लोकसभा चुनाव 2024: इस बार संथाल का राजमहल सीट हुआ रोमांचक,तीन मजबूत उम्मीदवार के बीच होगा त्रिकोणीय संघर्ष
झारखंड डेस्क
राजमहल संसदीय क्षेत्र इस बार काफी रोमांचक और संघर्षपूर्ण सीट हो गया है।वैसे यह सीट शुरू से ही नजदीकी मुकाबलों के लिए जाना जाता रहा है। देश के संसदीय इतिहास में सबसे कम वोट यानि मात्र 9 वोटों से हार-जीत का फैसला इस संसदीय सीट पर हो चुका है।इस बार भी संभावना है कि यह इतिहास पुनः दोहराए। इसका कारण है इस सीट पर तीन मजबूत उम्मीदवार का रोमांचक मुकाबला।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के बरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम की बगावत और इस लोकसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर खड़ा होना इस सीट को काफी रोमांचक बना दिया है।
वैसे लोबिन हेम्ब्रम का शीर्ष नेतृत्व से असहमति का दौर पिछ्ले कुछ वर्षों से चल रहा था।चाहे खतियान का मामला हो या पार्टी के अन्य निर्णय वे वेवाक होकर विरोध करते आ रहे थे।इस बार राजमहल का टिकट उन्होंने मांगा लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के मौजूदा सांसद विजय हांसदा को पुनः टिकट दे दिया ।वे पिछले दो बार से इस लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यहां भाजपा ने ताला मरांडी को टिकट दिया है।और लोबिन हेम्ब्रम जेएमएम से बगावत कर इस लोकसभा से खड़े हो गये।ऐसे हालात में जेएमएम के अंदर ही कड़ा टक्कर हो गया जिसके कारण राजमहल लोकसभा पर त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना बन गयी है।
देश के संसदीय इतिहास में सबसे कम वोट यानि मात्र 9 वोटों से यहां हुई है हार जीत
यूं तो राजमहल संसदीय क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहां मात्र 9 वोट से यहां हरजीत हुई है।शायद देश के संसदीय इतिहास में सबसे कम वोट यानि मात्र 9 वोटों से हार-जीत का फैसला यहां रिकॉर्ड में है।उस समय यह अविभाजित बिहार का हिस्सा था।वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में राजमहल सीट पर भाजपा प्रत्याशी सोम मरांडी खड़े हुए थे जिन्होंने मात्र 9 वोट से जीत हासिल की थी।
मजेदार बात यह है कि उन्होंने राजमहल के मौजूदा सांसद झामुमो के विजय हांसदा के पिता कांग्रेस प्रत्याशी थॉमस हांसदा को शिकस्त दी थी। सोम मरांडी को 198,889 वोट मिले थे, जबकि थॉमस हांसदा को 198,880 वोट हासिल हुआ था। दोनों का मत प्रतिशत 33.4 दर्ज हुआ। ताला मरांडी जो पूर्व में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन पूर्व सीएम रघुवर दास से विवाद के कारण कुछ समय के लिए भाजपा की सदस्यता भी छोड़ी थी।
इस सीट पर लोबिन हेंब्रम की दावेदारी से बिगड़ा गणित
यह सीट हांसदा परिवार के लिए मजबूत गढ़ माना जा रहा था। विजय हांसदा के पिता थामस हांसदा बड़े नेता रहे इसी लिए पिछले चुनाव में मोदी लहर के वावजूद यह एक मात्र संसदीय क्षेत्र झामुमो के झोली में गया था।इस बार मैदान में भाजपा ने ताला मरांडी को मैंदान में उतारा था । चुनाव में भाजपा और जेएमएम के बीच सीधा टक्कर था।लेकिन
जेएमएम के नेतृत्व से नाराज चल रहे विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। लोबिन के चुनावी दंगल में आने से चुनावी समर त्रिकोणीय होने की प्रबल संभावना बन गयी है।
यह सीट क्यों हो गया रोमांचक,जानिए इस सीट की पृष्ठभूमि...?
वैसे राजमहल लोकसभा सीट पर भले हीं जेएमएम के विजय हांसदा 2014 और 2019 के चुनाव में जीत दर्ज की लेकिन दूसरे स्थान पर भाजपा ही रही।दूसरी तरफ यहां राजमहल विधानसभा सीट पर भाजपा की भी मजबूत पकड़ है।इसलिए 2009, 2014 और 2019 चुनाव से भाजपा यहां से चुनाव जीतते आ रही है।
दूसरी तरफ लोबिन हेम्ब्रम की दावेदारी से यह सीट काफी रोमांचक हो गया है।लोबिन हेम्ब्रम संताल समाज से हैं और वे खुद बोरियो सीट से विधायक हैं।
लोबिन की आदिवासी समाज में अच्छी-खासी पकड़ भी है। वे हमेशा से 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति को लेकर मुखर रहे हैं ऐसी स्थिति में यहां उनका भी जनाधार है।
इसके साथ ही राजमहल के आदिवासी का हेमंत सोरेन के पूर्व प्रतिनिधि पंकज मिश्रा से नाराजगी रही ।उनके साथ हीं लोबिन विरोध में रहे हैं।तीसरी स बसे बड़ी बात है कि से सोरेन भी जेएमएम से नाराज होकर भाजपा में शामिल हो गयी है दुमका से भाजपा के उम्मीदवार हैं। लोबिन का बड़ी बहू से भी संपर्क बताया जाता है। ऐसे में दोनों झामुमो के खिलाफ संथाली आदिवासियों को एकजुट कर सकते हैं।
इधर भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी संथाली समुदाय से आते हैं। वे बोरियो विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं। इस बार भाजपा के प्रत्याशी हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चाके लिए यह सीट इस लिए मजबूत रहा कि राजमहल सीट मुस्लिम बहुल हैं। इसी लिए इस सीट पर जेएमएम में पक्ष में मुस्लिम वोट रहता है।दूसरी तरफ इस बार हेमलाल अब झामुमो में शामिल हो चुके हैं। यानी संताली वोटर इससे दूरी बनाएंगे यह कहना मुश्किल है।
वह आदिवासी और मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण के माहिर खिलाड़ी हैं। इसी ध्रुवीकरण की राजनीति की बदौलत वह अप्रत्याशित जीत दर्ज करने में जेएमएम कामयाब हुए थे।
राजमहल सीट से एक राजमहल विस चुनाव क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो वह बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा और महेशपुर विधानसभाओं में झामुमो के विधायक हैं, तो मुस्लिम बहुल पाकुड़ सीट से कांग्रेस के आलमगीर आलम विधायक हैं।
इस तरह अपने अपने जगह तीनो उम्मीदवार की स्थिति मजबूत है।जेएमएम और लोबिन एक दूसरे के वोट पर हमला कर रहे हैं तो ताला मरांडी आदिवासी वोट के साथ भाजपा समर्थित वोट हासिल करने में कामयाव होंगे।इस लिए यहां त्रिकोणीय संघर्ष के साथ जिसकी भी जीत होगी बहुत ही कम वोटों से यह सीट फिर एक बार जीत दर्ज करेंगे।
Apr 13 2024, 17:13