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शिव ज्योतिर्लिंग -5: झारखंड के देवघर स्थित बैधनाथ धाम शिव और शक्ति का है सिद्ध पीठ, जिनके दर्शन से होगा आप का कल्याण

जानिए इस ज्योतिर्लिंग का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व


विनोद आनंद 

देवघर स्तिथ बैजनाथ धाम भगवान् भोलेनाथ का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ शिव और शक्ति एक साथ बिराजमान हैं.इसलिए इसे शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है.

ये भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है.

झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसे 9 वें ज्योतिर्लिंग है.  

मान्यताओं के मुताबिक बाबा बैद्यनाथ धाम में ही माता सती का हृदय कटकर गिरा था इसलिए इसे ही हृदयपीठ के रूप में भी जाना जाता है.

देवघर स्थित विश्व प्रसिद्ध बैद्यनाथ मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका जुड़ाव लंकापति दशानन रावण से है, रावण से जुड़ाव के कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग को रावणेश्वर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.इस लिए बाबा बैधनाथ के दर्शन पूजन से लोगों का कल्याण होता है. बाबा बैधानाथ की कृपा बनी रहती है.आज यह आस्था का प्रमुख केंद्र है. जहाँ करोड़ों लोग जुटाते हैं.

पौराणिक कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपनी सर की बलि देकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे, एक के बाद एक कर दशानन रावण ने भगवान के शिवलिंग पर 9 सिर काट कर चढ़ा दिए, जैसे ही दशानन दसवें सिर की बलि देने वाला था वैसे ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए. भगवान ने प्रसन्न होकर दशानन से वरदान मांगने को कहा, इसके बाद वरदान के रूप में रावण भगवान शिव को लंका चलने को कहते हैं. उनके शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगते हैं, भगवान रावण को वरदान देते हुए कहते हैं कि जिस भी स्थान पर शिवलिंग को तुम रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा.

रावण को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने लिया चरवाहे का रूप


भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे थे.रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती है. जिस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है, इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं, जोर की लघु शंका लगने के कारण रावण धरती पर उतर जाता है और चरवाहे के रूप में खड़े भगवान विष्णु के हाथों में शिवलिंग देकर यह कहता है कि इसे उठाए रखना जब तक में लघु शंका कर वापस नहीं लौट आता.

इधर मां गंगा के शरीर में प्रवेश होने के कारण लंबे समय तक रावण लघुशंका करता रहता है. इसी बीच चरवाहे के रूप में मौजूद बच्चा भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग का भार नहीं सहन कर पाता और वह उसे जमीन पर रख देता है. 

लघुशंका करने के उपरांत जब रावण अपने हाथ धोने के लिए पानी खोजने लगता है जब उसे कहीं जल नहीं मिलता है तो वह अपने अंगूठे से धरती के एक भाग को दबाकर पानी निकाल देता है. जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है. शिव गंगा में हाथ धोने के बाद जब रावण धरती पर रखे गए शिवलिंग को उखाड़ कर अपने साथ लंका ले जाने की कोशिश करता है तो वो ऐसा करने असमर्थ हो जाता है. इसके बाद आवेश में आकर वह शिवलिंग को धरती में दबा देता है जिस कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान शिव की स्थापित शिवलिंग का छोटा सा भाग ही धरती के ऊपर दिखता है, इसे रावणेश्वर बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है.

दंतकथाएं


रावण की कथा के अलावा, बाबा बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी कई अन्य रोचक किंवदंतियाँ भी हैं.ऐसी ही एक कथा “बैद्यनाथ” नाम की उत्पत्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका अर्थ है ‘चिकित्सकों का भगवान’ या ‘उपचारों का राजा’. इस कथा के अनुसार, भगवान शिव ने रावण को ठीक करने के लिए एक चिकित्सक की भूमिका निभाई थी, जो अपनी भक्ति के दौरान घायल हो गया था.शिव की उपचार शक्तियों से प्रभावित होकर, रावण ने उनसे देवघर में लिंग के रूप में निवास करने का अनुरोध किया.

एक और लोकप्रिय किंवदंती चंद्रकांत मणि के बारे में है, जो भगवान शिव के माथे का रत्न है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह देवघर में गिरा था.भक्तों का मानना ​​है कि यह रत्न अभी भी गर्भगृह में मौजूद है, जो दिव्य ऊर्जा बिखेरता है.

इतिहास


बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना है.ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, मंदिर का निर्माण मूल रूप से नागवंशी राजवंश के पूर्वज पूरन मल ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था. हालाँकि, सदियों से मंदिर में कई जीर्णोद्धार और विस्तार हुए हैं, माना जाता है कि वर्तमान संरचना का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह ने करवाया था.

मंदिर परिसर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी विशेषता इसकी ऊंची चोटी, जटिल नक्काशी और एक पवित्र तालाब है जिसे श्रावणी मेला कुंड के नाम से जाना जाता है. मंदिर की वास्तुकला नागर और द्रविड़ सहित विभिन्न शैलियों के मिश्रण को दर्शाती है, जो इसके डिजाइन को आकार देने वाले विविध सांस्कृतिक प्रभावों को प्रदर्शित करती है.

इस मंदिर को लेकर और हैं ऐतिहासिक तथ्य 


 पुरातत्ववेत्ताओं के लिए आज भी चुनौती है. सातवीं शताब्दी में सात शैवमतावलम्बी राजाओं के देवघर आगमन का जिक्र इतिहास में दर्ज है. कहा जाता है कि बाबाधाम का ऐतिहासिक शिव मंदिर का निर्माण उसी काल में हुआ है. यदि उस समय मंदिर का निर्माण हुआ, तो मंदिर 1300 वर्ष पुराना है. 1000 वर्ष पहले का इतिहास दशनामी साधुओं और गोरखनाथ पंथी संन्यासियों के अधिकार क्षेत्र में बाबा मंदिर को बताया गया है. इसलिए इतिहासविद् भी नि:संकोच बताते हैं कि बाबा मंदिर हजार वर्ष से अधिक पुराना है. बावजूद अभी भी पुरातत्ववेत्ताओं के लिए यह शिव मंदिर खोज का विषय बना हुआ है. अब तक बाबा वैद्यनाथ मंदिर का निर्माणकाल अस्पष्ट है। भारत के शैवमतावलंबी अनेक राजा देवघर आए और कामनालिंग की पूजा-अर्चना की.

 इतिहास बताता है कि 148-70 के बीच नवनाग और 290 से 315 के बीच भवनाग के पयंत भारशिवों के सात राजा हुए. उन्होंने गंगा, यमुना के संकेतों को अपना राज चिह्न बनाया. सभी सात राजा देवघर आए. सातवीं शताब्दी में शैव मतावलम्बी अनेक राजा हुए जिनमें माधव गुप्त के पुत्र आदित्य सेन भी थे. उनके राज्य में आधुनिक उत्तर प्रदेश, बिहार और के कुछ हिस्से भी शामिल थे. वैद्यनाथ मंदिर के पूरब दरवाजा पर चार शिलालेख जड़ित हैं. भाषा ब्राह्मीलिपि में है. इन शिलालेखों में मंदार पर्वत का भी जिक्र आया है.

 राजा आदित्य सेन का उल्लेख भी मिलता है इतिहास में 


पुरातत्ववेत्ता प्रो. राखाल दास बनर्जी ने भी मंदार पर्वत के शिलालेख का उल्लेख किया है

 जे. एफ. फ्लीट की प्रसिद्ध पुस्तक ‘कांरपस इन्सकिप्पनम इंण्डिकेरम के तीसरे भाग में भी इसका जिक्र मिलता है. आदित्य सेन का काल सातवीं शताब्दी है। प्रो. राखाल दास बनर्जी के अनुसार आदित्य सेन 672 ई. तक जीवित थे.

 वैद्यनाथ मंदिर के मध्य खंड में गर्भद्वार स्थित ऊपरी भाग में एक शिलालेख है जिसमें लिखा है कि “अचल राशि शाय कोल्लसित भूमि शाकाब्द केवलति रघुनाथ बहवलपूज के श्रद्धया विमल गुण चेतसा, नृपति पुरणेनासिरम त्रिपुर हर मंदिर वयरिच सर्वकामप्रदम”

जिसकी अगर व्याख्या करें तो इसका अर्थ होता है अचल-7, राशि-01, शायक-05, भूमि-01 अर्थात शाके 1517 में पूरण राजा ने सर्वकाम प्रदम शिवमंदिर का निर्माण कराकर विमल गुण वाले नौष्ठिक ब्राह्मण रघुनाथ को दान दिया.

