बिहार में प्रवासी पक्षियों की सैटेलाइट से निगरानी, देसी वर्ड को पहनाई जा रही रिंग, जानें वजह
बिहार: सूबे समेत देश की विभिन्न जगहों पर विचरण कर रहे पक्षियों को रिंग पहनाया जा रहा हैं. इसके जरिये देशी पक्षियों की अपनी पहचान मिलने लगी हैं. इनके भटकाव या अनहोनी की दशा में भी इसका ब्योरा इसी रिंग के जरिए माना जा रहा हैं. इसके अलावा प्रवासी पक्षियों को रेडियो टैग पहनाकर उनपर भी सैटेलाइट से नजर रखी जाएगी.
भागलपुर के सुन्दर वन में बिहार का पहला वर्ड रिंगिंग सेंटर चल रहा हैं. इसके अलावा देश में तीन जगह( तमिलनाडु के प्वाइंट कालिमेयर, राजस्थान के भरतपुर व ओडिसा के चिल्का) में वर्ड रिंगिंग सेंटर संचालित हो रहे हैं. भागलपुर में बीएनएचएस
(बांबे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी) की ओर से इस सेंटर का संचालन सात फरवरी 2020 से किया जा रहा हैं. बिहार के छह वेटलैंड(वैशाली के नरेगा लेक, दरभंगा के कुनेश्वर स्थान, बेगुसराय के कावर लेक, जमुई के नागी-नकटी, कटिहार के गीगाबील और भागलपुर के विक्रमशिला गांगेटिक डाल्फिंन सेंचुरी क्षेत्र, जमुई के नागी- नकटी, कटिहार के गोंगबिल और भागलपुर के विक्रमशिला गांगेटिक डाल्फिंन सेंचुरी क्षेत्र) में बीएनएचएस टी टीम स्थापना काल से लेकर अबतक 149 प्रजातियों के कुल 2094 पक्षियों को रिंग पहनाया गया हैं, उनमें छोटा गरूड़, बड़ा गरूड़, बार हेटेड गूंज, ग्रे लेग गूंज, इंडियन स्किमर, 12 प्रकार के बारबलर्स प्रमुख प्रजाति हैं. बीएनएचएस भागलपुर के निदेशक डॉ पोन्नूसामी सत्यासेलवम की अगुआई में सात सदस्यीय टीम करती हैं.
रिंग में होता हैं कोड, जिसमें दर्ज होता हैं पक्षी का ब्योरा
बीएनएचएस भागलपुर के हिस्ट्री डायरेक्टर डॉ पोन्नूसामी सत्यासेलवम बताते हैं कि पक्षियों के न केवल पैर, बल्कि गर्दन, पंख के पास समेत अन्य अंगों में रिंग पहनाया जाता हैं. इस रिंग में कोड होता हैं. उस कोड के जरिए उस पक्षी का पूरा ब्योरा जैसे कि उसका नाम, प्रजाति, रिंग पहनाने की तिथि व उम्र आदि रहता हैं. ऐसे में अगर रिंग पहना पक्षी भटक जाता हैं या फिर घायल या मृत हो जाता हैं. तो इसी कोड का इस्तेमाल किया जाता हैं.साथ ही ये पक्षियों की प्रजाति, संख्या आदि के बारे में जानकारी ली जा सकती हैं.
नवंबर से प्रवासी पक्षियों को पहनाया जायगा रेडियो टैग
बीएनएचएस की वरीय शोधकर्ता खुशबू रानी ने बताया कि रिंग पहने पक्षियों का ब्योरा जहां कोड के जरिए जाना जाता हैं. तो वहीं रेडियोकोलर (रेडियो टैग) के जरिए जाना जाता हैं तो वहीं रेडियों कॉलर(रेडियो टैग) के जरिए नजर रखा जा सकता हैं. ऐसे पक्षी जिनका लंबे समय तक निगरानी करनी होती हैं, उनको रेडियो टैग पहनाया जाता हैं. इनमें से प्रवासी पक्षी व गरूड़ प्रमुख हैं. इस साल नवंबर में जब विदेश से पक्षियों का आगमन बिहार के छह जिले( वैशाली, बेगूसराय, दरभंगा, भागलपुर, कटिहार व जमुई) ने होने लगे तो इन पक्षियों को रेडियो टैग पहनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा. पूरा प्रयास रहेगा कि सभी प्रवासी पक्षियों को रेडियो टैग पहनाने का काम माइग्रेशन पीरियड( नवंबर 2024 से फरवरी 2025 में ही पहना दिया जाए. इससे फायदा ये होगा कि इससे ये मालूम हो सकेगा कि ये प्रवासी पक्षी विदेशों में कहां- कहां से आते हैं और यहां पर कहां-कहां विचरण से लेकर प्रजनन आदि करते हैं.
Mar 14 2024, 06:55