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Mudra Loan, अब आसानी से नहीं मिलेगा, नियमों में हो सकता है ये बड़ा बदलाव!

देश में स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ शुरू की हुई है. इस योजना के तहत सरकार आम लोगों को रियायती दर पर आसान लोन उपलब्ध कराती है. इसकी गारंटी भी सरकार खुद लेती है.

 लेकिन जल्द ही ये लोन मिलना लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसके नियमों को कड़ा बनाया जा सकता है. सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने इसके लिए नई गाइडलाइंस तैयार की हैं. ये रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब सरकार ने बजट 2024 में इस लोन की मैक्सिमम लिमिट को 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 20 लाख रुपए करने का ऐलान किया है.

नीति आयोग की नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि अब से मुद्रा लोन देने से पहले लोन लेने वाले व्यक्ति का बैकग्राउंड चेक किया जाना चाहिए. इतना ही नहीं ये भी देखा जाना चाहिए कि क्या वह लोन लेने लायक है या नहीं. इसके अलावा कई और सुझाव नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिए हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट

नीति आयोग ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का आकलन करने वाली एक रिपोर्ट ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के प्रभाव का आकलन’ जारी की है. 

इसमें कहा गया है कि लोन की अंडरराइटिंग के लिए ई-केवाईसी को बढ़ावा को देना चाहिए. इससे लोन से क्या फायदा हुआ, उसका आकलन करने में मदद मिलेगी.

इतना ही नहीं नीति आयोग ने गाइडलाइंस का एक सेट भी तैयार किया है, जो किसी लोन लेने वाले के बैकग्राउंड वेरिफिकेशन और ऋण लेने की क्षमता का आकलन करने में मदद करेगी. वहीं बैंकों को लोन के डिफॉल्ट होने की स्थिति में एक सुरक्षा नेट भी उपलब्ध कराएगी. चूंकि इन लोन को लेने के लिए कुछ गिरवी नहीं रखना होता है, ऐसे में रिस्क का सही आकलन इस योजना की सफलता में अहम रोल अदा कर सकता है.

छोटे कारोबारी लेते हैं लोन

मुद्रा लोन लेने वालों में ज्यादातर छोटे कर्जदार और छोटे कारोबारी हैं. उनके पास पर्याप्त मात्रा में दस्तावेज नहीं होते या बहुत सीमित डॉक्यूमेंट्स होते हैं. इसलिए बैंकों के लिए उनका वेरिफिकेशन करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है.

संभव है कि ई-वेरिफिकेशन का मकसद बैंकों का काम आसान करना हो, लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी चुनौतियों को देखते हुए संभावना है कि लोगों को लोन लेने में और दिक्कत आए.

इस योजना को सरकार ने 2015 में लॉन्च किया था. मुद्रा योजना के आधिकारिक पोर्टल के मुताबिक अब तक 39.93 करोड़ लोन पास किए गए हैं. इसके तहत सरकार अब तक 18.39 लाख करोड़ रुपए का लोन बांट चुकी है.

37 साल की उम्र में थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनीं शिनावात्रा,बना दिया ये रिकॉर्ड

थाईलैंड की संसद ने पैतोंगतार्न शिनावात्रा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुन लिया है. वह देश की सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं. 2 दिन पहले ही थाईलैंड की सर्वोच्च अदालत ने प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन को पद से बर्खास्त कर दिया था. उन पर नैतिक नियमों का उल्लंघन करके एक पूर्व अपराधी की कैबिनेट में नियुक्ति करने का आरोप था.

37 साल की पैतोंगतार्न थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनावात्रा की सबसे छोटी बेटी हैं. उनके पिता के अलावा, उनकी चाची यिंगलक भी थाईलैंड की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं, वह देश की सबसे युवा और दूसरी महिला प्रधानमंत्री हैं.

