शिव ज्योतिर्लिंग-9: अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हुए थे नागेश्वर शिव ज्योतिर्लिंग, आज भी उनके दर्शन से लोगों का होता है कल्याण
- विनोद आनंद
भगवन शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का
दसवां स्थान है. यह ज्योतिर्लिंग प्रमाणिक रूप से कहाँ स्थित है, इस पर विद्वानों के अलग-अलग दावे हैं.जिसके कारण यह कहना आसान नहीं है है की असली नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहाँ है , फिर भी गुजरात राज्य में गोमती द्वारका के बीच दारूकावन क्षेत्र में इसके प्रामाणिक स्थान होने की मान्यता अधिक है.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के दावे जिन दी अन्य स्थानों पर किए जाते हैं, उनमें से एक आंध्रप्रदेश में अवढा गांव में मन जाता है. यह अवढा गांव महाराष्ट्र राज्य के परभनी क्षेत्र से होकर हिंगोली जाते हुए पड़ता है. दूसरा स्थान उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा से सत्रह मील दूर जोगेश्वर नामक तीर्थ बताया जाता है.यहाँ उतर वृंदावन आश्रम के पास जोगेश्वर नाम का एक पुराना मंदिर है. इससे डेढ़ मील की उतराई पर देवदार के सघन वृक्षों के मध्य नदी के तट पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग बताया जाता है. स्कंध पुराण में इन्हीं नागेश लिंग का वर्णन एवं महात्म्य वर्णित है.
शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है.द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है. महात्म्य के अनुसार जो आदरपूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं महात्म्य को सुनेगा और इसके दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों को भोगता हुआ अंततः परमपद को प्राप्त होगा.
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥1॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम् ॥
नागेश ज्योतिर्लिंग को लेकर पौराणिक कथा
सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था. वह भगवान् शिव का अनन्य भक्त था. वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था. अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके करता था. मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था. उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था उसे भगवान् शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी. वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे. एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था. उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया. उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया. सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा.
अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा. दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा.सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था. उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई.
अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा. उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया. सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ.
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करने लगा.उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे. उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान् शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए.
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया. इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया. भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा.बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ.और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया.
पांडव कालीन इतिहास :-
युग बीते और आया द्वापर युग श्री कृष्ण का जन्म इस युग में हुआ.जब द्युत के खेल में कौरवों द्वारा पांचों पांडवों को पराजित किया गया था, तो द्यूत की शर्तों के अनुसार पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई थी. इस बीच, पांडवों ने पूरे भारत में भ्रमण किया. घूमते-घूमते वे इस दारुकवन में आ गए और इस स्थान पर उनके साथ एक गाय भी थी, वह गाय प्रतिदिन सरोवर में उतरकर दूध देती थी. एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन वह गाय का पीछा करते हुए सरोवर में उतर गया और उसने भगवान महादेव को देखा तो उसने देखा कि गाय हर दिन शिवलिंग को दुध छोड रही थी. तब पांचों पांडवों ने उस सरोवर को नष्ट करने का निश्चय किया. और वीर भीम ने अपनी गदा से उस सरोवर के चारों ओर पर प्रहार किया और सभी ने महादेव के इस शिवलिंग दर्शन किये. श्री कृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नही हे यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है. तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया.
यादव काल का इतिहास :-
और फिर से समय के साथ वर्तमान मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना (यादव) वंश द्वारा बनाया गया था और कहा जाता है कि यह 13 वीं शताब्दी का है, जो सात मंजिला पत्थर की इमारत का बनाया था।
एक और किंवदंती – अघोरी कनेक्शन
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक और दिलचस्प कहानी है, जो अघोरियों से जुड़ी है. यह एक ऐसा संप्रदाय है जो अपनी अपरंपरागत प्रथाओं के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि एक बार अघोरियों के एक समूह ने मांस और मदिरा चढ़ाकर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की कोशिश की थी. भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए लेकिन उनके अनुष्ठानों को अस्वीकार करते हुए उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अधिक पुण्य पथ की ओर निर्देशित किया.
यह कथा इस विचार को पुष्ट करती है कि भक्ति और हृदय की पवित्रता बाह्य अनुष्ठानों से अधिक महत्वपूर्ण हैं, तथा भगवान शिव की पूजा की समावेशी प्रकृति पर बल देती है.
1600 शताब्दी के बाद का इतिहास :-
बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया.मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था.जो आज मौज़ूद है.
शास्त्रों में नागेश्वर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिव पुराण सहित कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. इन ग्रंथों में आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नागेश्वर की पूजा के महत्व का वर्णन किया गया है.
आधुनिक मंदिर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वर्तमान संरचना निरंतर पुनर्निर्माण प्रयासों का परिणाम है.मंदिर परिसर में मुख्य गर्भगृह शामिल है जहाँ ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसके चारों ओर विभिन्न देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर हैं. वास्तुकला पारंपरिक और आधुनिक शैलियों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण दर्शाती है, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करती है.
धार्मिक त्यौहार और समारोह
भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि के दौरान मंदिर में बहुत उत्साहपूर्ण उत्सव मनाया जाता है. देश के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित होते हैं, जिसमें विस्तृत अनुष्ठान, प्रार्थना और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं।
जहां हर साल इस मंदिर मे लाखो के संख्या मे लोग आते हैं.
महाशिवरात्री के उत्सव पर यहा सबसे बडा मेला लगता है ओर रथोत्सव मनया जाता है.महाशिवरात्री के ठीक 5 दिन बाद रथोत्सव मनया जाता. है.
Jul 21 2024, 08:28