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आइए जानते हैं कि बुजुर्ग अपना आयुष्मान कार्ड किस तरह से बनवा सकते हैं

डेस्क: – केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का दायरा बढ़ा दिया है। अब बुजुर्गों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा। 70 साल और इससे अधिक उम्र के बुजुर्ग आयुष्मान कार्ड बनवा सकते हैं। भले ही वह किसी भी इनकम ग्रुप के हो। आयुष्मान कार्ड से बुजुर्गों को 5 लाख रुपये तक की सीमा में देश के किसी भी अस्पताल में बीमारियों का इलाज निशुल्क मिलेगा। आयुष्मान योजना के लाभ लेने के लिए आयुष्मान भारत कार्ड बनवाने का तरीका भी सरकार ने बताया है ।आइए इस बारे में जानते हैं।

केंद्र सरकार के मुताबिक, आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए बुजुर्गों को किसी दफ्तर के चक्कर नहीं लगाने पडेंगे। सिर्फ कुछ जरूरी कागजों की जरूरत होगी और मोबाइल एप से ही कार्ड बन जाएगा। एक सप्ताह में इसको लेकर सरकार आदेश भी जारी कर देगी। इसको लेकर सरकार एक कम्पैन भी लॉंच करने जा रही है। आधार कार्ड की मदद से बुजुर्ग मोबाइल एप के जरिए आयुष्मान कार्ड बनवा सकेंगे। इस कार्ड के बनने के बाद वह कई तरह की गंभीर बीमारियों का भी अस्पताल में निशुल्क इलाज करा पाएंगे। अभी तक आयुष्मान भारत योजना पर सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 30 जून 2024 तक देश के 34.7 करोड़ लोग आयुष्मान कार्ड बनवा चुके हैं।

बुजुर्गों का नया कार्ड बनेगा

केंद्र सरकार ने कहा कि अगर किसी परिवार का कोई सदस्य आयुष्मान भारत योजना का लाभ ले रहा है और उस परिवार में कोई बुजुर्ग है तो अब बुजुर्ग का नया कार्ड अलग बनेगा। इसके लिए पंजीकरण भी नए सिरे से कराना होगा। कार्ड बनने के बाद बुजुर्ग किसी भी अस्पताल में 5 लाख तक का इलाज निशुल्क करा सकेंगे। केंद्र सरकार ने यह भी कहा है की 70 साल या इससे ज्यादा उम्र के बुजुर्ग जो केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ ले रहे हैं, तो वे भी आयुष्मान भारत योजना के तहत आयुष्मान कार्ड बनवाने का विकल्प चुन सकते हैं. अगर किसी की उम्र 70 साल या इससे अधिक है और उन्होंने प्राइवेट हेल्थ बीमा करा रखा है तो भी इस योजना के तहत पंजीकरण करा सकते हैं।

टोल-फ्री नंबर पर मिल जाएगी जानकारी

आयुष्मान कार्ड से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिएटोल-फ्री नंबर 14555 पर कॉल कर सकते हैं. इससे सारी जानकारी मिल जाएगी की कार्ड बनवाने के लिए क्या जरूरी कागज चाहिए और किन अस्पतालों में यह सुविधा मिल जाएगी।

इन राज्यों ने लागू नहीं की आयुष्मान योजना

दिल्ली ओडिशा और पश्चिम बंगाल में फिलहाल आयुष्मान योजना नहीं है । इन राज्य सरकारों ने इस योजना को नहीं लागू किया है। फ़िलहाल दिल्ली उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में बुजुर्गों को आयुष्मान योजना का लाभ नहीं मिलेगा।

श्रमिक संघों की सहमति के बिना अडानी समूह को केन्या हवाई अड्डे का पट्टा नहीं मिलेगा

एसबी न्यूज़ ब्यूरो: केन्या के मुख्य हवाई अड्डे को भारत के अडानी समूह को 30 साल के लिए पट्टे पर देने के प्रस्ताव के खिलाफ हवाई अड्डे के कर्मचारियों ने पिछले बुधवार को पूरे दिन विरोध प्रदर्शन किया। यूनियन नेताओं के साथ बातचीत के आधार पर हवाई अड्डे को अडानी समूह को पट्टे पर दिए जाने के आश्वासन के बाद श्रमिकों ने प्रदर्शन बंद किया।