परिवार की तीसरी प्रधानमंत्री

शिनावात्रा अपने परिवार की तीसरी सदस्य हैं जो इस पद तक पहुंची हैं. उनके पिता थाकसिन शिनावात्रा पिछले साल ही 15 साल के निर्वासन के बाद देश लौटे थे. थाकसिन साल 2001 में पहली बार थाईलैंड के प्रधानमंत्री चुने गए थे, लेकिन 2006 में तख्तापलट के बाद उन्हें निर्वासित हो गए. बताया जाता है कि थाईलैंड की राजनीति में पैतोंगतार्न काफी लोकप्रिय हैं. पिछले चुनावों में भी उन्होंने गर्भवती होने के बावजूद जमकर प्रचार किया था, उनकी फ्यू थाई पार्टी 2023 के चुनावी में दूसरे स्थान पर थी. वहीं उनके परिवार की भी थाईलैंड की राजनीति में अच्छी पकड़ रही है, यही वजह है कि उन्हें जनता का खासा समर्थन मिलता है.

क्यों हटाए गए श्रेथा थाविसिन?

करीब 48 घंटे पहले थाईलैंड की संवैधानिक अदालत ने श्रेथा थाविसिन को प्रधानमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया था. उन पर जेल की सजा काट चुके एक वकील को कैबिनेट मंत्री बनाने का आरोप था. कोर्ट के मुताबिक श्रेथा ने इस तरह की नियुक्ति कर संवैधानिक नियमों का उल्लंघन किया है, हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद थाविसिन ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि उन्हें नियमों की पूरी तरह जानकारी नहीं थी.

दरअसल श्रेथा ने पिचित चुएनबन को कैबिनेट में जगह दी थी, पिचित को 2008 में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों को रिश्वत देने की कोशिश करने के लिए 6 महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी. कोर्ट ने माना है कि श्रेथा को पिचित से जुड़े मामलों की अच्छी तरह से जानकारी थी. बता दें कि श्रेथा थाविसिन पिछले साल 2023 में हुए चुनाव में ही जीतकर प्रधानमंत्री बने थे. महज़ एक साल बाद कोर्ट की बर्खास्तगी से उनकी सरकार गिर गई.

कब लगेगा साल का दूसरा सूर्य ग्रहण,भारत में दिखेगा या नहीं?, जानें

हिंदू धर्म में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण का एक विशेष महत्व माना गया है. सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है. जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीत से गुजरता है या सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है, जिसके कारण पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश घरती पर कम या पूरी तरह से गायब हो जाता है, इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. आमतौर पर साल में 1 सूर्य ग्रहण ही लगता है लेकिन इस साल 2024 में दो सूर्य ग्रहण और दो ही चंद्र ग्रहण लगने वाला है. इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल 2024 को लगा था, जिसका विशेष प्रभाव अमेरिका और उसके पास के देशों में देखने को मिला था लेकिन यह भारत में नहीं दिखा था. ऐसे में साल के दूसरे और आखिरी सूर्य ग्रहण को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं कि यह सूर्य ग्रहण कब लगने वाला है और क्या इस बार ये ग्रहण भारत में दिखेगा या नहीं? ऐसे में आइए इस लेख में साल के दूसरे सूर्य ग्रहण से जुड़ी हर जानकारी बारे में विस्तार से जानते हैं.

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण होगा रिंग ऑफ फायर

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 2024 अक्टूबर में लगेगा. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह दूसरा सूर्य ग्रहण वलयाकार होगा, जिसे रिंग ऑफ फायर कहा जाता है. वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढकता, जिससे सूर्य का बाहरी हिस्सा एक चमकदार रिंग के रूप में दिखाई देता है. भारत में इसे न देख पाने की स्थिति में, लोग ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से इसको देख सकते हैं.

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण कब लगेगा 

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर 2024 को लग रहा है. इस दिन हिंदू कैलेंडर में अश्विन मास की अमावस्या तिथि होगी. भारतीय समय के अनुसार यह ग्रहण रात को 9 बजकर 13 मिनट पर शुरू होकर और 3 अगस्त तड़के 3 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगा. यह वलयाकार सूर्य ग्रहण कुल मिलाकर लगभग 6 घंटे 4 मिनट तक रहेगा.

दूसरा सूर्य ग्रहण भारत में दिखेगा या नहीं?

