2025 के चुनाव जगंल राज बनाम सुशासन के बदले अपने के आधार पर जदयू मांगेगी वोट, आखिर क्यों !
डेस्क : बिहार में अगले साल 2025 में विधान सभा चुनाव होने है। जिसकी तैयारी में प्रदेश के सभी राजनीतिक दल अभी से जुटे गए है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी अब धीरे-धीरे चरम पर पहुंचने लगा है। सत्ताधारी एनडीए जहां अपने शासनकाल में चहुमुंखी विकास का दावा करता रहा है। वहीं विपक्ष प्रदेश की सत्ताधारी एनडीए पर सिर्फ हवाबाजी और जुमलेबाजी करने का आरोप लगाता रहा है। घूम फिरकर बात जंगलराज बनाम सुशासन पर आ जाती है। लेकिन इसबार जदयू अपना एजेंडा बदल दिया है। जदयू इसबार जंगलराज बनाम सुशासन के नाम पर चुनाव मैदान में नहीं जाएगी। सीएम नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि इसबार हम अपने काम के आधार पर जनता के बीच जाएंगे और उनसे वोट मांगगे। मतलब साफ ही इसबार जदयू का एजेंडा उसके 19 साल के कार्यकाल के दौरान किए गए काम होंगे।
बीते दिनों जदयू राज्य कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में नीतीश कुमार के साथ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा समेत पार्टी के मंत्री, सीनियर नेता व पदाधिकारी आदि मौजूद रहे। बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया गया और 6 फैसलों पर मुहर लगायी गयी। वहीं नीतीश कुमार के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही गयी।
वही इस बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर साफ तौर पर कहा कि इसबार हम जनता के बीच अपने काम को लेकर जाएंगे। उन्होंने नेताओं को कहा कि जनता के बीच जाकर सरकार के कामों से अवगत कराएं। इसकी तैयारी में अभी से लग जाना है।
अब सबसे अहम सवाल यह है कि बिहार में पिछले तकरीबन 20 सालों से चुनाव का मुद्दा जंगलराज बनाम सुशासन रहा है और उसके बल पर ही प्रदेश में 2005 से लेकर 2024 तक बीच के एक-दो साल छोड़ दिया जाए तो एनडीए सत्ता पर काबिज रही है, तो फिर नीतीश कुमार अगले चुनाव में इससे क्यों किनारा कर रहे है।
यदि बीते कुछ वर्षो में प्रदेश के हालात पर नजर डाले तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा। राजद के शासन काल को खत्म कर जब प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए तो यह सही है कि उन्होंने सबसे पहले अपराध पर लगाम लगाया था। लेकिन बीते कुछ वर्षों में बिहार में अपराध एकबार फिर से बढ़ा है। जिसकी चर्चा प्रतिदिन बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव करते रहते है। सबसे बड़ी बात यह है कि तेजस्वी प्रदेश कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने के दौरान अपनी पार्टी के शासन काल को लेकर माफी भी मांगते है। ऐसे नीतीश कुमार को यह समझ में आने लगा है कि अब जंगल राज बनाम सुशासन जैसे घिसे-पिटे मुद्दे पर जनता को पूरी तरह अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता है। वहीं अब बिहार में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीतिक पार्टी जनसुराज का एलान कर खलबली मचा दिया है।
प्रशांत किशोर ने दो साल तक जनता के बीच रहकर कड़ी मेहनत की है। इस दौरान उन्होंने कही भी अपराध या जंगलराज बनाम सुशासन जैसी बात कहकर बिहार के छत्रप राजद और जदयू को कटघरे में खड़ा नहीं किया है। उन्होंने राजद, जदयू और बीजेपी को कटघड़े में खड़ा किया है अपने अलग तरीके से। उन्होंने शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया है। आर्थिक मजबूती की बात की है। वहीं उनकी पार्टी के लांचिग के मौके पर पटना में जो भीड़ उमड़ी थी वे राजद, जदयू और बीजेपी तीनो बड़ी पार्टियों के लिए खतरे के संकेत थे। यदि वह भीड़ सही मायने में पीके के जनसुराज के साथ चली जाती है तो प्रदेश के सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन दोनो को भारी पड़ सकता है।
इस पूरे गणित को देखते हुए अब नीतीश कुमार को यह लगने लगा है कि राजद के गुंडाराज शासन की बात कर जनता को अपनी ओर नहीं किया जा सकता है। बात भी सही है। पिछले 19 सालों से बिहार पर उनका शासन है। ऐसे में जनता यह सवाल कर सकती है कि अपराध तो आपने कम कर दिया, लेकिन शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे भी अपनी जगह कायम है और यही वजह है कि नीतीश कुमार जहां चुनाव से पहले 10 लाख नौकरी की बात कर रहे है। वहीं जनता के बीच अपने शासन काल मे किये गए कार्यों को जनता के बीच पहुंचाने की बात कर उस आधार पर इसबार चुनाव मैदान में जाने की बात कर रहे है।
Oct 12 2024, 19:45