आरएसएस ने “धार्मिक असंतुलन” को लेकर जताई चिंता, बताई जनसंख्या नियंत्रण कानून की क्यों है जरूरत
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने वीकली मैगजीन में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की मांग की है। विश्व जनसंख्या दिवस पर आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ने देश के कुछ इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ 'जनसांख्यिकीय असंतुलन' बढ़ने का दावा करते हुए कहा कि एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है। आरएसएस ने दावा किया है कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि किसी भी धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले, जिससे अन्यथा “सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और राजनीतिक संघर्ष हो सकते हैं।”
ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी एंड डेस्टिनी नामक लेख में लिखा है। संपादकीय के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिर होने के बावजूद यह सभी धर्मों और क्षेत्रों में समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों खासकर सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसमें लिखा गया है कि पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में सीमाओं पर 'अवैध विस्थापन' की वजह से 'अप्राकृतिक' तरीके से जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
पत्रिका में लिखा गया है कि पश्चिम और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने में अपेक्षाकृत बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जनगणना के बाद आबादी में बदलाव होने पर संसद में कुछ सीट कम होने का डर है।संपादकीय के अनुसार, लोकतंत्र में जब प्रतिनिधित्व के लिए संख्या महत्वपूर्ण होती हैं और जनसांख्यिकी भाग्य का फैसला करती है, तो हमें इस प्रवृत्ति के प्रति और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए।
पत्रिका के अनुसार, 'हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियों की जरूरत है कि जनसंख्या वृद्धि से किसी एक धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक संघर्ष की स्थिति बन सकती है। उसने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय संगठनों, शोध संस्थानों और परामर्शदात्री एजेंसियों के माध्यम से आगे बढ़ाए जा रहे बाहरी एजेंडे से प्रभावित होने के बजाय हमें देश में संसाधनों की उपलब्धता, भविष्य की आवश्यकताओं और जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाने का प्रयास करना चाहिए और उसे सभी पर समान रूप से लागू करना चाहिए।
संपादकीय में आरोप लगाया गया है, 'राहुल गांधी जैसे नेता यदा-कदा हिंदू भावनाओं का अपमान कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस्लामवादियों द्वारा महिलाओं पर किए गए अत्याचारों को स्वीकार करते हुए भी मुस्लिम कार्ड खेल सकती हैं और द्रविड़ पार्टियां सनातन धर्म को गाली देने में गर्व महसूस कर सकती हैं क्योंकि उन्हें जनसंख्या असंतुलन के कारण विकसित तथाकथित अल्पसंख्यक वोट बैंक के एकजुट होने पर भरोसा है।
बता दें कि इससे पहले आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत भी इस तरह की चिंता जाहिर कर चुके हैं। मोहन बागवत ने ने 2022 में विजयादशमी के अवसर पर अपने भाषण में कहा था, "एक व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति होनी चाहिए , जो सभी पर समान रूप से लागू हो और एक बार इसे लागू कर दिया जाए, तो किसी को भी कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए।" "जब 50 साल पहले (जनसंख्या) असंतुलन हुआ था, तो हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े थे। यह सिर्फ हमारे साथ ही नहीं हुआ है। आज के समय में, पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो जैसे नए देश बने हैं। इसलिए, जब जनसंख्या असंतुलन होता है, तो नए देश बनते हैं। देश विभाजित होते हैं।"
Jul 11 2024, 10:14