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क्या होता है सदन में धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) का मतलब, इसका पास होना सरकार के लिए क्यों है जरूरी?

डेस्क: 18वीं लोकसभा के गठन के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में संसद का पहला सत्र चल रहा है। राष्ट्रपति का अभिभाषण के बाद, धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) पर चर्चा हुई। इसमें NEET पेपर लीक और अग्निवीर योजना जैसे मुद्दों को विपक्ष जोरदार तरीके से उठाया। भाजपा की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज की बेटी और पहली बार लोकसभा सदस्य बनीं बांसुरी स्वराज प्रस्ताव का अनुमोदन किया। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार 3 जुलाई को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देंगे। मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में 2 घंटे 15 मिनट की स्पीच दी थी। इसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मुंह झूठ का खून लग गया है। प्रधानमंत्री के भाषण के बाद लोकसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। आइए जानते हैं क्या होता है धन्यवाद प्रस्ताव और इसका पास होना सरकारी के जरूरी क्यों है?

क्या होता है धन्यवाद प्रस्ताव

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 86 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन या फिर दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित कर सकते हैं। Article 87 के अनुसार, हर लोकसभा चुनाव के बाद संसद के पहले सत्र की शुरुआत और हर साल संसद के सत्र शुरू होने से पहले राष्ट्रपति दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करेंगे और सत्र बुलाने के कारणों के बारे में सूचित करेंगे। इस संबोधन को ‘विशेष संबोधन’ भी कहा जाता है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में क्या-क्या होता है शामिल?

– राष्ट्रपति के अभिभाषण में पिछले वर्ष के कार्यकाल के दौरान सरकार की सभी गतिविधियों और उपलब्धियों की समीक्षा शामिल होती है।
– राष्ट्रपति का अभिभाषण ‘ब्रिटेन राजशाही/राज-सिंहासन के भाषण’ (Speech From The Throne in Britain) से मेल खाता है, पर संसद के दोनों सदनों में ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ (Motion of Thanks) पर चर्चा की जाती है।

– राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की नीति का विवरण होता है और प्रायः इस अभिभाषण का प्रारूप सरकार की ओर से ही तैयार किया जाता है।
– इसके अलावा उन महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित नीतियों, परियोजनाओं और कार्यक्रमों को संसद के सामने रखा जाता है, जिन्हें सरकार आगे बढ़ाना चाहती है।


संसदीय प्रक्रिया है धन्यवाद प्रस्ताव

-राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद इस पर धन्यवाद प्रस्ताव लाया जाता है। यह एक संसदीय प्रक्रिया है।इसमें संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर आभार जताने या प्रशंसा व्यक्त करने के लिए औपचारिक रूप से एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है।
-अभिभाषण पर संसद के दोनों सदनों में इसी धन्यवाद प्रस्ताव के जरिए चर्चा की जाती है। विपक्ष के नेता और सभी पार्टियों के प्रमुख धन्यवाद प्रस्ताव पर अपनी-अपनी राय रखते हैं।

निपटाए जाते हैं धन्यवाद प्रस्ताव पर आए संशोधन

धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के समाप्त होने पर इस पर आए संशोधन निपटाए जाते हैं। संशोधन अभिभाषण में शामिल मामलों के साथ उन मामलों को भी शामिल किया जा सकता है, जिनका सदस्यों की राय में अभिभाषण में उल्लेख नहीं किया गया लेकिन उनका उल्लेख करना जरूरी था। अभिभाषण में किसी भी संशोधन को सदन के सामने रखा जाता है और उसे स्वीकार कर लिया जाता है तब धन्यवाद प्रस्ताव को संशोधित रूप में स्वीकार किया जाता है।

धन्यवाद प्रस्ताव चर्चा का जवाब कौन देता है ?

आमतौर पर प्रधानमंत्री या उनकी उपस्थिति या किसी अन्य वजह से अन्य किसी मंत्री की ओर से धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब दिया जाता है। इस दौरान सभी नेताओं के इस जवाब पर संतुष्टि जताने के बाद इस पर चर्चा समाप्त हो जाती है।

सरकार के लिए धन्यवाद प्रस्ताव पास होना क्यों है जरूरी?