केन्या की राजधानी नैरोबी में जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (जेकेआईए) के कर्मचारियों ने मंगलवार आधी रात को विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। अगले दिन बुधवार को पूरे दिन विरोध प्रदर्शन जारी रहा. श्रमिकों की मांग है कि हवाई अड्डे के विस्तार के लिए 1.85 अरब डॉलर के निवेश के बदले जेकेआईए को 30 साल के लिए अडानी समूह को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता है। क्योंकि स्थानीय कर्मचारियों की छँटनी हो सकती है।

विरोध प्रदर्शन वापस लेने के संबंध मेंकेन्या सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स के महासचिव फ्रांसिस एटोली ने कहा कि सरकार और केन्या एविएशन वर्कर्स यूनियन 10 दिनों के भीतर अदानी समूह के प्रस्ताव दस्तावेजों की समीक्षा करने पर सहमत हुए हैं। अडानी के साथ अनुबंध पर काम आगे बढ़ाने के लिए श्रमिक संघ की सहमति आवश्यक है।

श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन के कारण मंगलवार रात से बुधवार के बीच केन्या के मुख्य हवाई अड्डे पर सैकड़ों यात्री फंसे रहे।उड़ान रद्दीकरण और देरी. बाद में, केन्या के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने कहा कि हवाई यातायात पूरी क्षमता पर फिर से शुरू हो गया है। लेकिन ऐसी शिकायतें थीं कि यात्रियों को बदली हुई उड़ान के बारे में जानकारी पाने के लिए टर्मिनल के बाहर घंटों इंतजार करना पड़ा।

पिक सौजन्य: रॉयटर्स

आखिर 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते क्यों हैं?1949 का क्या था वो समझौता

डेस्क :– हिन्दी आज मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए भले ही देश भर की संपर्क भाषा बन चुकी है। संविधान के अनुसार यह राजभाषा तो है ही पर इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की मांग भी लंबे समय से चली आ रही है। हर साल 14 सितंबर को देश भर में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। शिक्षण संस्थानों से लेकर सरकारी-निजी कार्यालयों में कई तरह के कार्यक्रम होते हैं । इसके साथ ही हिन्दी के विकास में योगदान की इतिश्री मान ली जाती है। सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते क्यों हैं? आखिर साल 1949 में इस दिन ऐसा क्या समझौता हुआ था, जिससे हिन्दी राजभाषा बनी और भविष्य में इसके विकास की क्या योजना थी? आइए जानने की कोशिश करते हैं।

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली समिति जब संविधान के स्वरूप पर मंथन कर रही थी तो भाषा से जुड़ा कानून बनाने की जिम्मेदारी अलग-अलग भाषा वाले पृष्ठभूमि से आए दो विद्वानों को दी गई थी। इनमें एक थे तत्कालीन बॉम्बे सरकार में गृह मंत्री रह चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, जिन्हें लेखकीय घनश्याम व्यास नाम से भी जाना जाता है। दूसरे विद्वान थे तमिलभाषी नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर। आयंगर इंडियन सिविल सर्विस में अफसर रह चुके थे और साल 1937 से 1943 के दौरान जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी थे।

राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का मिला दर्जा

इन दोनों की अगुवाई में तीन साल तक हिन्दी के पक्ष-विपक्ष में यह गहन वाद-विवाद हुआ कि आखिर भारत की राष्ट्रभाषा का स्वरूप क्या होगा। आखिरकार एक फॉर्मूले पर मुहर लगी, जिसे मुंशी-आयंगर फॉर्मूला कहा जाता है। इसके अनुसार भाषा को लेकर भारतीय संविधान में कानून बना, जिसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक में इस कानून को 14 सितंबर 1949 को अंगीकार किया गया. इसीलिए 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

हिन्दी पर क्या कहता है संविधान?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के शुरू में कहा गया है कि संघ (भारत संघ) की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। इसके आगे और बाद के आठ अनुच्छेदों में यह स्पष्ट किया गया है कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। हालांकि, सभी आधिकारिक काम अंग्रेजी में किए जाते रहेंगे। उस वक्य यह व्यवस्था केवल 15 सालों के लिए बनाई गई थी, कुछ उसी तरह से जैसे संविधान में आरक्षण की व्यवस्था केवल 10 साल के लिए की गई थी। इन 15 सालों के दौरान यह भी प्रयास किया जाना था कि धीरे-धीरे पूरे देश में हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा चरणबद्ध तरीके से बनाया जाए। हालांकि, ये 15 साल बीतने के बाद क्या होगा, इस पर कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया।

