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बरसात के दिनों में की जाने वाली कुछ कुछ गलतियों के कारण आप हो सकते हैं गंभीर रूप से बीमार

मानसून का ये समय गर्मी से राहत दिलाने वाला जरूर होता है पर अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लेकर आता है। मौसम में नमी और तापमान में बदलाव के कारण  बैक्टीरिया, वायरस और अन्य रोगाणुओं का विकास तेजी से होने लगता है जो कई तरह की संक्रामक बीमारियां बढ़ा देते हैं। इसके अलावा दूषित पानी और खाने से डायरिया और पाचन से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं।

ये मौसम मच्छरों के प्रजनन के भी अनुकूल होता है यही कारण है कि इन दिनों में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं मानसून के दिनों में सेहत को लेकर सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। साफ और शुद्ध पानी पिएं और खाने की स्वच्छता का ध्यान रखें। बरसात के दिनों में की जाने वाली कुछ गलतियां आपको गंभीर रूप से बीमार कर सकती हैं।


खान-पान को लेकर असावधानी बारिश के मौसम में खान-पान को लेकर बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। मानसून में खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया और विषाणुओं का विकास तेजी से होता है। बाहर का खाना खाने से पेट की बीमारियां, जैसे फूड पॉइजनिंग, गैस्ट्रोएंटेराइटिस आदि का खतरा बढ़ सकता है। इसी तरह से इस मौसम में पानी के दूषित होने का भी खतरा अधिक होता है जिससे टाइफाइड, हेपेटाइटिस, और दस्त की समस्या हो सकती है। इन समस्याओं से बचे रहने के लिए बाहर का खाना खाने से बचें और केवल उबला या फिल्टर किया हुआ पानी पीना चाहिए।

मानसून में मच्छर जनित रोगों जैसे डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया का खतरा अधिक रहता है। असल में बरसात के कारण पानी का जमाव मच्छरों के पनपने के लिए सबसे अनुकूल हो जाता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित देश के कई राज्यों में डेंगू के मामले बढ़ रहे हैं। मच्छरों से बचाव के तरीके न अपनाना आपकी सेहत के लिए समस्याओं का कारण बन सकता है। डेंगू जैसी बीमारियां जानलेवा भी हो सकती हैं, इसको लेकर सावधानी बरतना जरूरी है।  मच्छरदानी, मच्छर भगाने वाली दवाओं का छिड़काव और पूरी बाजू के कपड़े पहनकर मच्छरों से बचाव करें।

स्वच्छता की अनदेखी कई प्रकार के संक्रामक रोग हमारे हाथों के माध्यम से फैलते हैं। हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखकर फ्लू, कंजंक्टिवाइटिस जैसी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। खाने से पहले और बाद में, शौच के बाद हाथों को अच्छी तरह से साफ करें। हाथों की साफ-सफाई का ध्यान रखकर भी आप संक्रामक बीमारियों के जोखिमों को कम कर सकते हैं। बारिश में भीगे कपड़े पहने रहने से बचना चाहिए।

गीले कपड़े बढ़ा सकते हैं त्वचा की दिक्कत बारिश में भीगे कपड़े पहने रहने से बचना चाहिए। गीले कपड़े त्वचा की समस्याएं जैसे रैशेज, फंगल इंफेक्शन आदि पैदा कर सकते हैं। गीले कपड़ों के कारण दाद और खुजली जैसी समस्याओं का भी खतरा रहता है। इसके अलावा बारिश के मौसम में ज्यादा भीगने से सर्दी-खांसी और साइनस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सुनिश्चित करें कि आप सूखे और साफ कपड़े ही पहनें।

Note: स्ट्रीट बज द्वारा दी गई जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
हेल्थ टिप्स:अगर आप मोमोज खाने के शौकीन है तो हो जाइए सावधान क्योंकि एक प्लेट मोमोज के साथ आपको मिल सकती है ये गंभीर बीमारी


आज कल बच्चे हो या बड़े सभी को मोमोज बहुत पसंद हर कोई मोमोज ,फ्रेंच फ्राई, चाउमीन कई तरह के स्ट्रीट फूड खाने के शौकीन है और मोमोज तो आजकल ज्यादा ही ट्रेंड में है। गली कूचे में आपको ये मोमोज का स्टॉल दिखाई दे ही जाएगा और हर स्टॉल पर आपको भीड़ लगी दिख ही जाएगी, लेकिन क्या आपको पता है यहीं स्वादिष्ट मोमोज आपकी जान के दुश्मन हो सकते हैं. ये मोमोज कई बड़ी बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।