इस साल का पहला सूर्य भारत में नहीं दिखाई दिया था और अब हैरान करने वाली ये है कि इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण भी भारत में नहीं नजर आने वाला है. ऐसा होने का मुख्य कारण यह है कि ग्रहण भारतीय समयानुसार रात के समय में लगेगा.

कहां दिखाई देगा साल का दूसरा सूर्य ग्रहण?

अब ऐसे में लोग जानना चाहते होंगे कि साल का दूसरा सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा तो दुनिया के किन-किन देशों में दिखाई देगा. ब्राजील, कूक आइलैंड, चिली, पेरू, अर्जेंटीना, मैक्सिको, होनोलूलू, फिजी, उरुग्वे, अंटार्कटिका, न्यूजीलैंड, आर्कटिक, ब्यूनस आयर्स और बेका आइलैंड आदि देशों में साल का दूसरा सूर्य ग्रहण दिखेगा.

सूर्य ग्रहण के सूतक काल का समय

सामान्य तौर पर सूतक काल उस अवधि को कहा जाता है जब सूर्य ग्रहण लगा होता है. शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण लगने के ठीक 12 घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है. इस बार साल का दूसरा सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा, इसलिए इसका सूतक काल का भी मान्य नहीं होगा. जब सूतक के दौरान शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. साथ ही इस दौरान पूजा-पाठ भी करने से बचते हैं. सूतक काल में मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं और ग्रहण खत्म होने के बाद मंदिर को गंगाजल से पवित्र करके ही फिर कपाट खोलते हैं.

15 अगस्त पर असम के कई इलाकों में उल्फा ने लगाए बम,असम में सुरक्षा बढ़ाई गई

असम पुलिस ने गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गुवाहाटी के 8 स्थानों पर बम जैसी सामग्री बरामद की है. अधिकारियों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि प्रतिबंधित संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) की तरफ से स्वतंत्रता दिवस पर असम में 24 स्थानों पर सिलसिलेवार बम विस्फोट का दावा किया गया था, जिसके बाद पुलिस तलाशी अभियान में जुट गई.

उल्फा-आई ने कथित तौर पर बम की जानकारी देने के लिए मीडिया संस्थान को मेल भेजा, ईमेल में उग्रवादी संगठन ने दावा किया कि बम तकनीकी विफलता के कारण नहीं फटे. उल्फा ने साथ ही कहा कि विस्फोट गुरुवार सुबह 6 बजे से दोपहर के बीच होने वाले थे, लेकिन तकनीकी वजह से बम नहीं फटे. प्रतिबंधित संगठन ने तस्वीरों के साथ 19 बमों के सटीक स्थानों की पहचान करने वाली एक लिस्ट भी जारी की.

उल्फा ने भेजा “बम” का ईमेल

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने अपना भाषण पूरा किया ही था कि उल्फा ने उन्हें बम से जुड़ा ईमेल भेजा, जिसके बाद सुरक्षा बलों की टीम इन बमों की छानबीन करने फौरन पहुंची. हालांकि, असम में उल्फा के बढ़ते हौसले ने खुफिया एजेंसी पर सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि जब तक उल्फा ने खुद बम की जानकारी देते हुए ईमेल नहीं किया तब तक पुलिस और सुरक्षा बलों को इसकी कोई जानकारी नहीं थी. जहां एक तरफ पुलिस को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी वहीं बड़ी बात यह है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे राज्य में सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे और पूरा राज्य हाई अलर्ट पर था.

राज्य में तलाशी अभियान तेज

पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह ने इस मामले की जानकारी देते हुए एक्स पर एक पोस्ट में कहा, असम पुलिस ने बम की तलाश में आज पूरे राज्य में तलाशी अभियान चलाया, गुवाहाटी में दो स्थानों पर संदिग्ध चीजे मिलीं, जिन्हें पुलिस के बम निरोधक दस्ते ने खोला, उन्होंने कहा कि इन वस्तुओं के अंदर कोई विस्फोटक उपकरण नहीं था, हालांकि कुछ सर्किट और बैटरियां देखी गईं. उन्होंने कहा कि अंदर की सामग्री को जांच के लिए भेजा गया है.

