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अगले साल चीन जा सकते हैं पीएम मोदी, कजान की मुलाकात के बाद अब क्या चाहता है ड्रैगन?*
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भारत-चीन के बीच हाल के दिनों में संबंध सुधर रहे हैं। सीमा समझौते के बाद दोनों देशों के बीच हालात सामान्य होते नजर आ रहे हैं। अब बात सीमा विवाद से आगे हो रही है। हाल ही में रूस के कजान शहर में भारत और चीन के लीडरों पीएम नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। उससे पहले भारत और चीन के बीच एलएसी पर पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए अपनी-अपनी सेना को पीछे हटाने पर भी सहमति बनी थी। अब खबर आ रही है कि पीएम मोदी चीन का दौरा कर सकते हैं। हालांकि अब तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। हालांकि, अगर ऐसा होता है तो कजान में मोदी और जिनपिंग की मुलाकात संबंधों पर जमीं बर्फ को पिघलाने वाली साबित होगी। *एससीओ बैठक में शामिल होने जा सकते हैं चीन* 'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट की मानें तो पीएम मोदी अगले साल चीन में आयोजित होने वाले एससीओ बैठक में शामिल होने के लिए बीजिंग जा सकते हैं। नई दिल्ली स्थिति चीनी दूतावास के अधिकारियों ने बीते दिनों इंडियन मीडिया के साथ बातचीत में ये बातें कहीं। रिपोर्ट के अनुसार एलएसी पर स्थिति में सुधार होने के बाद दोनों देशों के बीच सीधी फ्लाइट, कई मोबाइल एप्प पर लगे बैन, चीनी नागरिकों को वीजा देने, चीनी सिनेमाघरों में अधिक भारतीय फिल्मों को लगाने और चीनी पत्रकारों को भारत आकर रिपोर्ट करने की अनुमित देने को लेकर बातचीत चल रही है। *चीन बार-बार रिश्तों के बेहतरी की क्यों दे रहा दुहाई?* बता दें कि भारत के साथ सुधरते रिश्तों के बीच चीन के अधिकारी बार-बार दोनों देशों के बीच संबंधों की बेहतरी को लेकर बयान दे रहे हैं। चीन बार-बार भारत की ओर गेंद फेंक रहा है। चीन का यह भी कहना है कि दोनों देशों के रिश्तों में सीमा विवाद आड़े नहीं आना चाहिए। सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने पर जोर दे रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसके पीछे क्या वजह है? *समझें चीन की मजबूरी* इसका जवाब चीनी अर्थव्यवस्था है। चीन की अर्थव्यवस्था इन दिनों गिरावट की स्थिति से गुजर रही है। वहां विकास दर लगातार गिर रही है। इसके अलावा डिमांड में कमी भी चीन की सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका ने कई चीनी चीनी प्रोडक्ट पर इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी है। ऐसे में चीन अपनी इकोनॉमी में गति लाने के लिए प्रोत्साहन पैकेज दे रहा है। बता दें कि भारत इस वक्त चाईनीज प्रोडक्ट का एक सबसे बड़ी खरीददार देश है। ऐसे में चीन की मजबूरी है कि वे किसी भी तरह भारत के साथ अपने रिश्ते को पटरी पर लाए। *चीन और क्या चाहता है भारत से?* बीजिंग को उम्मीद है कि उसकी विश लिस्ट जल्द ही साकार होगी। इस लिस्ट में दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें, राजनयिकों और स्कॉलरों समेत चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंधों में ढील, मोबाइल ऐप्स से पाबंदी हटाने, चीनी पत्रकारों को भारत आने की मंजूरी देना देना शामिल है। इसके अलावा, चीनी सिनेमाघरों में ज्यादा से ज्यादा भारतीय फिल्मों को दिखाए जाने की मंजूरी भी दी जानी है। सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच करीब 21 दौर की बातचीत हो चुकी है। भारत और चीन की सेनाएं 25 अक्टूबर से पूर्वी लद्दाख पर सीमा से पीछे हटना शुरू हो गई हैं। पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और डेपसांग पॉइंट में दोनों सेनाओं ने अपने अस्थायी टेंट और शेड हटा लिए हैं। गाड़ियां और मिलिट्री उपकरण भी पीछे भी ले आए। दोनों देश इस बात पर भी सहमत हुए कि गलवान जैसी झड़प टालने के लिए उनकी सेनाएं अलग-अलग दिन पेट्रोलिंग करेंगी और एक-दूसरे को सूचना भी देंगी।