इसलिए हिन्दी को नहीं मिल पाया राष्ट्रभाषा का दर्जा

इतना जरूर था कि भविष्य में इस मुद्दे की जांच के लिए एक संसदीय समिति बनाने का फैसला किया गया था। इसके साथ ही भारतीय संविधान में 14 अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई थी। वह समय भी आया, जब 15 साल बीत गए पर केंद्र सरकार के कामकाज में हिन्दी का वर्चस्व नहीं बन पाया। ज्यादातर कामकाज अंग्रेजी में ही होता रहा. राज्यों में भाषा के आधार पर राजनीति होती रही और जब-जब हिन्दी का मुद्दा उठा, गैर हिन्दी भाषी राज्यों में इसका विरोध होने लगता। राजनीतिक रूप से प्रतिबद्धता न होने के कारण हिन्दी आज भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। हालांकि, सोशल मीडिया, मीडिया, फिल्मों और विज्ञापनों के जरिए आज हिन्दी देश भर में कम से कम समझी तो जाती ही है।

2011 में इतने लोगों की मातृभाषा थी हिन्दी

वास्तव में हिन्दी वैज्ञानिक रूप से जितनी समृद्ध है, उतनी ही प्रासंगिक भी. हिन्दी में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है और वही पढ़ा जाता है। इसमें किसी भी तरह का कोई अपवाद नहीं है। ऐसे में यह दिनोंदिन आम जनमानस के बीच अपनी पैठ बढ़ाती जा रही है। नए-नए शब्दों को हिन्दी में स्थान मिल रहा है। संचार माध्यमों के विकास के साथ इसकी पकड़ और मजबूत हुई है और साल 2011 की जनगणना में बताया गया था कि देश की कुल आबादी में से 43.63 फीसद लोगों की मातृभाषा हिन्दी है। इसके बाद बांग्ला और मराठी भाषा को स्थान दिया गया है।

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा हिन्दी भाषी प्रदेश है। फिर हिन्दी बोलने वालों की संख्या के आधार पर बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा को जगह मिलती है । यही नहीं, कई दूसरे देशों में भी हिन्दी बोलने, लिखने, पढ़ने और समझने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। मॉरिशस, गयाना, सुरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद टोबैगो और नेपाल जैसे देश तो ऐसे हैं, जहां हिन्दी बोलने और समझने वालों की बड़ी आबादी है।

घटती जन्म दर, चीन ने बढ़ाई सेवानिवृत्ति की उम्र

विश्व समाचार

एसबी न्यूज ब्यूरो: एक वैश्विक समाचार एजेंसी के अनुसार, चीनी सरकार ने अपने नागरिकों की सेवानिवृत्ति की आयु को धीरे-धीरे बढ़ाने का फैसला किया है। यह जानकारी देश की सरकार ने शुक्रवार को दी।

सूत्रों के मुताबिक अगले कुछ दशकों में चीन में बुजुर्ग आबादी की दर बढ़ने वाली है। लेकिन उसकी तुलना में युवाओं की संख्या कम हो जायेगी ।मूलतः वैसा हीइन परिस्थितियों में, चीन श्रमिकों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

चीन की सरकारी मीडिया शिन्हुआ ने बताया कि नए फैसले के मुताबिक, पुरुष कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र धीरे-धीरे 60 साल से बढ़ाकर 63 साल कर दी जाएगी। वर्तमान में महिलाओं के लिए सेवानिवृत्ति की दो आयु सीमाएं हैं, 50 और 55 वर्ष। नये फैसले के मुताबिक यह क्रमश: 55 और 58 साल होगी। 2025 से अगले 15 वर्षों में विभिन्न स्तरों परइस फैसले को चरण दर चरण लागू किया जाएगा. सूत्रों के मुताबिक, 2023 से लगातार दो साल से चीन की जनसंख्या में गिरावट आ रही है।

देश के नीति-निर्माताओं का मानना है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो यह देश के लिए हानिकारक होगा। इससे वहां की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य क्षेत्र और सामाजिक कल्याण प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। चीन में पिछले कुछ दशकों में सेवानिवृत्ति की आयु नहीं बढ़ाई गई है। ऐसा कहा जाता है कि यह दुनिया में सबसे कम सेवानिवृत्ति की आयु हैदेश में है

ऐसे में औसत जीवन प्रत्याशा, नागरिकों की स्वास्थ्य क्षमता, जनसंख्या संरचना, शैक्षिक योग्यता और श्रम बल आपूर्ति का मूल्यांकन करके नया निर्णय लिया गया है। इस संबंध में बीजिंग में इंटरनेशनल बिजनेस एंड इकोनॉमिक्स के श्रम अर्थशास्त्री लाई चांगगन ने कहा कि, उनकी राय में, कई लोग इस तरह की घोषणा के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले के पीछे जनसांख्यिकीय बदलाव मुख्य कारण है.