महानिदेशक जीपी सिंह ने कहा, लखीमपुर, शिवसागर, नलबाड़ी और नागांव में भी इसी तरह की सामग्री पाई गई, जिनका सुरक्षित निपटान कर दिया गया है. साथ ही जांच की जा रही है. इन 24 स्थानों में से आठ गुवाहाटी में हैं. राजधानी शहर में गांधी मंडप के पास आश्रम रोड, पानबाजार, जोराबाट, भेटापारा, मालीगांव और राजगढ़ में भी बम लगाने का दावा किया गया है.

असम में सुरक्षा बढ़ाई गई

पुलिस ने ईमेल में उल्लिखित स्थानों और उसके आसपास की सभी सड़कों को बंद कर दिया है. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सभी स्थानों पर पहुंच गए हैं और खोजबीन अभियान जारी है. असम पुलिस मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बम निरोधक दस्ते, मेटल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों को हर स्थान पर भेजा गया है. अब तक हमें लगभग आठ बैग और बक्सों की बरामदगी की जानकारी मिली है, जिनमें बम जैसी सामग्री है.

विपक्ष ने किया हमला

असम में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यह मामला सामने आया और पुलिस को इस बात की ईमेल से पहले इसकी भनक नहीं थी इस बात को अब विपक्ष ने सियासी मुद्दा बना कर सीएम हेमंत बिस्वा सरमा को घेरने का इरादा कर लिया है. विपक्ष ने इसको राज्य सरकार की विफलता कहा है और इसको लेकर सीएम सरमा के तत्काल इस्तीफे की मांग की है.

“बीजेपी काम करने में विफल रही”

दूसरी ओर मुख्यमंत्री सरमा ने उल्फा (आई) प्रमुख परेश बरुआ से उनकी समस्याओं और मांगों पर चर्चा करने के लिए बातचीत करने की बात सामने रखी है. असम कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, असम का अराजकता में घिरना भयावह है!

 भारी समर्थन के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार काम करने में विफल रही है. जिहाद संबंधी बयानबाजी के प्रति सीएम के जुनून ने महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटका दिया है, सुरक्षा और विकास से समझौता किया गया है. उन्होंने कहा कि उल्फा (आई) द्वारा असम में विभिन्न स्थानों पर बम लगाना गंभीर खुफिया और सुरक्षा खामियों को उजागर करता है

काशी विश्वनाथ और बाबा काल भैरव का तिरंगे का रंग में किया गया श्रृंगार

आज देश अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. पूरा देश आज तिरंगे के रंग में रंगा हुआ है तो भगवान कैसे पीछे रह सकते हैं. देश के बड़े मंदिरों में भी भगवान तिरंगे के रंग में रंगे नजर आए. कहीं देश के झंडे के रंगों के कपड़े तो कहीं झंडे. देश के सभी बड़े मंदिरों में तिरंगे से श्रृंगार किया गया. 15 अगस्त पर वाराणसी के बाबा श्री काशी विश्वनाथ और काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव का तिरंगे के रंग में श्रृंगार किया गया. इसके अलावा गुजरात के सोमनाथ मंदिर में भी भगवान सोमनाथ देश के रंग में डूबे नजर आए.

वाराणसी के ज्योतिर्लिंग पर फूल और बेल पत्र से बने तिरंगे को लपेटकर बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती की गई. गर्भग्रह में भी तिरंगे को हर जगह लगाया गया था. राष्ट्र प्रथम के इस दर्शन को ध्यान में रखकर 78वें स्वतंत्रता दिवस पर विश्वनाथ कॉरिडोर में स्थापित भारत माता की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया गया. सारी संस्कृतियों में परस्पर प्रेम और सद्भाव की भावना बनी रहे इसी भाव ध्यान में रखते हुए भारत माता का श्रृंगार किया गया. यहां भारत माता के श्रृंगार से पहले ध्वजरोहण भी किया गया.

तिरंगा श्रृंगार की खास परंपरा

ध्वजारोहण और भारत माता के विशेष श्रृंगार के बाद कॉरिडोर में महारुद्राभिषेक भी किया गया. काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन ने पिछले डेढ़ दशक से स्वतंत्रता दिवस पर बाबा विश्वनाथ का तिरंगा श्रृंगार करने की परम्परा शुरू की थी उसका अनुपालन भी आज तक किया जाता है. इस परम्परा को शुरू करने का उद्देश्य था कि बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद राष्ट्र और देश वासियों पर हमेशा बना रहे.

