार चल रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को मिल रही लगातार जीत से समीकरण बदलेगा। ऐसे में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार से अब बहुत तोलमोल नहीं कर पाएंगे। बीजेपी का मज़बूत होना न केवल विपक्षी पार्टियों के लिए निराशाजनक है, बल्कि एनडीए के भीतर भी सहयोगी दलों को लिए बहुत अच्छी स्थिति नहीं होगी।

प्रधानमंत्री मोदी अब होंगे और मजबूत

इससे पहले साल 2014 और 2019 में भाजपा ने केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इस बार बहुमत नहीं मिलने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता से जोड़ा गया था, लेकिन हरियाणा में जीत, जम्मू-कश्मीर में अच्छे प्रदर्शन के बाद महाराष्ट्र की जीत ने एक बार फिर से पीएम मोदी की लोकप्रियता पर लग रहे प्रश्न चिह्न को खत्म कर दिया है। महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे अधिक 149 सीटों पर चुनाव लड़ी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने मोदी की लोकप्रियता और नीतियों के अधार पर ही चुनाव लड़ा। ऐसे में महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत को मोदी की जीत बताया जा रहा है। ऐसे में भाजपा के अंदर अब मोदी का रुतबा और मजबूत होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद मोदी की लोकप्रियता पर सवाल खड़े होने लगे थे। ऐसे में कहा कि जा सकता है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता वैसी ही बनी है।

कोर एजेंडे को फिर से पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाएगी

प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र में भारी जीत के बाद नई दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में जो भाषण दिया, उसमें इस बात के कई संकेत दिखे हैं कि आने वाले दिनों में भाजपा सरकार अपने उस कोर एजेंडे को फिर से पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ा सकेगी, जिसमें लोकसभा चुनावों के बाद एक हिचकिचाहट सी महसूस होने लगी थी। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने जो कुछ कहा है, उससे स्पष्ट होता है कि उनकी सरकार का फोकस विकास पर और बढ़ेगा, जिसके आधार में हिंदुत्व का प्रभाव और भारत की प्राचीन विरासत का असर नजर आएगा। इसके साथ ही उन्होंने जो कुछ कहा है कि उससे लगता है कि केंद्र सरकार अब यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और वन नेशन, वन इलेक्शन के अपने इरादे को और ज्यादा हौसले के साथ आगे बढ़ाएगी।

कांग्रेस की कमजोरी फिर सामने

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव केवल बीजेपी के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी काफी अहम है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 साल के बाद सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने 2024 के आम चुनाव में 99 सीट जीते थे। जिसके बाद से कांग्रेस के नई ऊर्जा के साथ बढ़ने के संकेत मिल रहे थे। हालांकि, पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम सोचने पर मजबूर कर देंगे। एक बार फिर राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगेंगे। पार्टी को भविष्य की रणनीति पर फिर से विचार करना होगा।

शिव सेना और एनसीपी पर क्या होगा असर?

महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम केवल बीजेपी कांग्रेस के लिए ही अहम नहीं है, बल्कि ये ही शिव सेना और एनसीपी के लिए भी महत्वपूर्ण है। शिव सेना और एनसीपी दोनों बँट चुकी हैं। ऐसे में असली शिव सेना और एनसीपी पर दावेदारी मज़बूत होगी। उद्धव ठाकरे और शरद पवार की चुनौतियां बढ़ेंगी क्योंकि उन्हें ख़ुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए सोचना होगा।

महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत से हिन्दुत्व की राजनीति पर बाल ठाकरे के परिवार की दावेदारी कमज़ोर होगी। यानी महाराष्ट्र में हिन्दुत्व की राजनीति पर शिव सेना से वैसी प्रतिद्वंद्विता नहीं मिलेगी।