फोटो सौजन्य: एएफपी

ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने चश्मा हटाने का दावा करने वाले आई ड्रॉप पर लगी रोक

डेस्क :– चंद दिनों पहले एक आई ड्रॉप कंपनी ने दावा किया था कि उनके आई ड्रॉप से 15 मिनट में लोगों की आंखों पर लगा चश्मा उतर जाएगा। ये दावा है मुंबई के एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी की PresVu Eye Drop को लेकर किया गया था, लेकिन अब ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इस आई ड्रॉप पर बड़ा फैसला लेते हुए इसकी प्रोडक्शन और बिक्री पर रोक लगा दी है। फार्मास्यूटिकल्स कंपनी ने दावा किया था कि इनका आई ड्रॉप बेहद कम समय में लोगों की आंखों की रोशनी ठीक कर सकता है और उनकी नजदीक दृष्टि बढ़ाता है जिससे बेहद कम समय में लोगों की आंखों का चश्मा तक उतर सकता है।

लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय से शुरू से ही इस तरह के दावों को भ्रामक बताते हुए नियमों का उल्लंघन बताया था। मंत्रालय ने इस दवा कंपनी के दावों को न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल रूल्स, 2019 के प्रावधानों का उल्लंघन बताते हुए अगले आदेश आने तक इस दवा को बैन कर दिया है ।

कंपनी ने साथ ही ये भी दावा किया था कि ये देश का पहला ऐसा आई ड्रॉप है जो प्रेसबायोपिया को बेहद कम समय में ठीक करता है। इस दावे के बाद ये आई ड्रॉप रातों रात चर्चा में आ गया। हालांकि ड्रग्स कंट्रोलर का कहना है कि कंपनी इस तरह के भ्रामक दावे नहीं कर सकती जिससे लोग उत्सुकता में ये दवाई खरीदने को विवश हो जाएं।

DCGI ने कंपनी को दिया नोटिस

अब कंपनी से इस दावे के बदले स्पष्टीकरण मांगा गया है, जिसके बाद दवा कंपनी ने अपना जवाब सरकार को सौंपा है। लेकिन DCGI ने कहा है कि कंपनी ने नोटिस में दिए सभी सवालों का जवाब नहीं दिया है जिससे सरकार संतुष्ट नहीं है इसलिए अगले आदेश तक इस दवा की बिक्री पर रोक लगा दी जाए।

छोटे बच्चों की आंखे हो रही कमजोर

आजकल जरूरी पोषक तत्वों की कमी और ज्यादा मोबाइल देखने के चलते बेहद कम उम्र में बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर हो रही है। ऐसे में बुजुर्गों के साथ साथ छोटे बच्चों को चश्मा लगाने की जरूरत पड़ रही है। ऐसे में इस तरह के आई ड्रॉप के लिए एक बड़ी मार्केट तैयार हो रही है लेकिन इस तरह के भ्रामक प्रचार से लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना गलत है। ऐसे में हेल्थ एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि इस कंपनी का दावा अभी भी वाद-विवाद का विषय है क्योंकि इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए जब तक सब बातें साफ नहीं हो जाती तब तक इस दवा को बैन करने का फैसला सही है।

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अमीर-गरीब सबको मिलेगा निःशुल्क आयुष्मान योजना का लाभ, आईए जानते हैं बुजुर्गों को कौन-कौन सी बीमारियों में मिलेगा लाभ

सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को बड़ी राहत देते हुए 70 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को आयुष्मान योजना का लाभ देने का फैसला किया है, ऐसे में बुजुर्गों को अपना इलाज कराने में बड़ी सुविधा होगी साथ ही उनका बड़ी बीमारियों में फ्री इलाज होगा। आइए जानते हैं कि बुजुर्गों को किन बीमारियों में इस योजना का लाभ मिलेगा।

केंद्र सरकार ने बुजुर्गों को बड़ी राहत देते हुए 70 साल से अधिक उम्र वालों को भारत की सबसे बड़ी सरकारी हेल्थ योजना का लाभ देने का फैसला लिया है। इस फैसले के तहत आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम में बड़ा बदलाव किया गया है। जहां ये योजना पहले सिर्फ गरीबों के लिए थी वहीं अब 70 साल से ऊपर के अमीर बुजुर्ग भी इसका लाभ उठा पाएंगें।12 सितंबर को हुई कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला लिया गया है।