मंदिरों में फहराया गया तिरंगा

बाबा विश्वनाथ मंदिर के अलावा गुजरात के द्वारकाधीश और सालंगपुर मंदिरों में भी तिरंगे के रंगों से श्रृंगार किया गया. मंदिरों की घ्वजा को भी बदला गया और वहां तिरंगा भी फहराया गया. इसके अलावा मंदिर के आसपास की कई दुकानों में भी तिरंगा फहराया गया था. इसके अलावा सारंगपुर स्थित हनुमान दादा का भी अनोखा अंदाज देखने को मिला. तिरंगे के साथ यहां भी विशेष सजावट की गई.

कौन हैं अल्लूरी सीताराम राजू? जो 2 साल तक अंग्रेजों को खदेड़ा

स्वतंत्रता के लिए हमारे देश में कई लोगों ने एक से एक बलिदान दिए हैं. स्वतंत्रता की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत के सामने हंसते-हंसते गोलियां खाते रहे लेकिन कदम नहीं डिगे.

 ऐसे स्वतंत्रता के दीवानों की वजह से ही आज हम स्वतंत्र देश में बैठे हैं. इस स्वतंत्रता के पीछे कई गुमनाम हीरोज ने अपनी जान गंवाई है जिनका नाम अब बहुत कम लोग ही जानते हैं या फिर वह सिर्फ एक क्षेत्र विशेष के हीरो बनकर रह गए हैं. 

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं दक्षिण भारत के उस जननायक के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी लोगों की भलाई में लगा दिया. उन्होंने अंग्रेजों से सीधे तौर पर लोहा लिया और 2 साल तक जंगलों से खदेड़ा.

अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में 4 जुलाई 1897 को हुए थे. राजू के पिता वेंकटराम राजू थे जो उन्हें बचपन से ही अंग्रेजी हुकूमत के बारे में बताते थे. भारतीयों पर अंग्रेजी हुकूमत किस तरह से जुल्म ढा रही है इसकी राजू को बचपन से ही गहरी जानकारी हो गई. 

इसी बीच उन्होंने साधु बनने का फैसला किया और घर से चले गए. महज 18 साल की उम्र में राजू ने जानवरों को वश में करने की क्षमता हासिल की और ज्योतिष के साथ-साथ चिकित्सा भी सीखी. 

उनकी इन सभी खूबियों की वजह से पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोग उन्हें बहुत मानने लगे. सीताराम राजू को भारतीय इतिहास राम्पा विद्रोह के लिए जानता है.

जंगल में जाने पर लगाया प्रतिबंध

जनजातीय लोगों के बीच अल्लूरी सीताराम राजू की बहुत जल्द अच्छी साख बन गई थी. राजू ने अपनी बाकी की उमर इन लोगों के नाम कर दी और कई बड़े स्तरों पर काम किए. 1982 में मद्रास वन अधिनियम लागू किया गया जिसकी वजह से स्थानीय लोगों के जंगल में जाने पर बैन लग गया. यहां के जनजातीय लोगों ने इस फैसले का विरोध किया. 

यह लोग जंगलों में आग लगाकर जमीन को खाली करने के बाद खेती करते थे. इसे पोडु कहा जाता था. अधिनियम लागू होने से इनके रोजी-रोटी पर ही बन आई थी.

25 साल की उम्र में शुरू किया राम्पा विद्रोह

अल्लूरी सीताराम राजू बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी सुनकर बड़े हुए थे इसलिए उन्होंने महज 25 साल की उम्र में ही 1922 में राम्पा विद्रोह शुरू किया. उन्होंने आदिवासियों को संग लेकर पुलिस थानों पर हमला किया और हथियार इकट्ठे करने के बाद जंगलों में आने वाली अंग्रेजों की टीम को हर बार ढेर कर दिया. करीब 2 साल तक यही दौर चलता रहा. जंगलों में अंग्रेजी सैनिकों की जो भी टुकड़ी जाती थी वह कभी वापस लौट कर नहीं आई. वह चाहते थे कि गोदावरी के पूर्वी घाट से अंग्रेज पूरी तरह भाग जाएं. 2 साल तक अंग्रेजों को उल्टे पैर खदेड़ने के बाद आखिरकार 1924 को सीताराम राजू पकड़े गए.