मणिपुर में हिंसा और प्रदर्शनों का उभार: एक गहरी संकट की ओर बढ़ता हुआ राज्य

हालिया हफ्तों में, मणिपुर हिंसा और प्रदर्शनों से जूझ रहा है, जिससे उत्तर-पूर्वी राज्य में अशांति फैल गई है। जो शुरुआत में कुछ स्थानीय संघर्षों के रूप में था, वह अब एक व्यापक संघर्ष में बदल चुका है, जिसने राज्य के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है। जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, राज्य और केंद्र सरकारों पर व्यवस्था बहाल करने और हिंसा के मूल कारणों को संबोधित करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। प्रदर्शन, जो मुख्य रूप से जातीय और राजनीतिक विभाजन से प्रेरित हैं, शुरुआत में मणिपुर के मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने की विवादास्पद मांग से उत्पन्न हुए थे। मेइती समुदाय, जो मणिपुर की जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने की मांग कर रहा है, जिससे राज्य के आदिवासी समुदायों में तीव्र विरोध उत्पन्न हुआ है।

हिंसा का फैलाव

प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गए जब मेइती समर्थकों और आदिवासी समुदायों के बीच झड़पें हुईं, जिसमें भूमि अतिक्रमण, असमान विकास और भेदभाव जैसे मुद्दों ने हिंसा को बढ़ावा दिया। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप व्यापक विनाश हुआ, जिसमें संपत्तियों को जलाना, वाहनों पर हमले और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाना शामिल था। इसके अतिरिक्त, शारीरिक हमलों, आगजनी और जातीय लक्षित हिंसा की रिपोर्ट्स में नागरिकों की हताहत होने और भय का माहौल उत्पन्न हो गया है।

मणिपुर, जो पहले से ही जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का सामना कर रहा है, में स्थिति को संभालने के लिए सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, हिंसा ने और अधिक तीव्र रूप ले लिया है और कई जिलों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आवाजाही पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।

आदिवासी अधिकारों और प्रतिनिधित्व पर प्रदर्शन

चल रहे प्रदर्शनों का मूल कारण जातीय अधिकारों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे से जुड़ा हुआ है। मेइती समुदाय, जो मुख्य रूप से इंफाल घाटी में स्थित है, यह तर्क करता है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने से वे जो सामाजिक-आर्थिक असमानताएं झेल रहे हैं, जैसे शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व, उनका समाधान हो सकेगा। हालांकि, राज्य के आदिवासी समूह, जो मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं, इस कदम को अपनी सांस्कृतिक पहचान और स्वायत्तता के लिए खतरा मानते हैं। उन्हें डर है कि इस निर्णय से मेइती समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में बस जाएंगे, जो उनके समुदायों को और अधिक हाशिए पर डाल देगा। आदिवासी समूहों का कहना है कि मेइती समुदाय को पहले से ही कई फायदे प्राप्त हैं, जैसे बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधनों तक पहुंच, और उनका मानना है कि ST का दर्जा देने से राज्य की शक्ति संरचना में असंतुलन पैदा होगा। स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा की चिंता के कारण आदिवासी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है, और वे किसी भी बदलाव का विरोध कर रहे हैं जो वर्तमान आरक्षण प्रणाली को प्रभावित कर सके।

सरकारी प्रतिक्रिया और शांति की अपील

हिंसा की बढ़ती स्थिति के मद्देनजर, राज्य और केंद्रीय सरकारों ने विभिन्न समुदायों के बीच शांति और संवाद की अपील की है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने नागरिकों से शांति बनाए रखने की अपील की है और कहा है कि हिंसा से बचने और शांति वार्ता के जरिए समाधान खोजना जरूरी है। केंद्रीय सरकार ने भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त केंद्रीय बल तैनात किए हैं और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाए हैं। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, स्थिति में तत्काल सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती। मानवाधिकार संगठनों ने सुरक्षा बलों द्वारा शक्ति के असंतुलित उपयोग और कुछ क्षेत्रों में नागरिक अधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की है। कई नागरिकों ने राजनीतिक समाधान की स्पष्ट दिशा की कमी पर नाराजगी जताई है और सरकार से अनुरोध किया है कि वह केवल कानून और व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय संघर्ष के मूल कारणों का समाधान करे।