इस प्रकार शिलालेख के अनुसार 400 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण बताया जाता है पर राजा आदित्य सेन के सातवीं शताब्दी के जिक्र से लगता है कि मंदिर हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है. हजार साल पहले बाबा मंदिर के चारों ओर दशनामी साधुओं का अखाड़ा होने का भी जिक्र मिलता है.इसके अलावे बहुत दिनों तक गोरखनाथ पंथी साधुओं ने मंदिर पर अधिकार कर लिया था.नाथों के भय से दशनामी साधु देवघर छोड़कर चले गए. बाबा मंदिर के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित नाथ बाड़ी आज भी इसका प्रमाण है. इसलिए बाबा वैद्यनाथ मंदिर के निर्माण काल को हजार साल से अधिक माना जा सकता है सांस्कृतिक महत्व

बाबा बैद्यनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि एक सांस्कृतिक केंद्र भी है.

 यह मंदिर पवित्र श्रावण महीने के दौरान, विशेष रूप से शिवरात्रि के शुभ दिन पर लाखों भक्तों को आकर्षित करता है. वार्षिक श्रावणी मेला एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा है, जहाँ भक्त भगवान शिव को अर्पित करने के लिए गंगा से पवित्र जल लेकर कांवड़ यात्रा करते हैं.

मंदिर का सांस्कृतिक महत्व पूरे वर्ष आयोजित होने वाले विभिन्न अनुष्ठानों, त्योहारों और समारोहों में भी स्पष्ट है. इन समारोहों के दौरान जीवंत माहौल बाबा बैद्यनाथ के साथ लोगों के गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है.

सावन के महीने में देवघर में लगता है श्रावणी मेला


मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त कांधे पर कांवर लेकर सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, इसीलिए ऐसी मनोकामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है. सावन के महीने में हर दिन लाखों श्रद्धालु की भीड़ सुल्तानगंज से जल उठा कर कांवर में जल भरकर पैदल 105 किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं , सावन के महीने में देवघर में लगने वाली विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला देश की सबसे लंबे दिनों तक चलने वाली धार्मिक आयोजनों में से एक है जहाँ लोग आस्था के साथ कांबड़ लेकर जाते हैं निष्कर्ष 

देवघर का बैधनाथ धाम जहाँ एक पौराणिक महत्व, का आस्था का केंद्र है वहीं अभी भी इसकी एतिहासिकता को लेकर इस पर शोध की जरूरत है. लेकिन यह विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग का दर्शन बहुत ही पहलदायी है. कोरोडो लोग देश विदेश से यहां सावन में पहुंचते है इस लिए यह तीर्थ काफी महत्वपूर्ण धार्मिक धरोहर है.

आज का रशिफल ,6 जुलाई 2024:जानिए रशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा ..?

​मेष राशि वालों को लाभ के कई अवसर प्राप्त होंगे

​मेष राशि वालों को लाभ के कई अवसर प्राप्त होंगे

आज मंगल और चंद्रमा के राशि परिवर्तन से मेष राशि के जातकों का दिन लाभदायक और अनुकूल रहेगा। आपको आज अपने कारोबार में एक के बाद एक लाभ का मौका मिलेगा। आप आज राजनीतिक क्षेत्र में भी सम्मान और लाभ पा सकते हैं. आपको आज आज भाग्य का सपोर्ट मिल रहा है ऐसे में आप आज दीर्घकालीन निवेश के द्वारा भी आज कमाई कर सकते हैं। आपका कोई खोया सामान भी आपको आज मिल सकता है। आज आपको अपने रिश्तेदारों से शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है और वैवाहिक जीवन में प्रेम का आनंद आएगा। नौकरीपेशा लोगों को आज कार्यक्षेत्र में काम का दबाव महसूस होगा लेकिन मेहनत का लाभ मिलने से आपको खुशी मिलेगी। जो लोग साझेदारी में काम करना चाह रहे हैं उन जातकों के लिए भी आज का दिन उनके पक्ष में रहेगा।

आज भाग्य 72% आपके पक्ष में रहेगा। बजरंगबली को बूंदी का प्रसाद अर्पित करें।

​वृषभ राशि के जातक आर्थिक फैसला गंभीरता से लें

आज वृषभ राशि के सितारे बताते हैं कि इनका दिन आज बहुत ही अच्छा रहेगा। राशि स्वामी शुक्र का आज मंगल और बुध के साथ युति संबंध बनेगा जो आपको कार्यक्षेत्र में लाभ दिलाएगा। लेकिन आपको अपने विरोधियों से सावधान और सतर्क रहना होगा, क्योंकि वह आपको नुकसाना पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। लव लाइफ के मामले में आज का दिन आपके लिए कुछ तनावपूर्ण रह सकता है, किसी बात को लेकर आपके में आपका मतभेद हो सकात है। वैवाहिक जीवन के मामले में दिन आपका सामान्य बीतेगा। आपके लिए आज बेहतर होगा कि दिमाग को शांत रखकर ही कोई बड़ा आर्थिक फैसला लें नहीं तो आपका पैसा फंस सकता है। छात्रों के लिए आज का दिन बढ़िया रहेग, शिक्षा और रचनात्मक कार्यों में आपका मन लगेगा।

आज भाग्य 83% आपके पक्ष में रहेगा। माता पिता से आशीर्वाद लें।

​मिथुन राशि के जातकों को खर्च पर नियंत्रण रखने की जरूरत है

आज का दिन मिथुन राशि के लिए तनाव भरा रह सकता है। आपको आज कार्यक्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जिससे आप थकान महसूस करेंगे। आपके ऊपर कुछ नया काम भी आ सकता है जिससे आप मानसिक रूप से परेशान रह सकते हैं। सितारे कहते हैं कि आपकी राशि के स्वामी बुध आज मंगल औऱ बुध के बीच फंसे हुए हैं ऐसे में आज आज आपको अपनी सेहत का ख्याल रखना चाहिए। साथ ही आज आपको आज आपको किसी भी प्रकार के निवेश से दूर रहना चाहिए। पैसों के मामले में आज का दिन आपके लिए बहुत अच्छा नहीं रहेगा। आपको अपने खर्चों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होगी। धर्म कर्म के काम में आज आपका मन लगेगा।

आज भाग्य 79% आपके पक्ष में रहेगा। गौ माता को हरा चारा खिलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें।

​कर्क राशि वालों को आज गजकेसरी योग का लाभ मिलेगा

कर्क राशि के जातकों के लिए आज का दिन सुखद रहने वाला है। आज आपकी राशि के स्वामी चंद्रमा तुला रासि में जातक गजकेसरी योग बना रहे हैं जिसका लाभ आपको जीवन के विभिन्न क्षेत्र में मिलने वाला है। आपको आज पारिवारिक जीवन में प्रेम और जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। धर्म कर्म में भी आज आपकी रुचि बनी रहेगी। आपका कोई काम जो काफी समय से पेंडिंग चल रहा है आज पूरा हो सकता है। कार्यक्षेत्र में आज आपको अधिकारी वर्ग से पूरा सहयोग और सपोर्ट मिल सकता है। बिजनस करने वाले जातकों की आज कमाई में वृद्धि होगी। लेकिन आपको आज कानूनी मामलों में लापरवाही से बचना होगा।

आज भाग्य 82% आपके पक्ष में रहेगा। माता लक्ष्मी की पूजा करें और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।

​सिंह राशि वालों को संपर्क से लाभ मिलेगा

सिंह राशि आपके लिए आज का दिन बहुत अच्छा है। आपकी राशि पर आज गुरु की शुभ दृष्टि बनी हुई जिससे आज आपके रिश्ते बेहतर होंगे। वैवाहिक जीवन में आज आपको जीवनसाथी से सुख और सहयोग मिलेगा। आपका आज सामाजिका दायरा भी बढेगा। कुछ नए संपर्क बनेंगे जो आपको भविष्य में लाभ दिला सकते हैं। लव लाइफ में आज आपके प्रेम बना रहेगा। जिन लोगों को प्रेमी से मतभेद और तनाव चल रहा है आज उनके रिश्ते में भी सुधार का योग बनता दिख रहा है। रिश्तेदारों के बीच आपकी साख बढ़ेगी और परिवार का आपको पूरा सहयोग मिलेगा। सितारे बताते हैं कि आज सिंह राशि के जातक घर की साज सज्जा के लिए कुछ खरीदारी कर सकते हैं। आर्थिक योजनाओं और निवेश से आपको आज लाभ मिलेगा। नौकरी की तलाश कर रहे जातकों को आज सफलता मिल सकती है।

