#Face-of- Jharkhand सीता सोरेन कितना असर डाल पाएगी झारखंड में जेएमएम के राजनीतिक जमीन पर,क्या दुमका सीट पर लहरायेगी भाजपा की झंडा...
(विनोद आनंद)
शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रबधू सीता सोरेन आज झारखंड में भाजपा की हिस्सा बन गई।भाजपा की प्रबल प्रतिद्वंधी जेएमएम रही है।लेकिन इस लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की दो बहुएं आमने सामने है। दोनो में आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।अब इसका प्रभाव चुनावी रणनीति पर क्या पड़ेगा और झारखंड मुक्ति मोर्चा कितना मजबूत हो पाएगी यह तो बक्त बताएगा लेकिन सियासत की गलियारों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है।
शिबू सोरेन की ये दोनों बहुएं परिस्थितिबस राजनीति में आई।सीता सोरेन तब राजनीति में आई जब उनके सर से पति का साया उठ गया।अचानक अल्पबय में शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन का निधन हो गया।तब सीता सोरेन राजनीति में कदम रखी।जनता ने उन्हें सर आंखों पर लिया।
वर्ष 2009 के दिसंबर महीना था झारखंड की जामा विधानसभा क्षेत्र के हेमंतपुर गांव में सैकड़ों लोगों की भीड़ थी।चारों तरफ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के हरे झंडे लगे हुए थे। सीता सोरेन मंच पर आईं और आंखें बंद कर हाथ जोड़ खड़ी हो गयी।पहली बार जनता शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रबधू से रूबरू हो रही थी।
सीता सोरेन पति के निधन के बाद बहुत हीं दुखी और मायूस थी उसने नम आंखों से कहा- "उनके पति दुर्गा सोरेन ने उन्हें यहां साथ लेकर आने का वादा किया था। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका।मैं अकेली आई हूं और मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए।"
लोगों की भीड़ यह सुन ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा ज़िंदाबाद’, ‘शिबू सोरेन ज़िंदाबाद’ और ‘दुर्गा सोरेन अमर रहें’ जैसे नारे लगाने लगी।
पारंपरिक वाद्य यंत्र बजने लगे, तब सीता सोरेन ने अपना भाषण को आगे बढ़ाया। तब उनकी उम्र सिर्फ़ 35 साल थी।
यह वह समय था जब जनता को सीता के साथ पूरी सहानुभूति थी।उनके पति दुर्गा सोरेन का महज 39 साल के उम्र में ब्रेन हेमरेज से निधन हो गया था।जिस समय उनका निधन हुआ उस समय वे जामा विंधानसभा से विधायक थे।उनके मौत के बाद सीता ने राजनीति में कदम रखी और अपने पति की पारंपरिक सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए पहली बार घर के दहलीज लांघ कर घर से बाहर निकली।जनता के बीच खड़ी हो गयी।उनके सुख -दुख के सहभागी बनने उनकी समस्याओं को लेकर संघर्ष करने का वादा किया।
और तब से लेकर अभी तक राजनीति में सीता सोरेन ने लंबा सफर तय किया है। उन्होंने जामा से कभी चुनाव नहीं हारा। वे तीन बार विधायक रहीं।
इस दौरान उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ती रही। इस कारण उन्होंने शिबू सोरेन परिवार को कई दफा मुश्किलों में भी डाला।
वे बार-बार कहती रहीं कि उनके पति दुर्गा सोरेन अपने पिता शिबू सोरेन के वास्तविक उत्तराधिकारी थे। लिहाज़ा, अब यह हक उनका है। वे परोक्ष रूप से यह कहती रही कि परिवार उसे मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करे।लेकिन परिवार ने कभी यह नही चाहा।शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री का पद को सुशोभित किया और पिता के इस विरासत को हेमन्त सोरेन ने संभाला।बस परिवार में यही अंतर्विरोध था।सीता सोरेन चाहती थी कि शिबू सोरेन के राजनीति के सफर में उनके पति दुर्गा सोरेन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई लेकिन उस विरासत के असली हकदार वे हैं।
पिछली जनवरी में उनके देवर और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया।उसवक्त कल्पना सोरेन के नाम की चर्चा थी।मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जा सकता है।लेकिन परिवार के अंदर यह अंतर्विरोध ही शायद बाधा बनी।चम्पई सोरेन सीएम बने,फिर भी बसंत सोरेन को तो मंत्री पद मिला लेकिन सीता सोरेन 3 टर्म विधायक रहने के वाबजूद मंत्री पद से वंचित रह गयी। बस सब्र जवाब दे दिया और वे अपने परिवार, अपने पारिवारिक पार्टी को त्याग कर अपने आने वाले भविष्य के बारे में सोचने लगी।और विकल्प बचा भाजपा।जहां वे नई शुरुआत में लग गई।
भाजपा में आने का वजह...
