'साउथ चाइना सी' को लेकर मुखर भारत, जानें चीन को क्यों गुजरेगी नागवार
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पश्चिमी प्रशांत सागर का साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन सागर बीते कई सालों से चर्चा में है। इस इलाक़े को चीन अपना कहता है। साउथ चाइना सी एक ऐसा इलाका जहां विस्तारवादी चीन अपनी धौंस दिखाता रहता है। आस-पास के देशों को आए दिन परेशान करता रहता है। एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वो यहां कृत्रिम द्वीप बना रहा है। कम से कम तीन द्वीपों का सैन्यीकरण कर चुका है। यहां, मामला केवल चीन का होता तो विवाद नहीं था लेकिन साउथ चाइना सी के आसपास के देश भी इसके कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं।
इस बीच अभी हाल ही में संपन्न आसियान-भारत सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र के देशों के भौगोलिक संप्रभुता को समर्थन दिया। ईस्ट एशिया सम्मेलन में पीएम मोदी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाईना सी को लेकर वह सारी बातें कहीं, जो इस क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपना रहे चीन को नागवार गुजर सकती है।
साउथ चाइना सी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का नाम लिए बिना बड़ी नसीहत दी। मोदी ने समूचे हिंद प्रशांत क्षेत्र को कानून सम्मत बनाते हुए यहां की समुद्री गतिविधियों को संयुक्त राष्ट्र के संबंधित कानून (अनक्लोस) से तय होने की मांग की और साउथ चाईना सी के संदर्भ में एक ठोस व प्रभावी आचार संहिता बनाने की भी बात कही। आसियान के सभी दस सदस्य देश भी इसकी मांग कर रहे हैं।
पहले भारत और आसियान ने चीन को साउथ चाइना सी में खुराफातों से बाज आने का संदेश दिया तो वह तिलमिला उठा। भारत और आसियान की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में जो भी विवाद हैं, उनका अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसा से समाधान होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की नसीहत के बाद चीन तिलमिला गया।
आसियान बैठक के दूसरे ही दिन पीएम मोदी ने दूसरी बार उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19वें ईस्ट एशिया समिट में अपने संबोधन में पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए दक्षिण चीन सागर की स्थिरता के महत्व पर जोर दिया। पीएम मोदी ने कहा, एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिण चीन सागर की शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के हित में है।
चीन को पहले भी दिए कड़े संदेश
ये पहला मौका था जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साउथ चाइना सी को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी बात रखी है। हालांकि, इसी साल मई में दक्षिण चीन सागर में भारतीय युद्धपोतों को तैनात कर भारत ने चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की। भारतीय नौसेना ने चीन पर नकेल कसने के लिए दक्षिण चीन सागर में पूर्वी बेड़े को तैनात किया हुआ है।
भारत साल 2021 के बाद हुआ ज्यादा सक्रिय
भारत ने वर्ष 2021 के बाद से साउथ चाइना सी के करीबी देशों के साथ नौसैनिक संबंधों को लेकर ज्यादा सक्रियता दिखाना शुरू किया है। इसको गलवन घाटी में चीनी सैनिकों के घुसपैठ और भारत व चीन के सैनिकों के बीच जून, 2020 में हुए हिंसक झड़पों से जोड़ कर भी देखा जाता है। मार्च, 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की फिलीपींस, दक्षिण कोरिया और जापान यात्रा को भी साउथ चाइना सी को लेकर भारत के नये रूख के तौर पर देखा जाता है।
चीन के क्यों अहम है साउथ चाइना सी?
अब सवाल ये है कि साउथ चाइना सी चीन के लिए इतना अहम क्यों है? दरअसल, साउथ चाइना सी में क़रीब 250 छोटे-बड़े द्वीप हैं। लगभग सभी द्वीप निर्जन हैं। इनमें से कुछ ज्वार भाटे के कारण कई महीने पानी में डूब रहते, तो कुछ अब पूरी तरह डूब चुके हैं। ये इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई और फ़िलीपीन्स से घिरा है। इंडोनेशिया के अलावा अन्य सभी देश इसके किसी न किसी हिस्से को अपना कहते हैं।
चीन दावा करता है कि दो हज़ार साल पहले चीनी नाविकों और मछुआरों ने इस इलाक़े को सबसे पहले ढ़ूंढा, इसे नाम दिया और यहां काम शुरू किया।दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक साउथ चाइनी सी के पूरे इलाक़े पर जापान का कब्ज़ा था। जापान की हार के बाद चीन ने इस पर फिर से कब्ज़ा करने के लिए अपने नौसेनिक युद्धपोत यहां भेजे। युद्ध के बाद चीनी सरकार ने आधिकारिक तौर पर एक मानचित्र जारी किया। जिसमें एक लकीर के जरिए तीस लाख वर्ग किलोमीटर के साउथ चाइना सी के एक बड़े हिस्से और लगभग सभी द्वीपों को अपने हिस्से में दिखाया। इस लकीर को नाइन डैश लाइन कहा जाता है। हालांकि चीन ने इस लकीर को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
साउथ चाइना सी को लेकर मौजूदा चीनी सरकार के दावे के केंद्र में अब भी वही मानचित्र और अनसुलझा विवाद है। हालांकि, चीन के लिए समुद्र का ये टुकड़ा सिर्फ़ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उसने ऐतिहासिक तौर पर इसे अपना कहा है। दरअसल इसके पीछे ठोस आर्थिक कारण है। चीन कहता है कि साउथ चाइना सी में मुल्कों की दिलचस्पी तब हुई जब वहां उसने तेल की खोज शुरू की।कई देशों की दिलचस्पी इस इलाक़े में बढी है क्योंकि उनका मानना है कि इस जगह पर उन्हें कच्चे तेल की खजाना मिल सकता है। इस इलाके में असल में कितना तेल मिल सकता है इसे लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
इसके अलावा यहां एक अलग तरह की संपदा है जो चीन के लिए महत्वपूर्ण है। यहां तीस हज़ार प्रकार की मछलियां हैं। और मत्स्य उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर करीब 15 फीसदी मछली उत्पादन करता है और ये काम होता है साउथ चाइना सी से।इस कारण इस इलाक़े में तनाव बढ़ा है और इससे निपटने के लिए चीन यहां अपनी स्थिति और मज़बूत करना चाहता है।
Oct 16 2024, 16:27