आज भाग्य 92% आपके पक्ष में रहेगा। श्री हनुमान चालीसा का पाठ आपके लिए लिए कल्याणकारी होगा।

​कन्या राशि वालों को उम्मीद से बढकर लाभ मिलेगा

आज का दिन कन्या राशि के जातकों के लिए बहुत ही शुभ रहेगा। आज आपको कुछ ऐसे अवसर प्राप्त होंगे जिनसे आपको उम्मीद से बढकर लाभ मिलेगा। कार्यक्षेत्र में आपको आज सहकर्मियों से अपेक्षित सहयोग मिलेगा। बिजनस में किसी डील के फाइनल हो जाने से आपकी आज अच्छी कमाई होने वाली है। सितारे कहते हैं कि आज आपकी राशि के स्वामी बुध का मंगल और शुक्र के साथ निर्मित हो रहा योग आपको अपने काम में बड़ी सफलता दिला सकता है और आप अपने काम में नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। कन्या राशि के जातकों के लिए आज सितारे कहते हैं कि आपको अपने मन पर नियंत्रण रखना होगा क्योंकि मानसिक भटकाव की वजह से आपको शिक्षा के क्षेत्र में परेशानी होगी।

आज भाग्य 89% आपके पक्ष में रहेगा। मछलियों को आटे की गोलिया खिलाएं और बड़े भाई से आशीर्वाद लें।

​तुला राशि के जातक आज मानसिक तनाव महसूस करेंगे

तुला राशि वालों के लिए आज का दिन चुनौतियों भरा रहेगा। आपकी राशि में आज चंद्रमा का आगमन हुआ है ऐसे में आज आपका मन उलझन और तनाव में रह सकता है। भावुकता में आकर आपको कोई भी फैसला लेने से बचना होगा। साथ ही आज आपको अपनी सेहत पर ध्यान देने की जरूरत पड़ सकती है। आपको अपने खान-पान और व्यायाम पर विशेष ध्यान देना होगा। आज आपको अपने पारिवारिक रिश्तों पर ध्यान देने की जरूरत पड़ सकती है। वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी के साथ मतभेद होने की आशंका है। किसी निकट संबंधी की ओर से आपको कोई ऐसी खबर मिल सकती है जिससे आपको मानसिक तनाव होगा। खर्च पर आपको आज कंट्रोल करना होगा। गैर जरूरी खर्चों की वजह से बजट प्रभावित हो सकता है।

आज भाग्य 95% आपके पक्ष में रहेगा। गायत्री चालीसा का पाठ करें।

​वृश्चिक राशि वालों की दबी हुई परेशानी उभर सकती है

वृश्चिक राशि के जातकों को आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपको अपनी शक्ति और क्षमता पर पूरा भरोसा रखना होगा। आज आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है इसलिए धैर्य और साहस बनाए रखें। आपको अपने स्वास्थ्य का भी आज ध्यान रखना होगा, कोई दबी हुई आपकी परेशानी फिर से उभर सकती है। कामकाज को लेकर आज आपको बहुत जोश और उत्साह से काम करना होगा। आपको अपने काम में अधिक धैर्य और संयम से काम लेना होगा जो आपको सफलता की ओर ले जाएगा। विद्यार्थियों को आज अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना होगा और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए आज का दिन आपके लिए अनुकूल रह सकता है।

आज भाग्य 81% आपके पक्ष में रहेगा। हनुमानजी को सिंदूर भेट करें।

​धनु राशि वालों को सफलता मिलेगी

धनु राशि वालों के लिए आज का दिन बेहद शुभ रहने वाला है। आप अपने जीवन में ढेर सारी खुशियां और समृद्धि अनुभव करेंगे जिससे आपका आत्मबल आज बढा रहेगा। आज आपको अपने सपने पूरे करने और जीवन में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का मौका मिल सकता है। आपके करियर के लिए भी दिन बहुत ही शुभ रहेगा। आपको अपने प्रयास से बढकर आज कार्यक्षेत्र में सफलता मिलने की संभावना है। आज धनु राशि के छात्रों के लिए भी दिन बहुत ही शुभ रहेगा। आपकी मेहनत और लगन से अच्छे परिणाम मिलेंगे और आप शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। बिजनस के क्षेत्र में आपको पैसा कमाने का अच्छा मौका मिल सकता है।

आज भाग्य 65% आपके पक्ष में रहेगा। भगवान विष्णु की आराधना करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।

​मकर राशि वालों को खर्च पर नियंत्रण रखना होगा

आज का दिन मकर राशि के लिए मिलाजुला रहने वाला है। आप अपने काम में सफल हो सकते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का आपको मौका मिल सकता है। आपको आज तकनीकी योग्यता और अनुभव का लाभ मिलेगा। बिजनस में आज आपकी कमाई अच्छी होगी, लेकिन आपको आज अपने विरोधियों से सावधान रहने की जरूरत है। खर्च के मामले में सितारे कहते हैं कि आज आपको थोड़ा यहां संभलकर चलना होगा। कुछ अचानक बनने वाली परिस्थिति से वजह से आपको धन खर्च करना होगा। वाहन पर भी आज खर्च का योग बना हुआ है। आज विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई और लक्ष्य के प्रति अधिक गंभीर रहना होगा। शाम के समय आपको अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का मौका मिल सकता है।

आज भाग्य 74% आपके पक्ष में रहेगा। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

​कुंभ राशि वालों को उपहार और परिश्रम का लाभ मिलेगा

कुंभ राशि वालों के लिए आज का दिन संतान पक्ष से खुशी प्रदान करने वाला रहेगा। आज आपकी राशि से मंगल जा रहे हैं ऐसे में शनि मंगल योग का समाप्त होना आपके लिए शुभ रहेगा। आज आपको अपने रिश्तेदारों से कुछ उपहार मिल सकता है जिससे आपको खुशी मिलेगी। कार्यक्षेत्र में आज आपको अपनी मेहनत का पूरा लाभ मिलेगा। जो लोग लोहा औऱ गृह निर्माण के कार्य से संबंधित क्षेत्र से जुडे़ हुए हैं उनकी आज अच्छी कमाई होगी। आपके दांपत्य जीवन में प्यार और तालमेल बना रहेगा। सरकारी क्षेत्र के काम में आज आपको सफलता मिलेगी। कोई काम जो आपका बहुत दिनों से अटक रहा है आज वह पूरा हो सकता है। लव लाइफ में आज आपको कुछ यादगार पल प्रेमी के साथ बिताने का मौका मिलेगा।

आज भाग्य 83% आपके पक्ष में रहेगा। श्रीराम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।

​मीन राशि वालों की अधूरी इच्छा पूरी हो सकती है

आज का दिन मीन राशि के जातकों के लिए बहुत ही शुभ और लाभकारी रहने वाला है। आज आपकी राशि में मंगल का प्रवेश हुआ है जो आपके लिए मंगलकारी रहेगा। आज आपकी कोई अधूरी इच्छा पूरी हो सकती है और आपका मन खुशी से भर जाएगा। साहस और आत्मविश्वास से आज आप भरपूर रहेंगे और आपका स्वास्थ्य भी आज अच्छा रहेगा। आज मीन राशि के जातक कुछ नए काम की भी शुरुआत कर सकते हैं। वैवाहिक जीवन में आज प्रेम और आपसी सहयोग बना रहेगा जिससे घर का माहौल खुशनुमा रहेगा। महिलाओं को आज ननद और सासु मां से सहयोग और लाभ मिल सकता है। आपको आज बच्चों की सेहत और शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत होगी।

आज भाग्य 81% आपके पक्ष में रहेगा। श्रीहनुमान चालीसा का पाठ करना आपके लिए लाभकारी रहेगा।

आज का पंचांग- 06 जुलाई 2024;जानिए पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत - 2081 पिङ्गल

