झारखंड की सत्ता में पुनर्वापसी भाजपा के लिए है बड़ी चुनौती,इस से निपटने के लिए भाजपा का मुहिम होगा कितना सफल..?पढ़िये पूरी खबर...!
विनोद आनंद
भाजपा झारखण्ड विधानसभा चुनाव को लेकर मिशन मोड में है. सत्ता में वापसी उसके लिए पार्टी के सामने बहुत बड़ी चुनौती है. क्योंकि भाजपा ने जो दाव चली थी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को प्रभावहीन बनाने के लिए वह उल्टा पड़ गया.
हेमंत सोरेन को जेल से निकलने और ईडी का कोर्ट द्वारा फजीहत होने के बाद हेमंत सोरेन को जनता से सहानुभूति मिली है और बीजेपी के प्रति लोगों में यह धारना बन गयी है कि ईडी और सी बी आई भाजपा के इशारे पर काम कर रही है.
इन सब माहौल के बीच जो ख़बरें छन कर आ रही है कि भाजपा द्वारा कराये गए अंदरूनी सर्वे का रिपोर्ट भी झारखंड में संतोष जनक नहीं है.
ऐसे हालात में भाजपा कैसे जनता को अपने पक्ष में इन कुछ महीने में करे और कैसे झारखण्ड में सत्ता में उनकी वापसी हो यह सबसे बड़ा टास्क हर नेता और भाजपा कार्यकर्ताओं के पास है.
बड़े नेताओं का आगमन
भाजपा कार्यकर्ताओं का हौसला बढाने और जानता के मन को टटोलने के लिए झारखण्ड में बड़े नेताओं का आना जाना लगा हुआ हैं. भाजपा आदिवासी वोट को साधने के लिए इस बार ज़ी तोड़ मेहनत की जा रही है.
इसलिए आदिवासी के बड़े चेहरे को वोट में उताड़ने की तैयारी भी की गयी है. उन्हें जनता के बीच जाने का निर्देश दिया गया है.
साथ हीं आदिवासी नेताओं से बैठक कर उसे चुनावी टिप्स भी दिया जा रहा है. अभी गृह मंत्री अमित शाह का झारखण्ड दौरा के पीछे भी यही उद्देश्य है.आने वाले दिनों में और कुछ बड़े नेता झारखण्ड में आ सकते हैं और कार्यकर्ताओं से बात करेंगे.साथ हीं जनता से रूबरू होंगे.
सीएम चेहरा घोषित करने से परहेज
भाजपा के झारखण्ड प्रदेश संघठन में अंदरूनी कलह से निपटने लिए अभी सीएम चेहरा सामने लाने से भी भाजपा परहेज, कर रही है.
क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद झारखंड बीजेपी में अंदरूनी कलह बढ़ी है. इसका प्रभाव झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में न पड़े और झारखंड में बीजेपी की सरकार बने इसके लिए पार्टी खास रणनीति पर काम कर रही है.हालांकि इस संबंध में बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता अनिमेष कुमार सिंह कहते हैं किबाबूलाल के नेतृत्व में जब चुनाव लड़ने की घोषणा हुई है तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा भी बाबूलाल को रखने का पार्टी जरूर सोचेगी. इसके अलावे इस बार सीटों के लक्ष्य को सार्वजनिक भी नहीं करने का निर्णय लिया गया है.
प्रदेश भाजपा को मिला सत्ता में वापसी का टास्क
हर हाल में झारखंड में सत्ता में वापसी का टास्क केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा प्रदेश भाजपा को दिया गया है. इसकी झलकपिछले सफ्ताह भाजपा प्रदेश कार्यालय में हुई मैराथन बैठक में भी दिखी थी. चुनाव प्रभारी बनने के बाद पहली बार झारखंड दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिश्वा सरमा ने जिस तरह से बैठक की है उससे साफ लग रहा है कि बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कितनी चिंतित है.पुरानी गलती से सीख लेकर मिशन मोड में बीजेपी2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और मुख्यमंत्री का चेहरा भी प्रोजेक्ट किया था. लेकिन जनता ने इसे ठुकरा दिया. हालत यह बनी कि खुद मुख्यमंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र से हार गए. पिछले चुनाव में बीजेपी 65 पार का नारा के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन फेल हो गई और महज 25 सीटों पर सिमट गई थी.