बुजुर्गों को हेल्थ इंश्योरेंस कवर

अक्सर बुजुर्गों में बढ़ती उम्र के साथ कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है ऐसे में कोई आमदनी न होने की वजह से बुजुर्गों का ठीक से इलाज नहीं हो पाता। ऐसे में इस कवर के तहत बुजुर्ग ठीक से अपना इलाज कराने की स्थिति में होंगे। ये 5 लाख का हेल्थ इंश्योरेंस कवर हर सरकारी और कुछ चुनिंदा प्राइवेट अस्पतालों में मिलेगा जहां इस योजना का लाभ कवर हो। ऐसे में किसी भी बड़ी बीमारी से बचाव की गुंजाइश पहले के मुकाबले बढ़ जाएगी।

बढ़ती उम्र के साथ बीमारियां

बुजुर्गों में बढ़ती उम्र के साथ कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जिसका इलाज अपेक्षाकृत महंगा हो जाता है। इसमें सबसे ऊपर है हार्ट संबंधी बीमारियां। बुजुर्गों में अक्सर हाई ब्लड प्रेशर और डायबीटिज के चलते बढ़ती उम्र में हार्ट की गंभीर समस्याएं देखने को मिलती है जिसमें सर्जरी और इलाज में लाखों रूपये का खर्च होता है।

इसके बाद दूसरी गंभीर बीमारी है कैंसर जिसमें पुरुषों को इस उम्र में अमूमन प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।कैंसर का इलाज भी काफी महंगा होता है ऐसे में ये योजना इन लोगों के लिए काफी हितकारी साबित होगी।

हार्ट डिजीज और कैंसर के अलावा इस उम्र में अक्सर बुजुर्गों में आर्थराइटिस और गठिया की समस्या देखने को मिलती है । हालांकि इसका इलाज इतना महंगा नहीं है लेकिन ये समस्या बुजुर्गों को काफी लंबे समय तक परेशान करती है जिसके लिए समय पर दवाई लेना आवश्यक हो जाता है।

मोतियाबिंद और डिमेंशिया

आंखों की समस्या भी बढ़ती उम्र के साथ बेहद आम है, इसमें ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों को मोतियाबिंद की शिकायत हो जाती है जिसका इलाज सर्जरी के द्वारा किया जाता है। इसकी सर्जरी में भी काफी पैसा खर्च होता है। इन समस्याओं के अलावा डेमेंशिया की बीमारी भी बुजुर्गों में काफी अधिक देखी जाती है। जिसमें न्यूरोलॉजिक्ल समस्याओं के कारण बुजुर्गों की याद्दाश्त कमजोर हो जाती है जिससे उन्हें कोई बात याद रखना बेहद मुश्किल हो जाता है।

ये सभी समस्याएं बढ़ती उम्र में काफी सामान्य हैं इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की समस्याएं बेहद आम है। इन उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए सरकार का ये फैसला बुजुर्गों के पक्ष में काफी हितकारी साबित होगा। जिसकी मदद से बुजुर्ग अपना बेहतर इलाज कराने की स्थिति में होंगे ।

योजना के तहत इन बीमारियों का कवरेज

इस योजना के तहत बुजुर्गों में होने वाली कई बड़ी और अहम बीमारियों का फ्री में इलाज कराया जा सकेगा।इसमें कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के साथ हार्ट डीजिज, किडनी डिजीज, लंग डिजीज और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां भी कवर होंगी।

आइए जान लेते हैं कि कहां से आया यूनिफाइड पेंशन सिस्टम और यह किन-किन देशों से मिलता-जुलता है

केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की घोषणा की है। इसे एक अप्रैल 2025 से लागू करने की तैयारी है। पुरानी पेंशन की मांग कर रहे कर्मचारियों को इस स्कीम के जरिए थोड़ी राहत देने की कोशिश की गई है। इससे सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को पेंशन की गारंटी मिलेगी। आइए जान लेते हैं कि कहां से आया यूनिफाइड पेंशन सिस्टम और यह किन-किन देशों से मिलता-जुलता है।

वास्तव में यूनिफाइड पेंशन स्कीम एक तरह से सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली पुरानी पेंशन और नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) के बीच का रास्ता है। यूपीएस में कई चीजें ओल्ड पेंशन स्कीम की तरह लागू करने की कोशिश की गई है। हालांकि, इसमें पुरानी पेंशन स्कीम जितना फायदा नहीं। यूपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों को न्यूनतम और निश्चित पेंशन की गारंटी दी जाएगी।

