अजित पवार का साथ छोड़ रही बीजेपी, क्या फिर एक होंगे चाचा-भतीजे?
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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की सियासत में लोकसभा चुनाव में एनडीए के खराब प्रदर्शन का असर देखा जा रहा है। एनडीए के खराब प्रदर्शन के बाद से राज्य की राजनीति में उठापटक जारी है। एनडीए के तीनों प्रमुख दलों के नेता इस हार का टिकरा एक-दूसरे पर फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा-शिवसेना-एनसीपी के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में सबसे ज्यादा सांसत अजित पवार की हो रही है। अजित पवार को पिछले कुछ दिनों में कई राजनीतिक झटके लग चुके हैं। बुधवार को महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चार बड़े नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद खबर सामने आई कि अजित गुट के लगभग दो दर्जन पदाधिकारी ने भी शरद गुट का दामन थाम लिया। इसमें कई महिलाओं सहित 20 पूर्व नगर पार्षद शामिल हैं।
वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक मराठी मैग्जीन ने भाजपा का अजित पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ हुए गठबंधन को लेकर आपत्ति जताई है। आरएसएस की मैगजीन के लेख में भाजपा को सीख देते हुए लिखा कि उसे एनसीपी अजित गुट से गठबंधन तोड़ लेना चाहिए। आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक अखबार 'विवेक' ने मुंबई, कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र में 200 से अधिक लोगों पर की गई अनौपचारिक रायशुमारी के आधार पर यह लेख प्रकाशित किया। लेख में कहा गया है, ''भाजपा या संगठन (संघ परिवार) से जुड़े लगभग हर व्यक्ति ने कहा कि वह एनसीपी (अजित पवार के नेतृत्व वाले) के साथ गठबंधन करने के भाजपा के फैसले से सहमत नहीं है। हमने 200 से अधिक उद्योगपतियों, व्यापारियों, चिकित्सकों, प्रोफेसर और शिक्षकों की राय जानी। इन सभी ने माना कि भाजपा-एनसीपी गठबंधन को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को कम करके आंका गया।''
लेख के अनुसार, एक-दूसरे से छोटी-मोटी शिकायतों के बावजूद हिंदुत्व के साझा सूत्र के चलते शिवसेना के साथ भाजपा के गठबंधन को हमेशा स्वाभाविक माना जाता है। लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ एमवीए के तत्कालीन मंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत स्वीकार कर ली थी। यह बगावत उद्धव सरकार के गिरने का कारण बनी थी। भाजपा ने बाद में शिंदे के समर्थन की घोषणा की और वह सरकार बनाने में सफल रहे। लगभग एक साल बाद, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजित पवार पार्टी के कई विधायकों के साथ शिंदे सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री शामिल हो गए।
लेख में कहा गया है, ''हालांकि एनसीपी से हाथ मिलाने के बाद जनभावनाएं पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ हो गईं। एनसीपी की वजह से गणित गड़बड़ाने के बाद पार्टी की भावी रणनीति को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।'' लेख के मुताबिक, भाजपा की एक ऐसे दल के रूप में छवि बन गई है जो नेताओं को मांझने की पुरानी संगठनात्मक प्रक्रिया को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए दूसरी पार्टी के नेताओं को खुद में शामिल करती है। ऐसे में एनसीपी के साथ मिलकर बीजेपी को विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए।
राज्य में जारी इन सियासी उठापटक के बीच छगन भुजबल ने शरद पवार से अचानक मुलाकात करने पहुंच गए थे। इस मुलाकात पर छगन भुजबल ने आरक्षण पर मराठा और ओबीसी के बीच हस्ताक्षेप करने के लिए शरद पवार से गुहार लगाने लगे थे, लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बहाने अपने रिश्ते को पटरी पर लाने की बात कही थी। शरद पवार खेमे के नेता मानते हैं कि बीजेपी अब अजीत पवार से पीछा छुड़ाने की कोशिश में है, जिसके लिए बैगडोर से संदेश दे रही है।
इधर एनसीपी (शरद पवार) के प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने कहा कि लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है, लेकिन उनको लगता है कि अजीत पवार के नेतृत्व वाली पार्टी के साथ गठबंधन उसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाएगा। क्लाइड क्रैस्टो ने आगा दावा किया कि महाराष्ट्र के मतदाताओं ने राकांपा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ भाजपा के गठबंधन को स्वीकार नहीं किया है। अजित पवार को अपने साथ लाने के फैसले ने भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर दी है, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को महाराष्ट्र में कई लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति में यह वर्तमान वास्तविकता है। ऐसा लगता है कि लोगों ने महायुति गठबंधन को स्वीकार्य नहीं किया है।
वहीं, अजित पवार को लेकर आरएसएस और बीजेपी के भीतर से उठ रही आवाजों और एनसीपी में मची भगदड़ को देखते हुए बुधवार को शरद पवार से पूछा गया कि क्या यदि अजित पवार पार्टी में वापसी करना चाहेंगे तो उनका क्या रुख क्या होगा? इस पर एनसीपी (एसपी) के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि उनकी पार्टी में किसी भी नेता के संभावित प्रवेश पर निर्णय सामूहिक होगा. हालांकि उन्होंने इस बात की पुष्टि करने से इनकार कर दिया कि अगर अजित पवार वापस आना चाहते हैं तो उन्हें पार्टी में शामिल किया जाएगा या नहीं.
बता दें कि महाराष्ट्र में बीजेपी की सीटों की संख्या 2019 में 23 से घटकर हाल के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 9 रह गई और उसकी सहयोगी शिवसेना ने सात सीटें मिली हैं और डिप्टी सीएम अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई। इसके विपरीत इंडिया गठबंधन ने 30 सीटें जीती हैं, जिसमें कांग्रेस को 13, उद्धव ठाकरे की एनसीपी को 9 और शरद पवार की एनसीपी के खाते में 8 लोकसभा सीटें आई हैं।
Jul 18 2024, 16:35