मोमोज खाने से बढ़ता है इन बीमारियों का खतरा

डायबिटीज-

डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है. इस परेशानी से कई सारे लोग आज के समय में ग्रस्त हैं. यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक ये शरीर में ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है. दरअसल में ये मैदे से बना होता है, जिसके चलते ऐसा होता है. मोमोज को सॉफ्ट बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ पैंक्रियाज के लिए काफी हानिकारक होते हैं. ऐसे में पैंक्रियाज को नुकसान होने पर इंसुलिन हार्मोन का सिक्रेशन सही तरीके से नहीं हो पाता, जिससे डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

ये हर किसी को पता है कि हमारे शरीर के लिए मैदा अच्छा नहीं होता है. इसे रिफाइंड आटा भी कहते हैं, इसे बनाने के लिए गेहूं से प्रोटीन और फाइबर को अलग कर दिया जाता है, जिसके चलते जब आप मोमोज के रूप में इसे खाते हैं तो ये मैदा शरीर में जाकर हड्डियों के कैल्शिम को सोखने लगता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

कैंसर –

कई लोग मोमोज को बनाने में मोनोसोडियम ग्लूटामाइन (MSG) का प्रयोग करते हैं. इससे मोमोज और टेस्टी हो जाते हैं, लेकिन ये हमारे शरीर के लिए अच्छा नहीं होता है. इसे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.

दिल से जुड़ी परेशानियां-

मोमोज के साथ मिलने वाली तीखी चटनी में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है. ऐसे में बीपी के बढ़ने पर दिल से जुड़ी परेशानियां जन्म ले सकती हैं. इनमें हार्ट स्ट्रोक, हार्ट अटैक का खतरा शामिल है.

मोटापे की समस्या-

मोमोज को बनाने के लिए मैदे का यूज किया जाता है. मैदे में स्टार्च होता है जो मोटापे के बढ़ने का कारण बनता है. साथ ही मैदा कोलेस्‍ट्रॉल और ब्‍लड में ट्राइग्‍लीसराइड बढ़ाने का भी काम करता है।

हेपेटाइटिस का खतरा मानसून में बढ़ जाता है,इससे बचाव के क्या उपाय है जानते हैं

हेपेटाइटिस, लिवर को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली संक्रामक बीमारियों में से एक है। मानसून के दिनों में इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में दूषित पानी और भोजन के सेवन के कारण बड़ी संख्या में हेपेटाइटिस संक्रमण के मामलों का निदान किया जाता रहा है। हेपेटाइटिस की समस्या लिवर में सूजन का कारण बनती है। संक्रमितों में लिवर डेमैज, लिवर फेलियर, सिरोसिस, लिवर कैंसर या मृत्यु का भी खतरा हो सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इस गंभीर संक्रामक रोग से बचाव के लिए सभी लोगों को निरंतर प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। स्वच्छता में कमी और खान-पान को लेकर बरती गई असावधानी के कारण इसका जोखिम बढ़ जाता है। मानसून का समय पाचन से संबंधित कई तरह की बीमारियों के जोखिमों को बढ़ा देता है।  हेपेटाइटिस संक्रमण का खतरा भी इसमें काफी बढ़ जाता है। वैसे तो टीकाकरण अभियान के चलते अब इसमें कमी आई है पर अब भी हर साल बड़ी संख्या में लोगों में इस संक्रामक रोग का निदान किया जाता रहा है।

हेपेटाइटिस का मतलब है लिवर की सूजन, इसपर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो कई तरह की गंभीर समस्याओं का भी जोखिम हो सकता है। इसके अलावा बरसात के मौसम में पेट में संक्रमण होना भी आम है। इसके कारण पेचिश और दस्त के साथ पेट दर्द और मतली की दिक्कत हो सकती है।

इन समस्याओं से बचाव के लिए तीन बातों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए।