शक सम्वत - 1946 क्रोधी

ज्येष्ठ - पूर्णिमान्त

वैशाख - अमान्त

तिथि

प्रतिपदा - 04:26 ए एम, जुलाई 07 तक

नक्षत्र

पुनर्वसु - 04:48 ए एम, जुलाई 07 तक

योग

व्याघात - 02:47 ए एम, जुलाई 07 तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय - 05:29 ए एम

सूर्यास्त - 07:23 पी एम

चन्द्रास्त - 08:06 पी एम

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त - 11:58 ए एम से 12:54 पी एम

अमृत काल - 02:20 ए एम, जुलाई 07 से 03:58 ए एम, जुलाई 07

ब्रह्म मुहूर्त - 04:08 ए एम से 04:48 ए एम

अशुभ काल

राहूकाल-   08:57 ए एम से 10:42 ए एम

यम गण्ड - 02:10 पी एम से 03:54 पी एम

गुलिक - 05:29 ए एम से 07:13 ए एम

दुर्मुहूर्त - 05:29 ए एम से 06:25 ए एम, 06:25 ए एम से 07:20 ए एम

वर्ज्य - 04:27 पी एम से 06:06 पी एम

शुभ योग

त्रिपुष्कर योग- 04:26 ए एम, जुलाई 07 से 04:48 ए एम, जुलाई 07

ज्योतिर्लिंग-4:मध्यप्रदेश के खंडवा स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मानव निर्मित नही ,शिव ने स्वत:प्रकट होकर हुए थे स्थापित,जानिए उनके महामात्य

- -विनोद आनंद

भारत के धार्मिक स्थलों में शिव भगवान के जिन 12 ज्योतिर्लिंगों की हम चर्चा इस एपिशोड में लगातार कर रहे हैं उसमे आज चौथे ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर ले चलते हैं ।वैसे आप को बता दें कि ज्योतिर्लिंग का दर्शन पूजन हमारे हिन्दू धर्म में बहुत हीं कल्याणकारी और फलदायक है।भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है।दूसरी सबसे बड़ी बात है कि हमे भारत के धार्मिक परम्परा और ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी भी मिलती है।

तो आइए हम जानते हैं द्वादश ज्योतिर्लिंग में चतुर्थ शिव के सिद्धपीठ औंकारेश्वर के बारे में ।

 यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

सदियों पहले कोली जनजाति ने इस जगह पर लोगो की बस्तियां बसाई और अब यह जगह अपनी भव्यता और इतिहास से प्रसिद्ध है यहां के मोरटक्का गांव से लगभग 14 कि॰मी॰ दूर बसा है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं जिसे ॐकारेश्वर और दूसरे मंदिर को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि ॐकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है। यह नदी भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है और अब इस पर विश्व का सर्वाधिक बड़ा बांध परियोजना का निर्माण हो रहा है।

जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ है, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है। इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है। इसमें 68 तीर्थ हैं। यहाँ 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं।

 मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के रूप में विराजमान हैं।

जनश्रुति


मध्यप्रदेश के खंडवा स्थित ॐकारेश्वर मंदिर को लेकर जो कथा है उसके अनुसार यहां 

राजा मान्धाता ने नर्मदा किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान माँग लिया। तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के रूप में पुकारी जाने लगी। 

एक दूसरी जनश्रुति के अनुसार

इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे शिव ने देवताओ का धनपति बनाया था। कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बहकर नर्मदाजी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तो ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा है, यही कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदाजी से मिलती हैं, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते है।

दीपावली की रात ज्वार चढाने का है परम्परा


इस मंदिर पर प्रतिवर्ष दिवाली की की रात को ज्वार चढाने का विशेष महत्त्व है इस रात्रि को जागरण होता है तथा धनतेरस की सुबह 4 बजे से अभिषेक पूजन होता हैं इसके पश्चात् कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन, जिसमे कई जोड़े बैठते हैं, धनतेरस की सुबह कुबेर महालक्ष्मी महायज्ञ नर्मदाजी का तट और ओम्कारेश्वर जैसे स्थान पर होना विशेष फलदायी होता हैं। उसके बाद यहां भंडारा होता है लक्ष्मी वृद्धि पेकेट सिद्धि वितरण होता है, जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस को विधि अनुसार धन रखने की जगह पर रखना होता हैं।जिससे घर में प्रचुर धन के साथ सुख शांति आती हैं I 

इस अवसर पर हजारों भक्त दूर दूर से यहां आते है और कुबेर का भंडार प्राप्त कर प्रचुर धन के साथ सुख शांति पाते हैं I

 नवनिर्मित मंदिर प्राचीन मंदिर ओम्कारेश्वर बांध में जलमग्न हो जाने के कारण भक्त श्री चैतरामजी चौधरी, ग्राम - कातोरा गुर्जर दादा के अथक प्रयास से नवीन मंदिर का निर्माण बांध के व् ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के बीच नर्मदाजी के किनारे 2006-07 में बनाया गया हैं I

कैसे होता है ओंकारेश्वर का दर्शन?


नर्मदा किनारे जो बस्ती है उसे विष्णुपुरी कहते हैं। यहाँ नर्मदाजी पर पक्का घाट है। सेतु अथवा नौका द्वारा नर्मदाजी को पार करके यात्री मान्धाता द्वीपमें पहुँचता है। उस ओर भी पक्का घाट है। यहाँ घाट के पास नर्मदाजी में कोटितीर्थ या चक्रतीर्थ माना जाता है। यहीं स्नान करके यात्री सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर ऑकारेश्वर-मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं। मन्दिर तट पर ही कुछ ऊँचाई पर है।

मन्दिर के अहाते में पंचमुख गणेशजी की मूर्ति है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान हैं। श्रीओंकारेश्वर का लिंग अनगढ़ है। यह लिंग मन्दिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर हटकर है। लिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। मन्दिर का द्वार छोटा है। ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हों। पास में ही पार्वतीजी की मूर्ति है। ओंकारेश्वर मन्दिर में सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरी मंजिल पर जाने पर महाकालेश्वर लिंग के दर्शन होते हैं। यह लिंग शिखर के नीचे है।

 तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ लिंग है। यह भी शिखर के नीचे है। चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर लिंग है। पांचवीं मंजिल पर ध्वजेश्वर लिंग है।

तीसरी, चौथी व पांचवीं मंजिलों पर स्थित लिंगों के ऊपर स्थित छतों पर अष्टभुजाकार आकृतियां बनी हैं जो एक दूसरे में गुंथी हुई हैं। द्वितीय तल पर स्थित महाकालेश्वर लिंग के ऊपर छत समतल न होकर शंक्वाकार है और वहां अष्टभुजाकार आकृतियां भी नहीं हैं। प्रथम और द्वितीय तलों के शिवलिंगों के प्रांगणों में नन्दी की मूर्तियां स्थापित हैं। तृतीय तल के प्रांगण में नन्दी की मूर्ति नहीं है। यह प्रांगण केवल खुली छत के रूप में है। चतुर्थ एवं पंचम तलों के प्रांगण नहीं हैं। वह केवल ओंकारेश्वर मन्दिर के शिखर में ही समाहित हैं। प्रथम तल पर जो नन्दी की मूर्ति है, उसकी हनु के नीचे एक स्तम्भ दिखाई देता है। ऐसा स्तम्भ नन्दी की अन्य मूर्तियों में विरल ही पाया जाता है।

श्रीओंकारेश्वरजी की परिक्रमा में रामेश्वर-मन्दिर तथा गौरीसोमनाथ के दर्शन हो जाते हैं। ओंकारेश्वर मन्दिर के पास अविमुतश्वर, ज्वालेश्वर, केदारेश्वर आदि कई मन्दिर हैं।

ममलेश्वर भी ज्योतिर्लिंग है।


 ममलेश्वर मन्दिर अहल्याबाई का बनवाया हुआ है। गायकवाड़ राज्य की ओर से नियत किये हुए बहुत से ब्राह्मण यहीं पार्थिव-पूजन करते रहते हैं। यात्री चाहे तो पहले ममलेश्वर का दर्शन करके तब नर्मदा पार होकर औकारेश्वर जाय; किंतु नियम पहले ओंकारेश्वर का दर्शन करके लौटते समय ममलेश्वर-दर्शन का ही है। पुराणों में ममलेश्वर नाम के बदले अमलेश्वर उपलब्ध होता है।ममलेश्वर-प्रदक्षिणा में वृद्धकालेश्वर, बाणेश्वर, मुक्तेश्वर, कर्दमेश्वर और तिलभाण्डेश्वरके मन्दिर मिलते हैं।