आगे का रास्ता: एक विभाजित राज्य

मणिपुर अब हिंसक प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप एक गहरी संकट की ओर बढ़ता हुआ दिख रहा है, और यह सवाल उठता है कि कैसे जातीय विभाजन को हल किया जाएगा। राज्य की नाजुक शांति, जो दशकों से जटिल समझौतों और संतुलनों के आधार पर बनी थी, अब खतरे में पड़ सकती है। केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिए चुनौती यह होगी कि वे विभिन्न समुदायों की मांगों को संतुलित करते हुए क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करें।

आगे का रास्ता एक जटिल संतुलन की आवश्यकता होगी, जिसमें मेइती समुदाय की राजनीतिक आकांक्षाओं और आदिवासी समूहों की चिंताओं का समाधान करना होगा। संवाद, विश्वास निर्माण की प्रक्रिया और सभी समुदायों की सांस्कृतिक अखंडता और स्वायत्तता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता हिंसा को कम करने और रक्तपात को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होगी।

तब तक, मणिपुर के लोग अनिश्चितता के बीच जी रहे हैं, क्योंकि प्रदर्शनों और हिंसा ने राज्य को एक गहरे संकट के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। तत्काल राजनीतिक और मानवतावादी हस्तक्षेप की आवश्यकता अधिक से अधिक बढ़ती जा रही है, क्योंकि यह क्षेत्र पूरे उत्तर-पूर्वी भारत के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है।

महाराष्ट्र में सीएम पद को लेकर सियासी हलचल तेज, दिल्ली के लिए रवाना हुए देवेंद्र फडणवीस

डेस्क: महाराष्ट्र का नया सीएम कौन होगा, इसे लेकर सियासी हलचल तेज है। भाजपा, एनसीपी अजित गुट और शिवसेना शिंदे गुट में इसे लेकर खींचतान जारी है। हालांकि अजित पवार गुट ने देवेंद्र फडणवीस के सीएम बनने को लेकर समर्थन देने की बात कही है लेकिन शिवसेना शिंदे गुट इसे फिलहाल स्वीकार नहीं कर पा रहा है।

इस सियासी हलचल के बीच देवेंद्र फडणवीस दिल्ली रवाना हो गए हैं। जानकारी के मुताबिक मुंबई से देवेंद्र फडणवीस अपने घर से निकले और दिल्ली जाएंगे। हालांकि कहा जा रहा है कि उन्हें सुनियोजित कार्यक्रम के लिए दिल्ली जाना था। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के बेटी की शादी में शामिल होने देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जा रहे हैं। लेकिन फडणवीस दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात करेंगे।

बाबा बागेश्वर की यात्रा पर खतरा, कहा- 'हमारी सुरक्षा भले ही कम कर दें, लेकिन साथ चलने वालों का बाल बांका ना हो'

डेस्क: बाबा बागेश्वर धाम के कथावाचक पंडित धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा पर खतरे की बात सामने आई है। इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि भले ही उनकी सुरक्षा कम कर दी जाए, लेकिन उनके साथ चलने वाले लाखों लोगों का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार और पुलिस का फोन आया तो उन्हें भी खतरे का एहसास हुआ। इसके साथ ही उन्होंने अलीपुरा का नाम हरिपुरा करने की बात कही।

उत्तर प्रदेश के संभल में हुई घटना को लेकर उन्होंने कहा कि उन लोगों ने कानून हाथ में लिया। बहुत बुरा हुआ। जिनके हाथों में पत्थर थे, उन्हें जेलर के हाथों में देना चाहिए। बुलडोजर कार्रवाई को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा "आतंकी का कोई नाम नहीं होता। आतंक मतलब आतंक। इसकी कोई जाति नहीं होती। उनको सबक देना जरूरी होता है। उनको मिट्टी में मिलाना जरूरी होता है।

यूपी में धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा का बुलडोजर और राममंदिर से स्वागत हुआ। इसके लिए उन्होंने गांव वालों, उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन को धन्यवाद कहा। इंडिया टीवी से बातचीत में उन्होंने कहा "चैनल के माध्यम से निवेदन है कि हमारी सुरक्षा भले ही काम कर दी जाए, लेकिन हमारे साथ जो लाखों लोग चल रहे हैं, उनका बाल बांका ना हो, क्योंकि वह बड़ी श्रद्धा से आध्यात्मिक यात्रा में आए हैं। यह बागेश्वर का मिलन राम राजा ओरछा से हो रहा है।

