जनसुराज के बाद बिहार में एक और नई राजनीतिक पार्टी ! पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरसीपी की अपनी पार्टी बनाने की चर्चा जोरों पर
डेस्क : प्रशांत किशोर की जनसुराज के बाद अब बिहार में ऐसा लगता है कि जल्द ही एक और नई राजनीतिक पार्टी बनने वाली है। यह पार्टी बिहार के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री आर सीपी सिंह की हो सकती है। यदि आर सीपी सिंह सही मायने में अपनी अलग पार्टी बनाते है तो बिहार के लोगों के सामने जन सुराज के बाद एक और विकल्प मिल सकता है।
दरअसल बीते दिनों राजधानी पटना की सड़कों को टाइगर अभी जिंदा है के नारे की होर्डिंग्स से पाट दिया गया। इस होर्डिंग पर जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामचन्द्र प्रसाद सिंह (आरसीपी) की तस्वीर थी। उनके समर्थक शंकर पटेल व अमर सिन्हा ने पटना में कई स्थानों पर ये होर्डिंग्स लगाए थी। भाजपा के प्रदेश दफ्तर के ठीक गेट पर भी लगाया गया थे। इसके माध्यम से उनके समर्थक यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आरसीपी खत्म नहीं हुए हैं। जिस तरह से ये होर्डिंग्स लगाए हैं, वह एनडीए को ही चेतावनी देते नजर आ रहे थे। जिसके बाद बिहार की सियासत में यह चर्चा तेज हो गई है कि करीब दो साल से सियासी वनवास झेल रहे आरसीपी क्या कोई पार्टी बनाएंगे? अगर हां तो वह किसको निशाना बनाएंगे?
गौरतलब है कि आरसीपी कभी सीएम नीतीश कुमार के सबसे करीब और जदयू व सरकार में सबसे ताकतवर हुआ करते थे। नीतीश कुमार की छाया में उन्होंने भरपूर ताकत बटोरी। राज्यसभा गए और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। फिर केन्द्र की मोदी सरकार में मंत्री भी बन गए। उनके मंत्री बनने पर कई तरह के सवाल उठने लगे। माना जा रहा था कि उन्होंने नीतीश कुमार की बगैर सहमति के अपने मन से यह फैसला किया। इसके बाद से आरसीपी की नीतीश कुमार और जदयू से दूरी बढ़ने लगी।
माना जा रहा था कि नीतीश कुमार उनसे नाराज हो चुके थे। हाल यह हुआ कि उन्हें जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा। यही नहीं राज्यसभा में उन्हें फिर से उम्मीदवार नहीं बनाया गया और 31 जुलाई 2022 को उनका मंत्री पद भी चला गया।
जदयू छोड़ने के लगभग 9 माह बाद 11 मई 2023 को उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। धर्मेन्द्र प्रधान ने उन्हें दिल्ली में भाजपा की सदस्यता दिलायी। लिहाजा, आरसीपी काफी मुखर होकर जदयू पर हमलावर रहे। नीतीश कुमार पर भी वे आक्रामक रहे। उन्होंने प्रदेश की यात्राएं की। आरसीपी समसमार कुर्मी हैं जबकि नीतीश कुमार अवधिया। इसको भी आधार बनाकर आरसीपी ने अभियान चलाया। उनके वर्ग की संख्या कम थी, इसलिए उन्हें नालंदा में भी बहुत ताकत नहीं मिली। उधर, उनके अभियान में भी वह आकर्षण नहीं दिखा। इस बीच राजनीति ने नयी करवट ली और जदयू फिर एनडीए का हिस्सा बन गया। इसके बाद आरसीपी की परेशानी और बढ़ गयी। बदले हालात में भाजपा ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस तरह आरसीपी की सियासी पारी पर विराम लग गया।
इधर, भाजपा में मुख्यधारा से वे काफी पहले ही बाहर हो चुके थे। उनके पास राजनीतिक रूप से अधिक विकल्प भी नहीं रह गए थे। ऐसे में उन्हें अपने लिए नया रास्ता चुनना ही था। पार्टी की घोषणा से पहले खुद को टाइगर के बतौर पेश करवाने का निहितार्थ साफ है- यानी वह यह बताना चाह रहे हैं कि उनका जज्बा अभी कायम है। बहरहाल, यह तो तय है कि उनकी पार्टी या आरसीपी संभवत: एनडीए को ही निशाना बनाएंगे। वैसे उनकी पार्टी का आकार-प्रकार कैसा रहेगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
बताते चले कि बीते 2 अक्टूबर को राजनीतिक रणनीतिकार से पॉलिटिशयन बने प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीतिक पार्टी जन सुराज का एलान किया। जिसे चुनाव आयोग की ओर से मान्यता भी मिल गई। वहीं उन्होंने बिहार में चार विधान सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में भी अपनी पार्टी का भाग्य अजमा रहे है। हालांकि उन्हें इसमें पहले दौर में ही झटका लगा है। उन्होंने बिहार की जनता से जिस साफ-सुथरी छवि के साथ राजनीति करने का वायदा किया था उसपर वे खड़े नहीं उतर पाए है। जिसका उदाहरण बेलागंज सीट पर उनकी पार्टी के प्रत्याशी है।
वैसे आर सीपी सिंह यदि अपनी अलग पार्टी का गठन करते है तो निश्चित तौर पर बिहार की जनता के सामने एक और विकल्प होगा। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आर सीपी सिंह किस तरह की राजनीति करते है। क्या वे बिहार में चली आ रही जातिगत और बाहुबल के सहारे राजनीति के मैदान में आते है या फिर उससे कुछ अलग हटकर।
Oct 25 2024, 12:03