शताब्दी समारोह के अंतर्गत संगोष्ठी:संस्कृत भाषा की प्राचीनता और वैज्ञानिकता पर चर्चा*
तेज नारायण कुशवाहा
प्रयागराज- उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथे:।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशान्ति मुखे मृगा:।"अर्थात सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पुरे नहीं होते-बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से उसके काम पूरे होते हैं।उक्त विचार आचार्य पंडित शिवेन्द्र सारस्वत जी ने बच्चों को संस्कृत भाषा के उच्चारण और महत्व पर हिन्दुस्तानी अकेडमी में आयोजित संगोष्ठी एवं बच्चों की पाठशाला में रखे। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान-लखनऊ व महासागर शिक्षा समिति-प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में हिन्दुस्तानी अकेडमी में संस्कृत भाषा की प्राचीनता और वैज्ञानिकता पर संस्कृत के ज्ञानियों का जमावड़ा लगा तो संस्कृत पर शोध और उसके उन्नति के लिए कार्य करने वाले विद्वानों व बटुकेश्वरों को शॉल ओढ़ाकर व मोमेंटो दे कर सम्मानित भी किया गया।
अति विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर उषा मिश्रा ने संस्कृत में लकारों की संख्या के बारे में बताते हुए कहा की ऐसे तो संस्कृत में लकारों की संख्या दस होती है लेकिन उनमें से पांच लकारों का उपयोग सबसे अधिक होता है जिसमें लट् ,लिट् ,लुट् लृट् ,लोट्। कहा इन दस लकारों के प्रारंभ में ल है इसलिए इसे लकार कहते हैं। विशिष्ट अतिथि पंडित मधूकर मिश्रा ने बच्चों से प्रश्नों के माध्यम से उनके संस्कृत ज्ञान पर सवाल पूछे की १४ शिव सूत्र क्या हैं ?माहेश्वर सूत्र क्या हैं ?संस्कृत में माहेश्वर सूत्रों की संख्या कितनी है।प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले बच्चों को महासागर शिक्षा समिति और कार्यक्रम आयोजक इफ्तेखार आलम खान की ओर से पुरुस्कृत किया गया।
संगोष्ठी की शुरुआत शिव वंदना व दीप प्रज्ज्वलित कर हुई जिसमें हरीश चंद्र मालवीय के संचालन में वक्तागण शिवेन्द्र सारस्वत,धीरज पाण्डेय ,अक्षत मालवीय , प्रांजल मालवीय ,अंजल मालवीय ,प्रोफेसर अशोक पाण्डेय ,तेज प्रताप तिवारी , अभिषेक मालवीय ,अनिल टंडन ,अर्पित मिश्रा ,पंडित यश महाराज ,सृजन शर्मा ,कृति कृष्णा मिश्रा ने विचार व्यक्त किए।आयोजक मण्डल के इफ्तेखार आलम खान ,सुनील अहमद खान ,सरदार चरणजीत सिंह ,अधिवक्ता एम ए अंसारी ने आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
Sep 28 2024, 18:59