पटना से एक लड़का परीक्षा छोड़कर धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा में शामिल होने आया। इस पर उन्होंने कहा कि लड़का बोला बाबा आपके चरण में चोट लगानी थी। हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए हम परीक्षा छोड़कर आ गए हैं। कह रहा है कि भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा।

मदनी ने कहा है कि मस्जिद में मंदिर नहीं देखना चाहिए। इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि मुगल अकबर, बाबर ने मंदिर में मस्जिद में बनाई। अब घर वापसी हो रही है। अब मुगलों अकबर-बाबर का साम्राज्य नहीं है। अब हिंदुत्व विचारधारा के लोग हैं, अब जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। वक्फ बोर्ड को लेकर उन्होंने कहा कि सनातन बोर्ड या तो बनना चाहिए या वक्फ बोर्ड खत्म होने चाहिए। एक देश में एक संविधान, एक कानून, एक नियम चलेगा, दस नहीं।

बेंगुलुरू में जामियाते उलेमा की बैठक में कहा गया है कि मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संसबोधन बिल पास किया तो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर जाम कर देंगे। इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा "गलत बात है, जो निर्णय सरकार ले उसे मानना चाहिए। हिन्दुओं के खिलाफ कई निर्णय हुए, हमने आतंक नहीं फैलाया। हिन्दुओं को कभी ऐसा नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार की बात करना देश के कानून के खिलाफ है।" जब धीरेंद्र शास्त्री से पूछा गया कि आपके बारे में कहा जा रहा है कि यात्रा से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा तो उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक सौहार्द इससे बनेगा। देश एक होगा और देश के टुकड़े करने वालों की रोटियां जरूर बंद हो जाएंगी। शांति बनाए रखें, कानून को काम करने दें और प्रशासन का साथ दें।

एलन मस्क ने क्यों की भारत में चुनाव की तारीफ, जानें क्या कहा?

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माइक्रा ब्‍लॉगिंग साइट के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर बिजनेस मैन एलन मस्क ने भारत की चुनाव व्यवस्था की तारीफ की है। यही नहीं मस्क ने अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल भी उठाए हैं।मस्क ने कहा है कि भारत ने एक ही दिन में 64 करोड़ वोट गिनकर चुनाव का फैसला सुना दिया। वहीं अमेरिका के कैलिफोर्निया में अभी भी 5 नवंबर को हुए चुनावों के लिए गिनती जारी है। बता दें कि भारत में 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा समेत 13 राज्यों में विधानसभा उप-चुनावों की गिनती हुई। जिसको लेकर मस्क ने ये टिप्पणी की।

एलन मस्क ने भारत के इलेक्‍शन सिस्‍टम का जिक्र अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव के दौरान कैलिफोर्निया में वोटों की गिनती 18 दिन बाद भी खत्‍म नहीं होने के संदर्भ में किया। मस्क सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट का जवाब दे रहे थे। इस न्‍यूज को शेयर करते हुए उन्‍होंने लिखा “भारत ने एक दिन में 640 मिलियन वोट कैसे गिने”। यूजर द्वारा किए गए पोस्ट के कैप्‍शन में कैलिफोर्निया के नतीजों पर कटाक्ष करते हुए लिखा गया, “इस बीच भारत में, जहां धोखाधड़ी चुनावों का प्राथमिक लक्ष्य नहीं है” पोस्ट का हवाला देते हुए, मस्क ने कहा, “भारत ने 1 दिन में 640 मिलियन वोट गिने। कैलिफोर्निया अभी भी वोटों की गिनती कर रहा है।” एलन मस्‍क ने एक्स पर एक अन्य पोस्ट का जवाब दिया जिसमें कहा गया था, “भारत ने एक ही दिन में 640 मिलियन वोटों की गिनती की। कैलिफोर्निया अभी भी 15 मिलियन वोटों की गिनती कर रहा है…18 दिन बाद।

यूएस में वोटों की गिनती में क्यों लगता है समय?