ममलेश्वरका दर्शन करके निरंजनी अखाड़े में स्वामी कार्तिक अघोरी नाले में अघेोरेश्वर गणपति, मारुति का दर्शन करते हुए नृसिंहटेकरी तथा गुप्तेश्वर होकर (ब्रह्मपुरीमें) ब्रह्मेश्वर, लक्ष्मीनारायण, काशीविश्वनाथ, शरणेश्वर, कपिलेश्वर और गंगेश्वरके दर्शन करके विष्णुपुरी लौटकर भगवान् विष्णु के दर्शन करे। यहीं कपिलजी, वरुण, वरुणेश्वर, नीलकण्ठेश्वर तथा कर्दमेश्वर होकर मार्कण्डेय आश्रम जाकर मार्कण्डेयशिला और मार्कण्डेयेश्वर के दर्शन करे।

भगवान के महान भक्त अम्बरीष और मुचुकुन्द के पिता सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। उस महान पुरुष मान्धाता के नाम पर ही इस पर्वत का नाम मान्धाता पर्वत हो गया।

जल के बीच स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है


ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है।

परिक्रमा के अन्तर्गत बहुत से मन्दिरों के विद्यमान होने के कारण भी यह पर्वत ओंकार के स्वरूप में दिखाई पड़ता है। ओंकारेश्वर के मन्दिर ॐकार में बने चन्द्र का स्थानीय ॐ इसमें बने हुए चन्द्रबिन्दु का जो स्थान है, वही स्थान ओंकारपर्वत पर बने ओंकारेश्वर मन्दिर का है। मालूम पड़ता है इस मन्दिर में शिव जी के पास ही माँ पार्वती की भी मूर्ति स्थापित है। यहाँ पर भगवान परमेश्वर महादेव है।

ऐतिहासिक और पुरत्ताविक तथ्य


अगर इतिहास के कसौटी पर हम ओंकारेश्वर तीर्थ नगरी को समझने की कोशिश करें तो यहां बहुत-सी ऐतिहासिक और पुरातात्विक संपदा मौजूद है।

सम्भावना है कि अनादिकाल में यहां अध्यात्म का प्रमुख केंद्र रहा होगा। यहां मौजूद अवशेष और हाल ही में भगवान ज्योतिर्लिंग मंदिर के नीचे खुदाई में निकला मंदिर सातवीं सदी से भी पुराना लगता है।

यह बात खुदाई में निकले मंदिर का निरीक्षण करने आए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हेरिटेज आर्कियोलॉजिस्ट मुनीष पंडित के अनुसार यह मंदिर दर्शन हॉल बनाने के लिए साधारण द्वार के सामने की सीढ़ियों की खुदाई के बीच निकला था। यह अवशेष मार्च 2018 के अंतिम सप्ताह में हुई थी। खुदाई के दौरान भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के नीचे जो मंदिर निकला है, उसकी बनावट व आर्किटेक्टर देखकर लगता है कि यह सातवीं शताब्दी से भी पहले का है। 

 ओंकारेश्वर के ओंकार पर्वत पर बने मंदिर और वहां बिखरे अवशेषों को देखकर यह प्रमाणित होता है कि ओंकारेश्वर अनादिकाल में ऋषि मुनियों और साधु-संन्यासियों की तपोभूमि और अध्यात्म का केंद्र रही है। इतिहास में उल्लेख है कि भगवान आदिगुरु शंकराचार्य के गुरु गोविंदपदाचार्य की तपोस्थली भी है। ओंकार पर्वत का वर्णन तो यजुर्वेद में भी मिलता है। इन मंदिरों को बनाने के लिए जिन पत्थरों का उपयोग किया गया वे पत्थर भी यहां के नहीं हैं। ये कहीं बाहर से लाकर मंदिर बनाए गए हैं।

आक्रमण या भूकंप से क्षतिग्रस्त हुए होंगे मंदिर!


पंडित ने बताया कि ओंकार पर्वत पर जो मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, इन मंदिरों को या तो तोड़ा गया या भूकंप के कारण नष्ट हुए हैं। सभी मंदिरों को संरक्षित कर विश्व के सामने यह भी प्रमाणित किया जा सकता है कि भारत अनादिकाल से संस्कृति व आध्यात्म में सबसे आगे है। उस समय के राजा-महाराजाओं ने परिस्थितिवश मौजूदा संसाधनों के हिसाब से जिस तरह का सुधार संभव था, करवा दिया।

आज का राशिफल 5 जुलाई 2024,जानिए रशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा..?

मेष राशि वालों का शुभ समाचार मिलेगा

आज का दिन मेष राशि के जातकों के लिए मानसिक तनाव देने वाला रहेगा। आपको आज वाहन संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन संतान के संबंध में कोई शुभ समाचार सुनने को मिलेगा। आज आपको मित्रों से सहयोग मिलने मिलेगा साथ ही आपका दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा। आज परिवार में भाइयों से किसी बात को लेकर अनबन होने की आशंका है ऐसे में सलाह है कि मन को शांत रखें और वाणी पर कंट्रोल करें।

आज भाग्य 88% आपके पक्ष में रहेगा। जरूरतमंद लोगों की मदद करें।

​वृषभ राशि वालों को कमाई का मौका मिलेगा

वृषभ राशि के लिए आज का दिन अनुकूल रहेगा। आपके जीवन में किसी रिश्ते को लेकर कोई विवाद चल रहा था तो वह आज समाप्त हो जाएगा। चल अचल संपत्ति को लेकर कोई कानूनी मामला चल रहा है तो आज फैसला आपके पक्ष में आ सकता है। आर्थिक मामलों में आज का दिन आपका अनुकूल रहेगा। आपको आज कमाई का नया मौका मिल सकता है। आपकी कोई चाहत भी आज पूरी हो सकती है। आपको नौकरी में कुछ नया काम करने का मौका मिलेगा। शाम का समय आप किसी सामाजिक समारोह में बिताएंगे।

आज भाग्य 85% आपके पक्ष में रहेगा। गणेशजी को लड्डू का भोग लगाएं।

​मिथुन राशि के लिए दिन शुभ रहेगा

मिथुन राशि के लोगों के लिए आज का दिन शुभ और लाभकारी रहेगा। आपकी राशि में आज त्रिग्रह योग बना हुआ है जो आपको लाभ दिलाएगा। आज आपकी मुलाकात कुछ पुराने मित्रों से हो सकती है, जो आपके लिए फायदेमंद साबित होगी। लेकिन परिवार के छोटे सदस्यों या बच्चों को कुछ परेशानी हो सकती है जिसकी वजह से आपको चिंता भी होगी। वैसे आपके लिए आज का टिप्स है कि अपनी वाणी में मधुरता और सौम्यता बनाए रखें इससे आप सफलता हासिल कर पाएंगे।

आज भाग्य 90% आपके पक्ष में रहेगा। शिवा मंत्र का जप करें।

​कर्क राशि वालों को जल्दबाजी से बचना चाहिए

कर्क राशि के लिए आज सितारे बताते हैं कि आज आपको अपने कार्यक्षेत्र में किसी अनुभवी व्यक्ति का मार्गदर्शन मिल सकता है। आपको आज कुछ नया सीखने का मौका मिलेगा। तकनीकी क्षेत्र से जुड़े जातक आज अपने कार्य में उन्नति करेंगे। वैसे आपको आर्थिक और पारिवारिक मामलों में उलझन का सामना करना होगा। जल्दबाजी से किया हुआ काम बिगड़ सकता है, इसलिए संयम और सावधानी बनाए रखें। शाम के समय धार्मिक कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी, शुभ कार्यों में धन भी खर्च करेंगे।

आज भाग्य 81% आपके पक्ष में रहेगा। लक्ष्मीजी को खीर का भोग लगाएं।

​सिंह राशि के लिए दिन मिलाजुला रहेगा

सिंह राशि के लोगों के लिए आज का दिन मिलाजुला रहेगा। सितारे कहते हैं कि आज आपको पैसों के लेनदेन में सावधानी बरतनी होगी। किसी से कहासुनी और मतभेद के कारण व्यवहार में बदलाव आएगा, जो आपके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। आपके द्वारा किए गए कार्यों का आज परिवार के सदस्य विरोध कर सकते हैं लेकिन जीवनसाथी आपके साथ खड़ा नजर आएगा। छात्रों को बेहतरीन परिणाम मिलेंगे जिससे मन आनंदित होगा।