भारत-रूस के बीच पांत्सिर एयर डिफेंस सिस्टम के लिए समझौता, हवा में ही “दुश्मन” होगा तबाह*
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रूस बीते ढाई साल से यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। इस युद्ध ने भारत के साथ रूस के कई प्रमुख रक्षा सौदों को भी प्रभावित किया है। रूस भारत को समय से हथियारों की डिलीवरी करने में नाकामयाब हो रहा है। जिन सौदों में देरी हुई है, उनमें बेहद अहम S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के अलावा युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हैं। हालांकि इस बीच एक अहम खबर मिल रही है। भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस सिस्टम को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। भारत सरकार ने रूस से एडवांस पांत्सिर एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने का निर्णय लिया है। गोवा में आयोजित 5वें भारत-रूस इंटर गवर्नमेंटल कमिशन सबग्रुप मीटिंग के दौरान यह समझौता हुआ। यह सिस्टम ऑटोमेटिक लैंड से हवा में मार करने वाली एंटी मिसाइल और एंटी एयरक्राफ्ट प्रणाली है। इसमें प्लेन हेलीकॉप्टर, सटीक मार करने वाले हथियारों और क्रूज मिसाइलों को भी नष्ट करने की क्षमता है। पांत्सिर सिस्टम दुश्मन के हवाई हमलों से सैन्य, औद्योगिक और प्रशासनिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करता है और ड्रोन को भी नष्ट करने में सक्षम है। इस सिस्टम में छोटी से मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली 12 मिसाइलें लगी हैं। इसमें दोहरी 30 मिमी ऑटोमैटिक तोप लगी हैं, जो कई लेवल पर रक्षा करती है। *कितनी है रेंज?* पैंटसिर एक मोबाइल डिफेंस सिस्टम हैं जो ट्रक चेसिस पर लगाई जाती है। अलग-अलग इलाकों में यह बेहतर गतिशीलता देता है। यह सिस्टम उन्नत रडार सिस्टम से लैस है जो 36 किमी दूर और 15 किमी तक ऊंचे टार्गेट का पता लगा सकता है और उस पर हमला कर सकता है। लंबी दूरी तक ट्रैकिंग की क्षमता खतरों का पता लगाने और उन्हें समय रहते रोकने में सहायक है। पैंटसिर के मिसाइल की रेंज 1 से 12 किमी है। जबकि 30 मिमी वाली तोपें 0.2 से 4 किमी के बीच के टार्गेट को भेद सकती हैं। यह विशेषताएं इसे एक बहुमुखी प्रणाली बनाती हैं जो विभिन्न दूरी पर तेजी से बढ़ते हवाई टार्गेट जैसे ड्रोन, हेलीकॉप्टर और क्रूज मिसाइलों को बेअसर करने में सक्षम है। *भारत ने साइन की थी 5 अरब डॉलर की डील* भारत ने 2018 में रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए डील की थी। इस डील के तहत अगले 5 सालों में भारत को ये सभी एयर डिफेंस सिस्टम मिलने थे। भारत को अभी तक रूस ने सिर्फ 3 ही एयर डिफेंस सिस्टम भारत को दिए है। अभी भी 2 एस-400 भारत को मिलना बाकी हैं। इसके पीछे की एक बड़ी वजह यूक्रेन जंग को माना जा रहा है, जिसके चलते एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी में देरी हो रही है।
राम मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी, खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने कहा-हिंदुत्ववादी विचारधारा की नींव हिला देंगे*
#khalistani_terrorist_pannu_threatens_to_blow_up_ayodhya_ram_mandir

