आखिर 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते क्यों हैं?1949 का क्या था वो समझौता
डेस्क :– हिन्दी आज मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए भले ही देश भर की संपर्क भाषा बन चुकी है। संविधान के अनुसार यह राजभाषा तो है ही पर इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की मांग भी लंबे समय से चली आ रही है। हर साल 14 सितंबर को देश भर में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। शिक्षण संस्थानों से लेकर सरकारी-निजी कार्यालयों में कई तरह के कार्यक्रम होते हैं । इसके साथ ही हिन्दी के विकास में योगदान की इतिश्री मान ली जाती है। सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते क्यों हैं? आखिर साल 1949 में इस दिन ऐसा क्या समझौता हुआ था, जिससे हिन्दी राजभाषा बनी और भविष्य में इसके विकास की क्या योजना थी? आइए जानने की कोशिश करते हैं।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली समिति जब संविधान के स्वरूप पर मंथन कर रही थी तो भाषा से जुड़ा कानून बनाने की जिम्मेदारी अलग-अलग भाषा वाले पृष्ठभूमि से आए दो विद्वानों को दी गई थी। इनमें एक थे तत्कालीन बॉम्बे सरकार में गृह मंत्री रह चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, जिन्हें लेखकीय घनश्याम व्यास नाम से भी जाना जाता है। दूसरे विद्वान थे तमिलभाषी नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर। आयंगर इंडियन सिविल सर्विस में अफसर रह चुके थे और साल 1937 से 1943 के दौरान जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी थे।
राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का मिला दर्जा
इन दोनों की अगुवाई में तीन साल तक हिन्दी के पक्ष-विपक्ष में यह गहन वाद-विवाद हुआ कि आखिर भारत की राष्ट्रभाषा का स्वरूप क्या होगा। आखिरकार एक फॉर्मूले पर मुहर लगी, जिसे मुंशी-आयंगर फॉर्मूला कहा जाता है। इसके अनुसार भाषा को लेकर भारतीय संविधान में कानून बना, जिसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक में इस कानून को 14 सितंबर 1949 को अंगीकार किया गया. इसीलिए 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
हिन्दी पर क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के शुरू में कहा गया है कि संघ (भारत संघ) की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। इसके आगे और बाद के आठ अनुच्छेदों में यह स्पष्ट किया गया है कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। हालांकि, सभी आधिकारिक काम अंग्रेजी में किए जाते रहेंगे। उस वक्य यह व्यवस्था केवल 15 सालों के लिए बनाई गई थी, कुछ उसी तरह से जैसे संविधान में आरक्षण की व्यवस्था केवल 10 साल के लिए की गई थी। इन 15 सालों के दौरान यह भी प्रयास किया जाना था कि धीरे-धीरे पूरे देश में हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा चरणबद्ध तरीके से बनाया जाए। हालांकि, ये 15 साल बीतने के बाद क्या होगा, इस पर कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया।
इसलिए हिन्दी को नहीं मिल पाया राष्ट्रभाषा का दर्जा
इतना जरूर था कि भविष्य में इस मुद्दे की जांच के लिए एक संसदीय समिति बनाने का फैसला किया गया था। इसके साथ ही भारतीय संविधान में 14 अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई थी। वह समय भी आया, जब 15 साल बीत गए पर केंद्र सरकार के कामकाज में हिन्दी का वर्चस्व नहीं बन पाया। ज्यादातर कामकाज अंग्रेजी में ही होता रहा. राज्यों में भाषा के आधार पर राजनीति होती रही और जब-जब हिन्दी का मुद्दा उठा, गैर हिन्दी भाषी राज्यों में इसका विरोध होने लगता। राजनीतिक रूप से प्रतिबद्धता न होने के कारण हिन्दी आज भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। हालांकि, सोशल मीडिया, मीडिया, फिल्मों और विज्ञापनों के जरिए आज हिन्दी देश भर में कम से कम समझी तो जाती ही है।
2011 में इतने लोगों की मातृभाषा थी हिन्दी
वास्तव में हिन्दी वैज्ञानिक रूप से जितनी समृद्ध है, उतनी ही प्रासंगिक भी. हिन्दी में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है और वही पढ़ा जाता है। इसमें किसी भी तरह का कोई अपवाद नहीं है। ऐसे में यह दिनोंदिन आम जनमानस के बीच अपनी पैठ बढ़ाती जा रही है। नए-नए शब्दों को हिन्दी में स्थान मिल रहा है। संचार माध्यमों के विकास के साथ इसकी पकड़ और मजबूत हुई है और साल 2011 की जनगणना में बताया गया था कि देश की कुल आबादी में से 43.63 फीसद लोगों की मातृभाषा हिन्दी है। इसके बाद बांग्ला और मराठी भाषा को स्थान दिया गया है।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा हिन्दी भाषी प्रदेश है। फिर हिन्दी बोलने वालों की संख्या के आधार पर बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा को जगह मिलती है । यही नहीं, कई दूसरे देशों में भी हिन्दी बोलने, लिखने, पढ़ने और समझने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। मॉरिशस, गयाना, सुरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद टोबैगो और नेपाल जैसे देश तो ऐसे हैं, जहां हिन्दी बोलने और समझने वालों की बड़ी आबादी है।
Sep 14 2024, 13:15