साफ पानी का ही करें सेवन मानसून के दौरान पानी का दूषित होना एक आम समस्या है, विशेषतौर पर जिन इलाकों में बाढ़ आ जाती है वहां इसका खतरा और भी बढ़ जाता है, जिससे हेपेटाइटिस हो सकता है। हमेशा उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पिएं। घर में वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। यात्रा करते समय अपनी खुद की पानी की बोतल साथ रखें।

साफ पानी के साथ स्वच्छ और अच्छे से पका खाना ही खाएं। स्ट्रीट फूड्स से बचें। कच्चे सलाद का सेवन तभी करें जब फल और सब्जियां ठीक से धुली हुई और छीली हुई हों।

स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी हेपेटाइटिस ए और ई जैसे संक्रमण का मुख्य कारण अस्वच्छता को माना जाता है। बरसात हो या कोई भी मौसम हाथ की स्वच्छता बहुत जरूरी है। खाने से पहले, शौचालय का इस्तेमाल करने के बाद और संभावित रूप से दूषित सतहों को छूने के बाद अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं। बार-बार मुंह को छूने से बचें। हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखकर हेपेटाइटिस के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।

हेपेटाइटिस से बचाव के लिए टीकाकरण

कुछ प्रकार के टीके इस संक्रामक रोग के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं। हेपेटाइटिस ए और बी के लिए टीका लगवाने के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें। स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी नवजात शिशुओं को हेपेटाइटिस बी के टीके लगाने की सलाह देते हैं। आमतौर पर बचपन के पहले 6 महीनों में तीन टीके लगाए जाते हैं। हेपेटाइटिस बी के खिलाफ टीकाकरण हेपेटाइटिस डी को भी रोक सकता है।

वैक्सीनेशन से संक्रमण को रोकने और संक्रमण की स्थिति में गंभीर रोग के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।

Note: स्ट्रीट बज लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
मानसून का मौसम जिसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है,जिससे लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है

मानसून का ये मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है, इसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है। डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल सहित कई राज्यों में डेंगू का खतरा बढ़ रहा है

राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी इसको लेकर लोगों को सावधान किया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डेंगू के साथ इन दिनों टाइफाइड का जोखिम भी अधिक देखा जा रहा है, जिसको लेकर भी सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में टाइफाइड के मामले भी बढ़ने लगे हैं। तेलंगाना के कई शहरों में डॉक्टरों को अस्पताल में रोजाना 5 से 6 मामले देखने को मिल रहे हैं। राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी मौसमी बीमारियों के कारण बुखार की शिकायत के साथ रोजाना ओपीडी में 700-800 मरीज आ रहे हैं। डेंगू के साथ-साथ टाइफाइड से भी बचाव को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। टाइफाइड बुखार को एंटरिक बुखार भी कहा जाता है, ये साल्मोनेला बैक्टीरिया के कारण होता है। यहां जानना जरूरी है कि टाइफाइड मच्छरों के काटने से नहीं फैलता है।

टाइफाइड संक्रमण के बारे में जानिए

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, टाइफाइड बुखार साल्मोनेला बैक्टीरिया से दूषित भोजन और पानी के सेवन के कारण होता है। कई मामलों में संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से भी टाइफाइड का खतरा हो सकता है। वैसे तो टाइफाइड बुखार से पीड़ित अधिकांश लोग एंटीबायोटिक्स उपचार से लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं हालांकि अगर इसका समय पर उचित इलाज न हो पाए तो इसके कारण गंभीर जटिलताओं और मृत्यु का खतरा भी हो सकता है।

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड संक्रमण के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 1 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। इसमें हल्के से लेकर तेज बुखार (104 डिग्री फारेनहाइट), ठंड लगने, सिरदर्द, कमजोरी और थकान, मांसपेशियों और पेट में दर्द के साथ दस्त या कब्ज की दिक्कत हो सकती है। कुछ लोगों को त्वचा पर चकत्ते होने, भूख न लगने और पसीना आने की भी समस्या होती है। इलाज न होने पर ये बीमारी कुछ सप्ताह बाद आंतों में भी दिक्कतें पैदा कर सकती है। इसके कारण पेट में सूजन, पूरे शरीर में फैलने वाले आंत के बैक्टीरिया के कारण संक्रमण (जिसे सेप्सिस कहा जाता है) और भ्रम की दिक्कत भी हो सकती है। टाइफाइड बुखार के कारण आंतों में क्षति और रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है।