आज भाग्य 81% आपके पक्ष में रहेगा। गणेशजी को लड्डू का भोग लगाएं।

​कन्या राशि के जातकों की जिम्मेदारी बढ़ेगी

आज शुक्रवार को कन्या राशि के जातकों को अधिक मेहनत करनी होगी। आपके ऊपर आज अतिरिक्त काम की जिम्मेदारी हो सकती है। आज आपको अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित विषयों के लिए यात्रा भी करनी पड़ सकती है। किसी काम के अटक जाने से मानसिक परेशानी भी हो सकती है। कुछ पुराने अधूरे कार्य भी आज आपको निपटाने पड़ेंगे। मित्रों अथवा प्रिय लोगों से मुलाकात होगी। आज शाम को आप अपने परिवार के छोटे बच्चों के साथ कुछ समय बिताएंगे, जिससे आपका मानसिक तनाव कम होगा।

आज भाग्य 79% आपके पक्ष में रहेगा। माता सरस्वती की पूजा करें।

​तुला राशि वालों के लाभ और प्रभाव में वृद्धि होगी

नौकरी और व्यापार के मामले में आज का दिन तुला राशि के लोगों के लिए लाभकारी रहेगा। नौकरी और व्यापार आज आपका प्रभाव बढेगा। आज आपके सभी काम समय पर बनते नजर आएंगे जिससे मन में प्रसन्नता की अनुभूति होगी। नौकरीपेशा जातकों के लिए आज रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। अगर आज आप किसी को कुछ पैसे देने की सोच रहे हैं तो ऐसा बिल्कुल न करें, क्योंकि उसके वापस मिलने की संभावना कम है।

आज भाग्य 62% आपके पक्ष में रहेगा। आपको आज लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

​वृश्चिक राशि वालों को अच्छी खबरें मिलेंगी

वृश्चिक राशि के लोगों के लिए आज शुक्रवार का दिन शुभ रहेगा। आपके घर में कोई मांगलिक कार्यक्रम का आयोजन हो सकता अथवा इसका संयोग बन सकता है। आपके घर किसी मित्र अथवा मेहमान का आगमन हो सकता है। रुचिकर खान पान का आप आनंद ले सकते हैं। आज अच्छी खबरें भी मिलेंगी जिससे आपका मन आनंदित होगा।

आज भाग्य 78% आपके पक्ष में रहेगा। माता पिता का आशीर्वाद लें।

​धनु राशि वालों के कार्यक्षेत्र में प्रगति होगी

आज का का दिन धनु राशि के लोगों के लिए अनुकूल रहेगा। आज धार्मिक कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी। किसी वरिष्ठ और प्रभावशाली व्यक्ति से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होगा। कामकाज में आज भागदौड़ अधिक रहेगा लेकिन परिश्रम से कार्यक्षेत्र में भी प्रगति होगी। आप अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सफल रहेंगे। माता के साथ आज आपका स्नेहपूर्ण संबंध रहेगा और उनसे आपको लाभ भी मिलेगा।

आज भाग्य 80% आपके पक्ष में रहेगा। माता लक्ष्मी की पूजा करें।

​मकर राशि वालों की कमाई बढेगी

मकर राशि के लोगों को आज मानसिक उलझन का सामना करना होगा। बच्चों की शिक्षा और सेहत को लेकर आपको चिंता हो सकती है। आपको आज पारिवारिक जीवन में शांति बनाए रखने के लिए वाणी पर संयम रखना होगा। दांपत्य सुख में वृद्धि होगी। कारोबार को आज नई गति मिलेगी और दिन के दूसरे भाग में आपकी कमाई बढेगी। पारिवारिक व्यवसाय में जीवनसाथी की सलाह कारगर साबित होगी। आज शाम के समय आप अपने जीवन साथी के साथ कहीं घूमने जा सकते हैं।

आज भाग्य 76% आपके पक्ष में रहेगा। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं।

​कुंभ राशि के जातक लाभ के अवसर पाएंगे

आज त्रिग्रह योग के संयोग में आपका दिन शुभ रहेगा। आज आपको लाभ के अवसर भी प्राप्त होंगे और सरकारी काम में आप सफलता पाएंगे। शाम को आज किसी प्रभावशाली व्यक्ति से मुलाकात हो सकती है। सामाजिक क्षेत्र में आपका प्रभाव बढेगा। व्यापार करने वाले जातकों को आज कोई नई डील मिल सकती है। वाहन चलाते समय सतर्क रहें।

आज भाग्य 93% आपके पक्ष में रहेगा। हनुमान जी को सिंदूर भेट करें।

​मीन राशि वालों को विरोधियों से सतर्क रहना होगा

मीन राशि के लोगों को आज परिश्रम से सफलता मिलेगी। कारोबार में आज कोई बड़ी डील मिल सकती है। आपको आज विरोधियों से सतर्क रहना होगा क्योंकि वह आपकी कमियों और गलतियों से फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। आर्थिक मामलों में आपको आज संभलकर चलना होगा। कोई जरूरी काम आज आपका अटक सकता है। आज पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और स्वयं भी बाहर के खाने-पीने से बचें। वैवाहिक जीवन के मामले में दिन अनुकूल रहेगा। और ससुराल पक्ष से आपको अपेक्षित सहयोग मिलेगा।

आज भाग्य 76% आपके पक्ष में रहेगा। श्रीसूक्त का पाठ करना आपके लिए लाभकारी रहेगा।

आज का पंचांग- 05 जुलाई 2024:जानिए पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत - 2081 पिङ्गल

शक सम्वत - 1946 क्रोधी

ज्येष्ठ - पूर्णिमान्त

वैशाख - अमान्त

तिथि

अमावस्या - 04:26 ए एम, जुलाई 06 तक

नक्षत्र

आर्द्रा - 04:06 ए एम, जुलाई 06 तक

योग

ध्रुव - 03:49 ए एम, जुलाई 06 तक

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय - 05:29 ए एम

सूर्यास्त - 07:23 पी एम

चन्द्रोदय - 05:24 ए एम, जुलाई 06

चन्द्रास्त - 07:15 पी एम

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त - 11:58 ए एम से 12:54 पी एम

अमृत काल - 06:01 पी एम से 07:38 पी एम

बह्म मुहूर्त - 04:08 ए एम से 04:48 ए एम

अशुभ काल

राहूकाल- 10:41 ए एम से 12:26 पी एम

यम गण्ड - 03:54 पी एम से 05:39 पी एम

गुलिक - 07:13 ए एम से 08:57 ए एम

दुर्मुहूर्त - 08:15 ए एम से 09:11 ए एम, 12:54 पी एम से 01:49 पी एम

वर्ज्य - 12:23 पी एम से 01:59 पी एम

ज्योतिर्लिंग-3: शिप्रा नदी के पावन तट पर स्थित अपने अद्भुत महिमा और महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर

   - विनोद आनंद 

शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से तीसरे सबसे शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग की दर्शन कराने के लिए आप को मध्यप्रदेश को उज्जैन ले चलते हैं जहां विश्वविख्यात तीर्थ स्थल महाकालेश्वर मंदिर है।इसके पहले स्ट्रीटबज़ज़ पर आप गुजरात के जूनागढ़ रियासत स्थित अरब सागर के किनारे के भव्य मंदिर सोमनाथ और आंध्र प्रदेश के शैल पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन के बारे में पढ़ चुके हैं। अब विश्वविख्यात धार्मिक स्थल उज्जैन के माहाकालेश्वर शिव की दर्शन कराते हैं। जो भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 

यह दुनिया के प्रसिद्ध 10 तंत्र मंदिरों में से एक है जिसमें भगवन शिव लिंग के स्वरुप में विद्यमान है। ऐसी मान्यता है की इस जयोतिर्लिंग को भगवान शिव ने स्वयं स्थापित किया था। जिस कारन से इसे 'स्वयंभू' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'स्वयं स्थापित' है।

 महाकाल मंदिर की महिमा अद्भुत है , जिसका वर्णन कई वेद-पुराणों में व् कई महान कवियों की रचनाओं में पाया गया है। यह भारत की माहान धरोहरों में से एक माना जाता है। मान्यता है की महाकालेश्वर जयोतिर्लिंग समय और काल से परे है, जहाँ महाकाल की अनुमति के बिना कुछ संभव नहीं है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन में स्थित है, जो अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है। राजा विक्रमादित्य के समय से उज्जैन अवंतिका शिक्षा का श्रेष्ठ केंद्र रहा है, जिसके चलते जन मानस में शिक्षा, शैली, वैभव, सामर्थ्य और विज्ञानं का प्रचार प्रसार हुआ। 