दरअसल, 1 जनवरी 2004 को केंद्र सरकार पुरानी पेंशन स्कीम की जगह पर कर्मचारियों के लिए न्यू पेंशन स्कीम लाई थी। पुरानी पेंशन योजना के तहत अंतिम वेतन के आधार पर सुनिश्चित पेंशन की गारंटी मिलती थी नई पेंशन स्कीम में इसे खत्म कर दिया गया, जिसके कारण कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रहे थे।विपक्ष भी इसके लिए सरकार पर कई तरह के आरोप लगा रहा था।

इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने वित्त सचिव टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। इस समिति ने लगभग सभी राज्यों और श्रमिक संगठनों के साथ बात की। इसके अलावा दुनिया के दूसरे देशों में मौजूद पेंशन के सिस्टम को समझा  इसके बाद इस समिति ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम की सिफारिश की। इस स्कीम का कर्मचारियों पर भार नहीं पड़ेगा। पहले कर्मचारी पेंशन के लिए 10 फीसदी अंशदान करते थे और केंद्र सरकार भी 10 फीसदी अंशदान करती थी । साल 2019 में सरकार ने अपने योगदान को 14 फीसदी कर दिया था। अब सरकार अपने अंशदान को बढ़ाकर 18.5 फीसदी करेगी।

न्यूनतम 10 हजार रुपए मिलेगी पेंशन

इससे यूपीएस में कर्मचारियों को न्यूनतम और निश्चित पेंशन की गारंटी मिलेगी । अगर किसी कर्मचारी ने 25 साल तक कम से कम नौकरी की होगी तो उसे सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीनों के औसत बेसिक वेतन का 50 फीसदी हिस्सा पेंशन के रूप में मिलेगा। उदाहरण के लिए अगर किसी सरकारी कर्मचारी का औसत बेसिक वेतन 50 हजार रुपए होगा, उसे हर महीने 25 हजार रुपए पेंशन मिलेगी। हालांकि, किसी की सेवा अवधि इससे कम है तो उसकी पेंशन उसी हिसाब से कम हो जाएगी। यूपीएस में यह भी प्रावधान किया गया है कि 10 साल या इससे कम समय तक किसी ने नौकरी की है तो उसको 10 हजार रुपए की निश्चित पेंशन दी जाएगी।

एनपीएस या यूपीएस में से करना होगा चुनाव

यूपीएस में पारिवारिक पेंशन का भी प्रावधान है। यह पेंशन कर्मचारी के मूल वेतन का 60 फीसदी होगी, जो कर्मचारी की मौत के बाद उसके परिवार को दी जाएगी। इसमें किसी कर्मचारी को अगर हर महीने 30 हजार रुपए पेंशन मिल रही थी, तो उसकी पत्नी को 60 फीसदी यानी 18000 रुपये पेंशन मिलेगी। 1 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त जितने कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं या एक अप्रैल 2025 तक जो सेवानिवृत्त होंगे, उनको भी इसको चुनने का अवसर मिलेगा। यानी इस पेंशन स्कीम का लाभ कर्मचारियों को खुद नहीं मिलेगा, बल्कि उनको नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) या यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) में से किसी एक का चुनाव करना होगा।

इन देशों में बेहतरीन पेंशन की व्यवस्था

वैसे यूनिफाइड पेंशन के मामले में दुनिया भर में नीदरलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क और इजराइल को बेहतरीन देश बताया गया है। कर्मचारियों के लिए लागू पेंशन स्कीम पर की गई एक रिसर्च में इन देशों को ग्रेड दिया गया है, जिनमें नीदरलैंड पहले स्थान पर है।

मर्सर सीएफए सीएफए इंस्टीट्यूट ग्लोबर पेंशन इंडेक्स में नीदरलैंड को 85 सूचकांक दिया गया है. यहां सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित दर पर पेंशन दी जाती है, जबकि आय और इंडस्ट्रियल एग्रीमेंट के हिसाब से सेमी मैंडेटरी ऑक्युपेशनल पेंशन की भी व्यवस्था है।नीदरलैंड के ज्यादातर कर्मचारी इस ऑक्युपेशनल प्लान के सदस्य हैं।