टाइफाइड का इलाज और बचाव

टाइफाइड बुखार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं ही एकमात्र प्रभावी उपचार है। टाइफाइड से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं जो इस संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं। दैनिक जीवन में कुछ उपायों की मदद से टाइफाइड से बचाव किया जा सकता है।

संक्रमण को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखना है। बार-बार हाथ धोना आपको संक्रमण से बचा सकता है।

दूषित पानी से ये संक्रमण फैलता है इसलिए केवल उबाल कर या फिर फिल्टर किया हुआ पानी ही पीना चाहिए।

कच्चे फल और सब्जियां खाने से बचें। कच्चे उत्पाद दूषित पानी में धुले हो सकते हैं, इसलिए इनके उपयोग से पहले इसे अच्छे से साफ करें।

भोजन को अच्छे से पकाकर ही खाएं। बासी भोजन से बचना चाहिए।

अगर आपको 2-3 दिनों से बुखार है और ये सामान्य दवाओं से नहीं ठीक हो रहा है तो डॉक्टर की सलाह पर खून की जांच जरूर कराएं

Note: स्ट्रीट बज लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

मानसून का मौसम जिसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है,जिससे लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है
मानसून का ये मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है, इसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है। डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल सहित कई राज्यों में डेंगू का खतरा बढ़ रहा है

राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी इसको लेकर लोगों को सावधान किया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डेंगू के साथ इन दिनों टाइफाइड का जोखिम भी अधिक देखा जा रहा है, जिसको लेकर भी सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में टाइफाइड के मामले भी बढ़ने लगे हैं। तेलंगाना के कई शहरों में डॉक्टरों को अस्पताल में रोजाना 5 से 6 मामले देखने को मिल रहे हैं। राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी मौसमी बीमारियों के कारण बुखार की शिकायत के साथ रोजाना ओपीडी में 700-800 मरीज आ रहे हैं। डेंगू के साथ-साथ टाइफाइड से भी बचाव को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। टाइफाइड बुखार को एंटरिक बुखार भी कहा जाता है, ये साल्मोनेला बैक्टीरिया के कारण होता है। यहां जानना जरूरी है कि टाइफाइड मच्छरों के काटने से नहीं फैलता है।

टाइफाइड संक्रमण के बारे में जानिए

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, टाइफाइड बुखार साल्मोनेला बैक्टीरिया से दूषित भोजन और पानी के सेवन के कारण होता है। कई मामलों में संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से भी टाइफाइड का खतरा हो सकता है। वैसे तो टाइफाइड बुखार से पीड़ित अधिकांश लोग एंटीबायोटिक्स उपचार से लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं हालांकि अगर इसका समय पर उचित इलाज न हो पाए तो इसके कारण गंभीर जटिलताओं और मृत्यु का खतरा भी हो सकता है।

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड संक्रमण के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 1 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। इसमें हल्के से लेकर तेज बुखार (104 डिग्री फारेनहाइट), ठंड लगने, सिरदर्द, कमजोरी और थकान, मांसपेशियों और पेट में दर्द के साथ दस्त या कब्ज की दिक्कत हो सकती है। कुछ लोगों को त्वचा पर चकत्ते होने, भूख न लगने और पसीना आने की भी समस्या होती है। इलाज न होने पर ये बीमारी कुछ सप्ताह बाद आंतों में भी दिक्कतें पैदा कर सकती है। इसके कारण पेट में सूजन, पूरे शरीर में फैलने वाले आंत के बैक्टीरिया के कारण संक्रमण (जिसे सेप्सिस कहा जाता है) और भ्रम की दिक्कत भी हो सकती है। टाइफाइड बुखार के कारण आंतों में क्षति और रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है।

टाइफाइड का इलाज और बचाव

टाइफाइड बुखार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं ही एकमात्र प्रभावी उपचार है। टाइफाइड से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं जो इस संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं।  दैनिक जीवन में कुछ उपायों की मदद से टाइफाइड से बचाव किया जा सकता है।

संक्रमण को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखना है। बार-बार हाथ धोना आपको संक्रमण से बचा सकता है।
दूषित पानी से ये संक्रमण फैलता है इसलिए केवल उबाल कर या फिर फिल्टर किया हुआ पानी ही पीना चाहिए।