खालिस्तानी आतंकी और सिख फॉर जस्टिस के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अयोध्या में राम मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी दी है। पन्नू ने वीडियो मैसेज में 16 और 17 नवंबर को बम से उड़ाने की धमकी दी गई है। वीडियो के माध्यम से मिली धमकी के बाद पूरी अयोध्या को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। राम जन्मभूमि समेत रामनगरी की सुरक्षा बढ़ाई गई है। अयोध्या रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) प्रवीण कुमार ने कहा कि अयोध्या की सुरक्षा पहले से ही हाई सिक्योरिटी जोन है। यहां तैनात सुरक्षा कर्मी भी आतंकी हमले से निपटने के लिए ट्रेंड हैं। पन्नू की धमकी का वीडियो सामने आने के बाद एक बार फिर से सुरक्षा की समीक्षा की गई है। साथ ही वीडियो की सत्यता की जांच भी की जा रही है। *पिछले महीने भी दी थी धमकी* ये पहली बार नहीं है जब खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने धमकी दी है। इससे पहले 21 अक्टूबर को पन्नू ने एअर इंडिया की फ्लाइट्स में बम ब्लास्ट की धमकी दी थी। 4 नवंबर 2023 को भी पन्नू ने एअर इंडिया के विमानों में बम ब्लास्ट की धमकी दी थी। इसके 15 दिन बाद 19 नवंबर को दिल्ली एयरपोर्ट को बंद करने की धमकी दी। 19 नवंबर को अहमदाबाद में क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल था।
राम मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी, खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने कहा-हिंदुत्ववादी विचारधारा की नींव हिला देंगे*
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खालिस्तानी आतंकी और सिख फॉर जस्टिस के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अयोध्या में राम मंदिर को बम से उड़ाने की धमकी दी है। पन्नू ने वीडियो मैसेज में 16 और 17 नवंबर को बम से उड़ाने की धमकी दी गई है। वीडियो के माध्यम से मिली धमकी के बाद पूरी अयोध्या को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। राम जन्मभूमि समेत रामनगरी की सुरक्षा बढ़ाई गई है। अयोध्या रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) प्रवीण कुमार ने कहा कि अयोध्या की सुरक्षा पहले से ही हाई सिक्योरिटी जोन है। यहां तैनात सुरक्षा कर्मी भी आतंकी हमले से निपटने के लिए ट्रेंड हैं। पन्नू की धमकी का वीडियो सामने आने के बाद एक बार फिर से सुरक्षा की समीक्षा की गई है। साथ ही वीडियो की सत्यता की जांच भी की जा रही है। *पिछले महीने भी दी थी धमकी* ये पहली बार नहीं है जब खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने धमकी दी है। इससे पहले 21 अक्टूबर को पन्नू ने एअर इंडिया की फ्लाइट्स में बम ब्लास्ट की धमकी दी थी। 4 नवंबर 2023 को भी पन्नू ने एअर इंडिया के विमानों में बम ब्लास्ट की धमकी दी थी। इसके 15 दिन बाद 19 नवंबर को दिल्ली एयरपोर्ट को बंद करने की धमकी दी। 19 नवंबर को अहमदाबाद में क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल था।
डोनाल्ड ट्रंप ने चीन विरोधी माइक वॉल्ट्ज को बनाया एनएसए, क्या संदेश देने की है कोशिश ?*
#india_caucus_head_mike_waltz_will_be_nsa_in_doanld_trump_government
अमेरिका के राष्‍ट्रपति के रूप में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप अब अपनी टीम बनाने में जुट गए हैं। अहम पदों पर नियुक्तियों की खबरें रोज आ रहीं हैं।डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आगामी प्रशासन के लिए अहम नियुक्ति करते हुए फ्लोरिडा से सांसद माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) बनाया है। ट्रंप ने सोमवार को एलान किया कि फ्लोरिडा से सांसद और अमेरिकी संसद में इंडिया कॉकस के प्रमुख माइक वाल्ज उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होंगे। रिटायर कर्नल माइक वाल्ट्ज इंडिया कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं। वह अमेरिकी सेना की विशेष यूनिट ग्रीन बेरेट में काम कर चुके हैं। माइक को चीन-ईरान के लिए सख्त और भारत के प्रति नरम रुख रखने वाला माना जाता है। *बाइडन की विदेश नीति के रहे हैं कट्टर आलोचक* माइक वाल्ट्ज साल 2019 में अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए थे। माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रपति बाइडन की विदेश नीति का कट्टर आलोचक माना जाता है। माइक वाल्ज हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी, हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी और हाउस इंटेलीजेंस कमेटी में भी बतौर सदस्य काम कर चुके हैं। वाल्ट्ज यूरोपीय देशों और अमेरिका से यूक्रेन का और मजबूती से समर्थन करने के समर्थक रहे हैं, लेकिन साल 2021 में अफगानिस्तान से जिस तरह से अमेरिकी सेना की वापसी हुई, उसकी वाल्ट्ज ने तीखी आलोचना की थी। *चीनी मैन्युफैक्चरिंग पर यूएस की निर्भरता कम करने के हिमायती* माइक वाल्ट्ज भारत के साथ अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने की वकालत करते हैं। दूसरी ओर माइक वाल्ट्ज चीन के आलोचक रहे हैं। वह ऐसी नीतियों के हिमायती हैं, जो चीनी मैन्युफैक्चरिंग पर यूएस की निर्भरता को कम करें और अमेरिकी टेक्नॉलजी को सुरक्षित करें। वाल्ट्ज ने उइगर मुस्लिमों के साथ चीन के व्यवहार की आलोचना की थी। उन्होंने कोविड महामारी में चीन की भूमिका के विरोध में बीजिंग में 2022 शीतकालीन ओलंपिक के अमेरिकी बहिष्कार का भी समर्थन किया था। *भारत के लिए हो सकते हैं फायदेमंद* माइक वाल्ट्ज अमेरिकी संसद में इंडिया कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं। यह अमेरिकी संसद में किसी देश पर केंद्रित सबसे बड़ा समूह है। इंडिया कॉकस एक द्विदलीय समूह है। इसमें वर्तमान में सीनेट के 40 सदस्य शामिल हैं। वाल्ज का भारत के प्रति रुख नरम रहा है। ऐसे में अमेरिका की हिंद प्रशांत महासागर को लेकर बनने वाली रणनीति में भारत की भूमिका अहम हो सकती है। वाल्ट्ज भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने और चीन का मुकाबला करने के मामले में मजबूत रणनीति बनाने के समर्थक रहे हैं। वह अनुभवी विदेश नीति विशेषज्ञ हैं। उन्हें अमेरिका-भारत गठबंधन का प्रबल समर्थक माना जाता है। उन्होंने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने की वकालत की है। उनका कहना है कि अमेरिका और भारत को रक्षा व सुरक्षा सहयोग के मामले में आगे बढ़ना चाहिए।
अमेरिका के बाद अब इस पड़ोसी देश में सत्ता परिवर्तन, संसदीय चुनावों में लेबर पार्टी की जीत, भारत के लिए क्या हैं मायने?*
#naveen_ramgoolam_became_new_prime_minister_of_mauritius
अमेरिका में जो बाइडन की “विदाई” के बाद डोनाल्ड ट्रंप की वापसी हुई है। ठीक इसी तरह भारत के पड़ोसी देश मॉरीशस में भी सत्ता परिवर्तन हुआ है। मॉरीशस में हुए संसदीय चुनावों नतीजे आ गए है। यहां लेबर पार्टी ने जीत हासिल की है और पार्टी के प्रमुख डॉ. नवीन रामगुलाम देश के नए प्रधानमंत्री बने हैं। नवीन रामगुलाम ने देश के मौजूदा प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ को हराया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव में लेबर पार्टी की जीत पर डॉ. नवीन रामगुलाम को बधाई दी है। विपक्षी नेता नवीन रामगुलाम अपने गठबंधन अलायंस ऑफ चेंज के प्रमुख के रूप में तीसरी बार कार्यभार संभालने वाले हैं। पीएम मोदी ने भी उन्हें बधाई देते हुए एक पोस्ट में लिखा, 'अपने दोस्त डॉ रामगुलाम से गर्मजोशी भरी बातचीत हुई। उन्हें उनकी ऐतिहासिक चुनावी जीत पर बधाई दी। मैंने मॉरीशस का नेतृत्व करने में उनकी बड़ी सफलता की कामना की और भारत आने का न्योता दिया। हमारी विशेष और अनूठी साझेदारी को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करने को तत्पर हैं।' 