बता दें कि अमेरिका में ज्यादातर वोटिंग बैलेट पेपर या ईमेल बैलेट से होती है। 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में सिर्फ 5% क्षेत्रों में वोटिंग के लिए मशीन का उपयोग किया गया था। ऐसे में यहां काउंटिंग में काफी समय लगता है। कैलिफोर्निया अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है। यहां 3.9 करोड़ लोग रहते हैं। 5 नवंबर को हुए राष्ट्रपति चुनावों में 1.6 करोड़ लोगों ने वोट डाले थे। मतदान के दो हफ्ते बाद भी अभी तक लगभग 3 लाख वोटों की गिनती होना बाकी है। अमेरिका में हर साल वोटों की गिनती में हफ्ते लग जाते हैं।

संभल हिंसा पर राहुल से लेकर ओवैसी तक ने योगी सरकार को घेरा, जानें क्या कहा?

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संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर रविवार को हुए बवाल के बाद सूबे की राजनीति गरमा गई हैं। अब इस मामले पर सियासत शुरू हो गई है। संभल में हुई हिंसा के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी को हिंसा का जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही राहुल गांधी ने यूपी पुलिस को भी घेरा है। वहीं, संभल में हुई हिंसा को पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया और पुलिस की मंशा पर सवाल उठाया है।बता दें, संभल में हुई हिंसा के दौरान भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया था। इसके बाद स्थिति बेकाबू हो गई थी। इस बवाल में पांच लोगों की मौत की रिपोर्ट है। जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए हैं।

राहुल ने कहा- सीधी ज़िम्मेदार भाजपा सरकार

संभल की घटना पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पोस्ट करते हुए लिखा कि संभल, उत्तर प्रदेश में हालिया विवाद पर राज्य सरकार का पक्षपात और जल्दबाज़ी भरा रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंसा और फायरिंग में जिन्होंने अपनों को खोया है उनके प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं। प्रशासन द्वारा बिना सभी पक्षों को सुने और असंवेदनशीलता से की गई कार्रवाई ने माहौल और बिगाड़ दिया और कई लोगों की मृत्यु का कारण बना। जिसकी सीधी ज़िम्मेदार भाजपा सरकार है। राहुल ने आगे कहा कि भाजपा का सत्ता का उपयोग हिंदू-मुसलमान समाजों के बीच दरार और भेदभाव पैदा करने के लिए करना न प्रदेश के हित में है, न देश के।

ओवैसी ने की सदन में चर्चा की मांग

संभल हिंसा को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सदन में चर्चा की मांग की। ओवैसी ने कार्य स्थगन का नोटिस दिया है। ओवैसी ने संभल हिंसा को लेकर कहा, हिंसा ने हालात को गंभीर बना दिया है, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई है। उन्होंने कहा कि इस हिंसा के पीछे की वजह और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है। ओवैसी ने चाहते हैं कि सरकार इस मामले में स्थिति साफ करें और दोषियों के खिलाफ जल्द कानूनी कार्रवाई की जाए।

ओवैसी ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया और पुलिस की मंशा पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि संभल की मस्जिद 50-100 साल पुरानी नहीं है, यह 250-300 साल से भी ज़्यादा पुरानी है और कोर्ट ने बिना मस्जिद के लोगों की बात सुने एकतरफा आदेश दिया जो गलत है। जब दूसरा सर्वे किया गया तो कोई जानकारी नहीं दी गई।

रद्द होगी मनसे की मान्यता? महाराष्ट्र में करारी हार के बाद बढ़ी राज ठाकरे के मुश्किलें

#electioncommissionmaycancelrecognitionofmaharashtranavnirmansena

महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद राज ठाकरे की टेंशन बढ़ गई है। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) को इस विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। उनके बेटे अमित ठाकरे तक माहिम विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं। सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरो पर है कि चुनाव आयोग राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की मान्यता रद्द कर सकती है

चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक अगर किसी पार्टी का एक विधायक चुना जाता है और उसे कुल वोट का 8% वोट मिल जाए, तो उसकी मान्यता बनी रहती है। अगर 2 विधायक चुने जाते हैं और कुल वोट का 6% वोट मिले, अगर 3 विधायक और कुल वोट का 3% वोट मिले, तो ही चुनाव आयोग की शर्तें पूरी होती हैं और पार्टी की मान्यता बनी रहती है। ये शर्तें पूरी नहीं होने पर मान्यता रद्द की जा सकती है।

मनसे को कितने % वोट मिले?