कच्चे फल और सब्जियां खाने से बचें। कच्चे उत्पाद दूषित पानी में धुले हो सकते हैं, इसलिए इनके उपयोग से पहले इसे अच्छे से साफ करें।
भोजन को अच्छे से पकाकर ही खाएं। बासी भोजन से बचना चाहिए।

अगर आपको 2-3 दिनों से बुखार है और ये सामान्य दवाओं से नहीं ठीक हो रहा है तो डॉक्टर की सलाह पर खून की जांच जरूर कराएं
क्या आप जानते है बच्चो, बड़ो और बुजुर्गो को कितने घंटे की नींद लेने चाहिए, आईए जानते है इसके फायदे और नुकसान

जिस से तरह से किसी भी व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए भोजन, पानी से लेकर सांस की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह हर व्यक्ति को प्रयाप्त मात्रा में हर दिन नींद लेने की जरूरत होती है. चाहे फिर उसमें कोई बच्चा हो या फिर बुजुर्ग. अगर आप पर्याप्त रूप से नहीं लेते हैं तो आपको शारीरिक से लेकर मानसिक रूप तक कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं।व्यक्ति को उठना बैठना तक मुश्किल हो जाता है. उन्हें मानसिक स्वास्थ का लाभ नहीं मिलता. ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर कितने घंटे सोना चाहिए. आइए जानते हैं महिला पुरुष से लेकर बच्चे या युवाओं को कितने घंटे सोना चाहिए और नींद न लेने से कौन कौन सी समस्याएं हो सकती हैं. 

 नींद पूरी न होने पर हो सकती हैं ये समस्याएं

एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को सोना बेहद जरूरी है. ऐसा न करना उसके स्वास्थ को खराब कर सकता है. व्यक्ति का मेंटल स्ट्रेस तक बढ़ सकता है. अगर आप पर्याप्त नहीं लेत हैं तो आपको डायबिटीज से लेकर ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो सकती है. शरीर में मिनिरल्स का संतुलन बिगड़ जाता है. साथ ही हड्डियां धीरे धीरे कमजोर पड़ जाती है. वहीं महिलाओं में कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा कई गुणा ज्यादा बढ़ जाता है. 

बच्चों को लेनी चाहिए इतने घंटे की नींद

बच्चों को खेलने के साथ ही सोना भी बेहद जरूरी होता है. इससे उनकी बॉडी रिलेक्स होती है. नींद के दौरान हमारा शरीर विषाक्त पदार्थों की साफ सफाई करता है. यह शरीर की अंदर से मरम्मत का काम करते हैं. नींद की कमी होने पर हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. यही वजह है कि डॉक्टर्स नवजात बच्चों को 14 से 17 घंटे सोने की सलाह देते हैं. 4 से 11 माह के बच्चों को 11 से 15 घंटे और 1 से 2 साल तक की उम्र में बच्चे को 11 से 14 घंटे सोने की सलाह देते हैं. 

नींद पूरी न होने पर हो सकती हैं ये समस्याएं

एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को सोना बेहद जरूरी है. ऐसा न करना उसके स्वास्थ को खराब कर सकता है. व्यक्ति का मेंटल स्ट्रेस तक बढ़ सकता है. अगर आप पर्याप्त नहीं लेत हैं तो आपको डायबिटीज से लेकर ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो सकती है. शरीर में मिनिरल्स का संतुलन बिगड़ जाता है. साथ ही हड्डियां धीरे धीरे कमजोर पड़ जाती है. वहीं महिलाओं में कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा कई गुणा ज्यादा बढ़ जाता है. 

बच्चों को लेनी चाहिए इतने घंटे की नींद

बच्चों को खेलने के साथ ही सोना भी बेहद जरूरी होता है. ​इससे उनकी बॉडी रिलेक्स होती है. नींद के दौरान हमारा शरीर विषाक्त पदार्थों की साफ सफाई करता है. यह शरीर की अंदर से मरम्मत का काम करते हैं. नींद की कमी होने पर हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. यही वजह है कि डॉक्टर्स नवजात बच्चों को 14 से 17 घंटे सोने की सलाह देते हैं. 4 से 11 माह के बच्चों को 11 से 15 घंटे और 1 से 2 साल तक की उम्र में बच्चे को 11 से 14 घंटे सोने की सलाह देते हैं. 