77 वर्षीय नवीन रामगुलाम तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। नवीन रामगुलाम 1995 से 2000 और 2005 से 2014 तक मॉरीशस के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। नवीन रामगुलाम के पिता शिवसागर रामगुलाम मॉरीशस के पहले मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहे हैं। मॉरीशस को आजादी दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। मॉरीशस को 1968 में ब्रिटेन से आजादी मिली थी। *नवीन रामगुलाम का बिहार से नाता* बता दें कि नवीन रामगुलाम के पूर्वज बिहार के रहने वाले थे। 1800 के दशक में उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर के हरिगांव में रहते थे। जिसके बाद वो मॉरीशस चले गए थे। तभी से उनका परिवार वहीं रहता है। बता दें कि मॉरीशस में कई लोग ऐसे रहते हैं जिनका संबंध बिहार से रहा है। प्रधानमंत्री के अलावा बिहारी वहां राष्ट्रपति भी बन चुका है। इसके अलावा मॉरीशस में अन्य कई बड़े पदों पर भी आपको बिहारी देखने को मिल जाएंगे। *दोनों देशों के बीच घनिष्ठ और दीर्घकालिक रिश्ते* वहीं, अगर मॉरीशस से भारत के संबंधों की बात करें तो दोनों देशों के बीच घनिष्ठ और दीर्घकालिक रिश्ते रहे हैं। वहां की 1.2 मिलियन की आबादी में लगभग 70% भारतीय मूल के लोग हैं। मॉरीशस ने 1968 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। भारत से मॉरीशस पहुंचने वाले लोगों में सबसे पहले पुडुचेरी के लोग थे। मॉरीशस उन महत्वपूर्ण देशों में से एक रहा है जिसके साथ भारत ने आजादी से पहले ही 1948 में राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। 1948 और 1968 के बीच ब्रिटिश शासित मॉरीशस में भारत का प्रतिनिधित्व एक भारतीय आयुक्त द्वारा किया गया और उसके बाद 1968 में मॉरीशस के स्वतंत्र होने के बाद एक उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। *मॉरीशस का मददगार भारत* संकट के समय में भारत मॉरीशस को मदद पहुंचाने वाले देशों में सबसे आगे रहा है। कोविड-19 और वाकाशियो तेल रिसाव संकट में दुनिया ने इसे देखा भी। मॉरीशस के अनुरोध पर भारत ने अप्रैल-मई 2020 में कोविड से निपटने में मदद के लिए 13 टन दवाएं, 10 टन आयुर्वेदिक दवाएं और एक भारतीय रैपिड रिस्पांस मेडिकल टीम की आपूर्ति की। भारत मुफ्त कोविशील्ड टीकों की 1 लाख खुराक की आपूर्ति करने वाला पहला देश भी था। *भारत मॉरीशस के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक* 2005 से भारत मॉरीशस के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। वित्त वर्ष 2022-2023 के लिए मॉरीशस को भारतीय निर्यात 462.69 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। वहीं भारत को मॉरीशस का निर्यात 91.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और कुल व्यापार 554.19 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। पिछले 17 वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार में 132% की वृद्धि हुई है। निवर्तमान प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ ने कई ऐसे फैसले लिए थे जिससे दोनों देशों के संबंध और मजबूत हुए थे। इस साल जनवरी में अयोध्या मंदिर के उद्घाटन के दौरान मॉरीशस ने धार्मिक कार्यों में भाग लेने के लिए हिंदुओं को दो घंटे की छुट्टी भी दी थी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस साल जुलाई में मॉरीशस का दौरा किया था और रामगुलाम और बेरेन्जर सहित शीर्ष विपक्षी मॉरीशस राजनेताओं से मुलाकात की थी।
अलगे साल लॉन्च होगा दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट, आकाश से पृथ्वी पर होगी पैनी नजर

