शिव ज्योतिर्लिंग -5: झारखंड के देवघर स्थित बैधनाथ धाम शिव और शक्ति का है सिद्ध पीठ, जिनके दर्शन से होगा आप का कल्याण
जानिए इस ज्योतिर्लिंग का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
विनोद आनंद
देवघर स्तिथ बैजनाथ धाम भगवान् भोलेनाथ का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ शिव और शक्ति एक साथ बिराजमान हैं.इसलिए इसे शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है.
ये भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है.
झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसे 9 वें ज्योतिर्लिंग है.
मान्यताओं के मुताबिक बाबा बैद्यनाथ धाम में ही माता सती का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे ही हृदयपीठ के रूप में भी जाना जाता है.
देवघर स्थित विश्व प्रसिद्ध बैद्यनाथ मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका जुड़ाव लंकापति दशानन रावण से है, रावण से जुड़ाव के कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग को रावणेश्वर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.इस लिए बाबा बैधनाथ के दर्शन पूजन से लोगों का कल्याण होता है. बाबा बैधानाथ की कृपा बनी रहती है.आज यह आस्था का प्रमुख केंद्र है. जहाँ करोड़ों लोग जुटाते हैं.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपनी सर की बलि देकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे, एक के बाद एक कर दशानन रावण ने भगवान के शिवलिंग पर 9 सिर काट कर चढ़ा दिए, जैसे ही दशानन दसवें सिर की बलि देने वाला था वैसे ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए. भगवान ने प्रसन्न होकर दशानन से वरदान मांगने को कहा, इसके बाद वरदान के रूप में रावण भगवान शिव को लंका चलने को कहते हैं. उनके शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगते हैं, भगवान रावण को वरदान देते हुए कहते हैं कि जिस भी स्थान पर शिवलिंग को तुम रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा.
रावण को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने लिया चरवाहे का रूप
भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे थे.रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती है. जिस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है, इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं, जोर की लघु शंका लगने के कारण रावण धरती पर उतर जाता है और चरवाहे के रूप में खड़े भगवान विष्णु के हाथों में शिवलिंग देकर यह कहता है कि इसे उठाए रखना जब तक में लघु शंका कर वापस नहीं लौट आता.
इधर मां गंगा के शरीर में प्रवेश होने के कारण लंबे समय तक रावण लघुशंका करता रहता है. इसी बीच चरवाहे के रूप में मौजूद बच्चा भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग का भार नहीं सहन कर पाता और वह उसे जमीन पर रख देता है.
लघुशंका करने के उपरांत जब रावण अपने हाथ धोने के लिए पानी खोजने लगता है जब उसे कहीं जल नहीं मिलता है तो वह अपने अंगूठे से धरती के एक भाग को दबाकर पानी निकाल देता है. जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है. शिव गंगा में हाथ धोने के बाद जब रावण धरती पर रखे गए शिवलिंग को उखाड़ कर अपने साथ लंका ले जाने की कोशिश करता है तो वो ऐसा करने असमर्थ हो जाता है. इसके बाद आवेश में आकर वह शिवलिंग को धरती में दबा देता है जिस कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान शिव की स्थापित शिवलिंग का छोटा सा भाग ही धरती के ऊपर दिखता है, इसे रावणेश्वर बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है.
दंतकथाएं
रावण की कथा के अलावा, बाबा बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी कई अन्य रोचक किंवदंतियाँ भी हैं.ऐसी ही एक कथा “बैद्यनाथ” नाम की उत्पत्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका अर्थ है ‘चिकित्सकों का भगवान’ या ‘उपचारों का राजा’. इस कथा के अनुसार, भगवान शिव ने रावण को ठीक करने के लिए एक चिकित्सक की भूमिका निभाई थी, जो अपनी भक्ति के दौरान घायल हो गया था.शिव की उपचार शक्तियों से प्रभावित होकर, रावण ने उनसे देवघर में लिंग के रूप में निवास करने का अनुरोध किया.
एक और लोकप्रिय किंवदंती चंद्रकांत मणि के बारे में है, जो भगवान शिव के माथे का रत्न है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह देवघर में गिरा था.भक्तों का मानना है कि यह रत्न अभी भी गर्भगृह में मौजूद है, जो दिव्य ऊर्जा बिखेरता है.
इतिहास
बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना है.ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, मंदिर का निर्माण मूल रूप से नागवंशी राजवंश के पूर्वज पूरन मल ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था. हालाँकि, सदियों से मंदिर में कई जीर्णोद्धार और विस्तार हुए हैं, माना जाता है कि वर्तमान संरचना का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह ने करवाया था.
मंदिर परिसर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी विशेषता इसकी ऊंची चोटी, जटिल नक्काशी और एक पवित्र तालाब है जिसे श्रावणी मेला कुंड के नाम से जाना जाता है. मंदिर की वास्तुकला नागर और द्रविड़ सहित विभिन्न शैलियों के मिश्रण को दर्शाती है, जो इसके डिजाइन को आकार देने वाले विविध सांस्कृतिक प्रभावों को प्रदर्शित करती है.