इस चुनाव में मनसे को सिर्फ 1.55 वोट मिले हैं और एक भी सीट नहीं मिली है। महाराष्ट्र चुनाव में मनसे की जमानत जब्त हो गई। राज ठाकरे की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे सहित 125 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन एक भी सीट पर मनसे का खाता नहीं खुला।

इस बीच राज ठाकरे ने आज अपने घर पर पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है। बैठक में चुनाव में खराब प्रदर्शन और आगे की रणनीति पर चर्चा हो सकती है।

किसे कितनी सीटें मिली?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की भाजपा को 132, एनसीपी को 41 और शिवसेना को 57 सीटों (कुल 230) पर जीत हासिल हुई है। वहीं, महाविकास अघाड़ी की शिवसेना (यूबीटी) को 20, कांग्रेस को 16 और एनसीपी (शरद चंद्र पवार) को 10 (कुल 46) सीटों पर जीत मिली है। बाकी की 12 सीटें अन्य दलों या फिर निर्दलीय ने जीती हैं।

संभल हिंसा मामले में बड़ी कार्रवाई, सपा सांसद और विधायक के बेटे के खिलाफ FIR दर्ज; दंगा भड़काने का आरोप

डेस्क: जिले में जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर बवाल हो गया। इस दौरान हुई पत्थरबाजी की घटना और पुलिस की ओर से किए गए लाठीचार्ज में चार लोगों की मौत हो गई है। वहीं अब हंगामे के बाद संभल में बाहरी लोगों के आने पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा इलाके में स्कूलों को भी बंद कर दिया गया है। अब पुलिस ने पूरे मामले को लेकर संभल कोतवाली में एफआईआर दर्ज की है। एफआईआर में सपा सांसद जिया उर रहमान और विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहेल इकबाल के खिलाफ साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया है।

दरअसल, रविवार को जिले में हुए बवाल के बाद संभल कोतवाली में दंगे को लेकर FIR दर्ज की गई है। इसमें सुनियोजित साजिश, दंगा भड़काने और भीड़ इक्कठा करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। बता दें कि समाजवादी पार्टी के स्थानीय सांसद जिया उर रहमान और विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहेल इकबाल के खिलाफ साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया है। इसके साथ ही पुलिस के हाथ दंगा भड़काने वाले कुछ वीडियो पोस्ट भी लगे हैं, जिनकी जांच की जा रही है।

संभल में हुई हिंसा मामले में अब तक सात एफआईआर दर्ज की गई है। इन सभी एफआईआर में कुल मिलाकर 2500 से अधिक लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई ने कहा, "हमारे सब-इंस्पेक्टर दीपक राठी जो कल घायल हुए थे, उन्होंने 800 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

जिया उर रहमान बर्क और सोहेल इकबाल को आरोपी बनाया गया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने भीड़ को उकसाया था।" बर्क को पहले भी नोटिस दिया गया था, इसके बावजूद उन्होंने लोगों को भड़काया, जिस वजह से लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया था। बर्क को गिरफ्तार कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

बता दें कि रविवार की सुबह जामा मस्जिद का सर्वे किया गया। हालांकि सर्वे की टीम जैसे ही पहुंची, तभी वहां पर भीड़ इकट्ठा हो गई। इसके बाद भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। वहीं देखते ही देखते बवाल बढ़ गया और भीड़ उग्र हो गई। इस दौरान भीड़ ने पत्थरबाजी भी की।

इस पूरी घटना में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 21 लोग घायल बताए जा रहे हैं। वहीं पुलिस ने इस मामले में अब कार्रवाई करते हुए 24 लोगों को हिरासत में ले लिया है। वहीं अब पुलिस ने संभल कोतवाली में एफआईआर भी दर्ज कर ली गई है।

महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का दिखने लगा साइड इफेक्ट, नाना पटोले ने की प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की हार के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने इस्तीफे की पेशकश की है। विधानसभा चुनाव में करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए पटोले ने अपने इस्तीफे की पेशकश का दी है। पटोले ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से जिम्मेदारी से मुक्त किए जाने का आग्रह किया है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है।

पटोले का यह इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ एनडीए ने कांग्रेस पार्टी और महाविकास अघाड़ी को चुनाव में करारी शिकस्त दी है। कांग्रेस पार्टी ने राज्य में 103 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ 16 सीटें मिली।

कांग्रेस चुनाव में बड़ी मुश्किल से दहाई के आंकड़े तक पहुंची है। यही नहीं, साकोली सीट से पार्टी के उम्मीदवार नाना पटोले ने सबसे कम अंतर से 208 वोटों से जीत दर्ज की। साकोली में उनकी जीत इस साल सबसे कम अंतर से जीती गई सीटों में शीर्ष तीन में शुमार है। यह नतीजे 2019 विधानसभा चुनावों के बिल्कुल उलट हैं, जब नाना पटोले ने साकोली में लगभग 8,000 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी। पटोले साकोली सीट से चार बार के विधायक हैं। फिर भी उन्हें इस सीट से जीत दर्ज करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

नाना पटोले ने ही चुनाव परिणाम घोषित होने से दो दिन पहले यह दावा करके विवाद खड़ा कर दिया था कि कांग्रेस अगली महाविकास अघाड़ी सरकार का नेतृत्व करेगी। हालांकि, उनकी अगुवाई में 2024 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने कांग्रेस आलाकमान के सामने इस्तीफे की पेशकश की है।

महाराष्ट्र में सीएम पर सस्पेंसः नतीजों के दो दिन बाद भी जारी है मंथन, शिंदे-फडणवीस या होगा कोई तीसरा नाम*
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महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आने के बाद अब साफ हो गया है कि राज्य में महायुति की सरकार बनेगी। हालांकि, महायुति से राज्य के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर कौन बिराजेगा अभी तक ये साफ नहीं हुआ है। विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है, इसलिए इससे पहले सरकार गठित होनी है। ऐसा न होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा। ऐसे में संभव है कि आज इस सस्पेंस से पर्दा हट जाएगा। देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की रेस में हैं। महायुति में अब तक फैसला नहीं हो पाया है कि किसे मुख्यमंत्री बनाया जाए। हालांकि, पलड़ा देवेंद्र फडणवीस का भारी लग रहा है। इसकी वजह भी है। बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस का नाम सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहा है। हालांकि, एकनाथ शिंदे गुट अब भी सीएम पद को लेकर अडिग है। दरअसल, महायुति में साथी बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल की हैं। इस कारण बीजेपी के नेता चाहेंगे कि देवेंद्र फडणवीस सीएम पद पर बैठें। वहीं, शिवसेना के नेता चाहते हैं कि एकनाथ शिंदे एक बार फिर से सीएम बनें। वहीं, सूत्रों का कहना है कि अजीत पवार की एनसीपी देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाने की मांग कर सकती है। महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद से ही मुंबई से दिल्ली तक बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी नेताओं की अलग-अलग बैठकों का दौर जारी है। इसके साथ ही सीएम पद को लेकर दबाव बनाने की राजनीति भी शुरू हो गई है। एनसीपी के विधायक दल की बैठक में अजित पवार को नेता चुना गया है। एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने अजित पवार को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठाई। वहीं, शिवसेना विधायकों ने एकनाथ शिंदे को अपना नेता चुना और पार्टी नेता प्रताप सरनाईक ने कहा कि सभी विधायक चाहते हैं कि एकनाथ शिंदे सीएम बने रहें। इस बीच सरकार का चेहरा यानी मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार आज यानी सोमवार को दिल्ली रवाना होंगे। भाजपा आलाकमान के साथ मीटिंग के बाद सीएम के नाम का ऐलान हो सकता है। सीएम के नाम के ऐलान के बाद कल मुंबई, राजभवन में शपथग्रहण समारोह हो सकता है।