 महाकाल मंदिर शिप्रा नदी के पावन तट पर स्थित है, जहाँ 12 वर्ष में एक बार सिंघस्थ का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जमा होकर महाकाल का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं व् मेले का आनंद उठाते हैं। यह स्थान तप, तंत्र विद्या और क्रियाओं के लिए भीविशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। महाकालेश्वर एक मात्रा ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी है, जिसे तांत्रिक शिवनेत्र प्रथा में आस्था रखने वाले एक प्रतीक के रूप में देखते हैं। 

 श्री महाकालेश्वर मंदिर तीन स्तरीय अद्भुत ईमारत है जिसके प्रांगण में प्रति दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन एवं पूजा अर्चना के लिए आते हैं। सबसे नीचे भूमिगत स्तर पर महाकालेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसके साथ ही भगवान शिव के परिवार के सदस्यों की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं। शिवपत्नी माता पार्वती उतर दिशा में, पुत्र गणेशएवं कार्तिकेय पश्चिम तथा पूर्व में विराजमान हैं। शिव वाहन नंदी दक्षिण दिशा में सुशोभित हैं।

 सबसे ऊपरी स्थल पर भगवन शिव नागेश्वर रूप में सुसज्जित हैं, जिनके दर्शन वर्ष में केवल नाग पंचमी के पावन उत्सव पर ही संभव हैं। महाकालेश्वर मंदिरके मध्य में एक पवित्र कुंड है जिसके जल में श्रद्धालु दुबाकी लगाकर अपने आप को धन्य मानते हैं। स्नानोपरांत यात्री महाकाल मंदिर की परिक्रमा करते हैं, जिसके दौरान वहां पर सुशोभित भगवान शिव के जीवन से दर्शायी गयीझांकियों का मंत्र गुनगुनाते हुए प्रफुलित महसूस करते हैं।  

महाकालेश्वर मंदिर की पूजा विधि का एक एहम हिस्सा भस्म आरती भी है। इस धार्मिक संस्कार के दौरान महाकाल का श्रृंगार भस्म से किया जाता है और साधु संतइससे भस्म से स्नान करते हैं अथवा मस्तक पे इससे लगते हैं। ऐसी धरना है की कुछ वर्ष पूर्तक यह भस्म शमशान से लायी जाती थी।

मंदिर परिसर से कुछ ही दूर मंदिर द्वारा आयोजित भोजन भंडार स्थित है जहाँ सभी तीर्थार्थीयों को नि:शुल्क भोजन उपलब्ध कराया जाता है। ऐसी परंपरा है की कोई भी मानव मंदिर परिसर के 5 किलोमीटर की परिधि के अंदर भूखे पेट न सोये, यह भोजनालय इसको चरितार्थ करता है।

मंदिर में मिलने वाला मेवा प्रसाद ग्रहण किये बिना कोई भी तीर्थार्थी की यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता है। भोजनालय के अलावा मंदिर परिसर के आस पास कई अखाड़े एवं धर्मशालायें उपलब्ध हैं।

सावन के पावन माह में महाकाल के तीरथ स्थल का नज़ारा देखते ही बनता है। देश व् दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पहुँचते हैं। महाशिवरात्रिके पर्व पर भी एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भरी संख्या में विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।

महाकाल के मंदिर ने उज्जैन को विश्व के पर्यटक केंद्र के मान चित्र पर खड़ा कर दिया है। उज्जैन सभी बड़े शहरों से सड़क व् रेलमार्ग के द्वारा भली भांति जुड़ा है। हवाई यात्री इंदौर में स्थित देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा का इस्तेमाल करते हुए आसानी से उज्जैन पहुँच सकते हैं।  उज्जैन से यह करीब 54 किलोमीटर की दूरी पर है।

क्या है इस मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता..?


शिव पुराण के अनुसार , एक बार ब्रह्मा और विष्णु में इस बात पर बहस हुई कि सृष्टि में सर्वोच्च कौन है ..? इसके परीक्षण के लिए, शिव ने तीनों लोकों को प्रकाश के एक अंतहीन स्तंभ, ज्योतिर्लिंग के रूप में भेद दिया। विष्णु और ब्रह्मा ने प्रकाश के अंत को खोजने के लिए क्रमशः स्तंभ के साथ नीचे और ऊपर की ओर यात्रा करने का निर्णय लिया। ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्हें अंत मिल गया है, जबकि विष्णु ने अपनी हार मान ली। शिव प्रकाश के दूसरे स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा को शाप दिया कि उन्हें समारोहों में कोई स्थान नहीं मिलेगा, जबकि विष्णु की पूजा अनंत काल तक की जाएगी। 

ज्योतिर्लिंग सर्वोच्च अखंड वास्तविकता है, जिसमें से शिव आंशिक रूप से प्रकट होते हैं। इस प्रकार, ज्योतिर्लिंग मंदिर वे स्थान हैं जहाँ शिव प्रकाश के एक ज्वलंत स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। शिव के 64 रूप हैं इन सभी स्थलों पर, प्राथमिक छवि लिंगम है जो अनादि और अंतहीन स्तम्भ स्तंभ का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिव की अनंत प्रकृति का प्रतीक है। ये बारह ज्योतिर्लिंग हैं जिसके बारे में आप को पूर्व में बता चुके हैं,आप के स्मरण के लिए पुनः एक बार बता रहा हूँ कि यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के वेरावल में सोमनाथ , आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन , मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर , मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर , उत्तराखंड राज्य में हिमालय में केदारनाथ , महाराष्ट्र में भीमाशंकर , उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्वनाथ , महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर , झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ मंदिर , महाराष्ट्र में औंधा में नागेश्वर , तमिलनाडु के रामेश्वरम में रामेश्वर और महाराष्ट्र के संभाजीनगर में घृष्णेश्वर है ।

उज्जैन को लेकर अन्य किंवदंतियां


पुराणों के अनुसार , उज्जैन शहर को अवंतिका कहा जाता था और यह अपनी सुंदरता और भक्ति के 

केंद्र के रूप में अपनी स्थिति के लिए प्रसिद्ध था। यह उन प्राथमिक शहरों में से एक था जहाँ छात्र पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करने जाते थे।

 किंवदंती के अनुसार, उज्जैन के एक शासक थे, जिनका नाम चंद्रसेन था, जो शिव के महान भक्त थे और हर समय उनकी पूजा करते थे। एक दिन, श्रीखर नाम का एक किसान का लड़का महल के मैदान में टहल रहा था और उसने राजा को शिव का नाम जपते हुए सुना और उनके साथ प्रार्थना करने के लिए मंदिर में भाग गया।

 हालाँकि, पहरेदारों ने उसे बलपूर्वक हटा दिया और उसे क्षिप्रा नदी के पास शहर के बाहरी इलाके में भेज दिया । उज्जैन के प्रतिद्वंद्वियों, मुख्य रूप से पड़ोसी राज्यों के राजा रिपुदमन और राजा सिंघादित्य ने इस समय के आसपास राज्य पर हमला करने और इसके खजाने पर कब्जा करने का फैसला किया। यह सुनकर, श्रीखर ने प्रार्थना करना शुरू कर दिया और यह खबर वृद्धि नामक एक पुजारी तक फैल गई। यह सुनकर वह चौंक गया और अपने बेटों की तत्काल विनती पर, क्षिप्रा नदी पर शिव से प्रार्थना करना शुरू कर दिया । राजाओं ने आक्रमण करने का निर्णय लिया और सफल भी हुए; शक्तिशाली राक्षस दूषण, जिसे ब्रह्मा द्वारा अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था, की सहायता से उन्होंने शहर को लूटा और सभी शिव भक्तों पर हमला किया।

अपने असहाय भक्तों की विनती सुनकर शिव अपने महाकाल रूप में प्रकट हुए और राजा चंद्रसेन के शत्रुओं का नाश किया। अपने भक्तों श्रीखर और वृद्धि के अनुरोध पर, शिव नगर में निवास करने और राज्य के मुख्य देवता बनने और शत्रुओं से इसकी देखभाल करने तथा अपने सभी भक्तों की रक्षा करने के लिए सहमत हुए। 