गांव के सामने गोलियों से भूना

लंबे संघर्ष के बाद 7 मई 1924 को अंग्रेजी सैनिकों की टुकड़ी ने उन्हें चिंतबल्ली के जंगल में चारों तरफ से घेर लिया. इस लड़ाई में राजू को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और वह पास के एक गांव में ले गए. यहां पर राजू को एक पेड़ से बांध दिया गया. अंग्रेजी अफसर ने राजू को पूरे गांव के सामने गोलियों से भून डाला. अंग्रेज उनकी मौत को एक नजीर के रूप में पेश करना चाहते थे ताकि दूसरे लोग अंग्रेजी हुकूमत से टकराने के बारे में न सोचें. लेकिन अल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान को आज भी याद किया जाता है. केंद्र सरकार ने 1986 में उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था.

15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में क्यों चुना गया?,जाने इनका इतिहास

भारत की आजादी के दिन, 15 अगस्त को, देश भर में उत्साह और देशभक्ति का माहौल होता है. लोग इस दिन अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 15 अगस्त को ही क्यों चुना गया. आइए जानते हैं इसके बारे में

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में कैसे चुना?

भारत की आजादी के इतिहास के एक जरूरी पहलू को उजागर करती है. ब्रिटिश शासन के मूल योजना के अनुसार भारत को 30 जून, 1948 को आजाद होना था. लेकिन, नेहरू और जिन्ना के बीच पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर पैदा हुए तनाव और सांप्रदायिक दंगों के बढ़ते खतरे ने इस योजना को बदल दिया. जिन्ना के पाकिस्तान को भारत से अलग करने की मांग के कारण लोगों में सांप्रदायिक झगड़े की संभावना काफी हद तक बढ़ने लगी थी, जिसके चलते भारत को 15 अगस्त 1947 को ही आजादी देने का फैसला लिया गया था. लार्ड माउंटबेटन ने 4 जुलाई को 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में इंडियन इंडिपेंडेंस बिल प्रस्तुत किया, जिसे ब्रिटिश संसद में मंजूरी दी गई और बाद में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई.

15 अगस्त का ही दिन क्यों

यह दिन भारत के आखिरी वायसराय लोर्ड माउण्टबेटन के लिए बेहद खास था. दरअसल 15 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्र्व युद्ध के दौरान जापानी आर्मी ने ब्रिटिश सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे. जापान के आत्मसमर्पण के कारण 15 अगस्त उनके लिए एक खास दिन था. यहीं कारण था कि माउण्टबेटन ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना.

महात्मा गांधी नहीं हुए थे शामिल

महात्मा गांधी ने आजादी के जश्न में इसलिए भाग नहीं लिया क्योंकि देश में सांप्रदायिक हिंसा व्यापक रूप से फैली हुई थी. वे इस हिंसा से बहुत दुखी थे और मानते थे कि आजादी का जश्न मनाने से पहले देश में शांति स्थापित होना जरूरी है. इसके अलावा गांधी जी भारत के विभाजन के कड़े विरोधी थे. वे चाहते थे कि हिंदू और मुसलमान एक साथ रहें. विभाजन के कारण हुई हिंसा ने उन्हें बहुत आहत किया था.

ब्रिटिश शासन का अंत

दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य कमजोर पड़ गया था. भारत में भी स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था. महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अहिंसक तरीके से ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी. ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

गाजा में डॉक्टर बच्चियों को बाल काटने की दे रहे सलाह

गाजा में बीते 10 महीने से जंग जारी है. 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद इजराइल ने लगातार गाज़ा पर हमले कर रहा है. हमास और इजराइल की इस जंग ने गाज़ा के लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है.