18 से 65 साल के लोग लेते हैं कम नींद

रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर वयस्क यानी 18 से 65 की उम्र के लोग नियमित जरूरत नींद से कम सोते हैं. अगर आप एक साथ 7 से 8 घंटे नींद नहीं ले सकते तो इसे दो भाग में कर सकते हैं. रात में 4 से 5 घंटे और दिन के दूसरे भाग में 2 से 3 घंटे सो सकते हैं. इससे आपकी नींद पूर्ण होने के साथ ही काम करने की क्षमता बढ़ेगी और इसमें सुधार होगा।

आइए जानते है इसके फायदे और नुकसान

नींद के फायदे:

मानसिक स्वास्थ्य: पर्याप्त नींद मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, तनाव को कम करती है और मूड को बेहतर बनाती है।

शारीरिक स्वास्थ्य: यह हृदय, इम्यून सिस्टम और अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है।

मस्तिष्क का विकास: विशेषकर बच्चों के लिए, नींद मस्तिष्क के विकास और सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

स्मृति सुधार: नींद स्मृति को मजबूत बनाने और सूचनाओं को याद रखने में सहायक होती है।

ऊर्जा स्तर: पर्याप्त नींद ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने में मदद करती है और दिन भर की गतिविधियों के लिए तैयार रखती है।

नींद की कमी के नुकसान:

मानसिक समस्याएं: नींद की कमी से तनाव, अवसाद, और चिंता जैसे मानसिक विकार हो सकते हैं।

शारीरिक समस्याएं: इससे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

मस्तिष्क की कार्यक्षमता में कमी: ध्यान केंद्रित करने, निर्णय लेने, और समस्या सुलझाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

स्मृति हानि: नींद की कमी स्मृति और संज्ञानात्मक क्षमताओं को कमजोर कर सकती है।

ऊर्जा की कमी: यह थकान और ऊर्जा की कमी का कारण बन सकती है, जिससे दैनिक गतिविधियों में कठिनाई होती है।

इसलिए, उचित नींद लेना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि हमारा शरीर और मस्तिष्क सही तरीके से कार्य कर सके।

अगर आप भी सुबह उठते के साथ पीते है दूध वाली चाय तो हो जाए सावधान अनजाने में दे रहे है कई समस्याओं को न्योते


दूध वाली चाय हमारे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। सुबह की शुरुआत बिना चाय के अधूरी सी लगती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुबह उठते ही खाली पेट दूध वाली चाय पीना आपके स्वास्थ्य के १लिए हानिकारक हो सकता है? आइए जानते हैं कैसे:

1. पाचन तंत्र पर असर

सुबह उठते ही खाली पेट चाय पीने से आपके पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है। चाय में मौजूद टैनिक एसिड और कैफीन आपके पेट की एसिडिटी को बढ़ा सकते हैं, जिससे आपको एसिडिटी, गैस, और पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

2. वजन बढ़ना

दूध और चीनी वाली चाय में कैलोरी की मात्रा अधिक होती है। इसे नियमित रूप से खाली पेट पीने से आपका वजन बढ़ सकता है। इसके अलावा, चाय में मौजूद चीनी आपके ब्लड शुगर लेवल को भी प्रभावित कर सकती है।

3. न्यूट्रिएंट्स का अब्सॉर्प्शन

चाय में मौजूद टैनिन्स आपके शरीर में आयरन और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण न्यूट्रिएंट्स के अब्सॉर्प्शन को कम कर सकते हैं। इससे आपके शरीर में न्यूट्रिएंट्स की कमी हो सकती है, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।

4. नींद पर असर

चाय में मौजूद कैफीन आपके नींद के पैटर्न को भी प्रभावित कर सकता है। अगर आप सुबह उठते ही चाय पीते हैं, तो यह आपके स्लीप साइकिल को डिसरप्ट कर सकता है और आपको रात में नींद आने में समस्या हो सकती है।

5. दांतों पर असर

चाय में मौजूद टैनिन्स और चीनी आपके दांतों पर नेगेटिव असर डाल सकते हैं। इससे दांतों में पीलापन आ सकता है और कैविटीज की समस्या भी हो सकती है।