#isrowilllaunchtheworldsmostpowerfulprotectorsatellitenisar

दुनिया का सबसे दमदार राडार, जिसकी पृथ्वी पर होगी पैनी नजर, धरती की हर हलचल से गहरे सागर की गतिविधियों तक, सब उसकी नजरों में होगा। बता हो रही है नासा इसरो सेंथिटिक एपर्चर राडार यानी निसार की। यह सैटेलाइट अगले साल की शुरुआत में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा और यह पूरी दुनिया में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, जंगल की आग, चक्रवाती तूफान, हरिकेन, बारिश, ज्वालामुखी, और टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल पर नजर रखेगा। यह किसी भी आपदा के होने से पहले अलर्ट करेगा और इससे लोगों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

नासा और इसरो का ज्वाइंट प्रोजेक्ट

दुनिया की दो सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसी का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है निसार। नासा और इसरो इस प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे है। ये डबल फ्रीक्वैंसी रडार है। जिसे दो हिस्से में तैयार किया जा रहा है। सेटेलाइट का प्रमुख पे-लोड एल-बैंड जो 24 सेंटीमीटर वेबलैंथ का होगा। उसे नासा तैयार कर रहा है। वहीं 12 सेंटीमीटर वेबलेंथ का एस-बैंड इसरो तैयार कर रहा है। इसरो रडार की इमेंजिंग प्रणाली का भी विकास कर रही है। इसके अलावा माइक्रोवब और ऑप्टिकल सेंसर भी इसरो ही तैयार कर रही है।

दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट

ये दुनिया का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग सेटेलाइट होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 120 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 1 बिलिय़न ड़ॉलर लगा रही है। स्पेस में ऑपरेशनल हो जाने के बाद ये उपग्रह अपने उन्नत राडार से इमेजिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए पूरी धरती की हाई क्वालिटी इमेंज लेगा। ये धरती पर होने वाली हर तरह की हलचल का पता लगा सकेगा। आर्कटिक और अंटार्कटिंक एरिया में जो बर्फ की चादरें पिघल रही है, अर्थ की सिसनिक प्लेटों में हो रही गतिविधि का पता चल सकेगा, जिससे भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका जा सकेगा। ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्र और सागर की गहराई की हर जानकारी देगा। इसकी मदद से आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम किए जा सकेंगे।

अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

इस खास खोज के लिए, आकाश से धरती की निगरानी के लिए, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुना है। निसार के जरिए भारत और अमेरिका दुनिया को खास देने वाले हैं। शायद वो चीज जो मानवता के विकास में मददगार साबित हो सकती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर अमेरिका ने भारत की ही मदद क्यों ली?

भारत की तरक्की देश यूएस भी हुआ हैरान

अमेरिका खुद चलकर आया भारत से मदद मांगने। शायद इधर कुछ सालों में भारत ने अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीक के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की कर ली है। जिसकी आशा अमेरिका ने कभी नहीं की होगी भारत ने वो कर दिखाया।

हालांकि, बात बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। लेकिन भारत ने दुनियाभर का भरोसा जीता। बात 1992 की है जब अमेरिका में जॉज बुश सीनियर की सरकार थी। तब रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेकनॉलोजी देने वाला था। लेकिन अमेरिका ने इसपर रोक लग दी। क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल रॉकेट में होता है। उस वक्त ये तकनीक सिर्फ अमेरिका और रशिया के पास थी। अमेरिका नहीं चाहता था इस दौड़ में कोई तीसरा खड़ा हो। भारत मिसाइल बनाने में कामयाब हो। लेकिन भारत ने अपने भरोसे के बल पर और 20 साल की मेहनत के बाद वो क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफल हुआ। ये वही क्रायोजेनिक इंजन है जो जीएसएलवी में लगता है और इसी क्रायोजेनिक इंजन से निसार को भी लॉन्च किया जाना है।

यूं बढ़ी नासा की इसरो में दिलचस्पी

नासा दुनिया की सबसे विकसित स्पेस एजेंसी है। बावजूद नासा ने इसरो में दिलचस्पी दिखायी। इसकी शुरूआत 2012 में हुई, जब इसरो ने भारत का पहला स्वदेशी राडार इमेंजिंग सेटेलाइट लॉन्च किया। इस सेटेलाइट की मदद से रात हो या दिन मौसम कैसा भी हो धरती के सतह की तस्वीरें ली जा सकती है। इसके बाद ही नासा ने भारत के साथ हाथ मिलाकर ये प्रोजेक्ट शुरू करने की इच्छा जतायी। इस मामले में करीब 2 साल की तक बातचीत के बाद निसार सेटेलाइट को लेकर सहमति बनी। अब दोनों देश मिलकर विज्ञान और प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल मानव हित में करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी की बिहार उपचुनाव टालने की याचिका की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नवगठित जन सुराज पार्टी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें बिहार में कल होने वाले उपचुनाव टालने की मांग की गई थी। चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी ने छठ पूजा के कारण उपचुनाव टालने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, "हस्तक्षेप करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। अदालतों को ऐसे मामलों (मतदान पुनर्निर्धारित करने) में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उपचुनाव के लिए सभी व्यवस्थाएं कर ली गई हैं।" जन सुराज को फटकार लगाते हुए पीठ ने यह भी कहा कि किसी अन्य पार्टी को मतदान की तारीख से कोई समस्या नहीं है। पीटीआई के अनुसार, न्यायाधीशों ने कहा, "केवल आपको समस्या है। आप एक नई राजनीतिक पार्टी हैं, आपको इन उतार-चढ़ावों को समझने की जरूरत है।"