करीब 40 हजार लोग मौत की नींद सो चुके हैं तो वहीं इससे दोगुने से भी ज्यादा लोग घायल हैं. अस्पतालों में इलाज के जरूरी उपकरणों, दवाइयों और डॉक्टर्स की कमी तो है ही लेकिन आम लोगों की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रहीं हैं.

बच्चियों को बाल काटने की सलाह

गाज़ा में 70 फीसदी घर और इमारतें इजराइल के हमलों में तबाह हो चुके हैं. करीब 90 फीसदी आबादी विस्थापित है और यह अपने ही देश में बने शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं. हालात इतने बदतर हैं कि यहां हर उस चीज़ की कमी है जो एक आमतौर पर एक इंसान की बुनियादी ज़रूरत होती है. 

भीड़भाड़ और सफाई की कमी से संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. वहीं रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक गाजा में साबुन, कंघी, शैंपू और पीरियड्स के प्रोडक्ट समेत कई बुनियादी चीजों की भारी कमी है. हालात इतने खराब हैं कि डॉक्टर्स बच्चियों को बाल काटने तक की सलाह दे रहे हैं.

गर्मी-भीड़भाड़ के कारण बीमारियों का खतरा

गाज़ा के डॉक्टर्स के मुताबिक बीते कुछ समय में जिस तरह की बीमारियां लोगों में देखने को मिल रहीं हैं वो ज्यादा भीड़, गर्मी, पसीना और नहाने के लिए पानी की कमी के चलते हो रही हैं. जानकारों के मुताबिक जब से इजराइल ने मिस्र से राफा सीमा क्रॉसिंग पर कब्जा किया है, तब से विदेशों से आने वाली मदद में भारी कमी आई है, जिससे मानवीय संकट और बढ़ गया है. हालांकि इजराइल इन आरोपों से इनकार करते हुए इसके लिए संयुक्त राष्ट्र समेत उन लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहा है जो मानवीय सहायता का वितरण करते हैं.

UN ने इजराइल पर लगाया आरोप

UN के मुताबिक इजराइल ने पिछले महीने उत्तरी गाज़ा में निर्धारित 157 मानवीय सहायता मिशनों में से आधे को रोक दिया. इनमें से महज़ 67 मानवीय सहायता मिशन को उत्तरी गाज़ा में इजराइली अधिकारियों ने सुविधा प्रदान की. बाकी को सुरक्षा या किसी अन्य कारण से या तो रोक दिया गया या फिर रद्द कर दिया गया.

समय पर मानवीय सहायता नहीं पहुंच पाने के कारण गाज़ा के लोगों का जीवन नर्क जैसा बन गया है. राहत शिविरों के टेंट में गर्मी और भीड़भाड़ काफी ज्यादा होती है, ऐसे में बीमारियों के बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है. साफ-सफाई के लिए बुनियादी जरूरतों और पानी की कमी ने इस संकट को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है.

वर्कआउट के दौरान हाथ में लगी चोट के बावजूद,जूनियर एनटीआर ने 'देवरा' की शूटिंग की पूरी

साउथ एक्टर जूनियर एनटीआर ‘देवरा: पार्ट वन’ को लेकर चर्चा में हैं. इस पिक्चर में उनके साथ जान्हवी कपूर भी नजर आएंगी. इस फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है. जूनियर एनटीआर ने हाल ही में एक पोस्ट शेयर करते हुए ये जानकारी दी. अब उनके ऑफिस की तरफ से एक बयान जारी किया गया है, जिसमें ये कहा गया है कि वर्कआउट करते हुए उनके हाथ में चोट लग गई थी. 

बताया गया है कि कुछ दिन पहले जूनियर एनटीआर की बाईं कलाई में मोच आ गई थी. उन्हें ये चोट कुछ दिन पहले जिम में वर्कआउट करते समय लगी थी.

बयान में कहा गया है, “एहतियात के तौर पर उनके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया है. चोट के बावजूद मिस्टर एनटीआर ने कल रात ‘देवरा’ की शूटिंग पूरी की और अब ठीक हो रहे हैं.” बताया गया है कि कुछ हफ्तों में वो जल्द ही काम पर लौट आएंगे. इसके साथ ही उस बयान में ये भी रीक्वेस्ट किया गया कि इस चोट के बारे में अटकलें लगाने से बचें.