उपाय

अगर आपको सुबह-सुबह चाय पीने की आदत है, तो इसे बदलने का प्रयास करें। आप इसके बजाय गुनगुना पानी, नींबू पानी, या हर्बल चाय का सेवन कर सकते हैं। अगर आपको दूध वाली चाय ही पीनी है, तो इसे नाश्ते के साथ या नाश्ते के बाद पीने का प्रयास करें।

निष्कर्ष

दूध वाली चाय का सेवन सही समय पर और सही मात्रा में करना बहुत महत्वपूर्ण है। अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए अपनी आदतों में बदलाव करना हमेशा फायदेमंद होता है। तो अगली बार जब आप सुबह उठें, तो एक स्वस्थ विकल्प चुनें और अपने दिन की शुरुआत एक नई ऊर्जा के साथ करें।

अगर वजन कम करना चाहते है तो अपनी डाइट में शामिल कीजिए ये साउथ इंडियन फूड


वजन कम करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है, लेकिन सही खान-पान से इसे सरल बनाया जा सकता है। साउथ इंडियन फूड एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प हो सकता है, जो आपको वजन कम करने में मदद कर सकता है। आइए जानते हैं कुछ साउथ इंडियन फूड जो आपकी डाइट में शामिल किए जा सकते हैं:

1. इडली

इडली एक लो-केलोरी फूड है जो चावल और उड़द दाल से बनती है। यह स्टीम्ड होने के कारण फैट कम होता है और यह आसानी से पच जाती है। इसे सांभर और नारियल चटनी के साथ खाने से यह और भी पौष्टिक हो जाता है।

2. डोसा

डोसा भी चावल और दाल से बनता है, और इसे कम तेल में तवे पर पकाया जाता है। आप मसाला डोसा के बजाय सादा डोसा चुन सकते हैं, जिसमें कैलोरी कम होती है। इसे सांभर और टमाटर चटनी के साथ खाया जा सकता है।

3. उपमा

रवा उपमा सूजी से बनती है और यह वजन घटाने में मददगार होती है। इसमें सब्जियां डालकर इसे और पौष्टिक बनाया जा सकता है। उपमा प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत है।

4. सांभर

सांभर एक दाल और सब्जियों से बना सूप है, जो प्रोटीन, फाइबर और विटामिन से भरपूर होता है। यह कम कैलोरी वाला होता है और इसे चावल, इडली या डोसा के साथ खाया जा सकता है।

5. रसम

रसम एक पतला सूप है जो टमाटर, इमली और मसालों से बनता है। यह डाइजेशन को सुधारता है और वजन घटाने में मदद करता है। इसे चावल के साथ खाया जा सकता है।

6. पोंगल

पोंगल एक हल्की और पौष्टिक डिश है जो चावल और मूंग दाल से बनती है। इसमें काजू और काली मिर्च का तड़का लगाया जाता है। यह पेट भरने वाला और ऊर्जा देने वाला फूड है।

7. अवियल

अवियल एक मिश्रित सब्जी की डिश है जो नारियल और दही के साथ बनाई जाती है। यह वजन घटाने में मददगार होती है क्योंकि इसमें सब्जियों का उच्च मात्रा में उपयोग होता है।

8. कर्ड राइस

कर्ड राइस दही और चावल का मिश्रण है। यह पेट के लिए हल्का और पाचन में मददगार होता है। दही में प्रोटीन और प्रोबायोटिक्स होते हैं जो वजन घटाने में सहायक होते हैं।

निष्कर्ष

साउथ इंडियन फूड न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। यदि आप वजन कम करना चाहते हैं, तो इन खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। नियमित व्यायाम और सही खान-पान से आप आसानी से अपने वजन घटाने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

कंसीव करने में हों रही है परेशानी तो रोजाना करे ये योगासन,बढ़ेगी प्रजनन क्षमता


महिलाओं में प्रजनन क्षमता की कमी का कारण तनाव और चिंता है। जिसकी वजह से वो मां बनने के सुख से वंचित रह जाती हैं। तमाम तरह के इलाज के साथ ही सही खानपान और जीवनशैली की मदद से भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। योग प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। इस बात का दावा तमाम शोध में भी किया जाता है। 

महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए योग एक प्रभावी और प्राकृतिक तरीका हो सकता है। यहां पांच ऐसे योगासन दिए जा रहे हैं जो प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं:

