कर्नाटक में प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण पर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का यू-टर्न, जानें क्यों पलटे सिद्धारमैया
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कर्नाटक सरकार ने राज्य में निजी कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए नौकरियां आरक्षित करने वाला बिल फिलहाल के लिए टाल दिया है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने 48 घंटे के अंदर प्राइवेट नौकरी में आरक्षण के बिल पर यू-टर्न ले लिया। राज्य सरकार ने सोमवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में स्थानीय लोगों को प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण वाले बिल को मंजूरी दिया था। जिसके तहत प्राइवेट फर्म्स में नॉन मैनेजमेंट पोजिशंस में 70% और मैनेजमेंट लेवल एंप्लाईज के लिए 50% हायरिंग को रिजर्व रखा गया था। इसे गुरुवार यानी आज विधानसभा में पेश किया जाना था। लेकिन उद्योगपतियों और बिजनेस लीडर्स के विरोध के चलते सरकार को अपना फैसला रोकना पड़ा।
बुधवार को मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। इस पर आने वाले दिनों में फिर से विचार कर फैसला लिया जाएगा। इससे पहले, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी एक्स पर पोस्ट कर मामले में सफाई दी। उन्होंने लिखा है कि “निजी क्षेत्र के संस्थानों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षण लागू करने का इरादा रखने वाला विधेयक अभी भी तैयारी के चरण में है। अगली कैबिनेट बैठक में व्यापक चर्चा के बाद फैसला लिया जाएगा।”
इससे पहले सीएम सिद्धारमैया ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा था, "कल कैबिनेट बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में 'सी और डी' ग्रेड के पदों पर 100 प्रतिशत कन्नड़ लोगों की भर्ती अनिवार्य करने के विधेयक को मंजूरी दी गई।" उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ भाषी स्थानीय लोगों को अपने राज्य में आरामदेह जीवन जीने का मौका दिया जाए। उन्हें अपनी 'कन्नड़ भूमि' में नौकरियों से वंचित न किया जाए।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की इस पोस्ट के बाद इंडस्ट्री में इसे लेकर विरोध शुरू हो गया। विवाद बढ़ा तो बाद में सीएम ने वह पोस्ट हटा दी।हालांकि इससे पहेल बायोकॉन की किरण मजूमदार-शॉ जैसी बिजनेस लीडर्स ने इस बिल पर अपना विरोध जताया।किरण मजूमदार शॉ ने कहा, “एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की दरकार होती है और हमारा मकसद हमेशा स्थानीय लोगों को रोजगार देना होता है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए।”
इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टीवी मोहनदास पाई ने विधेयक की आलोचना करते हुए इसे फासीवादी करार दिया।उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर अपने पोस्ट में कहा, “इस विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिएष यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के खिलाफ है। यह अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का कोई विधेयक लेकर आई है। सरकारी अफसर प्राइवेट सेक्टर की भर्ती समितियों में बैठेंगे? लोगों को अब भाषा की भी परीक्षा देनी होगी?”
Nasscom से लेकर तमाम दिग्गज कंपनियों का टॉप मैनेजमेंट खुलकर इस कदम के विरोध में उतर आया। Nasscom ने तो आंकड़े भी गिनाए। ईटी इंडस्ट्री की इस संस्था ने कहा, 'कर्नाटक की जीडीपी में टेक सेक्टर 25% योगदान करता है, कुल ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) में इसकी 30% से ज्यादा हिस्सेदारी है और करीब 11,000 स्टार्टअप हैं।Nasscom ने कहा कि इस तरह के कानून से न सिर्फ कर्नाटक का विकास प्रभावित होगा, बल्कि राज्य की ग्लोबल इमेज को भी धक्का लगेगा। भारत के कुल सॉफ्टवेयर निर्यात में कर्नाटक की भागीदारी 42% से ज्यादा है। कर्नाटक की राजधानी, बेंगलुरु 'भारत की सिलिकॉन वैली' कही जाती है।
इस तरहग के विरोध के बाद सिद्धारमैया सरकार को समझ आ गया कि यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित होगा। तमाम बड़ी कंपनियां राज्य से बाहर निकल जातीं। मौका देखकर कई राज्यों ने तो ऑफर भी दे दिया था। आंध्र प्रदेश जहां के आईटी सेक्टर ने हाल के सालों में तेजी से प्रगति की है, ने कंपनियों से कहा कि वे बेंगलुरु छोड़ हैदराबाद आ जाएं। अगर ऐसा होता तो कर्नाटक सरकार को सालाना खरबों रुपये के राजस्व से हाथ धोना पड़ता। ऐसे में सरकार ने बिल को ठंडे बस्ते में डालना ही बेहतर समझा
Jul 18 2024, 14:51