उस दिन से, शिव महाकाल के रूप में अपने प्रकाश रूप में शिव और उनकी पत्नी पार्वती की शक्तियों से बने लिंगम में निवास करने लगे । शिव ने अपने भक्तों को आशीर्वाद भी दिया और घोषणा की कि जो लोग इस रूप में उनकी पूजा करेंगे, वे मृत्यु और बीमारियों के भय से मुक्त हो जाएंगे। साथ ही, उन्हें सांसारिक खजाने दिए जाएंगे और वे स्वयं शिव के संरक्षण में रहेंगे।

भरथरी राजा गंधर्वसेन के बड़े पुत्र थे और उन्हें देवराज इंद्र और धरा के राजा से उज्जैन का राज्य प्राप्त हुआ था।


एक अन्य जन श्रुति के अनुसार जब भर्तृहरि 'उज्जयनी' (आधुनिक उज्जैन) के राजा थे, उनके राज्य में एक ब्राह्मण रहता था, जिसे वर्षों की तपस्या के बाद कल्पवृक्ष के दिव्य वृक्ष से अमरता का फल दिया गया था। ब्राह्मण ने इसे अपने सम्राट, राजा भर्तृहरि को दिया, जिन्होंने इसे अपनी प्रेमिका, सुंदर, पिंगला रानी या अनंग सेना राजा भर्तृहरि की अंतिम और सबसे छोटी पत्नी को दे दिया।

 रानी, ​​राज्य के मुख्य पुलिस अधिकारी महिपाल के साथ प्रेम में थी, उसने फल उसे उसे दे दिया, जिसने इसे आगे उसकी प्रेमिका लाखा, जो सम्मान की दासियों में से एक थी, को दे दिया। अंततः लाखा ने राजा के प्रेम में पड़कर फल को राजा को वापस दे दिया। चक्र पूरा करने के बाद, फल ने राजा को बेवफाई के नुकसान बताए, उसने रानी को बुलाया

बाद में वे पट्टिनाथर के शिष्य बन गए, जिन्होंने सबसे पहले राजा भर्तृहरि के साथ संसार और संन्यासी के बारे में बहस की। बाद में बातचीत के दौरान पट्टिनाथर ने कहा कि सभी महिलाओं में 'दोहरे मन' होते हैं और यह परमेश्वरी के साथ भी सच हो सकता है। राजा ने यह खबर रानी पिंगला को बताई और उन्होंने पट्टिनाथर को दंडित करने और कालू मरम (पेड़, जिसका शीर्ष भाग एक पेंसिल की तरह तेज होता है और पूरा पेड़ पूरी तरह से तेल से लिपटा होता है, जिस व्यक्ति को शीर्ष पर बैठने की सजा दी जाती है, वह दो टुकड़ों में विभाजित हो जाता है) में बैठने का आदेश दिया, उन्होंने पट्टिनाथर को मारने की कोशिश की, लेकिन कालू मरम जलने लगा और पट्टिनाथर को कुछ नहीं हुआ, राजा को खबर मिली और वह सीधे पट्टिनाथर के पास गया और उसे अगले दिन मरने के लिए तैयार रहने के लिए कहा, लेकिन पट्टिनाथर ने कहा, "मैं अभी मरने के लिए तैयार हूं"। अगले दिन राजा आंखों में आंसू लिए आए और संत को जेल से रिहा कर दिया क्योंकि उन्होंने वास्तव में रानी पिंगला को उस रात घुड़सवारों के साथ प्यार करते देखा था, उन्होंने अपना साम्राज्य, धन, यहां तक ​​कि पूरा कोट ड्रेस भी फेंक दिया और एक साधारण कोवनम (लंगोटी) पहन लिया, राजा पट्टिनात्थर के शिष्य बन गए और आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर में मोक्ष (मोक्ष) प्राप्त किया, जिसमें शिव के पंचभूत स्थलम का एक हिस्सा वायु लिंगम है ।

उस समय के महान संस्कृत कवि कालिदास , जो संभवतः राजा पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थे , ने मेघदूत में अपने कार्यों में मंदिर के अनुष्ठानों का उल्लेख किया है। उन्होंने नाद-आराधना , शाम के अनुष्ठानों के दौरान कला और नृत्य के प्रदर्शन का उल्लेख किया है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भी महाकाल मंदिर का चर्चा मिलता हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए थे, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी में राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था। यानी भगवान बुद्ध के समय में भी महाकाल उत्सव मनाया गया था।

मुस्लिम आक्रांतओं के कारण 500 साल तक ज्योतिर्लिंग को जल समाधि में रहना पड़ा


भारत में मुस्लिम आक्रांतओं का हमेशा यह उद्देश्य रहा कि भारत के मंदिर को नष्ट कर वहां अपना अधिपत्य स्थापित करना । महाकाल मंदिर पर भी कई बार मुस्लिम आक्रांतओं ने हमला किया जिसके कारण यह मंदिर कई बार टूटा और फिर इसका निर्माण हुआ। 

महाकाल मंदिर आज जिस स्वरूप में दिखता है, वैसा पहले नहीं था। मुस्लिम शासकों ने महाकाल मंदिर पर हमला कर इसे कई बार तोड़ा और फिर कई बार इसका पुनर्निर्माण हुआ।

1107 से 1728 ई. तक उज्जैन में यवनों का शासन था। इस दौरान हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को नष्ट करने का प्रयास किया गया। 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां कत्लेआम किया।

इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण के दौरान महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। उस वक्त पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था। करीब 500 साल तक भगवान महाकाल को जल समाधि में रहना पड़ा। इसके बाद औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनवा दी थी।

करीब 500 साल तक महाकाल की पूजा मंदिर के अवशेषों में ही पूजा जाता रहा था। साल 1728 में मराठों ने उज्जैन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव फिर से लौटा। 1731 से 1809 तक उज्जैन मालवा की राजधानी रहा। 

मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। पहली महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और दूसरी शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ शुरू हुआ।

मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत हुई। मंदिर के पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुन: प्राणप्रतिष्ठा कराने से पहले राणोजी सिंधिया ने उस मस्जिद को ध्वस्त करा दिया था जो औरंगजेब ने बनाया था।

12 ज्योतिर्लिंग में सबसे अलग विशेषता हैं महाकालेश्वर की


महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणामूर्ति मानी जाती है , जिसका अर्थ है कि वह दक्षिण की ओर मुख करके खड़ी है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक शिवनेत्र परंपरा द्वारा कायम रखा गया है जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर में ही पाई जाती है। 

ओंकारेश्वर महादेव की मूर्ति महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश , पार्वती और कार्तिकेय की छवियां स्थापित हैं। दक्षिण में शिव के वाहन नंदी की छवि है । तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नाग पंचमी के दिन दर्शन के लिए खुलती है । मंदिर के पाँच स्तर हैं, जिनमें से एक भूमिगत है। मंदिर स्वयं एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो एक झील के पास विशाल दीवारों से घिरा है। शिखर या शिखर मूर्तिकला की सजावट से सुशोभित है ऐसा माना जाता है कि यहां देवता को चढ़ाया गया प्रसाद (पवित्र प्रसाद) अन्य सभी मंदिरों के विपरीत दोबारा चढ़ाया जा सकता है। समय के देवता शिव अपनी पूरी महिमा के साथ उज्जैन शहर में हमेशा राज करते हैं ।

 महाकालेश्वर का मंदिर, जिसका शिखर आसमान में ऊंचा है, क्षितिज के सामने एक भव्य अग्रभाग है, जो अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को जगाता है। महाकाल आधुनिक व्यस्तताओं की व्यस्त दिनचर्या के बीच भी शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी हैं और प्राचीन हिंदू परंपराओं के साथ एक अटूट संबंध प्रदान करते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है और रात भर पूजा-अर्चना चलती है। 

मंदिर में राम मंदिर के पीछे पालकी द्वार के पीछे पार्वती के लिए एक मंदिर है, जिसे अवंतिका देवी (उज्जैन शहर की देवी) के रूप में जाना जाता है। 

इस तरह अपने महत्व और खास विशेषताओं के कारण उज्जैन नगरी क़ी विश्व स्तरीय पहचान महा कालेश्वर मंदिर को लेकर हैं । जिसका दर्शन हर लोगों को करना चाहिए