सरकार के लिए इसका पास होना जरूरी होता है, क्योंकि ऐसा न होने पर सरकार की हार मानी जाती है और सरकार अविश्वास में आ सकती है। लास्ट में धन्यवाद प्रस्ताव को मतदान के लिए रखा जाता है। हालांकि, धन्यवाद प्रस्ताव में कोई भी सदस्य सीधे केंद्र सरकार से न जुड़े मुद्दों और राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं कर सकता है। सरकार से लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा जा सकता है। यह धन्यवाद प्रस्ताव सदन में पास होना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर यानी धन्यवाद प्रस्ताव पास नहीं होने पर सदन में सरकार की हार मानी जाती है. ऐसा होने पर लोकसभा में सरकार अविश्वास में आ सकती है और उसे लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा जा सकता है।
एक्ट्रेस हिना खान जिस ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही हैं उसको लेकर हैरान करने वाले आंकड़े आए सामने,  साल में करीब 6.70 लाख हुई मौतें
डेस्क: 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' फेम एक्ट्रेस हिना खान ने जबसे अपने कैंसर से पीड़ित होने का खुलासा किया है, वो लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। कुछ दिनों पहले ही एक्ट्रेस ने बताया कि वह ब्रेस्ट कैंसर की तीसरी स्टेज से जूझ रही हैं। हालांकि, इस मुश्किल समय में भी वह खुद को पॉजिटिव रखने की पूरी कोशिश कर रही हैं। जब हिना खान ने खुद अपनी कैंसर की बीमारी का खुलासा किया तो उनके फैंस और करीबी काफी परेशान हो गए थे। इंडस्ट्री से उनके दोस्त और स्टार्स सोशल मीडिया के जरिए उन्हें हिम्मत देते नजर आए थे।
इसके बाद से हर तरफ ब्रेस्ट कैंसर पर बात हो रही है। इससे जुड़ा सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि ब्रेस्ट कैंसर से एक साल में 6 लाख 70 हजार मौतें होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, साल 2022 में पूरी दुनिया में ब्रेस्ट कैंसर के कारण 6,70,000 मौतें हुईं। इनमें से 99% से अधिक मामले महिलाओं में देखने को मिले।
ब्रेस्ट कैंसर का इलाज क्या है
ब्रेस्ट कैंसर का ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले कैंसर का प्रकार, इसकी स्टेज और इंफेक्टेड एरिया देखा जाता है। इसके बाद ही तय किया जाता है कि पेंशेंट को किस तरह के ट्रीटमेंट की जरूरत है।
ब्रेस्ट ट्यूमर हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। जरूरत के मुताबिक, लंपेक्टोमी, मास्टेक्टोमी या कॉन्ट्रालेटरल सर्जरी की जा सकती है।
ब्रेस्ट और उसके आसपास के टिश्यूज में कैंसर की पुनरावृत्ति के जोखिम को कम करने के लिए रेडिएशन थेरेपी देते हैं।
कैंसर सेल्स को खत्म करने और फैलने से रोकने के लिए दवाएं दी जाती हैं। इसमें हॉर्मोनल थेरेपी, कीमोथेरेपी या टार्गेटेड बायोलॉजिकल थेरेपी दी जा सकती है।
ब्रेस्ट कैंसर के मामले में ट्रीटमेंट जितनी जल्दी शुरू होता है, उतना ही अधिक प्रभावी होता है। इसलिए अगर शुरुआती स्टेज में डाइग्नोसिस हो जाता है तो सर्वाइवल की संभावना अधिक होती है।
ब्रेस्ट कैंसर का सर्वाइवल रेट कितना है?
अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर में सर्वाइवल रेट 90% के करीब है। इसका मतलब है कि ब्रेस्ट कैंसर डाइग्नोज होने के बाद 90% महिलाएं कम-से-कम 5 साल तक जीवित रहती हैं। अगर पहली स्टेज या दूसरी स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर डाइग्नोज होता है तो यह सर्वाइवल रेट 99% तक हो सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर के सर्वाइवल रेट में हो रहा है सुधार
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक, साल 1975 में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले में सर्वाइवल रेट 75.2% था। फिर साल 2008 से 2014 के बीच यह 90.6% तक पहुंच गया।
हालांकि, ब्रेस्ट कैंसर के मामले में सर्वाइवल रेट सबसे अधिक इस फैक्टर पर निर्भर करता है कि डाइग्नोसिस के समय किस स्टेज का कैंसर डिटेक्ट हुआ है। पहली स्टेज में सर्वाइवल रेट 99% है, जबकि चौथी स्टेज में यानी मेटास्टैटिक कैंसर के लिए 27% ही है।