आइसलैंड है को पेंशन के हिसाब से 84.8 सूचकांक दिया गया है।आइसलैंड के पेंशन प्लान में बेसिक सरकारी पेंशन के साथ पूरक और प्राइवेट ऑक्युपेशनल पेंशन शामिल हैं, जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को अंशदान देना होता है। डेनमार्क इस सूचकांक में 81.3 अंक के साथ तीसरे स्थान पर है। डेनमार्क में सरकारी बेसिक पेंशन, आय से जुड़ी पूरक पेंशन और मैंडेटरी ऑक्युपेशनल स्कीम की व्यवस्था है।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
पुरुषों की अपेक्षा कई मामलों में महिलाएं ज्यादा बेहतर होती हैं, महिलाओं में कई ऐसे गुण हैं जो पुरुषों में कम होते हैं
हमेशा इस बात को लेकर सवाल किया जाता है कि पुरुषों और महिलाओं में ज्यादा बेहतर कौन है। इसे लेकर डिबेट भी होती रहती हैं। इसपर चाणक्य नीति में भी कई सारी बातें की गई हैं। चाणक्य अपनी नीति में बताते हैं कि महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा गुण होते हैं। महिलाएं कई मामलों में पुरुषों से मजबूत होती हैं। पुरुष हमेशा इस भ्रम में रहते हैं कि वे ज्यादा ताकतवर हैं। चाणक्य ने महिलाओं के 4 ऐसे गुण बताए हैं जो उन्हें पुरुषों से प्रबल बनाते हैं।

भावनाओं के मामले में

महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं। भावनाओं पर उनका नियंत्रण ज्यादा है। लोगों को भ्रम रहता है कि महिलाओं का अधिक भावुक होना उनकी कमजोरी है लेकिन ऐसा नहीं है। ये उनकी मजबूती है और महिलाएं खुद को इस हिसाब से ढाल लेती हैं।ऐसे में वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में जल्दी हार नहीं मानतीं और मनोबल बनाए रखती हैं।

खाने के मामले में

चाणक्य नीति की मानें तो मिहलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भूख लगती है। महिलाएं खूब खाती हैं और ऐसा उनकी शारीरिक संरचना की वजह से होता है। महिलाओं को ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है और इसलिए वे आमतौर पर पुरुषों से दो गुना खा सकती हैं।

समझदारी के मामले में

चालाकी और समझदारी के मामले में भी महिलाओं का कोई सानी नहीं होता है। महिलाएं कई मामलों में काफी समझदारी से काम लेती हैं और अपने दिमाग की चपलता से मुश्किल से मुश्किल परिस्थियों से बाहर निकलना जानती हैं।

साहस के मामले में

पुरुषों को इस बात का भ्रम रहता है कि महिलाएं उनसे कमजोर हैं। ऐसा हो सकता है शारीरिक बल के हिसाब से लगता हो लेकिन जब बात साहस की आती है तो महिलाएं पुरुषों से 6 गुना ज्यादा साहसी होती हैं।वे मुश्किल से मुश्किल परिस्तिथियों का सामना करने से पीछे नहीं हटती हैं।

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लिए अच्छा होता है। फल न्यूट्रिशन्स से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाने की सलाह दी जाती है। फलों को एनर्जी और न्यूट्रिशन्स का पावर हाउस कहा जाता
फल खाना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है। फल न्यूट्रिशन्स से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाने की सलाह दी जाती है। फलों को एनर्जी और न्यूट्रिशन्स का पावर हाउस कहा जाता है। फल खाने चाहिए इसमें बेशक कोई दोराय नहीं है लेकिन फल खाने के टाइम को लेकर कई राय हैं। कुछ लोग सुबह नाश्ते में फल खाते हैं, कुछ लंच या डिनर के बाद फल लेते हैं तो वहीं कुछ लोग शाम के वक्त फल खाना प्रेफर करते हैं। फलों को खाने का सही समय क्या है, एक्सपर्ट्स की इस बारे में अलग-अलग राय है। खासकर, क्या मील्स के बाद फल खाने चाहिए, ये सवाल अक्सर पूछा जाता है।

खाना खाने के तुरंत बाद नहीं खाने चाहिए फल

एक्सपर्ट की मानें तो खाने के बाद फल नहीं खाने चाहिए। इसकी वजह ये है हमारे खाने में कार्ब्स और प्रोटीन मौजूद होता है। जब हम खाने के बाद फल खाते हैं तो फलों में मौजूद शुगर, कार्ब्स और प्रोटीन के साथ फरमेंट हो जाती है। इसलिए डाइजेशन प्रोसेस स्लो हो जाता है। इससे हमारी पाचन प्रणाली पर दबाव बढ़ जाता है और इसकी वजह से पेट में दर्द या बेचैनी हो सकती है। अगर आप खाने के तुरंत बाद फल खाएंगे तो इससे आपको अपच की समस्या हो सकती है। खाने के तुरंत बाद हमारा पेट खाने को पचाने में लगा होता है। ऐसे में जब हम इसके तुरंत बाद फल खा लेते हैं तो फल सही तरह से पच नहीं पाते हैं और इस वजह से कब्ज की दिक्कत हो सकती है। खासकर जिन फलों में पानी की मात्रा ज्यादा होती है उन्हें खाने के तुरंत बाद पचाना मुश्किल होता है।