क्या सीता सोरेन भाजपा में परिवार और पार्टी की उपेक्षा की वजह से शामिल हुई या इसके और कई वजह थे। चर्चा इस पर भी हो रही है।कियोंकि अभी कई परिस्थितयां ऐसी सामने आई जिसके कारण यह कहना गलत नही होगा कि परिवार और पार्टी के साथ सीता सोरेन के सामने और कई संकट थे जहां वचाव का एक ही रास्ता था भाजपा।
भाजपा को भी शिबू सोरेन के कुनबा को कमजोर करने, आदिवासियों के सहानुभूति बटोरने का यह वेहतर अवसर था।
सीता सोरेन के सामने कई परिस्थियां भी सामने आ गयी थी।उनपर राज्यसभा के एक निर्दलीय प्रत्याशी से साल 2012 में घुस लेने का आरोप लगा था।यह घुस उनके पिता बोदु नारायण मांझी के ज़रिये लेने का आरोप लगा था।इस मामले में वे नामजद अभियुक्त रही।इस मामले में उनके रांची स्थित सरकारी आवास की कुर्की ज़ब्ती भी हुई थी।इसके बाद उन्हें और उनके पिता को जेल में भी रहना पड़ा था। इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई थी।
सीता सोरेन अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थीं।
सालों से लंबित इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने पिछले 4 मार्च को साल 1988 के अपने फैसले को पलट दिया।
इस खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के मामले में विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता। उनके ख़िलाफ़ भी आपराधिक मामले चलाए जा सकते हैं।नतीजतन, अब वे फिर से जांच के दायरे में आ गई हैं।इसके बाद वे 19 मार्च को झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की प्राथमिक सदस्यता और विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने शिबू सोरेन को पत्र लिखकर अपने इस्तीफ़े की सूचना दी और आरोप लगाया कि उन्हें परिवार और पार्टी में पिछले 15 सालों से उपेक्षा झेलनी पड़ी है। अब वे इस परिवार से अलग हो रही हैं।
इस पत्र के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटे बाद वे दिल्ली में बीजेपी में शामिल हो गईं। तब बीजेपी कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस भी हुई, जिसमें भी उन्होंने जेएमएम और सोरेन परिवार को लेकर कईं बातें कहीं। उनके बीजेपी में शामिल होने से पहले ही पार्टी ने दुमका से अपने वर्तमान सांसद सुनील सोरेन को लोकसभा चुनाव का टिकट देने की घोषणा कर रखी थी। तब मीडिया में चर्चा चली कि बीजेपी उन्हें या उनकी बेटी को संताल परगना की किसी सीट (दुमका नहीं) से चुनाव लड़ा सकती है।
इसके छह दिन बाद 24 मार्च को बीजेपी ने दुमका सीट से अपना उम्मीदवार बदल कर सीता सोरेन को वहां से प्रत्याशी घोषित कर दिया। यह शिबू सोरेन की पारंपरिक सीट रही है। वे यहां से कई बार सांसद रहे हैं।इस लिए दुमका सीट को अगले वार सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन से झटक लिया था। लेकिन इस बार भी कड़ी चुनोती हो सकता था।इस लिए सीता सोरेन को वेहतर विकल्प के रूप में देखते हुए यह सीट उन्हें दे दिया गया।
क्या दुमका सीट सीता सोरेन के लिए जीत पाना आसान है...?
अब झारखंड में दुमका लोकसभा सीट एक ऐसा सीट हो गया है जिसपर सिर्फ झारखंड ही नही पूरे देश की निगाहें टिकी हुई है।लेकिन क्या दुमका सीट फतह करना सीता के लिए आसान है..?
अगर हम इस पर चर्चा करने से पहले सीता सोरेन का राजनीतिक बजूद के बारे में बात करें तो उनकी पहचान शिबू सोरेन की बड़ी बहू होने की वजह से है। इसके बावजूद जामा सीट से पिछला विधानसभा चुनाव में वे मामूली अंतर से जीती थी। दुमका के लोग शिबू सोरेन के प्रति हमदर्दी जरूर रखते हैं लेकिन सीता सोरेन ने परिवार से बगावत की है।जनता इसे भी जान रही है ऐसे हालात में उन्हें शिबू सोरेन की पारंपरिक वोट कितना मिल पायेगा यह तो बक्त बताएगा।
लेकिन जेएमएम यहां से अपना कैंडिडेट जरूर देगा।हो सकता है हेमन्त सोरेन ही यहां से खड़े हो जाये जैसा कि चर्चा है तो ऐसे हालात में सीता सोरेन की राह और मुश्किल हो जाएगी।
इधर सुनील सोरेन के समर्थक भी नाराज हैं।उनका टिकट काट कर सीता सोरेन को टिकट दिया गया।इस लिए पार्टी के अंदर भीतरघात की संभावना है।ऐसे में सीता सोरेन को इस सीट से कोई चमत्कार ही जीता पायेगा ।हेमन्त सोरेन की गिरफ्तारी के कारण उनके प्रति लोगों में सहानुभूति है।लोग यह मान कर चल रहे हैं कि भाजपा की सरकार जानबूझकर हेमन्त सोरेन पर एजेंसी लगा कर कारवाई कर रही है।इस लिए भाजपा के प्रति आम लोगों में नाराजगी है।खासकर आदिवासी समुदाय जो अब हेमन्त के साथ दिख रही है। अब देखना यह है कि इस सीट पर जीत का सेहरा किसे मिलता है।
सीता सोरेन का भविष्य...?
अब सीता सोरेन का भविष्य भाजपा में क्या होगा ।यह भी एक सवाल है।अगर वह चुनाव जीत जाती है तो भाजपा उसे सर आंखों पर लेगी लेकिन किसी कारण वह हार जाती है तो भाजपा नेतृत्व पार्टी के अंदर उसे कितना महत्व देगा वह भविष्य बताएगा।
Apr 07 2024, 07:01