जूनियर एनटीआर ने दर्शकों को दिया ये खास संदेश

इससे पहले आज जूनियर एनटीआर ने अपनी फिल्म ‘देवरा’ के पहले भाग की शूटिंग पूरी होने की घोषणा की थी. उन्होंने ‘देवरा’ के सेट पर डायरेक्टर कोराटाला शिवा के साथ अपनी एक तस्वीर शेयर की थी. इस फोटो में दोनों एक दूसरे से बात करते नजर आ रहे थे. 

इस पोस्ट के कैप्शन में लिखा था, “मैंने अभी-अभी देवरा पार्ट 1 के लिए अपना आखिरी शॉट पूरा किया है. ये कितना शानदार सफर रहा है. मैं इस टीम और उनसे मिले प्यार को हमेशा याद रखूंगा. मैं 27 सितंबर को शिव की बनाई गई दुनिया में सभी के शामिल होने को लेकर बेताब हूं

जूनियर एनटीआर की ‘देवरा: पार्ट 1’

 एक एक्शन ड्रामा फिल्म है. इसे कोरटाला शिवा ने लिखा और डायरेक्ट किया है. कहा जा रहा है कि इसमें जूनियर एनटीआर दो रोल्स में नजर आएंगे. इस मूवी में जूनियर एनटीआर के साथ-साथ कुछ बॉलीवुड सितारे भी नजर आएंगे. इसमें सैफ अली खान और जान्हवी कपूर शामिल हैं. ये पिक्चर जान्हवी की टॉलीवुड में डेब्यू फिल्म होने जा रही है. मेकर्स ने ‘देवरा’ को दो भागों में रिलीज करने की तैयारी कर ली है. इस फिल्म का पहला भाग 27 सितंबर को सिनेमाघरों में आने वाला है. दर्शकों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार है.

कई बार टली रिलीज डेट

‘देवरा: पार्ट 1’ की रिलीज डेट की बात करें तो इसकी रिलीज डेट दो बार टाली जा चुकी है. इस फिल्म की घोषणा के साथ ही बताया गया था कि ये फिल्म 5 अप्रैल 2024 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. पिक्चर की शूटिंग के दौरान सैफ अली खान घायल हो गए थे. इस कारण शूटिंग की तारीखें बदलनी पड़ी थीं. इसके बाद इसकी रिलीज डेट 10 अक्टूबर तय की गई. फिर खबर आई कि ये फिल्म 10 अक्टूबर को न

पाकिस्तान में 14 अगस्त को क्यों मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस,जाने

भारत-पाकिस्तान के एक ही दिन आजाद होने के बावजूद दोनों देशों का स्वतंत्रता दिवस अलग-अलग दिन मनाए जाने के कई कारण बताए जाते हैं. कुछ जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान को एक स्वतंत्र देश के रूप में 14 अगस्त को मंजूरी मिली थी. इसलिए वहां आजादी का पर्व इसी दिन मनाया जाता है.

 एक बात यह भी कही जाती है कि तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन तब ब्रिटिश गर्वमेंट के प्रतिनिधि थे और एक साथ दिल्ली और कराची में उपस्थित नहीं हो सकते थे.

 इसीलिए उन्होंने 14 अगस्त को ही पाकिस्तान को सत्ता ट्रांसफर कर दी थी.

इसके पीछे एक और अहम कारण माना जाता है दोनों देशों का स्टैंडर्ड टाइम. भारत का स्टैंडर्ड टाइम पाकिस्तान के स्टैंडर्ड टाइम से 30 मिनट आगे है. यानी कि जब भारत में 12 बजते हैं तो पाकिस्तान में 11:30 ही बज रहे होते हैं. 

ऐसे में यह माना जाता है कि चूंकि अंग्रेजों ने भारत में भारतीय स्वतंत्रता एक्ट पर हस्ताक्षर किए थे और तब रात के 12:00 बजे रहे थे यानी भारत में नया दिन शुरू हो चुका था, लेकिन पाकिस्तान में तब 14 अगस्त रात के 11:30 ही बज रहे थे.