कौन हैं केंद्रीय मंत्री बने चिराग पासवान? इंजीनियर की पढ़ाई और कंगना रनौत संग फिल्म में काम, जानिए उनकी जिंदगी के बारे में

डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार बने केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान को जगह मिली है। हाजीपुर लोकसभा सीट से चुने गए चिराग पासवान ने रविवार को दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में मंत्री पद की शपथ ग्रहण की। उन्हें मोदी 3.0 कैबिनेट में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री का पद प्राप्त हुआ है।

पीएम मोदी के हनुमान कहे जाने वाले चिराग पासवान की जिंदगी की बात करें तो उनके पिता स्व. रामविलास पासवान भी केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। चिराग ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। वह लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

चिराग पासवान का प्रोफाइल नाम- चिराग पासवान
जन्म- 31 अक्टूबर 1982
उम्र- 42 वर्ष
पिता- स्व. रामविलास पासवान
पता- मंत्री जी का टोला, शहरबन्नी, प्रखंड- अलौली, जिला-खगड़िया, बिहार
शिक्षा- बी.टेक, सेकेंड सेमेस्टर (2005)
कंप्यूटर इंजीनियरिंग, इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी, झांसी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झांसी चिराग पासवान का सियासी सफर

–वर्ष 2019 में अपने पिता स्व. रामविलास पासवान द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

–वर्ष 2021 में अपने चाचा और हाजीपुर के सांसद पशुपति पारस गुट के अलग होने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का गठन किया और इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

–लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष।

–वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद के शिवचंद्र राम को हराया। चिराग ने शिवचंद्र राम को एक लाख 70 हजार 105 मतों के अंतर से हराया।

–वर्ष 2019 में जमुई से लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और अपने प्रतिद्वंद्वी भूदेव चौधरी को हराया था।

–वर्ष 2014 में जमुई से ही लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और अपने प्रतिद्वंद्वी सुधांशु भास्कर को हराया था। चिराग पासवान ने राजनीति में आने से पहले बॉलीवुड में काम किया था। चिराग की फिल्म ’मिले ना मिले हम’ साल 2011 में रिलीज हुई थी। इसमें उन्होंने कंगना रनौत के साथ काम किया था। बता दें कि कंगना रनौत भी इस साल मंडी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनी हैं।