सिंघवी ने धार्मिक आयोजनों के आधार पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल में चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तिथि आगे बढ़ाए जाने का उदाहरण दिया। उन्होंने तर्क दिया, "छठ पूजा के बावजूद बिहार चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। बिहार में छठ पूजा जितना महत्वपूर्ण कोई दूसरा त्योहार नहीं है।" बुधवार को राज्य में रामगढ़, तरारी, बेलागंज और इमामगंज विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होंगे। मतों की गिनती 23 नवंबर को होगी।

किशोर के नेतृत्व वाले संगठन ने अपने पहले चुनावी मुकाबले में सभी चार निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे हैं। इसने रामगढ़ में सुशील कुशवाहा, तरारी में किरण सिंह, बेलागंज में मोहम्मद अमजद और इमामगंज में जितेंद्र पासवान को टिकट दिया है। शुरुआत में सेना के पूर्व उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) श्रीकृष्ण सिंह को तरारी से मैदान में उतारा गया था, जबकि बेलागंज से खिलाफत हुसैन को उम्मीदवार बनाया जाना था।

370 का मुद्दा महाराष्ट्र-झारखंड के चुनाव को कितना करेगा प्रभावित? एनसी का प्रस्ताव बनेगी कांग्रेस की परेशानी

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एक बार फिर अनुच्छेद 370 का मुद्दा गर्मा गया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अंदर हाल ही में उमर अब्दुल्ला की सरकार ने धारा 370 बहाल करने से जुड़ा एक प्रस्ताव पास करवा लिया है। जिसको लेकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पिछले दिनों जमकर हंगामा हुआ। हालांकि, अब ये मुद्दा जम्मू-कश्मीर से आगे बढ़कर महाराष्ट्र और झारखंड तक पहुंच गया है। दरअसल, महाराष्ट्र और झारखंड में इसी महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी ने इस मुद्दे को लपक लिया है। भाजपा के दिग्गज नेताओं ने चुनावी प्रचार के दौरान इस मुद्दे को भुनाना शुरू कर दिया है। अपनी चुनावी रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा से विशेष दर्जे की बहाली के प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर निशाना साध रहे हैं।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धारा 370 की वापसी के प्रस्ताव को मुद्दे को उठाया और उसे कांग्रेस की साजिश करार दिया। प्रधानमंत्री ने चुनावी रैली में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि महाराष्ट्र की जनता को जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की साजिशों को समझना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि देश की जनता कभी भी अनुच्छेद 370 पर इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा। जब तक मोदी है, कांग्रेस कश्मीर में कुछ नहीं कर पाएगी। जम्मू-कश्मीर में केवल भीम राव अंबेडकर का संविधान चलेगा, कोई भी ताकत 370 को फिर से वापस नहीं ला सकती है।

गृह मंत्री अमित शाह ने भी महाराष्ट्र के सांगली और कराड की रैली में 370 के बहाने कांग्रेस को घेरा। उन्होंने भी चुनौती दी कि चाहे कुछ भी हो जाए जम्मू-कश्मीर में 370 वापस नहीं हो सकता। अमित शाह ने कहा कि न तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी और न ही उनकी आने वाली पीढ़ियां जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को वापस ला पाएंगी।

कुल मिलाकर कहें तो 370 के मुद्दे पर बीजेपी पूरी तरह से आक्रामक है। 370 पर विधानसभा के प्रस्ताव के ज़रिए वो महाराष्ट्र और यूपी में INDIA गठबंधन को घेर रही है। ऐसे में सवाल ये कि क्या जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रस्ताव पास करके उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस को फंसा दिया है? क्या ग़लत समय पर ये प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया? इससे भी अहम सवाल क्या 370 का मुद्दा बीजेपी को चुनाव में फायदा पहुंचाएगा और कांग्रेस को नुकसान?

बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाली महायुति का प्रदर्शन बहुत आशाजनक नहीं रहा था, ऐसे में बीजेपी और महायुति की पार्टियां फिर से महाराष्ट्र में सत्ता में वापस पाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इसी तरह से झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्ता में बीजेपी उसे सत्ता से हाटने के लिए उस पर लगातार हमला बोल रही है। दोनों ही राज्यों में मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी बनाम कांग्रेस का है। एक राज्य में अगर महा विकास अघाड़ी है तो दूसरे में जेएमएम गठबंधन चुनौती दे रहा है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के लिए स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रवाद का मुद्दा भी जरूरी रहने वाला है।

बीजेपी के लिए तो जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भी भावनाओं वाला ही रहा है, उसकी विचारधारा एक देश एक विधान और एक निशान वाली रही है। समाज का एक बड़ा वर्ग भी इसी सिद्धांत से सहमत नजर आता है। ये बात कांग्रेस भी बखूबी जानती है। शायद यही वजह है कि इस प्रस्ताव के बाद कांग्रेस का ना कोई स्टैंड देखने को मिला, ना कोई स्पष्ट बयान आया है।

उसे इस बात का भी अहसास है कि 370 का मुद्दा सिर्फ राष्ट्रवाद का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। अगर बीजेपी को मौका लगा वो तुरंत कांग्रेस को देश विरोधी बता देगी जिसका सीधा नुकसान महाराष्ट्र और झारखंड में उठाना पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस ने ना अभी 370 पर कुछ बोलेगी और शायद आगे भी ऐसी ही सियासी चुप्पी साधे रखेगी।

दक्षिण कोरिया की सत्तारूढ़ पार्टी ने ट्रंप की धमकी को टालने के लिए चिप्स कानून बनाने की बनाई योजना

दक्षिण कोरिया की सत्तारूढ़ पार्टी ने सोमवार को चिप निर्माताओं को सब्सिडी देने और काम के घंटों पर राष्ट्रीय सीमा से छूट देने के लिए एक विशेष चिप्स अधिनियम का प्रस्ताव रखा, ताकि आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उठाए जाने वाले कदमों से संभावित जोखिमों से निपटा जा सके।

सेमीकंडक्टर उद्योग व्यापार पर निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जो एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसमें पिछले साल कुल निर्यात में चिप्स का हिस्सा 16% था।

पिछले सप्ताह, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओल ने चीनी आयात पर भारी टैरिफ लगाने की ट्रंप की धमकी से उत्पन्न जोखिमों के बारे में चेतावनी दी थी, जो चीनी प्रतिद्वंद्वियों को निर्यात कीमतों में कटौती करने और विदेशों में कोरियाई चिप फर्मों को कम करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस विधेयक को पारित होने के लिए मुख्य विपक्षी दल से अनुमोदन की आवश्यकता है, यह ऐसे समय में आया है जब सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे चिप निर्माता भी चीन, ताइवान और अन्य देशों में प्रतिद्वंद्वियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं।

बिल के प्रायोजकों में से एक, सांसद ली चुल-ग्यू ने एक बयान में कहा कि इससे कोरियाई कंपनियों को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी, क्योंकि चीन, जापान, ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के बीच सेमीकंडक्टर व्यापार युद्ध के बीच निर्माताओं को सब्सिडी दे रहे हैं। शोध और विकास में शामिल कुछ कर्मचारियों को बिल के तहत लंबे समय तक काम करने की अनुमति दी जाएगी, जिसका उद्देश्य अधिकतम 52 घंटे काम करने के साप्ताहिक घंटों को सीमित करने वाले श्रम कानून को माफ करना है।

इस महीने, सैमसंग के श्रमिक संघ ने इस तरह के कदम का विरोध किया, यह कहते हुए कि कंपनी अपनी "प्रबंधन विफलता" के लिए कानून को दोष देने की कोशिश कर रही है। पिछले महीने, सैमसंग ने अपने निराशाजनक लाभ के लिए माफ़ी मांगी, क्योंकि यह चीनी कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण कृत्रिम बुद्धिमत्ता चिप्स की बढ़ती मांग को पूरा करने में प्रतिद्वंद्वियों TSMC और SK Hynix से पीछे रह गया है। अक्टूबर में, ट्रम्प ने आयात शुल्क के पक्ष में ताइवान के TSMC, दक्षिण कोरिया के सैमसंग और SK Hynix और अन्य के लिए संघीय चिप सब्सिडी को खत्म करने की धमकी दी थी।