ये है फल खाने का सही समय

अगर हम खाने से एक घंटा पहले फल खाते हैं तो ये हमारी डाइट कंट्रोल करने में मदद करता है। इससे पेट भरा हुआ महसूस होता है और हम ओवरईटिंग से बचते हैं। फलों में मौजूद फाइबर से डाइजेशन प्रोसेस सही होता है और हमारे पेट को आराम मिलता है। इसके अलावा खाने के एक या दो घंटे बाद भी फल खाए जा सकते हैं। नाश्ते में भी फल लेना हेल्दी माना जाता है।

अपनी डाइट में हमेशा मौसमी फलों को शामिल करना चाहिए। यूं तो आजकल ज्यादातर फल हर मौसम में मिल जाते हैं लेकिन मौसम के हिसाब से फलों को अपनी डाइट में शामिल करने से पोषण ज्यादा मिलता है। इससे कई मौसमी बीमारियों से हमारा बचाव होता है।

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सपने में क्या दिखता है इसका सीधा संबंध आपके निजी जीवन से होता है. अगर किसी को ये 5 चीजें सपने में दिख रही हैं तो समझ जाइये कि बात बन गई
लक्ष्मी मां को शास्त्रों में धन का प्रतीक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब लक्ष्मी मां खुश होती हैं तो धन की वर्षा होती है।कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी के पास हमेशा पैसों की दिक्कत बनी रहती है।जबकी कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि किसी पर अचानक लक्ष्मी जी की कृपा बनती है और वो अमीर हो जाता है। इंसान को सपने में कई तरह की चीजें दिखती हैं।अगर इंसान को सपने में ये 5 चीजें दिखने लग जाएं तो इसे इस बात का संकेत मान लेना चाहिए कि उसके दिन बदलने वाले हैं और वो अमीर होने वाला है।

1-उल्लू

उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी है और मां लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है।ऐसे में अगर आपको सपने में उल्लू नजर आया है तो इससे भी ये समझ लेना चाहिए कि आपके जीवन में धन लाभ की संभावना बन रही है और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा आप पर हो सकती है।उल्लू दिखना स्वप्न शास्त्र में बहुत ही शुभ माना गया है।

2- सांप

बहुत लोगों को ऐसा भ्रम होता है कि सपने में सांप का दिखना अशुभ ही होता है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है । सांप को दिखना शुभ भी माना जाता है। बस निर्भर ये करता है कि सांप को आपने जब सपने में देखा तो वो किस अवस्था और स्थान में था।अगर आपने सपने में सांप को उसके बिल के आस-पास देखा है तो इसे भी स्वप्न शास्त्र के हिसाब से धन आने का संकेत माना जाता है।

3- गरुड़

गरुड़ को भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है जो इस जगत के पालनहार हैं। अगर आपको सपने में कभी भी गरुड़ नजर आए तो समझ जाइये कि भगवान विष्णु की कृपा आपपर बन रही है। ऐसा माना जाता है कि अगर आपको सपने में गरुड़ देव दिख रहे हैं तो मतलब की आप जीवन में जल्द ही अमीर बन सकते हैं।

4- सोना

अगर आपको सपने में कहीं सोना दिख जाए तो समझ लो की बात बन गई। सपने में सोने का दिखना बहुत शुभ माना जाता है। इसे आपके जीवन में मां लक्ष्मी के आगमन के रूप में जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि अगर सपने में सोना दिखा तो मतलब जल्द ही आपके घर में पैसों की वर्षा हो सकती है।

5- दीपक

दीपक की हिंदू धर्म में विशेष महत्ता है और हर तीज-त्योहार पर दीपक जरूर जलाया जाता है। अगर आपको सपने में जलता हुआ दीपक दिख जाए तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। इससे ये माना जाता है कि इंसान के अच्छे दिन आने वाले हैं और उसे लंबे समय से चली आ रही किसी आर्थिक समस्या से छुटकारा मिल सकता है।