चीन को क्यों आई पंचशील समझौते की याद, भारत समेत कई देशों के साथ संघर्ष के बीच जिनपिंग की ये कौन सी चाल?
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अमेरिका और यूरोपीय संघ से बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और अमेरिकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगे चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है। यही नहीं, विस्तारवादी चीन के अपने पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं।भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में लगातार तनाव बढ़ा है। पूर्वी लद्दाख और कई स्थानों पर भारतीय जमीन पर कब्जा किए बैठा चीन अब विश्व से उस समझौते पर चलने की अपेक्षा कर रहा है जिसका पहला बिंदु संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान है। बात हो रही है पंचशील के सिद्धांतों की।
दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्तमान समय के संघर्षों के अंत के लिए पंचशील के सिद्धांतों की वकालत की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को बीजिंग में पंचशील सिद्धांत के जारी होने की 70वीं वर्षगांठ मनाई। इस दौरान उन्होंने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की तारीफ करते हुए इसे दुनिया में जारी संघर्षों को खत्म करने के लिए आज भी अहम बताया। शी ने कहा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था।
निःसंदेश, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पंचशील की तारीफ कर सबको हैरान कर दिया। हैरानी, इसलिए क्यों राष्ट्रपति जिनपिंग ने पंचशील सिद्धांतों की वकालत पश्चिमी देशों और कई क्षेत्रीय देशों के साथ चल रहे चीन के साथ टकराव के बीच की है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी इसमें आश्चर्य जैसा नहीं देखते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शी जिनपिंग ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की प्रशंसा की है। चेलानी ने आगे लिखा, अपने भाषण में जो बात चीन ने नहीं बताई वह यह है कि लगभग (पंचशील समझौते के) आठ साल बाद 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके सभी पंचशील सिद्धांतों का खुलेआम उल्लंघन किया। ये सिद्धांत थे- एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ' तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व'।
ब्रह्म चेलानी ने आगे लिखा, चीन अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों में उन सिद्धांतों का उल्लंघन करना लगातार जारी रखे हुए है। उन्होंने 1954 के पंचशील समझौते को आजादी के बाद भारत की सबसे बड़ी भूलों में से एक बताया। उस समझौते के माध्यम से भारत ने बिना कुछ हासिल किए तिब्बत में अपने ब्रिटिश विरासत वाले क्षेत्रीय अधिकारों को छोड़ दिया और चीन के तिब्बत क्षेत्र को मान्यता दी। समझौते की शर्तों के तहत, भारत ने तिब्बत से अपने मिलिट्री एस्कॉर्ट को वापस बुला लिया और वहां संचालित डाक, टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवाओं को चीन को सौंप दिया।
बता दें कि पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था। अतीत में चीनी नेतृत्व ने पहली बार पांच सिद्धांतों यानी 'एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ', तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' को संपूर्णता के साथ निर्दिष्ट किया था।'
शी ने सम्मेलन में कहा, 'उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यामांर संयुक्त वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था।' शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि पंचशील सिद्धांत आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समान संपत्ति बन चुके हैं।
क्या है पंचशील समझौता या पंचशील सिद्धांत
पंचशील के सिद्धांतो को पहली बार 1954 में तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था। चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है। इसका मूल उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की व्यवस्था कायम करना था। वस्तुतः पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से ऐसे नैतिक मूल्यों का समुच्चय तैयार करना था, जिन्हें प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना सके और एक शांतिपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर सके। पंचशील सिद्धांतों के अंतर्गत शामिल किए गए प्रमुख पांच सिद्धांत निम्नानुसार हैं-
• प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे।
• गैर-आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसके तहत तय किया गया कि कोई भी देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेगा।
• समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
• इसके तहत तय किया गया कि सभी देश एक दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे तथा परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।
• सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत इसमें ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ (Peaceful Coexistence) का माना गया है। इसके तहत कहा गया है कि सभी देश शांति बनाए रखेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।
पंचशील समझौता और भारत-चीन युद्ध
1954 में चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि पंचशील सिद्धांत उपनिवेशवाद के अंत और एशिया व अफ्रीका के नए राष्ट्रों के उद्भव में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। इस दौर से ही भारत ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया और चीन पर अत्यधिक भरोसा किया। भारत ने वर्ष 1955 में चीन को इंडोनेशिया में आयोजित होने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में भी आमंत्रित किया था। इसी बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के मध्य विवाद चल रहा था। चीन इन दोनों ही भारतीय क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता था। इन विवादों के कारण भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे बिगड़ते जा रहे थे। चीन संपूर्ण तिब्बत को अपना हिस्सा मानता था और इसी बीच भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दे दी थी, इससे चीन अत्यधिक रुष्ट हो गया था। भारत और चीन के बीच वर्ष 1954 में हस्ताक्षरित हुए इस पंचशील समझौते की समयावधि 8 वर्षों की थी, लेकिन 8 वर्षों के बाद इसे पुनः आगे बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। पंचशील समझौते की समयावधि समाप्त होते ही ऊपर वर्णित मुद्दों को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भारत न सिर्फ पराजित हुआ, बल्कि उसके विभिन्न हिस्सों पर चीन ने कब्ज़ा भी कर लिया। भारत के वे हिस्से आज भी चीन के कब्जे में ही हैं।
Jul 02 2024, 10:48