2010 और 2011 में बॉलीवुड में काम करने के बाद अभिनय के क्षेत्र से रास्ता बदल लिया और 2014 में संसदीय क्षेत्र जमुई से लोकजनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर पहली बार सांसद बने।
क्या थम गया दिनेश कार्तिक के IPL का सुनहरा सफर ! पर्सनल लाइफ में पत्नी से मिला धोखा, जानिए उनकी पूरी कहानी
डेस्क: भारत के स्टार विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक के आईपीएल करियर पर विराम लग गया है। कार्तिक ने अपने आखिरी आईपीएल के एलिमिनेटर मैच में आरसीबी के लिए राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ मैदान पर उतरे थे। इस सीजन के शुरुआत से पहले ही दिनेश कार्तिक ने यह घोषणा कर दी थी कि यह उनका आखिरी आईपीएल सीजन होने वाला है।एलिमिनेटर मैच में आरसीबी को मिली हार के बाद जब वह वापस ड्रेसिंग रूप में लौट रहे थे तो उन्होंने अपने ग्लव्स को हाथ में लेकर दर्शकों का अभिवादन किया। इससे यह संकेत मिलता है कि उन्होंने आईपीएल करियर का अपना आखिरी मैच खेल लिया। हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।क्रिकेटर दिनेश कार्तिक की पर्सनल लाइफ की अगर बात करें तो उसमें भी कई उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। 2007 में दिनेश ने अपने बचपन की दोस्त निकिता वंजारा से शादी की थी। कुछ साल बाद कार्तिक के दोस्त और टीम में उनके साथी खिलाड़ी मुरली विजय से निकिता का अफेयर चलने लगा। वह मुरली के बच्चे की मां बनने वाली थीं। ये बात कार्तिक को छोड़ तमिलनाडु के सभी खिलाड़ियों को पता थी। अचानक एक दिन निकिता ने कार्तिक को इस सच्चाई के बारे में बताया और उनसे तलाक लेने की बात कही।
दोनों के बीच तलाक के बाद निकिता मुरली विजय के साथ रहने लगीं। मुरली IPL में चेन्नई के लिए शानदार प्रदर्शन करने लगे। वे लगातार रन बना रहे थे। उनका चयन टीम इंडिया के लिए भी हुआ। वहीं, कार्तिक का प्रदर्शन लगातार गिरने लगा। वे टीम से बाहर कर दिए गए। खराब फॉर्म के कारण तमिलनाडु की टीम की कप्तानी उनसे छीन कर मुरली विजय को दे दी गई। कार्तिक डिप्रेशन में चले गए थे और IPL में भी उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। उनके ट्रेनर ने बताया कि वो अपनी जिंदगी से इतना परेशान हो गए कि सुसाइड की सोचने लगे थे।
कार्तिक ने अपनी ट्रेनिंग तक छोड़ दी थी। उन्होंने जिम जाना भी बंद कर दिया था। उनके ट्रेनर को चिंता हुई और वे उनके घर गए। ट्रेनर ने देखा कि कार्तिक देवदास की तरह दाढ़ी बढ़ाए हुए एक कोने में बैठे हैं। फिर, ट्रेनर ने उनको जोर देकर कहा कि वे अपनी ट्रेनिंग फिर शुरू करें। कार्तिक जैसे-तैसे मान गए और जिम जाने लगे। जिम में ही दिनेश की मुलाकात दीपिका पल्लीकल से हुई।
दीपिका और दिनेश की अच्छी दोस्ती हो गई। कार्तिक नेट्स पर दोबारा अभ्यास करने लगे और घरेलू मैचों में भी रन बनाने लगे। दीपिका ने कदम-कदम पर उनका साथ दिया। एक बार फिर उनको टीम इंडिया के लिए चुना गया। कुछ दिन बाद उन्होंने दीपिका से शादी की। IPL में वो कोलकाता के कप्तान भी बने।34 साल की उम्र में जब IPL में उनकी कप्तानी गई, तब वे रिटायर होना चाहते थे और सिर्फ फ्रेंचाइजी क्रिकेट खेलना चाहते थे। इस दौरान दीपिका प्रेग्नेंट हुईं और 2021 में जुड़वां बेटों को जन्म दिया। कार्तिक ने खेलना बंद कर दिया। वे कॉमेंट्री करने लगे और इस फील्ड में भी वह पूरी तरह छा गए। वहीं दिनेश कार्तिक आईपीएल में कुल 257 मैचों में मैदान पर उतरे जिसमें उन्होंने 4842 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 22 अर्धशतक भी लगाए हैं। कार्तिक आईपीएल के इतिहास में शीर्ष 10 रन बनाने वालों की सूची में शामिल हैं। खासकर आरसीबी में शामिल होने के बाद कार्तिक का खेल और निखर कर दुनिया के सामने आया।विकेटकीपर-बल्लेबाज ने कमेंट्री के अपने काम और आईपीएल की तैयारी को बखुबी संभाला क्योंकि वह 2022 टी20 विश्व कप के बाद से नियमित रूप से राष्ट्रीय टीम का हिस्सा नहीं थे। साल 2022 में कार्तिक ने आईपीएल गजब का खेल दिखाया था। इस सीजन में उन्होंने 183 की स्ट्राइक रेट से 330 रन बनाए थे। उनके इस दमदार खेल के कारण ही उन्हें भारत के लिए टी20 विश्व कप टीम में चुना गया था। कार्तिक ने आईपीएल 2024 में भी अपने खेल से कमाल किया। इस सीजन में वह 15 मैचों में 326 रन बनाए।आईपीएल में कार्तिक कुल छह टीमों के लिए मैदान पर उतरे। उन्होंने 2008 में दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। 2011 में किंग्स इलेवन पंजाब चले गए। इसके बाद उन्होंने मुंबई के साथ दो सीजन बिताए और 2014 में वापस दिल्ली चले गए।
आरसीबी ने उन्हें 2015 में खरीदा और 2016 और 2017 में गुजरात लायंस के लिए खेले फिर चार सीजन केकेआर के साथ खेले, जिनकी उन्होंने कप्तानी भी की। कार्तिक 2022 में आरसीबी में वापस आए और फिनिशर की भूमिका बखूबी निभाई।
बीबीसी पर हुए IT के छापे क्या सच में केंद्र सरकार की बदले की कार्यवाही ?

