नीट-2024: ग्रेस मार्क्स ने रैंक टैली को बिगाड़ा, अभ्यर्थी चिंतित
नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट-2024) परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों ने दिए गए ग्रेस मार्क्स पर चिंता जताई है, जिससे अंततः रैंक टैली गड़बड़ा गई है।
ओरई निवासी और नीट-2024 के अभ्यर्थी सोनू ने कहा, "मैंने 645 अंक प्राप्त किए और मुझे 12 हजार के आसपास रैंक मिलनी चाहिए थी, लेकिन मैं 35 हजार पर हूं, जिससे अच्छे सरकारी कॉलेज में दाखिला मिलने की मेरी संभावना कम हो गई है।"
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अभ्यर्थियों ने कहा कि ग्रेस मार्क्स के कारण कुल अंकों में बदलाव ने उन लोगों के सामने मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है,। सोनू ने कहा, "ग्रेस मार्क्स उन अभ्यर्थियों को दिए गए, जिन्होंने ऐसे केंद्रों पर परीक्षा दी, जहां कुछ तरह की समस्याएं आईं, जैसे कि परीक्षा देरी से शुरू होना, जिससे परीक्षा की कुल अवधि कम हो गई या जहां पहला और दूसरा पेपर वितरित किया गया, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई और समय की बर्बादी हुई।"
गुरुवार को एनटीए ने अभ्यर्थियों के प्रश्नों पर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, लेकिन यह आवेदकों को संतुष्ट नहीं कर सकी। एक अभ्यर्थी की बड़ी बहन और वकील पुण्या त्रिपाठी ने कहा, "कोई भी अंक स्पष्ट नहीं है।" उन्होंने कहा, "जिन अभ्यर्थियों ने 700 अंक प्राप्त किए हैं, वे भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उन्हें किस कॉलेज में प्रवेश मिलेगा। मेरे भाई को 651 अंक मिले हैं और पिछले वर्ष की गणना के अनुसार, उनकी रैंक अधिकतम 7K तक होनी चाहिए थी। लेकिन ग्रेस मार्क्स ने उनकी रैंक को घटाकर 28K से अधिक कर दिया है। इससे अच्छे सरकारी कॉलेज में प्रवेश मिलने की संभावना धूमिल हो गई है। यह सब आश्चर्यजनक ग्रेस मार्क्स के कारण हो रहा है, जिनका उल्लेख उम्मीदवारों द्वारा NEET-2024 के लिए फॉर्म भरते समय ब्रोशर में नहीं किया गया था।"
"आवेदन पत्र भरते समय हमें कभी भी ग्रेस मार्क्स के बारे में नहीं बताया गया। फॉर्म भरते समय बताए गए नियमों का पालन किया जाना चाहिए, लेकिन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने ग्रेस मार्क्स का एक नया प्रावधान पेश किया है। इस प्रावधान का उपयोग 2018 में किया गया था और उस वर्ष तक सीमित था," लखनऊ के गोमती नगर क्षेत्र की एक अन्य महिला अभ्यर्थी ने कहा। NEET UG प्रवेश के लिए काउंसलिंग की तारीखों की घोषणा अभी नहीं की गई है। देश में 695 कॉलेजों में एक लाख से ज़्यादा एमबीबीएस सीटें उपलब्ध हैं। एक अन्य अभ्यर्थी ने कहा, "आधी सीटें निजी कॉलेजों में हैं और रैंकिंग में बदलाव के कारण सरकारी कॉलेजों में दाखिला मिलने की संभावना कम हो गई है।" उत्तर प्रदेश में 65 कॉलेज हैं, जिनमें से 35 सरकारी हैं और इनमें कुल 9 हज़ार से ज़्यादा एमबीबीएस सीटें हैं।
साल भर मेहनत करने का नतीजा अगर इतना असंतोषजनक हो तो विद्याथी कैसे ही अपने भविष्य को सुरक्षित महसूस करेंगे। एनटीए के प्रति लोगों में आक्रोश है जिसे अभिभाकों ने भी लाज़मी बताया है और कहा है की उनके बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ है और सरकार को इसके प्रति ठोस कदम उठाने चाहिए।







यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बीजेपी के लिए काफी खराब है। इस चुनाव में बीजेपी ने अपनी कई जीती हुई सीटें गवां दी। यहां तक कि फैजाबाद लोकसभा सीट भी समाजवादी पार्टी ने छीन लिया। यही वो सीट है जहां अयोध्या का राम मंदिर मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में बन कर तैयार हुआ। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के बाद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी बीजेपी के हाथों से ये सीट निकल जाएगी।फैजाबाद लोकसभा सीट बीजेपी के हाथ से निकल जाने का जितना मलाल पार्टी को है, उससे ज्यादा ये लोगों के बीच चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। सालों से तंबू में रखे गए भगवान राम को भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या कर दिया गया। मंडल भी अयोध्या बना दिया गया। फैजाबाद रेलवे स्टेशन अयोध्या छावनी बना दिया गया। अयोध्या स्टेशन पर यात्रियों के ठहरने के बेहतरीन इंतजाम किए गए। अयोध्या शहर का कायाकल्प भी किया गया। चौक चौराहे सजाए गए। छोटी मोटी दुकानों को तोड़, सलीके से व्यावसायिक कांप्लेक्स तमीर कर दिए गए। मंदिर बनने के बाद रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु भी अयोध्या आने लगे। इस सव से लोग खुश थे। तो बड़ा सवाल है, बीजेपी कैसे हार गई? *जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ नहीं पाए पूर्व सांसद* लोगों की माने तो अयोध्या में विकास काफी हुआ है लेकीन यहाँ के कैंडिडेट लल्लू सिंह के वजह से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। लल्लू सिंह जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ नहीं पाए हैं। कहा जा रहा है कि वे मतदाताओं से कनेक्ट करने की बजाय अपने समर्थकों को 400 सीटें लाकर संविधान बदलने की बात कहते सुने गए। उनका एक वीडियो भी खूब वायरल हुआ था। लल्लू सिंह ने नाराजगी के अलावा जो भी वोट भाजपा को मिले वह पीएम मोदी की लोकप्रियता और राम मंदिर के मुद्दे पर ही पड़े। *मंदिर की व्यवस्था से परेशानियां* यही नहीं, अयोध्या के लोगों को मंदिर की व्यवस्था से परेशानियों से जूझना पड़ा है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद चुनाव तक मंदिर में लगातार वीआईपी दर्शनार्थियों का आना लगा रहा। इस दौरान प्रशासन सुरक्षा के नाम पर ऐसा इंतजाम करता रहा है कि लोगों का मंदिर के आस पास जाना दूभर हो जाता था। अयोध्या – फैजाबाद के लोग मंदिर दर्शन करने जा ही नहीं सके। मंदिर के आस पास जो भी स्कूल और अस्पताल वगैरह है वहां जाने आने में रोज लोगों को मुसीबतों से दो चार होना पड़ा है। *कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और सांसद से नाराजगी* मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया जा रहा है कि अयोध्या जिले में भाजपा के सामान्य कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई। मंदिर बनने के बाद VIP जिला होने से यहाँ बड़े नेताओं की ही चली और स्थानीय कार्यकर्ताओं का फीडबैक ऊपर तक नहीं पहुँचा। इसी कारण से कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग उदासीन हो गया और नाराज रहा, जिससे नुकसान हुआ। *जमीन अधिग्रहण और मुआवजा* अयोध्या में विकास के लिए काफी जमीन अधिग्रहण किया गया। प्रशासन ने इसके लिए स्थानीय लोगों की काफी जमीन ली। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि अयोध्या में जमीन अधिग्रहण में गड़बड़ियाँ हुईं और मुआवजे का बँटवारा सही से नहीं हुआ। कई लोगों के घर तोड़े गए और उनकी सुनी नहीं गई। इस कारण से लोगों में गुस्सा रहा और उन्होंने वोट नहीं दिया। *सपा का दलित प्रत्याशी उतारना* बीजेपी की हार का एक बड़ा कारण सपा का इस सीट से दलित प्रत्याशी उतारना था। सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद 9 बार के विधायक हैं। उनको दलितों का वोट काफी बड़े स्तर पर मिला। भाजपा से दलित वोट का छिटकना भी एक हार का एक बड़ा कारण रहा। बताया गया कि इस लोकसभा क्षेत्र में 26% दलित वोट को सपा ने अपने प्रत्याशी के चयन से ही अपनी तरफ मिला लिया। इसके अलावा मुस्लिम वोटर भी एकतरफा सपा की तरफ गए जिसने यहाँ उसे बढ़त दिलाई। सपा से कॉन्ग्रेस के गठबंधन के कारण मुस्लिम वोट छिटका नहीं। बड़े स्तर पर मुस्लिम वोट ने सपा को यहाँ बढ़त दिलाई, जिससे उसे जीत हासिल करने में आसानी हुई।

Jun 07 2024, 13:23
It should be investigated
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