इस मंदिर को लेकर और हैं ऐतिहासिक तथ्य
पुरातत्ववेत्ताओं के लिए आज भी चुनौती है. सातवीं शताब्दी में सात शैवमतावलम्बी राजाओं के देवघर आगमन का जिक्र इतिहास में दर्ज है. कहा जाता है कि बाबाधाम का ऐतिहासिक शिव मंदिर का निर्माण उसी काल में हुआ है. यदि उस समय मंदिर का निर्माण हुआ, तो मंदिर 1300 वर्ष पुराना है. 1000 वर्ष पहले का इतिहास दशनामी साधुओं और गोरखनाथ पंथी संन्यासियों के अधिकार क्षेत्र में बाबा मंदिर को बताया गया है. इसलिए इतिहासविद् भी नि:संकोच बताते हैं कि बाबा मंदिर हजार वर्ष से अधिक पुराना है. बावजूद अभी भी पुरातत्ववेत्ताओं के लिए यह शिव मंदिर खोज का विषय बना हुआ है. अब तक बाबा वैद्यनाथ मंदिर का निर्माणकाल अस्पष्ट है। भारत के शैवमतावलंबी अनेक राजा देवघर आए और कामनालिंग की पूजा-अर्चना की.
इतिहास बताता है कि 148-70 के बीच नवनाग और 290 से 315 के बीच भवनाग के पयंत भारशिवों के सात राजा हुए. उन्होंने गंगा, यमुना के संकेतों को अपना राज चिह्न बनाया. सभी सात राजा देवघर आए. सातवीं शताब्दी में शैव मतावलम्बी अनेक राजा हुए जिनमें माधव गुप्त के पुत्र आदित्य सेन भी थे. उनके राज्य में आधुनिक उत्तर प्रदेश, बिहार और के कुछ हिस्से भी शामिल थे. वैद्यनाथ मंदिर के पूरब दरवाजा पर चार शिलालेख जड़ित हैं. भाषा ब्राह्मीलिपि में है. इन शिलालेखों में मंदार पर्वत का भी जिक्र आया है.
राजा आदित्य सेन का उल्लेख भी मिलता है इतिहास में
पुरातत्ववेत्ता प्रो. राखाल दास बनर्जी ने भी मंदार पर्वत के शिलालेख का उल्लेख किया है
जे. एफ. फ्लीट की प्रसिद्ध पुस्तक ‘कांरपस इन्सकिप्पनम इंण्डिकेरम के तीसरे भाग में भी इसका जिक्र मिलता है. आदित्य सेन का काल सातवीं शताब्दी है। प्रो. राखाल दास बनर्जी के अनुसार आदित्य सेन 672 ई. तक जीवित थे.
वैद्यनाथ मंदिर के मध्य खंड में गर्भद्वार स्थित ऊपरी भाग में एक शिलालेख है जिसमें लिखा है कि “अचल राशि शाय कोल्लसित भूमि शाकाब्द केवलति रघुनाथ बहवलपूज के श्रद्धया विमल गुण चेतसा, नृपति पुरणेनासिरम त्रिपुर हर मंदिर वयरिच सर्वकामप्रदम”
जिसकी अगर व्याख्या करें तो इसका अर्थ होता है अचल-7, राशि-01, शायक-05, भूमि-01 अर्थात शाके 1517 में पूरण राजा ने सर्वकाम प्रदम शिवमंदिर का निर्माण कराकर विमल गुण वाले नौष्ठिक ब्राह्मण रघुनाथ को दान दिया.
इस प्रकार शिलालेख के अनुसार 400 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण बताया जाता है पर राजा आदित्य सेन के सातवीं शताब्दी के जिक्र से लगता है कि मंदिर हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है. हजार साल पहले बाबा मंदिर के चारों ओर दशनामी साधुओं का अखाड़ा होने का भी जिक्र मिलता है.इसके अलावे बहुत दिनों तक गोरखनाथ पंथी साधुओं ने मंदिर पर अधिकार कर लिया था.नाथों के भय से दशनामी साधु देवघर छोड़कर चले गए. बाबा मंदिर के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित नाथ बाड़ी आज भी इसका प्रमाण है. इसलिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर के निर्माण काल को हजार साल से अधिक माना जा सकता है सांस्कृतिक महत्व
बाबा बैद्यनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि एक सांस्कृतिक केंद्र भी है.
यह मंदिर पवित्र श्रावण महीने के दौरान, विशेष रूप से शिवरात्रि के शुभ दिन पर लाखों भक्तों को आकर्षित करता है. वार्षिक श्रावणी मेला एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा है, जहाँ भक्त भगवान शिव को अर्पित करने के लिए गंगा से पवित्र जल लेकर कांवड़ यात्रा करते हैं.
मंदिर का सांस्कृतिक महत्व पूरे वर्ष आयोजित होने वाले विभिन्न अनुष्ठानों, त्योहारों और समारोहों में भी स्पष्ट है. इन समारोहों के दौरान जीवंत माहौल बाबा बैद्यनाथ के साथ लोगों के गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है.
सावन के महीने में देवघर में लगता है श्रावणी मेला
मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त कांधे पर कांवर लेकर सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, इसीलिए ऐसी मनोकामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है. सावन के महीने में हर दिन लाखों श्रद्धालु की भीड़ सुल्तानगंज से जल उठा कर कांवर में जल भरकर पैदल 105 किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं , सावन के महीने में देवघर में लगने वाली विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला देश की सबसे लंबे दिनों तक चलने वाली धार्मिक आयोजनों में से एक है जहाँ लोग आस्था के साथ कांबड़ लेकर जाते हैं निष्कर्ष
देवघर का बैधनाथ धाम जहाँ एक पौराणिक महत्व, का आस्था का केंद्र है वहीं अभी भी इसकी एतिहासिकता को लेकर इस पर शोध की जरूरत है. लेकिन यह विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग का दर्शन बहुत ही पहलदायी है. कोरोडो लोग देश विदेश से यहां सावन में पहुंचते है इस लिए यह तीर्थ काफी महत्वपूर्ण धार्मिक धरोहर है.
Jul 07 2024, 05:50