ज्योति शुक्ला 

Published on: 15/02/2023

भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। बावजूद इसके प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में भारत 150 पर नंबर पर है। भारतीय पत्रकारिता की इतिहास खंगाली जाए तो शुरु से ही इस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं। फिर चाहे वह अंग्रेजों द्वारा लगाए गए कई नियम कानून हो या फिर इंदिरा गांधी के आपातकाल के समय लगाए गए प्रतिबंध।

वक्त बदला, हालात बदले और पत्रकारिता ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया। डिजिटल दौर में पत्रकारिता ने एक अपनी अलग नई पहचान बनाई। इस दौरान देश में सरकारें भी बदली और वर्चस्व भी। हाल ही में हुए बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ्तर पर IT के छापों ने एक बार फिर पत्रकारिता के आजादी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 

दरअसल बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन) के दिल्ली और मुंबई स्थित ऑफिस पर मंगलवार (14 फरवरी) को आयकर विभाग की टीम सर्वे करने पहुंची। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बीबीसी ऑफिस में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी कागजों को खंगाल रहे हैं। सर्वे की इस खबर ने देशभर में सियासी भूचाल ला दिया है।

इस सियासी भूचाल की कई वजह भी है, दरअसल बीबीसी कुछ दिनों पहले से ही सुर्खियों में बनी हुई थी। वजह गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री थी। गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाने वाली बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को दो हिस्सों में जारी किया गया था। इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को और दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को यूट्यूब पर रिलीज हुआ था। पहला एपिसोड आने के साथ ही इस पर बवाल शुरू हो गया था। विपक्ष के नेताओं और कुछ संगठनों ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के जरिये पीएम मोदी और बीजेपी पर निशाना साधना शुरू कर दिया था।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड रिलीज होने से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने 21 जनवरी को इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद यूट्यूब और ट्विटर से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक हटा दिए गए थे।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज होने पर केंद्र सरकार की ओर से बैन करने के बाद इस पर बवाल शुरू हुआ। मोदी सरकार की ओर से बैन लगाने के खिलाफ जेएनयू में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखी गई। वामपंथी संगठनों की ओर से आरोप लगाया गया कि स्क्रीनिंग रोकने के लिए एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी और मारपीट को अंजाम दिया। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी तक कई जगहों पर इसकी स्क्रीनिंग करने की कोशिश की गई थी।

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन के खिलाफ कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने अपना गुस्सा जताया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सच कभी नहीं छिपता है. सत्य सत्य होता है। ये बाहर आ ही जाता है।

फैसले के खिलाफ प्रशांत भूषण, एन राम, महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर लगे बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में वकील मनोहर लाल शर्मा ने एक याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका में अनुरोध किया था कि सुप्रीम कोर्ट डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड मंगाकर देखे और इस आधार पर 2002 के गुजरात दंगों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो।

इस याचिका में कहा गया था कि देशभर में डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन की कोशिश कर रहे लोगों पर पुलिस के जरिये दबाव बनाया जा रहा है। याचिका में ये भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट को तय करना है, अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत नागरिकों को 2002 के गुजरात दंगों पर समाचार, तथ्य और रिपोर्ट देखने का अधिकार है या नहीं।

इस डॉक्यूमेंट्री की वजह से बीबीसी पहले से ही चर्चाओं में बनी हुई थी और अब IT के रेड ने इस मामले को और तूल दे दिया। विपक्ष का कहना है कि बीबीसी पर यह छापेमारी बदले के तौर पर की गई है। पीएम मोदी की छवि खराब करने की कोशिश की वजह से बीबीसी पर यह छापेमारी हो रही है। 

ऐसा पहली बार नहीं है कि इनकम टैक्स के छापों को सरकार के बदले के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले भी बड़े-बड़े नेताओं और कंपनियों पर हुई छापेमारी को भी सरकारी बदले के तौर पर देखा जाता रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी खामियां उजागर करने वाले देश के प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप दैनिक भास्कर के मध्यप्रदेश में इंदौर और भोपाल ऑफिस में आयकर ने छापा डाला। 

पर अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सच में यह कदम बदले के तौर पर लिया गया है। मैं अपने नजरिए से अगर इसे देखूं तो आयकर विभाग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है जो कि देश के हित में बनाई गई है। इसकी किसी भी कार्यवाही पर सवाल उठाना देश की संविधान और संवैधानिक गतिविधियों पर सवाल उठाना होगा। 

अगर बीबीसी किसी भी प्रकार से गलत नहीं हुई तो इन छापों का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इसे एक मुद्दा बनाना क्या जायज है? बिना किसी सबूतों के आधार पर किसी को भी इस देश में दोषी करार नहीं दिया जा सकता। तो फिर अगर आयकर विभाग की छापेमारी में बीबीसी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलती तो उन्हें डरने की जरूरत भी नहीं है।