1. भ्रामरी प्राणायाम

 ;(Bhramari Pranayama)

भ्रामरी प्राणायाम एक ऐसा प्राणायाम है जो मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। यह मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है और प्रजनन तंत्र को सुधारता है।

विधि: आरामदायक स्थिति में बैठें। आंखें बंद करें और अपने कानों को अंगूठों से बंद करें। अब गहरी सांस लें और छोड़ते समय मधुमक्खी की आवाज निकालें।

लाभ: तनाव को कम करता है, हार्मोनल संतुलन बनाता है।

2. बद्ध कोणासन (Baddha Konasana)

यह आसन हिप्स और जांघों को खोलता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन में सुधार होता है और प्रजनन अंगों को मजबूत बनाता है।

विधि: फर्श पर बैठें और पैरों को सामने की ओर फैलाएं। दोनों पैरों के तलवों को एक साथ लाएं और उन्हें हाथों से पकड़ें। अपनी एड़ी को शरीर के पास लाएं और धीरे-धीरे अपने घुटनों को नीचे दबाएं।

लाभ: जांघों और हिप्स की मांसपेशियों को मजबूत करता है, रक्त प्रवाह में सुधार करता है।

3. विपरीत करनी (Viparita Karani)

विपरीत करनी एक रिवर्स पोज है जो प्रजनन अंगों में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है और मानसिक तनाव को कम करता है।

विधि: दीवार के पास लेटें और पैरों को दीवार के साथ ऊपर की ओर उठाएं। अपने हाथों को बगल में रखें और आराम से सांस लें।

लाभ: रक्त प्रवाह में सुधार करता है, तनाव कम करता है।

4. मालासन (Malasana)

यह आसन हिप्स और पेल्विक क्षेत्र को खोलता है, जो प्रजनन क्षमता के लिए लाभदायक होता है।

विधि: खड़े होकर अपने पैरों को चौड़ा करें। धीरे-धीरे नीचे की ओर बैठें, जैसे कि एक स्क्वाट पोजिशन में। अपने हाथों को सामने की ओर जोड़ें।

लाभ: हिप्स और पेल्विक क्षेत्र को खोलता है, लचीलेपन में सुधार करता है।

5. शिशुआसन (Balasana)

यह आरामदायक आसन तनाव को कम करने और प्रजनन अंगों को आराम देने में मदद करता है।

विधि: घुटनों के बल बैठें और अपने पैरों को पीछे की ओर फैलाएं। अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं और माथे को फर्श पर रखें। अपने हाथों को सामने की ओर फैलाएं।

लाभ: मानसिक शांति और आराम देता है, तनाव को कम करता है।

इन योगासनों को नियमित रूप से करने से महिलाओं की प्रजनन क्षमता में सुधार हो सकता है। ध्यान रखें कि किसी भी योगासन को करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें, खासकर यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।

क्या आप जानते है दोने और पत्तलों में खाना स्वास्थ के लिए है कितना लाभकारी,यह पर्यावरण से लेकर मनुष्य तक की करती है सुरक्षा


पत्तल और दोना के पत्ते प्रकृति में पर्यावरण के अनुकूल हैं जो साल के पत्तों से बने होते हैं।प्लेट एक गोलाकार आकार में होती है जिसमें छह से आठ पत्तियाँ एक संकीर्ण लकड़ी की छड़ियों से जुड़ी होती हैं।

भारत मुख्य रूप से अपनी समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। पुराने जमाने में दामाद की चपलता की परख पत्तल और कटोरी बनाकर की जाती थी, तभी उसे उसका होने वाला ससुर स्वीकार करता था।

एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी।

क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था? नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती।

जैसा कि हम जानते है पत्तल अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते हैतो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? 

एक बार आजमा कर देखें

लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है।

जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।

जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।

पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है।

केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है , इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है।*

पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तल आसानी से नष्ट हो जाते है।

पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।

पत्तल प्राकतिक रूप से स्वच्छ होते है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है|अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है।

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा। डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी, नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा।

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा सबसे बड़ी बात पतला डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है, ये बदलाव आप और हम ही ला सकते हैं अपनी संस्कृति को अपने से हम छोटे नहीं हो जाएंगे बल्कि हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमारी संस्कृति का विश्व में कोई सानी नहीं है।