लोकसभा चुनाव 2024 में भी बीजेपी को लगा है झटका
वहीं, हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने देशभर में 400 पार के साथ झारखंड की सभी 14 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था. इसमें भी बीजेपी को झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों में झटका लगा है. हालांकि बीजेपी नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड के करीब 50 विधानसभा क्षेत्र में आगे रहना शुभ संकेत है और इसी बल पर सत्ता परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है.
अपनी स्ट्रेटजी में किया बदलाव
लोकसभा चुनाव में ट्राइबल सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने अपनी स्ट्रेटजी में बदलाव करना शुरू कर दिया है.आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर ओबीसी वोट बैंक को साधने पर है. इसके अलावे सवर्ण वोट जो बीजेपी की पारंपरिक रही है, वो नाराज न हो इस पर ध्यान दिया जा रहा है. यही वजह है कि ओबीसी का बड़ा चेहरा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री जो सवर्ण हैं हिमंता बिश्वा सरमा को झारखंड की जिम्मेदारी दी गई है.
शिवराज और हिमंता के लिए झारखंड जीतना है बड़ी चुनौती
इस साल के अंत में झारखंड में होनेवाले विधानसभा चुनाव को जीतना शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिश्व सरमा के लिए कठिन चुनौती है. वर्तमान राजनीतिक हालात और लोकसभा चुनाव परिणाम स्पष्ट संकेत दे रहा है कि बीजेपी का न केवल ट्राइबल वोट बैंक में कमी आई है, बल्कि सामान्य सीटों पर भी जनाधार में कमी आई है. 2019 की तुलना में 2024 की परिस्थिति और भी खराब है. इसके पीछे कई वजह है. संगठन के अंदर अंदरूनी कलह जो टॉप-टू-बॉटम तक देखी जा रही है. इसे दूर करना दोनों नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है.
भ्रष्टाचार के अलावे बीजेपी कोई ऐसा मुद्दा वर्तमान में नहीं बना पा रही है जिसे जनता तक पहुंचाया जा सके. इन सबके बीच इंडिया गठबंधन की ओर से चंपाई सरकार द्वारा लगातार लोकलुभावन घोषणा की गयी थी. जिसका काट बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती है.अब हेमन्त सोरेन उसे पूरा करने के दिशा में का कर रहे हैं.अपने आवास पर वे जनता से रूबरू भी हो रहे हैं उनकी समस्याएं भी सुन रहे हैं.
क्या बदलेगी बीजेपी के पक्ष में हवा
अभी झारखंड में शनिबार को गृह राज्य मंत्री आये जनता को भी संबोधित किया वहीं प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं से संवाद कर जनता के बीच जाने का टिप्स दिया । वहीं दोनों प्रभारी हेमन्त विश्व सरमा और शिव राज सिंह चौहान भी लगातार कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रहे हैं.यहां तक जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए सीएम आवास का घेराव करने वाले पुलिस कर्मी पर लाठी चार्ज में घायल पुलिस कर्मी से मिलकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं.साथ हीं अपने एजेंडा पर भी यह नैरेटिव सेट करने के मुहिम में लगे हैं कि मौजूदा सरकारके दौर में लूट खसौट हुआ है.इसके लिए भाजपा के पास पर्याप्त आधार भी है.पिछले कुछ दिनों में ईडी द्वारा छापामारी में बरामद नोटों से उन्हें प्रमाणित करने का पर्याप्त अवसर है.
अब इन सारे हालात में देखना है कि भाजपा विंधानसभा चुनाव में अपने टास्क को पूरा करते हुए सत्ता में वापसी की चुनौती को कैसे हल करती है.
Jul 21 2024, 17:12